अनोखा कटहल
कटहल की सब्जी भले किसी को पसंद आती हो, पर हमें यह सब्जी बिलकुल पसंद नहीं आती है। हमारी श्रीमतीजी ने आज जब फरमाइश की कि आज तो कटहल की सब्जी ला दो। हम जब बाजार कटहल लेने जा रहे थे तो हमें बरसों पहले किसी कवि सम्मेलन में सुनी गई ये चंद लाईनें याद आ गईं जिसमें एक आंख वाले एक बंदे से सब्जी मंडी में अनोखा कटहल इजाद कर दिया था। देखिए इन लाईनों को और आप भी मिलीए अनोखे कटहल से
एक आंखे के अंधे ने
खुद के बंदे ने
सब्जी मंडी में प्रवेश किया
और मुंहासों से ओत-प्रोत
सब्जी वाली बाई के गालों पर
हाथ फेरते हुए पूछा
भाई साहब कटहल क्या रेट है
12 टिप्पणियाँ:
आशा करता हूँ ठीक ठाक होगे... :)
कटहल की सब्जी तो मुझे भी पसंद नहीं, पर आपका कटहल अच्छा लगा।
किसकी लिखी कविता है, जरा यह भी बता देते
यह तो हमें भी याद नहीं है मित्र की यह कविता किसकी। हमने यह कविता काफी छोटे ते, तब एक कवि सम्मेलन में सुनी थी। बचपन से ही कवि सम्मेलनों में जाने और लिखना का शौक रहा है।
और मुंहासों से ओत-प्रोत
सब्जी वाली बाई के गालों पर
हाथ फेरते हुए पूछा
भाई साहब कटहल क्या रेट है
बहुत खूब गजब की कविता है।
वाह... क्या बात है गुरु
मजेदार लाईनें सुनाई मजा आ गया
बहुत मज़ेदार...
.....:))
वाह बहुत मज़ेदार...
जोरदार कटहल है, सब्जा कब खिलाएंगे
कमाल का कटहल लाए हैं भाई
एक टिप्पणी भेजें