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रविवार, जनवरी 31, 2010

सरकार देशी खेलों को बढ़ावा दे

सांसद रमेश बैस का कहना है कि प्रदेश सरकार को अपने पारंपरिक देशी खेलों को बढ़ाने का काम करना चाहिए। प्रदेश के खिलाडिय़ों को निखारने के लिए बाहर से प्रशिक्षक भी बुलाने की जरूत है। क्रिकेट के कारण दूसरे खेलों की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता है। दूसरे खेलों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देने का भी काम सरकार को करना चाहिए। खेल मंत्री लता उसेंडी ने कहा कम से कम अपने राज्य छत्तीसगढ़ में तो महिला खिलाडिय़ों का दबदबा है।

रमेश बैस ने कहा एक जमाना वह था जब देश में महिलाओं का कोई स्थान नहीं था, लेकिन आज तो हर क्षेत्र में महिलाओं का दबदबा है। अपने राज्य में जहां खेल मंत्री महिला हैं, वहीं देश की राष्ट्रपति भी एक महिला हैं। कांग्रेस में जिनके हाथों में राष्ट्रीय स्तर पर कमान है, वह भी महिला हैं। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी ने तो महिलाओं को ५० प्रतिशत आरक्षण दे रखा है। श्री बैस ने कहा कि खिलाड़ी सिखने से नहीं होता है, उसमें आत्मविश्वास के साथ लगन होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिला खिलाड़ी खेलों में आगे आएं इसके लिए परिवार की सोच भी बदलनी चाहिए। आज अगर स्कूल या कॉलेज गई कोई लड़की आधे घंटे देर से घर पहुंचती हैं तो उनके परिजन परेशान हो जाते हैं। खेलों के लिए तो बहुत ज्यादा समय देना पड़ता है।

श्री बैस ने क्रिकेट पर वार करते हुए कहा कि आज क्रिकेट के कारण दूसरे खेल दब गए हैं। आज केन्द्र सरकार के साथ राज्य सरकारों को दूसरों खेलों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से कहा कि राज्य में पारंपरिक खेलों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। अपने राज्य में पारंपरिक खेलों के खिलाड़ी ज्यादा हैं। उन्होंने अन्य खेलों के लिए बाहर से अच्छे कोच बुलाने की बात कही। उन्होंने बताया कि वे तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष हैं और जब उनको मालूम हुआ कि तीर-कमान की कीमत डेढ़ लाख रुपए है तो वे भी सोच में पड़ गए कि अपने राज्य के गरीब खिलाड़ी इतनी कीमत के तीर-कमान कहां से खरीद सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं खिलाडिय़ों को देने के प्रयास करने चाहिए।

प्रदेश की खेलमंत्री ने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज खेलों के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका अहम हो गई है। हर खेल में महिलाएं आगे आ रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाडिय़ों की सूची पर गौर किया तो मालूम हुआ कि जिन ७० खिलाडिय़ों को उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित किया गया है, उसमें ने ५९ महिला खिलाड़ी हैं। यह इस बात का सबूत है कि कम से कम छत्तीसगढ़ में महिला खिलाडिय़ों का दबदबा है। उन्होंने कहा छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर जिन खेलों चाहे वह बास्केटबॉल, हैंडबॉल, नेटबॉल या और किसी भी खेल में सफलता मिल रही है तो इनमें महिला खिलाडिय़ों की सफलता ज्यादा है। उन्होंने कहा कि दो दिनों की संगोष्ठी में जो भी विचार सामने आए हैं उन विचारों से अवगत होने के बाद छत्तीसगढ़ में महिला खिलाडिय़ों को आगे बढ़ाने की दिशा में जो किया जाना है वह जरूर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हर खेल में महिला खिलाडिय़ों की भागीदारी दो इसके लिए उनको सुविधाएं देने का काम हमारी सरकार करेगी।

खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि संगोष्ठी की सफलता तभी होगी जब इसके निष्कर्ष पर अमल किया जा सके। उन्होंने कहा कि यह बात तय है कि खेलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। फिर भी जागरूकता की जरूरत है। उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक अंजली शुक्ला ने कहा कि रविशंकर शुक्ल विवि के दीक्षांत समारोह में जिनको डिग्रियां दी गईं उनमें ८० प्रतिशत महिलाएं थीं।

स्कूली स्तर से ध्यान दें

भारतीय खेल प्राधिकरण के पूर्व डीन डॉ. एमएल कमलेश ने कहा कि भारत आज ओलंपिक में अगर पदक नहीं जीत पाता है तो उसके कई कारण हैं। इनमें प्रमुख कारण यह है कि भारत की नींव ही कमजोर है। उन्होंने कहा कि खेलों की नींद का काम स्कूल करते हैं, लेकिन स्कूलों में खेलों की स्थिति क्या है सब जानते हैं। स्कूल स्तर के साथ कॉलेज स्तर पर भी खेलों को मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पदक जीतने के लिए वातावरण के साथ फिटनेस का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। भारतीय खिलाडिय़ों की फिटनेस विदेशी खिलाडिय़ों की तुलना में बहुत कमजोर है। संगोष्ठी में और भी वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि कैसे महिला खिलाडिय़ों की भूमिकाओं को खेलों में बढ़ाने का काम करना चाहिए।

संगोष्ठी के औचित्य पर भी सवाल

इस संगोष्ठी का आयोजन यूजीसी से मिले एक लाख के अनुदान के साथ डिग्री गल्र्स कॉलेज ने किया। संगोष्ठी पर करीब डेढ़ लाख का खर्च होने की बात आयोजन समिति के सचिव अतुल शुक्ला ने कही है। आयोजन में शामिल खेलों से जुड़े कई लोग यह कहते रहे कि आखिर इस संगोष्ठी का औचित्य क्या है? क्या ऐसी किसी संगोष्ठी से खेलों का परिदृश्य बदल सकता है। मंच पर मात्र भाषण देने से कुछ नहीं होता है। आज भारतीय ओलंपिक संघ के साथ केन्द्र सरकार के पास ऐसी कोई भी योजना नहीं है जिससे ओलंपिक में भारत को पदक मिल सके। अगर ऐसी संगोष्ठियों के आयोजन से खेलों का भला होता तो हर राज्य में संगोष्ठियों की बाढ़ आ जाती। यह तो यूजीसी से अनुदान लेकर महज खानापूर्ति करना मात्र है।

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शनिवार, जनवरी 30, 2010

पहचान कौन?



ये हमारे एक पत्रकार और ब्लागर मित्र हैं। हम इनका नाम अभी नहीं बताएंगे। इस चित्र को देखकर आपके दिमाग में क्या आ रहा है। जरूर बताएं। यह इंसान कौन हो सकता है, क्या आप बता सकते हैं। आपको इनके पहनावे से क्या लगता है। कृपया छत्तीसगढ़ के उन ब्लागर मित्रों से अनुरोध है जो इस इंसान को पहचानते हैं कि कौन हैं, इनका राज न खोलें। हम जानना चाहते हैं अपने ब्लागर मित्रों से कि इनको एक नजर में देखने के बाद आपके दिमाग में इनकी क्या छवि बनती है, जरूर बताएं।

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ब्लाग जगत से हमारा रिश्ता भी तीन साल पुराना है

ब्लाग जगत में भले हमारी पहचान बने हुए एक साल भी नहीं हुआ है, लेकिन हम बता दें कि ब्लाग जगत से हमारा रिश्ता भी करीब तीन साल पुराना है। हमने जुलाई 2007 में पहली बार हरफनमौला नाम से ब्लाग बनाकर ब्लाग जगत में कदम रखा था। इसके बाद एक ब्लाग राजकुमार ग्वालानी नाम से अक्टूबर 2008 में बनाया। लेकिन जहां तक नियमित लेखन का सवाल है तो हमने 3 फरवरी 2009 से खेलगढ़ और इसके बाद 23 फरवरी से राजतंत्र के माध्यम से नियमित लिखना प्रारंभ किया है जो अब तक जारी है और आगे भी हमेशा जारी रहेगा।

आप लोग सोच रहे होंगे कि आज हमें अचानक ब्लाग जगत से अपने पुराने रिश्ते की याद कैसे आ गई। हम इस बात का खुलासा करते भी नहीं लेकिन क्या करें हमारे एक ब्लागर मित्र ने हमें एक दिन जता दिया कि वे ब्लाग जगत में बहुत सीनियर हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि वे सीनियर हैं, लेकिन इसके लिए जताने की क्या जरूरत है। जब उन्होंने जता ही दिया है तो हम भी उनको बताना चाहते हैं कि भाई भले हमने ब्लाग जगत में अभी पहचान बनाई है, लेकिन जहां तक ब्लाग जगत से रिश्ते का सवाल है तो हमारा ब्लाग जगत से तो रिश्ता उसी दिन जुड़ गया था जब हमने हरफनमौला नाम से ब्लाग बनवाया था। हमारा यह ब्लाग बनाने का काम जयप्रकाश मानस जी ने किया था। तब हम वाकई में ब्लाग के बारे में कुछ नहीं जानते थे, उन्होंने ही हमसे कहा था कि आपकी खेलों में इतनी अच्छी पकड़ है और अपना इतना अच्छा लिखते हैं तो क्यों नहीं आप अपने लेखन को अंतरराष्ट्रीय मंच देने का काम करते हैं। यही कहते हुए उन्होंने हमारा ब्लाग बना दिया। अब यह हमारा दुर्भाग्य ही रहा कि हम उस समय कुछ नहीं लिख सके। इसके पीछे कारण यह रहा कि हम यूनिकोड में लिख नहीं पाते थे, और साथ ही हमें समय भी नहीं मिलता था।

इसके बाद हमारी श्रीमती अनिता ग्वालानी ने एक दिन हमारा एक और ब्लाग राजकुमार ग्वालानी के नाम से अक्टूबर 2008 में बना दिया। इस ब्लाग में हमने 13 पोस्ट लिखी। लेकिन इसको भी हम नियमित नहीं रख सके। हमारे ये दोनों ब्लाग याहू की आईडी से बने थे। हमने जब अपनी पत्रिका खेलगढ़ को इंटरनेट पर डालने का मन बनाया तो इसी के लिए खेलगढ़ बनाया गया। यह ब्लाग की संरचना भी हमारी श्रीमती श्रीमती अनिता ग्वालानी ने की। इस ब्लाग का प्रारंभ 3 फरवरी 2009 को किया गया। इसके 20 दिन बाद ही हमने राततंत्र का प्रारंभ किया। अब तो हम इन दोनों ब्लागों में नियमित लिख रहे हैं। एक बात हम भी बता दें कि जब हमने ब्लाग जगत से नाता जोड़ा था तब बमुश्किल एक हजार ब्लागर भी नहीं लिखते थे, और उस समय एक मात्र एग्रीगेटर के रूप में नारद जाने जाते थे।

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शुक्रवार, जनवरी 29, 2010

गर्भ में पल रहे शिशु को बना दूंगा अभिमन्यू

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऐसे सज्जन हैं जो यह दावा करते हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु को वे अभिमन्यू बना सकते हैं। वैसे ये सज्जन लोगों को पिछले जन्म का राज बताने का भी काम करते हैं। अब तक करीब तीन सौ लोगों को ये पिछले जन्म की सैर कराने की बात कहते हैं। एनडीटीवी के कार्यक्रम राज पिछले जन्म का के बाद पिछले जन्म का राज जानने वालों को ठगने का काम हर स्थान पर चलने लगा है तो ऐसे में छत्तीसगढ़ इससे कैसे अच्छूता रह सकता है।

रायपुर में कई स्थानों पर इन दिनों बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे हुए हैं कि जाने पूर्व जन्म का राज। इन होर्डिंग्स में दिव्य ज्योति शक्ति अनुसंधान केन्द्र राजेन्द्र नगर का उल्लेख है, साथ ही किसी गुलाब सिंह नाम के सज्जन का नाम भी है। गुलाब सिंह से जब हमारे अखबार दैनिक हरिभूमि के एक पत्रकार ने चर्चा की तो उन्होंने जहां यह दावा किया कि वे पिछले जन्म का राज बताने का काम करते हैं, वहीं उनका साफतौर पर कहना है कि वे गर्भ में पल रहे शिशु को अभिमन्यू जैसा बना सकते हैं। अभिमन्यू के बारे में सब जानते हैं कि उन्होंने चक्रव्यूह को तोडऩे का राज गर्भ में जाना था। वे चक्रव्यूह के अंदर जाने का रास्ता तो जानते थे, पर बाहर आने का नहीं।

बहरहाल गुलाब सिंह के दावे में कितना दम है यह आसानी से समझा जा सकता है। ऐसे लोग लोगों की पिछले जन्म में आस्था का गलत फायदा उठाते हुए महज पैसे कमाने का काम करते हैं। गुलाब सिंह पिछले जन्म का राज बनाने के लिए तीन हजार रुपए लेते हैं। वे जब किसी को पिछले जन्म की सैर कराने का काम करते हैं तो उनसे जो राज जानते हैं उस राज की वे वीडियो तो नहीं आडियो कैसेट जरूर बनाकर उनको देते हैं। उनकी बातों पर यकीन किया जाए तो वे अब तक 300 लोगों को पिछले जन्म का राज बता चुके हैं। यानी की 300 लोग उनके धोखे में आकर ठगे जा चुके हैं। अब आगे वे और कितनों को बेवकूफ बनाएंगे कहा नहीं जा सकता है। पिछले जन्म का राज बताने की बात करने वाले होर्डिंग्स पर भी नगर निगम ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। ऐसे होर्डिंग्स को तो तत्काल हटवाने का काम करना चाहिए।

पिछले जन्म का राज बताने का धंधा केवल छत्तीसगढ़ में चल रहा है ऐसा नहीं है, यह धंधा अपने देश के कई राज्यों के साथ इंटरनेट के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहा है। इस धंधे को सबसे बड़ा रास्ता दिखाने का काम एनडीटीवी ने किया है, जिसमें एक सीरियल राज पिछले जन्म का चलता था। यह सीरियल तो 18 जनवरी से बंद हो गया है, पर इस सीरियल के कारण गुलाब सिंह जैसे लोगों की निकल पड़ी है। ऐसे लोगों के खिलाफ अभियान चलाकर इनको पुलिस के हवाले करने की जरूरत है।

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गुरुवार, जनवरी 28, 2010

तुम्हारे ब्लाग की औकात ही क्या है?

