राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

सोमवार, नवंबर 30, 2009

ये हैं एक ऐसे इंसान जो हिन्दु के साथ हैं मुसलमान


अपने देश में आजादी के बाद से हिन्दु और मुसलमान को लेकर विवाद होता रहा है। हर कोई बस अपने धर्म को ही बेहतर बताने की कोशिश में बरसों से लगा है। ऐसे में अपने देश में ही ऐसी कर्इं मिसालें सामने आती रहतीं हैं जो सर्वधर्म सद्भाव के लिए एक मील का पत्थर होती हैं। ऐसी ही एक मिसाल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी देखने का मिलती है। ये मिसाल है एक ऐसे इंसान जीवन लाल साहू की जो पैदा तो हिन्दु धर्म में हुए हैं और हिन्दु हैं भी। लेकिन इनको जितना प्यार अपने हिन्दु धर्म से है उतना ही मुस्लिम धर्म ही नहीं बल्कि ईसाई और सिख धर्म से भी है। जीवन लाल जहां नवरात्रि में 9 दिनों तक उपवास रखते हैं, वहीं तीस दिनों का न सिर्फ रोजा रखते हैं बल्कि नमाज अदा करने के साथ-साथ ईद भी मनाते हैं। अभी बकरीद पड़ी तो वे अपने फिल्म सी शूटिंग छोड़कर बकरीद मनाने अपने घर रायपुर आए गए।


छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जब 28 नवंबर को ईद का त्यौहार मनाया गया तो इस बार इस त्यौहार में एक बात यह सामने आई कि इस त्यौहार को मनाने वाले अपने शहर में एक ऐसे इंसान भी हैं जो हिन्दु हैं। वैसे तो जीवन लाल बरसों से ईद मनाते आ रहे हैं और तीस दिनों का रोजा भी रखते हैं, लेकिन इनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इस बार बकरीद पर जीवन लाल के बारे में मीडिया को जानकारी हुई तो इस बात का खुलासा सबके सामने हुआ कि कैसे एक इंसान सभी धर्मों को मानकर एक मिसाल पेश कर सकते हैं। यह सब तो अपने हिन्दुस्तान में ही संभव हो सकता है।

जीवन लाल साहू जो कि एक कलाकार भी हैं, वे खुद खुलासा करते हैं कि उनका परिवार प्रारंभ से ही मुस्लिमों के मोहल्ले मौदहापारा में रहता है। ऐसे में उनको मुस्लिम रीति रिवाजों ने बचपन में बी प्रभावित किया और उन्होंने फैसला किया कि वे इस धर्म को भी मानेंगे। इसके बाद जब वे पढ़ाई करने के लिए होलीक्रास स्कूल बैरनबाजार गए तो उन्होंने वहां चर्च भी जाना प्रारंभ कर दिया। यहां से उनके मन में ख्याल आया कि क्यों न अपने धर्म के साथ मुस्लिम, ईसाई और दूसरे धर्मों को भी माना जाए। बस फिर क्या था जब मन में हो विश्वास और पूरा हो विश्वास तो कैसे कोई कामयाब नहीं होगा। आज जीवन लाल सभी धर्मों को मानते हैं और उनके इस सर्वधर्म सद्भाव के कारण उनको मित्रों ने गोल्डन यानी सोने का नाम दे दिया है। सच में जीवन लाल आज के जमाने में जब लोग धर्म के नाम पर लडऩे का काम कर रहे हैं तो वे खरे सोने से कम नहीं हैं जो हर धर्म को अपने अंदर समाए हुए हैं।

जीवन लाल जहां नवरात्रि पर 9 दिनों का निर्जल उपवास रखते हैं वहीं रमजान में 30 दिनों तक रोजा भी रखते हैं और नमाज भी अदा करते हैं। बकरीद में उनके घर का माहौल ऐसा था कि कोई यह नहीं कह सकता था कि वह किसी हिन्दु के घर में आया है। हर तरफ मुस्लिम रीति रिवाज का नजारा था। खुद जीवन लाल का पहनावा ऐसा था कि अगर किसी को मालूम न हो कि यह इंसान हिन्दु हैं तो कोई भी यही समझता कि यह कोई मुस्लिम इंसान हैं। जीवन लाल ने बाइबिल के साथ गुरुनानक देव के साहित्यों का भी गहन अध्ययन किया है।

जीवन लाल एक कलाकार हैं और उन्होंने बकरीद मनाने के लिए अपनी फिल्म भांवर की शूटिंग छोड़ दी और त्यौहार मनाया। अब वे क्रिसमस की तैयारी कर रहे हैं। उनके घर में क्रिसमस भी किसी ईसाई परिवार के घर जैसे ही मनाई जाती है। फिल्मी सितारे जितेन्द्र को अपना आर्दश मानने वाले इस कलाकार की इच्छा नामी कलाकार बनने की है। जिनके दिल में हर धर्म के लिए प्यार हो उनकी इच्छा पूरी न हो यह तो हो नहीं सकता है। जरूर उनकी इच्छा को भगवान, अल्लाह, ईसा मसीह और गुरुनानक देव पूरी करने में मदद करेंगे। काश अपने देश में धर्म के नाम पर लडऩे वाले लोग ऐसे जीवन लाल के जीवन से सबक लें तो कहीं कोई लड़ाई ही न हो।

वंदेमातरम्, जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़

Read more...

रविवार, नवंबर 29, 2009

हम अब भी उनका एतबार करते हैं...


तुम्हें हमसे नफरत सही, हम तुम्हें प्यार करते हैं

इस हंसी गुनाह को हम बार-बार करते हैं।।


तुम आओगी नहीं, जानकर भी हम तुम्हें बुलाते हैं

दिल के आईने में हम अब भी तेरा दीदार करते हैं।।


ए मेरी हमदम तुम्हें तो वफा के नाम से भी नफरत है

मगर एक हम हैं जो जफा से भी मोहब्बत करते हैं।।

गम लिए फिरते हैं सारे जमाने का दिल में

मगर फिर भी न हम किसी से शिकायत करते हैं।।

आ जाओ लौटकर दिल की दुनिया फिर से बसाने

हम तो तेरा अब भी इंतजार करते हैं।।


सब कहते हैं बेवफा उसे प्रिंस

मगर हम अब भी उनका एतबार करते हैं।।

नोट: यह कविता भी हमारी 20 साल पुरानी डायरी की है

Read more...

शनिवार, नवंबर 28, 2009

हुआ चांद का दीदार-आया ईद का त्यौहार

हुआ चांद का दीदार

आया ईद का त्यौहार

खिलाओ सेवइयां

बांटो सबको प्यार

न हो कहीं नफरत

प्यार से महके संसार


ब्लाग बिरादरी के साथ सभी मित्रों को ईद मुबारक

Read more...

शुक्रवार, नवंबर 27, 2009

चिट्ठा जगत की बेईमानी या मनमानी

चिट्ठा जगत के बारे में कहा जाता है यह एक स्वचलित चिट्ठा है। लेकिन अब इस बात को लेकर संदेह होने लगा है कि अगर यह वास्तव में स्वचलित है तो फिर इसको लेकर लगातार परेशानी क्यों हो रही है। स्वचलित में ऐसी कौन सी बड़ी खामी है कि एक चिट्ठे में एक दिन तो उनके चिट्ठे की चर्चा की प्रविष्ठि जुड़ जाती और दूसरे दिन गायब हो जाती है। इस बात को लेकर अब यह शक होने लगा है कि ये चिट्ठा जगत की बेईमानी है या फिर मनमानी। क्या कोई ऐसा है जो चाहता है कि किसी तेजी से आगे बढ़ते चिट्ठे पर लगाम लगाई जाए और उसकी रफ्तार को रोका जाए। हमें तो कुछ ऐसा ही लगता है क्योंकि हमारे साथ ऐसा लगातार हो रहा है।

हमने ब्लाग बिरादरी के मित्रों के कहने पर अपना ध्यान लिखने पर ही लगाया है, पर इसका क्या किया जाए कि जब हमारे साथ लगातार अन्याय हो रहा है तो फिर चुप कैसे बैठा जाए। कहने को तो चिट्ठा जगत को स्वचलित कहा जाता है अगर यह महज स्वचलित है तो फिर इसको लेकर लगातार परेशानी क्यों हो रही है। न जाने क्या खेल हो रहा है जो दूसरे चिट्ठा में हुई चर्चा की प्रविष्ठियां गायब हो जाती हैं या फिर कर दी जाती यह बात समझ नहीं आ रही है। हमारे साथ यह लगातार हो रहा है। एक ही दिन में हमारी तीन पोस्ट की चर्चाएं हुर्इं और ये सब की सब गायब। इसके अलावा और भी कई बार ऐसा हुआ है। हमारे ब्लाग राजतंत्र की 26 नवंबर को तीन अलग-अलग चिट्ठों पर चर्चाएं हुईं। ये तीनों चर्चाएं इस प्रकार है जिसके हम लिंक भी दे रहे हैं। पंकज मिश्र जी के ब्लाग पर रूपचंद शास्त्री जी ने हमारे लेख भारतीय हॉकी में अभी जान है बाकी की चर्चा की। इसी दिन 26 नवंबर को ब्लाग चर्चा मुन्ना भाई में हमारे लेख काश एक बार वो फिर मिल जाती की चर्चा हुई फिर महेन्द्र मिश्र के समयचक्र में हमारे दो लेखों हिन्दु बेटे के अंतिम दीदार के लिए कब्रिस्तान में खोला गया मुस्लिम मां का चेहरा और वंदेमातरम् से मुसलमानों को परहेज नहीं की चर्चा हुई।

(चारों के लिंक ये हैं)

ये गुरु चेले ताऊ टिप्पणी खेचूं ताबीज बेच रेयेल है भाई
एक भीख मांगता बच्चा
पुरुष तो वही देखेगा जो दिखाया जाएगा
आम जनता क्या डंडे खाने के लिए है..

इन तीनों चर्चाओं को हमारे हवाले की प्रविष्ठियों में जोड़ा नहीं गया। इसके एक दिन पहले भी पंकज मिश्र जी के ब्लाग में रूपचंद शास्त्री जी ने हमारे एक लेख की चर्चा की थी (इसका लिंक हम इसलिए नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि श्री मिश्र जी ब्लाग में 25 नवंबर की वह पोस्ट खुल नहीं रही है)। इसको भी हमारी प्रविष्ठियों में नहीं जोड़ा गया। इसके कुछ दिनों पहले यानी 10 नवंबर को चर्चा पान की दुकान में भी एक लेख आम जनता क्या डंडे खाने के लिए है.. में राजतंत्र का लिंक देने के बाद न तो इसका हवाला जुड़ा और न ही प्रविष्ठी। तब हमने समझा था कि इस साझा ब्लाग में हम भी लिखते हैं शायद इसलिए प्रविष्ठी और हवाला नहीं जोड़ा गया। लेकिन इस बारे में हमारे ब्लागर मित्र कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि ब्लाग आपका है, प्रविष्ठियां तो जुड़ती है। अगर ऐसा है तो फिर हमारे साथ ये क्या हो रहा है, हम नहीं जानते हैं। लेकिन इतना तय है कि जिस तरह से लगातार राजतंत्र के साथ किया गया है, उससे यह प्रतीत होता है कि चिट्ठा जगत में बैठे हुए या फिर उनसे जुड़े हुए मठाधीश किसी नए ब्लागर को इतनी तेजी से आगे बढऩे देना नहीं चाहते हैं। ऐसा हम इसलिए भी कह रहे हैं कि हमने अपने 9 माह के ब्लागर जीवन में कई दिग्गजों को भी चिट्ठा जगत पर संदेह जताते देखा है।

हमारा ऐसा मानना है कि किसी भी ब्लागर को आगे बढऩे से रोकना गलत है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि किसी चिट्ठा जगत का कोई ब्लागर मोहताज नहीं होता है, जब वह अच्छा लिखता है तो उसको पढऩे वाले आते ही हैं। लेकिन अन्याय बर्दाश्त करना कम से कम हमारी फितरत नहीं है। हमने इसके पहले भी चिट्ठा जगत के बारे में लिखा था, तब हमारे ब्लागर मित्रों ने लेखन पर ध्यान देने की सलाह दी थी, हम लेखन पर ही ध्यान दे रहे हैं लेकिन क्या अन्याय के खिलाफ आंखे बंद कर लेना गलत नहीं है। अन्याय के आगे झुकने का मतलब भी अपराध करना है और हम अपराधबोध से ग्रस्त होना नहीं चाहते हैं इसलिए हमारे साथ जो हुआ है उसको हमने ब्लाग बिरादरी के सामने रखा है। हो सकता है कि इस खुलासे के बाद चिट्ठा जगत से हमें और ज्यादा परेशानी हो, लेकिन इससे हमें कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। इस बात के डर से हम अन्याय के खिलाफ न लिखे यह संभव नहीं है। अगर आज हम नहीं लिखेंगे तो कल और किसी के साथ ऐसा अन्याय होगा। जिसके साथ भी अन्याय होता है उसको खुलकर सामने आना ही चाहिए।

Read more...

शेख समीर के वंदेमातरम् पर क्या विचार है?

हमारे एक मुसलमान मित्र हैं, शेख समीर। 26-11 को मुबंई हमले की याद में उन्होंने हमें जो एसएमएस भेजा उसका मजमून लिख रहे हैं। इस एसएएस की शुरुआत जहां उन्होंने वंदेमातरम् से की, वहीं अंत जय हिन्द, जय भारत के किया।

वंदेमातरम्

आंसू का कोई रंग नहीं
दर्द की कोई जात नहीं
क्या डराएंगे हमें ये आतंकवादी
जितना खुद कोई ईमान नहीं


इन लाइनों के नीचे लिखा गया है कि मुबंई में 26 नवंबर को हुई घटना में मारे गए आम जनों के साथ पुलिस वालों को सलाम है। अंत में लिखा है

जय हिन्द, जय भारत।

इस एसएमएस ने हमें एक बार फिर से उन मुसलमान मित्रों की याद दिला दी जो वंदेमातरम् को लेकर बिना वजह विवाद खड़ा कर रहे हैं। शेख समीर का यह एसएमएस भी एक जवाब है उन वंदेमातरम् विरोधियों को की चंद विवाद करने वालों को छोड़कर किसी मुसलमान को वंदेमातरम् या जय हिन्द बोलने और लिखने से भी परहेज नहीं है। हो सकता है किसी वंदेमातरम् विरोधी को यह बात झूठ लगे ऐसे लोग हमें अपना मोबाइल नंबर भेजे दें हम उनको वह एसएमएस भेज देंगे जो हमें हमारे मित्र ने भेजा है।

इस बारे में हमारी ब्लाग बिरादरी के मित्र क्या सोचते हैं, उनके विचार आमंत्रित हैं।

Read more...

गुरुवार, नवंबर 26, 2009

मम्मी मुझे इंडिया में ही रहना है यूएस नहीं जाना


एक चार की छोटी सी बच्ची को पहली बार यूएस से इंडिया आने का मौका मिला। यहां पर आकर वह अपने मम्मी-पापा के देश में ऐसे रमी की उसे अब इंडिया छोड़कर जाने का मन ही नहीं हो रहा है। वह अपनी मम्मी से कहती है कि मम्मी मुझे इंडिया में ही रहना है, यूएस नहीं जाता है। मम्मी पूछती है क्यों? तो छोटी सी यह गुडिय़ा कहती है कि वहां मुझे अच्छा नहीं लगता है। वहां मुझे क्यों प्यार भी नहीं करता है, यहां देखों न कितने भईया और बहनें हैं। सब कैसे प्यार से खेलते हैं।

यह किसी फिल्म या फिर नाटक के संवाद नहीं हैं बल्कि हमारे एक मित्र के भाई की चार साल की बेटी की बातचीत है जो उसने अभी यहां पर राजधानी रायपुर में एक दिन पहले की। हमारे मित्र के भाई यूएस में इंजीनियर हैं। उनकी पत्नी भी इंजीनियर हैं। वे पिछले पांच सालों से वहां पर रहे हैं। वहीं पर उनको एक पुत्री हुई। इस पुत्री का नाम आयुषी है। आयुषी को पहली बार भारत आने का मौका मिला है क्योंकि उसके चाचा की शादी थी। यहां पर आने के बाद उसको अपने दादा-दादी और नाना-नानी के घर में जिस तरह का प्यार मिला उसने उसको इतना ज्यादा प्रभावित किया है कि वह अब यूएस लौटना ही नहीं चाहती है। छोटी की यह परी जैसी लड़की अपनी मम्मी से कहती भी है कि मम्मी यूएस में तो कोई मुझे प्यार भी नहीं करता है और कोई खेलने वाला भी नहीं है लेकिन यहां पर कितने भाई और बहनें हैं। वह जिद करने लगती है कि मम्मी प्लीज हम लोग वापस नहीं जाएंगे।

यह एक छोटा सा किस्सा है जो यह बताता है कि वास्तव में अपने देश में लोग कितने प्यार और अपनेपन से रहते हैं। बेशक यूएस जैसे देशों में पैसों की कमी नहीं है, लेकिन वहां जाकर इंसान मशीन बन जाता है और प्यार के लिए तरस जाता है। प्यार की भूख तो हर इंसान को होती है फिर वह चाहे चार साल का बच्चा ही क्यों न हो। ऐसे में भला आयुषी कैसे गंवारा करेगी कि वह एक ऐसे देश में रहे जहां पर प्यार नाम की सय से वह महरूम है।

इसलिए कहते हैं

ईस्ट हो या वेस्ट इंडिया इज द बेस्ट

Read more...

