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शुक्रवार, नवंबर 27, 2009

चिट्ठा जगत की बेईमानी या मनमानी

चिट्ठा जगत के बारे में कहा जाता है यह एक स्वचलित चिट्ठा है। लेकिन अब इस बात को लेकर संदेह होने लगा है कि अगर यह वास्तव में स्वचलित है तो फिर इसको लेकर लगातार परेशानी क्यों हो रही है। स्वचलित में ऐसी कौन सी बड़ी खामी है कि एक चिट्ठे में एक दिन तो उनके चिट्ठे की चर्चा की प्रविष्ठि जुड़ जाती और दूसरे दिन गायब हो जाती है। इस बात को लेकर अब यह शक होने लगा है कि ये चिट्ठा जगत की बेईमानी है या फिर मनमानी। क्या कोई ऐसा है जो चाहता है कि किसी तेजी से आगे बढ़ते चिट्ठे पर लगाम लगाई जाए और उसकी रफ्तार को रोका जाए। हमें तो कुछ ऐसा ही लगता है क्योंकि हमारे साथ ऐसा लगातार हो रहा है।

हमने ब्लाग बिरादरी के मित्रों के कहने पर अपना ध्यान लिखने पर ही लगाया है, पर इसका क्या किया जाए कि जब हमारे साथ लगातार अन्याय हो रहा है तो फिर चुप कैसे बैठा जाए। कहने को तो चिट्ठा जगत को स्वचलित कहा जाता है अगर यह महज स्वचलित है तो फिर इसको लेकर लगातार परेशानी क्यों हो रही है। न जाने क्या खेल हो रहा है जो दूसरे चिट्ठा में हुई चर्चा की प्रविष्ठियां गायब हो जाती हैं या फिर कर दी जाती यह बात समझ नहीं आ रही है। हमारे साथ यह लगातार हो रहा है। एक ही दिन में हमारी तीन पोस्ट की चर्चाएं हुर्इं और ये सब की सब गायब। इसके अलावा और भी कई बार ऐसा हुआ है। हमारे ब्लाग राजतंत्र की 26 नवंबर को तीन अलग-अलग चिट्ठों पर चर्चाएं हुईं। ये तीनों चर्चाएं इस प्रकार है जिसके हम लिंक भी दे रहे हैं। पंकज मिश्र जी के ब्लाग पर रूपचंद शास्त्री जी ने हमारे लेख भारतीय हॉकी में अभी जान है बाकी की चर्चा की। इसी दिन 26 नवंबर को ब्लाग चर्चा मुन्ना भाई में हमारे लेख काश एक बार वो फिर मिल जाती की चर्चा हुई फिर महेन्द्र मिश्र के समयचक्र में हमारे दो लेखों हिन्दु बेटे के अंतिम दीदार के लिए कब्रिस्तान में खोला गया मुस्लिम मां का चेहरा और वंदेमातरम् से मुसलमानों को परहेज नहीं की चर्चा हुई।

(चारों के लिंक ये हैं)

ये गुरु चेले ताऊ टिप्पणी खेचूं ताबीज बेच रेयेल है भाई
एक भीख मांगता बच्चा
पुरुष तो वही देखेगा जो दिखाया जाएगा
आम जनता क्या डंडे खाने के लिए है..

