क्राइम रिपोर्टर या पुलिस के दलाल
मीडिया में इस समय क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टरों की छवि बिलकुल ठीक नहीं है। इनको एक तरह से पुलिस का दलाल कहा जाने लगा है। एक वह समय था जब क्राइम रिपोर्टर से पुलिस वाले खौफ खाते थे, लेकिन आज के क्राइम रिपोर्टरों में दम ही नहीं है कि वे पुलिस के खिलाफ कुछ लिख सकें। अगर वे ऐसा कुछ करते हैं तो उनको डर रहता है कि उनको खबरें ही नहीं मिलेंगी। इसी के साथ उनको यह भी डर रहता है कि अगर उनको किसी को छुड़ाना होगा तो पुलिस वाले उनकी बात नहीं सुनेंगे और उनकी दलाली बंद हो जाएगी। कुल मिलाकर आज के क्राइम रिपोर्टर रिपोर्टिंग नहीं पुलिस का रोजनामचा लिख रहे हैं और उनकी दलाली कर रहे हैं।
आज एक अखबार में अनारा गुप्ता वाले मामले में एक लेख पढऩे को मिला। वास्तव में इस लेख में जिस तरह से क्राइम रिपोर्टरों के बारे में लिखा गया था, वह सौ फीसदी सच है। आज के क्राइम रिपोर्टर सच में पुलिस के पीछे चलने वाले गुलाम से ज्यादा कुछ नहीं हैं। आज किसी क्राइम रिपोर्टर की अपनी कोई सोच नहीं रह गई है। पुलिस वाले जो उनको बता देते हैं, वही उनके लिए खबर है। कोई भी किसी खबर पर मेहनत ही नहीं करना चाहता है। आज कल तो कम से कम अपने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में यह परंपरा हो गई है कि शाम को रोज पुलिस कंट्रोल रूम में सारे अखबारों के रिपोर्टरों को बुलाया जाता है और चाय की चुश्कियों के बीच उनको दिन भर में हुई घटनाओं का एक-एक पर्चा थमा दिया जाता है। रिपोर्टर वो पर्चा लेकर आ जाते हैं और वही सब बातें लिख देते हैं जो पुलिस अपने रोजनामचे में लिखती है। किसी रिपोर्टर की किसी घटना में थोड़ी से रूचि होती है तो वह उसके बारे में कुछ विस्तार से जानने का प्रयास करता है, पर यह विस्तार ऐसा नहीं होता है जिससे यह लगे कि रिपोर्टर पुलिस से एक कदम आगे की जानकारी रखता है।
हमें याद है जब हम लोग आज से करीब दो दशक पहले क्राइम रिपोर्टिंग करते थे। यह तो वह जमाना था जब न तो मोबाइल की सुविधा थी और न ही कोई दूसरी। फिर भी हम लोगों का नेटवर्क इतना तगड़ा था कि कोई भी घटना होते ही प्रेस में या फिर घर पर फोन आ जाता था और हम सीधे कूच कर जाते थे घटना स्थल की और ताकि देख सकें कि वास्तव में माजरा क्या है। घटना को देखने के बाद पुलिस से जो जानकारी मिलती थी वो और खुद हम जो जानकारी एकत्रित करते थे, वो मिलाकर खबर बनाते थे। कई मौका पर ऐसा हुआ कि पुलिस को हमारी जानकारी के आधार पर जांच करने में सफलता मिली। हमें आज भी याद है जब हमने राजीव गांधी के हत्यारे शिवरासन के बारे में खबर प्रकाशित की थी, तो उस खबर पर 8 पुलिस वाले निलंबित हो गए थे। इस खबर के बारे में हम पहले काफी विस्तार से लिख चुके हैं। हमने अपने शहर में अनिल पुसदकर जैसे भी क्राइम रिपोर्टर देखें हैं जिनके लेखन से हमेशा पुलिस में दहशत रही है। क्या उनको कभी किसी पुलिस वाले ने खबर न बताने की हिम्मत की? अनिल जी भी इसलिए दमदारी से लिखते थे कि उनको कोई पुलिस ने पैसे तो खाने नहीं रहते थे, न ही अपना कोई काम करना रहता था। हमें याद है कि हम जब क्राइम रिपोर्टिंग करते थे तो हम कभी भी किसी थाने में जाकर किसी थाने के प्रभारी के पास जाकर नहीं बैठे। हमारी दोस्ती सिपाहियों से ज्यादा रही। असल में खबरें बताने का काम यही करते हैं।
