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मंगलवार, अगस्त 31, 2010

1800 पोस्ट के करीब

हम अब 1800 पोस्ट के करीब पहुंच गए हैं। हमने ब्लाग जगत में जब पिछले साल फरवरी से खेलगढ़ के जरिए कदम रखा था तब हम नहीं जानते थे कि हमें ब्लाग बिरादरी का इतना ज्यादा प्यार मिलेगा कि हमारी उंगलियां कम्प्यूटर पर एक्सप्रेस की तरह दौडऩे लगेंगी। आज सबसे ज्यादा पोस्ट हमारी खेलगढ़ में 1110 हो गई है। इसके बाद प्रारंभ किए हमारे ब्लाग राजतंत्र में हमने अब तक 568 पोस्ट लिखी है। एक सांझा ब्लाग ब्लाग 4 वार्ता में हमने 29 पोस्ट लिखी थी। अब एक और सांझा चर्चा के ब्लाग ब्लाग चौपाल में हमने अब तक 85 पोस्ट लिखी है। कुल मिलाकर अब हमारी पोस्ट 1792 तक पहुंच गई है। बस दो दिनों के अंदर ही हमारी पोस्ट का आंकड़ा 1800 के पार हो जाएगा। ब्लागर मित्रों के साथ हमारे पाठकों का जो हमें प्यार, स्नेह और आर्शीवाद मिला है उसके लिए हम सबके आभारी हैं, और आशा करते हैं कि ऐसा ही प्यार हमेशा बनाए रखेंगे।

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सोमवार, अगस्त 30, 2010

ब्लाग आखिर क्या है?

अचानक हम यह सवाल इसलिए कर रहे हैं कि हमारे ब्लाग में लगातार फर्जी आईडी बनाकर आने वाले एक सज्जन पतित पावन का कहना है कि ब्लाग कोई डायरी नहीं है जिसमें जो मर्जी आए लिख दिया। जहां तक हमारा मानना है कि ब्लाग अपनी एक उस निजी डायरी की तरह है जिसे हम सार्वजनिक कर सकते हैं। ब्लाग में ब्लागर अपने मन की व्यथा, दोस्तों, रिश्तोंदारों के बीच हंसी-खुशी गुजारे गए लम्हों  के साथ अपनी यात्रा के संस्मरण के साथ अगर चाहे तो अच्छे लेख, कविता या फिर वो सब जिनके बारे में उन्हें लगता है कि उनका लिखा हर किसी के लिए है लिख सकता है। ब्लाग जगत में तो कई छोटे-छोटे ब्लागरों के ब्लाग हैं जिनमें उनकी हंसती-बोलती तस्वीरें डाली जाती हैं। ब्लाग एक तरह से ब्लागर की निजी संपति जैसा होता है उसका वह जैसा चाहे इस्तेमाल कर सकता है।
क्या हम कुछ गलत कह रहे हैं, हमारे ब्लागर मित्र जरूर बताए।
न जाने क्यों कर लोगों को फर्जी आईडी बनाकर लोगों को परेशान करने में मजा आता है। हमें मजबूरी में इन्हीं पतित पावन के कारण अपने ब्लाग में मॉडरेशन लगाना पड़ा है, वरना हम कभी इसके पक्ष में नहीं थे। जिनका कोई वजूद ही नहीं है ऐसे लोगों के सवालों का जवाब यूं तो देना नहीं चाहिए, लेकिन चुप बैठने का मतलब यह होगा कि हम ऐसे लोगों के या तो सवाल का जवाब नहीं दे सकते हैं, या फिर हम डर गए। एक बात हम बता दें मिस्टर पतित पावन की अब हम आपकी किसी भी टिप्पणी को प्रकाशित करने के लिए बाध्य नहीं है। अगर आप अपने असली वजूद के साथ आते तो अब तक आपकी अनाप-अनाश टिप्पणियों के कारण आपके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट कर चुके होते।

हमारे ब्लागर मित्र ब्लाग को क्या मानते हैं जरूर बताएं...

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रविवार, अगस्त 29, 2010

गम भूलाने जिगर में होना चाहिए दम


सब जानते हैं पीने में है खराबी
फिर भी न जाने कैसे बन जाते हैं शराबी
क्या सच में गम भूला सकती है शराब
कोई तो बताएं हमें भी जनाब
हम कहते हैं शराब में नहीं इतना दम
जो भूला सके किसी के भी गम
गम भूलाने जिगर में होना चाहिए दम
न जाने क्यों लोग पीते हैं इसके लिए रम
जिनके मन में होता है वहम
उन पर कभी नहीं करता भगवान रहम
कुछ तो करो पीनो वालों शरम
मत फैलाओं लोगों में झूठे भरम 

एक ताजा तरीन रचना पेश है...

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शनिवार, अगस्त 28, 2010

जब दोस्त ही पीछे से वार करें तो क्या करें

अचानक एक बात सामने आयी कि हम ब्लाग जगत में जिसे अपना दोस्त समझते थे, वही महाशय पीछे से वार कर रहे थे। हमें जब यह बात मालूम हुई तो हमें यकीन नहीं हुआ। लेकिन यह बात सच है। बहरहाल हमें इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है, वैसे भी हम जानते हैं कि आज के जमाने में किसी पर भी आंखें बंद करके भरोसा करना बेकार है। उसने जो किया वह भुगतेगा, हमारा क्या बिगाड़ लेगा वह। चलिए यह तो अच्छा हुआ कि उसकी असलीयत जल्द सामने आ गयी, वैसे आज के जमाने में दो मुंहे लोगों की कमी नहीं है। ऐसे लोगों से सभी ब्लागर मित्रों को सावधान रहना चाहिए।

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शुक्रवार, अगस्त 27, 2010

डोपिंग के दोषी का अवार्ड छिनवाया

हमारी सक्रियता से सही खिलाड़ी को मिला पुरस्कार

प्रदेश के खेल पुरस्कारों में इस बार शहीद कौशल यादव पुरस्कार डोपिंग के एक दोषी खिलाड़ी सिद्धार्थ मिश्रा को दे दिया गया था। लेकिन हमारी सक्रियता के कारण अंतत: यह पुरस्कार इस खिलाड़ी से छिनकर सही खिलाड़ी दल्लीराजहरा की अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलक अनिता शिंदे को दिया गया।
इस बार जब राज्य के खेल पुरस्कार हमारी सक्रियता की वजह से खेलमंत्री लता उसेंडी से रक्षाबंधन के दिन अवकाश होने के बाद भी घोषित कर दिए तो पुरस्कारों की सूची में डोपिंग के आरोपी सिद्धार्थ मिश्रा का नाम देखकर हमारे साथ हमारे खेल पत्रकार साथी भी चकित रह गए। नेशनल लुक के पत्रकार कमलेश गोगिया ने कहा कि भईया यह तो गलत हो गया है, इसको हम लोगों को रोकना चाहिए। हम भी यह सोच रहे थे लेकिन हमारा पुराना अनुभव कह रहा था कि खेल विभाग के आला अधिकारी हमारी किसी बात को मानने वाले नहीं हंै। ऐसे में हमने सोचा कि किसी भी तरह से राज्य के सम्मानित पुरस्कार को गलत हाथों में जाने से रोकना है।  रक्षाबंधन के दिन हम अपने गृहनगर भाटापारा राखी बंधवाने जा रहे थे। लेकिन हमारे मन में लगातार एक गलत खिलाड़ी को पुरस्कार दिए जाने की बात आ रही थी। हमने रास्ते में आते-जाते कई लोगों को फोन करके सबूत जुटाने का काम प्रारंभ किया कि जिस खिलाड़ी को पुरस्कार के लिए चुना गया है, वह गलत है। प्रदेश भारोत्तोलन संघ के पदाधिकारी लगातार झूठ बोलते रहे कि ऐसा कोई मामला नहीं है। एक अधिकारी ने तो यहां तक कहा कि भईया क्यों फालतू में बात को तूल रहे हैं, जिस खिलाड़ी की  आप बात कर रहे हैं उस खिलाड़ी का एक टेस्ट जरूर फेल हो गया था, लेकिन अभी मामला पूरी तरह से खुला नहीं है। इस खिलाड़ी के दूसरे टेस्ट की रिपोर्ट 31 अगस्त को आएगी उसके बाद देखा जाएगा। हमने कहा तब तक तो पुरस्कार मिल चुका रहेगा। उस पदाधिकारी ने कहा तो क्या होगा, पुरस्कार तो बाद में वापस हो सकता है।
हमने कहा भाई साहब पुरस्कार वापस होगा लेकिन एक तो शासन को एक लाख रुपए के पुरस्कार राशि का चुना लगेगा और दूसरा यह कि उस खिलाड़ी के स्थान पर जिस पात्र खिलाड़ी को पुरस्कार मिलना था वह खिलाड़ी भी वंचित हो जाएगा। हमने ठान लिया कि हम ऐसा होने नहीं देंगे। हमने राष्ट्रीय फेडरेशन के महासचिव सहदेव यादव का नंबर कहीं से जुगाड़ा। इसके बाद हमने उनके नंबर पर रक्षाबंधन के दिन ही फोन लगाया, पर बात नहीं हो सकी। ऐसे में हमने सोचा चलो यार दूसरे दिन इस मामले को देखते हैं। दूसरे दिन संयोग से यह हुआ कि दल्लीराजहरा की एक पात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अनिता शिंदे रायपुर का पहुंचीं और उन्होंने हमें फोन करके बताया कि वह जूनियर विश्व कप में खेली हैं और पुरस्कार की पात्र होने के बाद भी उनको पुरस्कार न देकर डोपिंग के दोषी खिलाड़ी को पुरस्कार दे दिया गया है। इस खिलाड़ी ने हमसे मदद का आग्रह किया। हमने इनसे कहा कि हम मदद जरूर करेंगे। यह खिलाड़ी अपने पिता और कोच उत्तम शिंदे के साथ खेल विभाग आई थीं।
हम खेल विभाग गए और इस खिलाड़ी से बात की। इस खिलाड़ी अनिता शिंदे ने हम बताया कि राज्य के खेल पुरस्कारों की सूची में मैं अपना नाम न देखकर चकित रह गई कि यह कैसे हो गया। सबसे ज्यादा आश्चर्य मुझे इस बात का हुआ कि जिस खिलाड़ी को डोप टेस्ट में दोषी पाया गया था, उसे पुरस्कार के लिए चुना गया था। ऐसे में मैं रात भर नहीं सो पाई और सुबह होते ही अपने पापा जो कि मेरे कोच भी हैं उनके साथ यहां खेल विभाग आई हूं ताकि मैं अपना दावा पेश कर सकूं और यह जान सकूं कि आखिर मुझे पुरस्कार के लायक क्यों नहीं समझा गया। अनिता शिंदे ने बताया कि जहां उनके नाम दल्ली राजहरा में पिछले साल 17 से 20 सितंबर तक हुई राष्ट्रीय चैंपियनशिप में रजत पदक है, वहीं उन्होंने पिछले साल भारतीय टीम से जूनियर विश्व कप में रोमानिया में हिस्सा लिया था। यह स्पर्धा वहां पर 12 से 21 जून तक हुई थी। इस स्पर्धा में खेलने के कारण उनको उम्मीद थी कि उनको ही शहीद कौशल यादव पुरस्कार मिलेगा।  हमारे साथ जब अनिता शिंदे ने अपने पापा और कोच उत्तम शिंदे के साथ खेल संचालक जीपी सिंह ने बात की तो यह बात सामने आई कि अनिता शिंदे को विश्व कप में खेलने का जो प्रमाणपत्र मिला है उससे जूरी के सदस्य समझ ही नहीं पाए। खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि जूरी के एक सदस्य ने समिति के सामने यह बात रखी कि प्रमाणपत्र में अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलन फेडरेशन के अध्यक्ष का नाम तो लिखा है, पर उनके हस्ताक्षर नहीं हैं। ऐसे में इसके बारे में जानकारी लेने के लिए प्रदेश संघ के सचिव सुखलाल जंघेल से बात की गई तो उन्होंने जूरी को बताया भी कि विश्व कप में भागीदारी करने वाले खिलाडिय़ों के प्रमाणपत्रों में हस्ताक्षर नहीं किए जाते हैं। इतना सब जानने के बाद भी जूरी ने यह नहीं माना कि यह खिलाड़ी विश्व कप में खेली हैं और इनको दावेदारों से अलग करके राष्ट्रीय स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाले डोपिंग में दोषी पाए गए खिलाड़ी सिद्धार्थ मिश्रा का नाम पुरस्कार के लिए चुन लिया गया। तब जूरी को जरूर यह बात मालूम नहीं थी कि श्री मिश्रा डोप टेस्ट में दोषी पाए गए हैं। अनिता शिंदे ने भी खेल संचालक के सामने यह बात रखी कि श्री मिश्रा तो डोप टेस्ट में दोषी पाए गए हैं तो फिर उनको पुरस्कार कैसे दे दिया गया। अनिता शिंदे से यह बात जरूर रखी लेकिन सबूत उनके पास भी नहीं था।
राष्ट्रीय फेडरेशन के सचिव से करवाई बात
हम यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि खेल संचालक यह बात कभी नहीं मानेंगे कि डोप टेस्ट के खिलाड़ी को उनके विभाग ने पुरस्कार के लिए चुन लिया है। कारण साफ था एक तो प्रदेश संघ ने खेल विभाग को अंधेरे में रखा था दूसरे खेल विभाग अपने नियमों से मजबूर था कि जब तक कोई सबूत नहीं होता है वे किसी खिलाड़ी को पुरस्कार से वंचित नहीं कर सकते हैं। खेल संचालक के दफ्तर में सभी खेल पत्रकार पहुंच गए थे। ऐसे में हमने तत्काल राष्ट्रीय फेडरेशन के सचिव सहदेव यादव को फोन लगाया और उनसे जब पूछा कि क्या छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी सिद्धार्थ मिश्रा डोप टेस्ट में फेल हो गए थे तो उन्होंने बताया कि यह बात ठीक है कि श्री मिश्रा डोप टेस्ट में फेल ही नहीं हुए थे बल्कि उनको निलंबित भी किया गया है और 50 हजार रुपए का जुर्माना राज्य संघ पर लगाया गया है। ऐसे में हमने तुरंत उनकी बात खेल संचालक से करवाई। श्री यादव से जानकारी लेने के साथ खेल संचालक ने उनके वे पत्र फैक्स करने के लिए कहे जो उन्होंने प्रदेश संघ को भेजे थे। इसी के साथ पात्र खिलाड़ी अनिता शिंदे के विश्व कप में खेलने की पुष्टि करने वाला पत्र भी मंगवाया।
दूसरे दिन हम जिस अखबार दैनिक हरिभूमि में काम करते हैं उसी के साथ सारे अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया कि किस तरह से राज्य संघ के कारण शहीद कौशल यादव पुरस्कार के लिए एक डोपिंग के दोषी का चयन कर लिया गया है।
इधर राष्ट्रीय फेडरेशन से पत्र आने के बाद खेल विभाग ने फिर से पुरस्कारों की जूरी की दूसरे दिन यानी 26 अगस्त को बैठक बुलाई और इस बैठक में डोपिंग के दोषी खिलाड़ी को बाहर का रास्ता दिखाते हुए पात्र खिलाड़ी अनिता शिंदे को पुरस्कार देने का फैसला किया। यह सब इसलिए संभव हो सका क्योंकि एक तो हम और हमारे सारे खेल पत्रकार सक्रिय थे और दूसरे यह कि इस बार खेलमंत्री लता उसेंडी ने भी हमारे आग्रह पर सक्रियता दिखाते हुए खेल पुरस्कारों की सूची जल्दी जारी कर दी थी, अन्यथा आज तक खेल विभाग पुरस्कार दिए जाने एक एक या दो दिन पहले ही पुरस्कार वालों की सूची जारी करते रहा है। कई बार ऐसा हुआ है कि कुछ नामों को लेकर विरोध रहा है, लेकिन समय न होने के कारण हम मीडिया वाले भी कुछ नहीं कर पाते थे। लेकिन जब से प्रदेश में खेलमंत्री लता उसेंडी बनी है उनकी ऐसी मानसिकता रही है कि कुछ भी गलत नहीं होना चाहिए। बहरहाल हमें इस बात की खुशी है कि हमारी सक्रियता से एक पुरस्कार गलत हाथों में जाने से बच गया।