हमारे एक पत्रकार मित्र हैं, उनको जब हमने कहा कि यार तुम भी ब्लाग लिखना क्यों प्रारंभ नहीं करते हो, तो उन्होंने सीधे से हम पर सवाल दागा कि तुम्हारे ब्लाग की औकात क्या है? कितने लोग पढ़ते हैं उसे, रोज जो उसके लिए इतनी मेहनत करते हो और लगे रहते हो सबको ब्लाग लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए। अगर एक साप्ताहिक अखबार में भी कोई खबर छपती है तो उसको पढऩे वाले तुम्हारे ब्लाग से कई गुना ज्यादा लोग होते हैं। फिर तुम यह क्यों भूल रहे हो कि जिस अखबार में तुम या फिर चाहे मैं काम करते हैं उस अखबार की प्रसार संख्या करीब एक लाख है। जब हमारे लिखे को एक लाख लोग पढ़ते हैं तो फिर ये ब्लाग के चक्कर में पडऩे का क्या मतलब है। हमारे उन मित्र की बात ठीक तो है, पर इसका क्या किया जाए कि किसी को हो या न हो पर हमें तो ब्लागिंग का नशा लग ही गया है। हम इतना जानते हैं कि ब्लाग लिखने से कोई नुकसान नहीं है लेकिन फायदा जरूर है कि आपकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनती है। इसी के साथ ब्लाग में आप वो सब लिखने के लिए स्वतंत्र रहते हैं जो अखबार में नहीं लिख सकते हैं।

आज ब्लागिंग को लेकर हम भी पिछले एक साल अच्छे खासे उत्साहित हैं। इस एक साल में हमारे उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। हमें जब भी मौका मिला है हमने अपने मित्रों को ब्लाग लिखने के लिए प्रोत्साहित किया है। हमारे कई मित्रों ने हमारे कहने पर ही ब्लाग लिखने प्रारंभ किए हैं। हम ठीक-ठीक संख्या तो नहीं बता सकते लेकिन बहुत ज्यादा मित्रों ने ब्लाग लिखना हमारे कारण प्रारंभ किया है। हमारे अखबार दैनिक हरिभूमि में ही हमारे ब्लाग लिखने के कारण कम से कम 10 मित्रों ने इस दिशा में गंभीरता से लिखना प्रारंभ किया। अब ब्लाग लिखने से कोई फायदा है या नहीं यह अलग बात है। इसके लिए अपना-अपना नजरिया हो सकता है। जैसे हमारे मित्र ने कह दिया कि तुम्हारे ब्लाग की औकात क्या है? इसमें लिखे गए लेख को कितने लोग पढ़ते हैं? इसमें कोई दो मत नहीं है कि ब्लाग में लिखे गए लेख को पढऩे वालों की संख्या सीमित है। किसी का ब्लाग कितना भी लोकप्रिय क्यों न हो, उस ब्लाग को ज्यादा से ज्यादा एक हजार लोग पढ़ते होंगे, लेकिन यह बात सत्य है कि एक साप्ताहिक अखबार जिसकी प्रसार संख्या भले एक हजार होती हो अगर उसमें आपने कोई धमाकेदार खबर लिखी है तो उसे पढऩे वाले एक हजार से ज्यादा लोग होंगे।

खैर हमने ब्लाग लिखना इसलिए प्रारंभ नहीं किया था कि हमें यहां भी अखबारों जितने पाठक मिलेंगे। हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि हम जो कुछ ब्लाग में लिख सकते हैं, वह अखबार में कभी नहीं लिख सकते हैं। अखबार में कई तरह से प्रतिबंध होते हैं। आप जो लिखते हैं उसे छपने के लायक अखबार के मालिक या संपादक समझे यह जरूरी नहीं है। लेकिन ब्लाग में आप मालिक भी खुद हैं और संपादक भी खुद हैं। इससे अच्छा अपने विचारों को व्यक्त करने का माध्यम क्या हो सकता है।

वैसे ब्लाग को ठीक उसी तरह से समझा जा सकता है कि एक कलाकार जिस तरह से सच्ची तारीफ का भूख रहता है और उसकी तारीफ अगर सच्चे दिल से चंद लोग भी कर दें को काफी होती है। ब्लाग में आपके लिखे की तारीफ सच्चे दिल से होती है। अखबार में आपके लिखे को पढऩे वाले तो हजारों हो सकते हैं, पर उन हजारों में तारीफ करने वाले नहीं होते हैं। जो आपको व्यक्तिगत रूप से जानता है वह तो आपकी तारीफ कर सकता है, फोन करके, लेकिन जो नहीं जानता है उसका क्या। लेकिन ब्लाग जगत में कोई भी अंजान पाठक आपके लेखन की तारीफ टिप्पणी देकर कर सकता है।

हमें इतना मालूम है कि आने वाले समय में ब्लाग का स्थान बहुत ऊंचा होने वाला है। इसको आज पांचवें स्तंभ के रूप में देखने की शुरुआत हो चुका है। अगर भविष्य में ब्लाग अखबारों के लिए खतरा बन जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। ऐसे में ब्लाग लिखना फायदेमंद है, इसकी औकात की बात करना गलत है। एक अखबार की औकात भी प्रारंभ में छोटी होती है, फिर आगे वह अपने अच्छे लेखन के कारण लोकप्रिय हो जाता है। अगर आपके लेखन में दम है तो आपके ब्लाग की औकात एक अखबार से कम नहीं हो सकती है।

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बुधवार, जनवरी 27, 2010

अब और नहीं लिखेंगे हम....

रायपुर ब्लागर मीट पर हम बहुत कुछ लिखना चाहते थे, पर किसी कारणवश मन खट्टा हो गया है, ऐसे में आगे हमने इस पर कुछ भी न लिखने का फैसला किया है।
बस हम तो इतना ही कह सकते हैं कि....


बातें तो बहुत थीं कहने को

पर अब मन ही नहीं लिखने को

जब परवाह ही नहीं अपनों को

तो दोष क्या दें हम गैरों को

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1000 पोस्ट भी हो ही गई पूरी ....



ब्लाग जगत में हमें एक साल भी नहीं हुआ है और हमारी 1000 पोस्ट पूरी हो गई है। जब हमने ब्लाग जगत में 23 फरवरी 2009 को खेलगढ़ के माध्यम से कदम रखा था तब हमें मालूम नहीं था कि हमारे लिखने का कारवां इतना लंबा हो जाएगा। लेकिन ब्लागिंग के नशे में हम ऐसे फंसे हैं कि अब इसके बिना रहा नहीं जाता है। वैसे हम एक बात बता दें कि हमारे लिए ब्लाग की दुनिया कोई नई नहीं है। करीब तीन साल पहले हमने इस दुनिया में हरफनमौला नाम के ब्लाग के साथ कदम रखा था, पर तब हम इस ब्लाग को नियमित नहीं रख सके। इसके बाद अक्टूबर 2008 में राजकुमार ग्वालानी नाम से एक ब्लाग बनाया जो कि अब भी जिंदा है, पर इसमें भी हम नियमित नहीं लिख पाए, लेकिन खेलगढ़ के बाद राजतंत्र ने हमें एक नया मुकाम दिया है। आज राजतंत्र के कारण ही हमारी ब्लाग जगत में एक अलग पहचान है।

ब्लाग जगत से हमारा रिश्ता यूं तो तीन साल पुराना है, लेकिन हम अपने इस रिश्ते को एक साल का ही मानते हैं। हमने ब्लाग जगत में नियमित लेखन का प्रारंभ 3 फरवरी से तब किया जब खेलगढ़ में हमने पहली पोस्ट लिखी। इसके बाद एक और ब्लाग राजतंत्र प्रारंभ किया। इस ब्लाग में हमने लिखने की शुरुआत 23 फरवरी से की है। तब से लेकर अब तक हम लगातार बिना रूके लिख रहे हैं। कोई भी दिन ऐसा नहीं रहा है जब हमने राजतंत्र में कोई पोस्ट नहीं लिखी है। अभी इसमें लिखते हुए एक साल भी नहीं हुआ है और इस ब्लाग ने ब्लाग जगत में अपनी एक विशेष पहचान बना ली है। राजतंत्र की बात करें तो इसमें हमने आज की पोस्ट को मिलाकर अब तक 357 पोस्ट लिखी है। इन पोस्टों पर हमें 3479 टिप्पणियां मिली हैं। इसी के साथ इस ब्लाग में हमें 28800 पाठक मिले हैं। हमारे इस ब्लाग के जहां 46 समर्थक हैं, वहीं इसका सक्रियता क्रमांक 26 जनवरी की तारीख में चिट्ठा जगत में 42 है।

अब जहां तक खेलगढ़ की बात है तो इस ब्लाग में हमने अब तक 644 पोस्ट लिखी है। इन पोस्टों पर हमें महज 160 टिप्पणियां ही मिली हैं। इस ब्लाग को पाठक भी काफी कम मिले हैं। कुल 5017 पाठकों ने इस ब्लाग को देखा है। इस ब्लाग के 15 समर्थक हैं। हमने इस ब्लाग को यह सोचकर प्रारंभ किया था कि अपने राज्य की खेल गतिविधियों से समूचे संसार को अवगत करवा सके। यह काम तो हम नियमित करते रहेंगे फिर भले इस ब्लाग को ज्यादा पाठक न मिले।

बहरहाल हमें इस बात की खुशी है कि हमारे ब्लाग राजतंत्र ने काफी कम समय में इतना अच्छा काम किया है कि आज उसकी एक अलग पहचान है। हम इसके लिए अपने सभी ब्लागर मित्रों के तहे दिल से आभारी है और उम्मीद करते हैं कि हमें उनका प्यार और स्नेह इसी तरह से मिलता रहेगा। हमारी कोशिश होगी कि जब राजतंत्र का एक साल पूरा हो तो खेलगढ़ और राजतंत्र को मिलाकर हमारी पोस्ट का आंकड़ा 11 सौ तक पहुंच जाए।

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मंगलवार, जनवरी 26, 2010

दमदार कौन ?

आज छुट्टी का दिन है। घर में खाली बैठे-बैठे बोर हो रहे हैं तो ऐसे में हमें दो दोस्तों का एक किस्सा याद आ गया। इस किस्से को यहां बताकर हम जानना चाहते हैं कि इनमें वास्तव में दमदार कौन है।


बात दरअसल यह है कि दो दोस्त रहते हैं। एक दोस्त काफी पहले पीएससी की परीक्षा देते हैं। जब वे परीक्षा देते हैं तब उस समय परीक्षा में बमुश्किल 500 परीक्षार्थी शामिल होते हैं। ऐसे में उन महाशय का नंबर किसी भी तरह से पहले 100 में आ जाता है। इसके बाद दूसरे दोस्त की बारी आती है तब तक प्रतिस्पर्धा इतनी ज्यादा बढ़ गई होती है कि वे जब परीक्षा देने बैठते हैं तब करीब 20 हजार परीक्षार्थी मैदान में होते हैं। ऐसे में उन महाशय को पहले 50 में स्थान मिल जाता है। अब सोचने वाली बात यह है कि जो महाशय पहले परीक्षा देकर 500 के बीच 100 में शामिल होते हैं वे दमदार हैं या फिर दूसरे महाशय जो कि 20 हजार परीक्षार्थियों के बीच बैठकर पहले 50 में स्थान बनाने में सफल होते हैं। आप किसे दमदार मानते हैं जरूर बताएँ।

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देश के नामी ब्लागरों से लेंगे सब जादू की झप्पी-जब ब्लागरों की महफिल सजेगी अबकी


रायपुर की ब्लागर मीट में एक सबसे अहम फैसला यह भी लिया गया है कि रायपुर में बहुत जल्द एक राष्ट्रीय ब्लागर मीट करवाएंगे। इस मीट की योजना काफी लंबे समय से बन रही है, पर इसको अमलीजामा अब तक नहीं पहनाया जा सका है। लेकिन अब यह बात तय है कि बहुत जल्द मार्च-अप्रैल में देश के कई नामी ब्लागर छत्तीसगढ़ की घरा पर अपने कदम रखेंगे और छत्तीसगढ़ के ब्लागरों को इन ब्लागरों से जादू की झप्पी लेने का पूरा-पूरा मौका मिलेगा। वैसे हम एक बात बता दें कि अपने भाई उडऩ तश्तरी यानी समीर लाल जी के साथ भाई अजय कुमार झा ने भी मार्च-अप्रैल में छत्तीसगढ़ आने का वादा किया है, ऐसे में हमने सुझाव दिया है कि इसी समय यह ब्लागर मीट हो तो सबसे बेहतर रहेगा, इस पर सहमति भी बन गई है। इस ब्लागर मीट के लिए बहुत जल्द फिर से छत्तीसगढ़ के ब्लागर बैठेंगे और इसकी रूपरेखा तैयार की जाएगी।

रायपुर में जब 24 जनवरी को ब्लागरों का जमावड़ा लगा तो किसी ने नहीं सोचा था, कि इतने ज्यादा ब्लागर आ जाएंगे। लेकिन जितनी संख्या में ब्लागर आए उससे यह बात साबित हो गई है कि वास्तव में ब्लाग जगत में अपना वह छत्तीसगढ़ कहां है जिसको हमेशा पिछड़ा हुआ और नक्सली समस्या से घिरा हुआ कहा जाता है। किस राज्य में समास्याएं नहीं होती हैं, लेकिन किसी राज्य को इस तरह से पिछड़ कहना पिछड़ेपन का सबूत है। हमारी नजर में तो छत्तीसगढ़ राज्य कभी पिछड़ा राज्य नहीं रहा है, इस राज्य ने कई मामलों में देश में मिसाल कायम की है।

बहरहाल ये बातें बाद की, फिलहाल हम चर्चा करें कि रायपुर ब्लागर मीट में जो फैसले किए गए उन फैसलों में एक सबसे बड़ा फैसला मार्च-अप्रैल में एक राष्ट्रीय ब्लागर मीट का है। इस मीट पर सबने सहमति दे दी है। इस मीट के बारे में उसी समय से योजना बन रही थी जब छत्तीसगढ़ की घरा पर सबसे पहले दिनेशराय द्विवेदी जी के कदम पड़े थे। जब दिनेश जी छत्तीसगढ़ आए थे, उस समय हम ब्लाग जगत से नहीं जुड़े थे, उनसे न मिल पाने का हमें अब तक अफसोस है, लेकिन हमने उनसे फोन पर जरूर बातें की हैं, उनसे भी रूबरू होने की तमन्ना है और यह तमन्ना जरूर राष्ट्रीय ब्लाग मीट में पूरी होगी ऐसा हम कह सकते हैं। दिनेश जी जरूर इस मीट में आएंगे।

दिनेश जी के बाद भाई रवि रतलामी का यहां आना हुआ। रवि जी से हमारे साथ छत्तीसगढ़ के सारे ब्लागरों की मुलाकात बहुत अच्छी और यादगार रही। इसके बाद आया नंबर भाई अलबेला खत्री का। वे तो वैसे भी मास्टर पीस हंै, उनके साथ गुजारा वक्त कोई कैसे भूल सकता। अपने अलबेला जी नाम के अनुरुप अलबेले ही हैं। एक और ब्लागर के छत्तीसगढ़ आने की जानकारी हमें है, वे सिद्देश्वर जी हैं, लेकिन उनसे हमारी मुलाकात नहीं हो पाई थी। वे भिलाई आए थे, किसी कारणवश उनका रायपुर आना नहीं हो सका, और ऐसे आनन-फानन में उनका आना हुआ था कि अपने बीएस पावला जी हमें चाहकर भी सूचना नहीं दे सके थेष वरना हमने उनसे कह रखा था कि जैसे ही सिद्दे्श्वर जी आए हमें सूचित करना हम एक घंटे में भिलाई पहुंच जाएंगे।

खैर इन सभी ब्लागरों को छत्तीसगढ़ की घरा पर जो प्यार और अपनापन मिला है, हम नहीं समझते हैं वे इसको कभी भूल सकते हैं। हमारे छत्तीसगढ़ में ब्लागरों ही नहीं हर छत्तीसगढ़वासी के दिल में अपने देश के दूसरे राज्यों के ब्लागरों और हर रहवासी के लिए कितना प्यार, आदर और सम्मान है यह यहां आने वाला कोई भी इंसान बता सकता है। ऐसी छत्तीसगढ़ की घरा पर अब एक राष्ट्रीय ब्लागर मीट की योजना है तो यहां कौन नहीं आना चाहेगा।


यह कोई छोटी-मोटी योजना नहीं है, इसलिए इसकी रूपरेखा तैयार करने के लिए अगले माह छत्तीसगढ़ के ब्लागरों की एक बैठक होगी जिसमें तय किया जाएगा कि इस ब्लागर मीट का रूप कैसा हो। क्या इस मीट को खुला रखा जाए, या फिर केवल आमंत्रित ब्लागरों के लिए रखा जाए। इस पर सर्वसम्मति से फैसला किया जाएगा। लेकिन हम एक बात बता दें कि इस ब्लागर मीट में अपने भाई समीर लाल जी के साथ अजय कुमार झा जरूर शामिल होंगे क्योंकि इनका आना इस ब्लागर मीट से पहले से तय है। यह मीट हो या न हो अपने ये दोनों भाई तो छत्तीसगढ़ की घरा पर अपने कदम रखने जरूर आएंगे इसका वे वादा कर चुके हैं। ऐसे में इनके आने के बहाने ही एक राष्ट्रीय ब्लागर मीट की योजना बनाई जा रही है। इस ब्लागर मीट का रूप कैसे होगा इसके लिए आपको जरूर कुछ लंबा इंतजार करना होगा, लेकिन रायपुर की ब्लागर मीट में और क्या हुआ था, यह हम जरूर कल बताएंगे, तब तक के लिए जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़।


अंत में सभी ब्लागर मित्रों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....

