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शुक्रवार, जुलाई 31, 2009

ये कैसी नारी शक्ति

नारी शक्ति का लोहा तो पूरा भारत देश क्या समूचा विश्व मानता है। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं होता है कि आप अपनी इस शक्ति का गलत उपयोग करें। अरे भई शक्ति दिखाने से किसने मना किया है। लेकिन शक्ति का मतलब यह तो नहीं होता है कि आप अपनी शक्ति के कारण दूसरों को परेशान करें। अपना हक मांगने के लिए शक्ति का दिखाना जरूरी होता है, लेकिन अपनी शक्ति दिखाने के चक्कर में आप अगर हजारों लोगों को मुसीबत में डालने का काम कर रहे हैं तो फिर ये कैसी नारी शक्ति है। नारी को तो त्याग की मूर्ति के रूप में जाना जाता है। लेकिन अगर यही नारी दूसरों के लिए परेशानी का सबब बने तो इसे क्या कहा जाएगा। ऐसी ही परेशानी का सबब बनने का काम नारियों ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तब किया जब आंगनबाड़ी की महिलाओं ने सरकार को अपनी शक्ति दिखाने के चक्कर में शहर के हजारों नागरिकों को परेशानी में डाल दिया। महज परेशानी में डाला होता तो भी चल जाता क्योंकि नागरिकों को परेशानी में पडऩे की आदत हो गई है, लेकिन महिलाओं ने अपनी रैली में जिस तरह का व्यवहार आम जनों के साथ किया, वह बिलकुल गलत था।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अपनी मांगों को लेकर आंगनबाड़ी की महिलाओं ने जोरदार रैली निकाली। यह रैली वास्तव में काबिले तारीफ थी जिसमें महिलाओं ने अपनी एकता का सबूत दिया। उनकी एकता एक मिसाल का काम करती अगर महिलाओं ने इस रैली में थोड़ी सी सावधानी बरती होती। लेकिन न जाने इन महिलाओं को यह पाठ किसने पढ़ाया था कि अपनी रैली में वे आम जनों को परेशान करने का काम करें। शायद ये महिलाएं भूल गईं थीं कि वो खुद भी आम जनों में शामिल हैं, और जिस तरह की परेशानी वो दूसरों के लिए खड़ी करने का काम कर रही हैं, वैसी परेशानी उनके साथ भी आए दिनों होती रहती हैं, लेकिन जब इंसान अपने स्वार्थ में स्वार्थी हो जाता है तो उसे किसी से कोई मतलब नहीं रहता है। ऐसा ही कुछ इन महिलाओं के साथ हुआ। इनकी रैली से सरकार को तो कोई असर नहीं पड़ा लेकिन आम जनों को जरूर परेशानी नहीं बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा।

महिलाओं ने एक किलो मीटर से ज्यादा लंबी रैली में रोड़ को इस तरह से घेर लिया था कि कोई भी पैदल नहीं चल सकता था। महिलाओं ने रोड़ के दोनों किनारों से लंबी कतारें बनाई थीं। कतारें बनाना और रोड़ को इस तरह से घेरना भी बर्दाश्त किया जा सकता था, लेकिन महिलाओं ने रोड़ के किनारे से पैदल चलने वालों के साथ जिस तरह ही बदसलूकी की, वह वास्तव में दुखद रही। इन महिलाओं को इस बात से कोई मतलब नहीं था कि कोई बच्चा स्कूल जाने से वंचित रह जाए या कोई दफ्तर न जा पाए , या फिर कोई अस्पताल जा रहा हो रास्ते में ही उसका दम निकल जाए। इनको तो बस अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना था। महिलाओं ने न सिर्फ बाइक सवारों को अपना निशाना बनाया और उनको घंटों रोके रखा बल्कि पैदल चलने वालों को धक्के मारकर गिराने का काम भी किया। हमने खुद इस रैली को काफी दूर तक देखा और देखा कि किस तरह से महिलाएं पैदल रास्ता पार करने वालों को भी न सिर्फ धक्के मार रही थीं, बल्कि उनके साथ गाली-गलौज भी कर रही थीं। पहले हमें रैली देखकर अच्छा लगा था कि चलो महिलाओं ने सरकार को जगाने के लिए अपनी जोरदार शक्ति तो दिखाई, लेकिन उनकी हरकतें देखकर सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि आखिर ये कैसी नारी शक्ति है?

सरकार से मांगे मनवाने का आखिर ये कौन सा तरीका है? कितनी सरकारों ने ऐसी रैलियो रैलियों ने प्रभावित होकर मांगे मानी हैं। सरकारों को तो असर नहीं होता है, लेकिन आम जन जरूर परेशान हो जाते हैं। अरे भाई विरोध करने और रैली निकालने से किसने रोका है। रैली शालीनता से भी तो निकाली जा सकता है। अगर आम जनों को परेशान किए बिना ऐसी रैली निकाली जाए तो आम जनों का भी समर्थन मिल सकता है। लेकिन अगर आम जन परेशान होंगे तो वे क्यों कर ऐसी किसी रैली की मांगों का समर्थन करेंगे। अगर जन समर्थन लेकर कोई काम किया जाए तो जरूर उसका नतीजा सुखद होता है। वैसे भी आम जन क्या वीआईपी की वजह से होने वाले जाम से कम परेशान होते हैं जो आम जनों में शामिल लोग भी अब अपनी बिरादरी को परेशान करने का काम करने लगे हैं। कम से कम आम जनों में शामिल लोगों से तो यह उम्मीद जरूर की जा सकती है कि वे अपनी बिरादरी की परेशानी को समझेंगे और ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे लोग परेशान हों। लेकिन इसका क्या किया जाए कि जब आम जन अपनी मांगों के स्वार्थ में घिर जाता है तो वह वीआईपी से ऊपर हो जाता है और अपनी एकता के नशे में यह भूल जाता है कि कल को उसको भी किसी रैली में तब फंसाना पड़ सकता है जब वह अपने किसी परिजन को अस्पताल ले जा रहा हो, या फिर दफ्तर जा रहा हो या फिर अपने बच्चों को स्कूल छोडऩे जा रहा हो। इन बातों का अगर ध्यान रखा जाए तभी आपकी रैली सार्थक होगी। वरना तो आप भी वीआईपी की तरह लोगों को परेशान करते रहें और उनके कोसने और बदुवाओं के शिकार होते रहे।

17 टिप्पणियाँ:

Unknown शुक्र जुल॰ 31, 08:44:00 am 2009  

कोई भी आंदोलन शालीनता पूर्वक होना चाहिए। हड़ताल और रैलियों से सरकार का कुछ नहीं बिगड़ता , इससे आम जन जीवन ही प्रभावित होता है, न जाने यह बात कब लोगों के समझ में आएगी।

guru शुक्र जुल॰ 31, 08:57:00 am 2009  

दादागिरी से नहीं गांधीगिरी से बात बनती है गुरु

sushil varma,  शुक्र जुल॰ 31, 09:11:00 am 2009  

आम जनता का ध्यान जब आम जनता भी नहीं रखेगी तो फिर इस देश का क्या होगा।

Unknown शुक्र जुल॰ 31, 09:30:00 am 2009  

नारी शक्ति के नाम पर लोगों को परेशान नहीं करना चाहिए।

Unknown शुक्र जुल॰ 31, 10:01:00 am 2009  

महिलाओं की एकता को सलाम है, पर एकता के नाम पर दादागिरी गलत बात है।

vishal,  शुक्र जुल॰ 31, 10:02:00 am 2009  

रैली के नाम पर लोगों से गलत व्यवहार करना निंदानीय है।

Unknown शुक्र जुल॰ 31, 10:22:00 am 2009  

शक्ति दिखानी है तो नेता-मंत्रियों के काफिलों का रास्ता जाम करो।

बेनामी,  शुक्र जुल॰ 31, 01:43:00 pm 2009  

महिलाओं से टकराने का अंजाम बहुत बुरा होता है। आम आदमी की हैसियत महिलाओं के सामने कुछ नहीं है।

m. javed,  शुक्र जुल॰ 31, 01:44:00 pm 2009  

सरकार को आम आदमी की परेशानियों से वैसे भी कोई मतलब नहीं रहता है। सरकार तो चाहती ही है कि आम जनता एक-दूसरे में उलझी रहे और उसकी तरफ कोई ध्यान न दे ताकि उसकी दुकानदारी चलती रहे।

बेनामी,  शुक्र जुल॰ 31, 02:00:00 pm 2009  

सरकारें कुछ करती तो न तो रैलियों निकलती और न ही आंदोलन होते।

बेनामी,  शुक्र जुल॰ 31, 02:01:00 pm 2009  

अब रैली में कोई घुसने की कोशिश करेगा तो उसका हाल तो बुरा होगा न।

बेनामी,  शुक्र जुल॰ 31, 05:09:00 pm 2009  

क्यों सर! धक्का देने, गाली देने, बेइज्जत करने का ठेका क्या पुरूषों ने लिया हुया है क्या? नारी यह सब करे तो इतनी हाय-तौबा क्यों!?

यह ब्लॉग जगत में दिखने वाली आम पंक्तियाँ हैं। यहाँ नहीं दिखी तो मैने सोचा कि लिख ही दूँ :-)

बेनामी,  शुक्र जुल॰ 31, 06:36:00 pm 2009  

इस समस्या को ब्लॉग में स्थान देकर आपने ब्लॉग की सच्ची उपयोगिता प्रकट की है क्योकि आजकल के अख़बारों में जन समस्याओं के लिए स्थान दिनोदिन कम से कमतर होते जा रहे हैं ...ये समस्या केवल किसी एक की ही नहीं है बल्कि आज कल आये दिन होने वाले जुलूसों और रैलियों का यही हाल है उम्मीद है की इन पक्तियों को पढने से अगर एक भी व्यक्ति पर थोडा कुछ भी असर हो तो यह ब्लॉग की सार्थकता होगी. ......एक महत्वपूर्ण विषय को ब्लॉग में स्थान देने के लिए आपका विशेष आभार !

Unknown शुक्र जुल॰ 31, 07:36:00 pm 2009  

ब्लाग में ऐसी ही जन समस्याओं को उजागर करने का काम करना चाहिए। आपने एक अच्छा काम किया है। आपके ब्लाग में अक्सर जन समास्याओंसे जुड़े मुद्दे पढऩे को मिलते हैं। आपके ब्लाग का अनुशरण और ब्लागरों को भी करना चाहिए।

cl yadav,  शुक्र जुल॰ 31, 07:39:00 pm 2009  

बेनामी मित्र की बात से मैं भी सहमत हूं कि अखबारों में आमजनों की समस्याओं से जुड़ी खबरों को स्थान नहीं दिया जाता है। अगर ब्लाग में ऐसी खबरों को स्थान मिलने लगे तो जन समस्याओं के लिए इस बड़ी बात नहीं हो सकती है।

anu शुक्र जुल॰ 31, 07:45:00 pm 2009  

नारी क्या किसी को भी यह हक नहीं पहुंचता है कि वह किसी रैली के दौरान आम आदमी के साथ गलत व्यवहार करे। ऐसा करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

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