आज के क्राइम रिपोर्टरों की बात करें तो कोई भी रिपोर्टर एसपी से नीचे की बात नहीं करता है। एसपी अगर खबरें बताने लगे तो उनका ही निकाला हो जाएगा पुलिस विभाग से। एसपी तो बस आपको चाय पिला सकते हैं। और आज के रिपोर्टर सुबह को चाय और शाम को ठंड़ी चाय के आदि हो गए हैं। खबरें मिलती हैं कि एक ढाबे में एक आला अधिकारी क्राइम रिपोर्टरों को काकटेल पार्टी दे रहे हैं। यह सब रूटीन है, अगर आप क्राइम रिपोर्टर हैं और पीने का शौक रखते हैं तो आप भी आमंत्रित हैं, काकटेल पार्टी में। अब जनाब आप पुलिस वालों की दारू पिएंगे और उनका खाना खाएंगे तो फिर उनके खिलाफ लिखेंगे कैसे? लिखेंगे तो आप वही न जो पुलिस वाले बताएंगे। आपके अपने सोर्स तो ऐसे हैं नहीं कि आपको पुलिस वालों से ज्यादा जानकारी मिल सके। अगर ऐसे सोर्स रखने का दम आपमें है, तो जरूर पुलिस वाले भी आपके आगे-पीछे घुमेंगे। आज स्थिति यह है कि आज किसी रिपोर्टर को पुलिस से कोई जानकारी चाहिए होती है तो वह पुलिस वालों के आगे-पीछे कई दिनों तक घुमता है तब जाकर जानकारी मिलती है। कारण साफ है, आपकी नीयत और काम करने का तरीका दोनों साफ नहीं है। आप में अगर दम है तो पुलिस का कोई भी आला अफसर आपके एक इशारे पर सारा काम छोड़कर आपके द्वारा मांगी गई जानकारी हाजिर कर देगा। लेकिन पुलिस वाले जानते हैं कि आज के रिपोर्टरों में दम नहीं है। ऐसे में वे आपकी क्यों सुनने लगे।
25 टिप्पणियाँ:
सही कहा हजूर आपने ....एक अच्छा लेख
एक बात जाननी थी आपसे कि अपने ब्लॉग पर advertisement की अनुमति देने के लिए कितने पैसे लेने चाहिए....अगर आप कुछ बता सकें तो मेहरबानी होगी....
रिपोर्टिंग तो आज व्यापार हो गया है, क्या क्राइम रिपोर्टर क्या पोलिटीक्स रिपोर्टर सब के सब बिके हुए हैं।
अनिल जी
विज्ञापन के लिए जितने ज्यादा पैसे मिल अच्छा है, लेकिन शुरुआती दौर में अगर कोई कम पैसों में भी विज्ञापन देता है, तो उसे अनुमति देने में बुराई नहीं है। कुछ नहीं मिलने से कुछ मिलना बेहतर होता है।
आज के क्राइम रिपोर्टर से सच में पुलिस के गुलाम और दलाल है। पुलिस वालों के चक्कर में ये रिपोर्टर किसी भले इंसान को भी गुनाहगार बना देते ेहैं।
एक पत्रकार होते हुए भी आपने इतना बड़ा सच लिखने की हिम्मत की है। आपकी हिम्मत की दाद देनी होगी। आप जैसा सच लिखने की हिम्मत बहुत कम लोगों में होती है।
bahut hi satik mudde par likha hai aapne.
sadhuwad.
khastaur par chhattisgarh me yah dekhne me aa raha hai ki bade bade akhbar k crime reporter PHQ jakar bade officers k roj paur chhu rahe hai. fir kaise vo unke khilaf khabar likhenge.
aaj hi mere junior ne mujhse anumati mangi ki kal crime brance ke DSP k father ki terhavi hia kisi aur shahar me to subah se vaha chala jau kya sham tak laut k khabar bana dunga sari, maine kaha ki aise kaise possible hai boss. to ye haal hai.
ab socha ja sakta hai ki kya reportin ho rahi hai,
ab kaha anil bhaiya jaise crime reporter milenege. ab to paur chhune wale hi mil rahe hai.
satik muddaa uthane k liye sadhuwad fir se
सही पत्रकार वह है जो व्हिस्की की बाढ मे बह नही जाता और आँसुओं की बाढ में भी तटस्थ रहता है .