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सोमवार, जनवरी 25, 2010

छत्तीसगढ़ के रखवालों की खड़ी हो गई है फौज-देंगे गलत लिखने वालों को जवाब का डोज

खबरदार... सावधान... होशियार .... अब छत्तीसगढ़ के खिलाफ कुछ भी उल-जुलूल लिखने वालों की खैर नहीं है। इंटरनेट पर लगातार छत्तीसगढ़ की छवि खराब करने से आहत छत्तीसगढ़ के ब्लागरों ने अपनी एक ऐसी फौज बना ली है जो छत्तीसगढ़ के खिलाफ गलत लिखने वालों को जवाब का डोज देगी। इस फौज के कलमकार सिपाहियों की एक बैठक रायपुर में कल देर रात चली। इसी बैठक में सबसे अहम फैसला यही किया गया कि अब छत्तीसगढ़ के खिलाफ गलत प्रचार करने वालों को नहीं छोड़ेंगे और छत्तीसगढ़ की वास्तविक छवि को सामने रखने अपनी कलम की ताकत दिखाने का काम सब मिलकर करेंगे। ब्लागरों की इस फौज के पहले चरण की बैठक में करीब 50 ब्लागरों से प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से शिरकत की।



24 जनवरी का दिन छत्तीसगढ़ के ब्लागरों के लिए एक ऐतिहासिक दिन साबित हुआ कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इस दिन रायपुर के प्रेस क्लब में एक बैठक रखी गई तो संभवत: किसी ब्लागरों को मालूम नहीं था कि यहां पर ब्लागरों की एक पूरी फौज ही जमा हो जाएगी और इस फौज के सिपाही एक ऐसा फैसला करने में सफल होंगे जिससे राज्य के विकास में वे भागीदार बन सके। भारत में रहने वाला हर इंसान यही सोचता है कि वह अपने राज्य और देश के विकास में किसी न किसी तरह से भागीदार बन सके, लेकिन बहुत कम ऐसे खुशनसीब होते हैं जिनको यह मौका मिलता है। पर इतना तय है कि जिनके हाथ में कलम होती है उनको कभी न कभी ऐसा मौका मिल ही जाता है।

बहरहाल हम बात करें ब्लागरों की बैठक की तो। यह बात तय है छत्तीसगढ़ में हुई इस बैठक पर पूरे देश की नजरें थीं कि इसमें क्या होने वाला है। तो जो लोग इस बैठक के बारे में जानने को बेताब रहे हैं उनकी जानकारी के लिए हम शुरुआती तौर पर यह बताना चाह रहे हैं कि इस बैठक में सबसे अहम फैसला यह किया गया है कि छत्तीसगढ़ की छवि इंटरनेट पर बैठकर खराब करने वालों को अब छोड़ा नहीं जाएगा। कोई कहीं भी बैठकर किसी भी धारण के तहत छत्तीसगढ़ के खिलाफ हकीकत जाने बिना लिखे जा रहा है। ऐसे में अब यह फैसला किया गया है कि कोई भी अगर छत्तीसगढ़ के खिलाफ कुछ भी गलत लिखता है तो उसका जवाब दिया जाएगा और छत्तीसगढ़ की सच्चाई को सामने रखने का काम हम ब्लागर करेंगे। इसके लिए एक साझा ब्लाग भी बनाने पर चर्चा की गई है। इस ब्लाग का स्वरूप कैसा होगा इसके बारे में आगे जानकारी दी जाएगी, हो सकता है यह ब्लाग न होकर एक वेब साइड हो। अब ऐसे बंदों को सावधान हो जाना चाहिए जो छत्तीसगढ़ के खिलाफ अनाप-सनाप लिखने में लगे हैं।

बैठक में आए ब्लागरों की बात की जाए तो इसमें काफी संख्या में ब्लागर शामिल हुए। इनमें नामी ब्लागरों से लेकर नए ब्लागर भी शामिल हैं। जो ब्लागर आएं उनमें प्रमुख हैं हमारे यानी राजकुमार ग्वालानी के अलावा अनिल पुसदकर, बीएस पाबला, संजीत त्रिपाठी, डॉ. महेश सिंहा, जीके अवधिया, ललित शर्मा, गगन शर्मा, पंकज अवधिया, अरविंद झा, अंकुर गुप्ता, राजकुमार सोनी, डॉ. सैबल अली फरिश्ता, विनोद डोंगरे, ऋबक शर्मा, सुधीर शर्मा, अभिषेक प्रसाद, अहफाज रसीद, भारत योगी, निर्मल साहू, कौशल तिवारी, श्याम कौरी, शंकर चन्द्राकार, विभाष कुमार झा, शैलेश नितिन त्रिवेद्वी, संजीत कुमार, सूर्यकांत गुप्ता, तोसी गुप्ता आदि। कई ब्लागरों ने न आने की जानकारी देते हुए फोन के माध्यम से बैठक में शामिल होने की कोशिश की।

फिलहाल इतना ही। इस ब्लागर बैठक में हुई चर्चाओं पर लगातार लिखने का सिलसिला जारी रहेगा, अभी बहुत सी बातें हैं बताने के लिए लेकिन प्रारंभिक तौर पर जो प्रमुख बात थी, उसे बताना जरूरी था। तो फिर मिलेंग कल एक और जानकारी के साथ।

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रविवार, जनवरी 24, 2010

कौन है बीबी नंबर वन?

पढ़ी-लिखी हो बीबी काम कुछ करती नहीं

सास-ससुर की बात क्या पति से भी डरती नहीं।।

सुबह दस बजे तक आराम से सोती रहती हैं

उठते साथ पति को बेड-टी का आर्डर देती हैं।।

फिर पति को हो चाहे दफ्तर के लिए देर

बनाने पड़ते हैं पत्नी के लिए तीतर-बटेर।।

शाम को जब श्रीमान दफ्तर से आते हैं

घर में जमी हुई किटी पार्टी पाते हैं।।

सबके लिए करना पड़ता है नाश्ता तैयार

कर्ज लेकर चाहे क्यों न होना पड़े कंगाल ।।

मगर फिर भी श्रीमती जी को समझ नहीं आती है

रोज नई-नई फरमाईशें पूरी करवाती हैं।।

जिस दिन कोई फरमाईश पूरी नहीं हो पाती

घर से साथ पति देव की भी है सामत आती।।

दर्पण, सोफे, कुर्सियां बहुत कुछ टूटते हैं

इतना ही नहीं पति देव भी बेलन से कुटते हैं।।

इन सबके बाद श्रीमती का सिर दुखने लगता है

फिर पति देव को उनका सर भी दबाना पड़ता है।।

पढ़ी-लिखी से शादी करने का यही अंजाम होता है

पति को बीबी का गुलाम बनना पड़ता है।।

इसलिए पढ़ी-लिखी से अनपढ़ बीबी अच्छी होती है

सास-ससुर को मां-बाप पति को परमेश्वर समझती है।।

घर की चार दीवारी को ही अपना स्वर्ग समझती है

कभी घर में कोई किटी पार्टी जैसे काम नहीं करती है।।

पति की सेवा को ही अपना धर्म समझती है

सास-ससुर का सम्मान अपना कर्तव्य समझती है।।

मुसीबत में अपने पति को हौसला भी देती हंै

गम को गले लगातर खुशियां सबको देती हैं।।

घर की आन की खातिर जान निछावर करती हैं

सबके दुखों को अपने आंचल में समेट लेती हैं।।

भले दुनिया इसे अनपढ़ और गंवार कहती है

मगर पढ़ी-लिखी से यह लाख अच्छी होती हैं।।

अब आप ही बताएं जनाब कौन सी

बीबी नंबर वन होती है।।


नोट: यह एक कविता है जो हमने 20 साल पुरानी डायरी के से ली है। इसकी रचना दो दशक पहले ही की गई थी।

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शनिवार, जनवरी 23, 2010

कल मिलेंगे दिल से दिल-सजेंगी रायपुर में ब्लागरों की महफिल

इंतजार की घडिय़ां अब समाप्त होने वाली हैं। कल प्रेस क्लब रायपुर में करीब तीन बजे छत्तीसगढ़ के करीब दो दर्जन से भी ज्यादा ब्लागरों की महफिल सजने वाली है। इस महफिल की सारी तैयारी इस बार पूरी है और इस बार इस पर किसी भी तरह से शंका के बादल नहीं छाए हैं।

छत्तीसगढ़ के ब्लागरों की एक महफिल सजाने की योजना करीब 10 दिनों से पहले बनी थी। पिछले रविवार को प्रेस क्लब में मजमा लगने वाला था, लेकिन अचानक शनिवार को रविवार का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। छत्तीसगढ़ के ब्लागरों के चहेते और आदरणीय भाई अनिल पुसदकर जी उस दिन प्रेस क्लब की बैठक के साथ कुछ और कार्यक्रमों में बहुत ज्यादा व्यस्त थे। ऐसे में उनका महफिल में शामिल होना मुश्किल था। उन्होंने जब अपनी यह व्यथा हमें बताई तो हमने ब्लागर मित्रों से चर्चा की। सभी का एक स्वर में यही मानना था कि अनिल जी के बिना बैठक कदापि नहीं। वैसे भी बहुमत का जमाना है। जब बहुमत यही रहा कि अनिल जी के बिना महफिल नहीं सजेगी, मतलब नहीं सजेगी। सो महफिल स्थगित कर दी गई। इस स्थगन की सूचना यूं तो सबको दे दी गई, पर बिलासपुर के एक ब्लागर मित्र भाई अरविंद कुमार झा को संभवत: यह सूचना नहीं मिल सकी थी और वे रायपुर आ गए थे।

बहरहाल इस बार तो भाई अनिल जी ने खुद भी यह जिम्मा लिया है कि उनको आने वाले सूचना दें साथ ही उन्होंने भाई डॉ. महेश सिंहा जी का भी मोबाइल नंबर अपने ब्लाग में दिया है कि आने वाले ब्लागर उनको सूचना दे दें। हम यहां एक बार फिर से अपने मोबाइन नंबर 98267-11852, 94255-11983, 9093180189 (राजकुमार ग्वालानी) के साथ भाई अनिल पुसदकर जी का नंबर 98271-38888, 94252-03182, और डॉ. महेश सिंहा जी का नंबर 98930-98332 दे रहे हैं। अपने छत्तीसगढ़ के ब्लागर मित्र इन नंबरों पर अपने आने की सूचना दे सकते हैं। वैसे ज्यादातर ब्लागर एक-दूसरे को जानते हैं और सबको सूचना भेजी जा रही है, लेकिन जिनके नंबर किसी के पास नहीं हैं, उन तक सूचना पहुंचाना संभव नहीं है। ऐसे में ऐसे ब्लागर मित्र इसी को सूचना समझे। वैसे भी यह एक पारिवारिक मिलन है इसमें सूचना मिलने न मिलने जैसे बातों का कोई मतलब नहीं है। अपने परिवार में अगर कोई कार्यक्रम हो और उसकी सूचना किसी कारणवश कहीं और से भी मिल जाए तो उस कार्यक्रम में जाना अपना फर्ज बनता है। आशा है कल की ब्लागर महफिल में कई नए मित्रों से मुलाकात होगी।

अंत में पेश है ये चंद लाइनें...

कल की मुलाकात का है सबको इंतजार

हर ब्लागर का दिल है बेकरार

सबके दिल में है असीम प्यार

तो महफिल में आओ और लूटा दो अपना प्यार

फिलहाल हम तो है बेकार

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शुक्रवार, जनवरी 22, 2010

हम तो 17 दिनों से बेकार हैं, क्या करें?

बात आज से ठीक 17 दिनों पहले की है, तब हमें मालूम नहीं था कि हम इस दिन अचानक बेकार हो जाएंगे। वैसे बेकार होने की शंका तो हमें पहले से थी, लेकिन हम इतनी जल्दी बेकार हो जाएंगे सोचा नहीं था। लेकिन क्या करते बहुत समय हो चुका था और अब उसे ज्यादा दिनों तक झेलना ठीक नहीं था, ऐसे में जैसे ही हमें एक खरीददार मिला हमने उसे उसके हाथों सौंपकर बेकार होने का फैसला कर लिया।

अब तो आप समझ ही गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। मित्रों हम बात कर रहे हैं अपनी कार की। हमारे पास करीब दो साल से एक पुरानी मारूति 800 थी। इस कार ने वैसे तो हमारा अच्छा साथ दिया, पर पैसे भी काफी खर्च करवाएं। एक दिन हमारे कार मिस्त्री ने कहा कि भईया अब इसको बेचे ही दें, नहीं तो नुकसान में रहेंगे। हमने उनसे पूछा कि कितने पैसे मिल जाएंगे। उन्होंने कहा 30 हजार तक मिल जाएं तो ठीक है, वैसे ज्यादा पैसे भी मिल सकते हैं।

हमने सोचा कि यार जब मिस्त्री साहब कह रहे हैं तो बेकार होना ही ठीक रहेगा। हमने सोचा था कि इस कार को बेचकर दूसरी ले लेंगे। लेकिन हमें क्या मालूम था कि हमारे बेकार होने के 17 दिनों बाद भी हमें कार नसीब नहीं होगी। हमारी कार को एक मिस्त्री ने एक सज्जन को दिखाया तो वह उसे पसंद आ गई। सौदा हुआ 37 हजार में। एक हजार रुपए कार बिकवाने वाले मिस्त्री को देने थे। कार लेने वाले उन वकील साहब का बजट इतना नहीं था, वह पहले हमें 25 हजार थमाकर बाकी बाद में देने की बात कह रहे थे, हमने उनसे कहा कि मित्र आपको कार पसंद है तो हम कुछ दिनों तक रूक जाएंगे, जब पैसों का इंतजाम हो तो ले लेना। लेकिन उन सज्जन को भी जल्दी थी, वे दूसरे ही दिन सुबह-सुबह घर आ घमके। उन्होंने कार लेने के लिए एंग्रीमेंट भी करवा लिया था। उन्होंने हमसे आग्रह किया कि भाई साहब दो हजार रुपए कम हैं, हम आपको जल्द देंगे। उनकी कार के प्रति लगन देखकर हमने उन अंजान आदमी पर भरोसा करते हुए उनको कार 35 हजार रुपए लेकर दे दी। उन पैसों में से एक हजार रुपए कार बिकवाने वाले मिस्त्री को दे दिए।

उन सज्जन जिनका हम पहले नाम भी नहीं जानते थे, उन्होंने अपने वादे के मुताबिक एक सप्ताह के अंदर ही हमारे बचे दो हजार रुपए लाकर दे दिए। और यह भी कहा कि आपने वास्तव में कार अच्छी दी है। हमने उस कार को ठीक रखने के लिए 25 हजार रुपए से ज्यादा का खर्च किया था। कार में कोई खराबी तो थी नहीं। लेकिन हम चूंकि कई बार लंबे सफर पर चले जाते थे, और वह पुरानी होने के कारण ज्यादा लंबे सफर के लायक नहीं थी, यही वजह रही कि मिस्त्री के कहने पर हमने कार बेच दी। हमने कार लेने वाले सज्जन को बता भी दिया था कि ज्यादा लंबे सफर में जाएंगे तो लंबे खर्च के चपेटे में भी पड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि उनको शहर में ही कार चलानी है।

मिस्त्री के कहने पर हम बेकार तो हो गए हैं, पर 17 दिनों से तलाश करने के बाद भी हमें कोई कार नहीं मिल रही है। हमें जो कार चाहिए उसका बजट एक लाख पचास हजार है। अब इतने बजट में अच्छी कार चार-पांच साल पुरानी मिल जाएगी, ऐसा हमारे मित्र और मिस्त्री कहते हैं, पर अब तक कोई मिली नहीं है। दो बार पांच साल पुरानी वैगनआर हाथ आते-आते रह गई। कई मित्र कहते हैं कि यार नई कार ले लो। आज कल तो बैंक से लोन मिल जाता है, पर हम किसी लोन-वोन के चक्कर में नहीं रहते हैं। ऐसे में हमने फैसला यही किया है कि जितने पैसे हमारे पास हैं, उतने बजट में ही पुरानी कार लेंगे और अपने बेकार होने का संकट दूर करेंगे। है न ठीक बात मित्रों।

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गुरुवार, जनवरी 21, 2010

क्या कोई लाकेट बीमारी भगा सकता है?

