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मंगलवार, अगस्त 04, 2009

एक सत्य


मकान के नाम पर

टूटे-फूटे झोपड़े

बदन ढ़कने के नाम पर

फटे-पुराने कपड़े

भीख मांगते इंसान

प्यासी आंखें, भूखी आतें

नजर आती है चारो तरफ

बेबसी, लाचारी, गरीबी और भूख

लगती है आज सारी दुनिया

बधिर और मूक

9 टिप्पणियाँ:

soniya,  मंगल अग॰ 04, 10:32:00 am 2009  

आज की हकीकत बयां करती रचना है

Arun मंगल अग॰ 04, 10:43:00 am 2009  

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अजय कुमार झा मंगल अग॰ 04, 11:07:00 am 2009  

बहुत खूब राज भाई ...सच को सामने रख दिया आपने..बहुत कम शब्दों में ...

vishal,  मंगल अग॰ 04, 11:22:00 am 2009  

सच को उजागर करने वाली कविता है आपकी

anu मंगल अग॰ 04, 01:46:00 pm 2009  

एक सत्य की तरह सत्य लिखा है आपने

Unknown मंगल अग॰ 04, 01:50:00 pm 2009  

प्यासी आंखें, भूखी आतें

नजर आती है चारो तरफ

बेबसी, लाचारी, गरीबी और भूख

लगती है आज सारी दुनिया

बधिर और मूक

बहुत सटीक

radha soni,  मंगल अग॰ 04, 07:24:00 pm 2009  

कम सब्दों में बड़ी बात

ravi kumar,  मंगल अग॰ 04, 07:34:00 pm 2009  

समाज पर करारा परहर है ये कविता

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