अब मुस्लिम महिला फ्रंट के खिलाफ भी जारी करो फतवा
वंदेमातरम् की खिलाफत करने वाले मुसलमानों को उनके ही कौम की महिलाओं ने जता दिया है कि मां का अपमान करना उनको बर्दाश्त नहीं है। जो लोग वंदेमातरम् का विरोध कर रहे हैं और इसके खिलाफ फतवा जारी करने का एक घिनौना काम किया है, क्या अब उनमें इतनी हिम्मत है कि अपने ही कौम के मुस्लिम महिला फ्रंट के खिलाफ वो फतवा जारी कर सकें। वैसे भी वंदेमातरम् को लेकर मुस्लिम समाज में एका नहीं है, और जब किसी बात में एका न हो तो ऐसी बात का खुलकर विरोध करना हमेशा घातक होता है, अब लगता है कि जरूर फतवे का फरमान जारी करने वाले अकेले पड़ जाएंगे। अगर इन्होंने मुस्लिम महिला फ्रंट के खिलाफ कुछ किया तो आज बनारस की महिलाएं सड़कों पर आईं हैं कल पूरे देश की मुस्लिम महिलाएं सड़कों पर आ जाएंगी तो फतवे के नाम से राजनीति करने वालों को भागने की जगह नहीं मिलेगी।
अचानक मीनू खरे के ब्लाग पर कल नजरें पड़ीं तो उसमें एक खबर देखी कि बनारस के मुस्लिम महिला फं्रट ने वंदेमातरम् के पक्ष में सम्मान मार्च का आयोजन किया। इस मार्च में मुस्लिम महिलाओं ने जिस तरह की तखतियों को लेकर प्रदर्शन किया, वह इस बात का सबूत है कि वास्तव में हिन्दुस्तान का मुसलमान कभी भी अपने देश हिन्दुस्तान के खिलाफ नहीं रहा है, यह तो चंद ऐसे गंदे लोग हैं जो अपनी राजनीति की रोटी सेकने के लिए धर्म को ढाल बनाने का काम करते हैं। लेकिन जब भी किसी धर्म में उसका गलत इस्तेमाल किया जाता है तो उसी धर्म के लोग जागरूक होकर सामने आ जाते हैं, जैसा कि अभी मुस्लिम धर्म में हुआ है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश को आजाद करवाने में मुस्लिम कौम का भी कम बड़ा हाथ नहीं रहा है, लेकिन इसका क्या किया जाए कि हर कौम में ऐसे लोग रहते हैं कि जिनको विध्नसंतोषी कहा जाता है। इनको शांति पसंद नहीं आती है और इनका काम ही बिनावजह साम्प्रदायिकता फैलाना रहता है। ऐसे लोगों के कारण ही दो भारत का बंटवारा हुआ है। अगर ऐसे धर्मपरस्त लोग नहीं होते तो आज भी भारत-पाक एक होते और इस देश में और विश्व में आतंकवाद भी नहीं होता। लेकिन इसका क्या किया जाए कि जहां अच्छाई है वहां बुराई भी होगी ही।
लेकिन यहां पर मुद्दा यह नहीं है। यहां पर सवाल है वंदेमातरम् का। तो इसके खिलाफ फतवा जारी करने वालों को उनके कौम की महिलाओं ने ही बता दिया है कि उन्होंने एक गलत काम किया है और इस गलत काम में मुस्लिम समाज कताई उनके साथ नहीं है। मुस्लिम महिलाओं ने जिस तरह की हिम्मत दिखाने का काम किया है, उसके लिए पूरा देश उनका नमन करता है। अब फतवे का फरमान जारी करने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि ऐसे किसी फतवे के चक्कर में कोई पडऩे वाला नहीं है। क्या फतवा जारी करने वाले आंकाओं में दम है कि वे अब मुस्लिम महिला फ्रंट के खिलाफ भी कोई फतवा जारी कर सकें। अगर ऐसा करने ही हिमाकत की गई तो पूरे देश की मुस्लिम महिलाएं फतवा जारी करने वालों के खिलाफ खड़े होने में देर नहीं करेंगी। और ऐसा हो गया तो फिर फतवा-फतवा का खेल खेलने वालों को भागने के लिए कोई जगह नहीं मिलेगी।