हमारे एक मित्र ने कल अचानक हमसे पूछा कि
क्या तुम्हें दिल की कोई बीमारी है?
हमने कहां- नहीं तो
उसने फिर पूछा- क्या तुम्हें शुगर की बीमारी है?
हमने फिर से कहा कि नहीं तो
उसने फिर पूछा कि और कोई बड़ी बीमारी वाली परेशानी है?
हमने फिर से कहा- नहीं तो
फिर हमने कहा कि अबे लेकिन तू ये सब पूछ क्यों रहा है, क्या अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़कर बीमारी भगाने के लिए झाड़-फूंक तो नहीं करने लगा है। हमें शक था कि उसको किसी न किसी ने ऐसी टोपी पहना दी है जिसके कारण वह ऐसा सब पूछ रहा है। हमने उससे कहा अबे सीधे-सीधे बता न क्या बात है।

अब यह अपनी बात पर आया और उसने बताया कि उसने एक ऐसा पैंडल यानी लाकेट खरीदा है जिसको पहनने से चार दिनों में ही बीमारी समाप्त हो जाती है। उस लाकेट की कीमत सुनकर तो हमारे होश उड़ गए। वह लाकेट किसी बंदे ने हमारे उस भोले-भाले दोस्त को साढ़े तीन हजार में थमाया था। और हमारे वो भोले सज्जन एक नहीं तीन-तीन लाकेट लेकर आए थे, एक अपने लिए, एक अपनी पत्नी और बच्चों के लिए।

हमने उनको समझाया कि अबे तू कब सुधारेगा और कब तक भोला बने रहेगा। तेरे इसी भोलेपन का लोग फायदा उठाते हैं। अगर किसी लाकेट से कोई बीमारी यूं ही दूर हो जाती तो फिर दुनिया में डॉक्टरों की जरूरत ही नहीं होती और न ही कोई बीमारी होती।

हमारे मित्र जो पैंडल लेकर आए थे, वह भारतीय न होकर जापानी है। इसके बारे में वे तरह-तरह की बातें बता रहे थे। एक काले रंग के धागे में काले से कलर के इस पैडल में उन्होंने चुम्बक होने की भी बात बताई। उन्होंने तो इसे धारण कर लिया है और साथ ही अपनी पत्नी को भी पहना दिया है। अब साढ़े दस हजार का चुना लगा है तो पैंडल तो पहनाना ही है।

सोचने वाली बात है कि क्यों कर अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग भी ऐसी अंध विश्वासी बातों पर यकीन करके हजारों रुपए गंवा देते हैं। क्या कभी ऐसा हो सकता है कि किस लाकेट से कोई बीमारी ठीक हो जाए। क्या आप लोग किसी ऐसे लाकेट के बारे में जानते हैं। वैसे टीवी पर भी कई चैनलों में इस तरह के बकवास विज्ञापन आते हैं जिसके झांसे में लोग फंस ही जाते हैं। इन विज्ञापनों में फिल्मी सितारों के साथ नामी लोगों को दिखाया जाता है। अब कोई भी हमारे मित्र जैसा भोला-भाला इंसान तो ऐसे नामी लोगों को देखकर झांसे में आ ही जाएगा।

ब्लाग बिरादरी के मित्र इस बारे में क्या सोचते हैं, जरूर बताएं।

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बुधवार, जनवरी 20, 2010

आ गई बंसत ऋतु की बहार



आ गई बंसत ऋतु की बहार
पड़ेगी अब रंगों की फुहार।।


आएगा मस्ती का एक त्यौहार
दिलों से बरसेगा होली के दिन प्यार।।


होली का तो सब करते हैं इंतजार
रंगों से खेलने सब रहते हैं बेकरार ।।


क्या आपको है इस बात से इंकार
तो फिर कैसे जीते हैं आप यार ।।


थोड़ा सा करके देखों तो प्यार
बदल जाएगा तुम्हारा भी संसार ।।


तो चले खोजने कोई दिलदार
जो करे सके उम्र भर प्यार ।।


गर मिल जाए कोई ऐसा दिलदार
तो न छोडऩा उम्र को उसको यार ।।


नोट: बंसत ऋतु की बधाई देने के लिए जब अभी सुबह-सुबह हमने दो लाईनें लिखनी चाही, तो यह पूरी की पूरी कविता ही बन गई, तो पेश है यह कविता। कई सालों बाद फिर से कविता लिखने की तरफ लौटे हैं। सभी ब्लागर मित्रों और पाठकों को बंसत ऋतु की बधाई।

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चलेगा उम्र भर प्यार का सिलसिला...



तुमसे जुदा होने की तमन्ना तो नहीं
पर तुमसे जुदा होना पड़ रहा है।।


याद रखना अपने प्यार को सदा
हमें तो अब दूर जाना पड़ रहा है।।


मगर ये दूरियां कुछ दिनों की होगी
एक दिन तुम हमारी बाहों में होगी।।


तुम्हें दूल्हन बनाकर लाएंगे हम
सारी दुनिया को अपना प्यार दिखाएंगे हम।।

फिर आएगी वो हसीन रात
कहते हैं जिसे सुहागरात।।


रहेगा न फिर हमारे बीच फासला
चलेगा उम्र भर प्यार का सिलसिला।।


(नोट: यह कविता हमारी 20 साल पुरानी डायरी की है)

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मंगलवार, जनवरी 19, 2010

हॉकी खेलने किराना दुकान में काम करते हैं राजेश



भारत के अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाडिय़ों को किस तरह से अपने हक के लिए हॉकी इंडिया से लडऩा पड़ रहा है, यह बात अब जग जाहिर हो गई है। एक तरफ अपने अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाडिय़ों की हालत बहुत ज्यादा खराब है, तो दूसरी तरफ देश के अन्य राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ के हॉकी खिलाडिय़ों की हालत भी बहुत दयनीय है। हॉकी खिलाडिय़ों को कभी खेलने के लिए उतने पैसे नहीं मिल पाते हैं, जितने क्रिकेट में अंडर १९ साल की टीम के खिलाडिय़ों को मिलते हैं। अपने प्रदेश के खिलाडिय़ों की हालत कितनी खराब है इसका एक उदारहरण है राष्ट्रीय खिलाड़ी राजेश बाघ। अभी स्कूल स्तर पर ही इस खिलाड़ी को अपने खेल को जिंदा रखने के लिए किराने की दुकान में काम करना पड़ रहा है। राजेश के भाई खगेश्वर बाघ भी जहां हॉकी खिलाड़ी हैं, वहीं उनके पिता शशि बाघ अपने बेटों को मजदूरी करके इस आश में हॉकी खिला रहे हैं कि शायद उनके बेटों को अच्छी नौकरी मिल जाए।

देश के लिए विश्व कप खेलने वाली भारतीय टीम के हॉकी खिलाडिय़ों को जिस तरह से अपने वेतन को लेकर प्रशिक्षण शिविर का बहिष्कार करना पड़ा, उसने एक बार फिर से यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि अपने देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी के खिलाडिय़ों की अपने देश में कितनी दुर्गति हो रही है। यह बात काफी पहले से जग जाहिर है कि अपने देश के लिए ओलंपिक और विश्व कप में खेलने वाले हॉकी खिलाडिय़ों को बदहाली से ही गुजरना पड़ा है। एक तरफ जहां देश का नाम रौशन करने वालों की स्थिति बहुत ज्यादा खराब है तो दूसरी तरफ उन खिलाडिय़ों की स्थिति और ज्यादा खराब है जो देश की हॉकी टीम का भविष्य है। आज ज्यादातर राज्यों में खिलाड़ी हॉकी खेलना नहीं चाह रहे हैं लेकिन जिन लोगों से भी हॉकी स्टिक को थाम है, उनको अपने खेल को जिंदा रखने के लिए खेल के साथ काम करना पड़ता है। अपने राज्य छत्तीसगढ़ में एक गरीब परिवार के दो खिलाड़ी हॉकी स्टिक को थामे हुए इस उम्मीद में हैं कि कभी उनको भारतीय टीम से खेलने का मौका मिलेगा। इसी के साथ ये खिलाड़ी इस उम्मीद में भी है कि वे खेल के माध्यम से नौकरी प्राप्त कर अपने पिता का
सपना सच करने में सफल होंगे।

राजेश बाघ यह जूनियर खिलाड़ी हैं और उनके खाते में दो बार राष्ट्रीय स्कूली स्पर्धा में खेलने का रिकॉर्ड है। राजेश का खेल कमाल का है। उनकी फिटनेस इतनी अच्छी है कि उनके कोच नजीर अहमद भी दंग रह जाते हैं। राजेश पूछने पर बताते हैं कि वे जब नेताजी स्टेडियम में अपने भाई खगेश्वर के साथ बच्चों को हॉकी खेलते देखते थे तो उनका भी मन खेलने का होता था, लेकिन परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे खेल सकते। ऐसे में उन्होंने फैसला किया कि वे कहीं काम कर लेंगे लेकिन खेलेंगे जरूर। उन्होंने अपनी इस मंशा से जब अपने पिता शशि बाघ को अवगत कराया तो वे भी सहमत हो गए। वैसे राजेश के बड़े भाई खगेश्वर को राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का जो मौका मिला था उस मौके ने भी राजेश के लिए प्रेरणा का काम किया।


राजेश पूछने पर बताते हैं कि वे बैजनाथपारा के एक किराना दुकान में काम करते हैं। वहां से उनको रोज २५ रुपए मिलते हैं। इन पैसों को न सिर्फ वे अपने खेल पर खर्च करते हैं, बल्कि इन पैसों से अपने पिता की मदद भी करते हैं। वे बताते हैं कि रोज सुबह ८ बजे दुकान जाते हैं और ११ बजे वहां से आने के बाद स्कूल जाते हैं। स्कूल से वापस आकर वे हॉकी का नेताजी स्टेडियम में शाम४ बजे से ६ बजे तक अभ्यास करते हैं फिर सात बजे दुकान चले जाते हैं। वहां से वे रात को ९ बजे आते हैं। पूछने पर वे बताते हैं कि दुकान के मालिक उनको न कभी पढऩे से मना करते हैं और न खेलने से। वे कहते हैं कि उनको लगता है कि वे अपनी ही दुकान में काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अभी इसी माह राजनांदगांव में खेली गई राष्ट्रीय स्कूली हॉकी में स्वर्ण पदक जीतने वाली छत्तीसगढ़ की टीम के वे भी सदस्य थे।

राजेश कहते हैं कि उनका सपना है कि वे भारतीय टीम से खेलें और प्रदेश सरकार उनके खेल का देखकर उनको कोई नौकरी दे दे। वे भारतीय खिलाडिय़ों की हालत से अंजान हैं। उनको जब बताया गया तो वे कहते हैं कि देश के लिए खेलने वाले खिलाडिय़ों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए।

खगेश्वर भी सच करना चाहते हैं पिता का सपना

राजेश के बड़े भाई खगेश्वर बाघ ने ही सबसे पहले २००३ में हॉकी स्टिक से नाता जोड़ा था। वे बताते हैं कि उनको स्टेडियम में बच्चों को हॉकी खेलते देखकर खेलने की इच्छा हुई तो उन्होंने पिता से कहा। उनके पिता ने उनको खेलने की इजाजत दे दी। उनके पिता उनके और छोटे भाई के साथ नेताजी स्टेडियम में ही रहते हैं। वैसे तो उनका घर आकाशवाणी के पास है, वे रहते स्टेडिमय में ही है। उनके पिता पंडाल लगाने का काम करते हैं। खगेश्वर बताते हैं कि उन्होंने २००४ में छत्तीसगढ़ की टीम से केडी सिंह बाबू हॉकी स्पर्धा खेली है। इस स्पर्धा में छत्तीसगढ़ की टीम उपविजेता रही थी। छत्तीसगढ़ की टीम को सफलता इसलिए मिली थी क्योंकि इस टीम में कोई खिलाड़ी ओवरएज नहीं था। इसके बाद वह इसी साल लुधियाना में स्कूल नेशनल में खेले। २००५ में उनको जूनियर ओपन नेशनल में खेलने का भी मौका मिला। इस खिलाड़ी ने खेल ने तो नाता नहीं तोड़ा है, पर आर्थिक तंगी के कारण उनकी पढ़ाई जरूर छूट गई है। वे कहते हैं कि मैं चाहता हूं कि मेरा भाई पढ़े और खूब खेले। खगेश्वर पूछने पर कहते हैं कि वे चाहते हैं कि वे भारतीय टीम से खेलें और एक दिन उनको खेल के दम पर नौकरी मिल जाए ताकि अपने पिता का सपना सच कर सके।


बेटे देश का नाम रौशन करें यही तमन्ना है

राजेश और खगेश्वर बाघ के पिता शशि बाघ कहते हैं कि वे चाहते हैं कि उनके दोनों बेटे हॉकी में देश का नाम रौशन करें। वे पूछने पर बताते हैं कि उनकी पत्नी का देहांत तो तभी हो गया था जब बेटे काफी छोटे थे। वे कहते हैं कि उन्होंने बेटों को पिता के साथ मां बनकर भी पाला है ऐसे में मैं नहीं चाहता कि उनकी कोई इच्छा अधूरी रहे। बड़े बेटे का हॉकी से लगाव देखकर मैंने उसे खेलने के लिए कहा। इसके बाद छोटे बेटे ने भी हॉकी स्टिक थामी तो मैंने उसे मना नहीं किया।

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सोमवार, जनवरी 18, 2010

एक ब्लागर मित्र आ ही धमके रायपुर

रविवार का ब्लागर मिलन स्थगित होने की वजह से हमने सोचा दूसरा काम कर लिया जाए। ऐसे में हम बाहर चले गए। अचानक संजीव तिवारी जी का फोन आया कि राजकुमार भाई कहां हैं?

हमने कहा कि हम तो बाहर हैं, क्या हो गया?