बुधवार, नवंबर 25, 2009

भारतीय महिला हॉकी में अभी जान है बाकी

नीता डुमरे छत्तीसगढ़ की पहली अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी के साथ अंतरराष्ट्रीय निर्णायक भी हैं। बैंकाक में इसी माह खेले गए सीनियर एशिया कप में वह निर्णायक की भूमिका निभाकर लौटी हैं। वहां पर भारतीय टीम ने फाइनल में पहुंचकर विश्व कप में खेलने की भी पात्रता प्राप्त की है। यह इस बात का सबूत है कि महिला हॉकी में अभी बहुत जान बाकी है। दूसरी तरफ पुरुष हॉकी को विश्व कप में मेजबान होने के कारण खेलने की पात्रता मिल पाई है। अंतरराष्ट्रीय हॉकी के साथ छत्तीसगढ़ की हॉकी पर उनसे हुई बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं।


० अंततराष्ट्रीय खिलाड़ी के बाद अंतरराष्ट्रीय निर्णायक की भूमिका में आना कैसा लगा?

०० हॉकी खेलना छोडऩे के बाद ही मेरी प्रारंभ से इच्छा थी कि मैं अंपायरिंग करूं। लेकिन इसके लिए छत्तीसगढ़ में ऐसी कोई सुविधा नहीं थी। ऐसे में मुङो भारतीय हॉकी संघ की महासचिव अमृत बोस ने सलाह दी कि मैं अंपारिंयग के स्थान पर निर्णायक बनने पर ध्यान दूं। उनकी सलाह पर मैंने पहली बार २००० में हैदराबाद में राष्ट्रीय स्पर्धा में निर्णायक की भूमिका निभाई। इसके बाद और कुछ राष्ट्रीय स्पर्धाओं में निर्णायक रही। इसके बाद हैदराबाद में जब २००३ में एशिया कप हुआ तो पहली बार अंतरराष्ट्रीय निर्णायक के रूप में मेरा भी चयन किया गया। इसके बाद से मैं लगातार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्णायक बन रही हूं। इसी माह बैंकाक में खेले गए सीनियर एशिया कप में भी मैं निर्णायक थी। वहां से दो दिन पहले ही लौटी हूं। निर्णायक बनने के कारण अब तक मैं अपने खेल से भी जुड़ी हुई हूं।

० निर्णायकों को दिया जाने वाला छत्तीसगढ़ का हनुमान सिंह पुरस्कार प्राप्त करके कैसा लगा?

०० मेरा ऐसा मानना है कि मुझे यह पुरस्कार मिला है तो इससे अपने प्रदेश की खिलाडिय़ों को भी हॉकी में निर्णायक बनने की प्रेरणा मिलेगी। जब मैं १९८८ में भारतीय टीम में शामिल हुई थी तो उस समय मप्र था इसके बाद भी छत्तीसगढ़ की खिलाडिय़ों को एक रास्ता दिखा था कि वे भी भारतीय टीम में स्थान बना सकती हैं। बकौल नीता आज छत्तीसगढ़ की दो खिलाड़ी रश्मि तिर्की और निधि राष्ट्रीय स्तर पर अंपायरिंग कर रही हैं, इनको कभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंपायरिंग का मौका मिल सकता है।


० भारतीय महिला हॉकी के भविष्य के बारे में क्या सोचती हैं?



०० बैंकाक में जिस तरह से भारतीय हॉकी टीम ने खेल दिखाया और फाइनल में पहुंचने के कारण विश्व कप में खेलने की पात्रता प्राप्त कर ली उससे लगता है कि महिला हॉकी का भविष्य कम से कम पुरुष हॉकी से ज्यादा अच्छा है। पुरुष हॉकी में भारत को मेजबान होने के कारण विश्व कप में खेलने के लिए पात्रता मिली है। कनाडा और इंग्लैंड से जीतकर खुश होने से कुछ नहीं मिलेगा। अपने देश में पुरुष हॉकी का ज्यादा महत्व है, ऐसे में इसको निखारने पर ध्यान देना चाहिए।

० छत्तीसगढ़ में हॉकी की क्या स्थिति है?

०० अपने राज्य में हॉकी के प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों की कमी नहीं है। यहां पर जशपुर, सरगुजा, रायगढ़, राजजनांदगांव, बिलासपुर, रायपुर , दुर्ग से लेकर हर जिले में प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं। बस जरूरत है इसको सुविधाएं देने की।

० कैसी सुविधाओं होनी चाहिए?

०० सबसे पहले तो प्रदेश सरकार को राज्य में ज्यादा से ज्यादा एस्ट्रो टर्फ बनाने चाहिए। राज्य बनने के ९ साल बाद भी एक भी एस्ट्रो टर्फ नहीं लग पाया है। हमारी खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी एस्ट्रो टर्फ न होने के कारण मात खा जाती हैं। महिला टीम क्वार्टर फाइनल तक तो पहुंच जाती है, पर यहां पर उसके सामने एस्ट्रो टर्फ में खेलने वाली टीमें आ जाती हैं और हमारी टीमें मात खा जाती हैं।

० एस्ट्रो टर्फ के अलावा और किसी सुविधा की दरकार है?

०० हॉकी की अकादमी बहुत जरूरी है। अगर प्रदेश में हॉकी अकादमी होती तो दुर्ग की खिलाड़ी सबा अंजुम को बाहर जाकर खेलना नहीं पड़ता और उनके खेल का फायदा छत्तीसगढ़ को मिलता।

० आपके समय के खेल और आज के खेल में क्या अंतर है?

०० जब हम लोग खेलते थे तो सुविधाओं का बहुत ज्यादा अभाव था, आज सुविधाएं बहुत मिल रही हैं। हम लोग किट के लिए तरस जाते थे, आज खिलाडिय़ों को किट आसानी से मिल जाती है। रेलवे में होने के बाद भी हम लोगों को किट नहीं मिलती थी, कहा जाता था भारतीय टीम से खेल रही हैं तो किट भी वहां से मिलनी चाहिए।

० प्रदेश सरकार खेलों के लिए जो कर रही है उससे संतुष्ट हैं?

०० इसमें शक नहीं है कि छत्तीसगढ़ में खेल और खिलाडिय़ों के लिए सरकार बहुत कुछ कर रही है, लेकिन सबसे जरूरी है खिलाडिय़ों के लिए रोजगार उपलब्ध करवाना। सरकार ने उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित करने का काम तो किया है, पर इसके नियम ठीक नहीं है।

० कैसे नियम होने चाहिए?


०० नियम ऐसे हों जिससे सभी खेलों को फायदा हो। अभी जो नियम हैं, उससे पदक जीतने वाले कुछ ही खेलों को फायदा होगा। मप्र में लगातार तीन राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलने वालों को उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित किया जाता था, ऐसा ही कुछ अपने राज्य में भी होना चाहिए।

० राजधानी में खेल सुविधाओं के बारे में क्या सोचती है?



०० यह अपने राज्य का दुर्भाग्य है कि राजधानी का वह स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स छत्तीसगढ़ बनने के ९ साल बाद भी नहीं बन पाया है जिसके लिए हम लोगों ने २३ साल पहले १९८६ में जयस्तंभ चौक में भूख हड़ताल की थी। मैदान का अभाव खिलाड़ी दो दशक से ज्यादा समय से झेल रहे हैं। हम लोगों से काफी पहले ही सोच लिया था कि रायपुर के स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स के मैदान में हमारे बच्चों को खेलने नसीब हो जाए तो बड़ी बात होगी। राजधानी में खेल मैदानों की सुविधाएं बढ़ानी चाहिए।

Read more...

मंगलवार, नवंबर 24, 2009

काश एक बार वो फिर मिल जाती....


न जाने कौन थी, वो खुबसूरत हसीना

मुश्किल कर दिया जिसने हमारा जीना ।।

मिली थी हमें एक सफर के दरमियान

पर कर न सके हम उससे पहचान ।।

करके अपनी कातिल नजरों के वार

कहीं रास्ते में ट्रेन से उतर गई यार ।।

दीवाना वो हमें अपना बना गई

हमारे दिल में अपना घर बसा गई ।।

दिल में उसकी तस्वीर बस गई है

लगता है हमारे दिल में समा गई है ।।

हम अपने दिल की भावना उसे बताएं कैसे

इतने बड़े जहांन में उसे पाएं कैसे ।।

काश हमें एक बार फिर वो मिल जाती

हमारी रूठी तकदीर संवर जाती।।

कर लेते पूरा अपने दिल का सपना

बना लेते सदा के लिए उसे अपना

(नोट: यह रचना हमारी 20 साल पुरानी डायरी की है)

Read more...

सोमवार, नवंबर 23, 2009

अबे कितनी बार कहा है झंडा मत बोले कर

एक झंडा देना.... अबे तेरे को कितनी बार कहा है कि झंडा मत बोले कर फिर भी साले तेरे को न तो कोई फर्क पड़ता है और न ही शर्म आती है, क्या तू देशद्रोही है जो ऐसी बातें करता है। अबे कुछ तो शर्म कर झंडा बोलने से लगता है कोई अपने देश के झंडे का अपमान कर रहा है।

ये किसी फिल्म के डॉयलाग नहीं हैं बल्कि हमारे द्वारा अपने एक मित्र के साथ किए गए संवाद के अंश हैं। हमारे एक मित्र हैं उनको विल्स फ्लैक सिगरेट पीने की आदत है। अब सिरगेट पीने की आदत है, वहां तक तो ठीक है, लेकिन हमारे मित्र जब भी किसी चाय या पान की दुकान में जाते हैं तो फ्लैक के स्थान पर एक झंडा देना कहते हैं। उनकी उस मांग को पान और चाय दुकान वाले भी जानते हैं, ऐसे में उनके सामने हाजिर हो जाती है विल्स फ्लैक की एक सिगरेट। लेकिन वे जब भी हमारे साथ जाते हैं तो हमेशा इसी तरह से डांट जरूर खाते हैं, लेकिन लगातार डांट खाने के बाद भी हमारे इन मित्र की आदत बिलकुल कुत्ते की पुछ की तरह है जो सीधी नहीं होती है। हमने कई बार उनको कहा कि यार समझता क्यों नहीं है झंडा बोलने से लगता है कि अपने झंडे का अपमान हो रहा है, तुझे शर्म आनी चाहिए तुम सिगरेट को झंडा बोलकर मांगते हो और उसे पीते हो। कल शाम को हम लोग जब चाय पीने गए थे तो उन्होंने फिर से आदत के मुताबिक चाय वाले से कहा कि एक झंडा देना। उनका इतना कहना था कि हम फिर से चालू हो गए उसको डांटने के लिए।

हमने उनसे आज साफ कहा कि देख बे तेरे को ऐसी ही हरकतें करनी रहती हैं तो तू हमारे साथ मत आए कर। हमने उससे यह भी कहा कि अब बहुत हो चुका है हम तुम्हारी इस हरकत को हम अपने ब्लाग में सार्वजनकि करने वाले हैं। उनको लगा हम मजाक कर रहे हैं। हमने कहा कि बेटा ये ये कोई मजाक नहीं है तू देख लेना हम कल इसी पर लिखने वाले हैं। तेरे में थोड़ी सी भी शर्म होगी और तुझे अपने देश के साथ देश के झंडे से प्यार होगा तो जरूर फिर कभी सिगरेट को झंडा कहकर नहीं मांगोगे। हमारा इतना कहना था कि उनको भी थोड़ा सा ताव आ गया और कहने लगे कि लिख लेना न बे अपने ब्लाग में। हम कोई झंडे का अपमान नहीं कर रहे हैं, हम झंडे का उतना ही सम्मान कते हैं जितना करना चाहिए। हम कोई झंडे का सिगरेट बनाकर थोड़े ही पी रहे हैं। हमारे देश में तो बड़े-बड़े लोग झंडे का अपमान करने से पीछे नहीं रहते हैं।

क्या भूल गए हो कि किस तरह से सानिया मिर्जा जैसी खिलाड़ी झंडे नहीं बल्कि तिरंगे झंडे की तरफ एक बार पैर करके बैठीं थीं।
क्या भूल गए कि सचिन ने तिरंगे वाला केक काटा था।
क्या भूल गए कि मदिरा बेदी ने तिरंगे वाली जो साड़ी पहली थी उसमें तिरंगा घुटने के पास था।
एक बड़े अधिकारी के घर में पैरे के नीच तिरंगा रखा था।


तिरंगे का ये लोग अपमान करते हैं, इनके खिलाफ तूने ही अपने ब्लाग में लिखा था। मैं तो महज मजाक में ही फ्लैक को झंडा कह देता हूं तो तुझे इतना बुरा लग जाता है। न जाने कितने झंडों को मैंने २६ जनवरी और १५ अगस्त के दिन सड़कों पर लोगों के पैरों से कुचलते हुए देखा है। यह सब देखकर मुझे भी दर्द होता है और गुस्सा आता है। क्या तुमने ऐसे नजारें नहीं देखें हैं। चल ठीक है तू ब्लाग में मेरे झंडे वाली बात भले लिख दें, लेकिन अब मैं वादा करता हूं कि कम से कम तेरे सामने मैं सिगरेट को झंडा नहीं कहूंगा। मुझे सच में मालूम नहीं था कि तूझे इतना बुरा लग जाएगा। मैं इसके लिए क्षमा चाहता हूं।

Read more...

