आस्था का सजाकर बाजार-साधु-संत कर रहे व्यापार
अचानक इलेक्ट्रानिक मीडिया वालों को आसाराम बापू द्वारा कुत्ता कहे जाने के बाद से इस समय इलेक्ट्रानिक मीडिया में बवाल आ गया है। आज वही मीडिया आसाराम बापू जैसे संत को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूक रहा है, जो एक समय आसाराम की महिमा का बखान हर टीवी चैनल करता था। आसाराम की ही बात क्यों करें टीवी चैनल वाले तो रोज किसी न किसी बापू को सुबह-सुबह घर-घर पहुंचाने का काम काफी लंबे समय से कर रहे हैं। आज एक मात्र यही कारण है कि इन संतों की पूछ-परख ज्यादा हो गई है और ज्यादातर साधु-संत लोगों की आस्था का फायदा उठाकर व्यापार करने लगे हैं। जो भी नामी संत हैं उन तक उन गरीब और असहाय लोगों की तो पहुंच ही नहीं हो पाती है जिनको वास्तव में इनकी जरूरत है। इन पर भरोसा करने वाले इतने ज्यादा हैं कि ये संत अपने को भगवान समझने की भूल कर बैठते हैं, जिस तरह से संभवत: आसाराम कर बैठे हैं। वरना वे उस मीडिया के लिए ऐसे अशोभनीय शब्दों का प्रयोग कैसे करते जिस मीडिया ने ही उनको आज इतना लोकप्रिय बनाया है कि लोग उनको जानते हैं। अगर मीडिया किसी को महिमा मंडित करने का काम ही न करे तो कौन जानेगा कि यह आसाराम है या कोई और राम, या फिर कोई और बाबा है। यह समय है सोचने का कि जो संत उस मीडिया के नहीं होते हैं जो उनको इस लायक बनाता है कि वे लोगों के आस्था का केन्द्र बन सकें तो वह भला अपने भक्तों के क्या होंगे। वैसे भी संत कभी भक्तों के नहीं होते हैं। आज अगर सच्चाई पर नजरें डालें तो सच्चाई तो यही है कि आस्था का चारों तरफ बाजार लगा और इस आस्था की आड़ में संत व्यापार कर रहे हैं।
अपने देश में धर्म के नाम पर कुछ भी किया जा सकता है। धर्म के नाम पर ही लोगों को बेवकूफ बनाना सबसे आसान काम होता है। और इस मामले में साधु-संतों को तो लगता है पीएचडी प्राप्त है। आज साधु-संत लोगों की धर्म के प्रति आस्था का लाभ उठाकर ही एक तरह से व्यापार कर रहे हैं। बड़े-बड़े नामी संतों के जब आयोजन होते हैं तो ये आयोजन ऐसे ही नहीं होते हैं इन आयोजन पर लाखों नहीं करोड़ फूंक दिए जाते हैं। इसका फायदा किसको होता है इसकी परवाह किसी को नहीं है। जब मालूम होता है कि एक संत आने वाले हैं तो लोग वहां पर इस तरह से टूट पड़ते हैं मानो वे नहीं गए तो आफत आ जाएगी। अभी कुछ दिनों पहले रायपुर में ही आसाराम का दो दिनों का आयोजन हुआ था। उनके दरबार में हाजरी देने वालों का ऐेसा मेला लगा था कि पूछो मत। हर कोई बस यही जताने में लगा था कि वह भी आसाराम का भक्त है। आम इंसानों की बात ही क्या करें, अपने राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ कई मंत्री भी पहुंचे थे उनके दरबार में हाजरी देने के लिए। एक तरफ वीआईपी के लिए जोरदार व्यवस्था थी तो दूसरी तरफ बाहर से आने वाले उन सच्चे भक्तों को कोई पूछने वाला नहीं था जो वास्तव में आसाराम के भक्त हैं। आलम यह था कि महिलाओं को टायलेट जाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा था। पानी की भी उतनी व्यवस्था नहीं थी। इतनी अव्यवस्था के बाद भी भीड़ बेकाबू थी।
यह सब इस बात का सबूत है कि अपने देश में इन संतों के प्रति लोगों में कितनी आस्था है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या इनकी आस्था की कीमत इन संतों की नजरों में है। हमें तो नहीं लगता है कि इनकी कोई कीमत ये संत समझते हैं। इन संतों के दरबार में जाने वाले आस्था के पुजारी अगर वहां जाकर अपने पैसों की कुर्बानी देने के अलावा कुछ नहीं करते कहा जाए तो गलत नहीं होगा। आज चाहे आसाराम बापू हों या फिर राम देव बाबा सबके दरबार में एक तरह से व्यापार होता है। कोई अगरबती का व्यापार कर रहा है तो कोई पुस्तकों और जड़ी बूटियों का। इनके चाहने वाले ऐसे हैं कि अगर इनके सामने कोई अगर यह कह दें कि संत तो लोगों को लुटने का काम करते हैं और आस्था का फायदा उठाकर व्यापार कर रहे हैं, तो इनके चाहने वाले हमला बोल देते हैं, ऐसा कहने वालों पर। इनके चाहने वाले तर्क देते हैं कि हमारे बाबा या बापू तो भक्तों को काफी कम कीमत पर रोगों से मुक्ति दिलाने की दवाएं देते हैं। अरे कम कीमत पर दवाएं देकर वो कौन सा पुन्य कर रहे हैं। क्या ये कीमतें इतनी कम होती हैं जितनी उसकी लागत नहीं होती है। अगर ऐसा करें तो मानें। कीमते तो हमेशा से लागत से ज्यादा होती हैं तो फिर काहे का पुन्य। यह तो सीधे-सीधे व्यापार है। अगर इन संतों को सच में असहाय और गरीबों की चिंता है तो वे इनको मुफ्त में दवाएं क्यों नहीं देते हैं। नि संतों के चाहने वाले बड़े-बड़े अमीर है जो इनको लाखों नहीं करोड़ों का दान देते हैं, इन पैसों से क्यों नहीं की जाती गरीबों की मदद। हमें याद है रायपुर में जब एक बार रामदेव बाबा आए थे तो उनसे मिलने के लिए एक विकलांग काफी मिन्नते करता रहा पर उसको मिलने नहीं दिया गया। जिनको ऐसे बाबाओं की जरूरत है उनको ही जब उनसे मिलने नहीं दिया जाता तो इन संतों का क्या काम है यहां पर।
किसी ब्लागर ने एक लेख में टिप्पणी की थी कि वास्तव में ये साधु-संत सच्चे हैं तो फिर क्यों इनके आश्रमों में गलत काम होते हैं, क्यों इनके आश्रम सरकारी जमीनों पर बने हैं। अगर आज आसाराम बापू के आश्रम में काला जादू होने की बात की जा रही है तो इसके पीछे सीआईडी के पास सबूत हैं। ऐसे में इलेक्ट्रानिक मीडिया उनके खिलाफ कुछ दिखा रहा है तो उसके पत्रकार कुत्ते हैं। अब मीडिया को भी सबक लेना चाहिए कि ये संत किसी के नहीं होते हैं। वैसे मीडिया का भी क्या दोष आज हर चैनल वही दिखाने के लिए मजबूर है जो लोग देखना चाहते हैं। अगर कोई चैनल किसी बाबा को सुबह-सुबह नहीं दिखाएगा तो फिर उसकी रेटिंग कैसे बढ़ेगी। यही हाल अखबारों का भी है। अखबारों में भी इन संतों की महिमा के किस्से रोज छपते हैं। आज आसाराम ने इलेक्ट्रानिक मीडिया पर हमला किया है, कल प्रिंट मीडिया पर भी कोई बापू हमला कर देगा। अगर मीडिया ने सबक नहीं लिया तो कोई भी बापू और बाबा कभी भी मीडिया को कुत्ता, या और कुछ भी कहने से बाज नहीं आएंगे। लिखने को तो और बहुत कुछ हैं, पर वैसे भी यह पोस्ट काफी बड़ी हो गई है। फिलहाल इतना ही बाकी फिर कभी।
17 टिप्पणियाँ:
इन पाखंडी संतों से अच्छे तो राहुल गांधी हैं जो किसी गरीब की झोपड़ी में जाकर रहने का साहस करते हैं और उनके साथ खाना खाने से भी परहेज नहीं करते हैं। बड़ी-बड़ी ज्ञान की बातें करने वाले ये संत बताएं कि वे कब किसी गरीब की झोपड़ी में रहे हैं। रहना तो दूर ये संत तो इनको अपने पास ही आने नहीं देते हैँ। ऐसे संतों का पूरे समाज में बहिष्कार होना चाहिए।
