रमन के साहस को नमन
प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने अचानक उस मदनवाड़ा में पहुंच कर साहस का काम किया, जहां पर नक्सलसियों ने एक एसपी के साथ 35 से ज्यादा पुलिस वालों को अपना निशाना बनाया था। रमन सिंह ने यह साहसिक काम महज इसलिए किया ताकि उनके प्रदेश की पुलिस का हौसला बढ़ सके और वह नक्सलियों से डटकर मुकाबला कर सकें। रमन सिंह के इस साहस को इसलिए नमन किया जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने उस नक्सली क्षेत्र का दौरा भले सुरक्षा के साये में किया, पर उन्होंने बुलेट प्रूफ जैकेट पहनना जरूरी नहीं समझा। ठीक ऐसा ही उनके पहले गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने किया था। गृहमंत्री के साथ गए डीजीपी विश्व रंजन ने तब जरूर बुलेट प्रूफ जैकेट का सहारा लिया था। इसमें कोई दो मत नहीं है कि भाजपा शासन में नक्सली घटनाओं में बेतहाशा इजाफा हुआ है, लेकिन यह भी सच है कि भाजपा शासन में ही नक्सलियों के खिलाफ मुहिम भी ज्यादा चली है। जोगी शासन में नक्सलियों के खिलाफ मुहिम की बात नहीं की जा सकती है।
राजनांदगांव जिले के जिस मानपुर क्षेत्र के मदनवाड़ा क्षेत्र में नक्सलियों ने प्रदेश की सबसे बड़ी घटना को अंजाम दिया था, उस स्थान का दौरा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कर सकते हैं, यह तो किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन अचानक उन्होंने विधानसभा का सत्र प्रारंभ होने से पहले वहां पहुंचकर सबको आश्चर्य में डाल दिया। मुख्यमंत्री न सिर्फ उस क्षेत्र में गए और वहां का दौरा करके पुलिस से हालात के बारे में जानकारी ली, बल्कि वे उस क्षेत्र में बिना बुलेट प्रूफ जैकेट के गए जो वास्तव में साहस का काम है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुख्यमंत्री प्रदेश में ऐसे-ऐसे काम कर रहे हैं जिसकी वजह से उनके दुश्मन भी उनके कायल होते जा रहे हैं। अब यह बात अलग है कि विरोधी पार्टी कांग्रेस को चूंकि विपक्ष का काम करना है तो वह तो उनके अच्छे कामों में भी कमियां निकालने का काम करेगी ही। जब मुख्यमंत्री ने मदनवाड़ा का दौरा करके पुलिस का हौसला बढ़ाने का काम किया तो इस दौरे को कांग्रेसियों ने इस रूप में लिया कि मुख्यमंत्री वहां डर के कारण गए थे, क्योंकि विधानसभा में उनको इस बात का डर था कि जब विपक्षी उनको इस मुद्दे पर घेरेंगे तो वे क्या जवाब देंगे। मुख्यमंत्री को विपक्षियों ने विधानसभा में घेरने का काम पहले दिन ही किया और उनसे इस्तीफा भी मांगा।
यहां पर एक बार फिर से मुख्यमंत्री ने यह बताया कि वास्तव में वे कितना अच्छा सोचते हैं। उन्होंने विपक्ष से कहा कि यह समय राजनीति करने का नहीं बल्कि एक साथ मिलकर उस नक्सली समस्या से निपटने का है जिसके कारण प्रदेश में हाहाकार मचा है। मुख्यमंत्री का यह कहना ठीक भी है। वे कहते हैं कि अगर कांग्रेस के पास नक्सली समस्या से निपटने का कोई सुझाव है तो बताए। लेकिन हकीकत तो यह है कि कांग्रेस को तो बस विपक्ष की राजनीति करनी है। उसके पास नक्सली समस्या से निपटने का कोई गुर होता तो वह बताती। अरे अजीत जोगी के शासन काल में तो कभी नक्सलियों पर लगाम कसने का काम किया ही नहीं गया तो फिर कांग्रेसियों के पास उनसे निपटने के लिए क्या सलाह हो सकती है।
