सांस्कृतिक कार्यक्रमों का वीआईपी करण
छत्तीसगढ़ में राज्योत्सव का कार्यक्रम रखा तो आम जनता के नाम से जाता है, पर सोचने वाली बात यह है कि इस करोड़ों के आयोजन से आम जनता को क्या मिल पाता है। इस बार तो सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी ऐसा वीआईपी करण किया गया कि आम जनता को अपने चहेते कलाकारों को ठीक से देखना भी नसीब नहीं हुआ। जब जनता को कुछ देखने को मिलना नहीं है तो फिर ऐसे कार्यक्रमों में जनता को बुलाने की भी क्या जरूरत है? साफ-साफ फरमान ही जारी कर दिया जाता कि यह बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम केवल वीआईपी के लिए हैं, आम जनता के लिए वो छोटे कार्यक्रम हैं जो छोटे मंच पर हो रहे हैं। वैसे कलाकारों को भी सांस्कृतिक विभाग ने छोटे और बड़े में बांट रखा था।
अपने प्रदेश का राज्योत्सव निपट गया, पर इस बार यह एक नहीं कई सवाल छोड़ गया। इस बार सबसे ज्यादा यह बात खली कि अपने सांस्कृतिक विभाग ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों का पूरी तरह से वीआईपी करण कर दिया था, इसी के साथ इन कार्यक्रमों में छोटे-बड़े की खाई भी पैदा कर दी। प्रदेश के कलाकारों को निरीह और छोटा समझते हुए उनके लिए राज्योत्सव के अंदर स्टालों वाले पंडालों में एक मंच बनाया गया जहां पर आम जनों के लिए बैठने की व्यवस्था करके उन पर एक अहसान किया गया। उधर राज्योत्सव के सामने एक बड़े से मैदान में बड़ा का मंच भैरवदेव की आकृति वाला बनाया गया। अब मंच बड़ा था तो वहां कलाकार भी बड़े ही आने थे। इस मंच के लिए बॉलीबुड के ही कलाकारों को आमंत्रित किया गया। इनको आमंत्रित किया गया और इसके लिए इनकी गरिमा के हिसाब से बड़ा मंच बनाया गया वहां तक तो बात ठीक थी, पर इनका कार्यक्रम देखने के लिए जो मापदंड़ तय किए गए वह मापदंड़ हर उस आम आदमी को खल गए जो बॉडीबुड के कलाकारों का चाहने वाला है और उनको करीब से देखने की तमन्ना रखता है।
छत्तीसगढ़ की आम जनता के लिए राज्योत्सव में यही तो एक सौगात होती है कि उनको कई बड़े कलाकारों को मुफ्त में देखने का मौका मिलता है, लेकिन इस बार तो आम जनों से यह मौका भी छीन लिया गया। पूरे कार्यक्रम का इस तरह से वीआईपी करण किया गया कि जिसकी कोई सीमा नहीं है। इस वीआईपी करण में भी यह किया गया कि जिनको पास दिए गए उनको भी अंदर नहीं जाने दिया गया। महज सरकारी अधिकारियों को छोड़कर और कोई वीआईपी था ही नहीं। सबसे बुरी स्थिति उस मीडिया की भी रही जिसे देश का चौथा स्तंभ कहा जाता है। मीडिया वालों को भी कार्यक्रम में जाने के लिए पास होने के बाद भारी मशक्कत करनी पड़ी। मीडिया के लिए प्रेस लिखकर जो रास्ता बनाया गया था और जहां पर मीडिया के लिए अहसान करने के लिए एक मंच जैसा बनाया गया था, उस रास्ते में किसी को भी जाने की छूट थी। अब मीडिया कोई वीआईपी थोड़े होते है। अगर सरकार कोई आयोजन कर रही है तो मीडिया तो सरकारी नौकर है उसको तो उस कार्यक्रम को कवर करना ही है, अगर कार्यक्रम कवर नहीं हुआ तो समझो गया आपका विज्ञापन।
अपने प्रदेश का राज्योत्सव निपट गया, पर इस बार यह एक नहीं कई सवाल छोड़ गया। इस बार सबसे ज्यादा यह बात खली कि अपने सांस्कृतिक विभाग ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों का पूरी तरह से वीआईपी करण कर दिया था, इसी के साथ इन कार्यक्रमों में छोटे-बड़े की खाई भी पैदा कर दी। प्रदेश के कलाकारों को निरीह और छोटा समझते हुए उनके लिए राज्योत्सव के अंदर स्टालों वाले पंडालों में एक मंच बनाया गया जहां पर आम जनों के लिए बैठने की व्यवस्था करके उन पर एक अहसान किया गया। उधर राज्योत्सव के सामने एक बड़े से मैदान में बड़ा का मंच भैरवदेव की आकृति वाला बनाया गया। अब मंच बड़ा था तो वहां कलाकार भी बड़े ही आने थे। इस मंच के लिए बॉलीबुड के ही कलाकारों को आमंत्रित किया गया। इनको आमंत्रित किया गया और इसके लिए इनकी गरिमा के हिसाब से बड़ा मंच बनाया गया वहां तक तो बात ठीक थी, पर इनका कार्यक्रम देखने के लिए जो मापदंड़ तय किए गए वह मापदंड़ हर उस आम आदमी को खल गए जो बॉडीबुड के कलाकारों का चाहने वाला है और उनको करीब से देखने की तमन्ना रखता है।
छत्तीसगढ़ की आम जनता के लिए राज्योत्सव में यही तो एक सौगात होती है कि उनको कई बड़े कलाकारों को मुफ्त में देखने का मौका मिलता है, लेकिन इस बार तो आम जनों से यह मौका भी छीन लिया गया। पूरे कार्यक्रम का इस तरह से वीआईपी करण किया गया कि जिसकी कोई सीमा नहीं है। इस वीआईपी करण में भी यह किया गया कि जिनको पास दिए गए उनको भी अंदर नहीं जाने दिया गया। महज सरकारी अधिकारियों को छोड़कर और कोई वीआईपी था ही नहीं। सबसे बुरी स्थिति उस मीडिया की भी रही जिसे देश का चौथा स्तंभ कहा जाता है। मीडिया वालों को भी कार्यक्रम में जाने के लिए पास होने के बाद भारी मशक्कत करनी पड़ी। मीडिया के लिए प्रेस लिखकर जो रास्ता बनाया गया था और जहां पर मीडिया के लिए अहसान करने के लिए एक मंच जैसा बनाया गया था, उस रास्ते में किसी को भी जाने की छूट थी। अब मीडिया कोई वीआईपी थोड़े होते है। अगर सरकार कोई आयोजन कर रही है तो मीडिया तो सरकारी नौकर है उसको तो उस कार्यक्रम को कवर करना ही है, अगर कार्यक्रम कवर नहीं हुआ तो समझो गया आपका विज्ञापन।
इधर आम जनों के लिए वैसे ही व्यवस्था थी जैसे होनी चाहिए। यानी आप दूर खड़े होकर ही कार्यक्रम बन सुन सकते हैं देख नहीं सकते हैं। क्योंकि देखने का अधिकार आपका है ही नहीं। अरे भई जब सरकारी खर्च में सारा आयोजन हो रहा है तो उसका लुफ्त भी तो सरकारी लोग ही उठा सकते हैं, आम जनों की क्या मजाल की कोई आवाज कर दे कोई आवाज करेगा तो उसके लिए पुलिस का डंडा है न वह कब काम आएगा। अब हम इस पुलिस के डंडे की बात यहां पर नहीं अपने एक साझा ब्लाग चर्चा पान की दुकान पर करेंगे कि क्या आम जनता डंडे खाने के लिए हैं? एक नजर यहां पर भी फरमाए।
4 टिप्पणियाँ:
यही हालात हो लिए हैं!
मीडिया में दम होता तो यह सब होती ही क्यों। मीडिया तो सरकार का सबसे बड़ा चाटुकार है
छोटे-बड़े का भेद तो सरकार सदा से करती रही है। अब सरकार के सामने छत्तीसगढ़ के कलाकारों की क्या औकात, उसे ता बस बंबईया लोग चाहिए।
आम जनता के लिए कभी कोई सरकार कोई कार्यक्रम करवाती है क्या, जनता को हमेशा धके खाने के लिए होती है।
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