रामदेव बाबा के करीब जाने के लिए हजारों रुपए का टिकट लेना पड़ता है। अब ये टिकट लेने की औकात किसी गरीब की तो होती नहीं है। बाबा के आयोजनों में गरीबों का स्थान सबसे पीछे रहता है जहां पर टीवी स्क्रीन में वे लोग देख कर योग करते हैं। बाबा के दर्शन की आश लिए उनके कार्यक्रमों में जाने वाले हर भक्त को निराश ही होना पड़ता है। आपने ठीक लिखा है कि एक विकलांग को रायपुर में उनसे मिलने ही नहीं दिया, ऐेसा तो उनके हर आयोजन में होता है, इसमें नया कुछ नहीं है।
सोनिया जी राहुल गांधी जैसे नेताओं का तो गरीबों की झोपड़ी में जाने से फायदा होता, नेता उनकी झोपड़ी में वोट के लिए जाते हैं, संतों को तो वोट की जरूरत नहीं होती है, तो वे क्यों कर जाएं गरीबों की झोपड़ी में। संतों को तो सुख-सुविधा चाहिए, जो अमीरों के घरों में मिलती है, तो वे वहीं जाते हैं। अब गरीब चंदा भी तो नहीं दे सकते हैं न।
मीडिया ही है जो संतों को सुधार सकता है। अगर मीडिया इनको कवरेज देना बंद करे दें इनको पूछने वाला कोई नहीं रहेगा। क्या मीडिया में इतना दम है ऐसा कर सके?
गरीबों को पूछने वाले संत अपने देश में हैं कहां? सभी संत तो अमीरों के घरों में जाते हैं। सोनिया जी ने ठीक कहा है कि कोई संत किसी गरीब की झोपड़ी में नहीं जाता है। अमीर लोग संतों के साथ अपनी फोटो खींचवाकर अपने को धन्य समझने लगते हैं।
मीडिया क्या किसी को भी गाली देना आसाराम जैसे संत को शोभा नहीं देता है। उनको इस मामले में माफी मांगनी चाहिए।
धर्म के नाम पर लुट मचा रखी है साधु-संतों ने। जिस देश में ऐसे साधु-संत हों वहां चोर-लुटेरों की क्या जरूरत है। ये संत तो गरीबों को लुटते हैं, जबकि चोर तो गरीबों के घरों में झांकते भी नहीं है। तो सबसे बड़े चोर और लुटेरे कौन हुए?
यह तो हमारी गलती है कि किसी संत के संतई का अनुमान भी उसके मानसिक नहीं , आर्थिक स्टेटस से ही लगाते हैं .. जाहिर है संत फायदा उठाएंगे।
इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले इस बात का खुलासा क्यों नहीं करते हैं कि वे अपने सुबह के कार्यक्रमों में संतों को प्रवचन के लिए कितना पैसा देते हैं।
क्या एसी घरों में और एसी कारों में चलने वाले संत होते हैं। राजकुमार जी इस पर भी कुछ लिखें।
संगीता पूरी की बातों से मैं भी सहमत हूं। सोनिया जी भी ने भी ठीक कहा है।
इनके व्यापार के चलते देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी. एसे बाबाओं की हो.
संत लोगों की आस्था का फायदा उठाकर व्यापार करने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं, आपने बिलकुल ठीक मुद्दा सामने रखा है। आभार
अरे भाई सब धंधों की तरह हर धर्म और हर बाबा सभी धंधे हैं . हमेशा ही थे . धर्म के नाम पर बेवकूफ भी बनाने वाले रहे हैं.
यह ऐसा मॉल है जिसकी गारंटी भी नहीं देनी पड़ती न बेचने का लाइसेंस जरूरी है.बेच रहे हैं . मीडिया को भी बेचने को चाहिए जो भी बिकता हो .
JIS PRAKAR HATHO KI SABHI ANGULIYA BARABER NAHI HOTI.THIK USI PRAKAR SABHI SADHU-SANT PAKHANDI NAHI HOTE.SANTO PER UNGALI UTHANE SE PAHLE APNE GIREBAN PER JHANK KER DEKHO....
HARI OM TATSHAT BAKI SAB GAPSHAP.KUTTO KE BHAUKANE SE SINGH KO KUCHHA FARK NAHI PADTA
रही सही झंड आसा राम की तो इस वक़्त "आज तक" चैनल उतार रहा है :)
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