गरीबी ने बना दिया राष्ट्रीय खिलाड़ी को कालगर्ल
कहते हैं कि गरीबी जो न कराए कम है। जब पेट में आग लगती है तो इंसान सारी नैतिकता की बातों को भूल जाता है और ऐसा कुछ भी करने के लिए मजबूर हो जाता है जिसके लिए उसकी आत्मा गंवारा नहीं करती है। ऐसा ही कुछ असम की एक पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी निशा शेट्टी के साथ हुआ है जिसके कारण उनको एक खिलाड़ी से कालगर्ल बनाना पड़ गया। रायपुर में पकड़े गए एक सेक्स रैकेट में निशा भी शामिल थीं। पहली बार रायपुर आई इस सेक्स वर्कर ने जब इस बात का खुलासा किया कि वह राष्ट्रीय खिलाड़ी रह चुकी हैं और उनको बेरोजगारी और गरीबी ने इस दलदल में धेकले दिया है तो पुलिस वाले भी आश्चर्य में पड़ गए।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के देवेन्द्र नगर इलाके में जब एक सेक्स रैकेट पकड़ा गया तो यह पहले दिन यह खबर आम सेक्स के रैकेट जैसी खबरों की तरह ही खबर थी। लेकिन दूसरे दिन इस कांड में शामिल एक सेक्स वर्कर निशा शेट्टी के बयान ने अपने समाज की पोल खोलकर रख दी। इस महिला की बात मानें तो उनका कहना है कि वह इस पेशे में मजबूरी से आई हैं। उसने पुलिस और मीडिया के सामने जो अपनी दास्ता सुनाई उसके मुताबिक मूलत: असम की रहने वाली यह महिला वालीबॉल के साथ एथलेटिक्स की राष्ट्रीय खिलाड़ी थी और दोनों खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर खेल कर अपने राज्य के लिए पदक भी जीते। खेल के दौरान ही उसकी मुलाकात राष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी रायबहादुर से हुई और फिर इसके बीच प्यार हो गया और रायबहादुर ने निशा को अपनी जीवनसाथी बना लिया। निशा इस बात से खुश थीं कि उनको जीवनसाथी के रूप में एक खिलाड़ी मिला है तो उनकी भावनाओं को समझता है। लेकिन निशा की किस्मत में सुख नहीं लिखा था। राष्ट्रीय स्तर पर खेलने वाली इस दंपति को काफी कोशिशों के बाद कोई नौकरी नहीं मिली। रायबहादुर ने उस रेलवे की भी शरण ली जिसके बारे में कहा जाता है कि प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों की कोई देश में कदर करता है तो वह रेलवे है। पर यहां पर जब राय बहादुर को पनाह नहीं मिली तो यह राष्ट्रीय खिलाड़ी टूट गया और इसी गम में वह शराब पीने लगा। और एक दिन ऐसा आया कि शराब रायबहादुर को पी गई और वह निशा को एक बेटी के साथ छोड़कर दो साल पहले इस दुनिया से चला गया।
पति की मौत के बाद निशा के बुरे दिनों की शुरुआत हुई। पति की मौत की दुहाई देकर भी इस राष्ट्रीय खिलाड़ी को जब नौकरी नहीं मिली तो वह अपनी एक सहेली के पास नौकरी की तलाश में मुंबई चली गई। यहां भी उनके हाथ नौकरी नहीं लगी तब उन्होंने अपनी सहेली की सलाह पर अपनी बेटी के साथ मां की परवरिश करने के लिए अंतत: उस जिस्म फरोशी के धंधे में कदम रखा जिसको समाज में अच्छी नजरों ने नहीं देखा जाता है। बकौल निशा उसको इस धंधे में आए ज्यादा समय नहीं हुआ है। लेकिन क्या करती, अगर मैं इस धंधे में नहीं आती तो मेरे साथ मेरी बेटी और मां की भूख से