भईया व्यापार की कांफ्रेंस हो तो जरूर बताना
क्राइम रिपोर्टरों के सच को उजागर करने के बाद एक बेनामी मित्र ने साथ प्रणव जी ने कह दिया कि खाली क्राइम रिपोर्टरों के पीछे क्यों पड़े हैं, क्या दूसरे रिपोर्टर साहूकार हैं। मित्रों कोई भी रिपोर्टर साहूकार हैं यह हम नहीं कह सकते हैं, और न ही हम यह कह सकते हैं कि सारे रिपोर्टर दलाल या फिर और कुछ हैं। हम जब खुद इस पेशे में हैं तो हमें तो कम से कम मालूम है कि कौन कितना ईमानदार है। वैसे ईमानदार तो आज के जमाने में कोई नजर नहीं आता है। फिर भी ईमानदारी जिंदा है। बहरहाल जब कुछ मित्रों ने दूसरे रिपोर्टरों की बात की है तो चलो रिपोर्टरों की गिफ्ट लेने वाली कौम का भी जिक्र कर लिया जाए। हम छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर गिफ्ट मिलने वाली कांफ्रेंस व्यापार की होती। इस तरह की कांफ्रेंस का बहुत से पत्रकार मित्रों को बेताबी से इंतजार रहता है। अक्सर गिफ्ट की चाह रखने वाले मित्र दूसरे पत्रकारों से कहते नजर आते हैं कि भईया व्यापार की कांफ्रेंस हो तो हमें भी जरूर बताना। फिर भले उस कांफ्रेंस में उस अखबार के बंदे को न बुलाया हो, लेकिन लोग व्यापार की कांफ्रेंस के नाम से टूट पड़ते हैं। अब व्यापार की कांफ्रेंस करवाने वाले भी पत्रकारों की औकात समझ गए हैं। ऐसे में या तो वे गिफ्ट देते ही नहीं हैं और देते हैं तो सौ-पचास रुपए वाला गिफ्ट थमा देते हैं, या फिर जिन रिपोर्टरों से उनको संबंध बनाकर रखने होते हैं, उनके घर भी भिजवा देते हैं गिफ्ट।
आज पत्रकारों की कौम बहुत ज्यादा बदनाम हो गई है। पुलिस की दारू, नेताओं और अफसरों के लिफाफे से लेकर व्यापार की कांफ्रेंस के गिफ्ट को लेकर पत्रकार एक तरह से कटघरे में खड़े हैं। व्यापार की कांफ्रेंस के बारे में अक्सर प्रेस क्लब में यह सुनने को मिलता है कि जूनियर रिपोर्टर जिनको व्यापार की प्रेस कांफ्रेस में बुलावा नहीं आता है, वे अक्सर बड़े अखबारों के व्यापार के रिपोर्टरों के सामने गिड़गिड़ाते नजर आते हैं और उनसे फरियाद करते हैं कि भईया हमें भी तो बता दिए करें व्यापार की कांफ्रेंस के बारे में। व्यापार की कांफ्रेंस का आयोजन ज्यादातर विज्ञापन एजेंसी वाले करवाते हैं। उनको मालूम रहता है कि किन अखबारों के रिपोर्टरों को बुलवाना है। ऐसे में जब भी कोई क्रांफेंस किसी होटल में होती है तो एजेंसी वाले उस कंपनी के आदेश के मुताबिक ही मुख्य चार-पांच समाचार पत्रों के व्यापार प्रतिनिधियों को ही आमंत्रण देते हैं। लेकिन व्यापार की कांफ्रेंस की चाह में घात लगाए बैठे गिफ्ट के भूखे पत्रकारों को पता चल ही जाता है और वे बिन बुलाए मेहमान की तरह पहुंच जाते हैं, वहां पर। अब अगर कोई बिन बुलाए आ जाए और वह भी पत्रकार तो फिर भला उनको बाहर का रास्ता दिखाने की हिम्मत कौन सी कंपनी वाले कर सकते हैं। उनको भी मालूम है कि भले है वह एक मामूली अखबार का रिपोर्टर पर उसे अगर गिफ्ट नहीं मिला तो वह जरूर ऐसा कुछ छापने के परहेज नहीं करेगा जिससे उस कंपनी की साख पर बट्टा लग सकता है। ऐसे में बेचारे कंपनी