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सोमवार, दिसंबर 26, 2011

ये दुनिया ऐसी ही है, कभी सुधर नहीं पाएगी

अबे तू लड़की नहीं जो गुड मार्निंग कहेगा तो
गुड मार्निग कहने वालों की लाइन लग जाएगी
अबे गधे तू चाहे कितना भी अच्छा लिखे
कमेंट करने वालों की फौज कभी नहीं आएगी
तू लाख देश और समाज के हित में लिख
तेरी बात किसी को सम­झ  में नहीं आएगी
एक लड़की अगर बिना वजह भी चीखी
तो उसे देखने मर्दों की लाइन लग जाएगी
तू चोट खाकर रास्ते में ही पड़ा रहेगा
तू­झ पर मर्दों की बिरादरी भी तरस नहीं खाएगी
क्या सोच रहा हैं बेवकूफ बंदे
ये दुनिया ऐसी ही है, कभी सुधर नहीं पाएगी

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शुक्रवार, दिसंबर 09, 2011

पर्चा तो लीक होगा ही

अब आधुनिक तरीके अपनाएगा रैकेट

पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने बीडीएस के सभी पर्चे रद्द तो कर दिए हैं और नए सिरे से परीक्षा लेने की तैयारी भी प्रारंभ हो गई है। इधर पर्चा लीक कराने वाले रैकेट ने भी फिर से कमर कल ली है पर्चा लीक करने की। रैकेट इस बार आधुनिक तरीकों का प्रयोग करने वाला है ताकि कोई भी पर्चा मीडिया तक न पहुंच सके। रविवि ने भी पर्चा लीक न हो पाए इसकी तैयारी की है, पर कुलपति डॉ. एस के पांडेय कहते हैं कि पर्चा लीक नहीं होगा इसकी गारंटी नहीं दे सकते हैं।
बीडीएस के लगातार लीक हो रहे पर्चो को लेकर रविवि के कुलपित डॉ. एसके पांडेय ने साहस दिखाते हुए सभी पर्चों को रद्द कर दिया है। उनके इस कदम से परीक्षा विभाग के साथ पर्चा लीक करने वाले निजी कॉलेजों का रैकेट सकते में है। रैकेट ने जिन विद्यार्थियों को पर्चे बेचे थे, वे अपनी नाराजगी जता रहे हैं। रैकेट चलाने वालों ने अब दूबारा होने वाली परीक्षा में भी पर्चे लीक करने के लिए कमर कस ली है। इस बार किसी भी कीमत पर किसी भी विद्यार्थी को पर्चे की फोटो काफी नहीं दी जाएगी। जिनको पर्चे बेचे जाएंगे, उनको ई-मेल और एसएमएस के जरिए ही सवाल बताएं जाएंगे। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि पिछली बार की तरह मीडिया के हाथ कोई पर्चा न लगे।
परीक्षा विभाग कुलपति से खफा
पर्चे रद्द होने से रविवि का परीक्षा विभाग और इसके कर्ताधर्ता बहुत ज्यादा खफा हैं। वे गुरुवार को दिन भर विभाग में अपनी नाराजगी जताते रहे। विभाग के प्रमुख सबसे ज्यादा खफा लगे, वे सभी ये यही कहते रहे कि कुलपति का क्या है, उन्होंने तो उठाकर पर्चे रद्द कर दिए, पर भुगतना तो हम लोगों को है। एक तो विभाग में स्टॉफ कम है, ऊपर से फिर से परीक्षा लेने के आदेश हो गए हैं। ऐसे में क्या किया जा सकता है। जानकारों की मानें तो परीक्षा विभाग प्रमुख की खींज इस बात की नहीं है कि पर्चे रद्द हो गए हैं, बल्कि इस बात की है, कि वे सीधे तौर पर पर्चा लीक करने वालों से साथ मिले हुए हैं। विवि का परीक्षा विभाग प्रारंभ से ही संदेह के घेरे में हैं। बीडीएस के सभी पर्चे निजी कॉलेजों के प्रोफेसरों से सेट कराए जाते हैं और कमीशन के खेल में ये पर्चे आसानी से लीक हो जाते हैं। पर्चे लीक करने के एवज में परीक्षा विभाग को भी खुश किया जाता है।
पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी परेशानी में
पर्चे रद्द होने से सबसे ज्यादा परेशानी में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी हैं। उन्होंने पर्चों के लिए खूब तैयारी की थी, अब उनको नए सिरे से तैयारी करनी पड़ेगी। बहुत से विद्यार्थियों ने पर्चे रद्द करने से परेशान होने की बात धरसीवां के विधायक देवजी भाई पटेल से भी कही। श्री पटेल ने कुलपति डॉ. एसके पांडे से चर्चा करके स्थिति जानी कि मामला क्या है। कुलपति ने उनको बताया कि जांच समिति से पाया कि जो पर्चे लीक हुए थे, वे बहुत ज्यादा मुख्य पर्चा से मिलते-जुलते थे इसलिए सारे पर्चे रद्द करने पड़े।
कम कीमत में देंगे पर्चा
पर्चा लीक करने वाले रैकेट ने खफा विद्यार्थियों को मनाने के लिए अब फिर से होने वाली परीक्षा के पर्चे उनको कम कीमत पर उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। विद्यार्थी तो बिना कीमत के पर्चे चाहते हैं, लेकिन ऐसा संभव न होने के बात कहकर रैकेट के लोगों ने हाथ खड़े कर लिए हैं। रैकेट के लोगों ने विद्यार्थियों से कहा है कि हमें तो दूसरी बार भी पर्चों की कीमत चुकानी पड़ेगी, ऐसे में मुफ्त में पर्चे दे पाना संभव नहीं है।
इसलिए विवि प्रशासन गंभीर नहीं
डेंटल कॉलेजों को बहुत जल्द रविवि से अलग हो जाना है, यही वजह है कि रविवि प्रशासन बीडीएस के पर्चो को लेकर गंभीर नहीं है। रविवि प्रशासन तो चाहता है कि जितनी जल्द यह बला डेंटल विश्वविद्यालय के मथे चली जाए अच्छा है। 
पर्चा लीक न होने की गारंटी नहीं:कुलपति
कुलपति एसके पांडे कहते हैं कि विवि प्रशासन पर्चा लीक न हो इसके लिए पूरी सावधानी बरतेगा, लेकिन हम गारंटी नहीं दे सकते कि पर्चा लीग नहीं होगा।

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रविवार, दिसंबर 04, 2011

मर कर भी हम किसी को खुश कर जाएंगे

हमारी बर्बादी का नहीं होगा किसी को गम
नहीं होंगी हमारी मौत पर किसी की आंखें नम
वो हर पल करते हैं हमारी मौत का इंतजार
न जाने क्यों हमारी मौत का तमाशा देखने हैं वो बेकरार
हम भी सोचते हैं क्यों कराएं उसे ज्यादा इंतजार
दुआ करते हैं खुदा से जल्द खत्म हो उनका इंतजार
जब हम इस दुनिया से रूखसत हो जाएंगे
हम जानते हैं उनके मंसूबे पूरे हो जाएंगे
हमें तो मर कर खुशी होगी इस बात की
मर कर भी हम किसी को खुश कर जाएंगे

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मंगलवार, नवंबर 29, 2011

हर तरफ है गुंडों की सरकार

सदन के अंदर हो या बाहर
हर तरफ है गुंडों की सरकार
दोनों के ही कारनामों से
आम जनता हो गई है बेजार
किसमें है दम इनसे पा सके पार
क्योंकि इनके पास है पावर बेशुमार 
ये गुंडें अन्ना हो या रामदेव बाबा
सब पर जोर दिखाते हैं
देश का भला चाहने वालों
पर लाठियां चलवाते हैं
अपने देश में मलाई
विदेश में पहुंचाते हैं
देश के बाहर जाकर
खूब मौज उड़ाते हैं
आम जनता भले भूखी-प्यासी रहे
अपने कुत्तों को ये जूस पिलाते हैं
कभी तो भरेगा इनके पाप का घड़ा
फिर देखेंगे कौन गुंडा रहेगा खड़ा
(अभी-अभी एक ताजा कविता लिखी है, पेश है)

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शनिवार, नवंबर 26, 2011

सुगंधित धान की ऊंचाई घटी

प्रदेश में सुगंधित धान की करीब एक दर्जन प्रजातियों की ऊंचाई कम करने की कवायद चल रही है। पहले चरण में ऊंचाई कम करने में सफलता मिली है, लेकिन जितनी ऊंचाई कम करने की योजना है उसमें सफलता मिलने में समय लगेगा।
सुगंधित धान की प्रजातियों में ऊंचाई ज्यादा होने के कारण उत्पादन प्रभावित हो रहा है। ऊंचाई के कारण उपयुक्त मात्रा में खाद भी डालने में परेशानी होती है। ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्र में इस पर शोध किया जा रहा है।  वर्तमान में धान की ऊंचाई 150 से 160 सेमी के आप-पास है। इस ऊंचाई को 110 से 120 सेमी के आस-पास लाने के प्रयास के तहत पहले साल सुगंधित धान में जवा फूल, बादशाह भोग, विष्णु भोग, गंगा बारू, कपूर क्रांति, जीरा फूल सहित करीब एक दर्जन प्रजातियों की फसल लगाई गई थी।  पहले साल की फसल में ऊंचाई में कुछ कमी तो आई है, लेकिन इसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। जितनी ऊंचाई कम करने की योजना है, उस तक पहुंचने में कम से कम पांच से छह साल का समय लग जाएगा।
अभी तो कृषि विवि के अनुसंधान केंद्र के खेतों में ही कुछ 3 से 4 मीटर चौड़ा और 20 मीटर लंबाई में फसल लगाई गई थी। अब अगले साल से प्रदेश के कुछ जिलों जहां पर सुंगधित धान की खेती होती है, वहां फसलें लगाई जाएगीं। पहले फसलों को राज्य स्तर पर पहचान दिलाने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान के प्रयास होंगे। ऊंचाई ज्यादा होने के कारण फसल गिर जाती है जिससे फसल का नुकसान होता है। जब शोध में सफलता मिल जाएगी तो किसानों को फसल से ज्यादा उत्पादन मिल सकेगा। अगले साल रायपुर के साथ बिलासपुर, रायगढ़, कवर्धा और अम्बिकापुर में फसल लगाने के प्रयास होंगे।

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शुक्रवार, नवंबर 25, 2011

एक तमाचा तो नाकाफी है

एक थप्पड़ दिल्ली में ऐसा पड़ा कि अब इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई पड़ रही है। सुनाई पड़नी भी चाहिए। आखिर यह आम आदमी का थप्पड़ है, इसकी गूंज तो दूर तलक जानी ही चाहिए। कहते हैं कि जब आम आदमी तस्त्र होकर आप खोता है तो ऐसा ही होता है। आखिर कब तक आम जनों को ये नेता बेवकूफ बनाते रहेंगे और कीड़े-मकोड़े सम­ाते रहेंगे। अन्ना हजारे का बयान वाकई गौर करने लायक है कि क्या एक ही मारा। वास्तव में महंगाई को देखते हुए यह एक तमाचा तो नाकाफी लगता है।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज देश का हर आमजन महंगाई की मार से इस तरह मर रहा है कि उनको कुछ सु­झता नहीं है। ऐसे में जबकि कुछ सम­झ नहीं आता है तो इंसान वही करता है जो उसे सही लगता है। और संभवत: उस आम आदमी हरविंदर सिंह ने भी वही किया जो उनको ठीक लगा। भले कानून के ज्ञाता लाख यह कहें कि कानून को हाथ में लेना ठीक नहीं है। लेकिन क्या कानून महज आम जनों के लिए बना है? क्या अपने देश के नेता और मंत्री कानून से बड़े हैं? क्यों कर आम जनों के खून पसीने की कमाई पर भ्रष्टाचार करके ये नेता मौज करते हैं। क्या भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं के लिए कोई कानून नहीं है? हर नेता भ्रष्टाचार करके बच जाता है।
अब अपने देश के राजनेताओं को सम­झ लेना चाहिए कि आम आदमी जाग गया है, अब अगर ये नेता नहीं सुधरे तो हर दिन इनकों सड़कों पर पिटते रहने की नौबत आने वाली है। कौन कहता है कि महंगाई पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। हकीकत तो यह है कि सरकार की मानसकिता ही नहीं है देश में महंगाई कम करने की। एक छोटा सा उदाहरण यह है कि आज पेट्रोल की कीमत लगातार बढ़ाई जा रही है। कीमत बढ़ रही है, वह तो ठीक है, लेकिन सरकार क्यों कर इस पर लगने वाले टैक्स को समाप्त  करने का काम नहीं करती है। एक इसी काम से महंगाई पर अंकुश लग जाएगा। जब पेट्रोल-डीजल पर टैक्स ही नहीं होगा तो यह इतना सस्ता हो जाएगा जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता है। आज पेट्रोल और डीजल की कीमत का दोगुना टैक्स लगता है। टैक्स हटा दिया जाए तो महंगाई हो जाएगी न समाप्त।
पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों की मांग ही आम जनों के खाने की वस्तुओं पर पड़ती है। माल भाड़ा बढ़ता है और महंगाई बेलगाम हो जाती है। जब महंगाई अपने देश में बेलगाम है तो एक आम इंसान बेलगाम होकर मंत्री का गाल लाल कर देता है तो क्या यह गलत है। एक आम आदमी के नजरिए से तो यह कताई गलत नहीं है।
थप्पड़ पर अन्ना हजारे के बयान पर विवाद खड़ा करने का भी प्रयास किया गया। उनका कहना गलत नहीं था, बस एक मारा। वास्तव में महंगाई की मार में जिस तरह से आम इंसान पिस रहा है, उस हिसाब से तो एक तमाचा नाकाफी है। 

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गुरुवार, नवंबर 17, 2011

सब्जी की बोआई में ही कमाई

छत्तीसगढ़ की जलवायु इतनी अच्छी है कि यहां पर हर किस्म की फसल लगाई जा सकती है। छत्तीसगढ़ को भले धान का कटोरा कहा जाता है, लेकिन धान की पैदावार से किसानों की कमाई नहीं होती है। ऐसे में प्रदेश के किसानों को संपन्न बनाने के लिए उनको अब सब्जी भाजी वाली उद्यानिकी खेती पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। सब्जियों की खेती से ही किसान पेशेवर हो पाएंगे। छत्तीसगढ़ की 50 प्रतिशत भूमि वैसे भी शुष्क खेती के लायक है।
राष्ट्रीय हार्टिकल्चर रिसर्च फाउंडेशन के पूर्व संचालक डॉ. यूबी पांडे ने कहा कि वे छत्तीसगढ़ के किसानों को सलाह देना चाहते हैं कि उनको धान की खेती के साथ अब उद्यानिकी की खेती की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। यही खेती ऐसी है जिससे किसानों को कमाई हो सकती है। धान की खेती में किसान कमाई नहीं कर पाते हैं, बड़ी मुश्किल से आज उनके अपने खाने के लिए ही धान हो पाता है। श्री पांडे कहते हैं कि मैं छत्तीसगढ़ की जलवायु के बारे में जानता हूं। यहां हर किस्म की फसल आसानी से लगाई जा सकती है। वे कहते हैं कि क्यों कर नासिक का प्याज बंगलादेश जाता है। छत्तीसगढ़ के किसान चाहें तो यहां का प्याज विदेशों में जा सकता है। श्री पांडे कहते हैं कि प्रदेश के छोटे किसानों को तकनीकी रूप से मजबूत करके उनको उद्यानिकी की ज्यादा फसल लेने के लिए तैयार किया जा सकता है। वे बताते हैं कि देश में 2009 में 1290 लाख टन सब्जियों का उत्पादन हुआ था। पिछले साल यह उत्पादन 1350 लाख टन तक पहुंचा है। लेकिन इसके बाद भी उत्पादन में अभी और इजाफा जरूरी है। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की जलवायु को देखते हुए यहां प्याज का रिसर्च सेंटर होना चाहिए।
कौन सी फसल कहां लगाएं
प्रदेश की जलवायु और भौगोलिक स्थिति के मुताबिक कौन सी फसल के लिए कहां का स्थान उपयुक्त है, इसके बारे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय प्रबंध मंडल के सदस्य प्रोफेसर मनहर आडिल बताते हैं कि बस्तर संभाग की बात करें तो वहां की जलवायु के हिसाब से वहां पर काजू, कंदी फसलें इसमें जिमी कंद, अदरक, आलू, प्याज, लहसून की फसलें लगाई जाती हैं। सरगुजा, जशपुर, कोरिया का क्षेत्र पठारी क्षेत्र है इसमें चीकू, लीजी और सेब की फसल लगाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों में कांकेर के बाद धमतरी, महासमुन्द, रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव और बिलासपुर हैं। यहां के लिए उपयुक्त फसलों में केला, नीबू, संतरा, जाम और आम है।

