हम अब भी उनका एतबार करते हैं...
तुम्हें हमसे नफरत सही, हम तुम्हें प्यार करते हैं
इस हंसी गुनाह को हम बार-बार करते हैं।।
तुम आओगी नहीं, जानकर भी हम तुम्हें बुलाते हैं
दिल के आईने में हम अब भी तेरा दीदार करते हैं।।
ए मेरी हमदम तुम्हें तो वफा के नाम से भी नफरत है
मगर एक हम हैं जो जफा से भी मोहब्बत करते हैं।।
गम लिए फिरते हैं सारे जमाने का दिल में
मगर फिर भी न हम किसी से शिकायत करते हैं।।
आ जाओ लौटकर दिल की दुनिया फिर से बसाने
हम तो तेरा अब भी इंतजार करते हैं।।
सब कहते हैं बेवफा उसे प्रिंस
मगर हम अब भी उनका एतबार करते हैं।।
नोट: यह कविता भी हमारी 20 साल पुरानी डायरी की है
इस हंसी गुनाह को हम बार-बार करते हैं।।
तुम आओगी नहीं, जानकर भी हम तुम्हें बुलाते हैं
दिल के आईने में हम अब भी तेरा दीदार करते हैं।।
ए मेरी हमदम तुम्हें तो वफा के नाम से भी नफरत है
मगर एक हम हैं जो जफा से भी मोहब्बत करते हैं।।
गम लिए फिरते हैं सारे जमाने का दिल में
मगर फिर भी न हम किसी से शिकायत करते हैं।।
आ जाओ लौटकर दिल की दुनिया फिर से बसाने
हम तो तेरा अब भी इंतजार करते हैं।।
सब कहते हैं बेवफा उसे प्रिंस
मगर हम अब भी उनका एतबार करते हैं।।
नोट: यह कविता भी हमारी 20 साल पुरानी डायरी की है
8 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर है रचना बधाई
सब कहते हैं बेवफा उसे प्रिंस
मगर हम अब भी उनका एतबार करते हैं।।
लोग जल्दबाजी मे एतबार करना छोड़ देते है लेकिन जो एतबार के साथ सही समय का ईंतजार करता है, उसे मंजिल मिल ही जाती है। जो आपने बीस साल पहले किया था, आप आदर्श उदाहरण हैं।
"कुछ तो मजबुरियां रही होगी
कोई युं ही बेवफ़ा नही होता"
राम-राम हा हा हा
वाह बहुत बढिय़ा, २० साल पहले की डायरी से ओर भी बहुत कुछ पढ़ने को मिलेगा... अब आगे ...
हमारी तो डायरी ही गुम गई, इसलिये हमारी पुरानी कविताओं का संग्रह खत्म हो गया।
सुन्दर है रचना
सब कहते हैं बेवफा उसे प्रिंस
मगर हम अब भी उनका एतबार करते हैं।।
-वाह भई प्रिंस...बीस साल पहले भी तेज वही था.
सुन्दर है रचना
Bahut Sundar.. 10 on ten!...
सुन्दर रचना बधाई
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