रविवार, नवंबर 22, 2009

वंदेमातरम् से मुसलमानों को परहेज नहीं

वंदेमातरम् को लेकर ब्लाग जगत में लगातार बवाल मचा हुआ है। इस मामले में मुस्लिम समाज में ही एका नहीं है। एक समूह इसका लगातार विरोध कर रहा है तो एक समूह को इस पर कोई एतराज नहीं है। हमारे भी कई मुसलमान मित्र हैं, उनको भी वंदेमातरम् से कोई परहेज नहीं है इस बात का एक सबूत हमें तब भी मिला जब एक कार्यक्रम में वंदेमातरम् का गान किया गया और इस कार्यक्रम में उपस्थित कई मुसलमान मित्रों ने बकायदा सभी की तरह इसका सम्मान किया। इस कार्यक्रम के बाद हमने अपने उन मित्रों से इस बारे में चर्चा भी तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हमें इस पर कोई एतराज नहीं है, जो लोग इस तरह का विवाद खड़ा कर रहे हैं उनको ने तो देश से मतलब है और न ही मुस्लिम समाज से।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को प्रमाणपत्र देकर सम्मानित करने का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करने का जिम्मा हमारे अखबार दैनिक हरिभूमि की तरफ से हमारा पास था। हम जब इस कार्यक्रम में गए तो हमें भी नहीं मालूम था कि यहां पर वंदेमातरम् का गान होगा। लेकिन कार्यक्रम में मुख्यअतिथि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के आने के पहले यह बताया गया कि मुख्यअतिथि के आते ही वंदेमातरम् का गान होगा, तभी सबको मालूम हुआ। जब मुख्यअतिथि आए तो वंदेमातरम् का गान हुआ तो सभी के साथ कार्यक्रम में उपस्थित कई मुसलमान खिलाडिय़ों ने भी इसका सम्मान किया।

कार्यक्रम के बाद हमने अपने मुसलमानों मित्रों को जब ब्लाग बिरादरी में चल रहे बवाल की बात बताई और उनसे पूछा कि क्या उन लोगों को भी वंदेमातरम् से कोई एतराज है और इससे परहेज है तो उन्होंने साफ कहा कि हमें न तो कोई एतराज है और न ही परहेज हैं। इन्होंने कहा कि ऐसा विवाद खड़ा करने का काम वहीं लोग करते हैं जिनको अपने देश और समाज से कोई मतलब ही नहीं होता है। ऐसे लोग का काम ही विवाद खड़ा होता है।

हमारे ये मित्र मो. अकरम खान जहां छत्तीसगढ़ वालीबॉल संघ के महासचिव हैं, वहीं बशीर अहमद खान प्रदेश ओलंपिक संघ के साथ प्रदेश हैंडबॉल संघ के सचिव भी हैं। इसी के साथ कार्यक्रम में आईं बास्केटबॉल की खिलाड़ी इशरत जहां, हैंडबॉल की शबनम बानो, इमरान खान, मो. कलीम खान, इम्तियाज खान, सैय्यद इरफान अली, इसरत अंजुम, साइमा अंजुम, इशरत जहां से भी हमने बात की। सभी ने कहा कि हमें वंदेमातरम् से कोई एतराज नहीं है। इन खिलाडिय़ों के अलावा हमारे और भी कई मुसलमान मित्र हैं जिनका खेल से नाता है इनमें से मुश्ताक अली प्रधान, नासिर अली सहित और कई खिलाड़ी हैं जिनसे हमारा बरसों पुराना परिचय है। इनसे भी हमने पूछा है, किसी को कोई एतराज नहीं है।

खिलाडिय़ों के साथ दूसरे क्षेत्रों से भी जुड़े हमारे कई मुसलमान मित्र हैं। हमने लगभग सभी से इस संबंध में पूछा है किसी को कहीं कोई एतराज नहीं हैं। फिर यह बात समङा से परे हैं कि क्यों कर वंदेमातरम् का विरोध करके इसको बिना वजह मुद्दा बनाकर देश के साथ हिन्दु और मुसलमानों के दिलों में पले रहे प्यार को बांटने का काम किया जा रहा है। कभी किसी ने यह नहीं कहा कि भारत में रहने वालों के लिए वंदेमातरम् का गान जरूरी है। देश के संविधान में भी कहीं ऐसा नहीं है फिर यह किसने कह दिया है कि वंदेमातरम् न बोलने और गाने वाले देशद्रोही हैं। जिसे न गाना है न गए लेकिन इसको लेकिन इसको लेकर विवाद खड़ा करने की क्या जरूरत है। लेकिन इतना जरूर है कि अगर आपके सामने वंदेमातरम् का गान होता है तो उनका सम्मान करना चाहिए। अगर आप उसका सम्मान नहीं करते हैं तो फिर आप किस मुंह से कह सकते हैं कि आप भारतवासी हैं । हमारा मानना है कि बिनावजह पैदा किए गए इस विवाद का अंत होना ही चाहिए।

Read more...

शनिवार, नवंबर 21, 2009

हिन्दु बेटे के अंतिम दीदार के लिए कब्रिस्तान में खोला गया मुस्लिम मां का चेहरा

ब्लाग बिरादरी में इन दिनों हिन्दु और मुसलमानों को लेकर काफी कुछ लिखा जा रहा है। बहुत से लोग साम्प्रदायिकता का जहर फैलाने में लगे हैं। ऐसे में जबकि अनिल पुसदकर जी के ब्लाग में पंचर का किस्सा लिखा गया तो मुझे अचानक अपने एक बचपन के दोस्त शौकत अली के मां के इंतकाम का दिन याद आ गया। उनके इंतकाल में मैं काफी विलंब से पहुंचा था जिसकी वजह से कब्रिस्तान में मुझ हिन्दु बेटे लिए उस मुस्लिम मां का चेहरा सिर्फ मुझे दिखाने के लिए खोला गया था। यहां एक बात और बताना चाहूंगा कि इंसान का नसीब भी न जाने कैसा होता है जो उसको क्या-क्या रंग दिखाता है। एक तरफ मैं अपनी मां के अंतिम दर्शन नहीं कर पाया था तो दूसरी तरफ एक ऐसी मां के अंतिम दर्शन करने का मौका जरूर मिल गया जिसे हमने कभी मां से कम नहीं समझा।

अपने देश में हिन्दु और मुसलमानों के दोस्ती के कई किस्से हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि हिन्दु और मुसलमान में भी भाई से ज्यादा मोहब्बत हो सकती है। कम से कम हम तो इस बात को इसलिए मानते हैं कि हमारे एक मुस्लिम परिवार से अपने घर जैसे रिश्ते बचपन से रहे हैं। हम अपने इन मित्र शौकत अली की दोस्ती का बयान पहले भी कर चुके हैं। जब हम लोग भाटापारा में रहते थे तब हमारे इन मित्र के साथ उनके दो छोटे भाईयों साकिर अली और आसिफ अली से भी हमारी दोस्ती थी। हमारी दोस्ती ऐसी थी कि रोज एक समय का खाना एक-दूसरे के घर में ही खाते थे। जब हमारे इन मित्र का परिवार रायपुर आकर रहने लगा तो कुछ समय बाद हम भी रायपुर आ गए थे। आज हमें रायपुर में रहते दो दशक से ज्यादा समय हो गया है।

बात उन दिनों की है जब हमारे मित्र की मां का अचानक इंतकाल हो गया। हमें खबर मिली की उनकी अंतिम यात्रा सुबह को करीब 11 बजे निकाली जाएगी। ठीक उसी समय हमें प्रेस के काम से जाना था, सो हमें वहां पहुंचने में समय लगा तो हम सीधे कब्रिस्तान पहुंच गए। ऐसे में वहां पर अंतिम संस्कार से पहले पूछा गया कि क्या घर का कोई सदस्य अंतिम दीदार के लिए बचा हुआ है, तो सभी से सिर्फ मेरा नाम लिया कि राजू देर से आया है, इसलिए अंतिम दीदार के लिए चेहरा खोला जाए। मां का चेहरा खोला गया तो हमारी आंखों में आंसू भरे आए। एक तो इसलिए कि हमें अपनी मां के अंतिम दर्शन का मौका नहीं मिला था। जब हमारी मां का निधन हुआ था तब हम जगदलपुर गए थे रिपोर्टिंग करने के लिए। जब तक हम अपने घर भाटापारा पहुंचते मौसम खराब होने के कारण हमारी मां का अंतिम संस्कार किया जा चुका था, हमें आज भी इस बात का अफसोस है कि हम अपनी मां के अंतिम दर्शन नहीं कर पाए थे। ऐसे में अपने दोस्त की मां के अंतिम दर्शन करके हमारी आंखे भर आईं थीं।

दूसरी बात यह कि हमें उस समय यह सोच कर खुशी भी हुई कि चलो यार जिस बचपन के दोस्त को अपने भाई जैसा माना उनके परिवार ने भी मुझे इतना सम्मान दिया कि घर का सदस्य समझकर मां के अंतिम दीदार के लिए उनका चेहरा खोला गया। वरना यह कताई जरूरी नहीं था क्योंकि उनके परिवार के हर व्यक्ति ने शव यात्रा से पहले ही उनके अंतिम दर्शन कर लिए थे। लेकिन नहीं सब जानते थे कि हमारा उन घर से कैसा रिश्ता है और कभी उस घर ने हमें अपने बेटे से कम नहीं समझा। ऐसे में भला कैसे हमें उन मां के अंतिम दर्शन से महरूम रखा जाता जिस मां के साय में हमारे दोस्त के साथ हमारा भी बचपन से लेकर जवानी तक का सफर गुजरा था।

ये एक सच्चाई है कि दिलों में प्यार हो तो कोई धर्म और मजहब की दीवार किसी को रोक नहीं सकती है। कोई भी धर्म और मजहब एक-दूसरे का मजाक उड़ाने का रास्ता नहीं बताते हंै फिर न जाने क्यों इन दिनों लोग धर्म के साथ खिलवाड़ करने का काम कर रहे हैं। इसका बंद होना जरूरी है। किसी के धर्म को छोटा दिखाने से कोई धर्म छोटा नहीं हो जाता है। जिस इंसान की मानसिकता छोटी होती है, वही ऐसी हरकतें करते हैं। ऐसी हरकतों पर विराम लगाते हुए आपस में भाई-चारे से रहना चाहिए। अपना देश ही विश्व में एक ऐसा देश है जहां पर हर जाति और धर्म के लोगों को समान रूप से रहने का और अपने धर्म को मानने का अधिकार है, फिर क्यों कर लोग दूसरे के धर्म में टांग अड़ाने का काम करते हैं। आप अपने धर्म का बखान करें आपको किसने रोका है, लेकिन यह बखान किसे दूसरे धर्म को नीचा दिखाते हुए करना सरासर गलत है।

Read more...

शुक्रवार, नवंबर 20, 2009

कोहरे से घिरी राजधानी










छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सहित पूरे राज्य में पिछले दो दिनों से हो रही बारिश के बाद अचानक शीत लहर चलने लगी है और कल रात को राजधानी पूरी तरह कोहरे से घिर गई। रात को प्रेस से लौटते समय हमने ये फोटो कार में बैठे-बैठे अपने मोबाइल से खींची है।

Read more...

गुरुवार, नवंबर 19, 2009

अब मुस्लिम महिला फ्रंट के खिलाफ भी जारी करो फतवा


वंदेमातरम् की खिलाफत करने वाले मुसलमानों को उनके ही कौम की महिलाओं ने जता दिया है कि मां का अपमान करना उनको बर्दाश्त नहीं है। जो लोग वंदेमातरम् का विरोध कर रहे हैं और इसके खिलाफ फतवा जारी करने का एक घिनौना काम किया है, क्या अब उनमें इतनी हिम्मत है कि अपने ही कौम के मुस्लिम महिला फ्रंट के खिलाफ वो फतवा जारी कर सकें। वैसे भी वंदेमातरम् को लेकर मुस्लिम समाज में एका नहीं है, और जब किसी बात में एका न हो तो ऐसी बात का खुलकर विरोध करना हमेशा घातक होता है, अब लगता है कि जरूर फतवे का फरमान जारी करने वाले अकेले पड़ जाएंगे। अगर इन्होंने मुस्लिम महिला फ्रंट के खिलाफ कुछ किया तो आज बनारस की महिलाएं सड़कों पर आईं हैं कल पूरे देश की मुस्लिम महिलाएं सड़कों पर आ जाएंगी तो फतवे के नाम से राजनीति करने वालों को भागने की जगह नहीं मिलेगी।

अचानक मीनू खरे के ब्लाग पर कल नजरें पड़ीं तो उसमें एक खबर देखी कि बनारस के मुस्लिम महिला फं्रट ने वंदेमातरम् के पक्ष में सम्मान मार्च का आयोजन किया। इस मार्च में मुस्लिम महिलाओं ने जिस तरह की तखतियों को लेकर प्रदर्शन किया, वह इस बात का सबूत है कि वास्तव में हिन्दुस्तान का मुसलमान कभी भी अपने देश हिन्दुस्तान के खिलाफ नहीं रहा है, यह तो चंद ऐसे गंदे लोग हैं जो अपनी राजनीति की रोटी सेकने के लिए धर्म को ढाल बनाने का काम करते हैं। लेकिन जब भी किसी धर्म में उसका गलत इस्तेमाल किया जाता है तो उसी धर्म के लोग जागरूक होकर सामने आ जाते हैं, जैसा कि अभी मुस्लिम धर्म में हुआ है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश को आजाद करवाने में मुस्लिम कौम का भी कम बड़ा हाथ नहीं रहा है, लेकिन इसका क्या किया जाए कि हर कौम में ऐसे लोग रहते हैं कि जिनको विध्नसंतोषी कहा जाता है। इनको शांति पसंद नहीं आती है और इनका काम ही बिनावजह साम्प्रदायिकता फैलाना रहता है। ऐसे लोगों के कारण ही दो भारत का बंटवारा हुआ है। अगर ऐसे धर्मपरस्त लोग नहीं होते तो आज भी भारत-पाक एक होते और इस देश में और विश्व में आतंकवाद भी नहीं होता। लेकिन इसका क्या किया जाए कि जहां अच्छाई है वहां बुराई भी होगी ही।

लेकिन यहां पर मुद्दा यह नहीं है। यहां पर सवाल है वंदेमातरम् का। तो इसके खिलाफ फतवा जारी करने वालों को उनके कौम की महिलाओं ने ही बता दिया है कि उन्होंने एक गलत काम किया है और इस गलत काम में मुस्लिम समाज कताई उनके साथ नहीं है। मुस्लिम महिलाओं ने जिस तरह की हिम्मत दिखाने का काम किया है, उसके लिए पूरा देश उनका नमन करता है। अब फतवे का फरमान जारी करने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि ऐसे किसी फतवे के चक्कर में कोई पडऩे वाला नहीं है। क्या फतवा जारी करने वाले आंकाओं में दम है कि वे अब मुस्लिम महिला फ्रंट के खिलाफ भी कोई फतवा जारी कर सकें। अगर ऐसा करने ही हिमाकत की गई तो पूरे देश की मुस्लिम महिलाएं फतवा जारी करने वालों के खिलाफ खड़े होने में देर नहीं करेंगी। और ऐसा हो गया तो फिर फतवा-फतवा का खेल खेलने वालों को भागने के लिए कोई जगह नहीं मिलेगी।


इसमें कोई दो मत नहीं है कि मुस्लिम समाज कभी वंदेमारतम् के खिलाफ नहीं रहा है। इतिहास गवाह है कि देश को आजादी दिलाने में शामिल मुस्लिम नेताओं ने शान से इसका गाना किया है। 1896 में मौलाना रहीमतुल्ला ने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में वंदेमातरम् गाकर इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाई। 1905 में बनारस के कांग्रेस अधिवेशन में गोखले ने वंदेमारतम् को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया। 1913 में करांची अधिवेशन में सदर मोहम्मद बहादुर ने वंदेमारतम् गाया। 1923 में मौलाना मोहम्मद अली,1927 में डॉ.एम.ए.अंसारी,1940-45 मे मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने देश को वंदेमारतम् की शपथ दिलाई।


आज भी इस गान को गाने में मुस्लिम समाज को परहेज नहीं है। इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि मुस्लिम महिलाएं ही यह कह रही हैं कि उनको जय हिन्दु और वंदेमातरम् बोलने से कोई रोक नहीं सकता है, इसके लिए वे जान तक देने की बात कर रही हैं। अब भी समय है वंदेमातरम् को लेकर विवाद खड़ा करने वालों के लिए कि वे बिनावजह इस बात को तूल न दें और अपने फरमान को वापस लेने का काम करके एक मिसाल कायम करने का काम करें।

लेकिन हमें नहीं लगता है कि ऐसा किया जाएगा। न करें हमने पहले भी लिखा है कि कपूतों के वंदेमातरम् न कहने से भारत मां को क्या फर्क पड़ता है। जिस तरह से मुस्लिम समाज वंदेमातरम् को लेकर बटा हुआ है, उससे यह बात अपने आप साबित हो जाती है कि वंदेमातरम् का विरोध करने वाले कपूत ही हैं, और इन कपूतों को तो उनके कौम की ही मां, बहनों, बेटियों और बहूओं ने ही नकार दिया है। ऐसे नाकारा लोगों की बातों से क्या फर्क पडऩे वाला है।

जय हिन्द, जय भारत, वंदेमारतम्

Read more...