उधर से संजीव जी ने बताया कि भईया बिलासपुर के एक ब्लागर मित्र अरविंद कुमार झा जी तो रायपुर प्रेस क्लब पहुंच गए हैं, उनको ब्लागर मिलन के स्थगित होने की सूचना नहीं मिल पाई थी। ब्लागरों को सूचना देने का जिम्मा अपने ललित शर्मा जी ने खुद होकर लिया था। वैसे हम भी कभी झा जी से नहीं मिले थे, हमारे पास उनका नंबर भी नहीं था।

हमने झा जी को सूचना कैसे नहीं मिल पाई, यह जानने जब शर्मा जी को फोन लगाया तो उन्होंने बताया कि सूचना तो सभी को एसएमएस के माध्यम से दे दी गई थी। उनका एसएमएस हमें भी मिला था।


उन्होंने कहा कि आपके साथ डॉ. महेश सिन्हा ने भी ब्लागर मिलन के स्थगन पर पोस्ट लगा दी है। ऐसे में कोई गलतफहमी तो नहीं होनी चाहिए थी।

लेकिन गलतफहमी तो हो गई थी। अभी हम ललित शर्मा से बात करके हटे ही थे कि अरविंद कुमार झा जी का फोन आ गया। उनको हमारा नंबर ललित शर्मा जी से मिला था। उन्होंने बताया कि वे रायपुर प्रेस क्लब के बाहर खड़े हैं। हमें बहुत अफसोस हुआ कि हम वहां तक नहीं पहुंच सकते थे। बहरहाल उनसे चर्चा हुई तो उन्होंने कहा कि चलिए कोई बात नहीं हो जाती है भूल-चूक । उन्होंने कहा कि चलिए इस रविवार न सही अगले रविवार मिलते हैं, सभी से मेल मुलाकात हो जाएगी। झा जी का रायपुर आना सार्थक आना नहीं रहा इसका हमें हमेशा अफसोस रहेगा। काश हम रायपुर में होते तो कम से कम हम ही उनसे मिल लेते।

अब अपने झा जी को सूचना नहीं मिल पाई इसके लिए अपना एसएमएस का वह सूचना तंत्र जिम्मेदार है जिसके भरोसे हम लोग रहते हैं। हमने किसी को एसएमएस कर दिया और सोचते हैं कि उनको सूचना मिल गई होगी। खैर यह कोई बहस का मुद्दा नहीं है। हो जाता है।

चलते-चलते अपने संजीत त्रिपाठी जी की भी नाराजगी का उल्लेख करते चले। उन्होंने भी कल हमारा फोन खटखटाया और कहा कि भाई साहब ब्लागर मिलन के स्थगन की सूचना तो दे देते, मैंने अपने अखबार के संपादक के कार्यक्रम को ब्लागर मिलन के कारण छोड़ दिया। संजीत जी ने यह भी कहा कि हम रायपुर में रहते हैं और हमें यहां होने वाले कार्यक्रम की सूचना भिलाई से मिलती है।

खैर जो गलतियां इस बार हुई हैं, अगली बार नहीं होंगी, इसकी उम्मीद करते हैं। और एक बात यह भी कि हम ब्लागर सभी-सभी भाई-भाई हैं हमारे बीच गिले -शिकवे तो हो सकते हैं, पर नाराजगी जैसी बात नहीं होनी चाहिए। गिले-शिकवे तो दूर हो जाते हैं, पर कई बार नाराजगी भारी पड़ जाती है। ऐसे में हमारा सभी ब्लागर मित्रों से आग्रह है कि वे नाराजगी नाम के शब्द को अपने जीवन में आने ही न दें और उसे बाहर का रास्ता दिखाते हुए पहले ही बता दें कि उनके दिल में ऐसे किसी शब्द के लिए नो एंट्री ही है।

सभी गिले-शिकवे हम भूल जाए और इंतजार करें अब अगले रविवार का जिस दिन कम से कम एक दर्जन से भी ज्यादा ब्लागरों के मिलने की आश है।

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रविवार, जनवरी 17, 2010

एक साल में एक हजार पोस्ट किसके खाते में है

अब जबकि हमारे ब्लाग राजतंत्र और खेलगढ़ को मिलाकर हमारी एक हजार पोस्ट का आंकड़ा पूरा होने वाला है, इसी के साथ ब्लाग जगत में हमें कदम रखे अगले माह एक साल हो जाएगा, तो हमारे मन में एक विचार आया कि क्यों न जाना जाए अपने ब्लागर मित्रों में किनके खाते में एक साल में एक हजार पोस्ट लिखने का रिकॉर्ड है।

अगर आप जानते हों कि और किसी ने भी ऐसा रिकॉर्ड कायम किया है तो जरूर बताएं।

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शनिवार, जनवरी 16, 2010

कल का ब्लागर मिलन टल गया यार- अब करना पड़ेगा अगले रविवार का इंतजार

रविवार यानी कल रायपुर के प्रेस क्लब में होने वाले ब्लागर मिलन के लिए सभी का दिल बेताब था कि अचानक शनिवार यानी आज करीब दो बजे कल के ब्लागर मिलन के स्थगित होने की सूचना आ गई। हमारे कुछ खास ब्लागर मित्र कल बहुत ज्यादा कार्यक्रमों में व्यस्त हैं, ऐसे में कल के स्थान पर अब अगले रविवार यानी 24 जनवरी को प्रेस क्लब में करीब एक बजे मिलने का वादा किया गया है। अगर कोई विपदा नहीं आई तो अगले रविवार जरूर कुछ नए ब्लागर मित्रों के दीदार हो जाएंगे। हमें उम्मीद है कि एक तरफ जहां नए ब्लागर मित्रों को मिलन का इंजतार है, वहीं हम लोगों को भी नए मित्रों से मिलने की बेताबी है। लेकिन इसका क्या किया जाए कि आपत स्थिति में कल का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा है। हमारे जिन भी नए-पुराने ब्लागर मित्रों को कार्यक्रम के स्थगित होने से परेशानी हुई है उसके लिए हमें खेद है। अगले रविवार जरूर मिलेंगे इतना वादा कर सकते हैं। जिन ब्लागर मित्रों को सूचना नहीं मिल पाई है उनके लिए यह पोस्ट लगा रहे हैं, वैसे हमने भिलाई और वहां के आस-पास के ब्लागरों को बताने के लिए बीएस पाबला जी को रायपुर तथा यहां के आस-पास के ब्लागरों को सूचना देने के लिए ललित शर्मा जी से कह दिया है। हमारे पास महेश सिन्हा जी का नंबर नहीं है, अन्यथा आपसे भी हम जरूर फोन पर बात करते। सिन्हा जी इसी को सूचना समझे।

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ब्लागरों में बेताबी बढ़ी-आने वाली है मिलन की घड़ी

अपने छत्तीसगढ़ के ब्लागरों में रविवार के इंतजार में बेताबी बढ़ गई है। इस दिन हम लोग रायपुर में मिलने वाले हैं। अब देखने वाली बात यही होगी कि इस दिन कौन-कौन से ब्लागर आते हैं। इधर अपने ब्लागर भाई महेश सिंहा जी ने अपने ब्लाग में एक जानकारी दी है कि उनकी रायपुर में तीन नए ब्लागरों से मुलाकात हुई है, ये ब्लागर भी संभवत: रविवार को ब्लागर मिलन में शामिल होंगे। वैसे कम से कम हमारी तो अब तक महेश सिंहा जी से भी रूबरू मुलाकात नहीं हो पाई है। रविवार को दूसरे सत्र में यानी 12 बजे के बाद मिलन का कार्यक्रम है। एक बजे सभी ब्लागर मित्र प्रेस क्लब रायपुर में एकत्रित होंगे और वहीं वह एक मिलन समारोह होगा। ऐसा लगता है कि इस बार भी भिलाई में हुई ब्लागर चिंतन बैठक की तरह ही रायपुर की बैठक में भी कुछ नए मित्रों से रूबरू होने का मौका मिलेगा।

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शुक्रवार, जनवरी 15, 2010

सोनी जी को लगा दिया ब्लाग रोग

हम जब खुद करीब 11 माह से ब्लाग रोग से पीडि़त हैं तो ऐसे में हम सोचते हैं कि हमारे सारे मित्रों को भी इस रोग का शिकार बनाया जाए। ऐसे में हम मौका खोजते रहते हैं और जैसे ही मौका मिलता है हम किसी न किसी को ब्लाग बुखार की चपेट में लाने के लिए चौका मार ही देते हैं। इस बार हमारे लपेटे में आए हैं, हमारे साथ दैनिक हरिभूमि रायपुर में काम करने वाले पत्रकार मित्र राजकुमार सोनी। सोनी जी को भी अब ब्लाग रोग लग गया है और वे भी ब्लाग लिखने लगे हैं, यही नहीं वे अपने ब्लाग का प्रचार भी मित्रों के बीच करते हैं।

अपने छत्तीसगढ़ में ब्लाग लिखने का क्रेज बढ़ते ही जा रहा है। हमने भी कई मित्रों को इस रोग से ग्रसित करने का पुन्य काम किया है। इस बार हमने एक और मित्र सहकर्मी पत्रकार भाई राजकुमार सोनी को भी ब्लागर बनाने का काम कर दिया है। हमारे इस पुन्य काम में हमारा सबसे बड़ा सहयोग करने का काम भाई संजीव तिवारी ने किया है। सोनी जी अच्छा लिखते हैं। हमने उनसे कई बार कहा कि ब्लाग बना लें और लिखे। वैसे उनके हरिभूमि में प्रकाशित लेखों को कुछ ब्लागरों ने अपने ब्लाग में स्थान दिया था। लेकिन अपना ब्लाग लिखने का मजा ही अलग होता है। लगता है कि हमारी बात
सोनी जी
को जम गई और उन्होंने ब्लागर बनने की ठान ली। लेकिन हमें मालूम नहीं था कि उन पर इतनी जल्दी असर हो जाएगा। हमारी उनसे बात हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था कि एक दिन अचानक यह बात सामने आई ही अपने सोनी जी ने भी ब्लाग बिरादरी में कदम रखने का
बिगुल फूंक दिया है। संजीव तिवारी ने हमारी एक पोस्ट में जब बिगुल का लिंक दिया तो हमें मालूम नहीं था कि यह ब्लाग सोनी जी का है। हमने देखा तो पाया कि अपने सोनी जी भी अपने ब्लाग रोग से ग्रसित हो गए हैं। हमने उनको पहले तो ब्लाग में फिर प्रेस में बधाई दी। सोनी जी का ब्लाग बनाने का काम अपने संजीव तिवारी जी ने किया है। वैसे अपने संजू बाबा प्रदेश के हर ब्लागर की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उनकी मदद से कई लोग ब्लाग रोग से ग्रस्त हैं। उन्होंने हिन्दी ब्लागिंग के लिए जो पुन्य काम किया है उसके लिए उनको साधुवाद है।

इधर कुछ ही दिनों में हालत ये हैं कि अपने सोनी जी पर ब्लाग का नशा चढऩे लगा है। वे अपने मित्रों को बताते हैं कि उनका भी ब्लाग है और उसे जरूर देखें। चलिए हमारे छत्तीसगढ़ के ब्लागरों में एक और साथी का इजाफा हो गया है। अब उम्मीद करते हैं कि सोनी जी भी अपने मित्रों को ब्लाग रोग की चपेट में लाने के लिए अपने पासों का प्रयोग जरूर करेंगे।

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गुरुवार, जनवरी 14, 2010

हॉकी इंडिया की रमन सिंह भी मदद करें

हॉकी से करीब चार दशक से जुड़े प्रदेश के पूर्व हॉकी खिलाड़ी और प्रशिक्षक मुश्ताक अली प्रधान भी हॉकी इंडिया की दुर्गति पर खफा हैं। उनके हाथ में आज प्रदेश का संघ होता और संघ के पास फंड होता तो सबसे पहला काम वे हॉकी इंडिया की मदद करने का करते। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह से हॉकी इंडिया की मदद करने की पहल की है, उस पहल से खुश मुश्ताक का मानना है कि अपने राज्य के मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह को भी ऐसी पहल करनी चाहिए। प्रस्तुत है उनसे हॉकी के विभिन्न मुद्दों पर की गई बातचीत के अंश।

० भारत में हॉकी की दुर्गति के लिए आप किसे दोषी मानते हैं?

०० हॉकी की आज तो गत बनी है उसके लिए सबसे बड़ी दोषी केन्द्र सरकार है। केन्द्र सरकार के कारण ही पहले हॉकी फेडरेशन को भंग किया गया, इसके बाद जब पांच सदस्यों जिसमें अशोक ध्यानचंद, असलम शेर खान, अजीत पाल सिंह, धनराज पिल्ले और असलम खान थे, इसकी तदर्थ समिति बनाई गई थी तो हॉकी रफ्तार से ऊंचाई की तरफ जाने लगी थी, लेकिन अचानक भारतीय ओलंपिक संघ के दबाव में इस समिति को भंग कर दिया और एडॉक बॉडी बनाई गई। एडॉक बॉडी बनाने के बाद सभी राज्यों में भी राज्य की एडॉक बॉडी बन गई है तो इन एडॉक बॉडी के अध्यक्षों को बुलकर चुनाव के माध्यम से हॉकी इंडिया का गठन कर लेना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।

० हॉकी खिलाडिय़ों और हॉकी इंडिया के बीच विवाद का कारण क्या है?

०० भारत में अगले माह विश्व कप होना है और लगता है कि कोई इस साजिश में है कि भारत में विश्व कप खटाई में पड़ जाए। इसीलिए खिलाडिय़ों के प्रशिक्षक शिविर में कोई मदद नहीं की जा रही है। विश्व कप की तैयारी के लिए लगे शिविर में ज्यादा पैसे खर्च नहीं होने हैं। बमुश्किल १० लाख का खर्च होना है। इतना खर्च तो केन्द्र सरकार ही कर सकती है। न जाने क्यों विवाद को तूल दिया जा रहा है। वैसे भी हॉकी खिलाड़ी शुरू से उपेक्षित रहे हैं। हॉकी खिलाडिय़ों को पैसे तो कभी नसीब होते नहीं है। अगर आज मेरे हाथों में प्रदेश का संघ होता और इसमें फंड होता तो सारा फंड मैं हॉकी खिलाडिय़ों को दे देता।

० मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पहल के बारे में क्या कहेंगे?

०० शिवराज सिंह की पहल देश के लिए मिसाल है। यह पहल ठीक वैसी ही पहल है जैसी पहल १९७४ में तब पंजाब ने की थी जब १९७५ के विश्व कप खेलने के लिए भारतीय टीम को जाना था। इस बार भी विश्व कप से पहले विवाद हुआ है तो इस बार मप्र की सरकार सामने आई है। १९७५ में भारतीय टीम ने विश्व कप जीता था। इस बार मप्र सरकार की मदद से अगर भारतीय टीम कमाल करती है तो मप्र सरकार का नाम हो जाएगा। मेरा ऐसा मानना है कि अपने राज्य के मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह को भी ऐसी पहल करनी चाहिए।

० इस सारे मामले में केन्द्र सरकार को क्या करना चाहिए?

०० केन्द्र सरकार को वह काम करना था जो काम मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है। हॉकी टीम के शिविर में कोई करोड़ों तो खर्च होने नहीं हंै, केन्द्र सरकार के लिए क्या मुश्किल है थोड़ा सा बजट देना।

० इस मामले में पूर्व खिलाड़ी और ओलंपियन कोई मदद कर सकते हैं?

०० यह झगड़ा तो है ही पूर्व खिलाडिय़ों और ओलंपियनों की शान का। आज जबकि भारत में विश्व कप होने वाला है तो सभी ओलंपियनों को एकजुट होकर भारतीय हॉकी टीम की मदद करनी चाहिए।

० देश में हॉकी खिलाडिय़ों की हालत के बारे में क्या सोचते हैं?

०० देश में हॉकी खिलाडिय़ों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। हॉकी खिलाडिय़ों को कभी मैच खेलने के पैसे तो दूर खाने के पैसों के लाल पड़ जाते हैं। भारतीय टीम के प्रशिक्षण शिविर का ताजा विवाद बहुत बड़ा उदाहरण है।

० छत्तीसगढ़ में हॉकी की क्या स्थिति है?

०० यहां हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई है। आज राजनांदगांव जिसे हॉकी की नर्सरी कहा जाता है, वहां भी मैदान में खिलाड़ी नहीं आते हैं।

० क्या कारण है?

०० छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद जब तक प्रदेश संघ की कमान आरएलएस यादव और पूर्व ओलंपियन एयरमैन बेस्टिन के हाथों में थी, सब ठीक चल रहा था, इसके हटने के बाद प्रदेश में हॉकी की बर्बादी शुरू हो गई जो अब पूरी तरह से बर्बाद हो गई है। जिन लोगों को हॉकी की कमान दी गई, वे अपना स्वार्थ देखने लगे। हॉकी संघ को छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल से प्रायोजित करके लाखों दिए लेकिन पैसे खिलाडिय़ों पर खर्च होने की बजाए संघ के पदाधिकारियों पर खर्च हुए। अब ऐसे में खेल का कैसे भला हो सकता है।

० हॉकी को राज्य में फिर से जिंदा करने क्या करना होगा?

०० हॉकी संघ की कमान सही हाथों में सौंपी जानी चाहिए। प्रदेश सरकार को भी देखना चाहिए कि हॉकी के लिए क्या हो सकता है। प्रदेश में मैदानों की कमी है, उसे दूर करना होगा।

० शेरा क्लब क्या हॉकी के विकास में फिर से सामने आएगा?

०० हमारे शेरा क्लब में १९७५ से १९९८ तक हॉकी भी होती थी, हमारी टीम कई राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेली है। अब शेरा क्रीड़ा समिति हॉकी का भी एक स्कूल उसी तरह से खोलने जा रहा है जिस तरह से फुटबॉल का स्कूल खोला है।

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बुधवार, जनवरी 13, 2010

शराबी-शराबी से कब चिढ़ता है?

