भारतीय महिला हॉकी में अभी जान है बाकी
नीता डुमरे छत्तीसगढ़ की पहली अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी के साथ अंतरराष्ट्रीय निर्णायक भी हैं। बैंकाक में इसी माह खेले गए सीनियर एशिया कप में वह निर्णायक की भूमिका निभाकर लौटी हैं। वहां पर भारतीय टीम ने फाइनल में पहुंचकर विश्व कप में खेलने की भी पात्रता प्राप्त की है। यह इस बात का सबूत है कि महिला हॉकी में अभी बहुत जान बाकी है। दूसरी तरफ पुरुष हॉकी को विश्व कप में मेजबान होने के कारण खेलने की पात्रता मिल पाई है। अंतरराष्ट्रीय हॉकी के साथ छत्तीसगढ़ की हॉकी पर उनसे हुई बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं।
० अंततराष्ट्रीय खिलाड़ी के बाद अंतरराष्ट्रीय निर्णायक की भूमिका में आना कैसा लगा?
०० हॉकी खेलना छोडऩे के बाद ही मेरी प्रारंभ से इच्छा थी कि मैं अंपायरिंग करूं। लेकिन इसके लिए छत्तीसगढ़ में ऐसी कोई सुविधा नहीं थी। ऐसे में मुङो भारतीय हॉकी संघ की महासचिव अमृत बोस ने सलाह दी कि मैं अंपारिंयग के स्थान पर निर्णायक बनने पर ध्यान दूं। उनकी सलाह पर मैंने पहली बार २००० में हैदराबाद में राष्ट्रीय स्पर्धा में निर्णायक की भूमिका निभाई। इसके बाद और कुछ राष्ट्रीय स्पर्धाओं में निर्णायक रही। इसके बाद हैदराबाद में जब २००३ में एशिया कप हुआ तो पहली बार अंतरराष्ट्रीय निर्णायक के रूप में मेरा भी चयन किया गया। इसके बाद से मैं लगातार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्णायक बन रही हूं। इसी माह बैंकाक में खेले गए सीनियर एशिया कप में भी मैं निर्णायक थी। वहां से दो दिन पहले ही लौटी हूं। निर्णायक बनने के कारण अब तक मैं अपने खेल से भी जुड़ी हुई हूं।
० निर्णायकों को दिया जाने वाला छत्तीसगढ़ का हनुमान सिंह पुरस्कार प्राप्त करके कैसा लगा?
०० मेरा ऐसा मानना है कि मुझे यह पुरस्कार मिला है तो इससे अपने प्रदेश की खिलाडिय़ों को भी हॉकी में निर्णायक बनने की प्रेरणा मिलेगी। जब मैं १९८८ में भारतीय टीम में शामिल हुई थी तो उस समय मप्र था इसके बाद भी छत्तीसगढ़ की खिलाडिय़ों को एक रास्ता दिखा था कि वे भी भारतीय टीम में स्थान बना सकती हैं। बकौल नीता आज छत्तीसगढ़ की दो खिलाड़ी रश्मि तिर्की और निधि राष्ट्रीय स्तर पर अंपायरिंग कर रही हैं, इनको कभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंपायरिंग का मौका मिल सकता है।
० भारतीय महिला हॉकी के भविष्य के बारे में क्या सोचती हैं?
०० बैंकाक में जिस तरह से भारतीय हॉकी टीम ने खेल दिखाया और फाइनल में पहुंचने के कारण विश्व कप में खेलने की पात्रता प्राप्त कर ली उससे लगता है कि महिला हॉकी का भविष्य कम से कम पुरुष हॉकी से ज्यादा अच्छा है। पुरुष हॉकी में भारत को मेजबान होने के कारण विश्व कप में खेलने के लिए पात्रता मिली है। कनाडा और इंग्लैंड से जीतकर खुश होने से कुछ नहीं मिलेगा। अपने देश में पुरुष हॉकी का ज्यादा महत्व है, ऐसे में इसको निखारने पर ध्यान देना चाहिए।
० छत्तीसगढ़ में हॉकी की क्या स्थिति है?
०० अपने राज्य में हॉकी के प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों की कमी नहीं है। यहां पर जशपुर, सरगुजा, रायगढ़, राजजनांदगांव, बिलासपुर, रायपुर , दुर्ग से लेकर हर जिले में प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं। बस जरूरत है इसको सुविधाएं देने की।
० कैसी सुविधाओं होनी चाहिए?