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मंगलवार, नवंबर 15, 2011

बाड़ी परंपरा को जिंदा करें

आसमानी बारिश के साथ जिस तरह से जमीन में पानी की कमी हो गई है, उससे यह तय है कि अब शुष्क खेती पर ही ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा। शुष्क खेती के लिए प्रदेश में बाड़ी परंपरा को फिर से जिंदा करने की जरूरत है।
ये बातें कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय उद्यानिकी कार्यशाला की में सामने आई। एक समय वह था जब छत्तीसगढ़ का हर किसान खेतों में धान लगाने के साथ अपने घरों की बाड़ी में सब्जी-भाजी लगाने का काम करता था, लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा समाप्त सी हो गई है। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत ने कहा कि अपने छत्तीसगढ़ की प्रारंभ से यह परंपरा रही है कि यहां पर हमेशा से खेती-बाड़ी शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है, लेकिन अब खेती तो रह गई है, लेकिन बाड़ियां विरान हो गई हैं। पर अब समय की जरूरत है कि बाड़ियों को जिंदा करना पड़ेगा। आज आसमान से किसानों को उतना पानी नहीं मिल पाता है जितना खेती के लिए चाहिए। नहरों के भी कंठ सुख से गए हैं। ऐसे में आज यह जरूरी है कि ऐसी खेती पर ध्यान दिया जाए जो कम पानी में होती है। कम पानी वाली खेती में सब्जी, फल, फूल ही आते हैं। भारत सरकार ने भी राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन प्रारंभ किया है ताकि पूरे देश में शुष्क खेती पर ज्यादा ध्यान दिया जा सके। छत्तीसगढ़ के लिए केंद्र ने पांच साल के लिए 413 करोड़ की राशि दी है।
राष्ट्रीय कृषि संस्थान जनवरी में
केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत ने कहा कि उनके सामने प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने दो राष्ट्रीय कृषि संस्थान खोलने की मांग रखी है। मैं वादा करता हूं कि कम से कम एक संस्थान तो जनवरी से प्रारंभ हो जाएगा। इसी के साथ उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में जितनी भी अनुसंधान केंद्र खुलने हैं उन सभी लंबित प्रस्तावों को एक बार लेकर विवि के कुलपति दिल्ली आ जाएं तो अगले माह संसद सत्र में सभी प्रस्ताव मंजूर करवा दिए जाएंगे। श्री महंत ने इस बात पर सहमति जताई कि सुरक्षित खेती के लिए किसानों को फेनिसिंग के लिए अनुदान मिलना चाहिए।
दिल्ली में छत्तीसगढ़ की शिमला मिर्च
प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने कहा कि इसमें दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में उद्यानिकी खेती का रकबा बढ़ा है। राज्य में सब्जी-भाजी की खेती किस दिशा में इसका सबसे बड़ा सबूत यह कि दिल्ली के बाजारों बिकने वाली शिमला मिर्च की आधी पूर्ति छत्तीसगढ़ से होती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की खेती को नई दिशा में ले जाने के लिए यहां उद्यानिकी खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है।
50 प्रतिशत जमीन उद्यानिकी खेती के लायक
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कृषि विवि के कुलपति एसके पाटिल ने कहा कि प्रदेश में 40 से 50 प्रतिशत जमीन उद्यानिकी खेती के लिए उपयुक्त है। जरूरत है इस दिशा में किसानों को प्रोत्साहित करके की। कार्यशाला में आए राष्ट्रीय वैज्ञानिकों से किसान प्रोत्साहित होंगे। किसानों को साधन संपन्न भी बनाने की जरूरत है। कम पानी वाली फसलों पर ध्यान देना आज समय की जरूरत है।  छोटे किसानों के समूह बनाकर खेती करने से फायदा मिलेगा।
सरगुजा है लीचीगढ़
कार्यशाला में सरगुजा के किसान नानक सिंह ने बताया कि सरगुजा आज पूरी तरह से लीचीगढ़ हो गया है। मैं वहां पर बरसों से लीची की खेती कर रहा हूं। मप्र के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने मेरी नर्सरी की लीची खाने के बाद सरगुजा के लिए 60 लाख की मदद भिजवाई थी और सरगुजा को लीची जिला घोषित किया था। सरगुजा की लीची को देश के बाहर भी भेजा जा सकता है। इसके लिए योजना बनाने की जरूरत है। प्रचार-प्रसार के अभाव में सरगुजा की लीची को पहचान नहीं मिल पा रही है। रायपुर के किसान हैपी सिंबल ने बताया कि उनके पूर्वजों ने काजू की खेती प्रारंभ की थी, वे आज सब्जी, फल, फूल की खेती करते हैं। छत्तीसगढ़ की सब्जियों की महक लंदन तक पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि उनके मामा लंदन में हैं जहां छत्तीसगढ़ की सब्जियों को भेजा जाता है। उन्होंने वादा किया कि उनकी कंपनी सरगुजा की लीची को भी विदेशी पहचान देने का काम करेगी।

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शनिवार, नवंबर 12, 2011

राजनीति अब धंधेबाजों का खेल

आज अपने देश की राजनीति पूरी तरह से धंधेबाजों का खेल बनकर रह गई है। यह बात हम हवा में नहीं कह रहे हैं। आज अपने राज्य और देश का विकास चाहने वाले राजनेताओं की जरूरत नहीं रह गई है। अच्छे राजनेता राजनीति से किनारा कर गए हैं। अपने राज्य छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. रामचंद्र सिंह देव भी ऐसे नेता हैं जिन्होंने राजनीति की गंदगी को देखते हुए राजनीति से किनारा कर लिया है। उनसे बात करने का मौका मिला तो उनका यह दर्द उभर कर सामना आया। उन्होंने जो कुछ हमें बताया हम उनके शब्दों में ही पेश कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में विकास का सपना लिए मैंने 1967 में पहला विधानसभा चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीता था। मेरी जीत के पीछे मेरा नहीं बल्कि मेरे पिता डीएस सिंह देव का नाम था जिनके कारण मुझ जैसे अंजान को मतदाताओं ने सिर आंखों पर बिठाया था। यहां से शुरू हुए मेरे राजनीति के सफर के बाद मैंने छह बार चुनाव जीता। पांच बार कांग्रेस की टिकिट पर और एक बार निर्दलीय। लेकिन इधर राजनीति में जिस तरह से हालात बदले और आज राजनीति जिस तरह से व्यापार में बदल गई है उसके कारण ही मुझे सक्रिय राजनीति से किनारा करना पड़ा। राजनीति से भले मैंने संन्यास ले लिया है, लेकिन जब भी विकास की बात आती है तो मैं चाहे छत्तीसगढ़ हो या मप्र या फिर मेरा पुराना राज्य बंगाल, मैं सबके लिए  लड़ने हमेशा तैयार रहता हूं।
राजनीति में आने का पहला मकसद होता है अपने क्षेत्र और राज्य के विकास के लिए काम करना। मैंने अपने राजनीतिक जीवन में यही प्रयास किया, लेकिन जब मुझे लगने लगा कि अब राजनीति ऐसी नहीं रह गई जिसमें रहकर कुछ किया जा सके तो मैंने संन्यास लेने का फैसला कर लिया। आज का मतदाता वोट डालने के एवज में पैसा चाहता है। वैसे मैं आज भी कांग्रेस में हूं, लेकिन सक्रिय राजनीति से मेरा कोई नाता नहीं रह गया है। मैं वर्तमान में राजनीतिक हालात की बात करूं तो आज कांग्रेस हो या भाजपा दोनों पार्टियों में अस्थिरता का दौर चल रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य के 11 सालों की यात्रा की बात करें तो कांग्रेस शासन काल के तीन साल तो राज्य की बुनियाद रखने में ही निकल गए। भाजपा सरकार के आठ सालों की बात करें तो इन सालों में भाजपा सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसको महत्वपूर्ण माना जा सके।
छत्तीसगढ़ बना तो इसकी आबादी दो करोड़ 5 लाख थी। छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य है। यहां कोयला, लोहा, बाक्साइड, चूना, पत्थर भारी मात्रा में हैं। राज्य में इंद्रावती नदी से लेकर महानदी के कारण पानी की कमी नहीं है। इतना सब होने के बाद जिस तरह से राज्य का विकास होना था वह नहीं हो सका है। राज्य की 75 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, लेकिन जहां तक विकास का सवाल है तो राज्य में दस प्रतिशत ही विकास किया गया है और वह भी शहरी क्षेत्रों में। राज्य में 35 लाख परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं। राज्य में उद्योग तो लगे लेकिन ये उद्योग प्राथमिक उद्योग ही रहे। प्राथमिक उद्योग से मेरा तात्पर्य यह है कि कच्चे माल को सांचे में ढालने का ही काम किया गया है। उच्च तकनीक का कोई उद्योग राज्य में स्थापित नहीं किया जा सका है। अपने राज्य की तुलना में हरियाणा और पंजाब में कोई खनिज संपदा नहीं है, फिर भी इन राज्यों में उद्योगों की स्थिति छत्तीसगढ़ से ज्यादा अच्छी है। छत्तीसगढ़ का कच्चा माल बाहर जा रहा है, यह स्थिति राज्य के लिए हानिकारक है।
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है पर कृषि के लिए कुछ नहीं किया गया है। मैं इंडिया टूडे के एक सर्वे का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें देश के राज्यों में छत्तीसगढ़ को कृषि में 19वें स्थान पर रखा गया है। इसी तरह से अधोसंरचना में 19वां, निवेश में छठा, स्वास्थ्य में तीसरा सुक्ष्म अर्थव्यवस्था में 19वां और संपूर्ण विकास के मामले में देश में 16वें स्थान में रखा गया है। यह सर्वे भी साबित करता है कि राज्य में विकास नहीं हो सका है। जो 10 प्रतिशत विकास हुआ है, वह अमीरों का हुआ है।
मेरा ऐसा मानना है कि भाजपा विकास के सही मायने समझ ही नहीं सकी। भाजपा को कृषि, लघु उद्योग, हस्तशिल्प पर जोर देना था ताकि गांवों में रहने वाली 75 प्रतिशत आबादी का विकास होता। ऐसा क्यूं नहीं हुआ यह एक चिंता का विषय है। जिस तरह से राज्य में उद्योग आ रहे हैं और खनिज संपदा का दोहन कर रहे हैं उससे राज्य आने वाले 40-50 सालों में खोखला हो जाएगा। सरकार ने दो रुपए किलो चावल दिया, यह अच्छी बात है, लेकिन इससे आर्थिक विकास कहां हुआ? सरकार को गरीबी रेखा में जीवन यापन करने वालों को इस रेखा से बाहर करने की दिशा में काम करना था।
मैं अंत में अक्टूबर 2000 में मप्र के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को लिए गए अपने एक पत्र का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें मैंने उन्हें लिखा था कि  आपके पास तो बालाघाट का एक लांजी ही नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, लेकिन छत्तीसगढ़ में बहुत ज्यादा क्षेत्र नक्सल प्रभावित है, अगर नक्सली क्षेत्र में सही विकास नहीं हुआ तो छत्तीसगढ़ नक्सलगढ़ हो जाएगा, आज लगता है कि मेरी यह भविष्यवाणी सच साबित हो गई है।

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शनिवार, नवंबर 05, 2011

मीडिया कब पहचानेगा अपनी औकात

कहने को तो मीडिया को देश का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन हमें नहीं लगता कि मीडिया वास्तव में देश का चौथा स्तंभ है। अगर वास्तव में इसको चौथा स्तंभ माना जाता तो इस स्तंभ के शिल्पकारों की हालत छुट भईये नेताओं से तो कम से कम ज्यादा होती। ऐसा हम हवा में नहीं कह रहे हैं। इस चौथे स्तंभ में काम करते हमें भी दो दशक हो रहे हैं और इन सालों में हमने तो यही जाना है कि वास्तव में मीडिया ने अब तक अपनी सही औकात को नहीं पहचाना है। हमें बहुत अफसोस होता जब मीडिया से जुड़े लोगों को हम छोटे से पुलिस वालों के सामने असहाय पाते हैं।
जब-जब देश में या किसी भी राज्य में कहीं भी किसी बड़े नेता या मंत्री की कोई सभा या कोई भी छोटा-बड़ा कार्यक्रम होता है तो उस समय मालूम होती है मीडिया की असली औकात। ऐसे कार्यक्रमों में सभा स्थल तक सभी नेता और मंत्रियों के वाहन तो जाते ही हैं, साथ ही इनके चमचों और छोटे-मोटे नेताओं को भी रोकने की हिम्मत सुरक्षा व्यवस्था में लगे पुलिस वाले नहीं दिखा पाते हैं। लेकिन मीडिया की बात आती है तो मीडिया कर्मियों को सभा स्थल के  काफी दूर (कई बार तो एक किलो मीटर तक)  रोक दिया जाता है और कहा जाता है कि अपने वाहन कहीं भी रखे और पैदल जाएं। ऐसे समय में हमें बहुत गुस्सा भी आता है और मीडिया कर्मियों की बेबसी पर तरस भी आता है। अब बेचारे मीडिया कर्मी को अपनी नौकरी करनी है उसे पुलिस वाले एक किलो मीटर क्या चार किलो मीटर भी दूर रोककर पैदल जाने कहेंगे तो जाना पड़ेगा। जाना इसलिए पड़ेगा क्योंकि पापी पेट का सवाल है। अगर आप सभा की रिपोर्टिंग करके नहीं जाएंगे तो अपनी नौकरी से हाथ भी धो सकते हैं।
यह परंपरा आज से नहीं बल्कि बरसों से चली आ रही है और इससे लड़ना कोई नहीं चाहता है। अक्सर हम किसी कार्यक्रम में जाते हैं तो वाहन को दूर रखने को लेकर कई बार पुलिस वालों से बहस हो जाती है, कई बार वाहन अंदर ले जाने की इजाजत मिल जाती है तो कई बार मजबूरी में वाहन काफी दूर रखना पड़ता है। लेकिन हमें कम से कम इस बात की संतुष्टि है कि हम विरोध तो करते हैं, लेकिन ज्यादातर मीडिया कर्मी विरोध ही नहीं करते हैं। संभवत: उनको लगता है कि विरोध करने का फायदा नहीं है। लेकिन हमें लगता है कि उनका ऐसा सोचना गलत है। अगर मीडिया कर्मी एक हो जाए तो एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब उनको सफलता मिलेगी।
क्यों कर मीडिया कर्मियों के वाहन भी वहां तक नहीं जाने चाहिए जहां तक नेता-मंत्रियों या अन्य छुटभईये नेताओं के जाता हैं। क्या मीडिया कर्मियों की औकात उन छुट भईये नेताओं जितनी भी नहीं है तो सिर्फ नेताओं की चमचागिरी करते हैं। हम जानते हैं कि किसी भी कार्यक्रम का बहिष्कार करना मीडिया कर्मियों के बस में नहीं है क्योंकि आज के प्रतिस्पर्धा वाले दौर में यह इसलिए संभव नहीं है क्योंकि कोई न कोई तो कार्यक्रम को कवर कर ही लेगा। जो लोग बहिष्कार करने की हिम्मत दिखाएंगे उनको अपने संस्थानों के क्रोध का सामना करना पड़ेगा, संभव है किसी की नौकरी भी चली जाए, शायद यही वजह है कि लोग ऐसा साहस नहीं करते हैं।
हम बताना चाहते हैं कि अगर मीडिया कर्मी हिम्मत करते हैं तो उनको सफलता मिल सकती है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमने ऐसा कई बार किया है और सफलता भी मिली है। हम बता दें कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष भी हैं। दो बार ओलंपिक संघ की बैठक में मीडिया को बैठक से दूर रखा गया तो हम लोगों ने इस बैठक का बहिष्कार किया। जब यह बात मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तक पहुंची तो वे खुद हम लोगों तक न सिर्फ आए बल्कि उन्होंने छमा भी मांगी।
हमारे कहने का मतलब यह है कि अक्सर ऐसा होता है कि ऊपरी स्तर पर तो कुछ जानकारी नहीं होती है और नीचे वाले अफसर अपनी मर्जी से कोई भी फैसला कर लेते हैं। जब तक अपनी बात को ऊपर तक नहीं पहुंचाया जाएगा तो कैसे मालूम होगा कि क्या हो रहा है। इसी के साथ एक बात हम और कहना चाहते हैं कि आज मीडिया के कारण ही नेता और मंत्री हैं। ऐसा कौन सा नेता और मंत्री होगा जो मीडिया की सुर्खियों में नहीं रहना चाहता है। जब उनको इस बात का अहसास कराया जाएगा कि मीडिया को सम्मान देने पर ही कोई कार्यक्रम कवर होगा तो हमें नहीं लगता है कि मीडिया की बात नहीं मानी जाएगी। बस जरूरत है मीडिया को अपनी ताकत और औकात को पहचाने की। जिस दिन हम मीडिया कर्मी अपनी ताकत और औकात को समझ जाएंगे, उस दिन एक नए युग की शुरुआत होगी। मीडिया कर्मियों को सम्मान दिलाने की दिशा में मीडिया से जुड़े संस्थान को भी अपने संस्थानों के कर्मियों का साथ देना होगा।
हमें एक घटना याद है जो यह बताती है कि मीडिया की ताकत क्या है। मप्र के समय रायपुर के रेलवे स्टेशन में एक घटना में पुलिस की लाठियों से कई मीडिया कर्मी घायल हो गए थे। ऐसे में रायपुर के सभी अखबारों ने यह फैसला किया था कि सरकार की कोई भी खबर प्रकाशित नहीं की जाएगी। इस फैसले का असर यह हुआ कि उस समय मप्र के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को 24 घंटे के अंदर   रायपुर आना पड़ा और घटना के लिए उन्होंने न सिर्फ छमा मांगी बल्कि घायल हुए हर मीडिया कर्मी के घर जाकर उनसे मिले और उनको मुआवजा दिया गया। यह एक उदाहरण बताता है कि वास्तव में मीडिया चाहे तो सरकार को झुका सकता है, लेकिन ऐसा किया नहीं जाता है।

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बुधवार, अक्टूबर 26, 2011

रहे न किसी की झोली खाली- ऐसी हो सबकी दीवाली

आज है दीपों का पर्व दीवाली
हर आंगन में दीप चले
हर घर में हो खुशहाली
सब मिलकर मनाए
भाई चारे से दीवाली
रहे न किसी की झोली खाली
ऐसी हो सबकी दीवाली
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई
जब सब हैं हम भाई-भाई
तो फिर काहे करते हैं लड़ाई
दीवाली है सबके लिए खुशिया लाई
आओ सब मिलकर खाए मिठाई
और भेद-भाव की मिटाए खाई

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मंगलवार, अक्टूबर 25, 2011

प्रेस क्लब रायपुर चुनाव: जीतने वालों को बधाई

प्रेस क्लब रायपुर के चुनाव इस बात ऐतिहासिक हुए। पहली बार बहुत अच्छे तरीके से चुनाव का संचालन हाई पॉवर कमेटी के सदस्यों दैनिक तरूण छत्तीसगढ़ के संपादक कौशल किशोर मिश्रा, हरिभूमि के प्रबंध संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी, दैनिक नई दुनिया के स्थानीय संपादक रवि भोई के साथ पन्नालाल गौतम और शैलेष पांडे ने करवाए। इस चुनाव में दो पैनलों के बीच ही मुकाबला हुआ। इसमें अध्यक्ष पद के लिए बृजेश चौबे ने समरेन्द्र शर्मा को 28 मतों से, महासचिव पद के लिए विनय शर्मा ने चंदन साहू को 28 मतों से, उपाध्यक्ष पद के लिए केके शर्मा ने राजेश मिश्रा को 6 मतों से, संयुक्त सचिव पद के लिए दो उम्मीदवार कमलेश गोगिया और विकास शर्मा जीते। कोषाध्यक्ष पद के लिए सबसे ज्यादा 139 मत प्राप्त करके सुकांत राजपूत ने अजय सक्सेना को सबसे ज्यादा 42 मतों से पराजित किया।
इस चुनाव में कमलेश गोगिया की जीत प्रदेश के खेल पत्रकारों के साथ खेल बिरादरी के लिए सुखद रही। नामांकन के एक दिन पहले ही कमलेश गोगिया को हम लोगों ने चुनाव लड़ने तैयार किया था। ऐसे में उनका जीतना इस बात का परिचायक है कि प्रेस क्लब के चुनाव में साफ छवि को प्राथमिकता मिली है।
कमलेश गोगिया छत्तीसगढ़ खेल पत्रकार संघ के महासचिव भी हैं। उनकी जीत पर छत्तीसगढ़ खेल पत्रकार संघ के मुख्य संरक्षक होने के नाते हम (राजकुमार ग्वालानी) उनको बधाई देते हैं। इसी के साथ खेल पत्रकार संघ के अन्य सदस्यों मुख्य संरक्षक अनिल पुसदकर, सुशील अग्रवाल, चंदन साहू,  शंकर चन्द्राकर, आनंदव्रत शुक्ला, मंयक ठाकुर, प्रवीण सिंह, सुधीर उपाध्याय, सुरेन्द्र शुक्ला, विकास चौबे सहित सभी सदस्यों की तरफ बधाई है। इसी के साथ हम सभी जीतने वाले प्रत्याशियों को भी बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि अब प्रेस क्लब रायपुर में बहुत कुछ नया और अच्छा होगा।