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गुरुवार, अगस्त 26, 2010

डोपिंग के दोषी को अवार्ड

डोपिंग में दोषी पाए गए भिलाई के भारोत्तोलक को शहीद कौशल यादव पुरस्कार दिए जाने के बाद अब मामला सामने आने पर इस खिलाड़ी के स्थान पर दूसरे खिलाड़ी को पुरस्कार देने की तैयारी में खेल विभाग जुट गया है। खेल विभाग को अंधेरे में रखते हुए प्रदेश संघ ने यह बात बताई ही नहीं कि खिलाड़ी डोपिंग में दोषी पाया गया है और उसका नाम पुरस्कार के लिए भेज दिया। इधर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अनिता शिंदे ने भी गलत खिलाड़ी को पुरस्कार दिए जाने की बात कहते हुए खेल विभाग के सामने पुरस्कार की पात्र होने का दावा पेश किया है।
प्रदेश के खेल पुरस्कारों की सूची जैसे ही २४ अगस्त को जारी हुई और इस सूची में शहीद कौशल यादव पुरस्कार के लिए भिलाई के भारोत्तोलक सिद्धार्थ मिश्रा का नाम सामने आया, वैसे ही मीडिया के साथ इस खेल से जुड़े लोग सक्रिय हो गए, क्योंकि सभी को मालूम था कि सिद्धार्थ मिश्रा अप्रैल में डोपिंग में दोषी पाए गए थे। इधर जैसे ही दल्लीराजहरा की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अनिता शिंदे को मालूम हुआ कि पुरस्कार उनके स्थान पर सिद्धार्थ मिश्रा को दिया गया है तो वह भी २५ अगस्त की सुबह खेल विभाग पहुंच गयीऔर खेल संचालक जीपी सिंह के सामने अपनी बात रखी।
प्रदेश संघ ने छुपाई सच्चाई
इस सारे मामले में प्रदेश भारोत्तोलन संघ की भूमिका ही संदिग्ध है। संघ को जानकारी होने के बाद उसने खेल विभाग से जानकारी छुपाते हुए सिद्धार्थ मिश्रा का नाम पुरस्कार के लिए भेज दिया। इस बारे में संघ के महासचिव सुखलाल जंघेल अब ही यही कह रहे हैं कि उनको इस मामले की कोई जानकारी नहीं है, जबकि राष्ट्रीय फेडरेशन के सचिव सहदेव यादव ने आज जो जानकारी खेल विभाग के मांगने पर खेल संचालक जीपी सिंह को भेजी है, उसमें इस बात का साफ उल्लेख है कि प्रदेश संघ के सचिव को अप्रैल में ही यह बता दिया गया था कि श्री मिश्रा डोप टेस्ट दोषी पाए गए हैं और उन पर ५० हजार का जुर्माना किया गया है। इस बारे में संघ के कार्यकारी अध्यक्ष पी. रत्नाकर का कहना है कि श्री मिश्रा पहले टेस्ट में दोषी पाए गए हैं अभी दूसरे टेस्ट की रिपोर्ट ३१ अगस्त को आएगी।
सिद्धार्थ डोप टेस्ट में दोषी था
सिद्धार्थ मिश्रा डोप टेस्ट में दोषी पाया गया था या नहीं इसके बारे में जानकारी लेने जब राष्ट्रीय फेडरेशन के सचिव सहदेव यादव से हरिभूमि ने संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वह दोषी भी पाया गया था और इसके बारे में प्रदेश संघ को लिखित में जानकारी भी भेजी गई। उन्होंने बताया कि एशियन चैंपियनशिप के लिए बेंगलुरु में १५ फरवरी से एक अप्रैल तक प्रशिक्षण शिविर लगा था इसी शिविर के समय खिलाडिय़ों का डोप टेस्ट किया गया था जिसमें सिद्धार्थ मिश्रा भी दोषी पाया गया था जिसके कारण उनको अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने नहीं भेजा गया था।
बदला जाएगा पुरस्कार
इस मामले में खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि खेल विभाग को प्रदेश संघ ने गलत जानकारी दी जिसके कारण यह गलती हुई है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय फेडरेशन से सारी जानाकारी मंगा ली गई है, इसे शासन के सामने रखते के बाद पुरस्कार चयन समिति की बैठक करके दूसरे पात्र खिलाड़ी को पुरस्कार दिया जाएगा। उन्होंने पूछने पर कहा कि अगर अनिता शिंदे पात्र हैं तो उनको ही पुरस्कार मिलेगा।
जूरी की समझ पर सवाल
इधर अनिता शिंदे के मामले में पुरस्कार चयन समिति की जूरी की समझ पर सवाल खड़े हो गए। अनिता शिंदे को इसलिए पुरस्कार के योग्य नहीं माना गया क्योंकि उनके विश्व कप में खेलने वाले प्रमाणपत्र में अंतरराष्ट्रीय फेडरेशन के अध्यक्ष और सचिव के हस्ताक्षर नहीं थे। इस बारे में जूरी के सामने प्रदेश संघ के सचिव ने खुलासा भी कर दिया था कि भागादारी करने वाले खिलाडिय़ों के प्रमाणपत्रों में हस्ताक्षर नहीं रहते हैं जिनको पदक मिलते हैं उनके ही प्रमाणपत्रों में हस्ताक्षर होते हैं। लेकिन जूरी ने इस बात जो जहां नहीं माना वहीं जूरी ने यह भी जरूरी नहीं समङाा कि राष्ट्रीय फेडरेशन से पूछा जाए कि यह खिलाड़ी विश्व कप में खेली है या नहीं। आज जब खिलाड़ी ने अपना दावा खेल संचालक के सामने रखा तो खेल संचालक ने इस बारे में राष्ट्रीय फेडरेशन से पत्र मंगवाया है। ऐसे में अब सिद्धार्थ मिश्रा के स्थान पर अनिता शिंदे को पुरस्कार मिलने की संभावना है।

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मंगलवार, अगस्त 24, 2010

खिताब भारतश्री का, काम हवलदार का

मध्यमवर्गीय परिवार के होने के बाद भी हवलदार रहते हुए पी. सालोमन ने एक बार नहीं बल्कि दो बार पश्चिम भारतश्री के साथ भारतश्री का खिताब अपने नाम किया है। इतना ही नहीं राज्य का सर्वोच्च खेल पुरस्कार शहीद राजीव पांडे भी उन्हें मिल चुका है, लेकिन इतना सब होने के बाद भी पुलिस विभाग पी. सालोमन को प्रमोशन के लायक नहीं मानता है। लंबे समय से प्रमोशन की राह देख रहे सालोमन को अब उम्मीद है कि संभवत: दूसरी बार भारतश्री का खिताब जीतने के बाद उनको प्रमोशन के लायक समङाा जाए।
अपने राज्य में खेल और खिलाडिय़ों को बढ़ाने के लिए प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह तो काफी कुछ कर रहे हैं, लेकिन इतना सब होने के बाद भी अपने ही घर में उपेक्षित होने वाले खिलाडिय़ों की कमी नहीं है। अब लगातार दूसरी बार भारतश्री का खिताब जीतने वाले भिलाई के पी. सालोमन की ही बात की जाए। २००५-०६ में राष्ट्रीय स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने के बाद राज्य के सर्वोच्च खेल सम्मान शहीद राजीव पांडे से सम्मानित होने के बाद वे लगातार यह प्रयास कर रहे हैं कि उनको पुलिस विभाग में प्रमोशन मिल जाए, लेकिन अब तक उनको प्रमोशन नहीं दिया गया है। यह वास्तव में अपने राज्य का दुर्भाग्य है कि भारतश्री का खिताब दो बार जीतने वाले खिलाड़ी को हवलदार का काम करना पड़ रहा है। जानकारों की माने तो कायदे से उनको कम से कम अपने राज्य में तो सब इंसपेक्टर तो बना ही देना चाहिए। वैसे सालोमन अगर पंजाब में होते जरूर उनको अब तक इंसपेक्टर बना दिया गया होता। लेकिन यहां वे एक प्रमोशन के लिए तरस गए हैं।
सालोमन के खाते में इस समय राष्ट्रीय स्तर पर पांच स्वर्ण पदक हैं। इनमें से तीन तो उन्होंने पिछले साल जीते थे। एक स्वर्ण फेडरेशन कप में और दो राष्ट्रीय स्पर्धा में जीते। यह स्पर्धा जब भिंवाड़ी में हुई तो वहां दो स्वर्ण के साथ सालोमन ने पश्चिम भारतश्री और भारतश्री का खिताब भी जीता। भिंवाड़ी का ही इतिहास सालोमन ने रायपुर में २१ और २२ अगस्त को दोहराया है। मध्यमवर्गीय परिवार के होने के नाते सालोमन एक राष्ट्रीय बॉडी बिल्डिर को जितनी टाइट मिलनी चाहिए उसका इंतजाम भी नहीं कर पाते हैं। उनको टाइट के लिए विभाग से आर्थिक मदद देने का आदेश भी हो गया है लेकिन यह मदद उनको मिल ही नहीं रही है। पूर्व में एक हजार रुपए मासिक देने का आदेश हुआ था, यह राशि तो कभी नहीं मिल सकी, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण जीतने के बाद इस आदेश में संशोधन करते हुए इस राशि को दो हजार रुपए मासिक किया गया है, पर यह राशि भी एक बार भी नहीं मिली है। जहां तक टाइट का सवाल है तो एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को डाइट के लिए प्रतिदिन एक हजार रुपए खर्च करना पड़ता है।

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सोमवार, अगस्त 23, 2010

हमें लगा हमने जन्नत पाई...

गुलाब से भी सुंदर तुम्हारी कंचन काया
तुम्हें देखकर गुलों का शबाब भी शरमाया।।
जबसे हमने तुम्हारा प्यारा पाया
सबने हमें खुशनसीब बताया।।
जब भी तुम हमारे पहलू में आई
हमें लगा हमने जन्नत पाई।।
तुम्हें देख दिल की कली मुस्काई
हमने सारे जहांन की खुशियां पाईं।।
क्या खूब है खुदा की खुदाई
जिसने तुमसी हसीना हमें दिलाई।।

नोट: यह कविता 20 साल पुरानी डायरी की है।

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रविवार, अगस्त 22, 2010

ये पतित पावन है या रावण ...

