हम तो चोर नंबर वन हैं
जीके अवधिया जी के ब्लाग में कल नजरें पड़ी तो देखा कि उन्होंने एक पोस्ट लिखी है
हां मैं चोर हूं.... दूसरों के मैटर चुराता हूं इस पोस्ट के अंत में उन्होंने पूछा कि क्या आप भी चोर हैं? उनका कहना है कि ऐसा कोई नहीं होगा जिसने जिंदगी में कुछ चुराया न होगा। अवधिया जी की यह बात बिलकुल ठीक है। जब कृष्ण भगवान माखन चुराकर खाते थे तो दुनिया में ऐसा कौन सा इंसान होगा जिसने कम से कम बचपन में अपनी पसंद की कोई चीज घर में चुराकर नहीं खाई होगी। जहां तक हमारा सवाल है तो हम अपने को दूसरों की खबरें और लेख चुराने में नंबर वन मानते हैं। हालांकि ऐसे कम मौके आए हैं जब हमको किसी का लेख नहीं बल्कि उसका विषय लेकर लिखना पड़ा है, लेकिन खबरों को चुराने की मजबूरी जरूर रही है। लेकिन इसे भी चोरी नहीं कहा जा सकता है। यह तो एक कला है चौर्यकला जिसमें हम हमेशा नंबर वन रहे हैं और रहेंगे।
हम अवधिया जी के साथ ब्लाग बिरादरी को बताना चाहते हैं कि चौर्यकला में तो हम शुरू से उस्ताद रहे हैं। हम बता दें कि अगर कोई लेख कहीं भी किसी भी विषय में छपा हो हम उस लेख का विषय लेकर तत्काल दूसरा लेख और कोई कविता है तो उस कविता का जवाब लिखने का काम बरसों से करते रहे हैं। मजाल है कि कोई पहचान जाए कि हमने उसके लेख से लेख बनाया है। इसी तरह से शाम के अखबारों से खबर लेकर बनाने का काम बरसों से किया है। खबरों से तत्थों को लेकर खबर को अपने शब्दों में लिख दिया जाए तो कोई दावा नहीं कर सकता है कि खबर उसकी है। लेकिन आप अगर खबर को पूरी की पूरी जस का तस लिख दें तो कोई भी कह सकता है कि यह तो उसकी खबर है।
हमें याद है जब आज से 20 साल पहले रायपुर के समाचार पत्र अमृत-संदेश में काम करते थे तो कई बार ऐसा मौका आता था कि हम सिटी में अकेले रिपोर्टर होते थे। ऐसे समय में शाम के अखबारों का सहारा होता था। उस समय रायपुर से एक तरूण छत्तीसगढ़ और दूसरा अग्रदूत ही शाम के अखबार हुआ करते थे। तब हम इन अखबारों को मंगा कर उनमें छपी खबरों से खबरें बनाने का काम करते थे लेकिन कभी इन अखबारों के रिपोर्टर को इस बात का पता ही नहीं चला कि हम उनके अखबार देखकर खबरें बना लेते हैं। एक बार शाम के एक अखबार के एक रिपोर्टर ने हमसे कहा कि आपके अखबार में छपी एक खबर उनके अखबार से हूबहू ली गई है। हमने पूछा कब के अखबार की बात कर रहे हैं तो उन्होंने बताया कि आज के अखबार की। तब हमने संतोष की सांस ली क्योंकि जिस दिन की बात वे कर रहे थे एक तो उस दिन हम छूटी में थे, दूसरे हम इतना अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर हम कोई खबर बनाएंगे तो कोई कह ही नहीं सकता है कि यह खबर उनके अखबार ले ली गई है। तब हमने अपने पत्रकार मित्र से कहा कि मित्र हम तो उस दिन आपके अखबार का सहारा लेते हैं जिस दिन अकेले होते हैं लेकिन क्या आपको इसके पहले कभी लगा कि हमारे अखबार में आपके अखबार की कोई खबर छपी है। उन्होंने कहा कि ऐसा तो कभी नहीं लगा।
हमने जो काम 20 साल पहले करते थे, वह अब भी कर लेते हैं। कोई दो साल पहले हम एक न्यूज एजेंसी हिन्दुस्तान समाचार में काम करते थे, वहां पर महज हम दो रिपोर्टर थे ऐसे में सभी जगह रिपोर्टिंग करने जाना संभव नहीं था ऐसे में शाम के अखबारों का ही सहारा होता था। वैसे शाम के अखबारों का सहारा सभी रिपोर्टर लेते हैं। और यह गलत भी नहीं है। लेकिन यहां पर इस बात की सावधानी जरूर होनी चाहिए कि आप खबरों को बनाते समय इस बात का जरूर ध्यान रखे कि आपकी खबर बिलकुल अलग होनी चाहिए। खबर या लेख बिलकुल इस तरह से चुराने की कला में माहिर होना जैसे कोई आंखों से सूरमा चुरा ले तो पता न चले। और हम आज तक ऐेसा ही काम करते रहे हैं।
हम बता दें कि दो दिन पहले ही हमने ललित शर्मा जी के ब्लाग में जांजगीर चांपा के असली पा के बारे में जानकार देखी। हम इस असली पा के बारे में दैनिक नवभारत में पहले ही खबर पढ़ चुके थे। शर्मा जी के ब्लाग में दी गई जानकारी छोटी लगी, ऐसे में हमने सोचा इस पर हम लिखेंगे। हमने दैनिक नवभारत की खबर से तत्थों को लेकर एक नई खबर एक नए एंगल से अपने शब्दों में बनाकर अपने ब्लाग में पेश की थी। इसे कहते हैं आंखों में से सूरमा चुराना।
हम अंत में अवधिया जी को धन्यवाद देना चाहते हैं कि उनकी वजह से जहां हमें भी अपने इस हूनर को सार्वजानिक करने का मौका मिला, वहीं पुरानी यादों में जाने का भी अवसर मिला। एक बात और अब यह बात भी साबित हो गई है कि कम से कम हम तो अवधिया जी के मौसेरे भाई हैं ही।
19 टिप्पणियाँ:
सब ही कन्फेशन बॉक्स में खड़े नजर आयेंगे यहाँ. :)
सुरमा चुराने वालो का आँखो का खयाल रखना चाहिये.
बहुत खूब व्यंग्य कर रंग बहुत गहरा चढ़ा है, जनाब !
बहुत खूब व्यंग्य कर रंग बहुत गहरा चढ़ा है, जनाब !
बहुत खूब व्यंग्य कर रंग बहुत गहरा चढ़ा है, जनाब !
हम चोर नही हैं!
केवल पिष्टपेषण करते हैं!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुती.....
खुद को चोर बोलने के लिए हिम्मत मांगता है बंधु आपकी हिम्मत को बंदन करते हैं
हर कोई माखन चोर की तरह बचपन में चोरी करता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, बचपन के गुर जवानी में भी काम आते हैं।
आप तो लिखाड़ नंबर वन हैं गुरु
हमे तो आपके कौशल का आज पता चला, लेकिन यार चलते-चलते हमे भी लपेटे मे ले लिए, सोचा होगा एक दो भले- हा हा हा
बहुत खूब ...........बहुत ही अच्छी प्रस्तुती....
चलो कम से कम आपने स्वीकार किया कि आप मेरे मौसेरे भाई हैं। छोटे भाई होने के नाते हमारा स्नेह हमेशा आप के साथ है।
वैसे चोरी करना अपराध नहीं है, अपराध है चोरी का पकड़ा जाना!
आप तो लिखाड़ नंबर वन हैं
चोर-चोर का शोर मचा कर करें लोग बदनाम कौन यहां पर चोर नही है सबका है यही काम
अरे काहे खुद को चोर कह रहे हैं मित्र, लेखक कभी चोर नहीं होता
अवधिया जी ठीक कह रहे 'चोरी करना अपराध नहीं है, अपराध है चोरी का पकड़ा जाना' :-)
बी एस पाबला
अरे बाप रे यहां तो चोरों की पुरी जमात मौजुद है........
अवधिया जी ठीक कह रहे 'चोरी करना अपराध नहीं है, अपराध है चोरी का पकड़ा जाना'
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