हम अब भी तेरा एतबार करते हैं
तुम्हें हमसे नफरत सही
हम तुम्हें प्यार करते हैं।।
इस हंसी गुनाह को
हम हर बार करते हैं।।
तुम आओगी नहीं जानकर भी
हम तुम्हें बुलाते हैं।।
दिल के आईने में अब भी
हम तेरा दीदार करते हैं।।
ऐ मेरी हमदम तुम्हें तो
वफा के नाम से नफरत है।।
और एक हम हैं जो
जफा से भी प्यार करते हैं।।
गम लिए फिरते हैं
सारे जमाने का दिल में।।
मगर फिर भी न किसी से
शिकायत करते हैं।।
आ जाओ लौटकर तुम
दिल की दुनिया फिर से बसाने।।
हम तो तेरा अब भी
इंतजार करते हैं।।
सब कहते हैं बेवफा तुम्हें
पर हम तेरा अब भी एतबार करते हैं।।
हम तुम्हें प्यार करते हैं।।
इस हंसी गुनाह को
हम हर बार करते हैं।।
तुम आओगी नहीं जानकर भी
हम तुम्हें बुलाते हैं।।
दिल के आईने में अब भी
हम तेरा दीदार करते हैं।।
ऐ मेरी हमदम तुम्हें तो
वफा के नाम से नफरत है।।
और एक हम हैं जो
जफा से भी प्यार करते हैं।।
गम लिए फिरते हैं
सारे जमाने का दिल में।।
मगर फिर भी न किसी से
शिकायत करते हैं।।
आ जाओ लौटकर तुम
दिल की दुनिया फिर से बसाने।।
हम तो तेरा अब भी
इंतजार करते हैं।।
सब कहते हैं बेवफा तुम्हें
पर हम तेरा अब भी एतबार करते हैं।।
11 टिप्पणियाँ:
दिल जले लगते हो गुरु
दिल जलों की दास्ता बया कर दी आपने
सब कहते हैं बेवफा तुम्हें
पर हम तेरा अब भी एतबार करते हैं।।
वाह क्या बात है...
दिल को छू गई आपकी रचना
दिल जले लगते हो क्या तुम भी प्यार करते हो
प्यार में ऐसा ही होता है
आग में हाथ डालोगे तो हाथ तो जलेंगे ही न
जब बेवफा से भी प्यार करना चाहे तो समझो मामला गड़बड़ है..!मेरा मतलब अभी भी प्यार है...
सुन्दर रचना है
राजकुमार जी आप मेरे ब्लॉग के समर्थक बने आपका स्वागत है. 'राजतन्त्र' पर आप अच्छा लिख रहें हैं
जानदार!! वाह!
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