इन तीनों चर्चाओं को हमारे हवाले की प्रविष्ठियों में जोड़ा नहीं गया। इसके एक दिन पहले भी पंकज मिश्र जी के ब्लाग में रूपचंद शास्त्री जी ने हमारे एक लेख की चर्चा की थी (इसका लिंक हम इसलिए नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि श्री मिश्र जी ब्लाग में 25 नवंबर की वह पोस्ट खुल नहीं रही है)। इसको भी हमारी प्रविष्ठियों में नहीं जोड़ा गया। इसके कुछ दिनों पहले यानी 10 नवंबर को चर्चा पान की दुकान में भी एक लेख आम जनता क्या डंडे खाने के लिए है.. में राजतंत्र का लिंक देने के बाद न तो इसका हवाला जुड़ा और न ही प्रविष्ठी। तब हमने समझा था कि इस साझा ब्लाग में हम भी लिखते हैं शायद इसलिए प्रविष्ठी और हवाला नहीं जोड़ा गया। लेकिन इस बारे में हमारे ब्लागर मित्र कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि ब्लाग आपका है, प्रविष्ठियां तो जुड़ती है। अगर ऐसा है तो फिर हमारे साथ ये क्या हो रहा है, हम नहीं जानते हैं। लेकिन इतना तय है कि जिस तरह से लगातार राजतंत्र के साथ किया गया है, उससे यह प्रतीत होता है कि चिट्ठा जगत में बैठे हुए या फिर उनसे जुड़े हुए मठाधीश किसी नए ब्लागर को इतनी तेजी से आगे बढऩे देना नहीं चाहते हैं। ऐसा हम इसलिए भी कह रहे हैं कि हमने अपने 9 माह के ब्लागर जीवन में कई दिग्गजों को भी चिट्ठा जगत पर संदेह जताते देखा है।

हमारा ऐसा मानना है कि किसी भी ब्लागर को आगे बढऩे से रोकना गलत है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि किसी चिट्ठा जगत का कोई ब्लागर मोहताज नहीं होता है, जब वह अच्छा लिखता है तो उसको पढऩे वाले आते ही हैं। लेकिन अन्याय बर्दाश्त करना कम से कम हमारी फितरत नहीं है। हमने इसके पहले भी चिट्ठा जगत के बारे में लिखा था, तब हमारे ब्लागर मित्रों ने लेखन पर ध्यान देने की सलाह दी थी, हम लेखन पर ही ध्यान दे रहे हैं लेकिन क्या अन्याय के खिलाफ आंखे बंद कर लेना गलत नहीं है। अन्याय के आगे झुकने का मतलब भी अपराध करना है और हम अपराधबोध से ग्रस्त होना नहीं चाहते हैं इसलिए हमारे साथ जो हुआ है उसको हमने ब्लाग बिरादरी के सामने रखा है। हो सकता है कि इस खुलासे के बाद चिट्ठा जगत से हमें और ज्यादा परेशानी हो, लेकिन इससे हमें कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। इस बात के डर से हम अन्याय के खिलाफ न लिखे यह संभव नहीं है। अगर आज हम नहीं लिखेंगे तो कल और किसी के साथ ऐसा अन्याय होगा। जिसके साथ भी अन्याय होता है उसको खुलकर सामने आना ही चाहिए।

22 टिप्पणियाँ:

Mohammed Umar Kairanvi शुक्र नव॰ 27, 02:26:00 pm 2009  

चिट्ठा जगत वाकई स्‍वचलित और सबका है, यह टेक्निकल गलतियां होंगी, एक बार हमने इस पर उंगली उठाई तो हमसे बात करने जैन साहब को आगे कर दिया, हमें चुप होना पडा पहली बार, फसदियों और दंगा अभिलाषियों का तो ब्लागवाणी है, नहीं है तो वह कैरानवी को Page Rank-3 Blogger होते हुए भी क्‍यूं नहीं द‍ेता रजिस्‍टेशेन,

चिट्ठा जगत वाकई सबका है

guru शुक्र नव॰ 27, 02:48:00 pm 2009  

अन्याय के विरूद्ध तो लडऩा ही चाहिए गुरु

रंजन शुक्र नव॰ 27, 03:01:00 pm 2009  

मुझे लगता है कि ये तकनिकी समस्या है.. आप जिन हवालों कि बात कर रहे है वहां ब्लोग का सिधा लिंक न देकर feedproxy... से लिंक देता है.. और शायद चिट्ठाजगत ये नहीं पढ़ पा रहा..

