रक्षक ही बना भक्षक
अचानक
राह के मध्य
भीड़ का हुजूम देखकर
उत्सुकतावश
हम उस और चल पड़े
देखा, नजारा बड़ा अजीब था
एक भयानक शक्ल-सूरत वाला गुंडा
एक असहाय अबला पर जोर आजमा रहा था
शायद उसे कहीं अपने साथ ले जाकर मनमानी करना चाहता था
वह अबला
आंसू भरी आंखों से
मदद की फरियाद कर रही थी
पर, भीड़ बिना टिकट का तमाशा देखने में लीन थी
अचानक
एक पुलिस वाला उधर आ निकला
उसने गुंडे को डरा-धमकाकर
कुछ ले-देकर चलता किया
फिर उस अबला को लेकर थाने की और चल पड़ा
हमारा कवि मन
अबला का हाल जानने के लिए उसके पीछे चल पड़ा
पुलिस वाला
अबला को लेकर थाने में घुस गया
हम बाहर खड़े काफी देर तक इंतजार करते रहे
अचानक
वह अबला थाने से दौड़ती हुई बाहर आई
और
वह उस ओर दौड़ी जिस तरफ रेलवे की लाइन थी
हम उसका इरादा भांप
उसके पीछे भागे
पर, हमें उस तक पहुंचने में कुछ देर हो गई
और, वह अबला अपने मकसद में कामयाब हो गई
ट्रेन के नीचे आकर वह इस दुनिया से कूच कर गई
लेकिन
उसके फटे कपड़े अब भी उसके साथ हुए
अत्याचार की कहानी बता रहे थे
और उसकी लाश के टुकड़े
कानून के रक्षकों के हंसी उड़ा रहे थे
(पटना की घटना को देखते हुए हमें यह बरसों पुरानी लिखी कविता याद आई जिसे हमने यहां पेश किया है)
11 टिप्पणियाँ:
समाज का आईना है यह रचना
भीड़ तो होती ही है तमाशा देखने के लिए। अगर समाज के लोग जाग जाए तो महिलाओं के साथ सरे आम छेड़छाड़ ही क्यों हो।
बरसों से समाज का यही हाल है, कुछ नहीं बदला है और न ही बदलेगा ऐसा लगता है।
पुलिस वालों से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है
बहुत ही मार्मिक रचना है
यही तो रोना है कि लोग बस तमासा ही देखते है।
पुलिस वालों से बड़ा गुंडा कौन हो सकता है। पुलिस वालों के सामने गुंडों की चलती कहां है। बहुत वजनदार है आपकी कविता
पुलिस वाले बलात्कार करने से कैसे बाज आ सकते हैं।
समाज में आज भी जागरूकता की कमी है। समाज जागरूक हो जाए तो पटना जैसी घटनाएँ कभी न हो। अच्छी कविता है।
समाज में आज भी जागरूकता की कमी है। समाज जागरूक हो जाए तो पटना जैसी घटनाएँ कभी न हो। अच्छी कविता है।
हकीकत लिख डाला है .. आपने अपनी रचना में !!
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