आज के रिपोर्टर तो हर किसी को सर प्रणाम कहकर बातें करते हैं, ऐसे रिपोर्टरों पर तरस आता है कि आखिर वे क्यों पत्रकारिता के पेशे को बदनाम करने के लिए इसमें आए हैं।
क्राइम रिपोर्टरों को दलाल की संज्ञा बिलकुल सही दी है आपने।
फिर अपना ही धंधा गंदा करने लगे गुरु
राजकुमार मैने तो सिर्फ़ अपना काम किया है।ये तुम्हारा और संजीत का बड़प्पन है जो मेरी तारीफ़ कर रहे हो।ईमानदारी से काम करने का आज मुझे इनाम मिल गया है।थैंक्यू सो मच।
जोरदार, दमदार, वजनदार, क्या कहा जाए आपने इतना लाजवाब लिखा है कि तारीफ में शब्द ही नहीं है।
अरे भई खाली क्राइम रिपोर्टरों के पीछे क्यों पड़े हैं, क्या दूसरे रिपोर्टर साहूकार हैं, जरा उनको भी तो नंगा करने का काम करो।
रिपोर्टर और दलाल में कोई फर्क नहीं रह गया है, जिस रिपोर्टर को देखों वो किसी ने किसी की दलाली में करने में लगा है। कोई पुलिस की दलाली कर रहा है तो किसी नेता की कोई मंत्री की तो किसी व्यापारी की। अब क्या कहा जाए। लेकिन मुद्दा आपने जबरदस्त उठाया है। हमारा भी साधुवाद
मैंने आपकी राजीव गांधी के हत्यारे शिवरासन वाली खबर भी पढ़ी थी। यह खबर पत्रकारिता के लिए एक मिसाल है। आज-कल ऐसी खबरें कोई बनाने की हिम्मत नहीं कर सकता है। आज के पत्रकार पक्की हुई खिचड़ी खाने की आदी हो गए हैं।
होली-दीवाली में पुलिस के सामने दारू के लिए कई पत्रकारों को गिड़गिड़ाते हुए मैंने खुद कई बार देखा है। पत्रकारों की ऐसी हरकतें देखकर मैं सोचता हूं कि क्या यही देश के चौथे स्तंभ के आधार है।
पुलिस के खिलाफ लिखने के लिए दम चाहिए और ये दम किसी दारूबाज पत्रकार में हो ही नहीं सकता है।
बेनामी की बातें से मैं भी सहमत हूं। दूसरे रिपोर्टरों के भी सच को नंगा किया जाए।
अनारा गुप्ता तो भी क्राइम रिपोर्टरों की दलाली के कारण बदनाम हुई थी। अब उनको जब बरी कर दिया गया तो क्या ये रिपोर्टर उनकी खोई हुई इज्जत वापस दिला सकते हैं।
क्राइम रिपोर्र्टिंग कोई हंसी-खेल नहीं है जिस तरह से आज इसको बना दिया गया है। हर नए रिपोर्टर को क्राइम रिपोर्टर बना दिया जाता है।
अनिल जी के लेखन के तो हम आज भी कायल हैं।
एक नंगा सच लिखने के लिए आपको साधुवाद
अनिल जी जैसे क्राइम रिपोर्टरों की आज सक्त जरूरत है।
सिर्फ क्राइम रिपोर्टर ही क्यों हर रिपोर्टर किसी न किसी की दलाली कर रहा है, फिर बेचारे क्राइम रिपोर्टर को दोष देकर आप क्यों क्राइम कर रहे हैं। अगर क्राइम रिपोर्टर नाराज हो गए तो क्या होगा?
न तो वैसे पत्रकार रहे न ही वैसी पत्रकारिता
ब्लैक मेलिंग करने या इससे बचने के लिए चल रही है अखबार की दूकान
कुछ न कर सका तो पत्रकार बन गया ...कुछ ऐसे ही मोहल्ले में है हमारा -तुम्हारा मकान ...
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