तेरे बिना अब जिया जाता नही...
चल दी तुम साथ छोड़कर मझधार में हमारा
किनारे तक पहुंचाने का वादा निभाया नहीं।।
कश्ती में ही संवार मझधार में खड़े हैं हम
किसी ने मंजिल का रास्ता बताया नहीं।।
किसे बताएं हम अपने दिल के दर्द को
कैसे छुपाएं हम अपने छलकते अश्क को।।
किसे दिखाएं अपने रिस्ते जख्म को
कैसे भूलाएं हम तेरे मोहब्बत के गम को।।
हर पल तुम ही तुम दो दिल में मेरे
उफ.. कितना दर्द है बिन तेरे जीने में मेरे।।
तुम्हारी जुदाई का गम अब सहा जाता नहीं
तेरे बिना अब जिया जाता नहीं।।
(हमारी यह कविता भी 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है)
5 टिप्पणियाँ:
बीस साल पहले तो ..कातिल थे आप ..इतना दर्द ..इतनी कशिश ....भाई मियां ...माजरा क्या था ..
20 साल पहले तो कमाल की कविता लिखी है बधाई
वाह बहुत ही लाजवाब रचना.
रामराम.
लाजवाब रचना.
कमाल की कविता
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