गब्बर सिंह का नशा चढ़ा संस्कृत पर भी
कितने आदमी थे..., तेरा क्या होगा कालिया...., इस गांव से पचास-पचास कोस दूर जब गांव में बच्चा रोता है तो मां कहती है बेटा सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आए जाएगा। फिल्म शोले के ये डायलॉग आज भी लोगों को बहुत भाते हैं। इन डायलॉग को हर वर्ग पसंद करता है। ये डायलॉग की नहीं फिल्म शोले आज भी किसी सिनेमाघर में लग जाए तो लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। अब इस फिल्म के डायलॉग का नशा संस्कृत पर भी चढ़ा है। वैसे संस्कृत पर शोले के साथ और 10 फिल्मों का नशा चढ़ा है। इन फिल्मों के डायलॉग को संस्कृत में तैयार किया गया है। अब तेरा होगा कालिया कि जगह अगर गब्बर सिंह यह कहते हुए नजर आए कि कालिया तव किं भविष्यसि.. तो आपको कैसा लगेगा। दरअसल गुजरात की एक संस्था संस्कृत क्लब ने 11 फिल्मों के डायलॉग को संस्कृत में तैयार किया है। यह इसलिए किया गया है ताकि संस्कृत को बढ़ाया जा सके।
वास्तव में यह अपने देश की विंडबना है कि आज संस्कृत जैसी भाषा को फिल्मों के डायलॉग का सहारा लेना पड़ रहा है। आज जबकि अपने देश की राष्ट्रभाषा का ही अपने देश में काफी बुरी हाल है तो बाकी के बारे में क्या किया जा सकता है। वैसे भी आज संस्कृत केवल पंडितों की पूजा तक ही सिमट कर रह गई है। वैसे पंडित भी हिन्दी में पूजा करना ज्यादा उचित समझते हैं। ऐसे में संस्कृत का हाल तो बुरा होना ही है। आज संस्कृत पढऩा कोई पसंद ही नहीं करता है। देश के संस्कृत के कॉलेजों में गिन-चुने छात्र ही जाते हैं। बहरहाल हम बातें करें फिल्म शोले की। इस फिल्म के सबसे लोकप्रिय किरदार गब्बर सिंह के डायलॉगों को अब गुजरात की एक संस्था संस्कृत क्लब ने संस्कृत में तैयार किया है न केवल डायलॉग संस्कृत में ंतैयार किए गए हैं बल्कि इनको एक कार्यक्रम में मंच पर पेश करने की तैयारी भी की गई है। यह कार्यक्रम संस्था 29 अगस्त को करने जा रही है। इस कार्यक्रम में जो भी गब्बर सिंह का किरदार निभाएगा उसको मंच पर गब्बर सिंह के डायलॉग कुछ इस तरह से बोलते सुना जाएगा कि
कालिया तव किं भविष्यस
यानी कालिया तेरा क्या होगा
कालिया जवाब देगा-सरदार मैंने आपका नमक खाया है ...
महोदया मया भवत: लवंण खादितवान...
इस पर गब्बर कहेगा-ईदानि गोलिकां अपि खादत
यानी अब गोली खा...
इस तरह से और कई डायलॉग को संस्कृत में तैयार किया गया है। फिल्म शोले के साथ ही गुरु, दामिनी, लगे रहो मुन्नाभाई, दीवार,हेरा फेरी, क्रांतिवीर और लीडेंड ऑफ भगत सिंग जैसी फिल्मों के भी लोकप्रिय डायलॉग को संस्कृत में तैयार किया गया है। इसके पीछे का कारण यह है कि संस्था चाहती है कि आज का युवा वर्ग संस्कृत को जाने और समझे। संस्था का यह प्रयास है तो सराहनीय, पर देखने वाली बात यह होगी कि इसका कितना असर युवाओं पर पड़ता है। युवा इस प्रयास को गंभीरता से लेते हैं या फिर इसको एक मजोरंजन मात्र समझ कर हवा में उड़ा देते हैं।
वास्तव में यह अपने देश की विंडबना है कि आज संस्कृत जैसी भाषा को फिल्मों के डायलॉग का सहारा लेना पड़ रहा है। आज जबकि अपने देश की राष्ट्रभाषा का ही अपने देश में काफी बुरी हाल है तो बाकी के बारे में क्या किया जा सकता है। वैसे भी आज संस्कृत केवल पंडितों की पूजा तक ही सिमट कर रह गई है। वैसे पंडित भी हिन्दी में पूजा करना ज्यादा उचित समझते हैं। ऐसे में संस्कृत का हाल तो बुरा होना ही है। आज संस्कृत पढऩा कोई पसंद ही नहीं करता है। देश के संस्कृत के कॉलेजों में गिन-चुने छात्र ही जाते हैं। बहरहाल हम बातें करें फिल्म शोले की। इस फिल्म के सबसे लोकप्रिय किरदार गब्बर सिंह के डायलॉगों को अब गुजरात की एक संस्था संस्कृत क्लब ने संस्कृत में तैयार किया है न केवल डायलॉग संस्कृत में ंतैयार किए गए हैं बल्कि इनको एक कार्यक्रम में मंच पर पेश करने की तैयारी भी की गई है। यह कार्यक्रम संस्था 29 अगस्त को करने जा रही है। इस कार्यक्रम में जो भी गब्बर सिंह का किरदार निभाएगा उसको मंच पर गब्बर सिंह के डायलॉग कुछ इस तरह से बोलते सुना जाएगा कि
कालिया तव किं भविष्यस
यानी कालिया तेरा क्या होगा
कालिया जवाब देगा-सरदार मैंने आपका नमक खाया है ...
महोदया मया भवत: लवंण खादितवान...