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शनिवार, अक्टूबर 22, 2011

जनचेतना नहीं जनआक्रोश यात्रा

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण अडवानी की जनचेतना यात्रा जिस मकसद से पार्टी ने निकाली है, वह मकसद तो पूरा होता नहीं दिख रहा है, लेकिन इस यात्रा से जनआक्रोश जरूर बढ़ रहा है। यह यात्रा जहां भी जा रही है, वहां आम जन इतने ज्यादा परेशान हो रहे हैं कि हर किसी से मुंह से भाजपा के लिए अपशब्द ही निकल रहे हैं। ऐसे में यह तय है कि भाजपा ने इस यात्रा से अपने लिए फायदा नहीं बल्कि नुकसान किया है। यह तय है कि यात्रा से परेशान देश का जनतंत्र कभी नहीं चाहेगा कि उनको परेशान करने वाली पार्टी सत्ता में आए। इस यात्रा में एक और अहम बात यह है कि अडवानी जी की यह कैसी यात्रा है जिसमें रथ पहले आता है और वे विमान से आते हैं।
अडवानी की यात्रा जब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आई तो यहां भी वही नजारा देखने को मिला जैसा नजारा देश के अन्य हिस्सों में देखने को मिला था। इस यात्रा के कारण दीपावली की तैयारी में लगे लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा। यात्रा के कारण सारे बाजार इस तरह से सील हो गए कि लोगों की बाजार तक पहुंचने में हालात खराब हो गई। बहुतो को तो बाजार जाने की बजाए घर वापास जाना ज्यादा उचित लगा।
अब सोचने वाली बात यह है कि जो भाजपा देश की जनता में जनचेतना जगाने के लिए यात्रा कर रही है, उस यात्रा से लोग हलाकान और परेशान हो रहे हैं। यह तय है कि अडवानी की यात्रा से लोगों में जनचेतना तो आई है, लेकिन जिस तरह की जनचेतना है वह भाजपा के लिए ही घातक है। आज अडवानी की यात्रा जहां भी गई है, वहां के लोगों से इसके बारे में पूछेंगे तो पहले तो हर किसी के भी मुंह से अपशब्द ही सुनने को मिलेंगे। इस यात्रा ने लोगों को इस बात के लिए जरूर जागरूक कर दिया है कि ऐसी पार्टी को कभी सत्ता में मत लाना जो आम जनों का ख्याल नहीं रखती है। वैसे तो किसी भी पार्टी को जनता से सरोकार नहीं है, लेकिन कम से कम ऐसी यात्रा और पार्टियों तो नहीं करती हैं।
अब इसका जवाब किसके पास है कि अडवानी की यात्रा से किसका भला हुआ है। हमारे विचार से तो न तो इससे पार्टी का भला हुआ है और न ही आमजनों का। अगर वास्तव में किसी का भला हुआ है तो वो वे अधिकारी हैं जिनको अडवानी की यात्रा के कारण सड़कें बनाने का काम मिला या इसी तरह का कोई काम दिया गया। इन कामों की आड़ में खुलकर भ्रष्टाचार हुआ। अपने छत्तीसगढ़ में ही अडवानी की यात्रा के लिए 20 करोड़ से ज्यादा की सड़कें बनाई गर्इं। अब यह बात सभी जानते हैं कि 20 करोड़ में से कितने की सड़कें बनीं होंगी। सड़कों के बनाने में भ्रष्टाचार तो होना ही था। वैसे अडवानी की रथ यात्रा पर भ्रष्टाचार का साया तो पहले से ही है।
मप्र में इस यात्रा के समय मीडिया को पैसे बांटने की बात सामने आई। वैसे ऐसा होना कोई नई बात नहीं है। पता नहीं वह कौन का मुर्ख पत्रकार (ऐसा वे भाजपा नेता और वे पत्रकार सोच रहे होंगे जिनको पैसे मिले) था जिसने इस बात का खुलासा कर दिया। भगवान ऐसे ईमानदार लोग पैदा क्यों करते हैं, यही भ्रष्टाचारी सोच रहे होंगे। लेकिन पाप का घड़ा तो एक न एक दिन फुटता ही है। बहरहाल इतना तय है कि अडवानी की यात्रा भाजपा के लिए घातक साबित होगी। अडवानी जी के साथ भाजपा को इस बात का जवाब देना चाहिए कि यात्रा में रथ अलग और अडवानी जी अलग कैसे चल रहे हैं। क्यों कर रथ सड़क मार्ग से आता है और अपने नेता जी विमान से आते हैं। वास्तव में जनचेतना जगानी है और अगर दम  है तो बिना सुरक्षा के सड़क मार्ग से यात्रा करें। अगर आप वास्तव में जनता के चहेते हैं तो कोई आपको नुकसान नहीं पहुंचेगा लेकिन आप अगर जनता के हितैषी नहीं है तो नुकसान उठाने के लिए तैयार रहें।

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रविवार, अक्टूबर 16, 2011

किसी को क्यों नहीं होता भ्रष्टाचार पर अफसोस

हमें तो जरूर दिखती है अच्छाई और सच्चाई
क्योंकि हम नहीं खाते मुफ्त की दुध-मलाई
हमें नहीं जकड़ सका है भ्रष्टाचार का कसाई
उठो, जागो, देखों और सोचो भाई
अगर हमने अब भी नहीं खोलीं आंखें
तो निगल जाएगा देश को भ्रष्टाचार का कसाई
क्यों सोए हैं न जाने अब तक अपने देश के लोग
किसी को क्यों नहीं होता भ्रष्टाचार पर अफसोस

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शुक्रवार, अक्टूबर 14, 2011

छत्तीसगढ़ के स्वर्ण सपूतों को सलाम

अपने छत्तीसगढ़ के एक और लाड़ले सपूत जगदीश विश्वकर्मा ने दक्षिण अफ्रीका में तिरंगा फहराने का काम किया है। रूस्तम सारंग के बाद जगदीश ने भी कामनवेल्थ भारोत्तोलन में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। 17 साल की उम्र में स्वर्ण जीतने वाले वे पहले खिलाड़ी हैं। इन दोनों खिलाड़ियों की जीत ने बता दिया है कि छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों से अब ओलंपिक के पदक दूर नहीं हैं। यह बात तय है कि अब छत्तीसगढ़ के यही खिलाड़ी ओलंपिक में भी जरूर स्वर्ण जीतेंगे और प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा के अनुरूप दो करोड़ की राशि पाने के हकदार होंगे।

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मंगलवार, अक्टूबर 04, 2011

क्यों बदले तुम्हारे खयालात

छुट गया उनका साथ
अब नहीं है हाथों में हाथ
नहीं करते वो हमसे बात
कटती नहीं अब तो रात
काश एक बार हो जाए मुलाकात
पूछे उनसे क्यों बदले तुम्हारे खयालात

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रविवार, अक्टूबर 02, 2011

महात्मा गांधी से क्या लेना-देना

आज गांधी जयंती है, इस अवसर पर हम एक बार फिर से याद दिलाना चाहते हैं कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दर्शन करने का मन आज के युवाओं में है ही नहीं। यह बात बिना वजह नहीं कही जा रही है। कम से कम इस बात का दावा छत्तीसगढ़ के संदर्भ में तो जरूर किया जा सकता है। बाकी राज्यों के बारे में तो हम कोई दावा नहीं कर सकते हैं, लेकिन हमें लगता है कि बाकी राज्यों की तस्वीर छत्तीसगढ़ से जुदा नहीं होगी। आज महात्मा गांधी का प्रसंग इसलिए निकालना पड़ा है क्योंकि आज महात्मा गांधी की जयंती है और हमें याद है कि हमारे एक मित्र दर्शन शास्त्र का एक पेपर गांधी दर्शन देने गए थे। जब वे पेपर देने गए तो उनको मालूम हुआ कि वे गांधी दर्शन विषय लेने वाले एक मात्र छात्र हैं। अब यह अपने राष्ट्रपिता का दुर्भाग्य है कि उनके गांधी दर्शन को पढऩे और उसकी परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी मिलते ही नहीं हैं। गांधी जी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वालों की अपने देश में कमी नहीं है, लेकिन जब उनके बताएं रास्ते पर चलने की बात होती है को कोई आगे नहीं आता है। कुछ समय पहले जब एक फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस आई थी तो इस फिल्म के बाद युवाओं ने गांधीगिरी करके मीडिया की सुर्खियां बनने का जरूर काम किया था।

हमारे एक मित्र हैं सीएल यादव.. नहीं.. नहीं उनका पूरा नाम लिखना उचित रहेगा क्योंकि उनके नाम से भी मालूम होता है कि वे वास्तव में पुराने जमाने के हैं और उनकी रूचि महात्मा गांधी में है। उनका पूरा नाम है छेदू लाल यादव। नाम पुराना है, आज के जमाने में ऐसे नाम नहीं रखे जाते हैं। हमारे यादव जी रायपुर की नागरिक सहकारी बैंक की अश्वनी नगर शाखा में शाखा प्रबंधक हैं। बैंक की नौकरी करने के साथ ही उनकी रूचि अब तक पढ़ाई में है। उनके बच्चों की शादी हो गई है लेकिन उन्होंने पढ़ाई से नाता नहीं तोड़ा है। पिछले साल जहां उन्होंने पत्रकारिता की परीक्षा दी थी, वहीं इस बार उन्होंने दर्शन शास्त्र पढऩे का मन बनाया। यही नहीं उन्होंने एक विषय के रूप में गांधी दर्शन को भी चुना। लेकिन तब उनको मालूम नहीं था कि वे जब परीक्षा देने जाएंगे तो उनको परीक्षा हाल में अकेले बैठना पड़ेगा। जब वे परीक्षा देने के लिए विश्व विद्यालय गए तो उनके इंतजार में सभी थे। दोपहर तीन बजे का पेपर था। उनको विवि के स्टाफ ने बताया कि उनके लिए ही आज विवि का परीक्षा हाल खोला गया और 20 लोगों का स्टाफ काम पर है। उन्होंने परीक्षा दी और वहां के स्टाफ के साथ बातें भी कीं। यादव संभवत: पहले परीक्षार्थी रहे हैं जिनको विवि के स्टाफ ने अपने साथ दो बार चाय भी पिलाई।

आज एक यादव जी के कारण यह बात खुलकर सामने आई है कि वास्तव में अपने देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कितनी कदर की जाती है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि राष्ट्रपिता से आज की युवा पीढ़ी को कोई मतलब नहीं रह गया है। युवा पीढ़ी की बात ही क्या उस पीढ़ी के जन्मादाताओं का भी गांधी जी से ज्यादा सरोकार नहीं है। एक बार जब कॉलेज के शिक्षाविदों से पूछा गया कि महात्मा गांधी की मां का नाम क्या था। तो एक एक प्रोफेसर ने काफी झिझकते हुए उनका नाम बताया पुतलीबाई। यह नाम बिलकुल सही है।

एक तरफ जहां कॉलेज के प्रोफेसर नाम नहीं बता पाए थे, वहीं अचानक एक दिन हमने अपने घर में जब इस बात का जिक्र किया तो हमें उस समय काफी आश्चर्य हुआ जब हमारी छठी क्लास में पढऩे वाली बिटिया स्वप्निल ने तपाक से कहा कि महात्मा गांधी की मां का नाम पुतलीबाई था। हमने उससे पूछा कि तुमको कैसे मालूम तो उसने बताया कि उनसे महात्मा गांधी के निबंध में पढ़ा है। उसने हमें यह निबंध भी दिखाया। वह निबंध देखकर हमें इसलिए खुशी हुई क्योंकि वह अंग्रेजी में था। हमें लगा कि चलो कम से कम इंग्लिश मीडियम में पढऩे वाले बच्चों को तो महात्मा गांधी के बारे में जानकारी मिल रही है। यह एक अच्छा संकेत हो सकता है। लेकिन दूसरी तरफ हमारी युवा पीढ़ी जरूर गांधी दर्शन से परहेज किए हुए हैं। हां अगर गांधी जी के नाम को भुनाने के लिए गांधीगिरी करने की बारी आती है तो मीडिया में स्थान पाने के लिए जरूर युवा गांधीगिरी करने से परहेज नहीं करते हैं। एक बार हमने अपने ब्लाग में भी गांधी की मां का नाम पूछा था हमें इस बात की खुशी है ब्लाग बिरादरी के काफी लोग उनका नाम जानते हैं।

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शनिवार, अक्टूबर 01, 2011

काम पढ़ाना, शौक निशाना लगाना

पॉलीटेक्निक में लेक्चरर के पद पर काम करने वाली सुमी गुहा का शौक निशाना लगाना है और उनके इस शौक ने उनको दूसरी बार मावलंकर में खेलने की पात्रता भी दिला दी है। अपने पति आलोक गुहा की प्रेरणा से निशानेबाजी में आई, सुमी गुहा के दोनों बच्चे भी अच्छे निशानेबाज हैं। यह गुहा परिवार माना में राज्य निशानेबाजी में अपने जौहार दिखा रहा है।
माना में चल रही राज्य निशानेबाजी के स्पोर्ट्स पिस्टल वर्ग में 245 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीतने के साथ सुमी गुहा ने 16 अक्टूबर से मावंलकर में होने वाली राष्ट्रीय स्पर्धा के पात्रता चक्र के लिए टिकट कटा लिया है। श्रीमती गुहा बताती हैं कि उनको तीन साल हो गए हैं राज्य स्पर्धा में खेलते हुए। पहले साल तो उनके हाथ सफलता नहीं लगी, लेकिन दूसरे साल उन्होंने एयर पिस्टल के साथ स्पोर्ट्स पिस्टल में रजत पदक जीते। 2010 के इस साल में उन्होंने एयर पिस्टल में मावलंकर जाने की भी पात्रता प्राप्त की। मावंलकर में वह राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेलने की पात्रता प्राप्त नहीं सकीं। लेकिन उनको इस बात की खुशी है कि उनको वहां तक जाने का मौका मिला। इस बार उनको स्पोर्ट्स पिस्टल में जाने का मौका मिला है। वैसे वह एयर पिस्टल में भी मावलंकर जाने का प्रयास करेंगी। इस वर्ग के मुकाबले अभी बचे हैं।
सुमी गुहा बताती हैं कि उनके परिवार में सबसे पहले निशानेबाजी उनके पति आलोक गुहा जो कि माइनिंग में काम, करते थे, इसके बाद उन्होंने और दोनों बच्चों जिसमें प्रथम वर्ष में पढ़ रही अनुषा गुहा और पीजी कर रहे आयुष गुहा शामिल हैं ने निशानेबाजी प्रारंभ की। उनकी पुत्री दिल्ली में पढ़ती हैं, लेकिन राज्य स्पर्धा में खेलने वह यहां आ रही हैं। एक सवाल के जवाब में सुमी गुहा कहती हैं कि निशानेबाजी में सफलता के लिए निरंतर अभ्यास जरूरी है और इसके लिए उन्होंने घर में छोटी सी रेंज बना रखी है। वह कहती हैं कि एयर और स्पोर्ट्स पिस्टल के लिए छोटी की रेंज की ही जरूरत होती है इसलिए घर में अभ्यास संभव है। उन्होंने बताया कि 80-80 हजार की दो विश्व स्तरीय पिस्टल खरीदी है। इस बार उनको मावलंकर में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि मैंने यहां 245 अंक बनाएं हैं जबकि मावलंकर में 262 अंक बनाने पर ही राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने की पात्रता मिलेगी। अभी समय है और अभ्यास करने से मैं उस लक्ष्य तक पहुंच सकती हूं।

