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बुधवार, जुलाई 08, 2009

सावन की हवा


मदमस्त लहराता मस्त आकाश
झूमती, नाचती, गाती सावन की हवा।


रिमझिम फुहारों का हसीन शमां
हर दिल में होने लगे अरमान जवां ।

भिगाने को महबूब के संग
आ गई बरखा लेकर सावन नया ।


झूलने लगे झूलों में देखो
हसीनों के प्यारे कारवां।

सावन की रिमरिझ फुहारों तले
मचल उठते हैं सभी दिल जवां।

ऐसा प्यारा हसीन मौका
बार-बार मिलता है कहां ।

10 टिप्पणियाँ:

sushil varma,  बुध जुल॰ 08, 03:39:00 pm 2009  

बहुत बढिय़ा है आपकी सावन की हवा- हमारा दिल भी हो गया जवां

बेनामी,  बुध जुल॰ 08, 03:41:00 pm 2009  

सावन की रिमझि बरसात का तो हर प्रेमी को इंतजार रहता है ताकि वह अपने प्रेयसी के साथ भिगने का मजा ले सके। बहुत अच्छी कविता है।

Unknown बुध जुल॰ 08, 03:51:00 pm 2009  

सावन के पहले ही दिन ऐसी कविता, मजा आ गया

Unknown बुध जुल॰ 08, 04:00:00 pm 2009  

सुंदर अभिव्यक्ति

दिनेशराय द्विवेदी बुध जुल॰ 08, 04:24:00 pm 2009  

ग्वालानी जी, आषाढ़ जाते जाते कृपा कर गया था। सावन की कृपा शेष है। लेकिन मॉनसून दूर दूर तक नहीं है।

Udan Tashtari बुध जुल॰ 08, 04:30:00 pm 2009  

सुन्दर मौसमी गीत..

soniya,  गुरु जुल॰ 09, 09:02:00 am 2009  

रिमझिम फुहारों का हसीन शमां
हर दिल में होने लगे अरमान जवां
वाह..वाह...

israt,  गुरु जुल॰ 09, 11:26:00 am 2009  

बहुत ही सुन्दर रचना

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