इस पर गब्बर कहेगा-ईदानि गोलिकां अपि खादत
यानी अब गोली खा...
इस तरह से और कई डायलॉग को संस्कृत में तैयार किया गया है। फिल्म शोले के साथ ही गुरु, दामिनी, लगे रहो मुन्नाभाई, दीवार,हेरा फेरी, क्रांतिवीर और लीडेंड ऑफ भगत सिंग जैसी फिल्मों के भी लोकप्रिय डायलॉग को संस्कृत में तैयार किया गया है। इसके पीछे का कारण यह है कि संस्था चाहती है कि आज का युवा वर्ग संस्कृत को जाने और समझे। संस्था का यह प्रयास है तो सराहनीय, पर देखने वाली बात यह होगी कि इसका कितना असर युवाओं पर पड़ता है। युवा इस प्रयास को गंभीरता से लेते हैं या फिर इसको एक मजोरंजन मात्र समझ कर हवा में उड़ा देते हैं।
16 टिप्पणियाँ:
संस्कृत को बढ़ाने के लिए यह पहल ठीक नहीं लगती है। आज की युवा पीढ़ी जिस तरह से अंग्रेजी के जाल में जकड़ी हुई है उसको संस्कृत से क्या लेना-देना। जब हिन्दी बोलना आज के युवाओं का अपमान लगता है तो भला कोई कैसे संस्कृत को अपना सकता है।
क्या संस्कृत के दूर दिन ऐसी पहल से दूर होंगे? यह एक गंभीर सवाल है। इसका जवाब सबका खोजना होगा।
अच्छी बातों का अनुशरण होना गलत नहीं है, पर संस्कृत को बढ़ाने के लिए फिल्मों के डायलाग का सहारा लेना उचित नहीं लगता है।
आपके इस लेख ने तो एक सार्थक बहस की शुरुआत कर दी है कि आज देश की संस्कृत जैसी भाषा का क्या हाल हो गया है। हिन्दी और संस्कृत को पूछने वाला कोई नहीं है। इन भाषाओं को जिंदा रखने के लिए जागरूकता जगाने की जरुरत है।
बहुत सुन्दर आज ही अखबार में पढ़ा है . प्रस्तुति के लिए बधाई . यदि इसी तरह पढाया गया तो आने वाले समय में गब्बर और वीरू हमारे आदर्श होंगे..
संस्कृत के प्रति युवाओं की रुचि जागृत करना बहुत अच्छी बात है पर इसके लिए फिल्मी डायलॉग्स का सहारा लेना क्या उचित है?
मेरे विचार से तो संस्कृत नाटकों जैसे कि अभिज्ञान शाकुन्तल, स्वप्न वासवदत्ता, प्रतिज्ञा यौगन्धरायण, मुद्रा राक्षस आदि का मंचन करना सही पहल होगा। विश्वास कीजिये, ये सारे नाटक बहुत ही रोचक हैं और युवा वर्ग को बहुत पसंद आयेंगे।
यह बात तो ठीक है जिस देश में राष्ट्रभाषा का कद्र नहीं होती है वहां दूसरी भाषाओं का तो भगवान ही मालिक है।
चलिए किसी ने तो संस्कृत की पीड़ा को समझा, ऐसी संस्था को साधुवाद है।
संस्कृत के लिए गब्बर सिंह का सहारा लेना शर्मनाक है गुरु
It is a very commendable approach, very good indeed !
कालिया तव किं भविष्यस
यानी कालिया तेरा क्या होगा
कालिया जवाब देगा-सरदार मैंने आपका नमक खाया है ...
महोदया मया भवत: लवंण खादितवान...
इस पर गब्बर कहेगा-ईदानि गोलिकां अपि खादत
यानी अब गोली खा...
मनोरजंन के लिए यह ठीक लग रहा है, पर इससे संस्कृत का भला होगा ऐसा मुझे तो नहीं लगता है।
Harry Potter has also been dubbed in Latin. It is a commendable approach..
संस्कृत के प्रति जागृत करना एक सार्थक प्रयास होगा.
मोगाम्बो प्रसन्नं भवति!
एकेडमिक क्षेत्र में संस्कृत के आज भी जीवित होने में 'मलेच्छ' और 'यवन' विद्वानों का बहुत योगदान है। इस भाषा को सीखने के लिए मैंने जितना ही नेट खंगाला है, उतना ही अभिभूत हुआ हूँ उन शांत मनीषियों पर !
हम लोग तो हिन्दी भी ठीक से नहीं लिख बोल पाते, संस्कृत तो दूर की बात है। अपनी भाषा के प्रति जितनी लापरवाही हिन्दी प्रदेशों में मिलती है, उसका उदाहरण मिलना कठिन है।
सितम्बर आ रहा है और हम लोग हिन्दी पखवाड़े के 'वार्षिक कर्मकाण्ड' की तैयारी में लगे हैं। जब हिन्दी के लिए इस अनुष्ठान की आवश्यकता पड़ती है तो संस्कृत की क्या कहें !
संस्कृत के प्रचार में यह प्रयास कितना सफल होगा, यह तो भविष्य के गर्त में है। अभिज्ञान शाकुन्तलम, स्वप्न वासवदत्ता, प्रतिज्ञा यौगन्धरायण, मुद्रा राक्षस आदि के मंचन का अवधिया जी का विचार उत्तम है। इससे संस्कृत का प्रचार प्रसार अवश्य होगा।
कालिया जवाब देगा-सरदार मैंने आपका नमक खाया है ...
महोदया मया भवत: लवंण खादितवान
बहुत घटिया प्रयास है. सरदार शब्द के लिए महोदया का इस्तेमाल बताता है कि प्रयास कितना घटिया है.
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