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शुक्रवार, सितंबर 30, 2011

आयुषी चौहान की खिताबी जीत

अखिल भारतीय टैलेंट सीरिज लॉन टेनिस के खिताबी मुकाबले में छत्तीसगढ़ की आयुषी चौहान ने शानदार खेल दिखाते हुए शुभ गुलाटी को मात देकर खिताब अपने नाम कर लिया। यह दूसरा मौका है जब आयुषी ने आइटा खिताब जीता है। अंडर 14 बालिकाओं का खिताब नंदनी गुप्ता ने जीता। बालक वर्ग में अंडर 14 का खिताब के शिवदीप और 16 का एन. भुपाल राजु ने जीता। युगल मुकाबलों में एन भुपाल राजु ने अपरूप रेड्डी के साथ मिलकर खिताब जीता।
छत्तीसगढ़ क्लब में अंडर 16 बालिकाओं के खिताबी मुकाबले में मेजबान छत्तीसगढ़ की आयुषी चौहान ने दिल्ली की शुभ गुलाटी को एक घंटे तक चले मुकाबले में 9-2 से मात दी। अंडर 14 में एपी की नंदनी गुप्ता ने साई निकिता की चोट का फायदा उठाते हुए कड़े संघर्ष में उसे 9-6 से परास्त कर खिताब अपने नाम किया। बालकों के वर्ग में एपी के के. शिवदीप ने अपने ही राज्य के अपरूप रेड्डी को 9-4 से मात दी। अपरूप को अंडर 16 के खिताबी मुकाबले में भी हार मिली। यहां पर उन्हें एन. भुपाल राजु ने 9-4 से हराया। एन भुपाल राजु ने साजिदुर रहमान के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ के नील शुक्ला और रेहान कुमार की जोड़ी को 9-2 से परास्त कर दोहरा खिताब अपने नाम किया।
छत्तीसगढ़ का नाम रौशन करें: उसेंडी
फाइनल मैचों के बाद पुरस्कार वितरण के मुख्य अतिथि वन मंत्री विक्रम उसेंडी ने कहा कि छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों ने इस राष्ट्रीय स्पर्धा में जोरदार खेल दिखाकर बताया है कि छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी किसी से कम नहीं है। अपने राज्यों के खिलाड़ियों से मैं कहना चाहता हूं कि राज्य का नाम पूरे देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी रौशन करने के लिए मेहनत करें। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए एडीजी रामनिवास ने कहा कि मैं खिलाड़ियों के उन सभी माता-पिता को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने अपने बच्चों को खेल से जोड़ा है। वे इसी तरह से अपने बच्चों को प्रोत्साहित करते रहे। 
आयुशी को 21 हजार की किट: सिसोदिया
प्रदेश लॉन टेनिस संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह सिसोदिया ने कहा कि स्पर्धा में खिताब जीतकर छत्तीसगढ़ का नाम रौशन करने वाली आयुशी चौहान को संघ की तरफ से 21 हजार रुपए की किट दी जाएगी। इसी के साथ स्पर्धा में शानदार खेल दिखाने वाले पार्थ दीक्षित और सार्थक देवरस को संघ की तरफ से 51-51 सौ रुपए की किट दी जाएगी। उन्होंने बताया कि संघ राष्ट्रीय स्पर्धाओं में प्रदेश के चुने हुए खिलाड़ियों को भेजेगा। इन खिलाड़ियों का सारा खर्च संघ उठाएगा। ऐसे प्रतिभावान खिलाड़ियों का चयन एक सप्ताह में कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य के अंपायरों और प्रशिक्षकों को भी प्रशिक्षण के लिए बाहर भेजा जाएगा। पुरस्कार वितरण समारोह में संघ के गुरुचरण सिंह होरा, राजेश पाटिल, लारेंस सेंटियागो के साथ लॉन टेनिस को गोद लेने वाले शारडा एनर्जी के पंकज शारडा, स्पर्धा के प्रायोजक मनोरमा ग्रुप के आशीष सर्राफ भी उपस्थित थे।
नजरें अब चैंपियंस सीरिज पर: आयुषी
अंडर 16 का खिताब पहली बार जीतने वाली आयुषी चौहान ने कहा कि उनको फाइनल में पहुंचने की आशा तो थी, लेकिन खिताब तक पहुंचने की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने पूछने पर बताया कि इसके पहले वह पिछले साल अंडर 14 का एकल खिताब जीतने के साथ युगल खिताब भी जीत चुकी हैं। दो और युगल खिताब उन्होंने राऊरकेला और भुवनेश्वर में पिछले साल जीते थे। छत्तीसगढ़ में खेली गई चैंपियंस सीरिज में आयुशी पिछले साल उपविजेता रही थी। लेकिन अब मुंबई में 6 अक्टूबर से होने वाली चैंपियंस सीरिज में वह खिताब जीतने की तैयारी में हैं।

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गुरुवार, सितंबर 29, 2011

जूनियरों को उत्कृष्ट खिलाड़ी बनाने की मांग उठी

प्रदेश के खेल संघों के पदाधिकारियों ने खेल संचालक जीपी सिंह के सामने जूनियर खिलाड़ियों को उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित करके नौकरी देने की मांग रखी। संचालक से कहा गया कि ऐसा करने से ही राष्ट्रीय खेलों में छत्तीसगढ़ को ज्यादा पदक मिल सकेंगे।
खेल भवन में खेल संचालक जीपी सिंह की अध्यक्षता में हुई खेल संघों की बैठक में वालीबॉल संघ के मो. अकरम खान, बास्केटबॉल संघ के राजेश पटेल और कबड्डी संघ के रामबिसाल साहू सहित कई संघों के पदाधिकारियों ने एक स्वर में कहा कि सीनियर खिलाड़ियों को उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित करके नौकरी देना तो अपनी जगह ठीक है, पर जूनियर खिलाड़ियों को भी उसी तरह से नौकरी देने की पहल होनी चाहिए जिस तरह की पहल रेलवे और आर्मी के साथ देश के कई संस्थानों में होती है। खेल संघ के पदाधिकारियों ने तर्क दिया कि जूनियर खिलाड़ियों को नौकरी देने से वे राज्य के लिए कम से कम एक दशक तक तो खेलेंगे ही, लेकिन सीनियर खिलाड़ी इतने लंबे समय तक नहीं खेल पाते हैं। इस मामले में खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि अगर किसी राज्य में ऐसा होता है तो उसकी जानकारी उपलब्ध कराई जाए। संचालक को बताया गया कि रेलवे में 10वीं पास खिलाड़ियों को तृतीय श्रेणी में रखा जाता है। राज्य में ऐसी पहल होने का फायदा राष्ट्रीय खेलों में मिलेगा।
आधे खेल संघ ही आए बैठक में
खेल भवन की बैठक संघों को उद्योगों से से मदद दिलाने के लिए बुलाई गई थी। इस बैठक में बास्केटबॉल, वालीबॉल, कबड्डी, हैंडबॉल, कुश्ती, तैराकी, ट्रायथलान, स्क्वैश, तलवारबाजी, खो-खो, भारोत्तोलन, नेटबॉल, मोटर स्पोर्ट्स, मुक्केबाजी, एथलेटिक्स, टेबल टेनिस, बैडमिंटन संघ के ही पदाधिकारी आए। बाकी संघों के पदाधिकारी आए ही नहीं। खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि दो संघों तीरंदाजी और फुटबॉल के सचिवों ने न आने की जानकारी दी थी, लेकिन बाकी संघों से कोई सूचना नहीं आई। बैठक में खेल संघों से जानकारी ली गई कि उनको गोद लेने वाले उद्योगों  को संघों ने योजना बनाकर दी है या नहीं और उद्योगों के एक प्रतिनिधि को उपाध्यक्ष बनाया गया है नहीं। श्री सिंह ने बताया कि करीब आधा दर्जन संघों ने ही योजना बनाकर देने के साथ उपाध्यक्ष बनाए हैं। सभी संघों को दोनों काम जल्द से जल्द करने को कहा गया। खेल संचालक ने बताया कि बैठक में की गई चर्चा की जानकारी उद्योग सचिव को देकर उद्योगों से खेल संघों को मदद दिलाने की बात की जाएगी।

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बुधवार, सितंबर 28, 2011

छत्तीसगढ़ की आयुषी चौहान सेमीफाइनल में

अखिल भारतीय टैलेंट सीरिज लॉन टेनिस में मेजबान छत्तीसगढ़ के लिए दूसरा दिन शानदार रहा। अंडर 16 बालिका वर्ग में चौथी वरीयता प्राप्त छत्तीसगढ़ की आयुषी चौहान ने सेमीफाइनल में स्थान बना लिया। इधर बालक वर्ग में पार्थ दीक्षित के साथ सार्थक देवरस ने अंडर 14 और 16 के भी क्वार्टर फाइनल में स्थान बना लिया है।
शाम को यूनियन क्लब में खेले गए अंडर 16 के पहले क्वार्टर फाइनल में आयुषी चौहान ने कौशिल्या कल्पार्थी को आसानी से 8-3 से परास्त कर सेमीफाइनल में स्थान बनाया। इधर छत्तीसगढ़ क्लब में खेले गए बालक वर्ग के मुकाबलों में अंडर 14 में छत्तीसगढ़ के पार्थ दीक्षित ने दिल्ली के अरणव महाजन को 8-3 और सार्थक देवरस ने दिल्ली के मयंक आर्या को 8-1 से परास्त कर अंतिम 8 में स्थान बनाया। अंडर 16 के प्रीक्वार्टर फाइनल में पार्थ दीक्षित ने विशाल रेड्डी को 8-1 और सार्थक देवरस ने उप्र के शिवम शुक्ला को 8-1 से मात देकर क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया। क्वार्टर और सेमीफाइनल मुकाबले बुधवार को होंगे। अंडर 14 के अन्य मैचों में उड़ीसा के अविलाष मिश्रा ने तमिलनाडु के रेहान कुमार को 8-2, एपी के के. शिवदीप ने एपी के ही फयाज कादरी को 8-4, एपी के अपरूप रेड्डी ने छत्तीसगढ़ के हिमांशु मोर्य को 8-3, एपी के जूड लेंडर ने गुजरात के निखिल देशमुख को 8-3, बिहार के निशांत कुमार ने उड़ीसा के निशांत मोहंती को 8-1 से हराया।  एपी के रोहित अयानपू को तमिलनाडु के परीक्षित रामानाथन के न खेलने से वाकओवर मिला। अंडर 16 के प्रीक्वार्टर मैचों में अपरूप रेड्डी ने रेहान कुमार को 8-3, दिल्ली के अंशुमन गुलिया ने एस. श्रीवत्सम को 8-6, अविलाष मिश्रा ने अरणव महाजन को 8-1, एन. भोपाल राजू ने केजेएन रेड्डी को 8-6, हेमंत कुमार ने छत्तीसगढ़ के स्वप्निल अयंगर को 8-2 से हराया।
बालिकाओं के अंडर 14 के क्वार्टर फाइनल मैचों में शीर्ष वरीयता प्राप्त एपी की साई निकिता ने गुजरात की संजना टांक को 8-1, एपी की लिखिता ने महाराष्ट्र की राजश्री राठौर को 8-2, महाराष्ट्र की वैभवी देशमुख ने एपी की कौशिल्या कल्पार्थी को 8-2 और एपी की नंदनी गुप्ता ने महाराष्ट्र की सिमरन गवली को 8-1 से परास्त कर सेमीफाइनल में स्थान बनाया। सेमीफाइनल में नंदनी का मुकाबला वैभवी से और लिखिता का निकिता से होगा।
अंडर 16 बालिका वर्ग के प्रीक्वार्टर फाइनल मैचों में एपी की रेहाना एचके ने तमिलनाडु की पूर्वी एम को टाईब्रेकर में 8-7 (7-3) एपी की कौशिल्या कल्पर्थी ने छत्तीसगढ़ की अक्षया पाठक को 8-2, महाराष्ट्र की वैभवी देशमुख ने महाराष्ट्र की ही राजश्री राठौर को 8-2 और एपी की लिखिता ने महाराष्ट्र की सिमरन गवली को 8-5 से हराकर क्वार्टर फाइनल में स्थान बनाया।


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मंगलवार, सितंबर 27, 2011

प्रतिस्पर्धा से निखरती हैं प्रतिभाएं: कौशिक

खिलाड़ियों को जितनी ज्यादा प्रतिस्पर्धाओ में खेलने का मौका मिलता है, उनकी प्रतिभा में उतना ही निखार आता है। छत्तीसगढ़ लॉन टेनिस संघ इसी दिशा में काम करते हुए प्रदेश के खिलाड़ियों को खेलने का मौका दे रहा है। संघ का यह प्रयास सराहनीय है। यह तय है कि छत्तीसगढ़ की प्रतिभाएं देश और दुनिया में राज्य का नाम रौशन करेंगी।
ये बातें यूनियन क्लब में टैलेंट सीरिज राष्ट्रीय लॉन टेनिस का उद्घाटन करते हुए विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने कहीं। उन्होंने कहा कि खेलों का महत्व आज बहुत ज्यादा हो गया है, खेलों के माध्यम से नौकरी मिलने लगी है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में नए खेलों की भी प्रतिस्पर्धाएं होनी चाहिए ताकि राज्य के खिलाड़ियों को खेलने का मौका मिल सके। उन्होंने कहा कि लॉन टेनिस संघ लगातार राष्ट्रीय स्तर के आयोजन करके राज्य की प्रतिभाओं को मौका देने का काम कर रहा है।
अपने दम पर जीतेंगे पदक: भाटिया
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बलदेव सिंह भाटिया ने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की पहल पर छत्तीसगढ़ को 37वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है। इसकी तैयारी में हम लोग जुटे हैं। राज्य में मैदान बनाने का काम जल्द प्रारंभ होगा। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, जब अपने राज्य में राष्ट्रीय खेल होंगे तो अपने खिलाड़ियों के दम पर पदक जीतेंगे। छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों में देश और दुनिया में जाकर जीतने की क्षमता है। श्री भाटिया ने कहा कि मैं क्रिकेट संघ का भी अध्यक्ष हूं और बताना चाहता हूं कि विश्व कप में खेलने वाली कनाडा की टीम छत्तीसगढ़ आई थी तो उसे हमारी टीम ने 3-0 से मात दी थी।
हमारे खिलाड़ी भी दमदार: सिसोदिया
प्रदेश संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह सिसोदिया ने कहा कि हमारे राज्य के खिलाड़ी भी दमदार है और उम्मीद है कि स्पर्धा में जोरदार खेल दिखाएंगे। उन्होंने बताया कि स्पर्धा में 12 राज्यों के 100 से ज्यादा खिलाड़ी भाग ले रहे हैं। श्री सिसोदिया ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक की खेलों में विशेष रुचि है, कल रात को जयपुर से लौटने के बाद भी वे सुबह यहां आ गए। उन्होंने कहा कि अकादमी बनाने में ओलंपिक संघ की मदद लेंगे। उद्घाटन अवसर पर लॉन टेनिस को गोद लेने वाले शारडा एनर्जी के पंकज शारडा, ओलंपिक संघ के विजय अग्रवाल, स्पर्धा के प्रायोजक मनोरमा ग्रुप के आशीष सर्राफ उपस्थित थे। आभार प्रदर्शन संघ के सचिव गुरुचरण सिंह होरा ने किया। उन्होंने बताया कि आइटा की मेजबानी लेना आसान नहीं होता है, लेकिन संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह सिसोदिया के प्रयासों से लगातार दूसरे साल राज्य को मेजबानी मिली है।
अक्षया, पार्थ, सार्थक अगले चक्र में
स्पर्धा के पहले दिन खेले गए मैचों में मेजबान छत्तीसगढ़ के चार खिलाड़ियों ने अगले चक्र में स्थान बनाया। अंडर 16 के बालिका वर्ग में अक्षया पाठक ने एपी की चंदना को 8-3 से मात दी। अंडर 14 बालक वर्ग में छत्तीसगढ़ के पार्थ दीक्षित ने छत्तीसगढ़ के ही प्राज्जल गोलछा को 8-0, सार्थक देवरस ने अनिमेष सिंह को 8-0 और हिमांशु मोर्या ने उड़ीसा के कबीर हंस को 8-1 से मात दी। अन्य मैचों में शीर्ष वरीयता प्राप्त उड़ीसा के अविलाश मिश्रा ने रोहित गोस्वामी (उप्र) को 8-0, रेहान कुमार (तमिलनाडु) ने रिषभ बागरेजा (छत्तीसगढ़) को 8-0, हुसैन कादरी (महाराष्ट्र) ने परमवीर होरा (छत्तीसगढ़) को 8-7 (7-1), के. शिवदीप   (एपी) ने अभिनव (दिल्ली) को 8-3, मयंक आर्या (दिल्ली) ने आकाश पाटिल (छत्तीसगढ़) को 8-0, रोहित अयानपू (एपी) ने राजवर्धन देवांगन (छत्तीसगढ़) को 8-1,अरणव महाजन (दिल्ली) ने देवापी सिंह (छत्तीसगढ़) को 8-4, अपरूप रेड्डी (एपी) ने अंशुमन गुलिया (दिल्ली) को 8-3, जूड रेंडर (एपी) ने एस श्रीवत्सम (तमिलनाडु) को 8-2, निखिल देशमुख (गुजरात) संदीप पेडाडे (एपी) को 8-1, निशांत मोहंती (उड़ीसा) ने विशाल रेड्डी (एपी) को 8-0, निशांत कुमार (बिहार)ने तनीस व्यास (छत्तीसगढ़) को 8-1 से मात दी। अंडर 16 बालकों में एन गोपाल राजू ने फैयाज कादरी को 8-1 और केजेएन रेड्डी (एपी) ने नील शुक्ला (छत्तीसगढ़) को 8-3 से हराया। अंडर 14 बालिका वर्ग के मुकाबलों में संजना टांक (गुजरात) ने मांसविनी रेड्डी (एपी) को 8-4, राजश्री रौठार (महाराष्ट्र) ने निसिका टांक (गुजरात) को 8-0, कल्पार्थी कौशिल्या (एपी) ने चंदना (एपी) को 8-4 और सिमरन गवली (महाराष्ट्र) ने रेहना एसके (एपी) को 8-2 से परास्त कर क्वार्टर फाइनल में स्थान बनाया। 

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रविवार, सितंबर 25, 2011

जागरूकता से ही मिलेगी डोपिंग से मुक्ति

खिलाड़ियों में जागरूकता और आत्मविश्वास के बिना डोपिंग से मुक्ति संभव नहीं है। एक तरफ वाडा और नाडा डोपिंग रोकने के प्रयास में रहते हैं, तो दूसरी तरफ खिलाड़ी डोप में फंसने के रास्ते तलाश लेते हैं। यही वजह है कि डोपिंग के जाल में आज पूरे विश्व का खेल जगत फंसा हुआ है।
ये बातें यहां पर एंटी डोपिंग सेमिनार में सामने आईं। नाडा के डॉ. सीडी त्रिपाठी ने कहा आज जिस तरह की स्थिति विश्व के खेल क्षितिज पर है, उससे लगता नहीं है कि डोपिंग को रोक पाना संभव है। एक तो खेल संघों को भी कड़ाई करनी होगी, साथ ही यह जरूरी है कि खिलाड़ियों को यह बात समझ आए कि ड्रग्स लेने से उनकी क्षमता भले बढ़ सकती है, लेकिन इसका उनके शरीर पर दुष्प्रभाव ज्यादा होता है। 1990 से पहले डोपिंग के मामले पकड़ पाना आसान नहीं था, लेकिन अब आधुनिक साइंस में सब संभव हो गया है।
नाडा के डॉ. प्रदीप गुप्ता ने बताया कि वाडा की प्रतिबंधित दवाओं की सूची को पढ़ पाना खिलाड़ी और कोच के लिए संभव नहीं है। ऐसे में हम लोग खिलाड़ियों को यही सलाह देते हैं कि कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लें। साई के एनआईएस कोच गजेन्द्र पांडे ने कहा कि यह सब पदक जीतने के लिए होता है। भारोत्तोलन संघ का 40 प्रतिशत बजट तो डेपिंग टेस्ट पर खर्च होता है। उन्होंने कहा कि डोपिंग जहां से शुरू होता है, वहीं से रोकना चाहिए। ओलंपियन राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि जब हम लोग बार्सिलोना ओलंपिक में खेले थे, तब डोपिंग का ज्यादा जोर नहीं है। सेमिनार से खिलाड़ियों में जागरूकता आएगी। गिनीज रिकॉर्डधारी मनोज चोपड़ा ने कहा कि मैंने पदक जीतने के लिए ड्रग्स लेने से बेहतर है आप हार जाए। खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों को देखते हुए यह सेमिनार आयोजित किया गया है ताकि प्रदेश के खिलाड़ी जागरूक हो सके। सेमिनार में खेलों से जुड़े 200 से ज्यादा से भाग लिया।
प्रतिबंध लगाएं: ननकीराम कंवर
कार्यक्रम के मुख्यअतिथि गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने कहा कि डोपिंग करने वालों पर आजीवन प्रतिबंध लगा देना चाहिए। ऐसा करने वालों के कारण ही देश शर्मसार होता है। किसी भी तरह का नशा घातक ही होता है।
फैक्ट फाइल
0 1904 में ड्रग्स लेने वाले धावक थामस हिम्स मैराथन जीतने के बाद मर गए थे
0 1936 में नाजी जर्मन टेस्टोस्टेरोन लेते थे
0 1954 में भारोत्तोलक टेस्टोस्टेरोन के इंजेक्शन लेते थे, यही वह समय था जब रूस और अमरीका में पदक वार प्रारंभ हुआ
0 1962 में अमरीकी एथलीटों ने स्टेरायड लेना प्रारंभ किया
0 1968 में पहला डोप टेस्ट किया गया
01988 में बेन जानसन पर ड्रग्स लेने का आरोप लगा
0 1984 में बास्को स्कैंडल सामने आया, बास्केटबॉल खिलाड़ी ऐसी ड्रग्स लेते थे जिससे पकड़े न जाए
0 1999 में वाडा बना
0 2003 में मेरीयन जोंस पर डोपिंग का आरोप लगा, पर साबित नहीं हो सका
0 2007 में वाडा ने दवाईयां बनाने वाली कंपनियों से दवाओं का मैथड लेने का अनुबंध किया
0 नाडा को वाडा से 2009 में मान्यता मिली
क्यों लेते हैं ड्रग्स
0 अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद
0 शक्ति बढ़ाने
0 थकान स्थगित करने
0 तनाव से लड़ने
क्या लेते हैं एथलीट
दर्दनाशक दवा, दिल, श्वास की दवाएं, मस्तिक का उतेजित करने वाली दवाएं
बचाव के रास्ते
0 मूत्र के नमूने में पानी मिलना
0 टेस्ट देने से पहले खून चढ़ावा लेना
0 प्रतिबंधित दवा के साथ दूसरी दवा लेना ताकि पकड़े न जा सके
नाडा कैसे करता है टेस्ट
0 पहले साई सेंटर के मेडिकल का स्टॉफ करता था
0 नाडा अब अपने डोपिंग कंट्रोलर रखते हैं
0 राष्ट्रीय खेलों के शिविर में लेते हैं सैंपल
0 चुनिंदा खिलाड़ियों के लेते हैं सैंपल
0 एक खिलाड़ी का टेस्ट कई बार ले सकते हैं
0 बाहर जाने वाली हर टीम का होता है टेस्ट
ओलंपिक में पकड़े गए मामले
1972 में 7
1976 में 11
1984 में 12
1988 में 10
1992 में 5
1992 में 2
2000 में 12
2004 में 27
2008 में 18 