बुधवार, नवंबर 18, 2009

सड़क हादसे में चार खिलाडिय़ों की मौत से खेल बिरादरी सकते में

राज्य पाइका में शामिल होने रायगढ़ जा रही बीजापुर की चार खिलाडिय़ों की सड़क हादसे में मौत से प्रदेश के खेल जगत में शोक की लहर है। पूरा खेल जगत इस हादसे से सकेत में है। पहली बार किसी सड़क हादसे में खिलाडिय़ों की मौत हुई है। इस हादसे के कारण रायगढ़ की राज्य पाइका स्पर्धा का उद्घाटन रद्द करके स्पर्धा का प्रारंभ एक सादे समारोह में किया गया। घायल खिलाडिय़ों को देखने जहां अंबेडकर अस्पताल में खेल संचालक जीपी सिंह सहित खेल विभाग का पूरा अमला पहुंच गया था, वहीं खबर लगते ही खेल संघों के पदाधिकारी भी वहां पहुंचे।

राज्य पाइका का आयोजन १७ नवंबर से रायगढ़ में किया है। इस आयोजन में शामिल होने जा रहे बीजापुर जिले की महिला खिलाडिय़ों से भरी बोलेरो की भिड़ंत कल रात को केशकाल के पास एक ट्रक से हो गई जिसके कारण चार खिलाडिय़ों तरूणा, चंपा, रामदेई और मंजू की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। इसी के साथ छह खिलाड़ी अमतली, राजकुमारी यादव, डाली, सुलोचना, लक्ष्मी और बनीता घायल हो गर्इं। इन घायलों को रायपुर के अंबेडकर अस्पाल लाया गया और इसकी सूचना जैसे ही खेल विभाग के अधिकारियों को मिली तो तत्काल राजधानी के वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे, उपसंचालक ओपी शर्मा सहित पूरे खेल विभाग का अमला अस्पताल पहुंच गया। बाद में खेल संचालक जीपी सिंह भी अस्पताल आए। उन्होंने खिलाडिय़ों से मिलकर उनका हाल जाना और खिलाडिय़ों के इलाज के बारे में डॉक्टरों से बात की।

इधर घटना के बारे में जैसे-जैसे खेल संघों के पदाधिकारियों और खिलाडिय़ों को मालूम हुआ सभी एक-एक करके अस्पताल पहुंच गए। अस्पताल पहुंचने वालों में वालीबॉल संघ के मो. अकरम खान, तीरंदाजी संघ के कैलाश मुरारका, नेटबाल संघ के संजय शर्मा, ट्रायथलान संघ के विष्णु श्रीवास्तव, कराते संघ के अजय साहू, एनआईएस कोच गजेन्द्र पांडे, खेल विभाग के अजीत टोपो, संजय पाल, सुशांत पाल, दयालू राम, विलियम लकड़ा, जेपी नापित, सुधा कुमार, रश्मि, मिंगराज रेड्डी सहित सारे अधिकारी थे।

ओपी शर्मा और राजेन्द्र डेकाटे ने बताया कि उन्होंने अपने २० साल से ज्यादा के खेल अधिकारी के जीवन में कभी खिलाडिय़ों को किसी सड़क हादसे में मरने की घटना नहीं देखी। छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों की पहली बार सड़क में दर्दनाक मौत हुई है। खिलाडिय़ों की मौत से पूरा खेल जगत शोक में डुब गया है। खेल संचालनालय के साथ राजधानी के खेल विभाग के नेताजी स्टेडियम के कार्यालय में शोक सभा का आयोजन करके खिलाडिय़ों को श्रद्धांजलि दी गई।

इधर खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि रायगढ़ में आज से प्रारंभ हुई राज्य पाइका स्पर्धा का उद्घाटन कार्यक्रम रद्द करके उसके स्थान पर सादे समारोह में ही स्पर्धा का प्रारंभ किया गया। वहां भी खिलाडिय़ों के साथ हुई घटना के बारे में जानकारी होने पर सारे खिलाड़ी, खेलों से जोड़े लोग सकेत में आ गए। मृतक खिलाडिय़ों को खेलों के प्रारंभ होने से पहले शोक सभा में श्रद्धांजलि दी गई।

Read more...

भाई का नाम अजगर रख दें?

कभी-कभी बच्चे ऐसी बातें कह देते हैं जिसको सुनकर हंसी आ जाती है। हमारे एक मित्र ने बताया कि उनके एक डॉक्टर मित्र के एक तीन साल के बेटे ने अपने होने वाले भाई का नाम अजगर रखने की बात किस मासूमियत से कही।

दरअसल इन डॉक्टर साहब के यहां एक और बच्चा होने वाला है, ऐसे में पति और पत्नी होने वाले बच्चे का नाम सोचने में लगे थे। ऐसे में उनका तीन साल का बेटा आ गया और पूछने लगा अपने मम्मी-पापा से की क्या हो रहा है। जब उसको बताया गया कि उसके होने वाले भाई या बहन के नाम के बारे में सोच रहे हैं। तो उसने पहले तो तपाक से कह दिया कि पापा अगर मेरी बहन होती है तो उसकी नाम झिंगुर रख देंगे और भाई होता है तो काकरोच रख देगे। उनकी बात सुन कर डॉक्टर साहब और उनकी श्रीमती जी हंसने लगे। ऐसे में उस तीन साल के मासूम को लगा कि लगता है मैंने छोटा नाम रख दिया है।

ऐसे में उसने कहा कि लगता है पापा ये नाम रखेंगे तो बाहर के लोगों को अच्छा नहीं लगेगा बाहर वालों के हिसाब से बड़ा नाम रखना पड़ेगा।। जब उसकी मम्मी ने पूछा कि बड़ा नाम क्या होगा, तो उसने कहा कि भाई के लिए अजगर नाम कैसा रहेगा? अब तो मियां-बीबी का हंसते-हसंते बुरा हाल हो गया। फिर उसको दोनों ने मिलकर समझाया कि बेटा इंसान के नाम जीव-जंतुओं पर नहीं रखते हैं। लेकिन यह बात उस मासूम की समझ में नहीं आ रही थी और वो पूछने लगा इंसानों के नाम जीव-जंतुओं के नामों जैसे क्यों नहीं रख सकते हैं? तब उसको पापा ने बताया कि बेटे बस नहीं रखा जाता है, जब तुम बड़े हो जाओगे तो यह बात आपकी समझ में आ जाएगी।

Read more...

मंगलवार, नवंबर 17, 2009

छत्तीसगढ़ का खौफ पूरे देश में


प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह ने प्रदेश के खिलाडिय़ों की तारीफ करते हुए कहा कि हमें गर्व है कि दूसरे राज्यों की तुलना में काफी कम सुविधाएं होने के बाद भी हमारे खिलाडिय़ों में इतना दम है कि देश के बाकी राज्यों के खिलाडिय़ों में छत्तीसगढ़ के नाम से खौफ है।


श्री सिंह ने ये बातें यहां पर उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को दिए गए प्रमाणपत्र के समारोह में कहीं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ का हर क्षेत्र में लगातार विकास हो रहा है, ऐसे में खेलों के क्षेत्र में भी छत्तीसगढ़ ने काफी कम समय में बहुत ज्यादा नाम कर लिया है। उन्होंने स्वीकारा की प्रदेश में खिलाडिय़ों को दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत कम सुविधाएं मिल रही हैं इसके बाद भी हमारे खिलाड़ी चाहे वह मुक्केबाजी हो या फिर कबड्डी, बास्केटबॉल, हैंडबॉल, कराते, भारोत्तोलन, नेटबॉल या कोई भी खेल सभी खेलों में हमारे खिलाड़ी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ जैसे दिग्गज राज्यों का पसीना निकाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ ने खेलों में जो प्रतिष्ठा अर्जित की है उससे हर छत्तीसगढ़वासी गौरव का अनुभव करता है। उन्होंने कहा कि बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्र में खेलों की सुविधाएं देने की जरूरत है। हम वहां पर सुविधाएं देने का काम कर भी रहे हैं।


ओलंपिक के पदक विजेता को मैं ही नकद पुरस्कार दूंगा

मुख्यमंत्री ने अपनी घोषणा की याद दिलाते हुए कहा कि मैंने अपने पहले कार्यकाल में यह घोषणा की थी कि ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले को दो करोड़, रजत जीतने पर एक करोड़ पचास लाख और कांस्य जीतने पर एक करोड़ की राशि दी जाएगी। उन्होंने कहा कि लगता है कि यह पुरस्कार राशि मेरे हाथों ही छत्तीसगढ़ के किसी खिलाड़ी को देना नसीब है, तभी तो मैं फिर से मुख्यमंत्री बना हूं। उन्होंने कहा कि वह दिन सबसे सुखद होगा जब छत्तीसगढ़ का कोई खिलाड़ी ओलंपिक में पदक लेकर आएगा। तब मुझे भी उसके साथ फोटो खींचवाते हुए गर्व होगा कि मैंने ओलंपिक के पदक विजेता के साथ फोटो खींचवाई है। मुख्यमंत्री ने भरोसा जताया कि वह दिन जरूर आएगा।


ओलंपिक में पदक का इंतजार है: लता

खेल मंत्री सुश्री लता उसेंडी ने इस अवसर पर कहा कि जिस तरह से राज्य बनने के बाद ९ साल तक प्रदेश के खिलाडिय़ों को उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित होने का इंतजार था, उसी तरह से प्रदेश का कोई खिलाड़ी ओलंपिक में पदक लेकर आए इसका हम सबको इंतजार है। उन्होंने कहा कि खिलाडिय़ों को ओलंपिक के पदक तक जाने का रास्ता दिखाने के लिए हमारी सरकार हर तरह की मदद करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि हमारा विभाग ग्रामीण खिलाडिय़ों को भी निखराने की योजना पर काम कर रहा है।
गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने इस अवसर पर कहा कि अपना राज्य हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, ऐसे में खेल कैसे पीछे रह सकता है। खेलों में भी विकास करने का काम सरकार कर रही है। कार्यक्रम में स्वागत भाषण देते हुए खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि राज्य में खेलों का अनोखा माहौल है। नक्सल प्रभावित बस्तर में भी खेल विभाग ने युवाओं को खेलों से जोडऩे का काम किया है। उन्होंने बताया कि जिनको उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित किया गया है, उनमें जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले हैं उनको पांच विभागों जिनमें वन, आबकारी, पुलिस और जेल विभाग शामिल हैं द्वितीय Ÿोणी में नौकरी दी जाएगी। इसी के साथ राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वालों को तृतीय और चतुर्थ Ÿोणी में रखा जाएगा।
कार्यक्रम के अंत में ७० उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को अतिथियों ने प्रमाणपत्र दिए। कार्यक्रम में खाद्य मंत्री पुन्नुराम मोहले, विधायक नंद कुमार साहू, महिला आयोग की हेमलता चन्द्राकर और भाजयुमो के अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव के साथ खेल विभाग के पूर्व आयुक्त राजीव श्रीवास्तव, सभी खेल संघों के पदाधिकारी और राज्य के पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ी बड़ी संख्या में मौजूद थे। कार्यक्रम का आगाज वंदेमातरम् से किया गया था।

सीनियर चैंपियनशिप भी खेल विभाग के हवाले

मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह ने कार्यक्रम में खेल मंत्री लता उसेंडी की मांग पर खेल विभाग को ही राज्य की सीनियर चैंपियनशिप करवाने की जिम्मेदारी दे दी और इसके लिए अलग से बजट देने की भी घोषणा की। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि खेल विभाग राज्य की सब जूनियर और जूनियर चैंपियनशिप का आयोजन करता है और खेल संघ लंबे समय से सीनियर चैंपियनशिप भी खेल विभाग द्वारा करवाए जाने की मांग कर रहे थे। इस मांग के पूर्ण होने पर सभी खेल संघों में हर्ष है और सभी ने मुख्यमंत्री के साथ खेल मंत्री का आभार माना है।

Read more...

सोमवार, नवंबर 16, 2009

खेलगढ़ पांच सैकड़ा पार, राजतंत्र तिहरे शतक के करीब

देखते ही देखते हमारे ब्लाग खेलगढ़ ने पोस्ट का पांच सैकड़ा पार कर लिया है। हमने ब्लाग जगत में इसी ब्लाग के माध्मय से फरवरी में कदम रखा था। तब से लेकर अब तक इस ब्लाग को कम पाठकों और नहीं के बराबर टिप्पणियों के बाद भी जिंदा रखा है। दूसरी तरफ हमारे दूसरे ब्लाग राजतंत्र में लिखने का सिलसिला यूं तो फरवरी में ही प्रारंभ कर दिया था, लेकिन इसमें नियमित लेखन अप्रैल से ही कर रहे हैं। इस ब्लाग को काफी कम समय में बहुत ज्यादा स्नेह और प्यार मिला है। इस ब्लाग में तिहरा शतक होने वाला है। अभी यह 280वीं पोस्ट है।

हम जब ब्लाग जगत में आए थे तब हमें भी नहीं मालूम था कि हम इसमें इतने ज्यादा रम जाएंगे। लेकिन इसका नशा ऐसा चढ़ा है कि शराब का भी नशा क्या होगा इसके सामने। आज हमारे ब्लाग खेलगढ़ में 500 से ज्यादा पोस्ट हो गई है। इस ब्लाग में रोज हम दो से ज्यादा पोस्ट देते हैं, इसके बाद भी एक दुखद पहलू यह है कि इस ब्लाग के पाठक कम हैं। लगता है कि खेलों को अपने ब्लाग जगत में ज्यादा पसंद नहीं किया जाता है। लेकिन इससे हमारे उत्साह में कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। हमारे इस ब्लाग को रोज जितने पाठक मिल रहे हैं उसी से हमें संतोष है। हमारे राज्य के खेल की खबरों को एक मंच देने का काम हमने किया है और इस ताउम्र जारी रखने का प्रयास रहेगा।

इधर हमारे दूसरे ब्लाग राजतंत्र को बहुत ज्यादा स्नेह, प्यार और दुलार मिला है। इसके लिए हम अपने ब्लागर मित्रों और सभी पाठकों के तहे दिल से आभारी हैं। हमारे इस ब्लाग में पोस्ट का तिहरा शतक संभवत: अगले माह तक पूरा हो जाएगा। लेकिन खेलगढ़ और राजतंत्र को मिलाकर 800 पोस्ट बस होने ही वाली है। यह आंकड़ा एक दो दिनों में पार हो जाएगा। खेलगढ़ में इस समय 514 पोस्ट और राजतंत्र में 280 पोस्ट हो गई है बस एक सिक्सर की दरकार है और यह सिक्सर हम दो दिनों में लगा ही देंगे।

Read more...

रविवार, नवंबर 15, 2009

क्या भीख मांगने की शिक्षा लेने स्कूल जाते हैं बच्चे

छत्तीसगढ़ की राजधानी के एक स्कूल लिटिल फ्लावर के बच्चों को इन दिनों घर-घर भीख मांगते देखा जा रहा है। आखिर ये स्कूली बच्चे भीख क्यों मांग रहे हैं? इसकी जानकारी लेने का प्रयास करने पर मालूम हुआ कि इन बच्चों को स्कूल से एक पाम्पलेट देकर फरमान जारी किया गया है कि कैंसर पीडि़तों के लिए पैसे जमा करने हैं। ये कैंसर पीडि़त भी कहां के? छत्तीसगढ़ के नहीं बल्कि उत्तर-प्रदेश के। अगर देश में बाढ़ या फिर किसी बड़ी बीमार से आपदा आई होती तब स्कूल की यह पहल एक बार समझ में आती, लेकिन बिना बड़ी आपदा के आखिर स्कूल ने ऐसा क्यों किया? यह जानने पर मालूम होता है कि ये तो स्कूल वालों का धंधा है जो बड़ी शान से ज्यादातर निजी स्कूलों में चलता है। इसमें कोई नई बात नहीं है। निजी स्कूलों ने बच्चों के पालकों को लूटने का धंधा बना रखा है, वहीं बात-बात पर बच्चों को भेज देते हैं भीख मांगने के लिए घर-घर। सोचने वाली बात यह है कि क्या हम लोगों के बच्चे स्कूलों में भीख मांगने की शिक्षा लेने जाते हैं। अगर किसी संस्था को कैंसर या भी किसी भी बीमारी से पीडि़त लोगों की मदद करनी है तो इसके लिए केन्द्र के साथ राज्य सरकारों की कमी नहीं है अपने देश में। इसी के साथ बड़े-बड़े उद्योगपति भी हैं अपने देश में, फिर स्कूली बच्चों का शोषण क्यों किया जा रहा है।

हम लोग जिस कालोनी दीनदयाल उपाध्यय नगर में रहते हैं वहां पर एक कोई छोटा-मोटा नहीं बल्कि एक बड़ा और नामी स्कूल लिटिल फ्लावर है। इस स्कूल के सभी क्लास के बच्चों जिसमें नर्सरी तक शामिल है को एक पाम्पलेट दिया गया है। यह पाम्पलेट लखनऊ की एक संस्था केयरिंग सोल्स फाऊंडेशन अवायरनेंस कम स्पोंसर फोरम का है। इस फार्म में जहां 50 नामों के लिए स्थान दिया गया है जिनमें पैसे देने वालों के नाम लिखवाने हैं, वहीं स्कूली बच्चों को इसमें यह भी लालच दिया गया है कि अगर आप 401 रुपए तक का चंदा लेकर आते हैं तो आपको एक स्वर्ण पदक दिया जाएगा, इसी तरह से 301 तक लाने पर रजत पदक और 201 रुपए लाने पर कांस्य पदक दिया जाएगा। इसी के साथ 35 रुपए से लेकर 200 तक लाने वाले छात्र-छात्राओं को भी अवार्ड देने की बात कही गई है। इस संस्था के बारे में स्कूली बच्चों को बताया गया है कि यह संस्था कैंसर पीडि़तों के लिए काम कर रही है।

