ट्रेन का पहला सफर-टीटी पर गया गांव वाला चढ़
यह बात उस जमाने की है जब ट्रेनों में कोयले का इंजन लगता था। एक गांव का बंदा पहली बार ट्रेन में सफर करने के शौक के चलते अपने गांव से रायपुर पहुंचा और बिलासपुर जाने के लिए टिकट कटाने गया तो वहां पर उसने टिकट देने वाले बंदे से पूछा कि भईया जरा बता दीजिए कि ट्रेन कैसी होती है और हमें कहां पर से ट्रेन में चढ़ाना है। टिकट कलर्क ने उस गांव के बंदे को विस्तार से समझाया कि ट्रेन काले रंग की होती है और उसके मुंह से धुंआ निकलता। ट्रेन पटरी में चलती है। जैसे ही ट्रेन आए तुम बैठ जाना।
बंदा ट्रेन के बारे में जानकारी लेकर प्लेटफार्म पर पहुंच गया। थोड़ी देर बाद एक टिकट चेकर साहब जो कि खुद पूरी तरह से काले थे और काले कोटे के साथ काली पेट पहने हुए थे, सिगरेट के कस लगाते हुए मस्त चाल से पटरी के बीचों-बीच चल आ रहे थे। गांव वाले बंदे को लगा कि यार शायद यही ट्रेन है। फिर क्या था उसने आव देखा न ताव उन टिकट चेकर के पास आते ही कूद कर चढ़ गए जनाब उनके कंघे पर। टिकट चेकर परेशान हो गए, और उसको बोलने लगे भाई साहब आप ये क्या कर रहे हैं। गांव वाले ने कहा क्या कर रहे हैं का क्या मतलब है। भईया हमने टिकट लिया है। ये देखों टिकट, हमें जल्दी से बिलासपुर पहुंचा दो। पहली बार तो ट्रेन में बैठने का मौका मिला है, और आप हैं कि कह रहे हैं कि क्या कर रहे हैं। एक तो बहुत देर से हम इंतजार कर रहे हैं और अब आप इतनी देर बाद आए हैं, और हमें से ही पूछ रहे हैं कि क्या कर रहे हैं।
8 टिप्पणियाँ:
ये कहानी तो संभवतः देश के हर भाग में प्रचलित है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
गांव वाले की जय हो ....
लाजवाब.. हंसी के फूहारे छूट पड़े
बेचारा टीटी
मजेदार किस्सा है।
रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!
रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!
गजब चुटकुला है जी, अच्छी हँसी लायक। अब यह मत कहिएगा कि सच्ची घटना है, नहीं तो रो पड़ूंगा। :)
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