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शनिवार, सितंबर 24, 2011

छत्तीसगढ़ की रिकॉर्ड 10वीं खिताबी जीत

राष्ट्रीय सब जूनियर बास्केटबॉल के बालिका वर्ग में छत्तीसगढ़ ने कर्नाटक को 64-21 से परास्त कर रिकॉर्ड दसवीं बार खिताब जीत लिया। इसके पहले कोई भी राज्य 10 बार   खिताब नहीं जीत सका है, पंजाब के नाम सात बार खिताब जीतने का रिकॉर्ड है।
लखनऊ में खेले गए फाइनल में छत्तीसगढ़ ने कर्नाटक को एकतरफा मुकाबले में मात दी। पहले क्वार्टर से ही छत्तीसगढ़ की खिलाड़ियों ने शानदार खेल दिखाते हुए 23-6 से बढ़त ले ली। दूसरे क्वार्टर में स्कोर 36-7 और तीसरे क्वार्टर में 43-9 हो गया। अंत में छत्तीसगढ़ ने मैच 64-21 से जीतने के साथ खिताब अपने नाम कर लिया। मैच में विजेता टीम के लिए रिया वर्मा से सबसे ज्यादा 23, कप्तान पी. दिव्या ने 12, रश्मि वानखेड़े ने 8, वंदना आर्य, रागिनी झा ने पांच-पांच अंक बनाए।
टीम के कोच राजेश पटेल ने बताया कि 2001 में कपूरथला में पहली बार खिताब के साथ स्वर्ण जीतने का सिलसिला प्रारंभ हुआ था जो अब तक चल रहा है। 2004 में त्रिवेद्रम में ही छत्तीसगढ़ स्वर्ण से चूका था, वहां कांस्य मिला था। 2002 पांडिचेरी, 2003 गोवाहाटी, 2005 भिलाई, 2006 कोलकाता, 2007 रोहन (पंजाब), 2008 कपूरथला, 2009 चितौड़गढ़2011 कांगड़ा में स्वर्ण जीता।

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शुक्रवार, सितंबर 23, 2011

सात जिले, 250 कॉलेज और खिलाड़ी पांच

रविशंकर विश्व विद्यालय के अंतर्गत सात जिलों के 250 कॉलेजों से महज पांच खिलाड़ी ही अंतर कॉलेज लॉन टेनिस में खेलने पहुंचे। इनमें से चार महिला खिलाड़ी राजधानी के कॉलेजों की थी, पुरुष वर्ग के मुकाबलों के लिए एक मात्र खिलाड़ी के आने के कारण टीम ही नहीं बन सकी।
छत्तीसगढ़ कॉलेज की मेजबानी में अंतर कॉलेज लॉन टेनिस का आयोजन यूनियन क्लब में गुरुवार को किया गया। स्पर्धा में सात जिलों रायपुर, धमतरी, कवर्धा, राजनांदगांव, महासमुन्द, दुर्ग और कांकेर कॉलेजों के खिलाड़ियों को शामिल होना था। इन सात जिलों में रविवि से मान्यता प्राप्त करीब 250 कॉलेज हैं। जब स्पर्धा प्रारंभ हुई तो स्पर्धा में शामिल होने के लिए प्रिंसेस कॉलेज की प्रीति सैनी, महंत कॉलेज की ज्योति सिंह और छत्तीसगढ़ कॉलेज की भी ज्योति सिंह के साथ देवेन्द्र नगर कन्या महाविद्यालय की अंकित उपवेजा ही आर्इं। इनके मध्य मुकाबलों के बाद वरीयता तय करके रविवि की टीम बनाई गई। पहले स्थान पर छत्तीसगढ़ की ज्योति सिंह, दूसरे स्थान पर महंत की ज्योति सिंह, तीसरे स्थान पर देवेन्द्र नगर की कॉलेज की अंकित उपवेजा और चौथे स्थान पर प्रिंसेस कॉलेज की प्रीति सैनी रहीं। इन खिलाड़ियों ने पूछने पर बताया कि इनके कॉलेजों में भी टेनिस का कोर्ट नहीं है, लेकिन टेनिस में रुचि होने के कारण खेलती हैं। इधर पुरुष वर्ग में एक मात्र खिलाड़ी महंत कॉलेज के विवेक वर्मा आए। और कोई खिलाड़ी न होने के कारण विवेक को निराश होकर लौटना पड़ा। उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि लॉन टेनिस में कॉलेज के खिलाड़ियों को रुचि नहीं है। महिला वर्ग में चुनी गई खिलाड़ी भुवनेश्वर में 4 अक्टूबर से होने वाली पूर्वी क्षेत्रीय अंतर विवि स्पर्धा में खेलने जाएंगी।
मैदानों की कमी बड़ा कारण
लॉन टेनिस से जुड़े छत्तीसगढ़ कॉलेज के क्रीड़ा अधिकारी और प्रशिक्षक रूपेन्द्र सिंह चौहान के साथ एसए रिजवी का कहना है कि कॉलेजों में मैदानों की कमी एक बड़ा कारण है जिसके कारण खिलाड़ी नहीं निकल रहे हैं। वैसे जिन कॉलेजों के क्रीड़ा अधिकारी औैर खिलाड़ी रुचि लेते हैं वहां से खिलाड़ी निकल जाते हैं। इसी के साथ इन्होंने कहा कि खेल का महंगा होना भी एक कारण है। वैसे पहले की तुलना में लॉन टेनिस का खेल कुछ सस्ता हो गया है, पहले जो रैकेट 20 से25 हजार के आते थे, आज चाइना के कारण ये रैकेट 10 से 12 हजार में मिल जाते हैं।

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गुरुवार, सितंबर 22, 2011

खिलाड़ी दो, सुविधाएं लो

37वें राष्ट्रीय खेलों की तैयारी में जुटे खेल विभाग के संचालक जीपी सिंह ने राज्य के कई खेलों के प्रशिक्षकों से कहा कि विभाग सुविधाएं देने के लिए तैयार है, आप तो बस खिलाड़ी तैयार करने का काम करें। प्रशिक्षकों की समस्याएं सुनने के बाद उनका समाधान करने की बात के साथ उनको सामान की सूची देने कहा गया ताकि सामान दिया जा सके।
खेल भवन में  राज्य के खेलों के प्रशिक्षकों का जमावड़ा लगा। प्रशिक्षकों से खेल संचालक जीपी सिंह के साथ रविशंकर विश्व विद्यालय के पूर्व संचालक संतोष उपाध्याय ने भी चर्चा की। खेल संचालक ने प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दिया कि विभाग की मंशा छत्तीसगढ़ की मेजबानी में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों के लिए खिलाड़ी तैयार करना है। इसके लिए जिस भी खेल के प्रशिक्षकों को सुविधाओं की जरूरत है, वह खेल विभाग दिलाएगा। बैठक में मैदानों और खेल सामानों की कमी के साथ की बात तो सामने आई ही, साथ ही खिलाड़ियों को आधुनिक तरीके से तैयार करने की भी बात की गई। कोरबा के एनआईएस कोच पी. कृष्णन के साथ और कई प्रशिक्षकों ने कहा कि खिलाड़ियों के अभ्यास की विडियो रिकार्डिंग होनी चाहिए और ताकि उनकी कमियों को देखकर उनको दूर किया जा सके। इसके लिए साफ्टवेयर की भी बात की गई। खेल संचालक ने ऐसे साफ्टवेटर की पूरी जानकारी जुटाने कहा, साथ ही बताया कि विभाग ने भी एक प्रस्ताव शासन को भेजा है जिसमें यह बात है कि खिलाड़ियों को आधुनिक तरीके से तैयार किया जाएगा।
एथलेटिक्स के कोच सुदर्शन सिंह ने कहा कि बिना सिंथेटिक ट्रेक के खिलाड़ियों को तैयार करना संभव नहीं है। कोरिया के कोच ने स्पोर्ट्स लायब्रेरी की बात कही। मालखरौदा के तीरंदाजी कोच ने वहां प्रशिक्षण के लिए सामान मांग जिस पर खेल संचालक ने तुरंत सामान देने की बात कही। एक प्रशिक्षक ने प्रशिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम कराने की मांग रखी, जिस पर संचालक ने हामी भरते हुए कहा कि जिस भी खेल के विशेषज्ञ बुलाएं जाएंगे उनका और आयोजन का सारा खर्च खेल विभाग करेगा लेकिन इसके लिए पहल खेल संघों का या उन खेलों के प्रशिक्षकों की करनी होगी। बैठक में 50 से प्रशिक्षकों के साथ रायपुर साई सेंटर के प्रभारी के साथ साई के प्रशिक्षक भी उपस्थित थे।
प्रशिक्षक का एनआईएस होना जरूरी नहीं
बैठक में रविवि के पूर्व संचालक संतोष उपाध्याय ने कहा कि अक्सर कहा जाता है कि खेल में एनआईएस कोच होना चाहिए, लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता हूं। पीटी उषा का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उनके कोच भी एनआईएस नहीं थे। कहने का मतलब यह है कि जिसने अपना सारा जीवन अपने खेल में खफा दिया हो उससे अच्छा भला कैसे कोई एनआईएस कोच हो सकता है।
एथलेटिक्स सचिव पर भड़के साई के कोच
बैठक में एथलेटिक्स संघ के सचिव आरके पिल्ले पर साई के कोच गजेन्द्र पांडे इस बात को लेकर भड़क गए कि संघ साई को राज्य की टीमों के ट्रायल के बारे में जानकारी दी नहीं देता है। इस बार भी जानकारी न देने के कारण साई के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने नहीं जा सके। श्री पांडे ने कहा कि हमारे खिलाड़ी जाते तो जरूर छत्तीसगढ़ को पदक मिलते। इधर श्री पिल्ले की ब्लाक स्तर पर खिलाड़ियों के लिए आयोजन की बात पर खेल संचालक ने कहा कि पायका योजना से ग्रामीण खिलाड़ी तैयार हो रहे हैं, इसी में संघ को मदद करनी चाहिए।

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बुधवार, सितंबर 21, 2011

खुबसूरत बीबी हो तो विदेश में रहना खतरनाक

लॉन टेनिस के एक अंतरराष्ट्रीय कोच अख्तर अली से मिलने का मौका मिला। उनसे काफी बातें हुई। वे कई देशों में घुमें हैं। उनकी उम्र इस समय 72 वर्ष है। उन्होंने एक बात कहीं कि अगर आपकी बीबी खुबसूरत है तो आपके लिए विदेश में रहना खतननाक हो सकता है, क्योंकि कोई भी आपकी बीबी को लेकर उड़ सकता है।

अख्तर अली ने बताया कि उनके पास विदेश में रहने के बहुत ऑफर थे, लेकिन वे वहां नहीं रहे। इसका कारण वे यह बताते हैं कि वहां पर भारत जैसा सम्मान नहीं मिलता है। एक और बात यह भी है कि वहां अगर इंसान मर जाए तो उसको कंघा देने वाले भी नहीं मिलते हैं। लेकिन इसी के साथ वे हंसते हुए यह भी कहते हैं कि विदेश में रहने का एक सबसे बड़ा खतरा यह रहता है कि आपकी बीबी, खासकर उस बीबी को कोई भी उड़ा सकता है जो खुबसबरत हो। वे कहते हैं कि वहां की संस्कृति ही ऐसी है किसका किसके साथ अफेयर हो जाए कोई नहीं जानता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि विदेश की संस्कृति ओपन सेक्स की होने की वजह से यह खतरा वहां पर हर किसी के साथ बना रहता है कि उसकी बीबी का किसी से अफेयर न हो जाए। लेकिन यह बात तय है कि अपनी भारतीय महिला को इतनी आसानी से हाथ लगाना किसी के लिए बस की बात नहीं है। भारतीय नारी वैसे तो पूरी तरह से पति को समर्पित रहती हैं। वह बाहर कदम तभी उठाती हैं जब वह पति से प्रताडि़त होती हैं। लेकिन यह बात भी है कि कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। अख्तर अली साहब की बात अपनी जगह ठीक भी है कि खुबसूरत बीबी के साथ कौन कम्बख्त भला विदेश में जाकर रहना पसंद करेगा। कहीं बीबी किसी गोरे को देखकर बहक गई तो क्या होगा।  यह भी बात है कि जैसा देश वैसा भेष वाली बात भी है, कब विदेशी संस्कृति का रंग किस पर चढ़ जाए कहा नहीं जा सकता है। जब विदेशी संस्कृति के रंग में पुरुष रंग सकते हैं तो फिर महिलाओं के रंगने में कोई अपराध थोड़े ही है।

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मंगलवार, सितंबर 20, 2011

जिला अकादमियों की पहले से होगा खेलों का विकास

हंगरी से फुटबॉल का विशेष प्रशिक्षण लेकर आर्इं राजधानी की  एनआईएस कोच सरिता कुजूर का मानना है कि फुटबॉल सहित हर खेल में जिला स्तर से अकादमियों की पहल होने से ही राज्य में खेलों का विकास होगा। जिला अकादमियों होने से ही राज्य अकादमियों को प्रतिस्पर्धा मिलेगी और छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों के लिए अच्छे खिलाड़ी तैयार हो सकेंगे। विदेशों में तो क्लब कल्चर है, लेकिन अपने राज्य में यह संभव नहीं है, इसलिए क्लब कल्चर के स्थान पर अकादमी कल्चर का विकास करने से खेलों का विकास संभव है। प्रस्तुत है उनसे हुई बात-चीत के अंश।
0 हंगरी में क्या सीखने को मिला?
00 हंगरी में कई खेलों के प्रशिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण के लिए साई ने भेजा था। वहां पर प्रशिक्षण का जो स्तर है उसकी कल्पना भी हम लोग नहीं कर सकते हैं।
0 किस तरह का प्रशिक्षण दिया जाता?
00 हंगरी ही नहीं हर देश में एक-एक खिलाड़ी पर मेहनत की जाती है। खिलाड़ियों को वहां इतना ज्यादा महत्व मिलता है जिसके बारे में भारत में हम सोच भी नहीं सकते हैं। हर खिलाड़ी के लिए अलग प्रशिक्षक होते हैं। खिलाड़ियों को पेशेवर तरीके से तैयार किया जाता है।
0 खिलाड़ियों को किस तरह से महत्व मिलता है?
00 हंगरी की ही बात करें तो वहां पर फुटबॉल खिलाड़ियों को तीन स्तरों में बांटा गया है। लेबल वन के खिलाड़ियों को जो सुविधाएं मिलती हैं, उसको देखकर तो मैं दंग रह गई थी। वहां पर लेबल वन के खिलाड़ियों की एक टीम जब एक स्पर्धा जीतकर आई तो उनके आगे-पीछे उसी तरह से लाल-पीली बत्ती वाली गाड़ियों चल रही थीं जैसे हमारे यहां मंत्रियों के आगे-पीछे चलती हैं। पहले तो मैंने समझा कि कोई मंत्री आया होगा, जब बाद में पता चला कि यह तो फुटबॉल टीम के खिलाड़ी हैं तो मैं हैरान रह गई। लेबल वन खिलाड़ियों को सरकार हर तरह की सुविधा देती है। कुछ इसी तरह की सुविधाएं लेबल टू के खिलाड़ियों को भी मिलती हैं। लेबल थ्री के खिलाड़ियों को कम सुविधाएं हैं, लेकिन इनकी सुविधाएं हमारे यहां पहले दर्ज के खिलाड़ियों को मिलने वाली सुविधाओं से ज्यादा हैं।
0 लेबल थ्री वाले खिलाड़ियों के प्रशिक्षण के बारे में बताएं?
00 इन खिलाड़ियों को मिलने वाला प्रशिक्षण राष्ट्रीय स्तर का होता है। इस लेबल के खिलाड़ियों को भी अपने भविष्य के बारे में नहीं सोचना पड़ता है।
0 अपने राज्य में क्या होना चाहिए?
00 अपने राज्य में बिना प्रशासन की मदद के कुछ नहीं हो सकता है। जब मैं हंगरी से लौटी थी तो बहुत उत्साहित थी कि कम से कम अपने राज्य में बालिका खिलाड़ियों का स्तर सुधारने की दिशा में काम करूंगी। मैं काम करना चाहती हूं, लेकिन बिना प्रशासन की मदद के कुछ संभव नहीं है।
0 खिलाड़ियों और खेल का स्तर सुधारने के लिए क्या होना चाहिए?
00 जहां तक मैं सोचती हूं कि राज्य में फुटबॉल सहित हर खेल में पूरे राज्य में अकादमी कल्चर की नींव डालनी होगी। अकादमी की बात मैं इसलिए कर रही हूं क्योंकि मैं जानती हूं कि अपने राज्य में विदेशों की तरह क्लब कल्चर संभव नहीं है।
0 किस स्तर से अकादमी होनी चाहिए?
00 जिला स्तर से। जिला स्तर की बात मैं इसलिए कर रही हूं क्योंकि जिला स्तर पर अकादमी होने से ही राज्य अकादमी को प्रतिस्पर्धा मिल सकेगी। पूरे 18 जिलों में संभव न हो तो जिस खेल के खिलाड़ी जहां ज्यादा हों उन जिलों में जिला अकादमी बनने के साथ राजधानी में ज्यादा से ज्यादा खेलों की अकादमी बनानी चाहिए।
0 अकादमियों से क्या फायदा मिलेगा?
00 अकादमियां होने से ही खेलों का विकास तेजी से होगा। आज अगर हमारा पड़ोसी राज्य मप्र राष्ट्रीय खेलों में 100 पदकों के पार पहुंचा है तो उसके पीछे अकादमियां ही हैं। अपने राज्य में 37वें राष्ट्रीय खेल होने हैं इसलिए बिना अकादमियों के हम पदक तालिका में शीर्ष पर नहीं पहुंच सकते हैं।
0 राष्ट्रीय खेलों में सफलता के लिए और क्या जरूरी है?
00 राष्ट्रीय खेलों में सफलता के लिए अभी से तैयारी करनी होगी। हर खेल के लिए संभावितों खिलाड़ियों का चयन करके उनको तैयार करना होगा। कुछ माह पहले टीमें बनाने से सफलता मिलने वाली नहीं है।
0 अपने खेल के बारे में क्या संभावना दिखाती है राष्ट्रीय खेलों में?
00 अगर अभी से टीमें तैयार करके उनको राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षकों से लगातार प्रशिक्षण दिलाया जाएगा तो जरूर फुटबॉल में पदक मिल सकता है। महिला वर्ग में ज्यादा संभावना दिखाती है, क्योंकि अभी जूनियर वर्ग में बहुत अच्छी खिलाड़ी हैं, यहीं सीनियर वर्ग में पहुंच कर पदक दिलाने का काम करेंगी। 2003 से मैं पेशेवर तरीके से खिलाड़ी तैयार करने का काम कर रही हूं। मैंने अब तक 30 राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी तैयार करने का काम किया है। दो खिलाड़ी सुप्रिया कुकरेती और निकिता स्विसपन्ना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेली हैं। सात खिलाड़ी भारतीय टीम के प्रशिक्षण शिविरों में गर्इं है। इन खिलाड़ियों को अगर अच्छा प्रशिक्षण मिले तो राज्य के लिए राष्ट्रीय खेलों में पदक पक्का है।

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रविवार, सितंबर 18, 2011

राष्ट्रीय ट्रायथलान के लिए परसदा डेम तय

राजधानी रायपुर में पहली बार होने वाली राष्ट्रीय ट्रायथलान स्पर्धा के लिए कई स्थानों का निरीक्षण करने के बाद परसदा डेम को तय किया गया है। यहां पर तैराकी के मुकाबलों के साथ स्पर्धा का आगाज होगा।
यह जानकारी पत्रकारों को देते हुए राष्ट्रीय फेडरेशन के सचिव राकेश गुप्ता ने बताया कि प्रदेश संघ के बुलावे पर यहां आकर हमने नई राजधानी के कई स्थानों का निरीक्षण करने के बाद अंतत: अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के सामने परसदा डेम को उपयुक्त मानते हुए उसका अंतिम चयन किया है। इस डेम से ही लगा हुआ रोड है, रोड को चार किलो मीटर तक चिंहित किया गया है। डेम करीब दो किलो मीटर है। सीनियर वर्ग में डेढ़ किलो मीटर की तैराकी स्पर्धा होती है। 750 मीटर की लेन बनाई जाएगी जिसमें आना-जाना करके दूरी तय होगी। इसी तरह से चार किलो मीटर तक रोड में पांच बार आना जाना करके 40 किलो मीटर की साइक्लिंग की दूरी पूरी की जाएगी। इसके बाद इसी रोड में 10 किलो मीटर की दौड़ होगी। जूनियर वर्ग में 750 मीटर की तैराकी, 20 किलो मीटर सायक्लिंग और 5 किलो मीटर की दौड़ होगी। सब जूनियर वर्ग में एक्वाथलान के मुकाबले होंगे इसमें 400 मीटर तैराकी और तीन किलो मीटर की दौड़Þ होगी। श्री गुप्ता ने बताया कि पहले राष्ट्रीय चैंपियनशिप अक्टूबर में होनी थी, लेकिन अब इसे 26 और 27 नवंबर को तय किया गया है। इसके पहले राज्य स्पर्धा होगी।
छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय खेलों को फायदा होगा
श्री गुप्ता ने कहा कि छत्तीसगढ़ में होने वाले राष्ट्रीय खेलों को राष्ट्रीय स्पर्धा से फायदा होगा। उन्होंने कहा कि फेडरेशन प्रदेश सरकार को एक प्रस्ताव बनाकर देगा कि परसदा डेम में को राष्ट्रीय खेलों के लिए तय किया जाए। यहां पर ट्रायथलान के साथ वाटर स्पोर्ट्स के और कई खेल हो सकते हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एशियन स्तर में भारत के खिलाड़ी 17वें से 18वें स्थान पर आते हैं। महिला वर्ग में एक खिलाड़ी पूजा चौरसिया ने ताइवान की एशियाई चैंपियनशिप में रजत जीता था। अभी वह चाइना में एशियाई चैंपियनशिप खेलने गई हैं। यह खिलाड़ी भी रायपुर की स्पर्धा में खेलने आएंगी। श्री गुप्ता ने बताया कि उनका फेडरेशन राष्ट्रीय स्पर्धाओं का आयोजन अलग -अलग राज्यों में करवाता है ताकि खेल को देश में लोकप्रिय किया जा सका। राष्ट्रीय ट्रायथलान का लोगो श्री गुप्ता के साथ प्रदेश संघ के सचिव विष्णु श्रीवास्तव, विनीत सक्सेना और आईएच खान ने जारी किया।

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शनिवार, सितंबर 17, 2011

पेट्रोल से टैक्स क्यों नहीं हटाती सरकार

भारत में सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में जो इजाफा किया है उससे देश का हर नागरिक परेशानी के साथ भारी आक्रोश में है। हर किसी का एक ही सवाल है कि भारत में पेट्रोल की कीमत इतनी ज्यादा क्यो है? देखा जाए तो वास्तव में भारत में पेट्रोल की कीमत उतनी नहीं है। जितनी पेट्रोल की वास्तविक कीमत है, उससे ज्यादा तो टैक्स के रूप में ले लिए जाते हैं। अपने छत्तीसगढ़ में ही पेट्रोल पर 25 प्रतिशत वैट टैक्स लगता है। अगर इसी टैक्स को प्रदेश सरकार कम कर दें तो आसानी से आम जनों को दस रुपए की राहत मिल सकती है, लेकिन क्यों कर प्रदेश की भाजपा सरकार ऐसा करेगी। ऐसा करने से उसे मौका कैसे मिलेगा केन्द्र सरकार पर निशाने लगाने का। सोचने वाली बात तो यह है कि अपने प्रदेश में विमानों में लगने वाले पेट्रोल पर महज चार प्रतिशत टैक्स है।

देश में इस समय पेट्रोल के दाम सातवें आसमान पर हैं। अभी लोग इस सदमे से ऊबर भी नहीं पाए हैं कि सरकार घरेलू गैस के दाम बढ़ाने वाली है। बस कुछ दिनों से बाद एक और गाज गिरने वाली है आम जनता पर। अब जनता तो बेचारी निरीह है, वह लाख चीखती-चिलाती रहेगी किसी पर असर होने वाला नहीं है। अपने देश के राजनैतिक दल तो बस एक-दूसरे पर आरोप लगाने का काम ही करते रहेंगे। राज्य सरकारें केन्द्र सरकार को दोषी मान रही हैं तो केन्द्र सरकार कहती हैं राज्य सरकारें अपने यहां वैट टैक्स कम करके आम जनों को राहत दें सकती हैं, लेकिन वो ऐसा नहीं कर रही हैं। केन्द्र सरकार तो तेल कंपनियों पर सारा दोष मढ़ देती हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने से ऐसा किया गया है। माना की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से ऐसा किया गया, लेकिन कीमत बढ़ाने के कुछ दिनों बाद जब कच्चे तेल की कीमतों में कम हो गयी तो फिर कीमत कम क्यों कर नहीं की गयी।

किसी को आम जनों से मतलब नहीं है। सोचने वाली बात यह है कि अपने छत्तीसगढ़ में विमान के उपयोग में आने वाले पेट्रोल पर महज चार प्रतिशत वैट टैक्स है और आम जनों के उपयोग वाले पेट्रोल पर 25 प्रतिशत टैक्स है। अब यह तो सरकार को सोचना चाहिए कि आम जनों के पेट्रोल पर कम टैक्स जरूरी है या फिर अमीरों के काम आने वाले विमानों में उपयोग होने वाले पेट्रोल पर। इसमें संदेह नहीं है कि वास्तव में सरकारें गरीबों के लिए नहीं बल्कि हमेशा अमीरों के हितों को ध्यान में रखते हुए फैसले लेती हैं। सरकार को तेल कंपनियों से फायदा होगा, आम जनों से क्या मिलना है। अरे पांच साल में एक बार जब वोट मांगने की बारी आएगी तो फिर किसी ने किसी बहाने जनता को बेवकूफ बना दिया जाएगा, अपनी जनता पैदा ही हुयी है बेवकूफ बनने के लिए। अब बेवकूफ को ही तो बेवकूफ बनाया जाता है।

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शुक्रवार, सितंबर 16, 2011

फुल मैराथन पर बनी सहमति

राज्य मैराथन को अब फुल मैराथन कराने पर सहमति बन गई है। विशेषज्ञों से गुरुवार को चर्चा के बाद खेल विभाग ने शासन को प्रस्ताव बनाकर भेजने की तैयारी कर ली है। पुरुषों के लिए 41.195 किलो मीटर की दौड़ होगी, जबकि महिलाओं के लिए हॉफ मैराथन में 21.90 किलो मीटर की दौड़ रखी जाएगी।
खेल भवन में सुबह 11 बजे से एथलेटिक्स संघ के पदाधिकारियों, एनआईएस प्रशिक्षकों के साथ खेल के जानकारों से खेल संचालक जीपी सिंह ने चर्चा की। चर्चा में सहमति बनी कि छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों को देखते हुए राज्य मैराथन को अब फुल मैराथन में बदलना जरूरी है। रविशंकर विवि के पूर्व खेल संचालक संतोष उपाध्याय ने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों में फुल मैराथन में दौड़ने की क्षमता है। फुल मैराथन के आयोजन से ही खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकेंगे। बस्तर के पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने कहा कि मैराथन तो फुल ही होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि उनके माता रुकमणी आश्रम स्कूल की छात्राएं 40 किलो मीटर तक दौड़ लेती हैं। उन्होंने फुल मैराथन का समर्थन करते हुए कहा कि इसमें उम्र सीमा का ध्यान रखा जाना चाहिए। सीनियर वर्ग मानकर उम्र तय करने की बजाए आदिवासी खिलाड़ियों की क्षमता को देखते हुए 14 साल तक के खिलाड़ियों को इसमें शामिल करना चाहिए। चर्चा में शामिल एथलेटिक्स के एनआईएस कोच दल्लीराजहरा के सुदर्शन और भिलाई के ताजुद्दीन ने कहा कि महिलाओं के लिए हॉफ मैराथन कराई जाए और इसकी दूरी 21.90 किलो मीटर रखी जाए। चर्चा में शामिल ट्रायथलान संघ के विष्णुश्रीवास्तव, साई सेंटर राजनांदगांव के प्रभारी राजेश्वर राव ने भी सहमति जताई। अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सुखनंदन ध्रुव ने कहा कि खेल विभाग को बड़ी सोच का परिचय देते हुए राज्य स्तर से उपर उठकर राज्य के खिलाड़ियों को अंतररराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने का रास्ता दिखाने का काम करना चाहिए।
उपसंचालक, संघ के सचिव असहमत
चर्चा में शामिल उपसंचालक ओपी शर्मा और एथलेटिक्स संघ के सचिव आरके पिल्ले ही फुल मैराथन से सहमत नहीं दिखे। इन्होंने जो तर्क दिए वो तर्क किसी के गले नहीं उतरे। श्री पिल्ले कहते रहे कि फुल मैराथन के लिए खिलाड़ी नहीं मिल पाएंगे। श्री शर्मा का कहना था कि फुल मैराथन कराने से आम लोगों का जुड़ाव नहीं हो सकेगा।
प्रस्ताव सरकार को भेजेंगे: खेल संचालक
चर्चा के बाद खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि चर्चा में बनी सहमति की जानकारी शासन को देते हुए अब अगली बार से फुल मैराथन कराने का प्रस्ताव भेजा जाएगा। प्रस्ताव में ब्लाक स्तर से ही फुल मैराथन कराने की बात शामिल की जाएगी।


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गुरुवार, सितंबर 15, 2011

उत्कृष्ट खिलाड़ी भटक रहीं नौकरी के लिए

उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित होने के बाद भी पिछले आठ माह से कई विभागों के खाक छान रही कराते की दो राष्ट्रीय खिलाड़ियों शीतल पवार और रक्षा घोष ने अंतत: खेल संचालक के दरबार में पहुंच कर मदद की गुहार लगाई। खेल संचालक जीपी सिंह ने खिलाड़ियों को मदद का आश्वासन दिया है।
खेल संचालक ने मिलने पहुंची शीलत पवार और रक्षा घोष ने हरिभूमि को बताया कि उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित होने के बाद इन्होंने खेल विभाग सहित, वन विभाग, वाणिज्यकर विभाग, खाद्य विभाग के साथ मंत्रालय में भी नौकरी के लिए आवेदन दिया है, लेकिन आठ माह होने के बाद भी किसी भी विभाग से कोई जवाब नहीं मिल रहा है। इन खिलाड़ियों का कहना है कि कई खिलाड़ियों को नौकरी दे दी गई है तो हमें क्यों अब तक भटकाया जा रहा है। इन खिलाड़ियों को इस बात का भी मलाल है कि इनको संघ के किसी पदाधिकारी से भी मदद नहीं मिल रही है। खिलाड़ियों का कहना है कि हमारे परिजनों से हमको खिलाड़ी बनाने के लिए बहुत पैसे खर्च किए हैं, अब जबकि हम लोग उत्कृष्ट खिलाड़ी हो गई हैं, तब भी भटकना पड़ रहा है।
मदद करेंगे: खेल संचालक
खिलाड़ियों ने अपनी व्यथा खेल संचालक जीपी सिंह को बताई तो उन्होंने  खिलाड़ियों से उन सभी विभागों के आवेदनों की प्रति ली और खिलाड़ियों को आश्वासन दिया कि इस मामले से खेल सचिव को अवगत कराया जाएगा और उनसे संबंधित विभागों में बात करने का आग्रह किया जाएगा। खेल संचालक का कहना है कि राज्य की ज्यादातर उत्कृष्ट खिलाड़ियों को नौकरी दी जा चुकी है और जो भी खिलाड़ी बची है उनको भी खेल विभाग नौकरी दिलाने में पूरी मदद करेगा।

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बुधवार, सितंबर 14, 2011

राष्ट्रभाषा को बचाने के लिए फ्रांसीस क्रांति की जरूरत

अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर अपने देश के साहित्यकारों में ही बहुत ज्यादा मतभेद हैं। कोई यह मानता है कि हिन्दी भाषा का अंत नहीं हो सकता है तो कोई कहता है कि हिन्दी मर रही है। ऐसे में जबकि सबके अपने-अपने मत हैं तो भला कैसे अपनी राष्ट्रभाषा का भला हो सकता है। साहित्यकार और छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी विश्व रंजन मानना है कि अपने देश में भी राष्ट्रभाषा को बचाने के लिए फ्रांसीस क्रांति की जरूरत है। विश्व रंजन ने एक किस्सा सुनाया कि जब वे काफी बरसों पहले फ्रांस गए थे तो वहां पर एक टैक्सी में बैठे। ड्राईवर को अंग्रेजी आती थी, इसके बाद भी उन्होंने साफ कह दिया कि वे अंग्रेजी में बात नहीं करेंगे और अंग्रेजी में उनको जिस स्थान के लिए जाने कहा गया वहां ले जाने वह तैयार नहीं हुआ।
कहने का मतलब यह है कि फ्रांस जैसे देशों ने अपनी राष्ट्रभाषा को बचाने के लिए अंग्रेजी का बहिष्कार करने का काम किया। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या अपने देश भारत में फ्रांस जैसी क्रांति संभव है? हमें नहीं लगता है कि भारत में ऐसा संभव हो सकता है। अपने देश में जिस तरह से लोग अंग्रेजी की गुलामी में जकड़े हुए हैं, उससे उनको मुक्त करना अंग्रेजों की गुलामी से देश को मुक्त कराने से भी ज्यादा कठिन लगता है। अंग्रेज तो भारत छोड़कर चले गए, लेकिन उनकी भाषा की गुलामी से आजादी का मिलना संभव नहीं है।
भले अंग्रेजी से आजादी न मिले, लेकिन इतना जरूर करने की जरूरत है कि अपनी राष्ट्रभाषा का अपमान तो न हो। यहां तो अपने देश में कदम-कदम पर अपनी राष्ट्रभाषा का अपमान होता है। लोगों को अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस होता है। जो अंग्रेजी नहीं जानता है उसे लोग गंवार ही समझ ही लेते हैं। हमारी नजर में तो जिसे अपनी राष्ट्रभाषा का मान रखना नहीं आता है, उससे बड़ा कोई गंवार नहीं हो सकता है। वास्तव में हमें फ्रांस जैसे देशों से सबक लेने की जरूरत है। भले आप अंग्रेजी का बहिष्कार करने की हिम्मत नहीं दिखा सकते हैं, लेकिन अपनी राष्ट्रभाषा का मान रखने की हिम्मत तो दिखा ही सकते हैं। अगर आप हिन्दी जानते हुए भी हिन्दी नहीं बोलते हैं तो क्या राष्ट्रभाषा का अपमान नहीं है। अगर कहीं पर अंग्रेजी बोलने की मजबूरी है तो बेशक बोलें। लेकिन जहां पर आपको सुनने और समझने वाले 80 प्रतिशत से ज्यादा हिन्दी भाषीय हों वहां पर अंग्रेजी में बोलने का क्या कोई मतलब होता है। लेकिन नहीं अगर हम अंग्रेजी नहीं बोलेंगे तो हमें पढ़ा-लिखा कैसे समझा जाएगा। आज पढ़े-लिखे होने के मायने यही है कि जिसको अंग्रेजी आती है, वही पढ़ा-लिखा है, जिसे अंग्रेजी नहीं आती है, उसे पढ़ा-लिखा समझा नहीं जाता है।
विश्व रंजन ने एक बात और कही कि आज अपने देश में हिन्दी को मजबूत करने के लिए स्कूल स्तर से ध्यान देने की जरूरत है। लेकिन यहां भी सोचने वाली बात यह है कि स्कूल स्तर से कैसे ध्यान देना संभव है। आज हर पालक अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में ही भेजना चाहता है। यहां पर पालकों की सोच को बदलने की जरूरत है, जो संभव नहीं लगता है। हमारा ऐसा मानना है कि हिन्दी को बचाने के लिए स्कूल स्तर की बात तभी संभव हो सकती है जब किसी भी नौकरी में अंग्रेजी की अनिवार्यता के स्थान पर हिन्दी को अनिवार्य किया जाएगा। आज हर नौकरी की पहली शर्त अंग्रेजी है, ऐसे में पालक तो जरूर चाहेंगे कि उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो और जब अंग्रेजी में ही भविष्य नजर आएगा तो लोगों का अंग्रेजी के पीछे भागना स्वाभाविक है। अंग्रेजी से मुक्ति के लिए फ्रांसीस क्रांति की नहीं जागरूकता क्रांति की जरूरत है।  अब यह कहा नहीं जा सकता है कि यह जागरूकता कब और कैसे आएगी।