जोगी शासन काल के बारे में तो यही कहा जाता है कि उस सरकार का नक्सलियों के साथ न जाने ऐसा कौन सा मौन समझौता था जिसके कारण नक्सली काफी कम वारदातें करते थे। लेकिन रमन सरकार के आने के बाद नक्सलियों ने आतंक मचाने का काम किया है। आज स्थिति यह है कि उनका आतंक बढ़ते ही जा रहा है। उनका आतंक बढ़ रहा है तो उसके पीछे एक ही कारण नजर आता है कि जब-जब उनके खिलाफ कार्रवाई होती है तो वे बौखला जाते हैं और आतंक मचाने का काम करते हैं। नक्सली सरकार से न निपट पाने की खींज बेगुनाहों का खून बहाकर उतारते हैं। वास्तव मे अगर कांगे्रेसियों में अगर थोड़ी भी नैतिकता है तो वे राजनीति से ऊपर उठकर रमन सरकार के साथ मिलकर नक्सलियों से निपटने में सरकार का साथ दें।
क्या कांग्रेसी इस बात की गारंटी दे सकते हैं कि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने से नक्सली समस्या का अंत हो जाएगा। अगर ऐसा होने की गारंटी रहे तो जरूर रमन सिंह जैसे मुख्यमंत्री अपना पद छोडऩे को भी तैयार हो जाएंगे। हमारा यहां पर कताई रमन सरकार का गुणगान करने का मकसद नहीं है, लेकिन रमन सिंह ने जिस तरह का साहस दिखाया है, क्या कभी अजीत जोगी ने अपने शासन में दिखाया था? हम सिर्फ औैर सिर्फ हकीकत तो बयान करने का काम कर रहे हैं। ऐसे में अगर कोई यह समझता है कि हम रमन सरकार की महिमा का बखान कर रहे हैं तो हमें इससे क्या। हम तो छत्तीसगढ़ के रहवासी होने के नाते बस इतना चाहते हैं कि इस राज्य से नक्सली समस्या का अंत होना चाहिए, बस। इसके लिए सरकार के साथ अगर विपक्ष मिलकर काम करें तो इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता है।
राजनांदगांव जिले के जिस मानपुर क्षेत्र के मदनवाड़ा क्षेत्र में नक्सलियों ने प्रदेश की सबसे बड़ी घटना को अंजाम दिया था, उस स्थान का दौरा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कर सकते हैं, यह तो किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन अचानक उन्होंने विधानसभा का सत्र प्रारंभ होने से पहले वहां पहुंचकर सबको आश्चर्य में डाल दिया। मुख्यमंत्री न सिर्फ उस क्षेत्र में गए और वहां का दौरा करके पुलिस से हालात के बारे में जानकारी ली, बल्कि वे उस क्षेत्र में बिना बुलेट प्रूफ जैकेट के गए जो वास्तव में साहस का काम है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुख्यमंत्री प्रदेश में ऐसे-ऐसे काम कर रहे हैं जिसकी वजह से उनके दुश्मन भी उनके कायल होते जा रहे हैं। अब यह बात अलग है कि विरोधी पार्टी कांग्रेस को चूंकि विपक्ष का काम करना है तो वह तो उनके अच्छे कामों में भी कमियां निकालने का काम करेगी ही। जब मुख्यमंत्री ने मदनवाड़ा का दौरा करके पुलिस का हौसला बढ़ाने का काम किया तो इस दौरे को कांग्रेसियों ने इस रूप में लिया कि मुख्यमंत्री वहां डर के कारण गए थे, क्योंकि विधानसभा में उनको इस बात का डर था कि जब विपक्षी उनको इस मुद्दे पर घेरेंगे तो वे क्या जवाब देंगे। मुख्यमंत्री को विपक्षियों ने विधानसभा में घेरने का काम पहले दिन ही किया और उनसे इस्तीफा भी मांगा।
यहां पर एक बार फिर से मुख्यमंत्री ने यह बताया कि वास्तव में वे कितना अच्छा सोचते हैं। उन्होंने विपक्ष से कहा कि यह समय राजनीति करने का नहीं बल्कि एक साथ मिलकर उस नक्सली समस्या से निपटने का है जिसके कारण प्रदेश में हाहाकार मचा है। मुख्यमंत्री का यह कहना ठीक भी है। वे कहते हैं कि अगर कांग्रेस के पास नक्सली समस्या से निपटने का कोई सुझाव है तो बताए। लेकिन हकीकत तो यह है कि कांग्रेस को तो बस विपक्ष की राजनीति करनी है। उसके पास नक्सली समस्या से निपटने का कोई गुर होता तो वह बताती। अरे अजीत जोगी के शासन काल में तो कभी नक्सलियों पर लगाम कसने का काम किया ही नहीं गया तो फिर कांग्रेसियों के पास उनसे निपटने के लिए क्या सलाह हो सकती है।