हमारे ब्लाग में कोई बंदा काफी समय से पतित पावन के नाम से फर्जी आईडी बनाकर कुछ भी अनाप-शनाप टिप्पणियां कर रहा है। इनकी टिप्पणियों से ही परेशान होकर हमें मॉडरेशन का सहारा लेना पड़ा। इसके पहले भी कई ऐसे बेशर्म फर्जी आईडी से आए हैं, लेकिन इस पतित पावन जैसा बेशर्म हमने नहीं देखा है। हमें समझ में नहीं आता है कि ये पतित पावन है या रावण जो नहा-धोकर बेवजह हमारे पीछे पड़े हुए हैं। अरे भाई साहब या फिर बहनजी आप जो भी हैं, अगर आप हमारे दुश्मन हैं और दुश्मनी करने का दम रखते हैं तो अपने असली नाम और पहचान के साथ सामने आए न। अगर आप सामने आकर बात करें तो हम आपकी हर बात का जवाब देने को तैयार हैं। अगर सामने आने की हिम्मत नहीं है तो हम ऐसे लोग से न तो बात करना पसंद करते हैं और न ही इनकी बातों का जवाब देना।
आपकी टिप्पणी को प्रकाशित करना हमारे लिए जरूरी नहीं है, क्योंकि ब्लाग हमारा है हमें जो लगेगा कि ठीक है, उसी को प्रकाशित करेंगे आप अपनी असली पहचान के साथ सामने आकर टिप्पणी करें फिर उस टिप्पणी में हमारी कितनी भी आलोचना हो या फिर आप चाहे गालियां दें हम उसे जरूर प्रकाशित करेंगे यह हमारा वादा है। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि आपने अगर अपनी असली पहचान के साथ कुछ भी उलटा सीधा लिखा तो उसका अंजाम क्या हो सकता है। दरअसल में आप एक डरपोक और वाहियात किस्म के इंसान हैं। या फिर कोई सनकी हैं जिनको किसी को भी परेशान करने में मजा आता है। हम जानते हैं कि आप कहां से आते हैं। हम यह भी जानते हैं कि आपकी मानसिकता क्या है।
आप बार-बार कहते हैं हम ऐसा कौन सा महान काम कर रहे हैं जिससे हमें रोकने का काम किया जा रहा है। वैसे तो कायदे से आप जैसे इंसान की इस बात का जवाब नहीं देना चाहिए, फिर भी हम बता दें कि हम कोई महान काम तो नहीं लेकिन ब्लाग जगत में फैली गुटबाजी को समाप्त करने की एक पहल पर काम कर रहे हैं। हमें तो लगता है जिनको यह पहल रास नहीं आ रही है उन्हीं में से आप भी एक हैं। लेकिन किसी को हमारी बात पसंद आए या न आए इससे हमें क्या। हमें लगा कि ब्लाग जगत बिना वजह गुटबाजी में अपना समय खराब कर रहा है। अगर गुटबाजी ही करनी है तो एकता की गुटबाजी करें। हम सभी को एक होकर ब्लाग जगत में कुछ अच्छा करने की दिशा में सोचना चाहिए। लेकिन कोई सोचेगा कैसे बीच में ये फर्जी आईडी बनाकर पतित पावन जैसे रावण जो सामने आ जाते हैं। अब ऐसे रावणों से निपटना तो हर किसी के बस में नहीं है न। खैर ऐसे रावणों को मारने वाले रामों की भी अपने देश में कमी नहीं है। भगवान ऐसे रावणों का भी भला करें जो दूसरों का हमेशा बुरा चाहते हैं।
तो मिस्टर पतित पावन हम फिर कह रहे हैं कि अगर दम है तो अपने असली वजूद के साथ सामने आकर बात करें। कभी पतित पावन, कभी तहसीलदार तो कभी मूलचंदानी  या फिर किसी भी नाम से आने से कुछ नहीं होता है। हमें न तो टिप्पणियों की भूख है न ही ब्लाग में लिखने की मजबूरी। हमें कोई छपास रोग नहीं है। हम बता दें कि हम रायपुर के एक प्रतिष्ठित अखबार में काम करते हैं और साथ ही एक पत्रिका भी निकालते हैं। हम जो चाहते हैं उसे अखबार और पत्रिका में लिख लेते हैं। लगता है कि आप ही कुंठित हैं क्योंकि आप कहीं कुछ लिख नहीं पाते हैं इसलिए लिखने वालों को ही परेशान करने का अभियान चला रखा है। करते रहे आप अपना काम, लेकिन अब आप कम से कम हमें परेशान नहीं कर पाएंगे। क्योंकि आपका लिखा अब कचरा दान में ही जाएगा, इसलिए अपना समय खराब करने से बेहतर है कि कोई दूसरा शिकार तलाश करें।

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शनिवार, अगस्त 21, 2010

एक के बदले दूसरी नौकरी की इजाजत नहीं

प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को एक नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी चुनने की इजाजत अभी नहीं दी गई है। रेलवे के साथ छत्तीसगढ़ शासन में काम कर रहे खिलाडिय़ों को इस बात से झटका लगा है। लेकिन खेल विभाग से सामान्य प्रशासन से आग्रह किया है कि खिलाडिय़ों को नौकरी चुनने की मंजूरी दी जाए ताकि रेलवे के खिलाड़ी अगर यहां आना चाहे तो आ जाए। ऐसा होने से प्रदेश की टीमें मजबूत हो जाएंगी।
राज्य के ७० उत्कृष्ट खिलाडिय़ों के लिए प्रदेश सरकार ने नौकरी के दरवाजे खोल दिए हैं। ऐसे में करीब दो दर्जन खिलाड़ी खेल विभाग में ही नौकरी की अर्जी लगा चुके हैं। इन खिलाडिय़ों में कुछ खिलाड़ी ऐसे भी हैं जो पहले से नौकरी में हैं। लेकिन इन खिलाडिय़ों को अपनी पसंद का विभाग मिलने वाला नहीं है। सामान्य प्रशासन ने जो नियम जारी किए हैं उसमें उन्हीं खिलाडिय़ों को नौकरी में रखने की बात है जिनके पास रोजगार नहीं है। जो खिलाड़ी पहले से ही रेलवे या फिर छत्तीसगढ़ शासन के ही किसी विभाग में काम कर रहे हैं वे अपनी पहली नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। पहले से नौकरी करने वाले खिलाडिय़ों का ऐसा कहना है कि उनको खेल कोटे में नौकरी नहीं मिली है जिसके कारण उनको वो सारी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं जो खेल कोटे के खिलाडिय़ों को मिलनी चाहिए। ऐसे में ये खिलाड़ी खेल कोटे में नौकरी करने के इच्छुक हैं।
इधर रेलवे में काम करने वाले कुछ खिलाड़ी भी अपने राज्य में नौकरी करना चाहते हैं। इन खिलाडिय़ों का कहना है कि वे अपने राज्य में नौकरी करेंगे तो अपने राज्य की टीम से खेलकर राज्य की टीम को मजबूत करेंगे। लेकिन इन खिलाडिय़ों के लिए यह परेशानी का सबब है कि इनको ऐसा करने का मौका नहीं मिलने वाला है। सामान्य प्रशासन के नियम आड़े आ रहे हैं।
खेल संचालक जीपी सिंह कहते हैं कि सामान्य प्रशासन के नियम में खिलाडिय़ों को नौकरी चुनने की स्वतंत्रता नहीं मिल पा रही है। उन्होंने कहा कि हमारे विभाग ने सामान्य प्रशासन को एक प्रस्ताव भेजा है कि नियमों में फेरबदल किया जाए ताकि खिलाडिय़ों को नौकरी चुनने का मौका मिल सके। उन्होंने उम्मीद जताई का नियमों में संशोधन हो जाएगा।

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शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

दुश्मन दोस्तों ने किया मजबूर माडरेशन लगाने

हम अपने ब्लाग राजतंत्र में माडरेशन लगाने के खिलाफ थे, लेकिन हमारे दुश्मन दोस्तों ने ही हमें मजबूर कर दिया है कि हम माडरेशन लगा दें। हम बता दे कि हमारे ही बीच के कुछ मित्रों ने फर्जी आईडी बनाकर लगातार हमें परेशान करने का काम किया है। हमने लगातार इन बातों को नजरअंदाज करने का काम किया, लेकिन इसके बाद भी ऐसे दुश्मन दोस्त बाज नहीं आ रहे हैं। हम जानते हैं कि ऐसी हरकतें कौन कर रहे हैं। अगर  ऐसी हरकतें करके वे लोग खुश हो रहे हैं और उनको लगता है कि हम विचलित होकर ब्लाग जगत से किनारा कर लेंगे तो यह उनकी बहुत बड़ी गलतफहमी है।
हम जानते हैं कि हमने जब से ब्लाग जगत को गुटबाजी से उबारने के इरादे से ब्लाग चौपाल का आगाज किया है, गुटबाजी करने वाले हमारे दुश्मन दोस्त बहुत ज्यादा खफा हैं। वे खफा होते हैं खफा रहे हमारी बला से। हमें जब किसी गुटबाजी से कोई मतलब नहीं है तो हम क्यों कर ऐसे लफड़े में पड़े। हम तो ब्लाग चौपाल में जो भी ब्लाग नजर आते हैं उनको शामिल करने का प्रयास करते हैं। एक प्रयास यह भी रहता है कि एक ही ब्लाग को लगातार शामिल न करें। नए-नए ब्लागों तक जाने का प्रयास रहता है। इसमें हम ज्यादा सफल तो नहीं पा रहे हैं क्योंकि हमारे पास समय की कमी है, लेकिन इसके बाद भी हम कोशिश करते हैं। एक बात और यह कि हम टिप्पणियों के पीछे भागते नहीं है। हमने पहले सोचा था कि हम टिप्पणियों का रास्ता ही बंदज कर देंते हैं, लेकिन फिर लगा कि शायद यह ठीक नहीं होगा, क्योंकि चंद मतलबी लोगों की वजह से हर किसी को अपने विचार रखने से रोकना ठीक बात नहीं है। ऐसे में हमने फिलहाल अपने ब्लाग में माडरेशन लगाने का फैसला किया है। अगर जरूरत हुई तो हम टिप्पणियों का रास्ता भी बंद कर सकते हैं। हम ब्लाग जगत में सिर्फ और सिर्फ कुछ अच्छा करने आए हैं न की गुटबाजी करने और गुटबाजी फैलाने के लिए आए हैं।

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गुरुवार, अगस्त 19, 2010

स्वर्ण जीतो और ८ लाख लो

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने यहां पर ऐलान किया कि कामनवेल्थ खेलों में छत्तीसगढ़ का जो भी खिलाड़ी स्वर्ण पदक जीतेगा उसे सरकार ८ लाख रुपए का नकद इनाम देगी। इसी के साथ रजत पदक जीतने वालों को ६ लाख और कांस्य पदक विजेताओं को चार लाख का इनाम दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने बुधवार को छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ अध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने के बाद कहा कि अपने राज्य में कामनवेल्थ की क्वींस बैटन रिले का जैसा ऐतिहासिक आयोजन हुआ है वैसे पूरे देश में कहीं नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि ऐसे में जबकि दिल्ली में अक्टूबर में कामनवेल्थ खेलों का आयोजन होना है तो आज ओलंपिक संघ की बैठक में एक सुझाव आया कि यहां के खिलाडिय़ों के पदक जीतने पर सरकार द्वारा नकद इनाम दिए जाने की घोषणा करनी चाहिए। इस सुझाव पर सरकार की तरफ से तत्काल अमल करते हुए मैं यह घोषणा करता हूं कि छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों के पदक जीतने पर सरकार नकद इनाम देगी। मुख्यमंत्री ने इसी के साथ कहा कि छत्तीसगढ़ में होने वाले ३७वें राष्ट्रीय खेलों की तैयारी अभी से प्रारंभ की जा रही है। ओलंपिक संघ के कार्यालय के बारे में उन्होंने बताया कि इसका कार्यालय जल्द ही राजधानी में प्रारंभ होगा। इसके लिए संघ को इंडोर स्टेडियम में २०८२ वर्ग फीट का एक हाल दे दिया गया है। नई राजधानी में ओलंपिक भवन बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन भी दी गई है। इस जमीन पर बनने वाले भवन में ओलंपिक संघ के साथ सभी खेल संघों के कार्यालय होंगे। मुख्यमंत्री ने बताया कि एक विशेष खेल निधि बनाने के सुझाव पर अमल करते हुए इसके लिए ५० लाख की राशि दी जा रही है। इस निधि के लिए पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा ने ढाई लाख देने की बात कही। इसके कोष में ५२ लाख पचास की राशि हो गई है। इस राशि से खेल संघों को विशेष स्थिति में मदद की जाएगी।
एक सवाल के जवाब में खेलों के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने कहा कि वे ओलंपिक संघ की कार्यकारिणी जल्द ही सभी से चर्चा करके सर्वसम्मति से घोषित करेंगे, जब तक नई कार्याकारिणी नहीं बन जाती है पुरानी कार्यकारिणी काम करती रहेगी। उन्होंने कहा कि खेलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए। मैं सबको साथ लेकर चलने का प्रयास करूंगा।

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बुधवार, अगस्त 18, 2010

देश के बॉडी बिल्डर जुटेंगे राजधानी में

५७वीं राष्ट्रीय बॉडी बिल्डिंग में भाग लेने के लिए देश के पांच राज्यों के बॉडी बिल्डर २१ अगस्त से राजधानी में जुटेंगे। इनके बीच पांच खिताबों के लिए मुकाबले होंगे। छत्तीसगढ़ की टीम कल घोषित की जाएगी। मुकाबले जूनियर के साथ सीनियर और मास्टर वर्ग में होंगे।
यह जानकारी देते हुए छत्तीसगढ़ एमेच्योर बॉडी बिल्डिंग संघ के संजय शर्मा के साथ मेघेश तिवारी और राजीव शर्मा ने बताया कि राजधानी रायपुर में पांच राज्यों जिनमें मेजबान छत्तीसगढ़ के साथ मप्र, महाराष्ट्र, गोवा और राजस्थान शामिल हैं के खिलाड़ी २१ अगस्त से जुटेंगे। इनके बीच पांच खिताबों के लिए मुकाबला होगा। नए खिलाडिय़ों के लिए भारत उदय, २१ साल से कम उम्र वाले खिलाडिय़ों के लिए भारत किशोर, २५ साल से कम उम्र वालों के लिए भारत कुमार, ४० साल से ज्यादा के साथ ५० साल से भी ज्यादा उम्र वालों के लिए भारत केसरी और सभी वर्गों के विजेताओं के लिए प.भारत श्री खिताब के लिए मुकाबले होंगे।
श्री शर्मा ने पूछने पर बताया कि मुकाबलों में चार वर्गों में मुकाबले पहले होंगे। इन वर्गों के बारे में उन्होंने बताया कि पहले वर्ग में १६२ सेमी वाले खिलाड़ी, दूसरे वर्ग में १६२ से १६७ सेमी, तीसरे वर्ग में १६७-१७२ सेमी और चौथे वर्ग में १७२ से ज्यादा वाले खिलाडिय़ों के बीच मुकाबले होंगे। स्पर्धा में करीब ३५० खिलाड़ी और अधिकारी शामिल होंगे जिनके रहने और खाने की नि:शुल्क व्यवस्था संघ ने की है। स्पर्धा में छत्तीसगढ़ के कितने खिलाड़ी शामिल होंगे इसका फैसला कल होगा। वैसे बागबाहरा में हुई राज्य स्पर्धा में प्रदर्शन के आधार पर चुने गए खिलाडिय़ों को यहां बुलाकर उनका चयन ट्रायल किया जा रहा है। इस ट्रायल के बाद ही प्रदेश की टीम बुधवार को घोषित की जाएगी। स्पर्धा २१ और २२ अगस्त को शहीद स्मारक में होगी।
राज्य में ९वां आयोजन
प्रदेश संघ के संजय शर्मा ने बताया कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद पांचवां और कुल ९वां राष्ट्रीय आयोजन है जो छत्तीसगढ़ में हो रहा है। सबसे पहले १९९२ में पश्चिम भारत श्री का आयोजन रायपुर में किया गया था। इसके बाद १९९५ राष्ट्रीय चैंपियनशिप हुई। ९७ में फेडरेशन कप और फिर ९८ में राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन राजनांदगांव में किया गया।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद सबसे पहले २००२ में फेडरेशन कप का आयोजन रायपुर में हुआ। २००४ में राष्ट्रीय चैंपियनशिप आयोजित की गई। २००८ में प. भारत श्री का आयोजन रायगढ़ में किया गया। इसके बाद इस साल पहले भारत युवाश्री का आयोजन भी रायगढ़ में किया गया। अब एक बार फिर से पश्चिम भारत श्री का आयोजन रायपुर में किया जा रहा है।