मौत हो जाती। कम से कम आज मैं जिस्म को बेचकर अपनी बेटी और मां का पेट तो भर रही हूं। निशा का कहना है कि वह बाहर जाने का काम नहीं करती है, पर सहेली के कहने पर ही वह पहली बार रायपुर आई और यहां पर पुलिस के हत्थे चढ़ गई। निशा का कहना है कि अगर उनके पति को ही नौकरी मिल गई होती तो आज वे जिंदा होते और मुझे ऐसे गंदे धंधे में न आना पड़ता। मेरे पति के मरने के बाद भी अगर मुझे नौकरी मिल जाती तो मुझे क्यों अपना जिस्म बेचना पड़ता।
ये दास्ता एक महज निशा की नहीं है। न जाने ऐसे कितनी निशाएं हैं अपने देश में जिनको बेरोजगारी और गरीबी की लाचारी में अपना जिस्म बेचना पड़ता है। भले समाज इनको अच्छी नजरों ने नहीं देखता है, तो क्यों नहीं समाज के ठेकेदार ऐसी असहाय और गरीब लड़कियों की मदद करने के लिए सामने आते हैं। क्या समाज के ठेकेदार ऐसी लड़कियों पर केवल ताने मारने के लिए हैं। बहुत जरूरी है कि समाज में फैली जिस्म फरोशी की बुराई के पीछे छुपी मजबूरी को समझा जाए। इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि ऐसा धंधा करने वाली कई महिलाएं अपने शौक पूरे करने के लिए इस धंधे में आती हैं, लेकिन ज्यादातर महिलाओं के इस धंधे में आने के पीछे मजबूरी होती है। इस मजबूरी की जड़ को अगर समाप्त कर दिया जाए तो कोई इस धंधे में क्यों कर आए। लेकिन लगता नहीं है कि अपने देश में ऐसा संभव है। यहां तो लोग बिना टिकट का तमाशा देखने के आदी है, किसी की मजबूरी की फायदा उठाने का आदी है और किसी की मजबूरी पर हंसने के भी आदी है।
10 टिप्पणियाँ:
बहुत ही दुर्भायजनक है किसी राष्ट्रीय खिलाड़ी का इस तरह से गरीबी के कारण कालगर्ल बनना।
महोदय,बुराई को दूर करने की भूली शपथ याद दिलाने के लिये धन्यवाद!
क्या पूर्व खिलाड़ी होने का मलतब जिस्म फरोशी करने का लायसेंस होना है। हर गरीब अगर निशा की तरह करने लगे तो समाज में हर तरफ वैश्यालय हो जाएंगे।
पकड़े जाने के बाद धंधा करने वालियां ऐसे कई बहाने बनाने लगती है कि उसको गरीबी और बेरोजगारी के कारण ऐसे धंधे में आना पड़ा।
सच में निशा जैसी न जाने कितनी लड़कियों को इस तरह के धंधे में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
सरकार को राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को नौकरी देनी चाहिए। अगर सरकार ऐसा नहीं करेगी तो खिलाड़ी क्यों खेलेंगे।
उस खिलाड़ी ने यह खुलासा नहीं किया कि सरकारी नौकरी के अलावा उसने और कहीं और नौकरी का प्रयास किया या नहीं।
देश की हर निशा अगर गरीबी का रोना रोते हुए जिस्म फरोशी करने लगे तो इस देश का क्या होगा। सरकारी नौकरी से भी आगे बहुत कुछ होता है। जिसके मन में चाह हो वह ईमानदारी से कुछ भी करके अपना घर चला सकता है। अब यह बात अलग है कि एक आसान रास्ते से अधिक पैसा मिलता है तो फिर बहाने तो बनाए ही जाएंगे।
गरीबी जो न कराए कम है, इस बात में दम है।
पोस्ट पर आई सभी टिप्पणीयां भी विचारणीय हैं....वैसे सरकार को चाहिए की खिलाड़ीयों की ओर ध्यान दें।
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