जोगी शासन काल के बारे में तो यही कहा जाता है कि उस सरकार का नक्सलियों के साथ न जाने ऐसा कौन सा मौन समझौता था जिसके कारण नक्सली काफी कम वारदातें करते थे। लेकिन रमन सरकार के आने के बाद नक्सलियों ने आतंक मचाने का काम किया है। आज स्थिति यह है कि उनका आतंक बढ़ते ही जा रहा है। उनका आतंक बढ़ रहा है तो उसके पीछे एक ही कारण नजर आता है कि जब-जब उनके खिलाफ कार्रवाई होती है तो वे बौखला जाते हैं और आतंक मचाने का काम करते हैं। नक्सली सरकार से न निपट पाने की खींज बेगुनाहों का खून बहाकर उतारते हैं। वास्तव मे अगर कांगे्रेसियों में अगर थोड़ी भी नैतिकता है तो वे राजनीति से ऊपर उठकर रमन सरकार के साथ मिलकर नक्सलियों से निपटने में सरकार का साथ दें।
क्या कांग्रेसी इस बात की गारंटी दे सकते हैं कि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने से नक्सली समस्या का अंत हो जाएगा। अगर ऐसा होने की गारंटी रहे तो जरूर रमन सिंह जैसे मुख्यमंत्री अपना पद छोडऩे को भी तैयार हो जाएंगे। हमारा यहां पर कताई रमन सरकार का गुणगान करने का मकसद नहीं है, लेकिन रमन सिंह ने जिस तरह का साहस दिखाया है, क्या कभी अजीत जोगी ने अपने शासन में दिखाया था? हम सिर्फ औैर सिर्फ हकीकत तो बयान करने का काम कर रहे हैं। ऐसे में अगर कोई यह समझता है कि हम रमन सरकार की महिमा का बखान कर रहे हैं तो हमें इससे क्या। हम तो छत्तीसगढ़ के रहवासी होने के नाते बस इतना चाहते हैं कि इस राज्य से नक्सली समस्या का अंत होना चाहिए, बस। इसके लिए सरकार के साथ अगर विपक्ष मिलकर काम करें तो इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता है।
28 टिप्पणियाँ:
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
यह तो सच्चाई है कि अजीत जोगी के शासन में नक्सली शांत बैठे थे। जोगी जी के बारे में कहा जाता है कि वे नक्सली को वो सब देते थे जो वे मांगते थे। मांगे पूरी होने की वजह से नक्सलियों ने कभी उनके शासन में आंतक नहीं मचाया।
कांग्रेस को अपनी सोच में बदलाव लाते हुए छत्तीसगढ़ की जनता के बारे में सोचना चाहिए। अगर कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया तो उसके लिए सत्ता में आने का रास्ता बंद हो जाएगा।
माना कि रमन ने विधानसभा में प्रश्नों से बचने के लिए ही सही पर मदनवाड़ा का दौरा तो किया।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साहस को मैं भी नमन करता हूं।
नक्सली समस्या को संयुक्त प्रयास से ही समाप्त किया जा सकता है।
aap mahan hai
aap maahan hai.
aap maahan hai.
aapka javab nahi.likhna koi aapse seekhe.
sachhe patarkaar aap jaise hote hai
khare log.
इस देश के लोकतंत्र में ऐसे मुख्मंत्रियो की ही आवश्यकता है
लेकिन सेन के मामले में उनका कोई ब्यान क्यों नहीं आया ?ये समझ से परे है
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
नक्सली समस्या को संयुक्त प्रयास से ही समाप्त किया जा सकता है।
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।
रमन को हमारा भी सलाम है गुरु
रमन में दम है तो वे घटना वाले दिन क्यों नहीं गए थे। बाद में जाना यह बताता है कि विधानसभा होने वाले सवालों के डर से ही वहां गए थे।
कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं कि उसकी भी मजबूरियां रही होंगी, यूँ ही कोई बेपर्दा नहीं होता
क्या रमन सिंह यहां जाना पसंद करेंगे? तब तो नमन लायक होन्गे
http://sadhankumarray.blogspot.com/2009/07/blog-post_22.html
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