राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

मंगलवार, जुलाई 21, 2009

है कोई टोनही से मुक्ति दिलाने वाला

छत्तीसगढ़ का प्रचलित ज्यौहार हरेली कल है। इस त्यौहार को जहां किसान फसलों के त्यौहार के रूप में मानते हैं और अपने कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं, वहीं यह भी मान्यता है कि यही वह दिन होता है जब वह शैतानी शक्ति जिसे सब टोनही कहते हैं विचरण करने के लिए निकलती है। इसी के साथ इस दिन को तांत्रिकों के लिए अहम दिन माना जाता है। इस दिन तांत्रिक तंत्र साधना करने का काम करते हैं। भले इसे अंधविश्वास कहा जाता है, लेकिन यह एक कटु सत्य है कि टोनही जैसी चीज का अस्तित्व होता है। ऐसा साफ तौर पर ग्रामीणों का कहना है। इनका कहना है कि अगर किसी को इसे देखना है तो वह छत्तीसगढ़ आ सकता है। वैसे ये देश के हर कोने में हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में इसके बारे में ज्यादा किस्से हैं। एक तरफ ग्रामीण टोनही के होने का दावा करते हैं तो दूसरी तरफ इसको अंध विश्वास बताया जाता है। ग्रामीण इसको अंध विश्वास बताने वालों से कहते हैं कि क्यों नहीं वे उन स्थानों पर जाने की हिम्मत करते हैं जहां पर टोनही के बारे में कहा जाता है कि वह विचरण करती है। अगर है कोई ऐसा बंदा जो टोनही से मुक्ति दिला सकता है तो वहां जाए और बताए कि टोनही हकीकत नहीं बल्कि महज अंधविश्वास है।

सावन की रिमझिम फुहारों को देखकर यूं तो सबका मन खुश हो जाता है, पर सबसे ज्यादा खुशी किसानों को होती है क्योंकि सावन न आए तो बारिश न हो और बारिश न हो तो किसान खेती कैसे करेंगे। सावन के महीने में ही किसानों का सबसे बड़ा पर्व हरेली आता है। इस पर्व के दिन किसान अपने हल, बैलों के साथ कृषि सामानों की पूजा अर्चना करते हैं। और अच्छी फसल होने की कामना के साथ देवी-देवाताओं की पूजा करते हैं। हरेली के दिन का बच्चों को खासकर ज्यादा इंतजार रहता है। यह त्यौहार चूंकि बारिश के मौसम में होता है, ऐसे में बचे गेड़ी में चलते हैं। गेड़ी उसको कहते हैं जिसमें बड़े-बड़े दो बांसों को रखा जाता है और दोनों बांसों में पैर रखने के स्थान बनाए जाते हैं। इसके बाद इसमें चढ़कर बच्चे चलते हैं तो उनके पैर कीचड़ में गंदे नहीं होते हैं। इसी दिन छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यजन भी बनाए जाते हैं। मीठा चिले के साथ आटे के भजिए बनाए जाते हैं। यह त्यौहार कल यानी 22 जुलाई के दिन है।

एक तरफ जहां हरेली का पर्व खुशियां लेकर आता है, वहीं दूसरी तरफ इस पर्व का खौफ भी बहुत ज्यादा गांवों में क्या शहरों में भी रहता है। अक्सर शहर में रहने वालों को भी उनके परिजन हिदायत देते हैं कि आज घर जल्दी आ जाना यानी रात को 12 बजे से पहले आ जाना क्योंकि रात को 12 बजे के बाद टोनहियों के निकलने का समय रहता है। इसे भले अंध विश्वास का नाम दिया जाता रहा है, पर यह बात सच है कि छत्तीसगढ़ में टोनही का खौफ बहुत ज्यादा है। इसको किसी ने देखा है या नहीं हमें नहीं मालूम लेकिन हमने जरूर कुछ मौका पर इनको दूर से देखा है। अब दूर से देखी गई वह चीज टोनही थी, इसका दावा हम भी नहीं कर सकते हैं। लेकिन टोनही के बारे में जिस तरह से हमें भी बचपन से लेकर अब तक जो जानकारी मिली है, उसके आधार पर ही हम कह रहे हैं कि शायद वह टोनही थी। हमने टोनहियों के साथ एक लंबे सफर की दास्ता एक बार लिखी भी है।

बहरहाल तंत्र-मंत्र से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि तंत्र-मंत्र जैसी शक्ति होती है। इसी के सहारे लोगों के जीवन से खेलने का काम ऐसा जादू-टोना करने वाले करते हैं। हरेली के दिन के बारे में कहा जाता है कि इस दिन जरूर तंत्र साधना करने वाले हर तांत्रिक चाहे उसे टोनही कहा जाता हो, टोनहा कहा जाता हो या फिर और कहा जाता हो, सब रात को जरूर निकलते हैं । टोनही का अस्तित्व जानने के लिए यहां के अंध निर्मलन समिति ने हमेशा प्रयास किए हैं और लोगों को इस अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने की पहल की है। लेकिन लोग यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि टोनही एक अंध विश्वास है। छत्तीसगढ़ में टोनही के इतने ज्यादा किस्से हैं कि लगता है किसी के कहने से लोगों मानने वाले नहीं हैं कि टोनही कोई हकीकत नहीं बल्कि मिथ्या धारणा है। टोनही के बारे में जानने वाले ग्रामीणों की मानें तो वे दावा करते हैं कि इसको अंधविश्वास मानने वाले जाकर शमशान में क्यों नहीं देखते हैं कि टोनही होती है या नहीं? या फिर खेतों की उन सुनसान पकडंडिय़ों में क्यों नहीं जाते हैं जहां के बारे में कहा जाता है कि टोनही वहां वितरण करती है। ऐसे स्थानों पर जाने में तो टोनही को अंधविश्वास साबित करने की कोशिश करने वालों को भी डर लगता है। फिर कैसे माना जाए कि टोनही अंध विश्वास है। इन ग्रामीणों की बातें भी अपने स्थान पर सत्य है। आज तक किसी भी ऐसे व्यक्ति ने वास्तव में ऐसे स्थानों में जाने की हिम्मत नहीं दिखाई है। अगर कोई ऐसा बंदा है और ऐसा साहस कर सकें तो शायद ग्रामीणों को टोनही से मुक्ति मिल जाए। तो कौन है वह बंदा जो इतना साहस कर सकता है। अगर कोई है तो जरूर वह छत्तीसगढ़ आकर इन ग्रामीणों को इस अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने की एक पहल करे ताकि लोग टोनही के जाल से मुक्त हो सकें।

7 टिप्पणियाँ:

Unknown मंगल जुल॰ 21, 08:53:00 am 2009  

गांव वालों को अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने की काम करना ही होगा। नहीं तो ग्रामीण तंत्र-मंत्र के जाल में ताउम्र फंसे रहेंगे और इससे मुक्ति दिलाने के नाम पर ठगी वाले तांत्रिक पैसे कमाते रहेंगे।

Unknown मंगल जुल॰ 21, 09:03:00 am 2009  

आपने बिलकुल ठीक लिखा है कि छत्तीसगढ़ में ग्रामीणों को टोनही से मुक्ति दिलाने वाला कोई नहीं है। यह बात तो सच है कि छत्तीसगढ़ के हर गांव में टोनही के किस्से होते हैं।

बेनामी,  मंगल जुल॰ 21, 09:18:00 am 2009  

तंत्र-मंत्र से भला कैसे इंकार किया जा सकता है। शैतानी ताकते तो पूरी दुनिया में हैं। और इनसे लडऩे वाले अच्छे लोग भी है जिनके कारण यह दुनिया कायम है।

a. k. sing,  मंगल जुल॰ 21, 09:44:00 am 2009  

हरेली ज्यौहार के बारे में जानकर अच्छा लगा कि किसान इस दिन अपने कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं।

Unknown मंगल जुल॰ 21, 09:50:00 am 2009  

टोनही की सच्चाई जानने की पहल जरूरी है।

Unknown मंगल जुल॰ 21, 03:18:00 pm 2009  

गेड़ी की बारे में एक नई जानकारी मिली है, धन्यवाद

Anil Pusadkar मंगल जुल॰ 21, 11:15:00 pm 2009  

मुझे भी सदस्य बनाया गया है एक सरकारी कमेटी मे जो टोनही पर नियंत्रण पाने के लिये बनाई गई है।पता नही वो क्या कर रही है?

Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP