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मंगलवार, जुलाई 14, 2009

मत बेचो मां को


एक दुस्वप्न देखता हूं

अपने ही भाई

मां को मार रहे हैं

उसके शरीर के

टुकड़े-टुकड़े कर रहे हैं

किन्तु मां

शांत, धैर्यपूर्ण मुद्रा में

उन्हें दुवाएं ही दे रही हैं

अचानक

मैं चौक उठता हूं

ये स्वप्न कहां

ये तो सच्चाई है

अपने ही भाई

भारत माता को

टुकड़ों में बांटने पर तुले हैं

अपने अंधे स्वार्थ की खातिर

विदेशियों के हाथों

बेचना चाहते हैं मां को

अरे पापियों

मत बेचो मां को

बड़ी मुश्किल से तो आजाद हुईं हैं

ये फिर जंजीरों का बोझ

सह न पाएगी

यदि जकड़ी गई फिर जंजीरों में

तो यह आजाद न हो पाएगी

(यह कविता हमने करीब 20 साल पहले लिखी थी, लेकिन आज भी हालात वही हैं बदले नहीं हैं)

10 टिप्पणियाँ:

Unknown मंगल जुल॰ 14, 09:44:00 am 2009  

भारत को फिर से गुलाम बनाने का सपना तो कई देश बरसों से देख रहे हैं, पर अब उनके हाथ सफलता लगने वाली नहीं है। लेकिन देश के टुकड़े करने वालों से सावधान भी रहने की जरूरत है।

Unknown मंगल जुल॰ 14, 09:59:00 am 2009  

ठीक फरमाते हैं आप आज से 20 साल पहले जैसे हालात थे, वैसे ही आज भी है कोई फर्क नहीं आया है। अच्छी रचना है।

mehek मंगल जुल॰ 14, 10:30:00 am 2009  

बड़ी मुश्किल से तो आजाद हुईं हैं

ये फिर जंजीरों का बोझ

सह न पाएगी

यदि जकड़ी गई फिर जंजीरों में

तो यह आजाद न हो पाएगी

sahi hai waqt badal gaya,haalat nahi badale,bahut achhi lagi rachana.

Unknown मंगल जुल॰ 14, 10:32:00 am 2009  

अरे पापियों
मत बेचो मां को
भई वाह क्या खूब लिखा है आपने

Unknown मंगल जुल॰ 14, 11:03:00 am 2009  

मां तो हमेशा दुवाएं ही देती हैं, अब यह तो मां की ममता को समझने वाले पर। आज के जमाने में जब लोग सगी मां को बेचने से नहीं चूकते हैं तो उनके लिए भारत मां क्या है?

Unknown मंगल जुल॰ 14, 11:05:00 am 2009  

शब्दों को बहुत अच्छे तरीके से बांधा है आपने जिसके कारण आपकी रचना सुंदर लग रही है।

अनिल कान्त मंगल जुल॰ 14, 01:42:00 pm 2009  

बहुत अच्छा लिखा है आपने

Udan Tashtari मंगल जुल॰ 14, 05:35:00 pm 2009  

हालात आज भी वही हैं..और रचना आज भी उतनी ही सामायिक!

Science Bloggers Association मंगल जुल॰ 14, 06:23:00 pm 2009  

बिलकुल सही कहा आपने। यह सोचने की बात है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर बुध जुल॰ 15, 12:10:00 am 2009  

लहुलुहान भारत की तस्वीर...पर चिन्ता किसे है?

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