लग जाऊं तुम्हारे गले ऐसा इंतजाम करो ...
चांदनी रात का जरा दीदार करो
हसीन शमा है रात का जरा सा प्यार करो ।
हटाकर अपने चेहरे से काली जुल्फों को
इक नजर देखने का हसीन गुनाह करो ।
क्यों है छाया तुम्हारी नजरों में बेगानापन
मेरी मोहब्बत का जरा का इतबार करो ।
अपनी आंखों को दे कर थोड़ी सी जहमत
नजरों से मिलाकर नजरें बातें करो ।
तुम्हारी नजरों को चमन की बहारें चुमें
लग जाऊं तुम्हारे गले ऐसा इंतजाम करो ।
मेरे सपनों की शहजादी प्रियतमा
तुम हमारे प्यार का सपना साकार करो ।
हसीन शमा है रात का जरा सा प्यार करो ।
हटाकर अपने चेहरे से काली जुल्फों को
इक नजर देखने का हसीन गुनाह करो ।
क्यों है छाया तुम्हारी नजरों में बेगानापन
मेरी मोहब्बत का जरा का इतबार करो ।
अपनी आंखों को दे कर थोड़ी सी जहमत
नजरों से मिलाकर नजरें बातें करो ।
तुम्हारी नजरों को चमन की बहारें चुमें
लग जाऊं तुम्हारे गले ऐसा इंतजाम करो ।
मेरे सपनों की शहजादी प्रियतमा
तुम हमारे प्यार का सपना साकार करो ।
7 टिप्पणियाँ:
अच्छी कविता है, बधाई
हर युवा दिल की तमन्ना लगती है यह कविता
जितनी सुन्दर रचना है, उतनी ही सुन्दर ऊपर लगी तस्वीर ... बहुत खूब !!
गजब लिखते हो गुरु
सुंदर अभिव्यक्ति है
हटाकर अपने चेहरे से काली जुल्फों को
इक नजर देखने का हसीन गुनाह करो ।
क्यों है छाया तुम्हारी नजरों में बेगानापन
मेरी मोहब्बत का जरा का इतबार करो ।
बहुत मजेदार लिखा है मित्र, मजा आ गया, ऐसा लगता है कि हर युवा दिल अपनी प्रेयसी से यही कहता होगा
rajni जी की टिप्पणी को हमारी भी टिप्पणी समझा जाय !
एक टिप्पणी भेजें