राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

नेताओं पर चला हाई कोर्ट का डंडा

वीआईपी की सुरक्षा को लेकर आज देश में कौन परेशान नहीं है। लाखों कोशिशों के बाद भी इसका कोई इलाज नहीं हो पा रहा है। बरसों से आम जन इनकी सुरक्षा के नाम से डंडे खा रहे हैं। लेकिन अब संभवत: पहली बार होई कोर्ट ने ऐसी सुरक्षा लेकर चलने वाले नेताओं को एक तरह के फटकारते हुए उन पर डंडा चलाने का काम किया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक फैसले में साफ कहा कि अगर नेताओं को जान का इतना की खतरा है तो वे घर से बाहर ही क्यों निकलते हैं। सरकार को ऐसे नेताओं को बाहर निकलने की अनुमति ही नहीं देनी चाहिए। हाई कोर्ट के इस फैसले का कोई असर होता है या नहीं यह अलग मुद्दा है, पर कम से कम यह बात तो है कि हाई कोर्ट ने आम जनों से दर्द को पहली बार समझा है। अब भले इसके पीछे कारण सुप्रीम कोर्ट के एक जज रहे हैं जिनका अपमान वीआईपी सुरक्षा के नाम से हुआ है।

देश के नेताओं और मंत्रियों के काफिले के कारण आम जनों को कितनी परेशानी होती है,यह बात सब जानते हैं कि इसके बारे में हमने भी कई बार लिखा है। लेकिन इस बार हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला किया है जिसके बारे में संभवत: अपने देश का आम आदमी कभी कल्पना नहीं कर सकता है। आम आदमी के दिमाग में तो अदालतों के बारे में भी यही छवि रही है कि अदालतें भी नेताओं और मंत्रियों के इशारे पर चलती हैं। इसमें कोई दो मत भी नहीं है, आज का जमाना डंडे का है। कहा जाता है जिसका डंडा उसी की भैस। ऐसे में जिनके पास पॉवर होगा उसकी सुनी जाएगी। लेकिन हाई कोर्ट दिल्ली ने जो एक फैसला किया है, उससे आम जनों को इस बात की राहत जरूरत मिली है कि कोर्ट ने आम जनों के दर्द और भावनाओं की तो कदर की है। भले इसके पीछे कारण जो भी रहा हो।

जस्टिस तीरथ सिंह ठाकुर और वीना बीरबल की बेंच ने एक मामले में सरकार से कहा कि 10-15 सुरक्षा कर्मियों से घिरे रहने वाले नेताओं को घर से निकलने की इजजात ही नहीं देनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि चारों तरफ सुरक्षा घेरा लेकर चलना इन नेताओं को स्टेटस सिब्बल बन गया है। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक जज के साथ हुए दुव्र्यवहार का उल्लेख भी किया है, पर उन जज का नाम नहीं बताया है। इन जज महोदय को घर के बाहर टहलते हुए देख कर एक नेता के सुरक्षा कर्मियों ने दीवार की तरफ मुंह करके खड़े होने के लिए मजबूर कर दिया था, क्योंकि वहां से एक वीआईपी का काफिल निकलने वाला था। इस बारे में टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा है कि ये कैसी सुरक्षा है, जिससे आम आदमी परेशान हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि अगर नेताओं को जान का खतरा है तो वे घर के बाहर की क्यों जाते हैं। अदालत का यह तर्क वास्तव में जानदार है कि अगर नेता लोकप्रिय है तो उसकी सुरक्षा के लिए तो आम जन ही आगे आ जाएंगे। उनको सुरक्षा की क्या जरूरत है।

अदालत में दिल्ली पुलिस ने जो दलील दी कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी से ही सुरक्षा दी जाती है। इस पर कोर्ट ने असहमति जताते हुए कहा कि एक तरफ एक राजनेता को 10 से 15 सुरक्षा कर्मी दिए जाते हैं और दूसरी तरफ आम आदमी की हत्याएं हो जाती हैं तो भी सरकार चिंता नहीं करती है, यह कैसी सुरक्षा है? कोर्ट ने इस बात पर भी आपति जताई कि पुलिस ने सुरक्षा प्राप्त राजनेताओं की जानकारी बंद लिफाफे में दी। कोर्ट ने कहा कि सरकार बंद लिफाफे में वीआईपी सुरक्षा तय नहीं कर सकती है।