संस्था अच्छा काम कर रही है इसमें कोई दो मत नहीं है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इसके लिए स्कूली बच्चों का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? संस्था अगर वास्तव में कैंसर पीडि़तों की मदद करना चाहती है तो उसे पहले तो अपने राज्य सरकार से ही मदद लेनी चाहिए। उप्र कम बड़ा राज्य नहीं है। हमें नहीं लगता है कि वहां पर कैंसर की इतनी गंभीर स्थिति है कि उसके लिए अपने राज्य से बाहर निकल कर दूसरे राज्यों में मदद मांगने की जरूरत है। अगर आप मदद मांगना ही चाहते हैं तो दूसरे राज्यों में पहले सरकारों का दरवाजा खटखटाएं। फिर देश भर में बड़े-बड़े उद्योगपतियों की कमी नहीं है। काफी दानदाता पड़े हैं मदद करने वाले। हमारा सिर्फ यह कहना है कि ऐसे कामों के लिए स्कूली बच्चों का शोषण क्यों किया जा रहा है।

यह तो महज एक उदाहरण है निजी स्कूलों के निक्कमेपन का। हर स्कूल में किसी ने किसी बहाने से जहां बच्चों के पालकों से पैसे मंगाए जाते हैं, वहीं बच्चों को किसी न किसी बहाने घर-घर भीख मांगने के लिए भेजा जाता है। क्या अब शिक्षा का स्तर यही रह गया है कि स्कूलों में अब बच्चों को भीख मांगने की शिक्षा दी जाने लगी है। ऐसा कृत्य करने वाले स्कूलों में तो ताले लगवा देने चाहिए। एक तो निजी स्कूलों की फीस ही बेलाम होती है, ऊपर से पालकों पर रोज-रोज कुछ न कुछ खर्चे लाद दिए जाते हैं। और अब यह कि बच्चों को भेजा जा रहा है भीख मांगने के लिए। एक तो बच्चों को होमवर्क ही इतना ज्यादा दिया जाता है कि बच्चों को खेलने के लिए भी समय नहीं मिल पाता है, ऊपर से यह सितम की आप उनको मजबूर कर रहे हैं कि घर-घर जाकर भीख मांगे और एक ऐसी संस्था के लिए चंदा लेकर आए जिसका वास्तव में कोई अस्तित्व है भी या नहीं यह कोई नहीं जानता है।

ज्यादातर ऐसी संस्थाएं महज कागजों में चलती हैं और इनका स्कूल वालों से अनुबंध रहता है कि जितना चंदा हुआ आधा तुम्हारा आधा हमारा। हमारा विरोध बस इतना है कि ऐसी किसी भी संस्था के लिए चाहे वह यथार्थ में हो या फिर कागजों में उसके लिए स्कूली बच्चों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। लेकिन क्या किया जाए अपने इस देश में हर काम के लिए स्कूली बच्चे ही नजर आते हैं। किसी नेता का कहीं कोई कार्यक्रम है तो खड़े कर दिए जाते हैं स्कूली बच्चे सड़कों पर लाइन से, फिर चाहे किसी बच्चे को तपती धूप में चक्कर आ जाए या फिर कोई बच्चा भूख और प्यास के मारे बेहोश हो जाए किसी का क्या जाता है।

Read more...

शनिवार, नवंबर 14, 2009

हिन्दी से हों मस्त-अंग्रेजी करे पस्त

अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी के बोलने से इंसान का दिमाग चुस्त-दुरुस्त रहता है और अगर आपको अंग्रेजी बोलने की बीमारी है तो मान कर चलिए कि आपका दिमाग हमेशा पस्त रहेगा। अरे अंग्रेजी बोलने वाले दोस्तों आप हम पर क्यों नाराज हो रहे हैं, भई ये हम नहीं कह रहे हैं यह तो एक शोध में साबित हुआ है कि हिन्दी मस्त करती हैं और अंग्रेजी बोलने से इंसान पस्त हो जाता है। वास्तव में यह बात ऐसे समय में सामने आई है जब हिन्दी को लेकर बवाल मचा है और अपनी इस राष्ट्रभाषा का लगातार अपमान हो रहा है। अब तो राष्ट्रभाषा का देश के एक सदन विधान सभा में भी अपमान हो गया है।

कल जब एक खबर पर नजरें पड़ीं तो अपने को हिन्दुस्तानी होने पर और ज्यादा गर्व हुआ। इसी के साथ इस बात पर और ज्यादा अभिमान हुआ कि यार चलो हम तो हिन्दी ही बोलते और लिखते हैं। दरअसल इस खबर में बताया गया है कि एक शोध में यह बात सामने आई है हिन्दी बोलने से दिमाग के दाएं और बाएं हिस्से सक्रिय रहते हैं। लेकिन यह बात अंग्रेजी के साथ लागू नहीं होती है। अंग्रेजी बोलने से दिमाग का केवल एक बाया हिस्सा ही सक्रिय होता है। राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र के इस शोध के बाद अब बिना वजह अंग्रेजी झाडऩे वालों को यह समझ लेना चाहिए कि वे हिन्दी से परहेज करके अपना ही नुकसान कर रहे हैं। अगर आपको हिन्दी बोलने में शर्म आती है तो अच्छा है आप शर्म ही करते रहे, पर एक दिन ऐसी शर्म करने के लिए आपका दिमाग की साथ देना बंद कर देगा तब करते रहना शर्म। अगर आप सच्चे हिन्दुस्तानी हैं तो फिर हिन्दी बोलने में शर्म कैैसी?
मनोज कुमार की फिल्म पूरब-पश्चिम का क्या वो गाना याद नहीं है

है प्रीति जहां की रीत सदा मैं गीत वहां के गाता हूं

भारत का रहने वाला हूं भारत का बात सुनाता हूं


अगर आप भारतीय हैं तो फिर अपने देश की राष्ट्रभाषा से प्रेम करें और गर्व के साथ हिन्दी बोले और अंग्रेजी को नमस्ते कर दें ताकि आपका दिमाग चुस्त और दुरुस्त रहे। अब इस शोध के बाद अपने राज ठाकरे को भी समझ लेना चाहिए कि वो हिन्दी का विरोध करके हिन्दी का नहीं अपने दिमाग का ही नुकसान कर रहे हैं। ऐसे लोगों को करने दें हम अपने दिमाग का कबाड़ा और देखते रहे तमाशा। जब ऐसे लोगों को अहसास होगा कि उन्होंने हिन्दी से किनारा करके कैसे अपने दिमाग के साथ खिलवाड़ किया है तब तक काफी देर हो चुकी होगी।

तो चलिए बोले जय हिन्दी, जय हिन्द, जय भारत, वंदेमातरम्

सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा

Read more...

शुक्रवार, नवंबर 13, 2009

टिप्पणियों का धमाल-ललित शर्मा का कमाल

हमने आज जब एक पोस्ट लिखी काश हम भी उडऩ टिप्पणी बन पाते तो इस पोस्ट पर अपने ब्लाग मित्र ललिल शर्मा ने एक अलग अंदाज में टॉस टेन टिप्पणी देने का धमाल किया। कैसे आप भी देखें

Read more...

काश हम भी उडऩ टिप्पणी बन पाते


सुबह हो या शाम या फिर रात का कोई भी पहर हो जब भी ब्लाग की दुनिया में जाते हैं और ब्लागों को खगालने का काम करते हैं तो एक नाम ऐसा है जो हर ब्लाग में नजर आ जाता है। आप समझ ही गए होंगे कि हम किनकी बात कर रहे हैं। ठीक समझे आप हम आदरणीय समीरलाल जी यानी उडऩ तश्तरी की ही बात कर रहे हैं। हम सोचते हैं कि यार काश हम भी समीरलाल जी की तरह उडऩ टिप्पणी बन पाते और हर ब्लाग में जाकर टिपियाते। लेकिन क्या करें यह कमबख्त समय ही ऐसा है कि हमें नसीब नहीं होता है। हमें लगता है जैसा हम सोचते हैं वैसा ही सभी ब्लागर सोचते होंगे कि काश वे भी इतना ज्यादा टिपिया पाते कि हर ब्लाग गुलशन टिप्पणियों से आबाद हो जाता।

हमें ब्लाग जगत में कदम रखे एक साल भी नहीं हुआ है और इस छोटे से समय में हमें एक नाम ऐसा लगा है जिन्होंने हर ब्लागर को प्रोत्साहित करने का काम किया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जब भी समय मिलता है और हम कम्प्यूटर पर बैठते हैं और नेट से नाता जोड़ते हैं तो सबसे पहला नाम जो किसी भी ब्लाग में नजर आता है वह उडऩ तश्तरी का होता है। चिट्ठा जगत में जब धड़ाधड़ टिप्पणी वाले कालम पर नजरें जाती हैं तो वहां भी लाइन से उडऩ तश्तरी का नाम नजर आता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि अगर ब्लाग जगत में कोई सबसे ज्यादा टिप्पणी करते हैं तो वे समीरलाल जी ही हैं। एक दिन हम ब्लागर अपने मित्र ललित शर्मा के साथ बैठे थे तो अचनाक टिप्पणियों पर बात निकली तो उन्होंने भी कहा कि यार ये बात समझ में नहीं आती हैं कि जब भी ब्लाग खोलो तो उसमें समीरलाल जी की टिप्पणी जरूर होती है। शर्मा जी कहते हैं कि यार ये अपने समीर लाल जी आखिर सोते कब हैं? इसी के साथ उन्होंने कहा कि इनको इतना समय कैसे मिल जाता है इतनी सारी टिप्पणियां करने के लिए।

बहरहाल जो भी है समीर लाल जी हर ब्लागर को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं, इसमें कोई दो मत नहीं है। अगर अपने ब्लाग जगत में और कुछ समीर लाल जी जैसे लोग हो जाए तो हिन्दी ब्लाग जगत बहुत ऊंचाईयों पर जा सकता है। हम भी सोचते हैं कि काश हम भी ऐसा कर पाते। जिस ब्लाग को खोलते हैं और पढऩे के लिए समय निकलते हैं उसके बाद सोचते हैं कि चलो इस पर तो टिप्पणी कर दी जाए, लेकिन क्या करें कमबख्त समय का। जब सोचते हैं कि कोई टिप्पणी कर दें तो पता चलता है कि प्रेस में मीटिंग में जाने का समय हो गया है। हमें कम्प्यूटर में एक तो सुबह का थोड़ा सा समय मिलता है, या फिर दोपहर को जब खाना खाने घर आते हैं या फिर रात के 12 बजे के बाद का थोड़ा सा समय। अब इतने कम समय में जितना हो सकता है लिखते और पढ़ते हैं साथ ही कोशिश करते हैं कि दो-चार टिप्पणियां अच्छे लेखों में चिपका दें। कई लेख इतने अच्छे होते हैं कि जब उन पर टिप्पणी करने का समय नहीं मिल पाता है तो दिन भर बेचैनी रहती है। कोशिश करते हैं कि उस लेख पर देर रात तक ही सही समय निकाल कर अपने विचार दे दें। कभी समय मिल जाता है तो खुशी होती है, नहीं मिलता है तो दुख होता है। अब वक्त के आगे किसकी चली है जो हमारी चलेगी।

ऐसे में सोचते हैं कि चलो यार एक दिन तो जरूर ऐसा वक्त आएगा जब हमारे पास समय ही समय होगा। यानी जब 60 के बाद कोई काम नहीं होगा तो ब्लाग जगत ही अपना सबसे बड़ा यार होगा। क्या सोचते हैं आप लोग ठीक बात है न।

Read more...

गुरुवार, नवंबर 12, 2009

राज ठाकरे को हिन्दी से नफरत क्यों?

यह बात समझ से परे हैं कि अपनी ही राष्ट्रभाषा हिन्दी से राज ठाकरे को आखिर इतनी नफरत क्यों हैं। अपनी क्षेत्रीय भाषा से कोई दीवानगी की हद तक भले प्यार करे लेकिन इसका यह मतलब तो कदापि नहीं होता है कि आप इसके एवज में राष्ट्रभाषा का लगातार अपमान करें। अगर अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान करना नहीं जानते हैं तो फिर आपका अपनी क्षेत्रीय भाषा के प्रति प्यार किस काम का। राज ठाकरे का मराठी प्रेम तो उसी तरह से है जैसा पाकिस्तान का अपना देश प्रेम है। पाक को जिस तरह से भारतीय हमेशा दुश्मन लगते हैं, उसी तरह से राज ठाकरे तो भी हिन्दी हमेशा से दुश्मन ही लगी है। अगर ठाकरे ने ऐसा ही प्यार हिन्दी के प्रति दिखाया होता और अंग्रेजी से नफरत करते तो उनका मान पूरे देश में होता। अब भी समय है उनको अपना रास्ता बदलकर हिन्दी का विरोध करने की बजाए अंग्रेजी का विरोध करना चाहिए।

इन दिनों पूरे देश में राज ठाकरे के मनसे विधायकों द्वारा विधानसभा में किए गए कृत्य पर बवाल मचा हुआ है। यह सोचने वाली ही नहीं बल्कि एक गंभीर बात है कि राज ठाकरे की पार्टी ये क्या कर रही है। क्यों कर हिन्दी का इतना ज्यादा विरोध किया जा रहा है। जिस अंग्रेजी भाषा का विरोध होना चाहिए, उसका विरोध करने की हिम्मत क्यों नहीं दिखा रहे हैं मनसे के लोग? हिन्दी तो अपनी राष्ट्रभाषा है फिर उससे आखिर इतनी नफरत क्यों? क्या महाराष्ट्र को एक तरह से राज ठाकरे ने पाकिस्तान बना दिया है कि यहां कोई हिन्दू कदम नहीं रख सकता है। अगर कोई कदम रखेगा तो उसका सर कलम कर दिया जाएगा। इतनी नफरत तो पाकिस्तान में भी हिन्दूओं के प्रति नहीं है जितनी नफरत मनसे में हिन्दी के प्रति नजर आती है। हिन्दी से नफरत करके आखिर क्या साबित करना चाहते हैं मनसे के लोग। क्या महाराष्ट्र को देश से अलग करने की साजिश की जा रही है? अगर नहीं तो फिर हिन्दी के प्रति यह रवैय्या क्यों है? इसका जवाब किसके पास है।

अपनी क्षेत्रीय भाषा से आप बेशक प्यार नहीं बल्कि दीवानगी की हद तक प्यार करें। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं होना चाहिए कि आप अपनी राष्ट्रभाषा का ही अपमान करते रहे। अगर आप राष्ट्रभाषा का अपमान कर रहे हैं तो फिर वंदेमातरम् का विरोध करने वालों और आप में क्या फर्क रह जाता है। फिर तो वंदेमातरम् का विरोध भी सही माना जाना चाहिए। जिस तरह से मनसे के लोगों को हिन्दी से कोई मतलब नहीं है वैसे ही मुस्लिम कौम के कुछ लोगों को वंदेमातरम् से मतलब नहीं है। ऐसे में तो एक दिन हर कोई देश की अस्मत से खिलवाड़ करने लगेगा और अपना-अपना राग अलापेगा कि उसे यह पसंद नहीं है। क्या देश की राष्ट्रभाषा, राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत अब लोगों की पसंद पर निर्भर रहेंगे? देश की अस्मत से खिलवाड़ करने वालों को बर्दाश्त करना जायज नहीं है।

अपने मनसे के लोग तो देश के संविधान और कानून से ऊपर हो गए हैं। एक तरफ राष्ट्रभाषा का अपमान करने के बाद उनके माथे पर शिकन नहीं है तो दूसरी तरफ खुले आम ऐलान किया जाता है कि अबू आजमी की सड़क पर पिटाई की जाएगी। क्या अपने देश का कानून इतना ज्यादा नपुंशक हो गया है कि खुले आम चुनौती देने वालों के खिलाफ भी कुछ नहीं किया जा सकता है। अगर यही हाल रहा तो देश में जो थोड़ा बहुत कानून बचा है, उसका भी अंत हो जाएगा और देश को अराजक होने से कोई नहीं बचा पाएगा।

Read more...

बुधवार, नवंबर 11, 2009

कैमरे में कैद मोहब्बत के ये अनोखे पल







इंसान ही नहीं जानवर भी प्यार-मोहब्बत का भूख होता है। रायपुर में चल रहे एक स्कूली लॉन टेनिस में जैसे ही एक छोटी सी खिलाड़ी के पास यह बिल्ली मैदान में आकर बैठी, वह खिलाड़ी बिल्ली को दुलारे बिना नहीं रह सकी। इन मोहब्बत के पलों को कैमरे में कैद करने का काम हमारे फोटोग्राफर संतोष साहू ने किया है। इन तस्वीरों के लिए हम उनके आभारी हैं।

Read more...