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मंगलवार, अगस्त 17, 2010

अब बरसेगी नौकरी

प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को नौकरी मिलने का रास्ता खुल गया है। खेलमंत्री लता उसेंडी के लगातार प्रयासों के बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने अंतत: नौकरी के नियम जारी कर दिए हैं। इसी के साथ खेल विभाग ने एक पहल करते हुए अपने विभाग में ही नौकरी की मंशा रखने वाले खिलाडिय़ों से आवेदन लेने भी प्रारंभ कर दिए हैं। इसी के साथ तृतीय श्रेणी वर्ग के लिए सभी विभागों में खिलाड़ी आवेदन कर सकते हैं।
प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाड़ी विगत आठ माह से प्रमाणपत्र मिलने के बाद नौकरी की राह देख रहे थे। हर खिलाड़ी एक ही सवाल कर रहा था कि उनको नौकरी कब मिलेगी। खिलाडिय़ों की व्यथा को हरिभूमि ने लगातार प्रकाशित भी किया और इस दिशा में लगातार खेलमंत्री लता उसेंडी से लेकर खेल संचालक जीपी सिंह से बात की। इसका नतीजा यह रहा कि खेलमंत्री ने सामान्य प्रसासन ने नियमित संपर्क बनाए रखा और उनसे खिलाडिय़ों को नौकरी देने वाले नियम जल्द से जल्द जारी करने का आग्रह किया। खेलमंत्री के आग्रह पर सामान्य प्रशासन ने आदेश जारी कर दिया है और अब खिलाडिय़ों के लिए नौकरी के दरवाजे खुल गए हैं।
खेल विभाग ने पहली बार में ही ७० खिलाडिय़ों को उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित किया था। इन खिलाडिय़ों में से आधे से ज्यादा रेलवे और अन्य विभागों में कार्यरत हैं। लेकिन जो खिलाड़ी बेरोजगार हैं, वे लगातार यह मांग करते रहे कि उनको जल्द नौकरी दी जाए। खिलाडिय़ों के एक प्रतिनिधि मंडल ने दो माह पहले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से भी मुलाकात करके उनको अपनी व्यथा बताई थी। इसके बाद भी कुछ न होने पर कई खिलाडिय़ों ने उत्कृष्ट खिलाडिय़ों वाला प्रमाणपत्र सरकार को वापस करने का मन बना लिया था। इस बारे में जब खेलमंत्री लता उसेंडी को जानकारी हुई तो उन्होंने इस मामले में गंभीरता से काम करते हुए सामान्य प्रशासन से लगातार अनुरोध करके अंतत: नियम जारी करवा लिए हैं। उन्होंने पिछले माह ही यह कहा था कि उनका विभाग इस मामले में पूरी गंभीरता से लगा है, अगले माह खिलाडिय़ों को हम नौकरी देने की स्थिति में जरूर होंगे।
खेल विभाग में भी आवेदन करें
खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि उनके विभाग में ही तृतीय श्रेणी वर्ग के ६० से ज्यादा पद खाली हैं। उन्होंने सभी खिलाडिय़ों को सूचना भिजवा दी है कि जो खेल विभाग में काम करने के इच्छुक हैं वे विभाग में आकर आवेदन कर सकते हैं। इसकी जानकारी होने पर करीब एक दर्जन खिलाडिय़ों ने आज ही नौकरी के लिए आवेदन कर दिए हैं। तृतीय वर्ग के लिए तो हर विभाग में आवेदन दिए जा सकते हैं, लेकिन शर्त यह है कि उस विभाग में पद खाली होने चाहिए। उन्होंने बताया कि विभागों में पद खाली होने की जानकारी जिलाधीशों के माध्यम से ही मिल सकती है। सामान्य प्रशासन विभाग को एक प्रस्ताव भेजा गया है कि सभी जिलों के जिलाधीशों को नोडल अधिकारी बना दिया जाए ताकि उनके पास हर विभाग के रिक्त पदों की जानकारी रहे। उन्होंने बताया कि द्वितीय श्रेणी के पद  पहले तो पुलिस, जेल, होमगार्ड और वन विभाग में ही  रखे गए थे। बाद में इसमें स्कूल और उच्च शिक्षा, आदिमजाति और कल्याण विभाग को भी शामिल किया गया है। खेल विभाग को भी इसमें शामिल करने का प्रस्ताव भेजा गया है। अभी इसकी मंजूरी नहीं मिली है, उम्मीद है इसके लिए भी मंजूर मिल जाएगी।
खेलमंत्री ने वादा निभाया
खेलमंत्री लता उसेंडी ने पिछले माह वादा किया था कि अगले माह तक उत्कृष्ट खिलाडिय़ों के लिए नौकरी के दरवाजे खुल जाएंगे। उन्होंने अपना वादा पूरा किया है। उन्होंने पूछने पर कहा कि हमारी सरकार की मंशा खिलाडिय़ों को सरकार में शामिल करने की काफी पहले से रही है। भले इसमें विलंब हुआ है, पर हमारी सरकार ने अपना वादा पूरा किया है।

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सोमवार, अगस्त 16, 2010

बैटन दल की विदाई

क्वींस बैटन दल को माना विमानतल में तिलक लगा कर विदा किया गया। यह दल विमान से हैदराबाद के लिए रवाना हुआ।
भिलाई से यह दल सीधे माना विमानतल पहुंचा जहां पर दल को विदा करने के लिए खेल विभाग के खेल सचिव सुब्रत साहू, खेल संचालक जीपी सिंह, उपसंचालक ओपी शर्मा, वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे के साथ खेल संघों से जुड़े मो. अकरम खान, संजय शर्मा, अखिलेश दुबे, विष्णु श्रीवास्तव सहित कई खेल संघों के पदाधिकारी उपस्थित थे। बैटन दल को सबसे पहले तिलक लगाया गया। तिलक लगाने की रश्म खेल विभाग की सुधा कुमार के साथ एनआईएस कोच सरिता कुजूर ने पूरी की। दल प्रमुख वीएन सिंह के साथ दल की संयोजिका अलका लांबा ने छत्तीसगढ़ यात्रा को सुखद बताया और कहा कि उनको उम्मीद नहीं थी कि यहां पर बैटन के स्वागत में इतना ज्यादा जनसैलाब उमड़ेंगा। इन्होंने कहा कि वास्तव में छत्तीसगढ़ में हमारे दल को जो प्यार, स्नेह और सम्मान मिला है उसे हमारा दल कभी नहीं भूल करता है। इन्होंने पूछने पर बताया कि रायपुर के साथ राजनांदगांव, भिलाई, दुर्ग में रिले का आयोजन ऐतिहासिक रहा। यहां पर जिस तरह का तालमेल देखने को मिला वैसा तालमेल काफी कम स्थानों में देखने को मिलता है।

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रविवार, अगस्त 15, 2010

स्वतंत्रता दिवस कब आवे है

आज स्वतंत्रता दिवस हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा की दो लाइनें याद आ रही हैं....



पत्नी पूछती है- ऐ जी स्वतंत्रता दिवस कब आवे है
मैं बोलयो भाग्यवान जब तू मायके जावे है।


सभी ब्लागर मित्रों और पाठकों को आजादी का पर्व मुबारक हो...

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शनिवार, अगस्त 14, 2010

बैटन के खेल का पुलिस अधिकारी ने निकाला तेल

बैटन रिले के लिए खेल विभाग ने जिस तरह से लगातार कई महीनों से योजना बनाई थी उसके बाद भी ये सोचने वाली बात है कि आखिर बैटन का खेल क्यों फेल हो गया। इसके कारणों की जब पड़ताल की गई तो मालूम हुआ कि ऐन समय पर पुलिस के एक प्रशासनिक अधिकारी जीएस बाम्बरा द्वारा अपनी मर्जी से कार्यक्रम को बदल देने के कारण सारे खेल संघों के पदाधिकारी खफा हो गए क्योंकि उनको तय किए गए स्थान पर बैटन पकडऩे का मौका नहीं दिया गया। ऐसे में जिसको जहां मौका मिला उसने मौके को भुनाते हुए धावकों से बैटन लेकर अपने मन की मुराद पूरी कर ली। इधर खेल विभाग के अधिकारी खेल संघों के पदाधिकारियों की दादागिरी से नाराज हैं, लेकिन वे भी खुले रूप में कुछ नहीं बोल पा रहे हैं।
बैटन रिले में गुरुवार को जिस तरह की अफरा-तफरी मची और जिसको जहां मर्जी हुई बैटन लेकर दौडऩे लगा। आखिर ऐसा होने के पीछे कारण क्या था जब यह जानने का प्रयास किया गया तो यह बात सामने आई कि शहीद भगत सिंह चौक से लेकर गांधी उद्यान तक के रास्ते को जीरो पाइंट घोषित किया गया था और इसी जीरो पाइंट के लिए खेल विभाग ने यह योजना बनाई थी कि इसमें मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्रियों और वीआईपी के साथ खेल संघों के तय पदाधिकारियों को बैटन लेकर दौडऩे का मौका दिया जाएगा। लेकिन यह योजना उस समय धरी की धरी रह गई जब पुलिस के एक प्रशासनिक अधिकारी जीएस बाम्बरा ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को ही बैटन लेकर बहुत दूर तक ले गए। इसके बाद बैटन महापौर किरणमयी नायक को दी गई और फिर बैटन प्रशासनिक अधिकारियों के हाथों में ही नजर आई। बाम्बरा खुद भी बैटन को लेकर लंबे समय तक दौड़ते रहे। खेल संघों के पदाधिकारी खड़े के खड़े रह गए, लेकिन उनको बैटन छूने तक का मौका नहीं दिया गया। जब किसी तरह से बैटन पहले धावक विसेंट लकड़ा के हाथों में पहुंचने के बाद बैटन का आगाज हुआ तब तक खेल संघों के पदाधिकारियों में नाराजगी चरम पर पहुंच चुकी थी। ऐसे में खेल संघों के कई पदाधिकारियों से यह सोच लिया कि उनको जहां मौका मिलेगा वे भी बैटन लेकर दौड़ेंगे।  यही वजह रही कि जहां जिस खेल संघ के पदाधिकारी को मौका मिला उसने मौके का फायदा उठाते हुए बैटन लेकर दौडऩे का काम किया और खिलाडिय़ों को किनारे कर दिया गया।
इस मामले में जहां खेल संघों के पदाधिकारी खेल विभाग को दोषी मानते हैं कि उसने योजना के मुताबिक काम नहीं किया, वहीं खेल विभाग के अधिकारी अपना बचाव करते हुए कहते हैं कि हमने तो योजना ठीक बनाई थी लेकिन बीच में कोई योजना को न जानने वाला आकर अगर अपनी मनमर्जी करने लगे तो क्या किया जा सकता है। जिन लोगों को जीरो पाइंट में तैनात किया गया था वे लगातार यह कहते रहे कि खेल संघों के पदाधिकारियों को बैटन दी जाए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। ऐसा न होने के कारण ही माहौल खराब हुआ।
खेल विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब खेल संघों के पदाधिकारियों को यह साफ तौर पर बता दिया गया था कि उनको बैटन के रास्ते में बैटन लेकर नहीं दौडऩा है, यह रास्ता खिलाडिय़ों के लिए है इसके बाद भी इन्होंने खिलाडिय़ों से जबरन बैटन लेकर दौड़ऩे का काम किया। इस अधिकारी का कहना है कि ऐसा नहीं है कि खेल संघों के पदाधिकारियों को बैटन को पकडऩे का मौका नहीं मिला था। ज्यादातर पदाधिकारियों को उसी रात बैटन पकडऩे का मौका मिल गया था जब  वह ११ अगस्त को आई थी। होटल बेबीलोन के कार्यक्रम में मंच पर ही खेल संघों के पदाधिकारियों को बैटन दी गई थी। इतना सब होने के बाद भी जिस तरह का काम खेल संघों के पदाधिकारियों ने किया है, वह काम निंदनीय है। खेल संघों के पदाधिकारियों ने जो किया है, उससे साफ मालूम होता है इनको खिलाडिय़ों से कोई मतलब नहीं है।

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शुक्रवार, अगस्त 13, 2010

ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं...