कोर्ट का फैसला है तो लाजवाब, पर सोचने वाली बात तो यही है कि क्या इस फैसले पर अमल हो पाएगा? क्या राजनेताओं की सुरक्षा कम होगी? क्या आम आदमी को वीआईपी सुरक्षा से होने वाली परेशानियों से मुक्ति मिल पाएगी? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब लगता है कि न तो किसी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के साथ किसी भी सरकार के पास है। आम जनता तो निरीह है उसको जैसे चाहो प्रताडि़त कर लो कौन बोलने वाला है।

आम जनता को अपनी परेशानियों से तभी मुक्ति मिलेगी जब वह खुद जागेगी और साझा विरोध करना प्रारंभ करेगी। नहीं तो क्या सुप्रीम कोर्ट के जज क्या कोई भी आला अधिकारी जब वह सड़क पर आम इंसान की तरह चलेगा तो उसकी हैसियत वीआईपी के सामने एक कीड़े-मकौड़े से ज्यादा नहीं रहेगी और उसको डंडों से किनारे लगा दिया जाएगा। अब यह तो हमें सोचना है कि हम कब तक कीड़े-मकौड़ों की तरह नेताओं के सुरक्षा कर्मियों के डंडे खाकर किनारे होते रहेंगे। अब भी वक्त है जाग जाओं नहीं तो बने रहो कीड़े और मकौड़े और खाते रहो डंडे।

10 टिप्पणियाँ:

anu शुक्र अग॰ 14, 09:46:00 am 2009  

कोर्ट का यह तर्क काबिले तारीफ है कि नेता अगर लोकप्रिय है तो उसका ेसुरक्षा की जरूरत क्यों पड़ेगी। उसकी सुरक्षा के लिए आम जनता है न।

बेनामी,  शुक्र अग॰ 14, 09:50:00 am 2009  

हाई कोर्ट भी लगता है तब जागा है जब सुप्रीम कोर्ट के जज के साथ गलत हुआ। आम जनता के साथ तो रोज इससे ज्यादा होता है, तब कोर्ट को कभी क्यों नहीं लगा कि आम जनता वीआईपी सुरक्षा के नाम पर किस तरह से प्रताडि़त हो रही है।

Unknown शुक्र अग॰ 14, 10:13:00 am 2009  

आपने सही सवाल उठाए हैं कि
क्या इस फैसले पर अमल हो पाएगा?
क्या राजनेताओं की सुरक्षा कम होगी?
क्या आम आदमी को वीआईपी सुरक्षा से होने वाली परेशानियों से मुक्ति मिल पाएगी?

Unknown शुक्र अग॰ 14, 10:47:00 am 2009  

हाई कोर्ट के फैसले का सरकार को सम्मान करते हुए वीआईपी सुरक्षा की समीक्षा कर ही लेनी चाहिए।

sanjay varma,  शुक्र अग॰ 14, 11:24:00 am 2009  

आम जनता तो निरीह है उसको जैसे चाहो प्रताडि़त कर लो कौन बोलने वाला है।

संगीता पुरी शुक्र अग॰ 14, 12:09:00 pm 2009  

नेताओं के हर काम के लिए तो नौकर चाकर होते ही हैं .. और जनता के लिए उन्‍हें काम करने की जरूरत ही नहीं .. उन्‍हें घर से निकलने की क्‍या जरूरत .. पर चुनाव के समय तो उन्‍हें काम करना होगा .. उस समय सुरक्षा के काफिले की जरूरत पडेगी।

Unknown शुक्र अग॰ 14, 12:27:00 pm 2009  

अब यह तो हमें सोचना है कि हम कब तक कीड़े-मकौड़ों की तरह नेताओं के सुरक्षा कर्मियों के डंडे खाकर किनारे होते रहेंगे। अब भी वक्त है जाग जाओं नहीं तो बने रहो कीड़े और मकौड़े और खाते रहो डंडे।
जरूर इस बारे में सबको सोचना चाहिए।

cl yadav,  शुक्र अग॰ 14, 12:50:00 pm 2009  

चलो देर से ही सही हाई कोर्ट जागा तो।

manu,  शुक्र अग॰ 14, 01:36:00 pm 2009  

फैसले पर अमल हो तब तो बात है।

निशांत मिश्र - Nishant Mishra शुक्र अग॰ 14, 03:33:00 pm 2009  

भैया आप चाहे जो कह लो.
यहाँ चलती है तो सिर्फ नेताओं, पुलिसवालों, वकीलों, और पत्रकारों की ही.
बाकी लोग तो दो कौड़ी के जीव हैं.
कुछ नहीं होगा. सारी हरकत एक-दो दिन की होती है, बाद में सब पहले जैसा हो जाता है.
पैंतीस साल से देख रहा हूँ, सब वैसा ही चल रहा है, बल्कि बदतर हुआ है.

Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP