नक्सलियों से निपटना सेना के बस में नहीं
छत्तीसगढ़ की नक्सली समस्या के विकराल होते रूप के बाद लगातार यह बात की जाती रही है कि बस्तर को सेना के हवाले कर देना चाहिए। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या वास्तव में बस्तर को सेना के हवाले करने से इस समस्या का अंत हो जाएगा। इसका सीधा सा जवाब है कि सेना के बस में नक्सलियों से निपटना है ही नहीं। ऐसा हम कोई हवा में नहीं कह रहे हैं। बस्तर में लंबे समय तक रहने वाले पुलिस के एक आला अधिकारी का कहना है कि सेना और पुलिस की कार्रवाई में बहुत अंतर है। सेना आतंकवादियों से तो एक बार निपट सकती है, पर नक्सलियों से निपटना उसके बस में नहीं है।
छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या को लेकर केन्द्र सरकार एक बार फिर से गंभीर दिख रही है। केन्द्र सरकार इस समस्या को समाप्त करना चाहती है ऐसा उसका कहना है। लेकिन हमें तो नहीं लगता है कि केन्द्र सरकार इस समस्या के प्रति गंभीर है। अगर ऐसा होता तो यह समस्या इतने विकराल रूप में कभी सामने नहीं आती। हमने पहले भी लिखा है, एक बार फिर से याद दिलाने चाहेंगे कि छत्तीसगढ़ में जब नक्सलियों ने पैर पसारने प्रारंभ किए थे, तब से लेकर अब तक लगातार केन्द्रीय गृह मंत्रालय के पास जानकारी भेजी जाती रही है, पर केन्द्र सरकार ने इस दिशा में गंभीरता दिखाई ही नहीं। केन्द्र सरकार के साथ पहले मप्र और अब छत्तीसगढ़ की सरकार भी गंभीर नहीं लगती है। हर सरकार के नुमाईदें महज हवा में बातें करते हैं कि नक्सलियों का नामो-निशा मिटा देंगे। अरे भई कैसे मिटा देंगे कोई योजना है? नहीं तो फिर कैसे मिटा देंगे, कुछ बताएंगे। इसका जवाब नहीं है खाली बयानबाजी करनी है तो कर रहे हैं। अपने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस तरह का राग अलापते हैं। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकी राम कंवर भी ऐसा कह चुके हैं।
केन्द्रीय और राज्य के मंत्री बयान तो दे देते हैं और सरकारें कुछ नहीं करती हैं। इनके बयानों का असर यह होता है कि नक्सली खफा हो जाते हैं और कहते हैं कि अरे तुम क्या हम लोगों का नामों निशा मिटा दोगे हम लोग तुम लोगों को मिटा देंगे और करने लगते हैं बेगुनाहों का खून। मंत्रियों और अफसरों के जब-जब बयान आएं हैं, उन बयानों के बदले में नक्सलियों ने हमेशा बेगुनाहों का खून बहाया ही है। अरे भाई अगर कुछ करने का मादा है तो चुपचाप उसी तरह से करो न जैसे नक्सली करते हैं। नक्सलियों ने निपटने के लिए उनके जैसी सोच चाहिए।
अब राजनीति देखिए कि कहा जा रहा है कि बस्तर को सेना के हवाले कर दिया जाए। यह बात आज से नहीं काफी समय से कांग्रेसी करते रहे हैं। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या सेना में इतना दम है कि वह नक्सलियों का सफाया कर सकती है। सेना का काम नक्सलियों ने निपटने का नहीं है। बस्तर में लंबे समय तक रहने वाले पुलिस के आला अधिकारी की बातें मानें तो सेना की अपनी अलग कार्यप्रणाली है, उनके बस में नक्सलियों से निपटना नहीं है। उनको ऐसा प्रशिक्षण ही नहीं दिया जाता है कि नक्सलियों से वे दो-दो हाथ कर सकें। इन अफसर महोदय ने बताया कि बस्तर में कुछ समय पहले सीआरपीएफ की फोर्स रखी गई थी, यह फोर्स वहां पर तीन माह तक रहकर भी कुछ नहीं कर पाई। इस फोर्स को जब कही भेजा जाता था तो इनकी सुरक्षा के लिए पुलिस वाले जाते थे। अब ऐसे में यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि सेना नक्सलियों से निपट सकती है। नक्सलियों पर बस्तर में एक नागा बटालियन भारी पड़ी थी, पर उसको हटा दिया गया। इस बटालियन के जवानों पर कई तरह के आरोप भी लगे थे।
कुल मिलाकर नक्सली समस्या से पुलिस वाले ही मुक्ति दिला सकते हैं। इसके लिए जरूरत यह है कि एक तो पुलिस को मजबूत किया जाए और दूसरे बस्तर में ऐसे अधिकारियों को रखा जाए जो वास्तव में पुलिस के जवानों का मनोबल बढ़ा सके। जबरिया बस्तर भेजे जाने वाले जवान और अधिकारी कभी भी नक्सलियों का सामना नहीं कर सकते हैं। सरकार को तलाशने होंगे ऐसे अफसर और जवान जो नक्सलियों से लोहा लेने की इच्छा रखते हों। अब ये अधिकारी और जवान चाहे छत्तीसगढ़ के हों या फिर देश के किसी भी कोने के हों।
9 टिप्पणियाँ:
केन्द्र सरकार को नक्सल समस्या से निपटने के लिए योजना बनाने की जरूरत है, मात्र बयानबाजी देने से कुछ नहीं होता है। अगर नक्सलियों का सफाया करने का दम नहीं है तो क्यों सरकार में बैठे हैं।
"सरकार को तलाशने होंगे ऐसे अफसर और जवान जो नक्सलियों से लोहा लेने की इच्छा रखते हों। अब ये अधिकारी और जवान चाहे छत्तीसगढ़ के हों या फिर देश के किसी भी कोने के हों।"
बिल्कुल सही सुझाव।
बधाई!
नक्सलियों में भी दम नहीं है, बहाना है तो उन नेताओं का खून बहाओ जो बयान बाजी करते हैं बेचारे गरीबों को मारने से क्या फायदा। किस गरीब के मरने से नेताओं का क्या बिगड़ेगा।
नक्सली तांड़व को रोकने के लिए ठोस पहल जरूरी है
क्या भारतीय सेना इतनी कमजोर है कि नक्सलियों का सामना नहीं कर सकती है।
नेताओं को बयानबाजी से बचना चाहिए।
पहले तय तो कर ले कि करना क्या है?
"अरे भाई अगर कुछ करने का मादा है तो चुपचाप उसी तरह से करो न जैसे नक्सली करते हैं। नक्सलियों ने निपटने के लिए उनके जैसी सोच चाहिए।"आपकी इस बात मे ही सारी बात का सार है।
आपको गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनांए.
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