राजकुमार ग्वालानी शुक्र नव॰ 27, 03:06:00 pm 2009  

रंजन जी,
हो सकता है आप ठीक कह रहे हों, लेकिन सोचने वाली बात यह कि कोई स्वचलित यंत्र एक बार लिंक पकड़े और दूसरी या तीसरी बार न पकड़े क्या यह संभव है। जिस चिट्ठों में चर्चा होती है, वे लगातार वैसे ही लिंक देत होंगे फिर एक दिन का लिक जुड़े दूसरे दिन का न जुड़े क्या यह संभव है?

anu शुक्र नव॰ 27, 03:09:00 pm 2009  

आपकी बातों से हम सहमत है. अन्याय के खिलाफ तो आवाज उठानी ही चाहिए

मनोज कुमार शुक्र नव॰ 27, 03:17:00 pm 2009  

आपकी बातों से हम सहमत है.

बेनामी,  शुक्र नव॰ 27, 03:27:00 pm 2009  

चिट्ठा जगत का यह स्‍वचलन किसी के हाथो पर निर्भर है। कुछ लोग इसकी सक्रियता पर बहुत दिनो से ऊपर बैठे है।

बेनामी,  शुक्र नव॰ 27, 03:44:00 pm 2009  

Aap sangharsh karein. Hum aapke saath hain.

Randhir Singh Suman शुक्र नव॰ 27, 04:12:00 pm 2009  

sriman ji,
aisa lagta nahi hai kyonki kai baar takniki kharabiyon k karan ho jata hai , haan blogvaani k baare mein agar aap ki baat hoti to shayad mani ja sakti thi . hamare blog ka abhi tak blogvani se connection nahi ho paya .

Arvind Mishra शुक्र नव॰ 27, 04:51:00 pm 2009  

भैया हमतो ऐसी बातों से डर जाते हैं -ब्लागवाणी एक बार ऐसी बातों से बंद हो गयी थी -बड़ी मान मनौवल के बाद तो वापसी हुयी !
मुझे नहीं लगता की चिट्ठाजगत या ब्लागवाणी ऐसी कोइ रणनीति के तहत काम कर रहे हैं -वे एक सामाजिक सेवा कर रहे हैं उन्हें करने दीजिये जो वे कर रहे हैं !

atul kumar,  शुक्र नव॰ 27, 04:58:00 pm 2009  

अन्याय के विरूद्ध तो लडऩा ही चाहिए

atul kumar,  शुक्र नव॰ 27, 04:59:00 pm 2009  

अन्याय के विरूद्ध तो लडऩा ही चाहिए

प्रवीण त्रिवेदी शुक्र नव॰ 27, 05:46:00 pm 2009  

रंजन जी शायद ठीक कह रहे हैं ...अपनी समझ से !
बाकी हमें ऐसे अनुभव नहीं हैं ...सो आपको क्या सलाह दें?

मास्टरी की समझ कहती है कि आपको उन्हें पूरी समस्या उन्ही डिटेल में लिखकर समझानी चाहिए!

बाकि हम कुछ कर नहीं सकते ?

Udan Tashtari शुक्र नव॰ 27, 08:35:00 pm 2009  

मुझे लगता है कि ये तकनिकी समस्या है


-वैसे मित्र, मुझे लगता है कि इस तरह की परेशानियों के निराकरण के लिए पहले आपको चिट्ठाजगत से संपर्क स्थापित करना चाहिये. उनसे पूछना चाहिये कि क्या वजह है जो ऐसा हो रहा है.

यदि वो कोई तकनिकी कारण बतायें तो उसका निराकरण भी होगा.

महज संदेह के आधार पर, एक ऐसे मंच को जो कि मात्र सेवा भाव से जुटा है, इस तरह सार्वजनिक तौर पर लांक्षित करना तो कतई उचित नहीं प्रतीत होता.

अगर आपके ईमेल और संपर्क स्थापित करने के बाद भी वो निराकरण करने से मना करें तो शायद फिर आपकी यह पोस्ट जायज होती.

यह मात्र मेरी सोच है. आप बेहतर समझेंगे.

PD शुक्र नव॰ 27, 09:01:00 pm 2009  

इसी कारण से हम भी नीचे होते जा रहे हैं.. मगर हमें इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.. :)

अजय कुमार झा शुक्र नव॰ 27, 09:07:00 pm 2009  

राज भाई ..मैं भी उडन जी से सहमत हूं ..फ़िर दूसरी सोचने वाली बात ये भी है कि ..आखिर चिट्ठाजगत को आपसे या किसी से क्या दोस्ती दुश्मनी हो सकती है ...और उसकी बावजूद यदि आपको कुछ शिकवा गिला है तो सीध चिट्ठाजगत को मेल करें ...मुझे लगता है उनका जवाब आपका संदेह दूर कर देगा ..आप बढते ब्लोग्गर हैं और ये सबसे अच्छा बात है ...
अजय कुमार झा

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद शुक्र नव॰ 27, 10:59:00 pm 2009  

कभी कभी आदमी का दिमाग ही काम नहीं करता, यह तो आदमी की बनाई चीज़ है:)

लडाई की कोई बात नहीं, आपने ध्यान दिला दिया, वे लोग उस पर अमल करेंगे॥

दिनेशराय द्विवेदी शनि नव॰ 28, 12:20:00 am 2009  

क्या फर्क पड़ता है इन चीजों से। आप लिखते रहिए। पाठक आप तक पहुँचेंगे।

राजकुमार ग्वालानी शनि नव॰ 28, 12:25:00 am 2009  

समीर लाल जी
अजय झा जी
आप दोनों की जानकारी के लिए हम बताना चाहते हैं कि इसके पहले भी हमारे साथ ऐसा हो चुका है, तब हमने चिट्ठा जगत वालों को मेल किया था। उनके कहने पर हमने उन चिट्ठों के लिंक और अपने ब्लाग का पता भी भेजा था, लेकिन इसके बाद भी हमारी समस्या का समाधान तो नहीं हुआ था बल्कि समस्या और ज्यादा बढ़ गई, अब ऐसे में हमें यही उचित लगा कि एक पोस्ट लिखी जाए। हम किसी पर कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं, हमारे साथ जो हुआ है उसको एक सबूत के साथ पेश किया गया है। ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है, और जहां तक हमें पता है होता है। चिट्ठा जगत सेवा भाव से काम कर रहा है उसके लिए वह साधूवाद का पात्र है, लेकिन किसी ब्लागर की किसी समस्या का समाधान अगर नहीं किया गया है तो उस ब्लागर के पास क्या रास्ता बच जाता है।

Pramendra Pratap Singh शनि नव॰ 28, 12:47:00 pm 2009  

is prakar ki baat khuleaam kahna teek nahi hai. kuch takniki dikkte hogi is karn system kam nahi kar raha hoga.

ham bhi chitttha jagat ki rank suchi me first 30 se hat kar 80 se bahar ho gaye hai par mujhe abhi tak koi fark nahi pada :)

mera blog to abhi bhai chal raha hai.

बेनामी,  शनि नव॰ 28, 01:15:00 pm 2009  

Mai bhi aapki baat se sahamat huun. Jis tarah se aapka blog bahut hi kam samay mein lokpriy hua hai usase tathakathit choti par viraajmaan blogger aapse dwesh karne lage hain. Pahli nazar mein to yahi lagta hai ki sabne milakar chitthajagat ke saath saajish kee hai, jisase aap choti par na pahunch sake. Yah ek udeeymaan chitthakar ke saath anyaay hee nahin waran dhokha hai. In blogaron ki manmani nahin chalegi. Hamara desh hi aisa hai. Yahan kisi talent ko ubharne ka mauka dena to door, log uske peechhe pad jaate hain. Isi soch ki wajah se ye choti ke blogger apke peechhe pad gaye hain. Aap chinta na karein, sangharsh karein. Kyonki apna adhikaar paana har blogger ka adhikaar hai.

Aap sangharsh karein, aur koi ho na ho, hum aapke saath hain.

Jay Hind!

बेनामी,  रवि मार्च 14, 08:37:00 pm 2010  

अबे चूतिए. कब तक इन बातों पर लिखता रहेगा.

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