कोई शराबी भी किसी शराबी से चिढ़ सकता है, यह बात गले उतरने वाली नहीं लगती है। लेकिन ऐसा होता है। हमारे एक मित्र ने बताया कि किसी शराबी को तब काफी बुरा लगता है जब कोई सुबह-सुबह उसके घर पर पीके आ जाता है। ऐसे में उस शराबी की बातें सोचनीय रहती है। वह काफी खफा होते हुए कहता है कि साले सुबह-सुबह पी के आ जाते हैं।

हमारे एक मित्र ने बताया कि उनकी कालोनी में रहने वाले एक बंदे को बेभाव की पीने की आदत है। उनके कई मित्र ऐसे हैं जो कि उनकी तरह ही बेभाव की पीते हैं। कई बार ऐसा होता है कि उनके वे मित्र सुबह-सुबह की चढ़ा कर उनके घर आ जाते हैं। तब ऐसे में वे उन पर नाराज होते हैं और कहते हैं कि अबे सुबह-सुबह पी के आने की क्या जरूरत थी। वैसे वे जनाब भी कई बार सुबह-सुबह पीने से परहेज नहीं करते हैं।

अब जहां तक सुबह-सुबह पीने का सवाल है तो इसके बारे में पीने वाले कहते हैं कि यार जब रात को बहुत ज्यादा हो जाती है न तो सुबह-सुबह उतारने के लिए उतारा लेने के लिए पीनी पड़ती है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है हम तो नहीं जानते हैं लेकिन कई पीने वालों को ऐसी बात करते हमने सुना है।

हमारे ब्लागर मित्र इस बारे में कुछ जानते हों तो जरूर अपने विचार बता सकते हैं। वैसे वे यह भी बताएं कि क्या उन्होंने भी किसी शराबी को किसी शराबी पर शराब पीने के कारण नाराज होते देखा है। कोई वाक्या याद आए तो जरूर बताएं।

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मंगलवार, जनवरी 12, 2010

1000 पोस्ट का आंकड़ा अब दूर नहीं ...

हमारे ब्लाग खेलगढ़ में शतकों का सिक्सर पूरा हो गया है। राजतंत्र में भी तिहरा शतक पूरो हो चुका है और अब हमारे इन दोनों ब्लागों का मिलाकर 1000 पोस्ट का आंकड़ा जल्द पूरा होने वाला है।

ब्लाग जगत में हमें कदम रखे कुल जमा 11 माह का समय हुआ है। अगले माह हमारे ब्लागों राजतंत्र और खेलगढ़ का एक साल पूरा हो जाएगा। लेकिन इसके पहले हम बता दें कि खेलगढ़ में हमारे शतकों का सिक्सर पूरा हो चुका है। आज की तारीख में खेलगढ़ में हमारे खाते में 614 पोस्ट हो चुकी है। इन पोस्टों में हमें 155 टिप्पणियां मिली हैं और इस ब्लाग को 48 सौ से ज्यादा पाठक मिले हैं। इस ब्लाग का सक्रियता में 214 वां स्थान है। खेलगढ़ में हम औसतन रोज दो से तीन पोस्ट लिखते हैं।

अब जहां तक राजतंत्र का सवाल है तो इसमें हम एक ही पोस्ट लिख पाते हैं। हमारा ब्लाग राजतंत्र खेलगढ़ से ज्यादा लोकप्रिय है। इस ब्लाग ने हमें एक अलग पहचान देने का काम किया है। इस ब्लाग में हमने तिहरा शतक पूरा कर कर लिया है और अब इसमें 400 पोस्ट की तरफ कदम बढ़ गए हैं। बहुत ही जल्द हमारे दोनों ब्लागों को मिलाकर 1000 पोस्ट का आंकड़ा पूरा हो जाएगा। इस समय दोनों ब्लागों को मिलाकर 953 पोस्ट हो चुकी हैं।

इस समय राततंत्र में हमारी 339 पोस्ट पूरी हो चुकी हैं। इन पोस्ट में हमें 27,650 पाठक मिले हैं और 3338 टिप्पणियां मिली हैं। हमारे इस ब्लाग का कल की तारीख में सक्रियता में 37वां स्थान था। हमारी 148 पोस्टों की अन्य ब्लागों में चर्चा हुई है। हमारे दोनों ब्लागों में आने वाले पाठकों के साथ सभी ब्लागरों मित्रों के हम तहे दिल से आभारी हैं जिन्होंने हमें इतना प्यार और स्नेह दिया है। उम्मीद है ऐसा ही प्यार और स्नेह हमेशा बनाए रखेंगे।

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सोमवार, जनवरी 11, 2010

ब्लागर समझे एक-दूजे को भाई तो क्यों हो टांग खिंचाई

हमारी कल की पोस्ट ब्लागरों को आने लगी एक-दूजे की याद जल्द होगी मुलाकात, पर भाई काजल कुमार की एक टिप्पणी आई कि टांग खिंचाई की दुनिया में यह पढ़ कर अच्छा लगा। इस टिप्पणी पर ही हम आज की यह पोस्ट लिख रहे हैं कि आज अगर अपनी ब्लाग बिरादरी में भी टांग खिंचाई हो रही है तो उसके पीछे कारण यही है कि लोग एक-दूजे को भाई जैसा नहीं मानते हैं। हमारा मानना है कि अगर भाई-चारे से रहा जाए तो न होगी टांग खिंचाई और न ही होगी जग हंसाई। यहां लोग आग लगाकर तमाशा देखने का काम करते हैं। ऐसे में एक परिवार की तरह रहने की जरूरत है। एकता में ही ताकत होती है यह बात बताने की जरूरत नहीं है।

हम भी जब से ब्लाग बिरादरी से जुड़े हैं तभी से देख रहे हैं कि यहां भी कम टांग खिंचाई नहीं होती है। हालांकि हम यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे लिखने से कुछ ज्यादा होने वाला नहीं है लेकिन फिर भी एक उम्मीद है कि अगर हमारे कुछ लिखने से कोई एक भी अपना भाई यह सोचता है कि वास्तव में यार टांग खिंचाई से क्या हासिल होता है तो यह हमारे लिए खुशी की बात होगी।

हम अगर कुछ लिख रहे हैं तो जरूरी नहीं है कि वह हर किसी को पसंद आए। क्योंकि सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है। ऐसे में जबकि हमें किसी का लिखा पसंद नहीं आता है और पढऩे के बाद अगर बहुत ज्यादा खराब भी लगता है तो अपना विरोध दर्ज कराने के लिए हमें शालीन भाषा और शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। अगर हमारी भाषा में शालीनता होगी और शब्दों में कोई गलत बात नहीं होगी तो संभव है कि उन गलत लिखने वाले अपने भाई को कुछ समझ आ जाए और उन्हें अहसास हो जाए कि उन्होंने कुछ तो ऐसा लिखा है जिससे किसी के दिल को चोट लगी है। ऐसा अहसास अगर उन लिखने वाले को हो जाए तो मानकर चलिए कि आपके शब्दों ने जादू कर दिया है। इसके विपरीत अगर आप कड़े शब्दों में विरोध करते हैं तो हो सकता है उन शब्दों का असर उन लिखने वाले पर भी ठीक वैसा हो जैसा असर आप पर उनकी लिखी किसी बात से हुआ है।

हमारे कहने का मलतब यह है कि यहां पर लिखने की स्वतंत्रता सभी को है तो किसी के लिखने का किसी भी तरह से गलत विरोध क्यों करना। विरोध भी ऐसा कि जिससे लगे कि टांग खिंचाई हो रही है। अपना हिन्दी ब्लाग परिवार छोटा सा परिवार है, इस परिवार में प्यार और स्नेह से रहने की जरूरत है। अगर परिवार का कोई छोटा गलती करें तो उसे बड़े प्यार से समझा सकते हैं और कोई बड़ा गलती करें तो उसे छोटे भी ससम्मान समझा सकते हैं। इसके बाद भी अगर कोई नहीं समझता है तो उसे परिवार से बाहर मान लिया जाए, ठीक उसी तरह से जिस तरह से एक परिवार अपने कपूत को अपने से अलग मान लेता है।

अगर ऐसा हो जाए तो फिर क्यों कर होगी किसी की टांग खिंचाई और फिर कभी नहीं होगी अपने हिन्दी ब्लाग परिवार की जग हंसाई। तो आईए मित्रों आज एक संकल्प लें कि किसी की लिखी बात का विरोध हम शालीनता से करेंगे। अगर आप हमारी बातों से सहमत हों तो अपने विचारों से जरूर अवगत करवाएं।

अंत में चलते-चलते अनिल पुसदकर जी कि उस टिप्पणी का उल्लेख कर लें जिसमें उन्होंने लिखा है कि रविवार तक तो वे टनाटन हो जाएंगे। हम सबको उनसे टनाटन होने का बेताबी से इंतजार रहेगा ताकि रविवार को होने वाला ब्लागर मिलन भी टनाटन हो।

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रविवार, जनवरी 10, 2010

ब्लागरों को आने लगी एक-दूजे की याद- जल्द होगी मुलाकात


छत्तीसगढ़ के ब्लागरों में एक दूसरे के प्रति कितना लगाव है इसका पता इसी बात से चलता है कि एक-दो दिन फोन पर बातें नहीं होती हैं तो ऐसा लगता है कि कुछ छूट सा गया है। इसी के साथ मिलने की कशिश भी रहती है। कल सुबह जब हमने बीएस पाबला जी का फोन खटखटाया तो उन्होंने कहा कि भई बहुत दिन हो गए अगले संडे को बैठा जाए और कुछ बतियाया जाए। हमने फौरन कहा कि जरूर बैठ जाएंगे। इसके बाद हमने ललित शर्मा जी और अनिल पुसदकर जी का भी फोन खटखटाया और उनको बताया कि अगले संडे बैठना है। अब अगले संडे को मुलाकात होगी और इस बार यह मुलाकात रायपुर में होगी।


ब्लाग बिरादरी में इस समय प्यार और स्नेह की ऐसी गंगा बह रही है जिसमें हर कोई नहाना चाहता है। अपने राज्य छत्तीसगढ़ के ब्लागरों में कुछ ज्यादा ही प्यार और स्नेह है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। छत्तीसगढ़ के ब्लागरों का प्यार और स्नेह अपने दिनेश राय द्विवेदी जी के साथ रवि रतलामी और अलबेला खत्री देख और महसूस कर चुके हैं। वैसे हमें श्री द्विवेदी जी से मिलने का मौका तो नहीं मिला है, पर उनके बारे में अपने ब्लागर मित्रों से जरूर सुना है। जब श्री द्विवेदी जी का छत्तीसगढ़ आना हुआ था तब हम ब्लाग जगत में नहीं आए थे। लेकिन हमें रवि रतलामी के साथ अलबेला खत्री जी से जरूर मिलने का मौका मिला है।


बहरहाल यहां हम बात कर रहे हैं अपने राज्य के ब्लागरों की। अपने राज्य के ब्लागरों में ज्यादातर ब्लागरों की एक-दूसरे से बात होते रहती है। यदा-कदा कभी भी कार्यक्रम बन जाता है और चार-छह ब्लागरों की एक महफिल कभी भिलाई में तो कभी रायपुर में जम जाती है। काफी समय से कोई बैठक नहीं हो पाई है। दिसंबर में भिलाई की चितंन बैठक के बाद लंबा समय हो गया है ऐसा लगता है। ऐसे में जबकि कल सुबह को हमें पाबला जी की याद आई तो हमने खटखटा दिया उनका फोन। उधर से फोन उठाते साथ पाबला जी अपने अंदाज में कहते हैं नमस्कार राजकुमार जी। नमस्कार के बाद बातों का सिलसिला चलता है तो हम उनसे पूछते हैं कि हमारे राजतंत्र का नया चोला कैसा लगा। पाबला जी बताते हैं कि अभी वे राजतंत्र को ठीक से नहीं देख पाए हैं।


बातों ही बातों में वे कहते हैं कि अगले रविवार को बैठना है। हम हामी भर देते हैं। वे कहते हैं कि इस बार रायपुर में बैठने की योजना है। हम कहते हैं ठीक है। वे बताते हैं कि ललित शर्मा जी से भी बात हो गई है। हम कहते हैं ठीक है आप लोग भिलाई-दुर्ग के जितने भी ब्लागर आना चाहें आ जाएं फिर प्रेस क्लब या फिर कहीं भी महफिल जम जाएगी।


पाबला जी से बात करने के बाद हम ललित शर्मा का भी फोन खटखटा देते हैं। उनसे करीब १० मिनट बात होती है। वे भी बताते हैं कि पाबला जी से बात हुई है अगले रविवार को बैठना है। वे कहते हैं कि हम उस दिन रायपुर आ जाएंगे। हमने कहा ठीक है। शाम को हमने अनिल पुसदकर जी का भी फोन खटखटाया और सबसे पहले उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा कि क्या हाल है। उन्होंने बताया कि अभी तो स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है। इसके बाद हमने उनको बताया कि अगले रविवार को पाबला जी अपने भिलाई के ब्लागर साथियों के साथ आने वाले हैं। अनिल जी ने भी कहा कि ठीक है।


अब सबको अगले रविवार का इंतजार है ताकि सब एक-दूसरे को गले लगाकर जादू की झप्पी ले सके। वैसे अपने छत्तीसगढ़ के सभी ब्लागर उडऩ तश्तरी यानी समीर लाल और अजय कुमार झा जी का भी इंतजार कर हैं कि वे भी जल्द आएं तो उनसे जादू की ङाप्पी लेने का मौका मिले।

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शनिवार, जनवरी 09, 2010

ग्रामीण खिलाडिय़ों के हक पर डाका

राष्ट्रीय ग्रामीण खेलों में खेलने गई प्रदेश की फुटबॉल टीमों में ग्रामीण खिलाडिय़ों के स्थान पर शहरी खिलाडिय़ों का चयन करके भेजा गया है। इन खिलाडिय़ों ने द्वारा गांवों में रहने की फर्जी जानकारी दी गई है जिसके कारण इनका चयन किया गया है। अक्सर ग्रामीण नेशनल में खेलने जाने वाली टीमों में ज्यादातर खिलाड़ी शहरी ही होते हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि खेल संचालक को भी नियमों की जानकारी नहीं है।

भोपाल में १० जनवरी से होने वाले राष्ट्रीय ग्रामीण खेलों में खेलने जाने वाले प्रदेश की बालिका एवं बालक टीमों के खिलाडिय़ों को खेल एवं युवा कल्याण विभाग के संचालनालय में खेल संचालक द्वारा ट्रेक शूट दिए गए। इसी के साथ पहली बार खिलाडिय़ों को डीए के पैसे नकद दिए गए। इस टीम के खिलाडिय़ों से जब खेल संचालक जीपी सिंह का परिचय कराया जा रहा था तो बालिका टीम की कई खिलाडिय़ों ने खुद ही यह बताया कि वे एमजेएम स्कूल की हैं। इस टीम में शांति नगर स्कूल की भी खिलाड़ी हैं। यही हाल बालक टीम का भी है। बालक टीम में रायपुर के खिलाड़ी तो कम हैं, पर जिन जिलों के खिलाड़ी हैं, उनके बारे में भी जानकारों का कहना है कि वे ग्रामीण खिलाड़ी नहीं बल्कि शहरी खिलाड़ी हैं।

ऐसा पहली बार हो रहा है ऐसा नहीं है जब भी ग्रामीण खेलों के लिए टीमें बनती हैं तो उसमें ज्यादातर शहरी खिलाडिय़ों को रखा जाता है। इन खिलाडिय़ों को टीमों में रखे जाने के बारे में अधिकारियों का यही कहना है कि उनके पास खिलाड़ी ग्राम पंचायतों के प्रमाणपत्र लेकर आते हैं कि वे वहां के रहने वाले हैं। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि खिलाड़ी गांव के किसी रिश्तेदार का पता देकर फर्जी प्रमाणपत्र बनवाने में सफल हो जाते हैं। जब खिलाड़ी गांवों के प्रमाणपत्र लेकर आते हैं तो खेल अधिकारियों को उनको टीम में रखने की मजबूरी हो जाती है, हालांकि सारे खेल अधिकारी यह बात जानते हैं कि जिन खिलाडिय़ों को टीम में रखा जा रहा है, वे शहर के हैं।

पाइका योजना पर सवालिया निशान

केन्द्र सरकार ने ग्रामीण खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर पर मौका देने के लिए जो पाइका योजना प्रारंभ की है, उस योजना पर खिलाडिय़ों के फर्जीवाड़े से सवालिया निशान लग गए हैं कि कैसे इस योजना का लाभ ग्रामीण खिलाडिय़ों को मिलेगा। जब सारे खेलों में शहरी खिलाड़ी ही खेलने जाएंगे तो ग्रामीण खिलाड़ी कैसे खेल पाएंगे। ग्रामीण खेलों की अलग से विकासखंड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक स्पर्धाएं करवाने का मकसद ही ग्रामीण खिलाडिय़ों को निखारना है, लेकिन उनके हक पर लगातार डाका पड़ रहा है।

खेल संचालक को ही नियम मालूम नहीं

खेल भवन में टीम को किट बांट रहे खेल संचालक से जब पूछा गया कि राष्ट्रीय ग्रामीण खेलों में खेलने जा रही इस टीम में तो ज्यादातर खिलाड़ी शहरी हैं, तो उन्होंने कहा कि इससे क्या होता है, ऐसा कोई नियम नहीं है कि शहरी खिलाड़ी नहीं खेल सकते हैं। जब उनको बताया गया कि ग्रामीण नेशनल का मतलब ही यह है कि इसमें गांव के खिलाड़ी रखे जाएंगे, शहरी खिलाडिय़ों के लिए तो अलग से स्पर्धा होती है। तब उन्होंने टीम के कोच और मैनेजर से पड़ताल की कि क्या वाकई टीम में शहरी खिलाड़ी हैं। उनको कोच और मैनेजर ने भी पहले तो गलत जानकारी देने का प्रयास किया, फिर संचालक से कहा गया कि ये खिलाड़ी पढ़ते शहर में हैं लेकिन हैं गांव के। संचालक जीपी सिंह का कहना है कि अगर उनके पास किसी तरह की शिकायत आती है तो वे कार्रवाई करेंगे।

एमजेएम के खिलाड़ी हैं टीम में

इधर एमजेएम स्कूल के खेल शिक्षक अखिलेश दुबे ने संपर्क करने पर कहा कि उनके पास भी जानकारी है कि भोपाल ग्रामीण नेशनल में खेलने गई बालिका फुटबॉल टीम में उनके स्कूल की कुछ खिलाड़ी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इसके बारे में न तो खेल विभाग से कोई जानकारी स्कूल भेजी गई है कि उनके स्कूल की खिलाडिय़ों को टीम में रखा गया है और न ही खिलाडिय़ों ने स्कूल को कोई जानकारी दी है। श्री दुबे का बयान भी यह साबित करता है कि इस स्कूल की खिलाडिय़ों ने फर्जी जानकारी के आधार पर टीम में स्थान बनाया है, तभी तो न तो खिलाडिय़ों ने स्कूल को जानकारी दी और न ही खेल विभाग ने।

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शुक्रवार, जनवरी 08, 2010

समीर लाल और अजय झा आने वाले हैं लेने जादू की झप्पी

अपने ब्लाग जगत के बिग-बी यानी समीर लाल और अजय कुमार झा जी ने नए साल में छत्तीसगढ़ आने का वादा किया है और वे वादा निभाने वाले हैं। समीर लाल जी तो संभवत: मार्च-अप्रैल में आएंगे, लेकिन अजय जी कब आएंगे यह तय नहीं है, लेकिन इतना जरूर तय है कि वे इस साल जरूर छत्तीसगढ़ की यात्रा करेंगे। इन दोनों की यात्रा का हम सभी को बेताबी से इंतजार है।

नए साल में हमने समीर लाल जी से उनके उस फोन नंबर पर संपर्क करने का प्रयास किया था जिस नंबर से उन्होंने हमें एक बार फोन किया था, पर वह नंबर नहीं लगा और उनसे बात नहीं हो सकी। लेकिन हमारी एक पोस्ट में फिर से उन्होंने यह बात लिखी है कि वे जल्द आने वाले हैं। समीर भाई संभवत: मार्च या अप्रैल में आएंगे।

इधर साल के पहले दिन जब अजय झा जी से फोन पर बातें हुईं तो उन्होंने कहा कि इस नए साल में जरूर आपसे जादू की झप्पी लेने का मौका मिलेगा। हमें उस दिन का बेताबी से इंतजार है जब हमें झा जी के साथ जादू की झप्पी लेने का मौका मिलेगा। इसी के साथ समीर लाल जी के भी गले लगने का सौभाग्य मिलेगा। यह सौभाग्य हमें ही नहीं छत्तीसगढ़ के उस हर ब्लागर को मिलेगा, जो इनसे मिलने आएंगे। हम चाहेंगे कि छत्तीसगढ़ के हर ब्लागर को समीर भाई के साथ अजय भाई से रूबरू होने का मौका मिले। इसके लिए क्या जा सकता है, इस पर जरूर विचार किया जाएगा।

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गुरुवार, जनवरी 07, 2010

मंदिरों में दान करने से किसका भला होता है?

एक खबर पर नजरें पड़ीं कि पुराने और नए साल के बीच महज एक सप्ताह में ही शिरर्डी के साई मंदिर में करीब 10 करोड़ रुपए दान के रूप में मिले। इस दान ने एक बार फिर से यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आखिर मंदिरों में दिए जाने वाले दान से किसका भला होता है। मंदिरों में दान करने वालों की मानसिकता क्या होती है? अपने देश में इतनी ज्यादा गरीबी है कि उनकी चिंता किसी को नहीं है। कई किसान भूख से मर जाते हैं, पर उनकी मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आता है, लेकिन मंदिरों में लाखों नहीं बल्कि करोड़ का गुप्त दान किया जाता है। आखिर इस दान से हासिल क्या होता है। किसको मिलता है इसका लाभ।

हम एक बात साफ कर दें कि हम कोई नास्तिक नहीं हैं। भगवान में हमारी भी उतनी ही आस्था है जितनी होनी चाहिए। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या आस्था जताने के लिए मंदिरों में दान करना जरूरी है। अगर नहीं तो फिर जो लोग मंदिरों में बेतहासा दान करते हैं उनके पीछे की मानसिकता क्या है? क्या उनको भगवान से किसी बात का डर रहता है। क्या ऐसे लोगों जो कि काले धंधे करते हैं उनके मन में यह बात रहती है कि वे भगवान के मंदिर में कुछ दान करके अपने पाप से बच सकते हैं। हमें तो लगता है कि ऐसी ही किसी मानसिकता के वशीभूत होकर ये लोग लाखों रुपए दान करते हैं। लेकिन इनके दान से किसका भला होता है? हमारे देश के बड़े-बड़े मंदिरों की हालत क्या है किसी से छुपी नहीं है। लाखों दान करने वालों के साथ वीआईपी और वीवीआईपी के लिए तो इन मंदिरों के द्वार मिनटों में खुल जाते हैं। इनको भगवान के दर्शन भी इनके मन मुताबिक समय पर हो जाते हैं, लेकिन आम आदमी को घंटों लंबी लाइन में लगे रहने के बाद भी कई बार भगवान के दर्शन नहीं होते हैं। कभी-कभी लगता है कि भगवान भी अमीरों के हो गए हैं, खासकर बड़े मंदिरों में विराजने वाले भगवान।

शिरर्डी के साई बाबा के दरबार के बारे में कहा जाता है कि वहां पर सभी को समान रूप में देखा जाता है। लेकिन हमारे एक मित्र ने बताया कि वे जब शिरर्डी गए थे तो वीआईपी पास से गए थे तो उनको दर्शन करने में कम समय लगा। यानी वहां भी बड़े-छोटे का भेद है। संभवत: अपने देश में ऐसा कोई मंदिर है ही नहीं जहां पर बड़े-छोटे का भेद न हो। किसी वीआईपी या फिर अमीर को हमेशा लाइन लगाने से परहेज रहती है। वे भला कैसे किसी गरीब के साथ लाइन में खड़े हो सकते हैं।

लाखों का दान करने वालों को क्या अपने देश की गरीबी नजर नहीं आती है। क्या ऐसा दान करने वाले लोग उन खैराती अस्पतालों, अनाथ अश्रामों में दान करने के बारे में नहीं सोचते हैं जिन आश्रमों में ऐसे बच्चों को रखा जाता है जिन बच्चों में संभवत: ऐसे बच्चे भी शामिल रहते हैं जो किसी अमीर की अय्याशी की निशानी के तौर पर किसी बिन ब्याही मां की कोख से पैदा होते हैं।

क्या लाखों दान करने वालों को अपने देश के किसानों की भूख से वह मौते नजर नहीं आती हैं। आएगी भी तो क्यों कर वे किसी किसान की मदद करेंगे। किसी किसान की मदद करने से उनको भगवान का आर्शीवाद थोड़े मिलेगा जिस आर्शीवाद की चाह में वे दान करते हैं। ऐसे मूर्खों की अक्ल पर हमें तो तरस आता है। हम तो इतना जानते हैं कि किसी भूखे को खाना खिलाने से लाखों रुपए के दान से ज्यादा का पुन्य मिलता है। किसी असहाय और गरीब को मदद करने से उनके दिल से जो दुआ निकलती है, वह दुआ बहुत काम की होती है।

मंदिरों में दान करने के खिलाफ कताई नहीं है, लेकिन किसी भी मंदिर में दान उतना ही करना चाहिए, जितने से उस मंदिर में होने वाले किसी काम में मदद मिले। जो मंदिर पहले से पूरी तरह से साधन-संपन्न हैं उन मंदिरों में दान देने से क्या फायदा। अपने देश में ऐसे मंदिरों की भी कमी नहीं है जिनके लिए दान की बहुत ज्यादा जरूरत है, पर ऐसे मंदिरों में कोई झांकने नहीं जाता है। क्या ऐसे मंदिरों की मदद करना वे दानी जरूरी नहीं समझते नहीं है जिनको दान करने का शौक है।

क्या बड़े मंदिरों में किए जाने वाले करोड़ों के दान का किसी के पास हिसाब होता है। किसी भी गुप्त दान के बारे में कौन जानता है। मंदिरों के ट्रस्टी जितना चाहेंगे उतना ही हिसाब उजागर किया जाएगा, बाकी दान अगर कहीं और चले जाए तो किसे पता है। अब कोई गुप्त दान करने वाला यह तो बताने आने वाला नहीं है कि उसने कितना दान किया है। हमारे विचार से तो बड़े मंदिरों में दान करने से किसी असहाय, लाचार, गरीब का तो भला होने वाला नहीं है, लेकिन मंदिर के कर्ताधर्ताओं का जरूर भला हो सकता है। अगर दानी इनका ही भला करना चाहते हैं तो रोज करोड़ों का दान करें, हमें क्या।

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बुधवार, जनवरी 06, 2010

कैसा है हमारे राजतंत्र का नया चोला

कल जब हम रात को करीब 12.15 बजे घर पहुंचे तो हमारी धर्मपत्नी ने घर में घुसते साथ एक खुशखबरी सुनाई कि आपके राजतंत्र का चोला बदल दिया है। हमें नींद तो बहुत आ रही थी, पर राजतंत्र के नए चोले को देखने का मोह त्याग नहीं सके और बैठ गए कम्प्यूटर पर। राजतंत्र खोलते ही हमारे सामने इसका जो नया रूप आया, वह बहुत पसंद आया।

हम काफी दिनों से राजतंत्र का चोला बदलने के बारे में सोच रहे थे। हमारे कई मित्रों को शिकायत थी कि राजतंत्र खुलने में काफी समय लगता है। ऐसे में सोच रहे थे कि इसका चोला बदल दिया जाए। लेकिन हम क्या करते, एक तो हमें यह सब आता नहीं है, और दूसरा यह कि हमारे पास समय भी नहीं है। वैसे भी हमारे राजतंत्र का सारा लेआउट तय करने का काम हमारी धर्मपत्नी ही करती हैं, हम तकनीकी मामले में अनाड़ी ही हैं। हमें तो बस लिखना ही आता है, बाकी सब हम नहीं जानते हैं। हमने काफी समय से पत्नी जी से कह रखा था कि राजतंत्र का गेटअप बदलना है, पर उनका भी क्या कसूर, घर के काम से समय मिले तब तो राजतंत्र का चोला बदला जाता।

अचानक उन्होंने कल समय निकाला और बैठ गईं हमारी बिटिया स्वप्निल के साथ राजतंत्र को एक नया रूप देने के लिए। मां-बेटी ने मिलकर राजतंत्र का जो चोला बदला है, वह आप सबके सामने है। अब यह तो आप लोगों को बताना है कि यह चोला कैसा है। इसी के साथ हम ब्लाग बिरादरी के मित्रों के साथ अपने पाठकों से यह भी जानना चाहते हैं कि अब राजतंत्र खुलने में परेशानी तो नहीं हो रही है। आपके विचारों का स्वागत है।

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मंगलवार, जनवरी 05, 2010

क्या कोई ब्राम्हण उफ अल्ला कह सकता है?

आप लोगों को लगता है कि कोई ब्राम्हण जाने-अंजाने में कभी उफ अल्ला कह सकता है। जिस तरह से हिन्दुओं के मुंह से किसी भी अच्छी या बुरी बात पर हे भगवान निकलता है, ठीक उसी तरह से किसी मुस्लिम भाई के मुंह के या अल्ला या फिर उफ अल्ला निकलता है। कभी किसी ने किसी मुसलमान को हे भगवान या फिर किसी हिन्दु को या अल्ला कहते नहीं सुना होगा। लेकिन अपने एनडीटीवी वाले न जाने किस मिट्टी के बने हैं जो वे एक ब्राम्हण से उफ अल्ला बुलवाने में सफल हो गए। यह घटना उस समय घटी जब अपने बकवास सीरियल राज पिछले जन्म का, में इस कार्यक्रम के सूत्रधार रवि किशन के पिछले जन्म का राज जानने का प्रयास डॉक्टर तृप्ति जैन कर रही थीं। तब एक स्थान पर अपने नौटंकीबाज रवि किशन साहब उफ अल्ला कहते हैं।

सोमवार की रात को जिसने भी एनडीटीवी का कार्यक्रम राज पिछले जन्म का देखा होगा उसको अब तो कम से कम इस बात का पक्का यकीन हो गया होगा कि यह कार्यक्रम महज एक नौटंकी के सिवाए कुछ नहीं है। इस दिन इस कार्यक्रम के सूत्रधार रवि किशन को उडऩ खटोले पर लिटाया गया था और उनसे उनके पिछले जन्म का राज पूछा जा रहा था। अपने रवि साहब पिछले जन्म में एक ब्राम्हण परिवार में पैदा हुए रहते हैं और वे उस जन्म में एक नहीं बल्कि तीन हत्याएं कर देते हैं। एक उस नागा साधु की जो उनके पिता को त्रिशुल मार कर मार डालते हैं और दो उन पुलिस वालों की जो उनकी मां और पत्नी को परेशान करते हैं।