शहीद भगत सिंह चौक से जैसे ही मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बैटन को रवाना किया, प्रारंभ हो गया उसका ६ किलोमीटर का सफर इस सफर में रास्ते में जिस तरह ही दीवानगी खिलाडिय़ों और लोगों में देखने को मिली, वैसी दीवानगी पहले कभी राजधानी में देखने को नहीं मिली। पूरी राजधानी बैटन रिले के जश्न में इस तरह से डूब गई कि ६ किलोमीटर का सफर मिनटों में समाप्त हो गया ऐसा लगा। छत्तीसगढ़ में बैटन का जिस तरह का स्वागत हुआ उसने राज्यपाल शेखर दत्त से लेकर खेलमंत्री लता उसेंडी और रिले टीम के साथ आई अलका लांबा को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा।
शहीद भगत सिंह चौक में सरकार के कई मंत्रियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों, खिलाडिय़ों और स्कूली विद्यार्थियों के बीच जब मंच पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पहुंचे और उनको बैटन थमाई गई तो हर तरफ उत्साह और उमंग का माहौल दिखने लगा। मुख्यमंत्री बैटन को लेकर जब मंच से नीचे उतरे तो उनके साथ सभी अतिथि और खेल संघों के पदाधिकारी भी थे। मुख्यमंत्री ने बैटन को आगे बढ़ाया और फिर मंत्रियों के साथ खेल संघों के हाथों से होते हुए बैटन पहुंची पहले धावक विसेंट लकड़ा के पास और प्रारंभ हो गया, ६ किलोमीटर का कारवां। यह कारवां जाकर सप्रे स्कूल में शाम को ४.३० बजे तब थमा जब अंतरराष्ट्रीय विकलांग तैराक अंजली पटेल ने बैटन ले जाकर मंच पर राज्यपाल शेखर दत्त को सौंपी।
छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा
समापन समारोह में राज्यपाल शेखर दत्त ने कहा कि राजधानी में जिस तरह का माहौल बैटन रिले में नजर आया उसने यह साबित कर दिया कि वास्तव में छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा है। उन्होंने बताया कि इसके पहले जब २००२ में मैनेचेस्टर में कामनवेल्थ खेल हुए थे तो वे भारतीय दल के साथ गए थे। तब भारतीय दल को विदेशों में भी प्रशिक्षण दिलाया गया था। उस समय भारतीय दल ने सबसे ज्यादा ६९ पदक जीते थे। यह एक रिकॉर्ड है। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है इस बार भारत अपनी मेजबानी में इन पदकों के रिकॉर्ड को पार करके इससे ज्यादा पदक जीतने में सफल होगा।  इसके पहले जहां खेलमंत्री लता उसेंडी ने भी यह बात कही कि छत्तीसगढ़ में रिले का जैसा स्वागत हुआ है वह इस बात का परिचायक है छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा। ठीक यही बात रिले टीम के साथ आई अलका लांबा ने भी कही। उन्होंने भी कहा कि यहां जैसे स्वागत रिले की हुआ है वैसा और कहीं नहीं हुआ है। सांसद रमेश बैस ने भी राजधानीवासियों की तारीफ करते हुए राजधानीवासियों ने दिखा दिया कि उनमें खेलों के लिए कितना प्यार और सम्मान है।
दीवानगी में हद से गुजर गए
बैटन रिले के लिए खेल संघों के पदाधिकारियों के साथ राजनेताओं की दीवानगी इतना ज्यादा रही कि इस दीवानगी में तो कई हद से गुजर गए। बैटन के रास्ते में कई ऐसे हादसे सामने आए जिसने यह साबित कर दिया रिले के लिए की गई सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से असफल थी। सुरक्षा में लगे अधिकारी भी बैटन पकडऩे में इतने ज्यादा मशगूल थे उनको सुरक्षा से कोई मतलब ही नहीं था।
शहीद भगत सिंह चौक से लेकर गांधी उद्यान तक तो सुरक्षा कर्मी पूरी मुस्तैदी से लगे थे। लेकिन जैसे ही वीआईपी का पाइंट समाप्त हुआ अव्यवस्था ने अपने पैरे पसारे दिए। विसेंट लकड़ा के आगे जैसे ही बैटन दूसरी धावक प्रीति बंछोर और फिर इसके बाद फुटबॉल की सबसे छोटी खिलाड़ी निकिता स्विसपन्ना के पास पहुंची तो इस छोटी खिलाड़ी को कुछ ही कदम बैटन लेकर चलने दिया गया इसके बाद उनसे बैटन एक कांग्रेसी नेता सलाम रिजवी ने छीन ली और लेकर दौडऩे लगे। सलाम रिजवी का नाम कही भी बैटन लेकर दौडऩे वाले धावकों में नहीं था। किसी तरह से उनसे बैटन लेकर दूसरे धावक को दी गई। अव्यवस्था का आलम यह था कि धावक के हाथ में बैटन कम और सुरक्षा अधिकारियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों के हाथों में ज्यादा दिख रही थी।
महापौर लेकर दौडऩे लगी बैटन
जयस्तंभ चौक में जब बैटन पहुंची तो यहां पर हनुमान सिंह पुरस्कार प्राप्त संजय शर्मा धावक के रूप में मौजूद थे। उनको बैटन को लेकर दौडऩा था। संजय शर्मा बैटन लेकर कुछ दूर चले जरूर लेकिन इसके बाद उनसे बैटन महापौर किरणमयी नायक और निगम के सभापति संजय श्रीवास्तव ने ले ली और बैटन लेकर दौडऩे लगे। महापौर और सभापति भी बैटन की दीवानगी में यह भूल गए कि रास्ते में बैटन लेकर दौडऩे का जिम्मा सिर्फ खिलाड़ी धावकों को दिया गया था।
बैटन छीनने का प्रयास
बैटन का कारवां जब लाखेनगर चौक में पहुंचा तो पहले तो बैटन का हिन्दु स्पोर्टिंग के पदाधिकारियों ने जोरदार स्वागत किया, लेकिन इसके बाद जब बैटन को छीनने का प्रयास किया गया तो वहां पर भगदड़ की स्थिति आ गई। बड़ी मुश्किल से सुरक्षाकर्मियों ने इस प्रयास को विफल करके बैटन को धावक के हाथों में दे कर आगे बढ़ाया। लाखे नगर में सुरक्षा कर्मियों को लाठियां भी लहरानी पड़ीं।
मार्ग बदलने का प्रयास
बैटन जब बूढ़ापारा के आउटडोर स्टेडियम के पास पहुंची तो सुरक्षा व्यवस्था में लगे अधिकारियों ने बैटन को आउटडोर स्टेडियम में ले जाने का प्रयास किया। उनके इस प्रयास का बैटन रिले दल के सदस्यों ने विरोध किया और उनको बताया कि बैटन का मार्ग बदला नहीं जा सकता है। अधिकारी बैटन को आउटडोर स्टेडियम में इसलिए ले जाना चाहते थे क्योंकि बैटन वहां तक चार बजे पहुंच गई थी और वहां से सप्रे स्कूल का फासला महज १० मिनट में तय हो जाना था और राज्यपाल को समापन में ४.३० बजे आना था। ऐसे में बैटन को नियमों के विपरीत रास्ते में कई बार रोक दिया गया, जबकि बैटन रिले के एक बार प्रारंभ होने के बाद बैटन को रास्ते में रोका नहीं जाता उसको लेकर धावकों को चलते रहना पड़ता है। लेकिन रिहर्सल के बाद भी खेल विभाग के आला अधिकारियों सहित अधिकारी यह तय नहीं कर पाए थे कि कितने समय बैटन की शुरुआत करने से बैटन सही समय पर सप्रे स्कूल पहुंचेगी। बैटन को गांधी उद्यान से २.४५ को निकलना था, लेकिन वहां से वह ३.०० बजे निकली अगर २.४५ को बैटन निकल जाती तो वह ३.४५ को ही सप्रे स्कूल पहुंच जाती। रिहर्सल में महज ५५ मिनट का ही समय लगा था और इस समय को ध्यान में रखते हुए बैटन रिले का प्रारंभ नहीं किया गया।
खेल संघ के पदाधिकारियों की दादागिरी
सप्रे स्कूल में बैटन के प्रवेश करने के बाद एक खिलाड़ी से एक खेल संघ के पदाधिकारी से बैटन छीन ली और खुद लेकर दौडऩे लगे। ऐसा नजारा रास्ते में भी कई स्थानों में नजर आया जब खिलाडिय़ों को किनारे करते हुए उनके साथ संघों के पदाधिकारी बैटन लेकर दौड़ते रहे।
स्कूली बच्चे भूखे-प्यासे रहे
बैटन रिले के मार्ग में ६० स्कूलों के २० हजार से ज्यादा स्कूली बच्चों को दोपहर १२ बजे से बुलाकर खड़े करवा दिया गया था। इन बच्चों को शाम तक भूखे-प्यासे रखा गया। सभी बच्चे एक स्वर में शिकायत करते रहे कि  उनका ख्याल ही नहीं रखा गया। यही बात रिले में दौडऩे वाले ज्यादातर धावकों ने भी कहीं कि उनको एक बजे से अपने-अपने पाइंट में बुला लिया गया, लेकिन पानी तक की व्यवस्था नहीं की गई।
हर कोई दीवानगी में डूबा
एक तरफ जहां अव्यवस्था का आलम रहा, वहीं दूसरी तरफ बैटन के मार्ग में राजधानीवासियों की दीवानगी देखते ही बनी। पूरे रास्ते भर राजधानीवासी बैटन रिले का स्वागत करते रहे। इस स्वर्णिम अवसर को देखने का मौका जहां किसी ने नहीं गंवाया वहीं रास्ते भर सभी अपने-अपने मोबाइल से इन सुनहरे पलों को कैद करते नजर आए। रिले का हर किसी ने रास्ते में अपने अंदाज में स्वागत किया।
दिखी छत्तीसगढ़ की संस्कृति की झलक
बैटन के मार्ग में संस्कृति की झलक कदम-कदम पर नजर आई। अलग-अलग पाइंट पर अलग-अलग जिलों के नर्तक दल अपने-अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे थे। गांधी उद्यान के आगे देशभक्ति गीतों का जलवा भी था। रिले के सामने स्कैटिंक करते खिलाड़ी भी थे। सप्रे स्कूल के अंदर लाइन से कलश ली महिला मंडली खड़ी थी।

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गुरुवार, अगस्त 12, 2010

क्वींस बैटन आई, दिलों में छाई

कामनवेल्थ की क्वींस बैटन का बुधवार की रात को रायपुर आगमन हुआ। बैटन दल के कमांडर वीएन सिंह ने बैटन खेलमंत्री लता उसेंडी और महापौर किरणमयी नायक को सौंपी। गुरुवार को राजधानी में दोपहर दो बजे बैटन रिले का आयोजन किया गया है।
होटल बेबीलोन के हॉल में जैसे ही बैटन लेकर वीएन सिंह आए पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। श्री सिंह ने बैटन स्वागत समारोह की मुख्यअतिथि खेलमंत्री लता उसेंडी के साथ रायपुर की महापौर किरणमयी नायक को सौंपी। इसके बाद बैटन को स्टैंड में रख दिया गया। इसके पहले भुवनेश्वर से रात को ७.०५ को ही क्वींस बैटन लेकर बैटन रिले का दल विमान ने माना विमानतल पहुंचा गया था। इस दल का विमानतल पर खेल विभाग के अधिकारियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों ने किया।
राजधानी में बैटन आने के बाद अब गुरुवार को सुबह से ही कार्यक्रमों का दौर प्रारंभ होगा। सुबह को ९.३० बजे रविशंकर शुक्ल विवि में वृक्षारोपण का कार्यक्रम रखा गया है। इसके बाद ११ बजे बैटन रिले का दल प्रेस क्लाब में प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में शामिल होगा। दोपहर दो बजे शहीद भगत सिंह चौक से बैटन रिले का प्रारंभ होगा। रिले का प्रारंभ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह करेंगे। यहां पर पूरा मंत्रिमंडल रहेगा। रिले में ८० धावक शामिल हैं जिनके हाथों से बैटन होती हुई समापन स्थल सप्रे स्कूल में में राज्यपाल शेखर दत्त के हाथों में पहुंचेगी और इसके बाद प्रारंभ होगा समापन समारोह।
क्वींस बैटन के रायपुर पहुंचते ही सबके दिलों की धड़कनें बढ़ गयी और माना विमानतल से लेकर होटल बेबीलोन में सभी जहां हसरत भरी नजरों से बैटन को निहारते रहे, वहीं हर कोई एक बार उसे हाथों में लेने के लिए बेताब नजर आया। बैटन दल के कमांडर वीएन सिंह ने ज्यादातर अतिथियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों और खिलाडिय़ों को बैटन पकडऩे का मौका दिया।
क्वींस बैटन बुधवार को रात अपने समय से १५ मिनट पहले ही माना विमानतल पर ७.०५ को पहुंच गई। वहां से दल का स्वागत करके दल को बैटन के साथ होटल बेबीलोन लाया गया। यहां पर बैटन के रखे जाने के बाद जब स्वागत समारोह का कार्यक्रम अंतिम पड़ाव में पहुंचा तो सभी बैटन को करीब से देखने के साथ हाथों में लेने का मोह नहीं छोड़ सके। मो. अकरम खान के आग्रह पर अंतत: बैटन रिले के निदेशक वीएन सिंह  ने बैटन अतिथियों के साथ खेल संघों को हाथों में लेने की मंजूरी दे दी। सबसे पहले खेलमंत्री लता उसेंडी के बाद महापौर किरणमयी नायक के हाथों में बैटन देने के बाद खेल संघों के पदाधिकारी बैटन लेकर फोटो खींचवाते रहे।
असली हीरो तो आप लोग हैं:महापौर
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महापौर किरणमयी नायक ने कहा कि असली हीरो तो बैटन दल के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में हम लोगों के स्थान पर मंच पर आप लोगों को होना था। मुङो इस बात का अफसोस है कि आप लोग नीचे बैठे हैं और हम लोग मंच पर हैं। उन्होंने बैटन दल के सदस्यों को भरोसा दिलाया कि रायपुर में बैटन रिले का आयेजन ऐतिहासिक होगा। उन्होंने कहा कि रायपुर में कल उत्सव का माहौल रहेगा।
मीठी यादें लेकर जाएं: लता
खेलमंत्री लता उसेंडी ने कहा कि बैटन के आगमन के इसी ऐतिहासिक पल का पूरे छत्तीसगढ़ को इंतजार था। उन्होंने कहा कि हमें विश्वास है कि बैटन दल यहां से मीठी यादें लेकर जाएंगे और अगर कुछ खट्टी यादें रहें तो उनको हमारे लिए छोड़ दिया जाए।
मीठी यादें लेकर ही जाएंगे: सिंह
बैटन रिले के कमांडर वीएन सिंह ने कहा कि रायपुर में उनके दल का जिस तरह का स्वागत हुआ है और यहां पर जिस तरह की दीवानगी बैटन के लिए नजर आ रही हैं उससे हमें भी भरोसा हो गया है कि हम लोग यहां से मीठी यादें लेकर ही जाएंगे। बैटन रिले के दल में श्री सिंह के साथ शिवांश भट्टनागर, अखिलेन्द्र पीएस, अंकित रामपाल, नितिन सिंघल, हेमंत पाटिल, रोहित चौहान, नीरज सूद, शिवराज और निवेश कुमार शामिल हैं।
बैटन में हर राज्य की मिट्टी
वीएन सिंह ने बताया कि बैटन की खासियत यह है कि इसमें हर राज्य की मिट्टी का लेप लगाया गया है। इसी के साथ इसमें एक कैमरा है और इसमें वाइस रिकार्डर भी है। इससे एसएमएस भी किया जा सकता है। बैटन में एक सोने की पत्ती लगी है जिसमें एक मैसेज लिखा है, यह मैसेज ३ अक्टूबर को कामनवेल्थ प्रारंभ होने के समय दिल्ली में पढ़ा जाएगा।
स्वागत समारोह में खेल सचिव सुब्रत साहू, खेल संचालक जीपी सिंह, नगर निगम के सभापति संजय श्रीवास्तव, विधायक धर्मजीत सिंह, ओलंपिक संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा, उपाध्यक्ष गुरूचरण सिंह होरा, विधान मिश्रा के साथ सभी खेल संघों के पदादिकारी और कई खेलों के खिलाड़ी उपस्थित थे।