अचानक मीनू खरे के ब्लाग पर कल नजरें पड़ीं तो उसमें एक खबर देखी कि बनारस के मुस्लिम महिला फं्रट ने वंदेमातरम् के पक्ष में सम्मान मार्च का आयोजन किया। इस मार्च में मुस्लिम महिलाओं ने जिस तरह की तखतियों को लेकर प्रदर्शन किया, वह इस बात का सबूत है कि वास्तव में हिन्दुस्तान का मुसलमान कभी भी अपने देश हिन्दुस्तान के खिलाफ नहीं रहा है, यह तो चंद ऐसे गंदे लोग हैं जो अपनी राजनीति की रोटी सेकने के लिए धर्म को ढाल बनाने का काम करते हैं। लेकिन जब भी किसी धर्म में उसका गलत इस्तेमाल किया जाता है तो उसी धर्म के लोग जागरूक होकर सामने आ जाते हैं, जैसा कि अभी मुस्लिम धर्म में हुआ है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश को आजाद करवाने में मुस्लिम कौम का भी कम बड़ा हाथ नहीं रहा है, लेकिन इसका क्या किया जाए कि हर कौम में ऐसे लोग रहते हैं कि जिनको विध्नसंतोषी कहा जाता है। इनको शांति पसंद नहीं आती है और इनका काम ही बिनावजह साम्प्रदायिकता फैलाना रहता है। ऐसे लोगों के कारण ही दो भारत का बंटवारा हुआ है। अगर ऐसे धर्मपरस्त लोग नहीं होते तो आज भी भारत-पाक एक होते और इस देश में और विश्व में आतंकवाद भी नहीं होता। लेकिन इसका क्या किया जाए कि जहां अच्छाई है वहां बुराई भी होगी ही।
लेकिन यहां पर मुद्दा यह नहीं है। यहां पर सवाल है वंदेमातरम् का। तो इसके खिलाफ फतवा जारी करने वालों को उनके कौम की महिलाओं ने ही बता दिया है कि उन्होंने एक गलत काम किया है और इस गलत काम में मुस्लिम समाज कताई उनके साथ नहीं है। मुस्लिम महिलाओं ने जिस तरह की हिम्मत दिखाने का काम किया है, उसके लिए पूरा देश उनका नमन करता है। अब फतवे का फरमान जारी करने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि ऐसे किसी फतवे के चक्कर में कोई पडऩे वाला नहीं है। क्या फतवा जारी करने वाले आंकाओं में दम है कि वे अब मुस्लिम महिला फ्रंट के खिलाफ भी कोई फतवा जारी कर सकें। अगर ऐसा करने ही हिमाकत की गई तो पूरे देश की मुस्लिम महिलाएं फतवा जारी करने वालों के खिलाफ खड़े होने में देर नहीं करेंगी। और ऐसा हो गया तो फिर फतवा-फतवा का खेल खेलने वालों को भागने के लिए कोई जगह नहीं मिलेगी।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि मुस्लिम समाज कभी वंदेमारतम् के खिलाफ नहीं रहा है। इतिहास गवाह है कि देश को आजादी दिलाने में शामिल मुस्लिम नेताओं ने शान से इसका गाना किया है। 1896 में मौलाना रहीमतुल्ला ने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में वंदेमातरम् गाकर इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाई। 1905 में बनारस के कांग्रेस अधिवेशन में गोखले ने वंदेमारतम् को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया। 1913 में करांची अधिवेशन में सदर मोहम्मद बहादुर ने वंदेमारतम् गाया। 1923 में मौलाना मोहम्मद अली,1927 में डॉ.एम.ए.अंसारी,1940-45 मे मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने देश को वंदेमारतम् की शपथ दिलाई।
आज भी इस गान को गाने में मुस्लिम समाज को परहेज नहीं है। इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि मुस्लिम महिलाएं ही यह कह रही हैं कि उनको जय हिन्दु और वंदेमातरम् बोलने से कोई रोक नहीं सकता है, इसके लिए वे जान तक देने की बात कर रही हैं। अब भी समय है वंदेमातरम् को लेकर विवाद खड़ा करने वालों के लिए कि वे बिनावजह इस बात को तूल न दें और अपने फरमान को वापस लेने का काम करके एक मिसाल कायम करने का काम करें।
