रमन के फैसले को नमन
अपने देश के नेता और मंत्री ऐसे हैं तो नहीं कि उनके किसी फैसले पर उनका नमन किया जाए, लेकिन फिर भी कुछ ऐसे नेता और मंत्री निकल आते हैं जिनके किसी फैसले पर दिल से नमन करने का मन होता है। ऐसा ही एक फैसला अपने राज्य छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने किया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव में प्रदेश के बिलासपुर जिले के जिलाधीश को राज्य के एक पुरस्कार वीर शहीद वीर नारायण सिंह के लिए चुने जाने पर नाराजगी जताते हुए उनका नाम पुरस्कारों की सूची से हटवा दिया। मुख्यमंत्री के इस फैसले की चौरफा वाह-वाही हो रही है। वास्तव में रमन का यह फैसला नमन करने वाला है। वरना कौन मुख्यमंत्री नहीं चाहेगा कि उनके राज्य के किसी अधिकारी को पुरस्कार मिले और वह अधिकारी उनका भक्त हो जाए, पर रमन ने जो फैसला किया उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है।
छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव में कई क्षेत्रों के लिए पुरस्कार दिए जाते हैं। ऐसा ही एक पुरस्कार शहीद वीर नारायण सिंह के नाम से दिया जाता है। यह पुरस्कार उनको दिया जाता है जो आदिवासियों के हितों के लिए काम करते हैं। इस बार इस पुरस्कार के लिए बिलासपुर के जिलाधीश सोनमणी बोरा का नाम तय किया गया। एक जिलाधीश का नाम तय होने पर सभी को आश्चर्य भी हुआ। लेकिन इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि सोनमणी बोरा ने आदिवासियों के हितों के लिए काम किया है। लेकिन यहां पर सोचने वाली बात यही है कि क्या एक जिलाधीश ऐसा काम कर रहे हैं तो उनको पुरस्कार से नवाजा जाना चाहिए और वह भी सरकारी पुरस्कार से? अगर उनका चयन सही भी किया गया था तो इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस चयन पर उंगलियां उठतीं, और ऊंगलियां उठने भी लगीं थीं। सरकारी महकमे में ही इस बात को लेकर चर्चा होने लगी थी कि कैसे आखिर सोनमणी बोरा का नाम तय किया गया है।
इधर जैसे ही मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह दक्षिण अफ्रीका की यात्रा से लौटे विमान तल पर ही उनको यह मालूम हो गया कि एक जिलाधीश का नाम पुरस्कारों की सूची में है। ऐसे में उन्होंने शाम को पत्रकारों से चर्चा करते हुए जहां अपनी जोरदार नाराजगी का इजहार किया और सोनमणी बोरा का नाम सूची से हटा दिया, वहीं एक और नाम जीएस बंदेशा का भी हटाया गया। इनको धन्वंतरी सम्मान के लिए चुना गया था। मुख्यमंत्री प्रशासनिक अधिकारियों के नाम पुरस्कारों के लिए तय करने से खासे नाराज हुए। उन्होंने पत्रकारों के सामने यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में ऐसी लगती नहीं होगी।
रमन सिंह ने प्रशासनिक अधिकारियों के नाम पुरस्कारों की सूची से हटाने का जो काम किया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। रमन का तर्क भी सही है कि प्रशासनिक अधिकारियों का काम ही है यह करना फिर सोनमणी बोरा ने ऐसा क्या अलग से कर दिया है जिसके लिए उनको पुरस्कार दिया जाए। उनका तर्क 100 प्रतिशत सही है। रमन के इस फैसले को हम नमन करते हैं। लेकिन साथ ही एक बात जरूर कहना चाहेंगे कि अगर सोनमणी बोरा ने एक अच्छा काम किया है तो उस काम की तारीफ तो होनी ही चाहिए अगर उनको पुरस्कार के लायक समझा जाता है तो उनको एक अलग तरह का भी पुरस्कार दिया जा सकता है।
26 जनवरी के दिन जब प्रशासनिक अधिकारियों का सम्मान किया जाता है तब ऐसे में श्री बोरा के काम के लिए उनका सम्मान किया जा सकता है। अब यह सोचना शासन का काम है। लेकिन संभवत: डॉ. रमन सिंह देश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने किस पुरस्कार की सूची से प्रशासनिक अधिकारी का नाम कटवाने का काम किया है। काश अपने देश के हर नेता और मंत्री रमन की तरह सोचने लगे तो देश का कुछ तो भला हो ही सकता है। आज अगर छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है तो इसके पीछे भी डॉ. रमन सिंह की वह साफ छवि है जिसे जनता पसंद करती है। उनके इस कदम से उनका कद जरूर बढ़ेगा।
10 टिप्पणियाँ:
सही है...नमन योग्य फैसला.
बिलकुल सही फैसला किया मुख्यमंत्री ने नौकरशाहों को पुरस्कार देने का क्या मतलब
हमारा भी नमन है गुरु
बहुत हिम्मत वाला काम किया है डा रमन सिंह ने।आज जब नौकरशाही पूरी तरह हावी है ऐसे मे एक आई ए एस अफ़सर को इनाम देकर खुश करने की बजाय उसका नाम कटवा देना आसान काम नही है,सलाम करता हुं डा रमन सिंह को।
नमन है
अनिल जी से सहमत
फैसला नमन योग्य
रमन सिंह ने प्रशासनिक अधिकारियों के नाम पुरस्कारों की सूची से हटाने का जो काम किया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। रमन का तर्क भी सही है कि प्रशासनिक अधिकारियों का काम ही है यह करना फिर सोनमणी बोरा ने ऐसा क्या अलग से कर दिया है जिसके लिए उनको पुरस्कार दिया जाए। उनका तर्क 100 प्रतिशत सही है। रमन के इस फैसले को हम नमन करते हैं।
दिल जीत लिया रमन के फैसले ने
सरकार के पुरस्कार आम जनता के लिए ही होने चाहिए
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