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बुधवार, अगस्त 11, 2010

रेल के डिब्बों में देखा खेल संसार


कामनवेल्थ एक्सप्रेस के जैसे ही राजधानी में होने की जानकारी यहां के खेल प्रेमियों को हुई, राजधानी से खेल प्रेमियों का कारवां चल पड़ा स्टेशन की ओर। सुबह से लेकर रात तक खेल प्रेमी रेल के डिब्बों में खेल के संसार से रूबरू होते रहे। खेल प्रेमियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारी भी समूह में स्टेशन पहुंचे। राजधानी के विभिन्न स्कूलों के विद्यार्थी भी प्रदर्शनी देखने पहुंचे। रात तक पहले दिन चार हजार से ज्यादा लोगों से प्रदर्शनी का अवलोकन किया। यह ट्रेल ११ अगस्त को भी यहां रहेगी इसके बाद १२ अगस्त को दुर्ग रवाना होगी।
कामनवेल्थ खेल दिल्ली में अक्टूबर में हो रहे हैं। इसके पहले इन खेलों की मशाल यानी बैटन का पूरे देश में भ्रमण हो रहा है। बैटन भ्रमण के साथ एक ट्रेन भी उस राज्य में जा रही है जहां पर बैटन को भेजा जा रहा है। छत्तीसगढ़ में बैटन का आगमन तो ११ अगस्त को हो रहा है, लेकिन इसके पहले यहां पर ९ अगस्त की रात से ही कामनवेल्थ एक्सप्रेस आ गई है। इस ११ डिब्बों वाली ट्रेन में पांच डिब्बे कामनवेल्थ खेलों से संबंधित हैं। इस ट्रेन के राजधानी में होने की जानकारी होने पर सुबह से ही स्टेशन में खेल प्रेमियों के साथ तकनीकी प्रेमियों का जमावड़ा लग गया। सुबह से शाम तक खेलों से जुड़े लोगों के साथ स्कूल और कॉलेज के छात्र-छात्राएं स्टेशन गए और प्रदर्शनी को देखा।
खेलों की जानकारी वाले डिब्बे
जिन पांच डिब्बों में खेलों की जानकारी दी गई है, उनमें सबसे पहले कोच में कामनवेल्थ का पूरा इतिहास है कि इसकी शुरुआत कब हुई और अब यह कारवां कहां तक पहुंच गया है। दूसरे कोच में दिल्ली में होने वाले कामनवेल्थ खेलों के लिए बनाए गए स्टेडियमों के बारे में जानकारी है कि किस स्टेडियम में कौन से खेल होंगे। तीसरे डिब्बे में कामनवेल्थ २०१० में होने वाले १७ खेलों के बारे में पूरी जानकारी दी गई है। चौथे डिब्बे में राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक विजेताओं के फोटो प्रदर्शनी के साथ राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के अब तक के प्रदर्शन की पूरी कहानी चित्रों की जुबानी है। इसी डिब्बे में दोहा एशियाड में भारतीय परचम लगराने वालों की भी जानकारी है। अंतिम डिब्बे में भारत के राष्ट्रीय पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न, पद्मश्री, अर्जुन पुरस्कार, द्रोणाचार्य, ध्यानचंद पुरस्कार के साथ रेलवे के अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों की पूरी जानकारी और इनकी सफलता की कहानी है।
रेलवे के खिलाडिय़ों से संभाला मोर्चा
डिब्बों में बसे खेल संसार के बारे में आम जनों को जानकारी देने के लिए रायपुर मंडल के खेलों से जुड़े खिलाडिय़ों ने मोर्चा संभाला रखा है। हर आने वाले को उनकी जिज्ञासा के अनुरूप जानकारी दी जा रही है।
खेल संघ समूह में गए
कामनवेल्थ एक्सप्रेस का अवलोकन करने के लिए राजधानी के खेल संघों ने यूनियन क्लब में एकत्रित होने के बाद स्टेशन की तरफ कूच किया। इसके पहले यहां पर संघों की बैठक हुई। इस बैठक में लॉन टेनिस संघ के गुरूचरण सिंह होरा और कराते संघ के विजय अग्रवाल से कहा कि अपनी राजधानी में बैटन रिले का आगमन कल हो रहा है जिसको ऐतिहासिक बनाने पूरा राज्य जुटा है। ऐसे में कामनवेल्थ एक्सप्रेस यहां आई हैं तो हम सभी ने सोचा कि एक साथ मिलकर इसको देखने जाए। इन्होंने कहा कि खेल से जुड़े हर खेल संघ और खिलाडिय़ों के साथ स्कूली विद्यार्थियों को जरूर इस एक्सप्रेस को देखने जाना चाहिए।
६ डिब्बों में संचार क्रांति की कहानी
एक तरफ जहां पांच डिब्बों में खेलों की क्रांति का उल्लेख है, वहीं अपने देश में विकसित हो रही संचार क्रांति का जानकारी ६ डिब्बों में है। इस संचार क्रांति के बारे में जानकारी देते हुए डीवीएल नारायण राव ने बताया कि आईटी ने देश के हर गांव को संचार क्रांति के साथ जोडऩे का काम प्रारंभ कर दिया है। पहले चरण में एक लाख गांवों को जोड़ा जा रहा है, ७० प्रतिशत काम पूरा हो गया है। ६ गांवों के बीच में एक सेंटर खोल जा रहा है। उन्होंने बताया कि ६ डिब्बों में सूचना टेक्नालॉजी के विभिन्न पहलूओं का शामिल किया गया है।

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मंगलवार, अगस्त 10, 2010

विवादों से क्यों है इतना प्यार-जरा कोई तो हमें बताए यार

आज जब हम ब्लाग चौपालमें चर्चा करने बैठे तो देखा कि दो ब्लागर मित्रों में जंग छिड़ी हुई है। इस जंग में एक तरफ वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी खड़े हैं तो दूसरी तरफ संजीत त्रिपाठी। हमें यह देखकर अफसोस हुआ कि अपने पत्रकार मित्र भी ऐसी जंग में शामिल हैं। ब्लाग जगत में तो हमेशा से विवाद होते रहे हैं। लोगों को न जाने विवादों से क्यों कर इतना प्यार है। अगर इतना ही प्यार लोग एक दूसरे के प्रति दिखाते तो शायद नफरत के लिए कोई स्थान ही नहीं रहता। लेकिन इसका क्या किया जाए कि यहां तो प्यार के लिए भी समय कम है और लोग नफरत के लिए इतना समय निकाल लेते हैं।
आखिर ऐसी बिना सिर पैरे की लड़ाई से किसका भला होता है। क्यों कर लोग बिना वजह- बिना सोचे समझे किसी के भी ब्लाग में कुछ भी टिप्पणी करने से बाज नहीं आते है। हमारे ब्लाग में भी एक कोई पतित पावन साहब काफी समय से कभी मखन वाली टिप्पणियां तो कभी बिना सिर पैरे की टिप्पणियां कर रहे हैं। हम लगातार उनको नजर अंदाज कर रहे हैं। पता नहीं लोगों को क्या मजा आता है ऐसा करने में। इंटरनेट पर सुविधा मिली है तो उसका सही उपयोग करना चहिए, पर अपने मित्र फर्जी आईडी बनाकर मजा लेने का काम करते हैं। हम तो ऐसी फर्जी आईडी बनाकर टिप्पणी करने वालों को मानसिक रोगी समझते हंै। अगर ये मानसिक रोगी नहीं होते तो अपने नाम से टिप्पणी करते फिर वह भले अच्छी होती है या अलोचनात्मक होती। आलोचना करना गलत नहीं है, लेकिन आलोचना करने के पीछे ठोस वजह भी होनी चाहिए। अगर मुझे लगता है कि फला को परेशान करना है तो बना ली एक फर्जी आईडी और दे रहे हैं दनादन कुछ भी टिप्पणी। बहरहाल हम तो बस इतना चाहते हैं कि कम से कम अपने पत्रकार मित्रों को ऐसी किसी जंग का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। आप दोनों समझदार हंै, क्यों कर अपनी ही बदनामी कर रहे हैं। यहां तो लोगों को बिना टिकट का तमाशा देखने में मजा आता है। मजा लेने वाले मजा लेंगे लेकिन सजा तो आपको मिलनी है। किसी भी समस्या का हल खुली जंग नहीं होता है। खुली जंग में तह उतरना चाहिए जब लगे कि सारे रास्ते बंद हो गए हैं। हमारा काम था मित्र होने के नाते सलाह देना अब इसे मानना न मानना आपका काम है। 

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सोमवार, अगस्त 09, 2010

बच्चें होंगे दूर- तो हो जाएंगे मगरूर

आज पालक प्रतिस्पर्धा के चलते अच्छी पढ़ाई के चक्कर में अपने बच्चों को अपने से दूर दूसरे शहरों में पढऩे के लिए भेज देते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो बच्चे माता-पिता से दूर हो जाते हैं वो मगरूर हो जाते हैं।
एक सज्जन अपनी पत्नी के साथ हमारे एक डॉक्टर मित्र के पास आए थे, वे डॉक्टर को बता रहे थे कि उनकी बेटी एक शहर में है तो बेटा दूसरा शहर में और हम पति-पत्नी यहां रायपुर में हैं। उन्होंने काफी दुखी मन से बताया कि पढ़ाई के चक्कर में हमने अपने बच्चों को बाहर भेज दिया है, लेकिन वहां की भी पढ़ाई कोई खास नहीं है। ऐसे में डॉक्टर साहब ने उनको अपने मित्र के बारे में बताया कि उन्होंने अपनी महज सात साल की एक बेटी को पढऩे के लिए बाहर भेज दिया है। इसी के साथ डॉक्टर साहब ने यह भी कहा कि यह तो मान कर चलिए कि अगर आप अपने बच्चों को पढऩे बाहर भेजते हैं तो फिर वो बच्चे आपके नहीं रह जाते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो इसमें कोई दो मत नहीं है कि जब बच्चे घर-परिवार से दूर हो जाते हैं तो वे अपनी मर्जी से चलते हैं और मगरूर हो जाते हैं। ऐसे में जब वे बच्चे अपने घर परिवार में आते हैं तो अपने माता-पिता की बातों की भी परवाह नहीं करते हैं। बहुत से पालक इस बात का रोना रोते हैं कि उन्होंने अपने बच्चों को बाहर भेजकर गलती कर दी। लेकिन आज सब कुछ जानते हुए भी लोग अपने बच्चों के भविष्य की खातिर उनको बाहर भेज कर अच्छी शिक्षा दिलाने का काम करते हैं, लेकिन नहीं बच्चे अपने माता-पिता के साथ क्या करते हैं, यह सब जानते हैं।
इस बारे में हमारे ब्लाग बिरादरी के मित्र क्या सोचते हैं जरूर बताएं।