तो रवि साहब अपने पिछले जन्म की दास्तान सुनते हुए कभी हिन्दी में तो कभी अंग्रेजी में बोलने लगते हैं। यहां तक तो बात समझ आ रही थी, लेकिन जब वे एक स्थान पर उफ अल्ला कहते हैं तो कम से कम हमें तो पक्का यकीन हो गया कि वास्तव में यह सीरियल एक हाई क्लास नौटंकी के अलावा कुछ नहीं है। रवि किशन के हाव-भाव देखकर ही लग रहा था कि वे नौटंकी कर रहे हैं। वैसे तो और भी कई लोगों के कार्यक्रम में ऐसा लगा है, पर रवि किशन के कार्यक्रम ने जरूर यह साबित करने का काम किया है कि वास्तव में कैसे दर्शकों को बेवकूफ बनाया जा रहा है। हमारे एक मित्र जो कभी इस कार्यक्रम की तारीफ करते हुए थकते नहीं थे, उनको भी यकीन हो गया है कि यह कार्यक्रम एक नौटंकी के सिवाए कुछ नहीं है। रवि किशन कभी अपने पिता को पापा कहते हैं तो कभी पिता कहते हैं।
सारी बातें अपनी जगह है लेकिन यह बात गले उतरने वाली नहीं है कि कोई ब्राम्हण कैसे बेख्याली में या फिर गलती से भी उफ अल्ला कह सकता है। क्या हमारे ब्लाग बिरादरी के मित्रों ने किसी ब्राम्हण को अपने जीवन में उफ अल्ला कहते सुना है। अगर सुना है तो जरूर बताएं। हमें नहीं लगता है कि किसी ने ऐसा सुना होगा। हमने तो किसी को ऐसा कहते नहीं सुना है, क्या आपने सुना है। आपके इस बारे में क्या विचार हैं, जरूर बताएं।

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सोमवार, जनवरी 04, 2010

दक्ष के पिछले जन्म का राज भी खोलने की हिम्मत दिखाएं एनडीटीवी

एनडीटीवी वालों ने जबसे राज पिछले जन्म का की एक कड़ी में पंजाबी फिल्मों की नायिका मन्नत सिंह के पिछले जन्म का राज खोला था तब एक बात सामने आई थी कि उनके पिछले जन्म का प्रेमी इस जन्म में दक्ष के रूप में उनको मिला है। अगर वास्तव में एनडीटीवी वालों को लगता है कि वे सच में पिछले जन्म का राज खोलने का सही काम कर रहे हैं और उनके द्वारा जो राज खोले जा रहे हैं, वह १०० प्रतिशत सच हैं तो फिर उनको अपनी सच्चाई साबित करने के लिए दक्ष को भी उसी टेबल पर लिटा कर उनके पिछले जन्म का राज खुलवाया जाए, अगर मन्नत सिंह और दक्ष की कहानी एक होगी तभी माना जाएगा कि पिछले जन्म के राज में कुछ सच्चाई है। वैसे भी यह कार्यक्रम ज्यादातर लोगों को बकवास लग रहा है।

इन दिनों एनडीटीवी का एक कार्यक्रम राज पिछले जन्म का हर तरफ चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा का विषय इसलिए की इस कार्यक्रम पर कोई यकीन करने को तैयार नहीं है। माना कि पिछले जन्म में विश्वास किया जाता है, लेकिन जिस तरह से एनडीटीवी वाले थोक के भाव में लोगों के पिछले जन्म का राज खोल रहे हैं, यह गले उतरने वाला नहीं है। एक कड़ी में जब पंजाबी फिल्मों की नायिका मन्नत सिंह के पिछले जन्म का राज खोला गया तो हद ही हो गई। मन्नत मैडम को पिछले २० सालों से पीठ में दर्द है और उनके इस दर्द का कारण डॉक्टर जानने में जब असफल रहे तो वह पहुंच गई एनडीटीवी की डॉक्टर तृप्ति जैन की शरण में। अब डॉक्टर जैन तो हैं ही इस काम के लिए। सो उन्होंने फटाफट उनके पिछले जन्म का राज खोल कर बता दिया कि उनके दर्द का कारण क्या है। मन्नत सिंह जो पिछले जन्म में पाकिस्तान में पैदा हुई थी, उनको उनके प्रेमी सुल्तान के साथ पाकिस्तानी सैनिकों ने बार्डर पार करने के संदेह में पहले संगीनों से पीठ में मारा फिर मन्नत सिंह को पीठ में और उनके प्रेमी को पेट में गोली मार दी। मन्नत सिंह ने अपने पिछले जन्म के प्रेमी को इस जन्म में अपने मित्र दक्ष के रूप में पहचान भी लिया।

मन्नत सिंह जब वापस अपने इस जन्म में आई को उनके साथ कार्यक्रम में आए दक्ष ने भी इस बात का खुलासा किया कि उनको भी पिछले दो साल के पेट में ठीक उसी स्थान पर दर्द होता है जहां पर उनके पिछले जन्म में मन्नत के मुताबिक गोली लगी थी। जब दक्ष भी यह मान रहे हैं कि वे पिछले जन्म में मन्नत सिंह के प्रेमी थे और उनको भी गोली लगी थी ते फिर देर किस बात की है, उनको भी उसी उडऩखटोले में लिटाने की हिम्मत क्यों नहीं की जा रही है जिस पर मन्नत सिंह को लिटाया गया था। अगर एनडीटीवी वालों में अपने कार्यक्रम के प्रति इतना ही विश्वास है तो उनको यह साहस तो दिखाना ही चाहिए। वैसे हम यह बात भी जानते हैं कि अगर उन्होंने यह साहस दिखाया तो भी इसका मतलब यह नहीं होगा कि उनका कार्यक्रम सच्चा है। वे जरूर मन्नत सिंह के लिए बनाए गए नाट्य रूपांतरण को ही फिर से दिखा सकते हैं। लेकिन फिर भी हम ऐसा चाहते हैं कि एक बार एनडीटीवी वाले ऐसा साहस करें, क्या उनमें इतना दम है कि वह दक्ष के भी पिछले जन्म का राज खोले। अगर दम नहीं है तो फिर क्यों कर लोगों की उन भावनाओं से खेला जा रहा है जिसमें पिछले जन्म पर विश्वास किया जाता है।

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रविवार, जनवरी 03, 2010

10 मिनट में तैयार होती है एक पोस्ट



लंबे समय से मन में विचार आ रहा था कि अपने ब्लाग बिरादरी के मित्रों से यह पूछा जाए कि वे कितने समय में एक पोस्ट तैयार करते हैं। ऐसा विचार इसलिए आया क्योंकि जहां तक हमारा सवाल है तो हमें एक पोस्ट को तैयार करने में महज 10 से 15 मिनट का समय लगता है। इतना कम समय इसलिए लगता है क्योंकि हम बरसों से जहां कम्प्यूटर पर काम कर रहे हैं, वहीं हमें रोज अखबार के लिए पूरे एक पेज की खबरें बनानी पड़ती हैं। ये खबरें हम सहज रूप से महज दो घंटे के अंदर न सिर्फ लिख लेते हैं, बल्कि इन खबरों को पेज में लगा भी देते हैं।

ब्लाग जगत में आने के बाद अगर हम इतनी तेजी से लिख सके हैं तो इसके पीछे का राज यह है कि हमारे लिए किसी भी विषय पर कुछ भी लिखना महज एक खेल से ज्यादा नहीं रहा है। हमारे दिमाग में कोई भी विषय आने की ही देर रहती है, विषय आने के बाद सबसे पहले हम हेडिंग के बारे में सोचते हैं, हेडिंग बनते ही तैयार हो जाता है हमारा मैटर महज 10 से 15 मिनट में। हम इतने कम समय में इसलिए लिख पाते हैं क्योंकि हम कम्प्यूटर में उस जमाने से काम कर रहे हैं जब कम्प्यूटर में वैरी टाइपर का जमाना था। इन दिनों जब हम रायपुर के समाचार पत्र दैनिक अमृत संदेश में काम करते थे तो वहां पर कम्प्यूटर पर हमें मैटर तो चलाना नहीं पड़ता था, लेकिन सिटी की खबरों की रीडिंग जरूर करनी पड़ती थी, ताकि कोई गलती न हो। उस समय कम्प्यूटर एक बड़ी सी टेबल पर लगे रहते थे, इस टेबल के नीचे ही कम्प्यूटर का मैटर फिल्मों में टाइप होता था और इन फिल्मों को डार्करूम में ले जाकर आपरेटर ठीक उसी तरह से धोकर लाते थे, जैसे फोटो की फिल्में धुलती हैं, इन्हीं फिल्मों से पेज बनते थे। तब बटर पेपर का जमाना नहीं था। बटर पेपर वाले सारे कम्प्यूटर तो 1990 के बाद आए हैं।

बहरहाल इतने समय से कम्प्यूटर पर काम करने के साथ अखबार में काम करने की वजह से हमें लिखने में कोई परेशानी नहीं होती है। हम अपने ब्लागर मित्रों को एक बात और बता दें कि हमने कभी टाइपिंग का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है, बस रीडिंग करते-करते ही टाइप करना सीख गए। एक खास बात और यह कि हम टाइपिंग करते समय अपनी महज तीन उंगलियों का ही प्रयोग करते हैं और काफी तेजी से लिख लेते हैं। इन उंगलियों में एक उंगली ही सीधे हाथ की और दो उंगलियां दूसरे हाथ की प्रयोग में लाते हैं। महज तीन उंगलियों से जब हम तेजी से मैटर टाइप करते हैं तो हमारे साथी पत्रकारों के साथ आपरेटर भी आश्चर्य में पड़ जाते हैं। वे पूछते हैं कि आप तीन उंगलियों में मैटर कैसे चला लेते हैं, तब हम उनको कहते हैं कि इंसान को जितनी भी उंगलियों से मैटर टाइप करने में सहज लगे करना चाहिए। अगर आप सोचेंगे कि दोनों हाथों की सारी उंगलियां काम करें तो आप कभी टाइपिंग नहीं कर पाएंगे।

खैर हमने तो यह बता दिया कि कैसे हमें 1000 से 1500 शब्दों की एक पोस्ट लिखने में महज 10 से 15 मिनट का समय लगता है, अब हम अपने ब्लागर मित्रों से जानना चाहते हैं कि आप लोग एक पोस्ट लिखने में कितना समय लगाते हैं। संकोच न हो तो जरूर बताएं। अपनी बातों को मित्रों से साझा करने में प्यार और स्नेह बढ़ता है।

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शनिवार, जनवरी 02, 2010

गुजरे साल में मिले कई ब्लागर मित्र



हमारे लिए गुजारा साल कई मायने में महत्वपूर्ण रहा। एक तो हमने इसी साल ब्लाग जगत में कदम रखा और इस पहले ही साल में हमारी मुलाकात कई ब्लागर मित्रों से हुई। जिन मित्रों से मुलाकात हुई उनमें जहां कई दिग्गज ब्लागर शामिल हैं, वहीं फोन पर ब्लाग बिरादरी के बिग-बी समीरलाल जी से भी चर्चा हुई। फोन पर और भी कुछ मित्रों से रूबरू होने का मौका मिला।

हमने पिछले साल फरवरी में जब ब्लाग बिरादरी में कदम रखा था तब हमें यह कताई गुमान नहीं था कि हमें इस ब्लाग संसार में इतना प्यार और अपनापन मिलेगा। लेकिन हमें यहां बहुत ज्यादा प्यार मिला। अब जहां तक ब्लागर मित्रों से परिचय का सवाल है तो हम अपने शहर के अनिल पुसदकर के साथ संजीत त्रिपाठी को पहले से जानते थे। वैसे संजीत के बारे में हमें तब मालूम हुआ था कि वे भी ब्लागर हैं जब उन्होंने हमारे खेलगढ़ में एक टिप्पणी की थी। इसके बाद उनसे प्रेस क्लब में मुलाकात हुई थी। अब जहां तक अनिल जी का सवाल है तो हम लोग 20 साल पहले दैनिक अमृत संदेश में साथ में काम करते थे। अपने शहर के बाहर के ब्लागरों में सबसे पहले हमारा परिचय भिलाई के बीएस पाबला जी से हुआ था। हमने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की थी और वे जब रायपुर आए तो उनसे प्रेस क्लब में मुलाकात हुई। यहां पर संजीत त्रिपाठी और अनिल पुसदकर जी भी आए थे।

इसके बाद रायपुर में ब्लाग जगत के एक दिग्गज नामी ब्लागर रवि रतलामी जी से तब मिलने का मौका मिला, जब उनका एक कार्यक्रम में रायपुर आना हुआ। यहां उनके अलावा पहली बार दुर्ग के ब्लागर संजीव तिवारी से भी मिलने का मौका मिला। रायपुर में ब्लागरों की एक महफिल तब भी जमी तब अलबेला खत्री जी का रायपुर आना हुआ। इसी दिन हमें पहली बार शरद कोकास के साथ अभनपुर के भाई ललित शर्मा से भी मिलने का मौका मिला।

साल के अंत में भिलाई में एक चिंतन बैठक रखी गई जिसमें कई महत्वपूर्ण फैसले हम लोगों ने लिए तो इस बैठक में पहली बार हमारा परिचय भिलाई के दो और ब्लागरों बालकृष्ण अय्यर के साथ सूर्यकांत गुप्ता से हुआ।

इधर जब अचानक ब्लाग जगत में अपने दिल्ली के ब्लागर मित्र अजय कुमार झा जी के ब्लाग छोडऩे की गलतफहमी पैदा हुई तो पहली बार हमने उनसे फोन पर चर्चा की। इसके बाद उनसे चर्चा का मौका नए साल में पहले ही दिन मिला। हमने पिछले साल जहां जबलपुपर के ब्लागर मित्र महेन्द्र मिश्र से भी फोन पर चर्चा की, वहीं हमारे लिए वह दिन सुखद था जब हमारे पास ब्लागर बिरादरी के बिग-बी माने जाने वाले समीर लाल जी का फोन आया था। वैसे फोन पर हमारी बीएस पाबला और ललित शर्मा जी से बातें होती रहती हैं। अब जहां तक अनिल जी का सवाल है तो उनसे यदा-कदा प्रेस क्लब में मुलाकात हो ही जाती है। ब्लाग बिरादरी में हमें एक साल से भी कम के ब्लागर जीवन में बहुत प्यार मिला है।

एक तरफ जहां कई ब्लागरों से मुलाकात का मौका मिला है, वहीं कुछ से फोन पर बातें हुई हैं। लेकिन जिनसे मुलाकात भी नहीं हुई और फोन पर चर्चा नहीं हो सकी, लेकिन वे हमें अपनी टिप्पणियों के माध्यम से बहुत करीब लगे हैं। ऐसे लोगों में काफी नाम है जिनकी टिप्पणियों ने हमारा हौसला हमेशा लिखने के लिए बढ़ाया है। हम ऐसे लोगों में कुछ लोगों के नामों का उल्लेख करके किसी को नाराज नहीं करता चाहते हैं हो सकता है भूलवश किसी का नाम छूट गया तो यह गलत होगा। ऐसे में हम अपने उन सभी ब्लागर मित्रों के तहे दिल से आभारी हैं जो कदम-कदम पर हमें हमेशा साथ लगते हैं।

हमारी इच्छा ऐसे सभी ब्लागर मित्रों से मिलने की होती है, समय और किस्मत ने साथ दिया तो सभी से एक न एक दिन जरूर मुलाकात होगी। वैसे अपने अजय झा ने कहा है कि वे संभवत: इस साल छत्तीसगढ़ आएंगे। अपने समीर लाल जी ने भी छत्तीसगढ़ आने का वादा किया है। और भी जो ब्लागर मित्र हमारे राज्य में आने के इच्छुक है उन सभी का छत्तीसगढ़ में हमारा ब्लागर परिवार स्वागत करने बेताब है। नए साल में हम उम्मीद करते हैं कि ज्यादा से ज्यादा ब्लागर मित्रों से रूबरू होने का मौका मिलेगा।

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शुक्रवार, जनवरी 01, 2010

नव वर्ष की नई सुबह .....



नव वर्ष की नई सुबह

ऐसी लाए खुशहाली

खुशियों ने घर-आंगन महके

रहे न कोई झोली खाली

हर इंसान साल भर चहके

हर दिन हो दीपावली

गरीबों को भी रोज खाना मिले

भगवान की रहमत हो ऐसी निराली

हमने तो साल के पहले दिन

यही दुआ है दिल से निकाली

चलिए नव वर्ष की खुशी में

पीए अब गरम चाय की एक प्याली

हमने तो सुबह उठते साथ

आज यह रचना लिख डाली

और घर की छत पर जाकर

नई सुबह की फोटो भी खींच डाली

सभी ब्लागर मित्रों और स्नेहिल पाठकों को नववर्ष की प्यार भरी बधाई...

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