०० सबसे पहले तो प्रदेश सरकार को राज्य में ज्यादा से ज्यादा एस्ट्रो टर्फ बनाने चाहिए। राज्य बनने के ९ साल बाद भी एक भी एस्ट्रो टर्फ नहीं लग पाया है। हमारी खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी एस्ट्रो टर्फ न होने के कारण मात खा जाती हैं। महिला टीम क्वार्टर फाइनल तक तो पहुंच जाती है, पर यहां पर उसके सामने एस्ट्रो टर्फ में खेलने वाली टीमें आ जाती हैं और हमारी टीमें मात खा जाती हैं।
० एस्ट्रो टर्फ के अलावा और किसी सुविधा की दरकार है?
०० हॉकी की अकादमी बहुत जरूरी है। अगर प्रदेश में हॉकी अकादमी होती तो दुर्ग की खिलाड़ी सबा अंजुम को बाहर जाकर खेलना नहीं पड़ता और उनके खेल का फायदा छत्तीसगढ़ को मिलता।
० आपके समय के खेल और आज के खेल में क्या अंतर है?
०० जब हम लोग खेलते थे तो सुविधाओं का बहुत ज्यादा अभाव था, आज सुविधाएं बहुत मिल रही हैं। हम लोग किट के लिए तरस जाते थे, आज खिलाडिय़ों को किट आसानी से मिल जाती है। रेलवे में होने के बाद भी हम लोगों को किट नहीं मिलती थी, कहा जाता था भारतीय टीम से खेल रही हैं तो किट भी वहां से मिलनी चाहिए।
० प्रदेश सरकार खेलों के लिए जो कर रही है उससे संतुष्ट हैं?
०० इसमें शक नहीं है कि छत्तीसगढ़ में खेल और खिलाडिय़ों के लिए सरकार बहुत कुछ कर रही है, लेकिन सबसे जरूरी है खिलाडिय़ों के लिए रोजगार उपलब्ध करवाना। सरकार ने उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित करने का काम तो किया है, पर इसके नियम ठीक नहीं है।
० कैसे नियम होने चाहिए?
०० नियम ऐसे हों जिससे सभी खेलों को फायदा हो। अभी जो नियम हैं, उससे पदक जीतने वाले कुछ ही खेलों को फायदा होगा। मप्र में लगातार तीन राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलने वालों को उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित किया जाता था, ऐसा ही कुछ अपने राज्य में भी होना चाहिए।
० राजधानी में खेल सुविधाओं के बारे में क्या सोचती है?
०० यह अपने राज्य का दुर्भाग्य है कि राजधानी का वह स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स छत्तीसगढ़ बनने के ९ साल बाद भी नहीं बन पाया है जिसके लिए हम लोगों ने २३ साल पहले १९८६ में जयस्तंभ चौक में भूख हड़ताल की थी। मैदान का अभाव खिलाड़ी दो दशक से ज्यादा समय से झेल रहे हैं। हम लोगों से काफी पहले ही सोच लिया था कि रायपुर के स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स के मैदान में हमारे बच्चों को खेलने नसीब हो जाए तो बड़ी बात होगी। राजधानी में खेल मैदानों की सुविधाएं बढ़ानी चाहिए।
3 टिप्पणियाँ:
जान तो बाकी है...सही कहा!
रचना अच्छी लगी। बधाई।
नीता डूमरे के बारे में जानकर और उनका इंटरव्यू पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई...नीता दुमारे और भारतीय टीम को इस सफलता पर हार्दिक बढ़ाई....पर उनके इंटरव्यू में भी यही बात झलकती है कि अभी बहुत लम्बा रास्ता तय करना है....इतने बड़े प्रदेश में एक भी एस्ट्रो टर्फ मैदान नहीं है...बहुत अफसोसजनक है यह,जबकि मुंबई में स्कूली बच्चे भी एस्ट्रो टर्फ पर खेलते हैं,...और प्रतिभाएं छोटी छोटी जगहों पर छुपी पड़ी हैं जहाँ सुविधाएं नहीं हैं.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलता पाने के लिए ,सुविधाएं तो मुहैया करवानी ही पड़ेंगी.
एक बार अजमल शाह हॉकी प्रतियोगिता में हमारी महिला हॉकी टीम भाग लेने गयी थी और खिलाड़ियों के पास नंबर वाली टी शर्ट तक नहीं थीं.रेफरी ने खेलने की अनुमति नहीं दी तब कहीं से मार्कर लाकर उन टीशर्ट पर नंबर लिखे गए,इस से दुखदायी घटना क्या हो सकती है.
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