क्या बलात्कार के लिए ऐसी सजा ठीक है
बहुत समय से इस सोच में थे कि इस बात को लिखा जाए कि नहीं। लेकिन जिस तरह से लगातार बलात्कार की घटनाओं में इजाफा होते जा रहा है और इस पर विराम नहीं लग रहा है। तब ऐसे में सोचा कि चलो कम से कम ब्लाग बिरादरी के सामने तो इस बात को रखा ही जा सकता है। हमें मालूम है कि हम यहां पर जो लिखने वाले हैं उसको संविधान में कभी स्थान नहीं मिल सकता है, पर इंसानी सोच का क्या किया जाए। जब समाज में अपराध होते हैं तो उनको रोकने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय सुझाने का काम करते हैं। बलात्कार के मामले में हम एक ऐसी सजा के बारे में जानते हैं जो सजा एक बलात्कारी को एक महिला थानेदार ने दी थी। इस सजा को मानवीय तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन सोचने वाली बात यह भी है कि क्या बलात्कार मानवीय है। ऐसे में हमको तो उस महिला थानेदार ने जो सजा दी थी उसमें कोई बुराई नहीं लगी। अगर कोई बलात्कारी ऐसी सजा से ही बलात्कार से तौबा करता है तो ऐसी सजा देने में क्या बुराई है।
हमारे एक मित्र पुलिस में हैं। उन्होंने काफी पहले हमें एक बात बताई थी कि वे रायपुर जिले के एक ग्रामीण थाने में पदस्थ थे। वहां के थाने की प्रभारी एक महिला थीं। उनके सामने जब बलात्कार का मामला आया तो उनको उस बलात्कारी पर काफी गुस्सा आया। गुस्सा आने का सबसे बड़ा कारण यह भी था उस बलात्कारी ने एक काफी कम उम्र की मासूम से बलात्कार किया था। ऐसे में उन महिला थानेदार ने उस बलात्कारी को ऐसा सबक सिखाने की ठानी ताकि उसकी सात पुस्ते भी बलात्कार जैसे अपराध से कौसों दूर भागे। उन महिला थानेदार ने सिपाहियों को आदेश दिया कि उस आरोपी को नंगा कर दिया जाए। उसे नंगा करने के बाद पहले तो उस आरोप के लिंग पर महिला थानेदार से खुद ही डंडों की बरसात कर दी, फिर एक रस्सी से उसके लिंग में एक ईट बंधवा दी। आरोपी को जब यह सजा मिली तो उसके हौसले पस्त हो गए, वह बार-बार फरियाद कर रहा था कि मैडम मुझे छोड़ दीजिए, मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा। लेकिन उन महिला थानेदार ने यह कहते हुए उस पर रहम नहीं किया कि क्या तुमने उस मासूम पर रहम किया था। मासूम कलियों को मसलने वाले तुम जैसे दरिंदों के लिए यही सजा है।
इस सजा का नतीजा यह निकला कि उस गांव में यह बात फैल गई कि थानेदार काफी सक्त हैं। ऐसे में अपराधी कोई भी अपराध करने से घबराने लगे। वैसे तो अपने देश में पुलिस वालों की छवि साफ नहीं हैं, पर कुछ पुलिस वाले वास्तव में इतने अच्छे होते हैं जो जनता और समाज के भले के लिए काम करते हैं। भले उन महिला थानेदार का कृत्य मानवीय नहीं था। लेकिन उस महिला थानेदार ने अगर ऐसा नहीं किया होता तो जरूर वह बलात्कारी कोर्ट से छूट जाता और न जाने फिर कितनी मासूमों को अपना शिकार बनाता। हो सकता है यह बात अगर मानवाधिकार के कार्यकर्ताओं तक पहुंचती तो कोई ऐसा कर्ताधर्ता निकल आता जो यह कहते हुए महिला थानेदार को ही कटघरे में खड़े कर देता कि आप कौन होती हैं सजा तय करने वाली। एक यही बात है जो अपराधियों को हौसला देने का काम करती है। पुलिस अगर सच में समाज को सुधारने के लिए उन महिला थानेदार की तरह काम करे तो पूरा समाज ऐसे पुलिस वालों का साथ देगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि ज्यादातर मामलों में बलात्कार करने वाले बच जाते हैं।
कुछ मुस्लिम देशों में तो बलात्कार की काफी कड़ी सजा है। एक मुस्लिम देश के बारे में बताया जाता है कि बलात्कार करने वालों का खुले आम बाजार में लिंग ही काट दिया जाता है। हम जानते हैं कि भारतीय संविधान में कभी ऐसा हो भी नहीं सकता है। लेकिन बलात्कार करने वालों के लिए कोई तो ऐसी सजा होनी ही चाहिए जिससे उनमें इतना खौफ रहे कि वे बलात्कार जैसा घिनौना अपराध करने से पहले एक बार नहीं हजारों बार सोचें। बार-बार बलात्कार करने वालों के लिए फांसी की सजा की बात की जाती है। फांसी की सजा संभव नहीं है, तो कोई तो ऐसी सजा होनी ही चाहिए, जिसके कारण खौफ पैदा हो। लेकिन बलात्कार करने वाले जानते हैं कि साक्ष्य के अभाव में उनका बच जाना आम बात है। जब किसी इंसान को इस बात का डर ही नहीं रहेगा कि उनको अपराध करने की सजा मिलेगी तो वह अपराध करने से क्यों कर बाज आएगा। हम कोई इस बात की वकालत नहीं कर रहे हैं कि बलात्कार करने वालों को उन महिला थानेदार ने जैसी सजा दी थी वैसी देनी चाहिए, लेकिन कुछ तो होना चाहिए, जिससे समाज के इस कैंसर से मुक्ति मिल सके।
ब्लागर मित्र इस बारे में क्या सोचते हैं, अपने विचारों से जरूर अवगत कराएं।
13 टिप्पणियाँ:
महिला थानेदार के साहस को सलाम है। चलो कोई तो है जिसे मासूम से बलात्कार की इतनी पीड़ा हुई जिसके कारण कानून की रक्षा करने वाली ने ही कानून को अपने हाथ में लिया।
क्यों नहीं हो सकता?
महिला थानेदार ने तो दंड की अपनी क़ानून संहिता बना और उसका पालन कर अनुचित किया लेकिन वह अपराधी?
क़ानून बनाया जाय और सभ्यता पूर्ण तरीके से ऐसे सिद्ध अपराधियों को बधिया बना उनका नफस काट दिया जाय। मुझे इसमें कुछ गलत नहीं दिखता।
अगर बलात्कारी ऐसी सजा से सुधरते हैं तो फिर अदालत जाने की भी जरूरत नहीं होगी और मामले थाने में निपट जाएंगे।
परिस्थितियाँ बदल गयी हैं। हमने आपने जितनी मार स्कूल के दिनों में खायी है क्या आज उतना मारने के बारे में कोई सोचेगा?
जितनी सजायें मौज़ूद हैं वर्तमान में, वही समय पर लागू हो जायें तो गनीमत
अदालतों पर प्रश्न चिंह लगाकर वकीलों की रोजी-रोटी मत छिनों? वकील लोग नाराज हो जाएंगे।
सच कहा है आपने अगर उस महिला थानेदार की करतूत मानवअधिकारियों तक पहुंच जाती तो उसकी सामत आ जाती।
भारत में मुस्लिम देशों के जैसा कानून संभव ही नहीं है।
सजा कोई भी हो बलात्कार पर रोक लगनी चाहिए
हमारा दंड कानून भी अपर्याप्त नहीं है। अपर्याप्त है तो वह व्यवस्था जो दंड देती है। वह इतनी सुस्त है कि दंड का कोई असर ही नहीं रह जाता है। वास्तव में पुलिस और अदालतों की संख्या और उन के काम की गुणवत्ता और गति मुकाम पर ले आया जाए तो ही अपराधियों पर आतंक कायम किया जा सकता है और अपराध की मात्रा न्यूनतम लाई जा सकती है। एक थानेदार द्वारा व्यक्तिगत रूप से आहत होने पर दंड देना तो प्रतिशोध है। इस से पूरे समाज में क्या असर होगा?
प्रस्ताव निश्चित रूप से विचारणीय है।
कभी कभी सच से आखें मूँद लेनी पड़ती हैं.. बलात्कारी पर रहम करने वालें यहाँ नहीं मिलेंगे
are balatkaar ho ya koi bhi apraadh koi bhi kanun use rok nahi sakta . haan sakhti ki wjah se kami jarur aa sakti hai .
aisi apradhik ghatnayo ke pichhe jo manowriti aati hai wo hami se to milti hai yani samaj se ......... aisa lagta hai jab se porn ka jamana aaya hai isme badhotri hui hai ..............
आपने बहुत विचारपरक विषय पर लिखा है
निवेदन है कृपया वाक्य को संशोधित करैं अर्थ का अनर्थ हो रहा है :)
ऐसे में ""हमको तो उस महिला थानेदार ने जो सजा दी थी उसमें कोई बुराई नहीं लगी। ""
अगर कोई बलात्कारी ऐसी सजा से ही बलात्कार से तौबा करता है तो ऐसी सजा देने में क्या बुराई है।
venus kesari
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