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मंगलवार, सितंबर 13, 2011

खलती है एस्ट्रो टर्फ की कमी

भारतीय टीम में चुनी गई हॉकी खिलाड़ी रेणुका राजपूत से बातचीत
भारतीय जूनियर हॉकी टीम में चुनी गर्इं राजनांदगांव की रेणुका राजपूत का कहना है कि अपने राज्य में एस्ट्रो टर्फ की कमी खलती है। अगर राज्य बनने के बाद जल्द ही एस्ट्रो टर्फ की सुविधा मिल जाती तो आज प्रदेश की कई खिलाड़ी भारतीय टीम में होतीं। मुझे इसलिए टीम में आने का मौका मिल गया क्योंकि मैं भोपाल के साई सेंटर में हूं और नियमित रूप से एस्ट्रो टर्फ में अभ्यास करने का मौका मिलता है।
बैंकाक में 16 से 25 सितंबर तक होने वाली अंडर 18 की जूनियर एशियन चैंपियनशिप के लिए चुनी गई रेणुका राजपूत कहती हैं कि एक तो मुझे एस्ट्रो टर्फ में खेलने फायदा मिला, दूसरा मैंने उस दिन अपना लक्ष्य भारतीय टीम में स्थान बनाना तय कर लिया था जब राजधानी रायपुर में दैनिक हरिभूमि ने भारतीय टीम को बुलाकर एक मैत्री कराया था। इस मैच में मुझे भी खेलने का मौका मिला था। भारतीय टीम की खिलाड़ियों के साथ खेलने के कारण मेरा उत्साह बढ़ा था और मैंने तय कर लिया था कि मुझे भी भारतीय टीम में स्थान बनाना है। मुझे भारतीय टीम तक पहुंचने का रास्ता उस समय मिल गया जब मेरा चयन भोपाल के साई सेंटर के लिए हो गया। साई सेंटर में जिस तरह की सुविधाएं हैं, उससे कोई भी खिलाड़ी आसानी से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकता है, लेकिन इसके लिए खिलाड़ी में लगन होनी चाहिए, साथ ही मेहनत भी जरूरी है।
रेणुका ने बताया कि उनके साथ दुर्ग की एक और खिलाड़ी बलविंदर कौर मेहरा का भी चयन भारतीय टीम में हुआ। अपने चयन होने के बारे में वह बताती हैं हमने छत्तीसगढ़ की टीम से खेलते हुए सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में जो प्रदर्शन किया था, उसी के तोहफे के रूप में हमारा चयन जूनियर भारतीय टीम में किया गया है। वह कहती हैं कि बैंकाक की चैंपियनशिप के लिए हम कोई दावा तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन जिस तरह से भारतीय पुरुष टीम से एशियाई चैंपियनशिप अपने नाम की है, हमारी जूनियर टीम भी ऐसा प्रयास करेगी। रेणुका कहती हैं कि राजनांदगांव में भी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने एस्ट्रो टर्फ लगाने की घोषणा की है, लेकिन वहां भी अभी टर्फ नहीं लगा है। अपने राज्य में दस साल में एक भी टर्फ न होने के कारण खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने में परेशानी हो रही है, जिस दिन राज्य में एस्ट्रो टर्फ लग जाएंगे उस दिन से राज्य के खिलाड़ियों के सुनहरे दिन प्रारंभ हो जाएंगे।


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सोमवार, सितंबर 12, 2011

इंडोर के उद्घाटन के सात माह बाद ही उखड़ने लगा प्लास्टर

राजधानी की खेल बिरादरी को 15 साल के लंबे इंतजार के बाद मिला करीब 22 करोड़ की लागत वाला इंडोर स्टेडियम सात माह बाद ही बदहाली की तरफ जाता नजर आ रहा है। गलत निर्माण के कारण मैदान के चारों तरफ बनी गैलरियों के नीचे वाले हिस्से का प्लास्टर उखड़ने लगा है। अब इसे सुधारने की कवायद में निगम का अमला जुटा है। इंडोर में अब भी एक करोड़ का काम बाकी है।
स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में बने इंडोर स्टेडियम में गैलरियों के नीचे वाले हिस्से में लगा प्लास्टर उखड़ गया है। प्लास्टर इसलिए उखड़ गया है क्योंकि इसे प्लास्टर आॅफ पेरिस से बनाया गया था। अंतर साई वालीबॉल के समय बॉल लगने से हॉल में कई स्थानों का प्लास्टर उखड़ गया। इसकी जानकारी होने पर निगम के इंजीनियर राजेश शर्मा ने इंडोर का निरीक्षण किया और खेल के जानकारों से बात करने के बाद यह फैसला किया गया कि प्लास्टर यहां टिक नहीं पाएगा। ऐसे में निगम के अधिकारियों से चर्चा करने के बाद इंडोर में चारों तरफ मजबूत जैकसम बोर्ड लगाने का फैसला किया गया। श्री शर्मा ने बताया कि इस बार जो बोर्ड लगाया जा रहा है उसके साथ मजबूत ग्रिल भी लगाया जा रहा है, अब इसके उखड़ने का सवाल ही नहीं उठता है। उन्होंने कहा कि हमें भी जानकारी है कि जनवरी में यहां पर राष्ट्रीय वालीबॉल का आयोजन किया जाना है, ऐसे में अगर अभी से ध्यान नहीं दिया जाएगा तो स्पर्धा के समय चारों तरफ से इंडोर का प्लास्टर उखड़ सकता है।
निर्माण ही गलत किया गया
प्रदेश वालीबॉल संघ के सचिव मो. अकरम खान का साफ कहना है कि निगम ने निर्माण ही गलत किया। किसी भी इंडोर में गैलरियों ने नीचे वाले हिस्से में लोहे के ग्रिल और सीट लगाए जाते हैं, ताकि खेल के समय बॉल लगने से कोई नुकसान न हो। लेकिन निगम ने ऐसा नहीं किया और खेलों के जानकारों से चर्चा किए बिना ही निर्माण कर दिया। यही नहीं निगम ने तो वालीबॉल कोर्ट के लिए पोल लगाने की दूरी भी 10 मीटर की थी, जबकि 11 मीटर की दूरी पर कोर्ट के पोल लगते थे, बड़ी मुश्किल से निगम के अधिकारियों को समझाकर इस दूरी को बढ़ाया गया था।
योजना के विपरीत बना है
इंडोर की नींव रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल पहले ही यह बात कह चुके हैं कि इंडोर का निर्माण योजना के अनुकूल नहीं किया गया है। योजना में इंडोर में दो खेल हो सके इसके लिए इंडोर को दो भागों में बांटने की योजना थी, लेकिन इसे एक ही भाग में बनाया गया है। यहां पर दो खेल एक साथ नहीं सकते हैं।
फैक्ट फाइल
1996 में भूमिपूजन हुआ
15 साल लग गए निर्माण पूरा होने में
7 फरवरी 2011 में उद्घाटन
21.62 करोड़ की लागत
20.70 करोड़ खर्च हो चुके हैं
92 लाख का काम बाकी है
गैलरियों में चेयर लगना शेष
सोना, स्टीम बाथ लगेगा

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रविवार, सितंबर 11, 2011

प्रदेश की रेणुका-बलविंदर भारतीय टीम में

छत्तीसगढ़ की दो बालिका हॉकी खिलाड़ियों को भारतीय जूनियर टीम में स्थान मिला है। एक दशक बाद छत्तीसगढ़ की हॉकी खिलाड़ियों के लिए भारतीय टीम में रास्ता खुला है। सबा अंजुम के बाद कोई खिलाड़ी टीम में स्थान नहीं बना सकी थी। सबा अंजुम आज भारत की सीनियर टीम की कप्तान हैं।
बैंकाक में 16 से 25 सितंबर तक होने वाली अंडर 18 की जूनियर एशियन चैंपियनशिप के लिए चुनी गई भारतीय टीम में राजनांदगांव की दो खिलाड़ियों रेणुका राजपूत और बलविंदर कौर का भी चयन किया गया है। यह जानकारी देते हुए छत्तीसगढ़ हॉकी के सचिव फिरोज अंसारी ने बताया कि  प्रदेश की दोनों खिलाड़ियों ने जूनियर खिलाड़ी होते हुए भी राष्ट्रीय सीनियर चैंपियनशिप में जिस तरह का प्रदर्शन इस साल जनवरी में सोनीपत की राष्ट्रीय स्पर्धा में किया था, उसी प्रदर्शन को देखते हुए इनको जूनियर खिलाड़ियों की संभावित टीम में रखा गया था। प्रशिक्षण शिविर में खिलाड़ियों ने अपने खेल कौशल से चयनकर्ताओं को प्रभावित किया जिसके कारण इसको टीम में रखा गया है। पहला शिविर 20 जुलाई से 6 अगस्त तक भोपाल के साई सेंटर में हुआ था। दूसरा शिविर 19 अगस्त से 10 सितंबर तक चला इसके बाद शनिवार को अंतिम टीम घोषित की गई।

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शनिवार, सितंबर 10, 2011

मंदिरों में नारियल चढ़ाने का मतलब ही क्या है?

रायपुर जिले के राजिम के मंदिरों में जाने का मौका मिला। इन मंदिरों में जो भक्तजन गए थे, उनमें इस बात का आक्रोश नजर आया कि मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले नारियलों को फोंडने की जहमत पंडित नहीं उठाते हैं और सारे के सारे नारियल वापस आ जाते हैं बिकने के लिए बाजार में। गांव-गांव से राजिम के मंदिर में आए लोग इस बात से बहुत खफा लगे कि मंदिर के पुजारी भक्तों को प्रसाद तक देना गंवारा नहीं करते हैं। प्रसाद के नाम पर शिव लिंग का पानी देकर ही खानापूर्ति की जाती है। ऐसे में भक्तजन एक-दूसरे ही यह सवाल करते नजर आए कि आखिर मंदिरों में नारियल चढ़ाने की मतलब ही क्या है? इनका सवाल सही भी है। वैसे हमें लगता है कि जैसा हाल अपने छत्तीसगढ़ के इन मंदिरों का है, वैसा ही हाल देश के हर मंदिर का होगा।

अपने मित्रों के साथ जब हम जतमई और घटारानी गए तो वहां पर तो हालत फिर भी ठीक थे और भक्तों को न सिर्फ प्रसाद दिया जा रहा था। बल्कि बाहर से आए भक्तों के लिए भंडारे में खाने तक की व्यवस्था थी। यह खाना बहुत ही अच्छा था कहा जाए तो गलत नहीं होगा। दाल, चावल और सब्जी के साथ सबको भरपूर खाना परोसा गया। यहां आने वाले भक्त गण जितने खुश लगे उतने ही राजिम के मंदिरों में जाने वाले भक्त खफा लगे। इनके खफा होने का कारण यह था कि मंदिरों में जो भी भक्त नारियल लेकर गए उनको प्रसाद भी देना पुजारियों ने जरूरी नहीं समझा।

प्रसाद के नाम पर भक्तों को शिवलिंग का पानी दिया गया। ऐसे में गांवों से आए ग्रामीण भी मंदिरों से निकलते हुए खफा लगे और रास्ते भर यही बातें करते रहे कि मंदिरों में नारियल चढ़ाना ही ठीक नहीं है। हम लोग यहां नारियल चढ़ाते हैं तो कम से कम इनमें से कुछ को फोंडकर प्रसाद देना चाहिए, पर ऐसा नहीं किया जाता है, और पुजारी सारे नारियल उन्हीं दुकान वालों के पास वापस भेज देते हैं बेचने के लिए। ऐसे में अच्छा यही है कि बिना नारियल लिए बिना ही मंदिर जाएं और भगवान के दर्शन करके आ जाए। वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि दूर-दूर से आने वाले भक्तों के लिए पुजारियों के मन में कोई भाव नहीं रहते हैं। उनसे अगर प्रसाद मांगा जाए तो कह देते हैं कि मंदिर के नीचे जाइए वहां पर बिक रहा है, ले ले। अब मंदिर के नीचे बिकने वाली किसी भी सय को प्रसाद कैसे माना जा सकता है।

भक्त तो भगवान के चरणों में चढऩे वाली सय को ही प्रसाद मानते हैं। अगर यह कहा जाए कि मंदिरों के नाम पर पुजारियों की दुकानदारी चल रही है तो गलत नहीं होगा। लोग काफी दूर-दूर से राजिम के कुलेश्वर मंदिर में जाते हैं। यह मंदिर नदी के बीच में है। लोग घुटनों तक पानी से गुजरते हुए तपती धुप में भी मंदिर जाते हैं और पुजारी है कि उनको टका सा जवाब दे देते हैं कि प्रसाद तो मंदिर के बाहर ही मिलेगा। राजिम लोचन मंदिर में तो मंदिर के अंदर ही प्रसाद बेचा जाता है।

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शुक्रवार, सितंबर 09, 2011

छोटे शहर में बड़े आयोजन से होगा खेलों का विकास

छोटे शहरों में राष्ट्रीय स्पर्धाओं जैसे आयोजन करने से ही खेलों का विकास होगा। यही वजह है कि भिलाई में होने वाली मिनी राष्ट्रीय वालीबॉल स्पर्धा का आयोजन अब चांपा में करने का फैसला किया गया है। वहां पर स्पर्धा 16 से 21 अक्टूबर तक होगी।
ये बातें नगरीय निकाय मंत्री और प्रदेश वालीबॉल संघ के अध्यक्ष राजेश मूणत ने कहीं। उन्होंने कहा कि चांपा में पहली बार राष्ट्रीय स्पर्धा का आयोजन हो रहा है, वहां के लोग बहुत उत्साहित हैं, और अभी से तैयारी में जुट गया। श्री मूणत ने कहा कि चांपा के आयोजन को यादगार बनाने के प्रयास होंगे। उन्होंने बताया कि स्पर्धा में 22 राज्यों की टीम भाग लेंगी। बालक वर्ग में 22 और बालिका वर्ग में 20 टीमों को चार वर्गाें में बांटा गया है। बालक और बालिका वर्ग में मेजबान छत्तीसगढ़ पूल बी में है। स्पर्धा के उद्घाटन के लिए राज्यपाल शेखर दत्त के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से आग्रह किया गया है। चांपा की स्पर्धा के बाद राजधानी में होने वाली सीनियर राष्ट्रीय स्पर्धा की तैयारी की जाएगी।
श्री मूणत ने अपने निवास पर इस अवसर पर साई की वालीबॉल टीमों को किट भी प्रदान की। साई की बालक और बालिकाओं की टीमें एक सप्ताह के प्रशिक्षण शिविर के बाद केरल में होने वाली राष्ट्रीय साई चैंपियनशिप में खेलने जा रही है। श्री मूणत ने खिलाड़ियों से परिचय प्राप्त करने के साथ उनके प्रशिक्षण शिविर के बारे में भी जानकारी ली। इस अवसर पर प्रदेश वालीबॉल संघ के मो. अकरम खान के साथ वालीबॉल को गोद लेने वाले उद्योग हीरा ग्रुप के विनोद पिल्ले, साई सेंटर के प्रभारी एसएस भदोरिया सहित प्रदेश संघ के पदाधिकारी उपस्थित थे।

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गुरुवार, सितंबर 08, 2011

आतंकी तो सरकारी दामाद हैं

आतंकी तो भारत में सरकारी दामाद हैं कहा जाए तो गलत नहीं होगा। अपने देश में आतंकवादियों को सजा देने की हिम्मत सरकार नहीं कर पाती है। अगर अफजल गुरु को पहले ही फांसी दे दी जाती तो कम से कम आज दिल्ली धमाके में मारे गए लोग जिंदा रहते। लेकिन इससे सरकार को क्या सरोकार। अगर सौ- दो सौ लोग मारे जाते हैं तो क्या फर्क पड़ता है, लेकिन आतंकियों को सजा देना गंवारा नहीं है। अगर इस तरह से सरकार नपुंसकता दिखाती रही तो देश में आतंक का नंगा नाच चलता रहेगा। अब जबकि यह बात सामने आई है कि अफजल गुरु की फांसी की सजा माफ करवाने दिल्ली हाई कोर्ट में धमाका किया गया है तो सरकार को हिम्मत दिखाते हुए अफजल गुरु की फांसी पर अमल करना चाहिए।
धमाके ने यह एक बार फिर से साबित कर दिया है कि अपने देश की सरकार के पास आमजनों की सुरक्षा के लिए कौड़ी भी नहीं है। देश की जनता के पैसों से नेताओं और मंत्रियों की सुरक्षा पर तो करोड़ों फूंक दिए जाते हैं, लेकिन जहां पर आमजनों के लिए आतंकी हमलों का खतरा रहता है, वहां की सुरक्षा पर खर्च करना सरकार जरूरी नहीं सम­झती है। दिल्ली में जहां धमाका हुआ वहां सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं था, एक पुलिस वाला भी वहां नहीं था जो यह नजर रख सकता कि कोई संदिग्ध तो नहीं है। एक गवाह का जिस तरह का बयान सामने आया है, उससे यह बात साफ है कि यह धमाका किसी आतंकवादी संगठन ने आत्मघाती करवाया है।

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बुधवार, सितंबर 07, 2011

गणपति बप्पा आए

गणपति  बप्पा  आए
खुशियां साथ लाए
मोदक लड्डू खाए
सबके मन को भाए
जी चाहता है कभी
न साथ छोड़कर जाए
सदा उनका साथ पाए
रोज भक्ति में रम जाए

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मंगलवार, सितंबर 06, 2011

अमीर सांसदों के लिए गरीबों की कीमत पर खाना

वास्तव में अपने देश के नेता और जनप्रतिनिधि देश को किस तरह से खोखला कर रहे हैं, इसका बहुत बड़ा उदाहरण है अपने देश के सर्वोच्च सदन लोकसभा का केंटीन जहां पर 80 हजार रुपए वेतन लेने वाले सांसदों को गरीबों की कीमत पर ऐसा खाना परोसा जाता है जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता है। इस खाने की कीमत जानकर आप हैरान हो जाएंगे। आईए हम बताते हैं आपको वहां के खाने का मैनू और कीमत।
चाय =1.00 रुपया
सूप =5.50 रुपया
दाल =1.50 रुपया
खाना =2.00 रुपया
चपाती =1.00 रुपया
चिक्केन =24.50 रुपया
डोसा =4.00 रुपया
बिरयानी =8.00 रुपया
मछली =13.00 रुपया

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सोमवार, सितंबर 05, 2011

रुस्तम भारतीय टीम में

छत्तीसगढ़ के अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलक रुस्तम सारंग का चयन कामनवेल्थ चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम में हुआ है। रुस्तम अक्टूबर में होने वाली स्पर्धा में खेलने केपटाउन जाएंगे।
यह जानकारी देते हुए रुस्तम के पिता और कोच विक्रम पुरस्कार प्राप्त बुधराम सारंग ने बताया कि केपटाउन में 10 अक्टूबर से होने वाली कामनवेल्थ चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम का चयन करने पटियाला में चयन ट्रायल का आयोजन किया गया। इस ट्रायल में रुस्तम ने 62 किलो ग्राम वर्ग में 122 किलो स्नैच और 148 किलो क्लीन एंड जर्क में वजन उठाकर टीम में स्थान पक्का किया। रुस्तम ने ट्रायल में तमिलनाडु और मणिपुर के खिलाड़ियों को पछाड़ा। मणिपुर के यूआरसीबी ने 161 किलो और तमिलनाडु के देवाकुमार ने 260 किलो वजन ही उठाया।
पदक लेकर आऊंगा: रुस्तम
रुस्तम सारंग ने बताया कि वे इस समय पटियाला में चल रहे भारतीय टीम के प्रशिक्षण शिविर में हैं। यहां पर दो मई 2011 से शिविर चल रहा है। यह शिविर कामनवेल्थ के साथ विश्व चैंपियनशिप के लिए है। शिविर दिसंबर 2011 तक चलेगा। रुस्तम ने कहा कि उनको पूरी उम्मीद है कि वे केपटाउन से पदक लेकर लौटेंगे और विश्व चैंपियनशिप में खेलने की पात्रता भी प्राप्त करेंगे। बकौल रुस्तम मैं भले दिल्ली में हुए कामनवेल्थ में पदक से चूक गया था, पर अब मैंने पदक के लिए बहुत मेहनत की है। उस समय मेरी कलाई में मोच आ गई थी, कलाई की मोच के बाद भी मैं लगातार अभ्यास कर रहा हूं। अब मेरी मोच ठीक है और उम्मीद है कि मैं केपटाउन से खाली हाथ नहीं लौटूंगा।  रुस्तम के पिता बुधराम सारंग भी कहते हैं कि उनको भी रुस्तम से इस बार पदक की पूरी उम्मीद है। वे कहते हैं कि रुस्तम कामनवेल्थ ही नहीं बल्कि विश्व चैंपियनशिप में भी देश के लिए पदक जीतने का काम करेंगे।

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रविवार, सितंबर 04, 2011

शिक्षक दिवस आया-बच्चों की सामत साथ लाया

शिक्षक दिवस आया
बच्चों की सामत साथ लाया
सब के घरों से सामान मंगाया
साथ ही एक फरमान सुनाया
इतना जान लो तुम सब
तुम लोगों के सामानों से
ही तो शिक्षक दिवस मनाया जाएगा
जो बच्चा सामान नहीं लाएगा
उसे पीटकर भगाया जाएगा

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शनिवार, सितंबर 03, 2011

विवादित खेल संघ मान्यता सूची में नहीं

राष्ट्रीय स्तर पर विवादित खेल संघों के साथ पंजीयन न करवाने वाले खेल संघों को केन्द्रीय खेल मंत्रालय की सूची से बाहर रखा गया है। ऐसे संघों में प्रमुख रूप से कराते का नाम है जिसका पिछले पांच साल से विवाद चल रहा है। प्रदेश का खेल विभाग ऐसे संघों की मान्यता समाप्त करने के बारे में लिखित शिकायत होने पर ही कार्रवाई की बात कहता है।
राष्ट्रीय पर कई खेल संघों के दो संघ होने के कारण विवाद की स्थिति बनने पर ऐसे संघों की मान्यता को केन्द्रीय खेल मंत्रालय ने समाप्त कर दिया है। खेल मंत्रालय की वेबसाइड में ऐसे संघों के पदाधिकारियों का नाम नहीं है और उनका स्थान खाली छोड़ दिया गया है। कराते संघ में सबसे ज्यादा लंबे समय से विवाद चल रहा है। कराते के साथ जिन अन्य खेलों में पदाधिकारियों का नाम खाली है, उनमें एसजीएफआई स्कूल फेडरेशन आॅफ इंडिया का भी नाम है। स्कूल फेडरेशन के भी राष्ट्रीय स्तर पर काफी समय से दो संघ काम कर रहे हैं। अन्य खेलों में शरीर सौष्ठव, ताइक्वांडो के नाम हैं।
केन्द्रीय खेल मंत्रालय की वेबसाइड से संघों के नामों से पदाधिकारियों के नाम न होने के बारे में खेल संचालक जीपी सिंह कहते हैं कि निश्चित ही कुछ संघों में विवाद के कारण जहां नाम नहीं हैं, वहीं मान्यता संबंधी जानकारी न देने वाले संघों के पदाधिकारियों के नाम भी नहीं रहते हैं। उन्होंने बताया कि पहले तीन साल के लिए मान्यता मिलती थी, लेकिन अब हर साल मान्यता का नवीनकरण कराना पड़ता है।
प्रदेश में विवादित संघों की मान्यता समाप्त करने के सवाल पर वे कहते हैं कि विभाग के पास कहीं से लिखित में शिकायत आती है और कोई जानकारी दी जाती है, तभी कोई कार्रवाई संभव है।

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शुक्रवार, सितंबर 02, 2011

फिर भी तंहा हैं हम

कहने को हमसफर साथ है
फिर भी तंहा हैं हम
हमें सताते हैं दुनिया के गम
हो जाती हैं अक्सर आंखें नम
सोचते हैं क्यों है दुनिया
में इतने ज्यादा गम
दूसरों के गमों से
हमें तो है सरोकार
वैसे आज के जमाने में
प्यार हो गया है व्यापार
इसलिए कहते हैं हम
मत करो किसी से प्यार
वरना हो जाएगी जिंदगी बेकार

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गुरुवार, सितंबर 01, 2011

हाईड्रोलिक पोल अब तक निगम के कब्जे में

बास्केटबॉल का 15 लाख कीमत का हाईड्रोलिक पोल छह माह बाद भी निगम के कब्जे में है। फेडरेशन कप बास्केटबॉल में लिए गए इंडोर का 6 लाख 90 हजार किराया न देने के कारण निगम ने इसे जब्त कर रखा है। प्रदेश बास्केटबॉल संघ ने अब तक किराया नहीं दिया है। संघ किराया कम कराने की कवायद में लगा है।
राज्य खेल महोत्सव में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा के बाद राजधानी में 11 से 17 फरवरी तक फेडरेशन कप बास्केटबॉल का आयोजन किया गया था। इंडोर में हुए इस आयोजन के लिए निगम ने खेल विभाग को 6 लाख 90 हजार का बिल थमाया था। काफी समय बाद भी जब खेल विभाग ने किराया नहीं दिया तो महापौर किरणमयी नायक के निर्देश पर इंडोर में ही हाईड्रोलिक पोल जब्त कर रख लिया गया। महापौर कह चुकी हैं कि बिना किराए का भुगतान किए हाईड्रोलिक पोल नहीं दिया जााएगा। खेल विभाग ने किराया देने का जिम्मा छत्तीसगढ़ बास्केटबॉल संघ पर डाल दिया है।
खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि विभाग ने आयोजन के लिए 30 लाख की राशि प्रदेश संघ को दे दी थी, और उसे किराया जमा करने भी कहा था, पर संघ ने अब तक किराया नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि उनको जानकारी होने पर उन्होंने संघ को जल्द से जल्द किराया देने कहा है।
संघ के सचिव राजेश पटेल का कहना है कि आयोजन में बहुत ज्यादा खर्च हुआ है, ऐसे में 6 लाख 90 हजार की राशि दे पाना संभव नहीं है। आयोजन में चार दिनों तक तो एसी का उपयोग ही नहीं किया गया था। इसकी जानकारी महापौर को देकर उनसे किराए में रियायत की मांग की गई है। महापौर ने चार दिनों तक एसी न चलाने के लिए दो लाख की राशि कम करने का आश्वासन दिया है, लेकिन यह मामला एमआईसी की बैठक में रखा जाएगा। जैसे ही किराया कम किया जाएगा हम बाकी राशि जमा कर देंगे।

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बुधवार, अगस्त 31, 2011

चमचों से मुक्ति दिलाने वाला अन्ना कौन

भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए तो अपने अन्ना हजारे ने अनशन करके एक रास्ता दिखा दिया है। अब यह बात अलग है कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल पाती है या नहीं। जितना अपने देश को खोखला करने का काम भ्रष्टाचार ने किया है, उतना ही चमचों ने भी किया है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। आज का जमाना पूरी तरह से चमचों का है। बिना चमचागिरी के कोई काम नहीं होता है। चमचागिरी करने वाले आज पास हैं बाकी सब फेल हैं।
हम सोचते हैं कि क्या कभी वह दिन भी आएगा जब अपने देश को चमचों से मुक्ति दिलाने के लिए कोई अन्ना सामने आकर अनशन करेगा। लगता तो नहीं है कि ऐसा कभी हो सकता है, लेकिन सोचने में क्या जाता है। सोचने के लिए पैसे तो लगते नहीं हैं। कम से कम इसी बहाने चमचों की शान में हम भी कुछ कसीदें लिखने में सफल हो जाएंगे। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जितना बड़ा योगदान इस देश को खोखला में नेताओं का है, उतना ही चमचों का भी है। आज राजनीति क्या ऐसा कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है जहां पर चमचों की जमात न हो।   चमचों के बिना तो काम ही नहीं चलता है। आज हर नेता की तरह हर दफ्तर के बॉस चाहते हैं कि उनके ज्यादा से ज्यादा चमचें हों। चमचों के बिना तो बॉस लोगों का खाना हजम ही नहीं होता है। अब खाना हजम कैसे होगा, रोज झूठी तारीफ सुनने की आदत जो पड़ जाती है।
इतना तो तय है कि चमचागिरी करने वाले बॉस की झूठी तारीफ करके अपना काम तो कर लेते हैं। जिनको झूठी तारीफ करने में पीएचडी होती है, वे अपनी इसी तारीफ के दम पर दमदार पद भी हासिल कर लेते हैं। और जब चमचों के हाथ कुर्सी लग जाती है तो फिर देखो उनका रूतबा। ऐसे चमचों को लगता है कि उनसे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं। यहां पर एक कवाहत याद आती है कि बंदर के हाथ अस्तूरा लगेगा तो वह किसी को भी काट देगा।
ये अपने देश का दुर्भाग्य है कि आज लोग चमचा पसंद हो गए हैं। हर बॉस अपने चमचों की ही बात सुनते हैं, फिर उनके लिए भले उनको कितने ही अच्छे लोगों की कुर्बानी क्यों न देनी पड़े। अच्छे और समझदार लोगों को बॉस इसलिए पसंद नहीं करते हैं क्योंकि इनसे हमेशा उनको अपनी कुर्सी खतरे में नजर आती है। लेकिन जहां तक चमचों की बात है तो वे जानते हैं कि ये न तो समझदार होते हैं और न ही सच बोलने वाले। दिक्कत तो समझदारों और सच बोलने वालों से होती है।

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मंगलवार, अगस्त 30, 2011

मैटर लिख और कंप्यूटर में डाल, फिर भूल जा...

हमारे एक पत्रकार मित्र इन दिनों सभी मित्रों को एक ही बात कहते हैं, मैटर लिख कंप्यूटर में डाल और भूल जा। एक तरफ वे पत्रकारों से यह कहते हैं तो दूसरी तरफ फोटोग्राफरों से भी कहते हैं कि अबे फोटो खींच कंप्यूटर में डाल और भूल जा।
हमने उनसे पूछा कि नेकी कर दरिया में डाल तो सूना था, लेकिन तू ये नया जुमला क्यों कहता है। उसने जवाब दिया यार आज कल मीडिया में जिस तरह के हालात है, उसके लिए यही जुमाल ठीक है। आज आप मैटर लिखने के बाद यह पूछ नहीं सकते हैं कि आपका मैटर क्यों नहीं लगा। इसलिए मैं आज-कल के ने पत्रकारों और फोटोग्राफरों को नसीहत देने का काम करता हूं और उनको बताने का प्रयास करता हूं कि अब जमाना पेशेवर है, आज के जमाने में जो दिल से काम करता है, वह दिल का मरीज बनकर रह जाता है, इसलिए दिल से नहीं दिमाग से काम करो और भूल जाओ कि तुमने कल तुमने क्या काम किया था।
नया दिन नया काम
आखिर तुमको मिल रहे हैं
न मैटर लिखने के दाम

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सोमवार, अगस्त 29, 2011

लूट रहीं हैं मोबाइल कंपनियां

अपने देश में जितनी भी मोबाइल कंपनियां काम कर रही हैं कोई भी कंपनी यह दावा नहीं कर सकती है कि वह ईमानदार है। चाहे वह बीएसएनएल ही क्यों न हो। हर कंपनी का एक सूत्रीय काम है उपभोक्ताओं को लूटने का। उपभोक्ता बेचारा क्या करें उनके पास लुटने के अलावा कोई चारा नहीं है।

अचानक हमने कल अपने रिलायंस के रिम वाले मोबाइल का बैलेंस चेक किया तो हैरान रह गए। एक दिन पहले 127 रुपए थे और कल 74 रुपए। हमने सोचा यार इतनी बात हमने कहा कर डाली। एक तो हमारे मोबाइल में 299 रुपए वाली स्कीम डली है उससे रिम और रिलायंस में अनलिमिटेड बात होती है, इसी के साथ किसी भी नेटवर्क में रोज आधे धंटे बात कर सकते हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि इतना पैसा एक ही दिन में कट गया। हमने कंपनी के उपभोक्ता केन्द्र को फोन लगाया तो उधर बैठे हुए जनाब ने अपने कम्प्यूटर में जांच कर बताया कि हमारे मोबाइल में दो अन्य सेवाएं चल रही हैं। हमने जब उनसे कहा कि हमने तो ऐसी कोई सेवा प्रारंभ नहीं करवाई है तो फिर ये कैसे चालू हो गई तो उन्होंने कहा कि आपने ही चालू करवाई होगी। आप कहें तो इसे बंद कर दें। हमने तत्काल वो सेवाएं बंद करवाई। लेकिन तब तक तो हमारे जेब पर कैची चल ही चुकी थी।

अब कंपनी वाले तो यही कहते हैं। एक तो कंपनी के इतने ज्यादा फोन और एसएमएस आते हैं कि पूछिए मत। अगर गलती से भी आपने या आपके बच्चों ने मोबाइल का कोई बटन दबा दिया तो हो गई कोई भी सर्विस चालू। वैसे ज्यादातर मामलों में कंपनी वाले खुद से कोई भी सेवा प्रारंभ कर देते हैं। जब उपभोक्ता को मालूम होता है तो उसे बंद कर दिया जाता है। लेकिन तब तक तो आपके जेब पर कैची चल चुकी रहती है।

यह सिर्फ रिलायंस में होता है ऐसा नहीं है, हर कंपनी का यही काम है। हमारे एक पत्रकार मित्र के पास बीएसएनएल का सिम है। वे काफी दिनों से परेशान हैं कि रोज उनके तीन-चार रुपए काट दिए जाते हैं। ऐसा हर किसी के साथ होता है। हमारा ऐसा मानना है कि हर मोबाइल कंपनी वाले अगर अपने हर ग्राहक की जेब पर रोज एक रुपए की भी कैची चला दे (चलाई ही जाती है) तो भी कंपनी के एक दिन में लाखों के वारे-न्यारे हो जाए। अब कौन सा ऐसा उपभोक्ता होगा जो एक-एक रुपए का हिसाब रखता है। उपभोक्ता चाहे वह प्रीपैड वाला हो या पोस्ट पैड वाला, हर कोई ठगा जा रहा है और मोबाइल कंपनियों की लूट का शिकार हो रहा है, लेकिन कोई कुछ कर नहीं पा रहा है। हर रोज खुले आम लाखों की लूट करने वाली कंपनियों के लिए कोई कानून नहीं है कि उसे रोका जाए। हर उपभोक्ता के लिए मोबाइल आज जरूरी हो गया है और ऐसे में हर आदमी सोचता है कि यार एक-दो रुपए के लिए क्या उलझा जाए, फिर कंपनी वालों की दादगिरी भी नहीं है, आपने ज्यादा बात की नहीं कि फट से कट जाता है आपके मोबाइल का कनेक्शन फिर अपने चालू करवाने के लिए लगाते रहे फोन। इन सब परेशानियों से बचने के लिए ही उपभोक्ता कुछ नहीं करते हैं जिसका फायदा मोबाइल कंपनी वाले उठाते हैं। मोबाइल उपभोक्ताओं में जागरूकता के बिना इनकी लूट पर विराम लगने वाला नहीं है। 

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