मंगलवार, नवंबर 10, 2009

सांस्कृतिक कार्यक्रमों का वीआईपी करण


छत्तीसगढ़ में राज्योत्सव का कार्यक्रम रखा तो आम जनता के नाम से जाता है, पर सोचने वाली बात यह है कि इस करोड़ों के आयोजन से आम जनता को क्या मिल पाता है। इस बार तो सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी ऐसा वीआईपी करण किया गया कि आम जनता को अपने चहेते कलाकारों को ठीक से देखना भी नसीब नहीं हुआ। जब जनता को कुछ देखने को मिलना नहीं है तो फिर ऐसे कार्यक्रमों में जनता को बुलाने की भी क्या जरूरत है? साफ-साफ फरमान ही जारी कर दिया जाता कि यह बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम केवल वीआईपी के लिए हैं, आम जनता के लिए वो छोटे कार्यक्रम हैं जो छोटे मंच पर हो रहे हैं। वैसे कलाकारों को भी सांस्कृतिक विभाग ने छोटे और बड़े में बांट रखा था।

अपने प्रदेश का राज्योत्सव निपट गया, पर इस बार यह एक नहीं कई सवाल छोड़ गया। इस बार सबसे ज्यादा यह बात खली कि अपने सांस्कृतिक विभाग ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों का पूरी तरह से वीआईपी करण कर दिया था, इसी के साथ इन कार्यक्रमों में छोटे-बड़े की खाई भी पैदा कर दी। प्रदेश के कलाकारों को निरीह और छोटा समझते हुए उनके लिए राज्योत्सव के अंदर स्टालों वाले पंडालों में एक मंच बनाया गया जहां पर आम जनों के लिए बैठने की व्यवस्था करके उन पर एक अहसान किया गया। उधर राज्योत्सव के सामने एक बड़े से मैदान में बड़ा का मंच भैरवदेव की आकृति वाला बनाया गया। अब मंच बड़ा था तो वहां कलाकार भी बड़े ही आने थे। इस मंच के लिए बॉलीबुड के ही कलाकारों को आमंत्रित किया गया। इनको आमंत्रित किया गया और इसके लिए इनकी गरिमा के हिसाब से बड़ा मंच बनाया गया वहां तक तो बात ठीक थी, पर इनका कार्यक्रम देखने के लिए जो मापदंड़ तय किए गए वह मापदंड़ हर उस आम आदमी को खल गए जो बॉडीबुड के कलाकारों का चाहने वाला है और उनको करीब से देखने की तमन्ना रखता है।

छत्तीसगढ़ की आम जनता के लिए राज्योत्सव में यही तो एक सौगात होती है कि उनको कई बड़े कलाकारों को मुफ्त में देखने का मौका मिलता है, लेकिन इस बार तो आम जनों से यह मौका भी छीन लिया गया। पूरे कार्यक्रम का इस तरह से वीआईपी करण किया गया कि जिसकी कोई सीमा नहीं है। इस वीआईपी करण में भी यह किया गया कि जिनको पास दिए गए उनको भी अंदर नहीं जाने दिया गया। महज सरकारी अधिकारियों को छोड़कर और कोई वीआईपी था ही नहीं। सबसे बुरी स्थिति उस मीडिया की भी रही जिसे देश का चौथा स्तंभ कहा जाता है। मीडिया वालों को भी कार्यक्रम में जाने के लिए पास होने के बाद भारी मशक्कत करनी पड़ी। मीडिया के लिए प्रेस लिखकर जो रास्ता बनाया गया था और जहां पर मीडिया के लिए अहसान करने के लिए एक मंच जैसा बनाया गया था, उस रास्ते में किसी को भी जाने की छूट थी। अब मीडिया कोई वीआईपी थोड़े होते है। अगर सरकार कोई आयोजन कर रही है तो मीडिया तो सरकारी नौकर है उसको तो उस कार्यक्रम को कवर करना ही है, अगर कार्यक्रम कवर नहीं हुआ तो समझो गया आपका विज्ञापन।


इधर आम जनों के लिए वैसे ही व्यवस्था थी जैसे होनी चाहिए। यानी आप दूर खड़े होकर ही कार्यक्रम बन सुन सकते हैं देख नहीं सकते हैं। क्योंकि देखने का अधिकार आपका है ही नहीं। अरे भई जब सरकारी खर्च में सारा आयोजन हो रहा है तो उसका लुफ्त भी तो सरकारी लोग ही उठा सकते हैं, आम जनों की क्या मजाल की कोई आवाज कर दे कोई आवाज करेगा तो उसके लिए पुलिस का डंडा है न वह कब काम आएगा। अब हम इस पुलिस के डंडे की बात यहां पर नहीं अपने एक साझा ब्लाग चर्चा पान की दुकान पर करेंगे कि क्या आम जनता डंडे खाने के लिए हैं? एक नजर यहां पर भी फरमाए।

Read more...

सोमवार, नवंबर 09, 2009

क्या इस्लाम में 15 निकाह भी जायज है?

आज अचानक एक खबर पर नजर पड़ी कि उप्र के ज्योतिफूले नगर के एक जनाब अब्दुल वहीद ने 1960 से लेकर पिछले साल तक 15 निकाह किए और वो भी महज इसलिए कि उनको किसी बीबी से औलाद नसीब नहीं हो रही थी। एक तो यह सोचने वाली बात है कि क्या किसी को इस्लाम 15 निकाह करने की इजाजत देता है? नहीं देता है तो फिर ऐसे काफिर के खिलाफ कोई फतवा जारी करने की हिम्मत कोई क्यों नहीं करता। दूसरी बात यह कि क्या उन जनाब को यह बात मालूम नहीं थी कि बच्चा पैदा करने की क्षमता होने पर ही तो बच्चा होता। यह तो अपने को मर्द साबित करने की एक घिनौनी हरकत के सिवाए कुछ नहीं है। क्या ऐसे गुनाहगार के लिए इस्लाम में कोई सजा नहीं है। क्या ऐसे इंसान को बर्दाश्त करना इस्लाम सिखाता है?

अब्दुल साहब ने पहली बार 1960 में डिडौली इलाके के सहसपुर की नफीसा से निकाह किया। नफीसा के इंतकाल के बाद 18 बीघा जमीन के स्वामी अब्दुल साहब ने 1965 में हया से निकाह किया। इनसे निकाह के 7 साल बाद भी औलाद न होने पर जनाब ने 1972 में तीसरा निकाह बिहार की कुलसुम से किया। लेकिन दो साल बाद भी औलाद की चाह पूरी न होने पर 1974 में चौथा निकाह निशा फातिमा के किया। इसके बाद 77 में सकीना, 80 में परवीन, 83 में शहनाज,89 में जलीना, 94 में नूरजहां, 95 में दिलबरी, 98 में आसमीन, 2001 में हूरबानो और 2008 में फरजाना से निकाह किया। 15 निकाह के बाद भी इन जनाब को कोई औलाद नहीं हुई। 66 साल के हो चुके इस जनाब ने जो कारनामा किया है, उसके लिए इस्लाम में क्या कोई सजा नहीं है? क्या इस्लाम को मनाने वालों को यह बात मालूम नहीं है कि औलाद पैदा करने की क्षमता मर्द में होती है। अगर इन जनाब में क्षमता होती तो क्या किसी भी औरत से बच्चा नहीं होता। इन्होंने जिन 15 औरतों से निकाह किया, वे सबकी सब तो बांझ नहीं हो सकती है। ऐसे में यह बात साफ लगती है कि अपने जनाब अब्दुल साहब ने कोई औलाद की खातिर नहीं बल्कि अपनी हवस की खातिर 15 औरतों का इस्तेमाल किया।

औरतों की बहुत ज्यादा इज्जत करने की बात इस्लाम में की जाती है, क्या ऐसे ही इज्जत की जाती है? क्या ऐसा घिनौना काम करने वाले अब्दुल वहीद के खिलाफ कोई फतवा जारी करने की हिम्मत किसी में नहीं है। वंदेमातरम के खिलाफ तो फतवा जारी हो सकता है, लेकिन 15 जिंदगियां तबाह करने वाले अब्दुल के खिलाफ कोई फतवा जारी नहीं हो सकता है। क्या इस्लाम इतने ज्यादा निकाह की इजाजात देता है? नहीं तो फिर क्यों नहीं ऐसे इंसान के खिलाफ कोई सजा देने का काम करते हैं इस्लाम के चाहने वाले।

इसका जवाब है किसी के पास, कि अब्दुल वहीद के खिलाफ क्या करेंगे इस्लाम के चाहने वाले?

Read more...

बैटन ९ अगस्त को आएगी छत्तीसगढ़

दिल्ली में २०१० में होने वाले कामनवेल्थ खेलों की मशाल यानी बैटन का छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ९ अगस्त को आगमन होगा। यह मशाल प्रदेश में चार दिनों तक रहेगी। इस मशाल के स्वागत की तैयारी करने के लिए प्रदेश के खेल विभाग को कहा गया है।

दिल्ली में कामनवेल्थ खेल अगले साल अक्टूबर में होंगे। इन खेलों में भाग लेने वाले ७० देशों में बैटन की रैली हो रही है। मशाल रैली का आगाज लंदन से २९ अक्टूबर को हो चुका है। अब यह बैटन सबसे पहले उन सभी देशों की यात्रा करेगी जो देश कामनवेल्थ में शामिल हैं। इन ७० देशों की २७० दिनों में एक लाख ७० हजार किलो मीटर की यात्रा यह बैटन करेगी। इस यात्रा का अंतिम पड़ाव भारत होगा। भारत में बैटन का प्रवेश बाघा बॉर्डर से २५ जून को होगा। यहां आने के बाद बैटन का भारत भ्रमण प्रारंभ होगा। भारत में यह बैटन हर राज्य में भेजी जाएगी। भारत में बैटन १०० दिनों में २० हजार किलो मीटर की यात्रा करेगी।

बैटन का छत्तीसगढ़ में ९ अस्गत को आगमन होगा। संबलपुर से बैटन दोपहर को एक बजे रायपुर आएगी।। रायपुर में बैटन ९ अगस्त को रहने के बाद १० अगस्त को राजधानी में इसकी एक विशाल रैली निकाली जाएगी और यह रैली पूरी राजधानी का भ्रमण करेगी। इस रैली की तैयारी का जिम्मा खेल एवं युवा कल्याण विभाग को दिया गया है।



रैली के लिए विभाग अंतरराष्ट्रीय के साथ राष्ट्रीय खिलाडिय़ों की भी मदद लेगा। इसकी रूपरेखा तैयार करने का काम फिलहाल प्रारंभ नहीं किया गया है। खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि वैसे उन सभी जिलों को पत्र लिख दिए गए हैं जहां से यह बैटन जाएगी।



११ अगस्त को यह बैटन रायपुर से २ बजे जगदलपुर के लिए रवाना होगी। वहां पहुंचने के बाद अगले दिन शहर भ्रमण के बाद यह बैटन भोपालपट्नम के लिए रवाना होगी। बैटन का अंतिम पड़ाव दिल्ली होगा। दिल्ली में बैटन का प्रवेश कुरूक्षेत्र से ३० सितंबर को हो जाएगा। इसके बाद बैटन दिल्ली का भ्रमण करेगी। दिल्ली में नार्थ, ईस्ट, और सेंटर में भ्रमण के बाद यह बैटन ३ अक्टूबर को उस स्टेडियम में जाएगी जहां कामनवेल्थ खेलों का प्रारंभ होगा।

Read more...

रविवार, नवंबर 08, 2009

जिंदा कुत्ते की मौत का सीधा प्रसारण

हमारे देश में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए न्यूज चैनलों के पास खबरों का ऐसा टोटा है कि उनके लिए कोई भी खबर सीधे प्रसारण के लायक हो जाती है। सड़क पर कोई कुत्ता सोया पड़ा है तो उसे मरा समङा कर ही कोई न्यूज चैनल उसका सीधा प्रसारण कैसे कर सकता है, इसका एक नमूना एक हास्य कलाकार के मुंह से सुनने को मिला। वास्तव में यह एक दुखद पहलू है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले कुछ भी दिखाने का काम करने लगे हैं।

छत्तीसगढ़ में इन दिनों राज्योत्सव की धूम मची हुई है। ऐसे में यहां पर कई कलाकार अपनी प्रस्तुति देने में लगे हैं। ऐसे की एक कार्यक्रम में एक हास्य कलाकार राजू निगम ने अपनी कल्पना शीलता का परिचय देते हुए बताया बताया कि कैसे न्यूज चैनल ने सड़क पर सोए हुए कुत्ते को मरा हुआ समझकर उसका सीधा प्रसारण कर दिया।

इसमें बताया गया कि न्यूज रूम की रीडर बताती है कि अभी-अभी खबर मिली है कि हरियाणा की एक सड़क पर एक कुत्ते की दुखद मौत हो गई है। इसके बारे में जानकारी लेने हम सीधे चलते हैं अपने संवाददाता मनीष के पास।

हां तो मनीष बताएं कि यह घटना कैसे हुई।

मनीष- नेहा घटना के बारे में तो कोई जानकारी नहीं मिल पाई है कि कुत्ते की मौत कैसे हुई है, लेकिन इस कुत्ते को किसी सज्जन ने यहां पर काफी समय से पड़े देखा तो हमें खबर की है।

तभी कुत्ते के भौकने की जोर-जोर से आवाजें आने लगती हैं।

न्यूज रीडर , संवादताता से पूछती हैं- लगता है मनीष कुत्ते के रिश्तेदार आ गए हैं।

उधर से मनीष की कोई आवाज नहीं आती है

न्यूज रीडर बार-बार पूछती हैं- मनीष क्या कुत्ते के रिश्तेदार आ गए हैं।

काफी देर बाद मनीष हांफते हुए बताते हैं- नेहा कुत्ते के रिश्तेदार नहीं आए हैं बल्कि मरा हुआ कुत्ता उठ गया है मुझे ही दौड़ा रहा है।

यह एक नमूना है कि कैसे खबरों के लालच में न्यूज चैनल वाले एक जिंदा कुत्ते तक को मरा हुआ समझ कर उसका सीधा प्रसारण करने से बाज नहीं आते हैं। वैसे ऐसा कोई प्रसारण किसी न्यूज चैनल से अब तक तो नहीं हुआ है और यह तो हास्य कलाकार की कल्पना है। लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं है कि यह कल्पना कभी भी साकार हो सकती है।

Read more...

