अजय झा जी से हो गई चर्चा - हुआ महज 3.60 पैसे ही खर्चा
अजय झा जी के ब्लाग बिरादरी से अलविदा करने के किस्से के बाद हम भी लगातार उनसे फोन पर सपंर्क करने की कोशिश कर रहे थे। अचानक कल रात को बीएस पाबला के ब्लाग में नजरें पड़ीं तो मालूम हुआ कि झा जी के ब्लाग बिरादरी को छोडऩे का वास्तविक झोल क्या है। हमने तब सोचा यार चलो एक बार फिर से झा जी के मोबाइल पर कोशिश करके देखते हैं। कोशिश की फोन नहीं लगा। हमने पाबला जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि झा जी तो आन लाइन है। लेकिन हमें चेटिंग का न तो कोई शौक है और न ही ये हमारी समझ में आती है। ऐसे में हमने फिर से उनका फोन खटखटा दिया। इस बार फोन उठाया गया और उधर से संभवत: भाभी जी की आवाज आई कि झा जी किसी काम से नीचे गए हैं। आधें घंटे में आ जाएंगे। हमने 20 मिनट बाद ही फिर से फोन खटखटा दिया। इस बार झा जी आवाज हमारे कानों में टकराई।
फिर शुरू हुआ बातों का सिलसिला। ये हमारा झा जी से पहला वार्तालाप था। उनसे ब्लाग बिरादरी में उनके नाम से फैली गलतफहमी से शुरू हुई बातें उनके छत्तीसगढ़ आने की बातों से लेकर उनके हमें दिल्ली आने के आमंत्रण के साथ कोई 6 मिनट के समय में काफी बातें हो गईं। उन्होंने हमें दिल्ली आने कहा तो हमने उनको बताया कि हम करीब 23 साल पहले 1986 में और फिर इसके दो साल बाद 1988 में भी दिल्ली सायकल से गए थे। हमने दो बार उत्तर भारत की सायकल यात्रा की है, इसके बाद दिल्ली जाने का मौका नहीं लगा है। हमने उनको बताया कि अपनी सायकल यात्रा के संस्मरण हम ब्लाग में लिखना चाहते हैं, पर समय नहीं मिल पाता है, ऐसे में झा जी ने तपाक से कहा कि राज भाई आप नहीं लिख पा रहे हैं तो हमें कहें हम लिख देगे। उनका पहली बार में इतना अपनापन देखकर ही हमें समझ में आ गया कि क्यों कर ब्लाग बिरादरी उनके ब्लाग जगत को अलविदा कहने से व्याकुल हो गई थीं।
अंत में हम वह बात तो बताना भूले ही रहे हैं जो बात हमने हेडिंग में लिखी है। यानी झा जी से हुई चर्चा में हमें मात्र 3 रुपए 60 पैसे लगे। हमने उनसे महज 6 मिनट बातें कीं और इन 6 मिनट में काफी बातें हो गईं। उनसे लगातार बातें करने का वादा करके हम प्रेस के काम में जुट गए। मन तो और बातें करने का था, पर प्रेस के काम के कारण संभव नहीं था। लेकिन झा जी से बातें करना अच्छा लगा। वास्तव में अपनी ब्लाग बिरादरी के मित्रों से संवाद करना कितना सुखद हो सकता है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। हम तो चाहते हैं सभी ब्लागर मित्रों को समय निकालकर एक-दूसरे से बातें करते रहना इससे प्यार और स्नेह बढ़ता है।
16 टिप्पणियाँ:
हमने उनसे बात तो नहीं की , पर उनके आत्मीय स्वभाव का अंदाज तो सहज ही लग जाता है !
आभार ।
अजय बेहतरीन इंसान हैं। चुनौतियाँ स्वीकार करने और उन्हें पूरा करने वाले।
हमारे समाज मे "ब्लागर बिरादरी" नामक एक नई कौम का विकास हो रहा है। आपसी सम्पर्क से आत्मीयता बढती है और आभासी दु्निया से बाहर निकल कर एक दुसरे को समझने का मौका मिलता है, चलो 3.60 की बात चीत सार्थक रही।
झा जी से हमारी रोज़ बात होती है.....
अच्छी रचना। बधाई।
बात करते हुए साकार होना
इसी आनंद को लेने और
देने के लिए मैं मुंबई में हूं
और 9 दिसम्बर तक रहूंगा
नंबर है 09404148870
राज भाई ....
मुझे तो अब लगने लगा है कि मेरे अंदर ही ....कहीं एक राजकुमार ग्वालानी, खुशदीप जी, मिथिलेश दूबे जी, पाबला जी, द्विवेदी, समीर जी, अदा जी , महफ़ूज़ अल जी, मशाल जी, ललित शर्मा जी शास्त्री जी, तनेजा जी. वाचस्पति भाई, निर्मला कपिला जी ...और तमाम नाम जो मेरे आसपास हैं ..सब रहते हैं ....और ऐसा क्यों लगता है ....ये अब ठीक ठीक समझ आ रहा है ..आपसे संवाद मुझे याद दिलाता रहेगा कि ....मुझे जल्द ही आपके गले लगना है .....जादू की झप्पी के लिए
ajay ji aapka swagat hai
बात तो हमारी भी अजय जी से ६ मिनट ही हुई लेकिन 3 रुपए 60 पैसे मे नहीं...वो तो हम आकर ही उनसे वसूलेंगे...सिर्फ डिफरेन्स याने 3 रुपए 60 पैसे घटा कर... :)
मस्त लगा उनसे बात करके और आपकी उनसे हुई बात जानकर. :)
तेरे चक्कर मे राजकुमार झा साब मेरा नाम लिखना ही भूल गये।
बात तो हमे भी करनी है
हा हा हा अनिल भाई ठीक कह रहे हैं राज भाई..
अनिल भाई आपके लिए दिल के अंदर अलग से एक फ़्लैट बना रखा है
ललित शर्मा जी ने बिलकुल सही कहा कि" हमारे समाज मे "ब्लागर बिरादरी" नामक एक नई कौम का विकास हो रहा है"...
झा जी आपकी जादू की झप्पी का हमें भी बेताबी से इंतजार है। वैसे हम लोग यानी हम और ललित शर्मा जी आज भिलाई के ब्लागरों से जादू की झप्पी लेने जा रहे हैं, वहां जमेगी एक छोटी सी महफिल आज शरद कोकास जी के यहां। कोकास जी के यहां खाने की दावत की सूचना हमें बीएल पाबला जी से मिली है, शर्मा जी के आते ही हम निकल पडेंग़े भिलाई यात्रा पर.. वहां से लौटने के बाद बचाएंगे की क्या हुआ।
अनिल भाई कोई आपको भूल जाए यह कैसे संभव है। देखिए झा जी ने आपके लिए अपने दिल में एक अलग ही फ्लैट बना रखा है। आपके चाहने वालों की कमी नहीं है।
वाह अनिल भाई-आपको कैसे भुला जा सकता है, हमारे लिए लो झा जी ने "भाऊचाल" मे रहने की व्यवस्था है और आपके लिए तो अलग से फ़्लैट बिसा लिया है। बधाई हो
हे भगवान1तीन रुपया साठ पैसा मे इतनी टिप्पणी। क्या जादु है?
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