लेकिन हमें नहीं लगता है कि ऐसा किया जाएगा। न करें हमने पहले भी लिखा है कि कपूतों के वंदेमातरम् न कहने से भारत मां को क्या फर्क पड़ता है। जिस तरह से मुस्लिम समाज वंदेमातरम् को लेकर बटा हुआ है, उससे यह बात अपने आप साबित हो जाती है कि वंदेमातरम् का विरोध करने वाले कपूत ही हैं, और इन कपूतों को तो उनके कौम की ही मां, बहनों, बेटियों और बहूओं ने ही नकार दिया है। ऐसे नाकारा लोगों की बातों से क्या फर्क पडऩे वाला है।
जय हिन्द, जय भारत, वंदेमारतम्
10 टिप्पणियाँ:
प्यारे 5 महिलाओं के हाथ में पोस्टर थमा के रूक्का तारते हो, 200-300 रूपये की धियाडी पे मिल जाती/जाते है ऐसे मजदूर, दिल्ली में रेली में आए लाखों लोगों से बात करो तो उनका कहना होता है उन्हें नहीं पता किया समस्या है, उनको तो धियाडी और राशन कार्ड बन जाएगा यह पता है,
आज और गये कल ''राष्ट्रीय सहारा'' हिन्दी-उर्दू जिसकी सारे हिन्दुस्तान के मुसिलमों तक सर्कुलेशन है ने अधिकतर मुस्लिम महिलाओं और मर्दों को समझा दी है वंदे मातरम की असलियत, जैसे ब्लागिंग में समझाई है 'वंदे ईश्वरम' ने
देखें
डायरेक्ट लिंक
http://wandematram.blogspot.com/
मुसलमान कभी वंदेमातरम के खिलाफ नहीं रहे हैं, ये तो बेवजह विवाद खड़ा करने का काम किया गया है।
वंदेमातरम से परहजे करने वाले बिलकुल देशद्रोही है, भले उनको बुरा लगे लेकिन यह हकीकत है कि जो अपनी सगी मां के नहीं होते वो भारत मां के क्या होंगे?
अब जारी करो फतवा अपने समाज की महिलाओं के खिलाफ, कहां हो उल्लेमाओं सामने क्यों नहीं आते
वंदेमातरम के पक्ष में आईं मुस्लिम महिलाओं को सलाम
ये गाने से अच्छा है की मेरे चाँद अपने "भैया" राज से हिन्दी का सम्मान करवा लो, फिर किसी से कुछ कहना, यार शरम करो ,कम अगर लिखने का इतना ही शोक़् है तो बहुत मुद्दे हैं उनपे लिखो . लगता है पेट भरा हुआ है, क्योंकि ऐसी बातें भरे पेट पर ही याद आती हैं,
वन्दे ईश्वरम अर्थात वन्दना करो उस ईश्वर की जिसने सारी सृष्टि बनाई
बेकार, इससे अच्छा तो वह गाना है जिसे हिन्दू मुसलमानों ने मिलके गाया था, चोली के नीचे किया है, उसके लिऐ कल किसी फ्रीसेक्स वाले देश में आवाज उठायेंगे, ऐसे मजदूर बोर्ड टांगे फिरेंगे
चोली के नीचे किया है
चोली के नीचे दिल है मेरा
यह दिल दूंगी मैं अपने राम को
pyare,
vande mataram kahi bhi rastrgit nahi tha rastrgit to jan-gan-man hai phir is pe bawal kyu?
um kabhi bhi aisa git nahi gayenge
jo humare majahab ke khilap ho
chahe jobhi ho hume parvah nahi
बहुत अच्छा लेख. धन्यवाद. सभी भारतीयों को इस खबर को अपने ब्लॉग में स्थान देकर उन साहसी महिलाओं का हौसला बढ़ाना चाहिए जो देश के हित में सामने आने की हिम्मत कर रही हैं.आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दूँ कि मुस्लिम महिला फ़्रंट बनारस में तेज़ी से उभरता संगठन है जिसमें अधिकतर पढ़ी लिखी लड़्कियाँ और महिलाएँ हैं जो यूनिवर्सिंटी मे पढती/पढाती हैं. इनकी सँख्या करीब 1500-2000 के बीच पहुँच चुकी है.
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