शनिवार, नवंबर 07, 2009

कपूतों के वंदेमारतम् न बोलने से फर्क नहीं पड़ता भारत माता को

उसको नहीं देखा हमने कभी
पर इसकी जरूरत क्या होगी
ऐ मां तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी

बरसों पुराना यह गाना आज हमें याद आ रहा है। हमें यह तो याद नहीं है कि इस गीत के गीतकार कौन हैं। पर इतना जरूर है कि इस गीत के बाद कोई भी इंसान इस बात को आसानी से समझ सकता है कि इस दुनिया में मां का दर्जा किसी भी सूरत में भगवान से कम नहीं होता है। इस दुनिया में जो इंसान मां की कद्र नहीं करता है, उससे बड़ा पापी इस दुनिया में हो ही नहीं सकता है। आपने अगर अपनी मां का अपमान किया तो इसका मलतब है कि आपने भगवान का अनादार किया। लेकिन यह बात उन लोगों के समझ में कैसे आ सकती है जो अपनी जननी के सामने कभी सिर झुकाना भी गंवारा नहीं करते हैं। ऐसे इंसानों से यह कैसे उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे भारत मां की कद्र करेंगे और उसके सामने सिर झुकाने का काम करेंगे। अब ऐसे देशद्रोहियों को अपने देश में बर्दाश्त किया जा रहा है तो यह अपनी सरकार के निक्कमेपन और उसकी नपुंसकता का परिचायक है।

आपने ठीक समझा हम भी उसी वंदेमारतम् की बात कर रहे हैं जिसको लेकर बिना वजह विवाद खड़ा किया गया है। वंदेमारतम् को लेकर विवाद खड़ा करने का काम चंद लोग कर रहे हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पूरी मुस्लिम कौम वंदेमारतम् के खिलाफ नहीं है। लेकिन कुछ लोग बिना वजह राजनीति करने का काम कर रहे हैं। ऐसा करने वाले निश्चित ही देशद्रोही की श्रेणी में आते हैं। वंदेमारतम् का विरोध करने वालों का तर्क बड़ा हास्याप्रद है कि जब वे अपने को जन्म देने वाली मां के सामने ही सजदा नहीं करते हैं तो फिर उनके लिए भारत मां क्या चीज हैं। ठीक फरमाते हैं वो लोग जिनको अपनी उस मां की कद्र नहीं है जिनकी बदौलत में वे इस दुनिया में सांस ले रहे हैं तो फिर भारत मां उनके लिए क्या चीज है। जिनको उन लोगों ने न कभी देखा है न कभी महसूस किया है।

एक कहावत है कि मानो तो देवता न मानो तो पत्थर। अब धरती को हम हिन्दुस्तानी अगर अपनी मां समझते हैं तो इसका यह मतलब थोड़े है कि यहां रहने वाले मुसलमान भी उसे मां समझे। जिस मां की कोख से ये जन्म लेते हैं उसके लिए भी इनके मन में जब प्यार नहीं है तो क्यों कर इनसे उम्मीद की जाए कि वे अपनी भारत मां से प्यार कर सकते हैं। इनको किससे प्यार है सब जानते हैं। शायद ये अल्ला के बंदे भूल गए हैं कि अगर उनका अल्ला नहीं चाहता तो वे इस दुनिया में पैदा भी नहीं होते। अल्ला के करम से ही उनको इस दुनिया में आने का मौका मिला है, और यह मौका उनको अपनी मां के माध्यम से ही मिला है, तो फिर पहले कौन बड़ा मां या अल्ला? अगर इतनी सी बात इनके समझ में आ जाती तो ये कभी इस बात का विरोध नहीं करते की वंदेमारतम् नहीं बालेंगे।

वैसे ऐसे कपूतों के वंदेमारतम् नहीं बोलने से हमारी भारत माता को कोई फर्क नहीं पडऩे वाला है। वैसे भी हर मां के सारे बेटे सपूत नहीं होते हैं। कुछ कपूत भी होते हैं और कोई भी मां ऐसे कपूतों की बातों का मलाल नहीं करती हैं। सो भारत माता को भी ऐसे कपूतों की बातों का मलाल नहीं होगा।

लेकिन यहां पर तरसा आता है अपने देश की उस निक्कमी सरकार पर जो अपने देश में रहने वाले ऐसे देशद्रोहियों को बर्दाश्त करती है। वास्तव में हमारे देश के नेता वोट की राजनीति में इतने अंधे हो गए हैं वो अपनी मां का अपमान भी बर्दाश्त करने को तैयार है। वैसे नेताओं से उम्मीद करना बेमानी है क्योंकि ये तो खुद भारत मां को बेचने से पीछे नहीं हटते हैं। तो ये क्या कहेंगे और क्या करेंगे।

भारत मां के अपमान का दर्द तो हम हिन्दुस्तानियों को होता है, क्योंकि हम लोगों की नजरों में ही भारत मां है बाकी नेताओं की नजरों में इसे मां समझना उसी तरह से गलत है जैसे वंदेमारतम् का विरोध करने वालों की नजरों में। वंदेमारतम् का विरोध करने वालों और अपने नेताओं में ज्यादा फर्क नहीं है। अपने नेताओं में बस दम नहीं है, लेकिन उनमें दम है इसलिए वे खुलकर अपने देश में रहते हुए ही अपने देश की खिलाफत करने का काम करते हैं। अब ऐसे देशद्रोहियों के साथ क्या होना चाहिए इसका फैसला सरकार पर छोडऩे से कुछ नहीं होने वाला है, इसके लिए हिन्दुस्तानियों को ही जागरूक होना पड़ेगा। आज वंदेमारतम् का विरोध किया जा रहा है, कल किसी और बात का विरोध होगा, फिर किसी और बात का और एक दिन ऐसा आएगा कि यहां के हिन्दुओं का विरोध होगा और कहा जाएगा कि आपके लिए यह देश नहीं है, आप यहां से जा सकते हैं। या फिर हम लोग उसी तरह से गुलाम हो जाएंगे जैसे बरसों पहले अंग्रेजों के गुलाम थे। अब इससे पहले की ऐसी कोई नौबात आए जाग जाना चाहिए हिन्दुस्तानियों को। नहीं जागे तो एक बार फिर से गुलाम बनने को तैयार रहे क्योंकि भारत को गुलाम बनाने की साजिश ही तो चल रही है।

Read more...

शुक्रवार, नवंबर 06, 2009

मृतकों का जन्म दिनों क्यों मनाते हैं?

हमारे एक मित्र ने अचानक एक सवाल किया कि यार यह बात समझ नहीं आती है कि लोग मृतकों का जन्म दिन क्यों मनाते हैं। उनके इस सवाल के बाद हम भी सोचने पर मजबूर हो गए हैं, कि वास्तव में जहां अपने देश में आधी से ज्यादा आबादी भूखी और नंगी है और लोगों के पास न तो खाने के लिए पैसे हैं और न तन ढ़कने के लिए कपड़े हैं, उस देश में बड़े-बड़े लोगों के जन्मदिन मरने के बाद भी क्यों मनाए जाते हैं। कुछ बड़े लोगों के जन्म दिन का जरूर यह फायदा हो जाता है, कि उस दिन गरीबों को कपड़े बांटे जाते हैं और खाना खिलाया जाता है, पर कितने लोग ऐसा करते हैं।

देश के नेताओं के साथ बड़े लोगों का जन्म दिन मनाने की परंपरा आखिर क्यों है? यही हम भी अपने ब्लाग बिरादरी से जानना चाहते हैं। मृतकों का जन्म दिन मनाने से क्या फायदा है?

Read more...

असम विधानसभा उपाध्यक्ष के हिन्दी प्रेम को सलाम


छत्तीसगढ़ के साइंस कॉलेज के मैदान में 50 हजार से ज्यादा की भीड़ है और ऐसे माहौल में मंच में आई असम विधानसभा की उपाध्यक्ष पणिती पोकन को जब बोलने के लिए माइक दिया जाता है तो वह जैसे ही अपना उद्बोधन में हिन्दी में देती है, भीड़ तालियां बजाने के लिए मजबूर हो जाती है। यह तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि असम की एक महिला इतनी अच्छी हिन्दी बोल सकती है। वास्तव में हमें गर्व हैं हिन्दी से प्रेम करने वाले ऐसे अहिन्दी भाषीय राज्यों के लोगों से जिनको हिन्दी बोलने में शर्म नहीं बल्कि गर्व महसूस होता है।


छत्तीसगढ़ की घरा पर इन दिनों राज्योत्सव की धूम मची है। हर तरफ खुशहाली का मौहाल है। ऐसे माहौल में अचानक असम की विधानसभा उपाध्यक्ष पणिती पोकन का रायपुर आना हुआ तो उनको राज्योत्सव के कार्यक्रम में आमंत्रित किया। यहां पर उनको जब बोलने के लिए माइक थमाया गया तो सबको लगा कि यार यह तो जरूर अंग्रेजी में बोलेंगी। लेकिन उन्होंने जैसे ही हिन्दी में बोलना प्रारंभ किया। करीब 50 हजार से भी ज्यादा की भीड़ तालियां बजाए बिना नहीं रह सकी। पणिती को हिन्दी बोलते देखकर अगथा संगमा की याद आ गई जिन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने पर मंत्री पद की शपथ हिन्दी में ली थी। एक तरफ हिन्दी भाषीय राज्यों के लोग हिन्दी बोलने में शर्म महसूस करते हैं तो दूसरी तरफ अहिन्दी भाषीय राज्यों के पणिती और अगाथा संगमा जैसे लोग हैं जिनको हिन्दी बोलने में गर्व महूसस होता है। ऐसे लोगों को हम सलाम करते हैं।

Read more...

गुरुवार, नवंबर 05, 2009

ब्रेड में है जहर


अपने देश में ही नहीं बल्कि पूरी विश्व में ब्रेड एक ऐसी चीज है जिसे सब पसंद करते हैं और इसे सुबह-शाम बड़े चाव से खाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस ब्रेड के साथ आपके शरीर में एक धीमा जहर भी जाता है। एक खबर के मुताबिक कम से कम भारत में बनने वाली ब्रेड तो जहरीली ही है। इस ब्रेड में पोटेशियम ब्रोमेट का उपयोग होता है जिसके कारण ब्रेड जहरीली हो जाती है। पोटेशियम ब्रोमेट कई देशों में प्रतिबंधित है, पर भारत में इसको ब्रेड में मिलाने से रोकने वाला कोई ऐसा नहीं है। ऐसे में ब्रेड का उपयोग करने वाले रोज धीमा जहर खा रहे हैं। ब्रेड बनाने वाली एक कंपनी से खुद से पहले करते हुए पोटेशियम ब्रोमेट पर प्रतिबंध लगा दिया है, पर सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हो रही है।

भारत में बनने वाली ब्रेड में पोटेशियम ब्रोमेट का मिलना आम बात है। इसको ब्रेड में इसलिए मिलाया जाता है, क्योंकि इसके मिलाने से ब्रेड जहां अच्छी तरह से फूलती है, वहीं उसमें सफेदी भी आ जाती है। ऐसे में ब्रेड बनाने वाली कंपनियों इस पोटेशियम ब्रोमेट की बेतहासा मात्रा का प्रयोग ब्रेड में करती हैं। ब्रेड में जितनी ज्यादा पोटेशियम ब्रोमेट की मात्रा होगी, वह ब्रेड उतनी ही ज्यादा घातक और जहरीली होगी। लेकिन इससे ब्रेड बनाने वाली कंपिनयों को क्या लेना-देना उनको तो अपने उत्पाद बेचने हैं ऐसे में उनके उत्पाद से कोई मर भी जाए तो क्या है। हालांकि अब तक अपने देश में ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया कि ब्रेड खाने से कोई मर गया हो। लेकिन कभी भी ऐसे मामले सामने आने में देर नहीं लगेगी अगर इस धीमे जहर के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा गया।

जिस पोटेशियम ब्रोमेट को बिना रोक-टोक अपने देश में ब्रेड के साथ और कई पदार्थों में मिलाया जाता है, उस पर यूरोप में तो 1990 में ही प्रतिबंध लगा दिया गया था, इसी के साथ 1991 में इस पर अमरीका में भी पाबंदी लगा दी गई, कनाडा में 1994 में, श्रीलंका में 2001 में और चीन में 2005 में इस पर प्रतिबंध लगाया गया। इसी के साथ नाइजीरिया, ब्राजील, और पेरू में इस पर प्रतिबंध है, लेकिन भारत में आज तक इस पर प्रतिबंध लगाने की पहल सरकार ने तो नहीं की है, पर भारत में ब्रेड बनाने वाली एक कंपनी हिन्दुस्तान यूनीलीवर ने जरूर अपनी ब्रेड में पोटेशियम ब्रोमेट के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब इस कंपनी की देश की सभी छह मॉर्डन बेकरियों में अपने उत्पाद में दिसंबर से पोटेशियम ब्रोमेट का उपयोग नहीं होगा। इस कंपनी की पहल अच्छी है। अब दूसरी कंपनियों को भी इसका अनुशरण करना चाहिए, अगर ऐसा नहीं किया गया तो जरूर भारत में कभी भी कोई बड़ा गंभीर हादसा हो सकता है।

Read more...

बुधवार, नवंबर 04, 2009

झारखंड-उप्र के तीर लगे पदकों पर


मेजबान छत्तीसगढ़ का कोई भी तीरंदाज पदक तक नहीं पहुंच सका और मेजबान की झोली राष्ट्रीय तीरंदाजी के इंडियन राऊंड में खाली रही। टीम चैंपियनशिप में बालक वर्ग का खिताब उप्र के खाते में तो बालिकाओं का नए राज्य झारखंड के खाते में गया। बालिका वर्ग के व्यक्तिगत मुकाबलों में भी स्वर्ण झारखंड के खाते में आया।

स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स में चल रही इस स्पर्धा में इंडियन राऊंड के नतीजे सामने आ गए हैं और मेजबान छत्तीसगढ़ का एक भी तीरंदाज पदक के आस-पास भी नहीं पहुंच सका। प्रदेश तीरंदाजी संघ इस बात का दावा करने से नहीं थक रहा है कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद तीरंदाजों की संख्या में बेतहासा वृद्धि हुई है और प्रदेश में जहां पहले महज १०० तीरंदाज थे, वहीं अब १००० हजार तीरंदाज हो गए हैं। लेकिन इन एक हजार तीरंदाजों में एक भी तीरंदाज पदक पर निशाने लगाने वाला नहीं है।

इंडियन राऊंड में जो टीम मुकाबले खेले गए उनमें बालक वर्ग में उप्र की टीम ने १९२३ अंकों के साथ स्वर्ण पर कब्जा जमाया। विजेता टीम में ललित, अविनाश, सोमेन्द और चमन थे। रजत पदक एसएससीबी के हाथ लगा। इस टीम के खिलाडिय़ों एन। पी सिंह, एन. हरजीत सिंह, ई. बिनोद कुमार और हरजीत सिंह ने १९१० अंक जुटाए। कांस्य पदक चंडीगढ़ ने जीता। इस टीम ने १८७२ अंक बनाए। इस टीम में विनय कुमार, सुमित कौशिक, मोहित यादव और नवीन सैनी थे।


बालिका वर्ग में झारखंड की चौकड़ी तुलसी हेमारकाम, लक्ष्मी, सुनीता रानी और ममता टुडू ने १८१२ अंकों के साथ स्वर्ण जीता। रजत जीतने वाली मणिपुर की टीम ने १७८९ अंक बनाए। इस टीम में सोनिया देवी, निर्मला देवी, अरूणा देवी और बेमचो देवी थीं। कांस्य पदक असम के खाते में गया। इस टीम की चौकड़ी बी. बासुमती, पालारी बोरो, चन्द्रिका औप क्रिस्टीना मेघी ने १७५७ अंक बनाए।

व्यक्तिगत मुकाबलों में बालिका वर्ग के ४० मीटर में झारखंड की तुलसी हेमारकाम ने ३६० में से ३१७ अंक लेकर स्वर्ण जीता। रजत पदक जीतने वाली कर्नाटक की ललिता शरेल ने ३१६ और कांस्य विजेता मणिपुर की सोनिया देवी ने ३१३ अंक बनाए। ३० मीटर में मणिपुर की निर्मला देवी ने ३१३ अंकों के साथ स्वर्ण, ङाारखंड की तुलसी ने ३१२ अंकों के साथ रजत और कर्नाटक की ललिता ने ३०८ अंकों के साथ कांस्य पदक जीता।

बालक वर्ग के ४० मीटर में हरियाणा के ओमवीर ने ३३५अंकों के साथ स्वर्ण, मणिपुर के प्रेम कुमार ने ३२३ अंकों के साथ रजत और चंडीगढ़ के नवीन सैनी ने ३२२ अंकों के साथ कांस्य पदक जीता। ३० मीटर में एसएससीबी के एलपी सिंह ने ३२९ अंकों के साथ स्वर्ण, उप्र के अविनाश ने ३२६ अंकों के साथ रजत और मिजोरम के कानसाई ने ३२६ अंकों के साथ कांस्य जीता।

परिणाम जानने भटकते रहे खिलाड़ी

इस राष्ट्रीय आयोजन में परिणाम की व्यवस्था को लेकर कई राज्यों से आए खिलाडिय़ों के साथ उनके कोच और मैनजरों में नाराजगी देखी गई। सोमवार से प्रारंभ हुए इंडियन राऊंड के परिणाम मंगलवार की शाम तक घोषित नहीं हो सके थे। किसी भी राज्य के खिलाड़ी के साथ उनके कोच-मैनेजर को यह मालूम नहीं था कि उनका कौन सा खिलाड़ी किस स्थान पर है। जानकारों ने बताया कि स्पर्धा में तकनीकी जानकारों की कमी के कारण ऐसा हुआ है। मीडिया को भी नतीजों की जानकारी देने वाला कोई नहीं था। नतीजों की जानकारी एकत्रित करने का जिम्मा जिनको दिया गया था उनमें कोई भी तकनीकी जानकार नहीं था जिसके कारण ऐसी स्थिति आई। मीडिया को कोई यह भी बताने वाला नहीं था कि आखिर छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी किस पोजीशन में रहे। छत्तीसगढ़ के हाथ कोई पदक नहीं लगा यह अलग बात है लेकिन कौन सा खिलाड़ी किस स्थान पर रहा यह बताने वाला भी कोई नहीं था। बार-बार जानकारी मांगे जाने के बाद भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कर सका।


आदिवासी खिलाडिय़ों को तैयार करें: कौशिक

इंडियन राऊंड के मुकाबलों के बाद इसका पुरस्कार वितरण मंगलवार की शाम को विधानसभा अध्यक्ष धर्म कौशिक ने किया। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि प्रदेश में तीरंदाजी के खिलाड़ी आदिवासी क्षेत्रों में ज्यादा हैं। इन तीरंदाजों को तकनीकी जानकारी देकर निखारने की जरूरत है। यह काम तीरंदाजी संघ को करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक दिन जरूर प्रदेश के आदिवासी तीरंदाज ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ को पदक दिलाकर प्रदेश का नाम रौशन करने का काम करेंगे। उन्होंने कहा कि आने वाला समय छत्तीसगढ़ का होगा।

Read more...

