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रविवार, नवंबर 29, 2009

हम अब भी उनका एतबार करते हैं...


तुम्हें हमसे नफरत सही, हम तुम्हें प्यार करते हैं

इस हंसी गुनाह को हम बार-बार करते हैं।।


तुम आओगी नहीं, जानकर भी हम तुम्हें बुलाते हैं

दिल के आईने में हम अब भी तेरा दीदार करते हैं।।


ए मेरी हमदम तुम्हें तो वफा के नाम से भी नफरत है

मगर एक हम हैं जो जफा से भी मोहब्बत करते हैं।।

गम लिए फिरते हैं सारे जमाने का दिल में

मगर फिर भी न हम किसी से शिकायत करते हैं।।

आ जाओ लौटकर दिल की दुनिया फिर से बसाने

हम तो तेरा अब भी इंतजार करते हैं।।


सब कहते हैं बेवफा उसे प्रिंस

मगर हम अब भी उनका एतबार करते हैं।।

नोट: यह कविता भी हमारी 20 साल पुरानी डायरी की है

8 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला रवि नव॰ 29, 09:26:00 am 2009  

बहुत सुन्दर है रचना बधाई

ब्लॉ.ललित शर्मा रवि नव॰ 29, 10:08:00 am 2009  

सब कहते हैं बेवफा उसे प्रिंस
मगर हम अब भी उनका एतबार करते हैं।।

लोग जल्दबाजी मे एतबार करना छोड़ देते है लेकिन जो एतबार के साथ सही समय का ईंतजार करता है, उसे मंजिल मिल ही जाती है। जो आपने बीस साल पहले किया था, आप आदर्श उदाहरण हैं।
"कुछ तो मजबुरियां रही होगी
कोई युं ही बेवफ़ा नही होता"
राम-राम हा हा हा

विवेक रस्तोगी रवि नव॰ 29, 10:21:00 am 2009  

वाह बहुत बढिय़ा, २० साल पहले की डायरी से ओर भी बहुत कुछ पढ़ने को मिलेगा... अब आगे ...

हमारी तो डायरी ही गुम गई, इसलिये हमारी पुरानी कविताओं का संग्रह खत्म हो गया।

sapna,  रवि नव॰ 29, 10:34:00 am 2009  

सुन्दर है रचना

Udan Tashtari रवि नव॰ 29, 12:01:00 pm 2009  

सब कहते हैं बेवफा उसे प्रिंस
मगर हम अब भी उनका एतबार करते हैं।।



-वाह भई प्रिंस...बीस साल पहले भी तेज वही था.

Unknown रवि नव॰ 29, 02:57:00 pm 2009  

सुन्दर है रचना

atul kumar,  रवि नव॰ 29, 06:54:00 pm 2009  

सुन्दर रचना बधाई

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