वाले मन मारकर ऐसे बिन बुलाए रिपोर्टरों को भी ससम्मान बुलाते हैं। लेकिन अब कंपनी वालों को भी यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गई है कि गिफ्ट के भूखे बिन बुलाए मेहमानों की कमी नहीं है। ऐसे में या तो कंपनी वाले गिफ्ट देते ही नहीं है और होटल में बुलाकर नाश्ते -चाय में निपटा देते हैं, अगर गिफ्ट देना भी रहा तो सौ पचास रुपए का गिफ्ट दे देते हैं। बाहर की कंपनियों की नजरों में पत्रकारों की इतनी ही औकात है। अगर पत्रकारों की औकात आज सौ-पचास रुपए की है तो इसके लिए जिम्मेदार भी पत्रकार हैं जिनको अपनी कीमत मालूम नहीं है।
न जाने क्यों लोग सौ-पचास रुपए के गिफ्ट के पीछे भागते हैं और पत्रकारों की पूरी कौम को बदनाम करने का काम करते हैं। क्या पत्रकारिता में इसलिए आए हैं कि आप गिफ्ट ले और पत्रकारों की कौम को बदनाम करें। बंद होनी चाहिए ऐसी वाहियात हरकतें जिसके कारण पूरी पत्रकार कौम आज बदनाम हो रही है। कई मौका पर हम लोगों को बहुत ही शर्म आती है कि कहां हम लोग फंस गए हैं यार। न जाने आज के पत्रकार किस मिट्टी के बने हैं जो बेशर्मों की तरह बिन बुलाए कहीं भी मुंह उठाए चले जाते हैं। अगर मुफ्त के माल की इतनी ही ज्यादा तरकार है तो ऐसे लोगों को ेसड़क पर कटोरा लेकर खड़े हो जाना चाहिए, कम से कम पत्रकारों की कौम तो बदनाम होने से बच जाएगी। लेकिन क्या किया जाए ये लोग ऐसा करने वाले नहीं है।
आखिर किस-किस को कितना समझाया जाए कि अपने कलम की ताकत को पहचानो और मत बेचों इसको चंद सिक्कों के बदले में। मगर समझने वाला कौन है। हमें तो लगता है कि इनको समझाने का मतलब है पत्थरों में सिर फोडऩा। यही वजह रही है कि अपनी कौम के बारे में लिखने से हम कतराते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि जब हम कड़वा सच लिखने बैठेंगे तो जहां लिखने के लिए बहुत कुछ हैं, वहीं इस सच्चाई को हजम करने वाला कोई नहीं है। यह तो एक प्रसंग निकला तो सोचा चलो अब लिख ही दिया जाए। आगे और ऐसे प्रसंग सामने आते रहें तो हम जरूर लिखेंगे फिर चाहे किसी को कितना ही बुरा लगे तो लगता रहे।
8 टिप्पणियाँ:
व्यापार क्या आज हर कांफ्रेस में पत्रकार गिफ्ट की चाह रखते हैं। जहां गिफ्ट नहीं मिलता है, वहां की खबरें या तो छपती नहीं, अगर छपती हैं तो महज खानापूर्ति के लायक।
पत्रकारों की कौम को बदनाम करने वाले पत्रकारों का बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाते हैं सीनियर पत्रकार।
कलमकार भी अब पैसों के गुलाम हो गए हैं। चंद सिक्कों के बदले पत्रकारों से जैसी चाहे खबरें बनवा लें।
गिफ्ट के पीछे भागने वाले पत्रकारों पर शर्म आती है।
अब भी समय है, पत्रकारों को अपनी ताकत को पहचाना होगा।
पत्रकारों ने खुद अपनी औकात से खिलवाड़ किया है, कोई क्या कर सकता है।
पत्रकारों के पीछे काहे पड़ें है गुरु
पुलिस की दारू, नेताओं और अफसरों के लिफाफे से लेकर व्यापार की कांफ्रेंस के गिफ्ट को लेकर पत्रकार एक तरह से कटघरे में खड़े हैं।
ये बात तो सच है
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