मंगलवार, नवंबर 03, 2009

रमन के फैसले को नमन

अपने देश के नेता और मंत्री ऐसे हैं तो नहीं कि उनके किसी फैसले पर उनका नमन किया जाए, लेकिन फिर भी कुछ ऐसे नेता और मंत्री निकल आते हैं जिनके किसी फैसले पर दिल से नमन करने का मन होता है। ऐसा ही एक फैसला अपने राज्य छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने किया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव में प्रदेश के बिलासपुर जिले के जिलाधीश को राज्य के एक पुरस्कार वीर शहीद वीर नारायण सिंह के लिए चुने जाने पर नाराजगी जताते हुए उनका नाम पुरस्कारों की सूची से हटवा दिया। मुख्यमंत्री के इस फैसले की चौरफा वाह-वाही हो रही है। वास्तव में रमन का यह फैसला नमन करने वाला है। वरना कौन मुख्यमंत्री नहीं चाहेगा कि उनके राज्य के किसी अधिकारी को पुरस्कार मिले और वह अधिकारी उनका भक्त हो जाए, पर रमन ने जो फैसला किया उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है।

छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव में कई क्षेत्रों के लिए पुरस्कार दिए जाते हैं। ऐसा ही एक पुरस्कार शहीद वीर नारायण सिंह के नाम से दिया जाता है। यह पुरस्कार उनको दिया जाता है जो आदिवासियों के हितों के लिए काम करते हैं। इस बार इस पुरस्कार के लिए बिलासपुर के जिलाधीश सोनमणी बोरा का नाम तय किया गया। एक जिलाधीश का नाम तय होने पर सभी को आश्चर्य भी हुआ। लेकिन इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि सोनमणी बोरा ने आदिवासियों के हितों के लिए काम किया है। लेकिन यहां पर सोचने वाली बात यही है कि क्या एक जिलाधीश ऐसा काम कर रहे हैं तो उनको पुरस्कार से नवाजा जाना चाहिए और वह भी सरकारी पुरस्कार से? अगर उनका चयन सही भी किया गया था तो इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस चयन पर उंगलियां उठतीं, और ऊंगलियां उठने भी लगीं थीं। सरकारी महकमे में ही इस बात को लेकर चर्चा होने लगी थी कि कैसे आखिर सोनमणी बोरा का नाम तय किया गया है।

इधर जैसे ही मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह दक्षिण अफ्रीका की यात्रा से लौटे विमान तल पर ही उनको यह मालूम हो गया कि एक जिलाधीश का नाम पुरस्कारों की सूची में है। ऐसे में उन्होंने शाम को पत्रकारों से चर्चा करते हुए जहां अपनी जोरदार नाराजगी का इजहार किया और सोनमणी बोरा का नाम सूची से हटा दिया, वहीं एक और नाम जीएस बंदेशा का भी हटाया गया। इनको धन्वंतरी सम्मान के लिए चुना गया था। मुख्यमंत्री प्रशासनिक अधिकारियों के नाम पुरस्कारों के लिए तय करने से खासे नाराज हुए। उन्होंने पत्रकारों के सामने यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में ऐसी लगती नहीं होगी।

रमन सिंह ने प्रशासनिक अधिकारियों के नाम पुरस्कारों की सूची से हटाने का जो काम किया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। रमन का तर्क भी सही है कि प्रशासनिक अधिकारियों का काम ही है यह करना फिर सोनमणी बोरा ने ऐसा क्या अलग से कर दिया है जिसके लिए उनको पुरस्कार दिया जाए। उनका तर्क 100 प्रतिशत सही है। रमन के इस फैसले को हम नमन करते हैं। लेकिन साथ ही एक बात जरूर कहना चाहेंगे कि अगर सोनमणी बोरा ने एक अच्छा काम किया है तो उस काम की तारीफ तो होनी ही चाहिए अगर उनको पुरस्कार के लायक समझा जाता है तो उनको एक अलग तरह का भी पुरस्कार दिया जा सकता है।

26 जनवरी के दिन जब प्रशासनिक अधिकारियों का सम्मान किया जाता है तब ऐसे में श्री बोरा के काम के लिए उनका सम्मान किया जा सकता है। अब यह सोचना शासन का काम है। लेकिन संभवत: डॉ. रमन सिंह देश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने किस पुरस्कार की सूची से प्रशासनिक अधिकारी का नाम कटवाने का काम किया है। काश अपने देश के हर नेता और मंत्री रमन की तरह सोचने लगे तो देश का कुछ तो भला हो ही सकता है। आज अगर छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है तो इसके पीछे भी डॉ. रमन सिंह की वह साफ छवि है जिसे जनता पसंद करती है। उनके इस कदम से उनका कद जरूर बढ़ेगा।

Read more...

सोमवार, नवंबर 02, 2009

साहब टोनही मेरी बेटी को खा गई

छत्तीसगढ़ में टोनही के किस्से इतने हैं जिसकी कोई सीमा नहीं है। यहां का ऐसा कोई गांव नहीं होगा जहां पर टोनही को लेकर चर्चाएं नहीं होती हैं। अक्सर ऐसी बातें सामने आती रहती हैं कि इस गांव में टोनही ने इसकी जान ले ली, तो उस गांव में एक महिला को टोनही के संदेह में सरे आम नंगा करके पीटा गया। हमें याद है कि एक बार जब हम लोग कोरबा जा रहे थे तो कार के एक ड्राइवर ने हमें अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा था कि साहब मेरी बेटी को तो टोनही खा गई।

इन दिनों टोनही हो लेकर हमारे मित्र ललित शर्मा काफी कुछ लिख रहे हैं। ऐसे में उन्होंने जब हमसे बात की तो सोचा कि चलो हम भी एक ऐसा किस्सा बयान कर दें जिसे हम तब बयान नहीं कर पाए थे जब हमने टोनही के बारे में पिछली पोस्टों में लिखा था। उस समय इस मामले को भी लिखने का मन था, पर हमने सोचा कि लगातार एक ही विषय पर लिखना ठीक नहीं है। बहरहाल अब हम उस किस्से को लिख रहे हैं। एक बार जब कोरबा में भारत और पाकिस्तान के बीच पुराने क्रिकेटरों को लेकर एक मैच हुआ था, तब अचानक रात को प्रेस के संपादक का फरमान आया था कि ग्वालानी जी आपको कोरबा जाना है। आपके जाने की व्यवस्था जनसपंर्क विभाग ने की है। हम रात को अपने कुछ मित्रों के साथ जनसंपर्क के दफ्तर पहुंचे तो एक इंडिका कार एक ड्राइवर के साथ हमारे हवाले कर दी गई। हम लोग जब रायपुर से चले तो सोचा कि यार कार में सोना ठीक नहीं है, अगर हम लोग सोने लगे और ड्राइवर को ङापकी आ गई तो सब सदा के लिए सो जाएंगे। ऐसे में इधर-उधर की बातें करते-करते अचानक टोनही पर बातें होने लगीं। हम लोग जब टोनही पर बातें करने लगे तो ड्राइवर साहब गंभीर हो गए। हमने जब उनसे कारण पूछा तो उनकी आंखों से आंसू ङालक पड़े। हमें अपराधबोध हुआ कि यार हम लोगों से ऐसी क्या बात हो गई जो ये महोदय रोने लगे हैं। हमने जब उनके पूछा तो वे कहने लगे कि क्या बताएं साहब एक टोनही ने तो मेरी बेटी को ही खा लिया।

उन्होंने पूछने पर बताया कि वे जिस मकान में किराए से रहते हैं वहां पर एक महिला है जिसे वे टोनही बता रहे थे। बकौल ड्राइवर उस महिला ने ही उनकी १६ साल की खुबसूरत जवान बेटी पर ऐसा जादू किया था जिससे उसकी मौत हो गई। हमने पूछा कि आपको कैसे मालूम कि वह महिला टोनही है और उसी ने आपकी बेटी को मारा है। उन्होंने बताया कि उसी महिला से अक्सर हमारे परिवार का ङागड़ा होता था, वह महिला मेरी बेटी को गलत रास्ते पर डालना चाहती थी जिसका हम लोगों ने विरोध किया तो उसने मेरी बेटी पर न जाने क्या जादू-टोना किया कि उसकी बीमारी के बाद मौत हो गई।

ये एक किस्सा है। ऐसे न जाने कितने किस्से छत्तीसगढ़ में हैं जिसको टोनही से जोड़ा जाता है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है यह कौन बता सकता है कि उस ड्राइवर की बेटी की मौत कैसे हुई। उसको जो बीमारी लगी उसके बारे में ड्राइवर का कहना था कि लाख इलाज के बाद भी डाक्टर न तो यह बता पा रहे थे कि उसे क्या बीमारी है और न ही कोई दवा उस पर असर कर रही थी। ऐसा कई मामलों में होता है कि किसी बीमारी का डॉक्टर पता नहीं लगा पाते हैं और दवाएं भी काम नहीं करती हैं, तब ऐसे में लोग तांत्रिकों की शरण में जाते हैं। और ये तांत्रिक ही इस तरह की बातें करते हैं कि यह काम टोनही या फिर किसी तंत्र-मंत्र करने वाले का है। तंत्र-मंत्र के बारे में तो कहा जाता है कि इसका अस्तित्व है, लेकिन टोनही का कोई अस्तित्व है या नहीं इसका प्रमाण किसी के पास नहीं है। वैसे हमने जितने किस्से टोनही के सुने हैं, उसके हिसाब से तो हमारा भी कई बार जिसे टोनही कहा जाता है, उससे दूर से सामना हो चुका है। ये किस्सा हम पहले ही लिख चुके हैं।

Read more...

रविवार, नवंबर 01, 2009

पत्रकार भी आ गए बाबा के झांसे में

अपने देश में बाबाओं का ही राज चल रहा है। बाबाओं के झांसे से भला कौन बचा सका है। बाबा जिसे चाहे उसे अपनी बातों से फंसा लेते हैं। बाबाओं की वाणी में ऐसा जादू होता है कि कलम के जादूगर भी कभी उनके जाल में फंस ही जाते हैं। ऐसा ही एक वाक्या अपने रायपुर के प्रेस क्लब में तब देखने को मिला जब एक बाबा आए थे पत्रकारवार्ता लेने। इन बाबा का जादू पत्रकारों के सिर ऐसा चढ़ा की शराब छोडऩे के साथ दूसरी बीमीरियों से मुक्त होने के मोह में सभी प्रेस कांफ्रेंस हॉल में जूते और चप्पल तक उतर कर बाबा के प्रवचन में मशगूल हो गए और भूल गए कि बाबा की पत्रकार वार्ता के बाद दूसरी पत्रकार वार्ता भी है।

हुआ कुछ यूं कि दो दिन पहले जब हम प्रेस क्लब गए तो देखा कि वहां पर प्रेस कांफ्रेंस हॉल के बाहर जूते-चप्पलों का अंबार लगा हुआ है। पूछने पर मालूम हुआ कि अंदर एक बाबा पत्रकार वार्ता ले रहे हैं। हमने सोचा यार ये ऐसे कौन से बाबा हैं जिनकी पत्रकार वार्ता में मंदिर की तरह जूते-चप्पल बाहर रखवा दिए गए हैं और हमारे पत्रकार मित्र, जो किसी की बात सुनने को तैयार नहीं रहते हैं अचानक उन बाबा के जादू में कैसे आ गए और जूते और चप्पल बाहर उताकर अंदर गए हैं। इसका राज जानने का प्रयास करने पर मालूम हुआ कि वे बाबा पत्रकारों को शराब छोडऩे के गुर बताने के साथ हर बीमारी से मुक्त होने का ज्ञान देने की बात कहकर अंदर ले गए थे और पत्रकार साथी भी ऐसे पढ़े-लिखे की उनके झांसे में आ गए और आधे घंटे की कांफ्रेंस में बैठ गए उनका प्रवचन सुनते हुए एक घंटे तक। उनको इस बात से भी मतलब नहीं था कि उनके बाद एक और प्रेस कांफ्रेंस है साथ ही प्रदेश के दो खिलाडिय़ों का सम्मान है। पत्रकारों को जैसे-जैसे करने के लिए कहा गया सब करते गए और हमारे पत्रकार मित्र इतने ज्ञानी हैं कि जब उनसे पूछा गया कि कैसा महसूस कर रहे हैं तो सभी को मजबूरी में कहना पड़ा था कि अच्छा महसूस कर रहे हैं। इन बाबा की एक सबसे बड़ी बात यह थी कि वे शराब छुड़ाने की बात कह रहे थे। ऐसे में शराब की लत से जकड़े हुए पत्रकारों को संभवत: लगा होगा कि चलो यार अच्छा मौका है शायद उनको इस लत से छुटकारा मिल जाए।

अब यहां हमें अपने पत्रकारों मित्रों की इस सोच पर तरास आ रहा था। अरे जो लोग अपने घर परिवार की बातों को मानकर शराब से किनारा नहीं कर सकते हैं वे भला किसी बाबा की बात से कैसे शराब से किनारा कर सकते हैं। घर में मां-बाप, भाई-बहन के साथ बीबी बच्चों के कहने के बाद भी तो लोग शराब नहीं छोड़ते हैं फिर किसी बाबा की क्या बिसात कि वे किसी को शराब छुड़वाने में सफल हो जाए। इंसान को अगर शराब जैसी किसी भी बुरी लत से किनारा करना है तो उसके लिए सबसे बड़ी जरूरत आत्म विश्वास की है। अगर आप में आत्मविश्वास है तो आप को दुनिया की कोई भी ताकत किसी भी बुरी सय से किनारा करने से नहीं रोक सकती है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कम से कम हममें इतना आत्मविश्वास है। हम एक बार कोई बात ठान लेते हैं तो उसे करके रहते हैं। हम यहां पर बताना चाहेंगे कि हमें बचपन से चाय पीने की आदत नहीं थी। पर बीच में हमने चाय पीनी प्रारंभ की थी। कुछ साल तक चाय पीने के बाद जब हमें ऐसा लगने लगा कि हमें इससे बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है और जरूरत से ज्यादा चाय हो जाती है तो हमने उसे एक झटके में छोड़ दिया। हम अगर ऐसा करने में सफल हुए तो यह हमारे आत्म विश्वास का ही दम है जिसने हमसे ऐसा करवाया।

इस दुनिया में आत्मविश्वास से बड़ी कोई संजीवनी नहीं है। जिसके पास आत्मविश्वास की पूंजी है वही दुनिया का सबसे बड़ा धनी है और उसके आगे सारी बातें गौण हैं।

बहरहाल बाबा के प्रवचन का हमारे किसी पत्रकार मित्र को कोई फायदा होगा इसमें पूरा-पूरा संदेह है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि इन बाबा ने जो पर्चा प्रेस क्लब में दिया था उसमें एक बात यह भी लिखी हुई थी कि उनकी बताई बातों को अपनाने वाले उस व्यक्ति पर ही इसका असर होगा जिन पर भगवान की कृपा होगी। अगर भगवान की कृपा पर ही सब निर्भर है तो फिर बाबा की बातों का क्या मलतब है? भगवान की कृपा जिस पर होगी वह वैसे भी हर तरह के रोग से मुक्त हो जाएगा। यह बात भी इस बात का सबूत है कि किसी भी बाबा के बस में कुछ नहीं होता है, सब लोगों को बेवकूफ बनाने का काम करते हैं। अनपढ़ों की बातें ही छोड़ दें हमारे देश के नेता-मंत्री और पढ़े-लिखे लोगों के साथ पत्रकारों की कौम भी इनके झांसे में आ जाती है। कहते भी हैं कि जब तक इन दुनिया में बेवकूफ जिंदा हैं अक्लमंद कभी भूख नहीं मर सकते हैं। अपने देश के सारे बाबा वास्तव में अक्लमंद हैं जिनके आगे सभी बेवकूफ बन जाते हैं। एक बड़ी मिसाल सामने हैं। पता नहीं लोग कब ऐसे बाबाओं से किनारा करना सीखेंगे। भगवान ऐसे लोगों को सतबुद्धि दे, यही कामना करते हैं।

Read more...
Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP