ये स्टुडेंट कनशेसन क्या है?
एक दिन यूं ही कुछ पत्रकार मित्रों के साथ बैठे थे तो वहां पर कुछ नवोदित पत्रकार साथी भी थे। ऐसे में नए पत्रकार पूछने लगे कि भईया कोई स्टोरी बताईए न कोई खबर नहीं है। ऐसे में हमें एक समय में फिल्मों में मिलने वाले स्टुडेंट कनसेशन की याद आई तो हमने उस पत्रकार को सुझाया कि एक बढिय़ा स्टोरी स्टुडेंट कनसेशन पर बन सकती है। हमारे इतने कहते ही वे जनाब बोल पड़े कि भईया ये स्टुडेंट कनसेशन क्या है? हमने सोचा यार जब इसको यही नहीं मालूम की स्टुडेंट कनसेशन क्या है तो यह बंदा खबर क्या बनाएगा। हमने फिर उसे विस्तार से समझाया कि स्टुडेंट कनसेशन क्या है। हम आज यहां पर उसी कनसेशन की बात करने वाले हैं।
हमें याद है अपने स्कूल और कॉलेज का जमाना। जब उस समय कोई भी छात्र 8वीं क्लास में पहुंचता था, या कोई छात्र 11वीं पास करके कॉलेज जाता था (उस समय 12वीं क्लास नहीं होती थी) तो सबसे पहला काम वह यही करता था कि अपने स्कूल या कॉलेज में अपना आई कार्ड बनवाता था। उस समय यह कार्ड मात्र फिल्म देखने के काम आता था। हर सिनेमा हॉल में स्टुडेंट कनसेशन के लिए एक अलग से खिड़की होती थी और यह खिड़की कोई भी फिल्म लगने के पांचवें दिन से खुलती थी। तब इस खिड़की पर भी भारी भीड़ होती थी। तब स्टुडेंट कनसेशन रात के दो शो में ही मिलता था। रविवार के दिन सभी शो में यह कनसेशन छात्रों को मिलता था। हमें याद है जब हम भाटापारा में रहते थे तो हम लोग सिनेमा हॉल में जुगाड़ करके पहले ही दिन यह कनसेशन ले लेते थे।
आज से करीब दो दशक पहले स्टुडेंट कनसेशन का काफी बोलबाला था। लेकिन अब इस कनसेशन के बारे में स्टुडेंट जानते ही नहीं हंै। आज कॉलेज के आई कार्ड लायब्रेरी से किताबे लेने के लिए बनते हैं। यह एक अच्छी बात है, लेकिन स्टुडेंट कनसेशन भी तो छात्रों का हक है। इस समय जबकि महंगाई का जमाना है तो इसका महत्व और ज्यादा है। लेकिन लगता है कि आज के जमाने में पढऩे वाला युवा इतना ज्यादा संपन्न हो गया है कि उनको ऐसे किसी कनसेशन की दरकार ही नहीं है। आज तो किसी सिनेमा हॉल में कनसेशन के लिए कोई अलग से खिड़की भी नहीं है। आज के स्टुडेंट सिनेमा हॉल से ज्यादा मल्टीप्लेक्स मार्केट के सिनेमा हॉल में फिल्म देखना पसंद करते हैं। पहले युवाओं के पास इतने पैसे ही नहीं होते थे कि वे दो रुपए का टिकट लेकर फिल्म देख सकें। ऐसे में 80 या 90 पैसे का कनसेशन टिकट लेकर फिल्म देखने के लिए फिल्म के पांच दिनों के होने का बेताबी से इंतजार करते थे। आज युवा 100 रुपए से भी ज्यादा का टिकट लेकर पहले ही दिन फिल्म देखना पसंद करते हैं। एक बात और यह भी है कि आज सिनेमा हॉल में फिल्म देखने का क्रेज भी कम हो गया है। युवा अपने ग्रुप के साथ एक साथी के घर पर बैठकर कम्प्यूटर या फिर टीवी पर फिल्म देखना ज्यादा पसंद करते हैं।
हमें याद है अपने स्कूल और कॉलेज का जमाना। जब उस समय कोई भी छात्र 8वीं क्लास में पहुंचता था, या कोई छात्र 11वीं पास करके कॉलेज जाता था (उस समय 12वीं क्लास नहीं होती थी) तो सबसे पहला काम वह यही करता था कि अपने स्कूल या कॉलेज में अपना आई कार्ड बनवाता था। उस समय यह कार्ड मात्र फिल्म देखने के काम आता था। हर सिनेमा हॉल में स्टुडेंट कनसेशन के लिए एक अलग से खिड़की होती थी और यह खिड़की कोई भी फिल्म लगने के पांचवें दिन से खुलती थी। तब इस खिड़की पर भी भारी भीड़ होती थी। तब स्टुडेंट कनसेशन रात के दो शो में ही मिलता था। रविवार के दिन सभी शो में यह कनसेशन छात्रों को मिलता था। हमें याद है जब हम भाटापारा में रहते थे तो हम लोग सिनेमा हॉल में जुगाड़ करके पहले ही दिन यह कनसेशन ले लेते थे।
आज से करीब दो दशक पहले स्टुडेंट कनसेशन का काफी बोलबाला था। लेकिन अब इस कनसेशन के बारे में स्टुडेंट जानते ही नहीं हंै। आज कॉलेज के आई कार्ड लायब्रेरी से किताबे लेने के लिए बनते हैं। यह एक अच्छी बात है, लेकिन स्टुडेंट कनसेशन भी तो छात्रों का हक है। इस समय जबकि महंगाई का जमाना है तो इसका महत्व और ज्यादा है। लेकिन लगता है कि आज के जमाने में पढऩे वाला युवा इतना ज्यादा संपन्न हो गया है कि उनको ऐसे किसी कनसेशन की दरकार ही नहीं है। आज तो किसी सिनेमा हॉल में कनसेशन के लिए कोई अलग से खिड़की भी नहीं है। आज के स्टुडेंट सिनेमा हॉल से ज्यादा मल्टीप्लेक्स मार्केट के सिनेमा हॉल में फिल्म देखना पसंद करते हैं। पहले युवाओं के पास इतने पैसे ही नहीं होते थे कि वे दो रुपए का टिकट लेकर फिल्म देख सकें। ऐसे में 80 या 90 पैसे का कनसेशन टिकट लेकर फिल्म देखने के लिए फिल्म के पांच दिनों के होने का बेताबी से इंतजार करते थे। आज युवा 100 रुपए से भी ज्यादा का टिकट लेकर पहले ही दिन फिल्म देखना पसंद करते हैं। एक बात और यह भी है कि आज सिनेमा हॉल में फिल्म देखने का क्रेज भी कम हो गया है। युवा अपने ग्रुप के साथ एक साथी के घर पर बैठकर कम्प्यूटर या फिर टीवी पर फिल्म देखना ज्यादा पसंद करते हैं।
4 टिप्पणियाँ:
कनशेसन टिकट के लिए लंबी-लंबी लाइन लगाकर टिकट लेकर कई फिल्में देखी हैं। आपने पुराना जमाना याद दिला दिया। वाह.. क्या जमाना था वह। अब तो फिल्में देखना का भी मजा नहीं आता है।
कॉलेज के जमाने में हम लोगों ने भी कनसेशन में खूब फिल्में देखी हैं।
अरे यार गर्ल फ्रेंड के साथ क्या कनसेशन लेकर फिल्म देखकर अपनी किरकिरी करानी है। मिलता होगा कनशेसन हमें क्या?
वाकई मुझे तो मालूम ही नहीं था कि फिल्मों में भी स्टुडेंट कनसेशन मिलता है। अच्छी जानकारी दी आपने।
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