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रविवार, अगस्त 08, 2010

दो पैसे में टेबल क्लाथ

टेंट के किराए में एक नया अध्याय जोड़ते हुए खेल विभाग ने पैसों में निविदा आमंत्रित करके इस निविदा में ही शासन के ५० लाख से ज्यादा की बचत कर दी है। इस निविदा में दस रुपए के किराए में मिलने वाला टेबल क्लाथ अब महज एकऔर दो पैसे में मिल रहा है। इसी के साथ कुल २८ सामानों की निविदा में शासन का लाखों बचाने में खेल विभाग सफल हो गया है। खेल विभाग की इस निविदा के बाद राज्य शासन के अन्य विभागों में हड़कंप मच गया है।
खेल विभाग ने अपने विभाग की फिजूलखर्जी पर लगाम लगाने के लिए पहली बार राज्य स्तर पर टेंट के लिए निविदा निकाली। इस निविदा की  खासियत यह रही है कि इसे अन्य विभागों की तरह रुपए में न मंगाकर पैसों में मंगाया गया। इसका यह फायदा हुआ है कि जो सामग्री रुपए में किराए में ली जाती थी वह अब पैसों में मिल रही है। खेल विभाग ने इस निविदा पर एक माह तक मेहनत करने के बाद अंतत: पूरे राज्य के १८ जिलों में होने वाले सभी आयोजनों में टेंट लगाने का जिम्मा एमपी किराया भंडार को दिया गया है। इसी फर्म ने जहां २८ सामानों में सबसे ज्यादा सामानों के लिए सबसे कम रेट दिए थे, वहीं अन्य सामानों के जिन फर्मों के रेट सबसे कम हैं, उन सामानों को भी उसी कम रेट में देने की सहमति देने पर ठेका इस फर्म को दे दिया गया है।
जिस फर्म को काम दिया गया है उस फर्म ने जहां १० रुपए के किराए पर मिलने वाले टेबल क्लाथ को एक से सात दिनों के लिए दो पैसे में देना मंजूर किया है, वहीं सात दिनों से ज्यादा के लिए किराया एक पैसे रखा है। इसी तरह से जिस कुर्सी का किराया पहले पांच रुपए देना पड़ता था, वह कुर्सी महज ९० पैसे किराए पर मिल रही है। खिलाडिय़ों के लिए बिस्तर में गद्दा, चादर और तकिया पहले १५ रुपए के किराए पर लेना पड़ता था, लेकिन अब यह तीन रुपए में मिलेगा। इसी तरह से स्टेज चेयर १२ रुपए की बजाए एक रुपए दस पैसे, दरी ८ रुपए के स्थान पर १९ पैसे में, सोफा २२ रुपए के स्थान पर २.८० रुपए, वीआईपी चेयर १० रुपए के स्थान पर १.८० रुपए, सफेद पर्दा दो रुपए के स्थान पर १४ पैसे, शामियाना वाटर प्रफू तीन रुपए स्क्वैयर फीट के स्थान पर २९ पैसे स्क्वैयर फीट, डोम वाटर प्रफू ८ रुपए के स्थान पर ४.१० रुपए स्क्वैयर फीट में लगेगा। कुल मिलाकर २८ सामानों में बहुत ज्यादा का फर्क आया है। टेंट व्यापार से जुड़े लोगों के साथ खेल विभाग के भी कई जानकारों का साफ कहना है कि इस एक निविदा से ही शासन को करीब ५० लाख से ज्यादा की बजत एक साल में हो जाएगी।
दूसरे विभागों मचेगा हड़कंप
खेल विभाग की निविदा के बाद एक बात तय मानी जा रही है कि अब उन विभागों के लिए परेशानी खड़ी होने वाली है जो विभाग पैसों के स्थान पर रुपए में निविदा मंगाकर शासन के लाखों रुपए का नुकसान करते हैं।
फिजूलखर्ची बचाने की पहल:खेल संचालक
खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि वे जबसे खेल विभाग में आए हैं देख रहे हैं कि टेंट के नाम से बहुत ज्यादा फिजूलखर्ची की जा रही है। इसी पर लगाम लगाने के लिए पैसों में निविदा मंगाकर एक फर्म को साल भर  राज्य के हर जिले में खेल विभाग के होने वाले कार्यक्रमों में टेंट लगाने का जिम्मा दिया गया है। 


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शनिवार, अगस्त 07, 2010

दौड़ेगी पूरी सरकार-दौड़ेगा पूरा छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के लिए १२ अगस्त का दिन ऐतिहासिक होगा जब राजधानी रायपुर में जहां एक तरफ हमारी पूरी सरकार बैटन रिले में दौड़ेगी, वहीं पूरा छत्तीसगढ़ भी दौड़ेगा। छत्तीसगढ़ के हर जिले के लोग इस आयोजन के भागीदारी बनेगे। रिहर्सल ने यह संकेत दे ही दिया है कि उस दिन क्या होगा।
प्रदेश की खेलमंत्री सुश्री लता उसेंडी ने कहीं। उन्होंने कहा कि यह अपने राज्य के लिए गर्व की बात है कि यहां पर बैटन रिले का आयोजन हो रहा है। उन्होंने बताया कि जिस दिन १२ अगस्त को यह आयोजन होगा उस दिन शहीद भगत सिंह चौक में प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ सभी १३ मंत्री उपस्थित ही नहीं रहेंगे बल्कि बैटन लेकर दौड़ेंगे। मुख्यमंत्री का अगुवाई में जहां बैटन रिले का आगाज होगा, वहीं समापन में राज्यपाल शेख्रर दत्त उपस्थित रहेंगे।
हर जिले का नृत्यक दल आएगा
खेलमंत्री ने बताया कि रिले में राज्य की पूरी संस्कृति की झलक दिखाने के लिए हर जिले के नृत्यक दल को बुलाया जा रहा है। अपने राज्य में हर जिले में कुछ न कुछ नया है।  सभी जिलों के नृत्यक दल रिले धावकों के पीछे अपने जिले की संस्कृति की ङालक दिखाते हुए अपने-अपने कार्यक्रम पेश करते चलेंगे।
नहीं रहेगी प्रशिक्षकों की कमी
खेलमंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उनकी जानकारी में है कि राज्य में खेलों के प्रशिक्षकों की बहुत ज्यादा कमी है। उन्होंने कहा कि हमारा विभाग की मप्र की तर्ज पर ज्यादा से ज्यादा प्रशिक्षकों की भर्ती करेगा। पूछने पर उन्होंने कहा कि खेल विभाग के नए सेटअप के हिसाब से भी जल्द भर्ती की जाएगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसा प्रयास चल रहा है कि उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को २९ अगस्त तक नौकरी देने की खुशखबरी दे दी जाए। उन्होंने बताया कि उन्होंने आज भी सामान्य प्रशासन विभाग में बात की है। नियम बनाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। उन्होंने राज्य के खेल पुरस्कारों के बारे में पूछने पर कहा कि इस बार भी ऐसी कोशिश रहेगी कि ये पुरस्कार जल्द घोषित कर दिए जाए और पुरस्कारों के चयन में किसी भी तरह की गड़बड़ी न हो। क्रीड़ा परिषद के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि इस पर भी ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर लगेगा कि इस परिषद के नए सिरे से गठन की जरूरत है तो नए सिरे से गठन किया जाएगा।
अब युवा उत्सव की मेजबानी लेंगे: लता
खेलमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ के लिए एक और गौरवशाली पल आने वाला है। हमारे विभाग ने राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी लेने के बाद अगले साल के राष्ट्रीय युवा उत्सव की मेजबानी लेने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा है। उन्होंने कहा कि हमारे विभाग की जिस तरह की तैयारी है उससे भरोसा है कि हमें जरूर इसकी मेजबानी मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय खेलों के साथ कामनवेल्थ की बैटन का छत्तीसगढ़ आना भी अपने लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। खेलमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में आज खेलों के लिए जो भी हो रहा है उसके पीछे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की खेलों के प्रति अच्छी सोच है। उन्होंने कहा कि अगर मुख्यमंत्री की रूचि नहीं होती तो राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी हमें नहीं मिलती। खेलमंत्री ने कहा कि हमारे विभाग युवा उत्सव की मेजबानी मिली तो इसे भी छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुसार ऐतिहासिक बनाने में हमारा विभाग कोई कसर नहीं छोडग़ा।

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शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

रिहर्सल कामयाब-बैटन रिले होगी लाजवाब

शहीद भगत सिंह चौक में खेल संघों के पदाधिकारियों के हाथों से होकर जैसे ही पहले पाइंट पर खड़ी खिलाड़ी के हाथों में बैटन पहुंची वैसे ही प्रारंभ हो गया बैटन रिले की रिहर्सल का कारवां। ६ किलो मीटर का यह ऐतिहासिक कारवां सप्रे स्कूल में जाकर थमा और इस बीच पूरे शहर में इस रिले की धूम मच गई। रिहर्सल देखकर कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि यह महज रिहर्सल है। रिहर्सल की कामयाबी को देखते हुए हर कोई एक ही बात कहता नजर आया कि बैटन रिले का १२ अगस्त का आयोजन जरूर लाजवाब होगा।
बैटन रिले रिहर्सल के कारवां में पहले नंबर पर धावक विसेंट कलड़ा के स्थान पर खड़ी एनआईएस कोच सरिता कुजूर को जैसे ही बैटन सौंपी गई वहां से प्रारंभ हो गया इस रिले का कारवां। इसके बाद एक-एक करके ८० पाइंट पर धावक बदलते रहे और यह कारवां महज ६० मिनट में ही समापन स्थल सप्रे स्कूल पहुंच गया। वहां पर तैनात खेल संघों के पदाधिकारियों के साथ खेल संचालक जीपी सिंह को मंच पर बैटन सौंपी गई।
हर कोई देखता रह गया
बैटन रिले का कारवां शहीद भगत सिंह चौक से लेकर सप्रे स्कूल तक जिस मार्ग से भी गुजरा वहां पर सभी उसको देखते रह गए। रास्ते में कई स्थानों पर खड़े नागरिकों से बैटन रिले की फोटो को अपने मोबाइल में कैद करने का काम किया। यातायात व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि कहीं भी किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। यातायात पुलिस ने पूरा मोर्चा संभाल कर रखा था।
धुमाल की धूम
बैटन रिले के कारवां के सामने चल रहे धुमाल की धूम ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा। मुख्य रिले में भी धूमाल को रखने का प्रस्ताव रखा गया है। इसको मंजूरी  देने की बात हर खेल संघ कहता है। सबका ऐसा मानना है कि धूमाल होने से रिले का मजा दुगना हो जाएगा और लगेगा कि वास्तव में कोई ऐतिहासिक आयोजन हो रहा है।
स्कैटरों ने जमाया रंग
रिले के सामने में सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र दलजीत सिंह के साथ उनके रायपुर, दुर्ग, भिलाई, कोरबा के स्कैटर रहे। रिले के प्रारंभ होने के पहले से ही इन्होंने रंग जमाना प्रारंभ कर दिया था। मुख्य रिले में भी इनको रखा जाएगा।
सुरक्षा धावकों ने भी संभाला मोर्चा
बैटन रिले के धावकों के साथ दोनों तरफ एक-एक सुरक्षा धावक रखे गए थे। सुरक्षा धावकों के रूप में पुलिस विभाग के ९ ऐसे जवान थे जो खेलों से जुड़े हैं। इन जवानों में अभय कुमार गननोरकर, धनजंय पाठक, प्रियेस जान, कन्हैया जान, रितुराज सिंह, मुकेश साहू, लक्ष्मी नारायण, हितेश्वरी चौधरी, कल्याणी मानिकपुरी शामिल हैं। इनको मुख्य रिले में भी जिम्मेदारी दी गई है।
खेल संघों ने दिखाया उत्साह
रिले में खेल संघों के पदाधिकारियों ने बहुत उत्साह दिखाया। जिस तरह से भिलाई में रिहर्सल फेल हो गई थी उसके बाद एक डर था कि कहीं रायपुर में भी खेल संघों के पदाधिकारियों रिहर्सल को महत्व ही न दें। लेकिन यहां पर सबने इसको महत्व दिया और उत्साह के साथ ज्यादातर खेल संघों के पदाधिकारी पहुंचे। खेल संघों के पदाधिकारियों में लॉन टेनिस के सचिव गुरूचरण सिंह होरा, वालीबॉल के मो. अकरम खान, ट्रायथलान के विष्णुश्रीवास्तव, जंप रोप के अखिलेश दुबे, कबड्डी संघ के रामबिसाल साहू, साफ्ट टेनिस के प्रमोद सिंह ठाकुर, कैरम संघ के विजय कुमार, कराते संघ के अजय साहू, म्यूथाई संघ के विजय अग्रवाल, वेटलिफ्टिंग संघ के सुखलाल जंघेल, नेटबॉल संघ के संजय शर्मा, साफ्टबॉल की रंजना राज, फुटबॉल संघ के मुश्ताक अली प्रधान, बैडमिंटन संघ के अनुराग दीक्षित, हैंडबॉल संघ के आलोक दुबे, तीरदांजी संघ के कैलाश मुरारका, थांग ता के गोविंद रावत के साथ कई खेल संघों के पदाधिकारियों के साथ ६० स्कूलों के दो हजार से ज्यादा विद्यार्थी, खेल शिक्षक उपस्थित थे। 

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गुरुवार, अगस्त 05, 2010

मंदिरों में दान करने से किसका भला होता है?

सावन का महीना चल रहा है, पूरे देश के मंदिरों में भीड़ का सैलाब उमड़ रहा है। इसी के साथ लोग मंदिरों में दान कर रहे हैं। दान करना गलत नहीं है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिर मंदिर में किए गए दान से किसका भला होता है। मंदिरों में दान करने वालों की मानसिकता क्या होती है? अपने देश में इतनी ज्यादा गरीबी है कि उनकी चिंता किसी को नहीं है। कई किसान भूख से मर जाते हैं, पर उनकी मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आता है, लेकिन मंदिरों में लाखों नहीं बल्कि करोड़ का गुप्त दान किया जाता है। आखिर इस दान से हासिल क्या होता है। किसको मिलता है इसका लाभ।
हम एक बात साफ कर दें कि हम कोई नास्तिक नहीं हैं। भगवान में हमारी भी उतनी ही आस्था है जितनी होनी चाहिए। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या आस्था जताने के लिए मंदिरों में दान करना जरूरी है। अगर नहीं तो फिर जो लोग मंदिरों में बेतहासा दान करते हैं उनके पीछे की मानसिकता क्या है? क्या उनको भगवान से किसी बात का डर रहता है। क्या ऐसे लोगों जो कि काले धंधे करते हैं उनके मन में यह बात रहती है कि वे भगवान के मंदिर में कुछ दान करके अपने पाप से बच सकते हैं। हमें तो लगता है कि ऐसी ही किसी मानसिकता के वशीभूत होकर ये लोग लाखों रुपए दान करते हैं। लेकिन इनके दान से किसका भला होता है? हमारे देश के बड़े-बड़े मंदिरों की हालत क्या है किसी से छुपी नहीं है। लाखों दान करने वालों के साथ वीआईपी और वीवीआईपी के लिए तो इन मंदिरों के द्वार मिनटों में खुल जाते हैं। इनको भगवान के दर्शन भी इनके मन मुताबिक समय पर हो जाते हैं, लेकिन आम आदमी को घंटों लंबी लाइन में लगे रहने के बाद भी कई बार भगवान के दर्शन नहीं होते हैं। कभी-कभी लगता है कि भगवान भी अमीरों के हो गए हैं, खासकर बड़े मंदिरों में विराजने वाले भगवान।
शिरर्डी के साई बाबा के दरबार के बारे में कहा जाता है कि वहां पर सभी को समान रूप में देखा जाता है। लेकिन हमारे एक मित्र ने बताया कि वे जब शिरर्डी गए थे तो वीआईपी पास से गए थे तो उनको दर्शन करने में कम समय लगा। यानी वहां भी बड़े-छोटे का भेद है। संभवत: अपने देश में ऐसा कोई मंदिर है ही नहीं जहां पर बड़े-छोटे का भेद न हो। किसी वीआईपी या फिर अमीर को हमेशा लाइन लगाने से परहेज रहती है। वे भला कैसे किसी गरीब के साथ लाइन में खड़े हो सकते हैं।
लाखों का दान करने वालों को क्या अपने देश की गरीबी नजर नहीं आती है। क्या ऐसा दान करने वाले लोग उन खैराती अस्पतालों, अनाथ आश्रामों में दान करने के बारे में नहीं सोचते हैं जिन आश्रमों में ऐसे बच्चों को रखा जाता है जिन बच्चों में संभवत: ऐसे बच्चे भी शामिल रहते हैं जो किसी अमीर की अय्याशी की निशानी के तौर पर किसी बिन ब्याही मां की कोख से पैदा होते हैं।
क्या लाखों दान करने वालों को अपने देश के किसानों की भूख से वह मौतें नजर नहीं आती हैं। आएगी भी तो क्यों कर वे किसी किसान की मदद करेंगेे। किसी किसान की मदद करने से उनको भगवान का आर्शीवाद थोड़े मिलेगा जिस आर्शीवाद की चाह में वे दान करते हैं। ऐसे मूर्खों की अक्ल पर हमें तो तरस आता है। हम तो इतना जानते हैं कि किसी भूखे ेको खाना खिलाने से लाखों रुपए के दान से ज्यादा का पुन्य मिलता है। किसी असहाय और गरीब को मदद करने से उनके दिल से जो दुआ निकलती है, वह दुआ बहुत काम की होती है।
हम मंदिरों में दान करने के खिलाफ कताई नहीं है, लेकिन किसी भी मंदिर में दान उतना ही करना चाहिए, जितने से उस मंदिर में होने वाले किसी काम में मदद मिले। जो मंदिर पहले से पूरी तरह से साधन-संपन्न हैं उन मंदिरों में दान देने से क्या फायदा। अपने देश में ऐसे मंदिरों की भी कमी नहीं है जिनके लिए दान की बहुत ज्यादा जरूरत है, पर ऐसे मंदिरों में कोई झांकने नहीं जाता है। क्या ऐसे मंदिरों की मदद करना वे दानी जरूरी नहीं समझते नहीं है जिनको दान करने का शौक है।
क्या बड़े मंदिरों में किए जाने वाले करोड़ों के दान का किसी के पास हिसाब होता है। किसी भी गुप्त दान के बारे में कौन जानता है। मंदिरों के ट्रस्टी जितना चाहेंगे उतना ही हिसाब उजागर किया जाएगा, बाकी दान अगर कहीं और चले जाए तो किसे पता है। अब कोई गुप्त दान करने वाला यह तो बताने आने वाला नहीं है कि उसने कितना दान किया है। हमारे विचार से तो बड़े मंदिरों में दान करने से किसी असहाय, लाचार, गरीब का तो भला होने वाला नहीं है, लेकिन मंदिर के कर्ताधर्ताओं का जरूर भला हो सकता है। अगर दानी इनका ही भला करना चाहते हैं तो रोज करोड़ों का दान करें, हमें क्या।

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बुधवार, अगस्त 04, 2010

जब तुम रखोगे मन में विश्वास- होगे हर परीक्षा में पास

जब तुम रखोगे मन में विश्वास
होगे हर परीक्षा में पास
नहीं होगे कभी तुम निराश
गर मन में है तुम्हारे विश्वास
भरोसा दुनिया में सबसे बड़ा है होता
जो है भरोसा करता
वो नहीं कभी अपनो को खोता
छोड़ दिया गर करना भरोसा
फिर तो है जीवन भर का रोना
रोना पड़े ऐसा काम कभी न करना
हमेशा साथी की बात पर विश्वास करना
 
एक ताजा कविता पेश है

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मंगलवार, अगस्त 03, 2010

क्या उनके घर में मां-बहनें नहीं हैं?

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में फ्रेडशिप डे के दिन धर्मसेना और बजरंग दल के युवाओं ने शहर की युवतियों और युवकों के साथ जो किया उसको लेकर पूरे शहर के साथ विधानसभा में भी बवाल मच गया। हर तरफ से बस एक ही सवाल दागा गया कि क्या ऐसा करने वालों के घरों में मां-बहनें नहीं हैं। तमाशाबीन बने पुलिस अफसरों के साथ नंगा नाच करने वालों पर भी अंतत: गाज गिरी। पुलिस वाले जहां निलंबति किए गए, वहीं संस्कृति के नाम पर नंगा खेल खेलने वालों को पुलिस ने रात भर घुम-घुम कर खोजा और पकड़ कर अदालत में पेश किया।
फ्रेडशिप डे के दिन रायपुर में धर्मसेना और बजरंग दल के गुंडों ने जो नंगा नाच खेला उसकी खबरें अखबारों प्रकाशित होने के बाद पूरा शहर जाग गया। इसी के साथ जाग गए विपक्षी नेता। एक तरफ से नागरिकों ने संबंधित थाना क्षेत्र का घेराव कर दिया, वहीं विपक्ष के नेताओं ने विधानसभा में बवाल मचा दिया कि यह कैसी कानून व्यवस्था है जो संस्कृति के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों को पकडऩे की बजाए सामने खड़े होकर तमाशा देखती है। इस मामले ने इतना ज्यादा तूल पकड़ा कि अंतत: तमाशाबीन बने तमाशा देखने वाले सभी पुलिस वालों को निलंबित किया गया। इसी के साथ गुंडागर्दी करने वाले सभी बजरंगियों को पकड़कर पहले थाने लाया गया इसके बाद उनको अदालत में पेश किया गया। पूरे शहर के लोग कल दिन भर एक ही सवाल करते रहे कि क्या ऐसी हरकतें करने वालों के घरों में मां-बहने नहीं हैं। हम एक बात बता दें कि अगर नंगा नाच करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हुई है तो उसके पीछे मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। हमारी कल की पोस्ट में एक सज्जन ने टिप्पणी देते हुए कहा था कि फोटोग्राफरों ने गुंडागर्दी करने वालों को रोका क्यों नहीं। अगर फोटोग्राफर उनको रोकने में लगते तो वे तो अपना काम कर ही लेते, पर फोटो नहीं खींची जाती और फोटो नहीं खींची जाती तो वह छपती नहीं और अगर ऐसी फोटो छपती नहीं तो ऐसे लोगों पर कार्रवाई भी नहीं होती। मीडिया ने जिस तरह के सवाल जवाब अफसरों ने लेकर मंत्रियों से किए उसी का नतीजा यह रहा कि पुलिस अफसरों को कार्रवाई करने मजबूर होना पड़ा।
चलिए कम से कम संस्कृति के नाम से खिलवाड़ करने वालों को जेल की हवा खाने से कुछ तो सबक मिलेगा। अब भविष्य में वे ऐसा करने से पहले जरूर सोचेंगे कि ऐसा करें या न करें। हम एक बात बता दें कि अक्सर ऐसा तमाशा करने वाले तमाशा करने से पहले प्रेस फोटोग्राफरों को फोन करके बुलाते हैं। एक अगस्त को भी उन्होंने ऐसा किया था, पर तब उनको यह मालूम नहीं था कि उनकी यही हरकतें उनको भारी पड़ जाएगी। फोटोग्राफर भी नहीं जानते थे कि ये इतनी ज्यादा नंगाई पर उतर आएंगे। हमारे एक फोटोग्राफर मित्र ने बताया कि बजरंगी तो युवक और युवतियों के सर के बाल कटवाकर उनको गंजा करना चाहते थे, फोटोग्राफरों ने उनको ऐसा करने से रोका। बहरहाल चलिए कभी तो बुरे काम का बुरा नतीजा सामने आया।

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सोमवार, अगस्त 02, 2010

फ्रेडशिप डे पर धर्मसेना के गुंडों का नंगा नाच

दोस्ती के दिन जो कुछ हमारे शहर में हुआ, वह वास्तव में बहुत दुखद है। धर्मसेना के गुंड़ों ने संस्कृति के नाम पर जिस तरह की गुड़ागर्दी की उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। क्या फ्रेडशिप डे पर भी उसी तरह से लगाम कसने की जरूरत आ पड़ी है जिस तरह की लगाम कसने का काम ये धर्म के ठेकेदार वेलन्टाइन डे पर करते हैं। वैसे तो किसी को भी दोस्ती या प्यार करने से रोकना अपराध है। लेकिन हमारे शहर में जब धर्मसेना के गुंडे पार्क में बैठे युवक-युवतियों के साथ मार-पीट कर रहे थे तब पुलिस वाले वहां खड़े तमाश देख रहे थे। धर्मसेना के गुंडों ने पूरे शहर में कल नंगा नाच खेला। सोचने वाली बात है कि क्या संस्कृति को बचाने का ठेका धर्मसेना ने ही ले रखा है।

क्या दोस्ती के दिन किसी के साथ ऐसा करना उचित है?
क्या दोस्ती करना अपराध है?
क्या एक लड़के और लड़की में दोस्ती का रिश्ता गलत है?
क्या लड़के और लड़की के बीच प्यार की ही रिश्ता होता है? 

ब्लागर मित्र अपने विचारों से जरूर अवगत कराए।

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रविवार, अगस्त 01, 2010

मुख्यमंत्री पर किया सबने विश्वास, अब होगा खेलों का विकास

प्रदेश की खेल बिरादरी ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पर विश्वास करते हुए उनको राज्य के खेलों का भी मुखिया बना दिया है। अब सभी खेल संघों को इस बात का भरोसा है कि जहां राज्य में खेलों का तेजी से विकास होगा, वहीं राष्ट्रीय खेलों का आयोजन ऐतिहासिक होगा। यह मानना है वालीबॉल संघ के महासचिव मो. अकरम खान का। उनसे की गई बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं।
0 मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बन गए हैं।  अब इससे खेलों में क्या फायदा होगा?
00 राज्य के  सभी खेल संघों के पदाधिकारी काफी समय से यह चाह रहे थे कि राज्य के खेलों के मुखिया भी डॉ. रमन सिंह होंगे। अब यह सपना पूरा हो गया है तो सभी खेल संघों को इस बात का भरोसा है कि राज्य में खेलों का तेजी से विकास होगा।
0 37वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी छत्तीसगढ़ को मिली है, इसके बारे में क्या सोचते हैं?
00 छत्तीसगढ़ को आज अगर राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है तो इसके पीछे भी मुख्यमंत्री की खेलों में विशेष रूचि ही प्रमुख कारण है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में होने वाले राष्ट्रीय खेल ऐतिहासिक होंगे।
0 क्या राष्ट्रीय खेल समय पर होंगे?
00 जिस तरह से छत्तीसगढ़ की तैयारी है और मुख्यमंत्री ने कहा भी है कि राष्ट्रीय खेलों का आयोजन समय पर होगा, उससे लगता है कि कम से कम छत्तीसगढ़ में यह आयोजन समय पर होगा।
0 क्या मुख्यमंत्री अब वालीबॉल संघ के भी अध्यक्ष बनेंगे?
00 मुख्यमंत्री को वालीबॉल संघ का अध्यक्ष बनाने का आफर बहुत पुराना है। पिछली बार भी हमारे संघ ने ऐेसा प्रयास किया था, पर उस समय मुख्यमंत्री सहमत नहीं हुए थे, अब जबकि वे ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बने हैं तो उनके सामने एक बार फिर से वालीबॉल संघ का अध्यक्ष बनने का आफर रखा गया है, आशा है वे इस आॅफर को स्वीकार करेंगे।
0 आपको ओलंपिक संघ के सचिव पद का दावेदार कहा जा रहा है?
00 कई खेल संघों के पदाधिकारियो का ऐसा मानना है कि मैं इस पद के लिए उपयुक्त हो सकता हूं। अगर मुख्यमंत्री चाहेंगे और मुझे यह जिम्मेदारी दी जाएगी तो जरूर इस जिम्मेदारी को उठाने का काम करूंगा।
0 छत्तीसगढ़ में होने वाली बैटन रिले के बारे में क्या सोचते हैं?
00 इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में जिस तरह की तैयारी चल रही है, वैसी तैयारी और किसी राज्य में नहीं की गई हैं। यहां पर बैटन रिले का आयोजन यादगार और ऐतिहासिक होगा।
0 खेल जगत में इन दिनों जिस तरह से यौन शोषण की खबरें आ रही हैं उसके बारे में क्या कहते हैं?
00 जिस किसी भी कोच पर इस तरह का आरोप साबित हो जाता है, उसको खेल जगत से हमेशा के लिए अलग कर देना चाहिए। इसी के साथ यह जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा महिला खिलाड़ी कोच बनने की दिशा में कदम बढ़ाएं।
0 राज्य में वालीबॉल की क्या स्थिति है?
00 राज्य में वालीबॉल ही एक ऐसा खेल है जो हर गांव में खेला जाता है। हमारे संघ ने सरकार को अकादमी बनाने का प्रस्ताव दिया है, मंजूरी मिलते ही इसे प्रारंभ किया जाएगा। इसी के साथ साई से भी इस पर चर्चा चल रही है।
0 वालीबॉल में प्रशिक्षकों की क्या स्थिति है?
00 बहुत कम प्रशिक्षक हैं। हर जिले में एक महिला और एक पुरुष प्रशिक्षक का होना अनिवार्य है। सरकार को ज्यादा से ज्यादा प्रशिक्षक रखने पर ध्यान देना चाहिए। सीनियर खिलाड़ियों को सरकार एनआईएस करवाने भेजे और उत्कृष्ट खिलाड़ियों को प्रशिक्षक की नौकरी में रखे।
0 क्या कमी खलती है?
00 राजधानी में इंडोर स्टेडियम की कमी खलती है। इंडोर स्टेडियम के पूर्ण न हो पाने के कारण छत्तीसगढ़ के हाथ से एशियन चैंपियनशिप की मेजबानी चली गई?

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