नेताओं को सुरक्षा क्या मौत से बचा लेगी?
अपने देश के नेताओं को आम जनता से कोई लेना-देना नहीं है। उनको तो बस अपनी सुरक्षा की पड़ी है। अरे भाई ऐसा काम ही क्यों करते हो कि इतने दुश्मन हो गए हैं आपके कि आपको कदम-कदम पर सुरक्षा की जरूरत पड़ती है। जिसे देखो उसे जेड़ प्लस सुरक्षा की दरकार लगती है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या सुरक्षा इस बात की गारंटी है कि नेताजी की मौत नहीं होगी? जब देश के पूर्व प्रधानमत्रियों श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को भी सुरक्षा मौत से नहीं बचा सकी, तो फिर कैसे बाकी लोग अपनी किस्मत में लिखी मौत से बच सकते हैं। जब मौत आनी है तो आएगी ही, तो फिर क्यों देश की जनता के धन का दुरुपयोग नेताओं की सुरक्षा में किया जाए। इनकी सुरक्षा के एवज में तो जनता को लाठियां भी खानी पड़ती हैं। लगता है कि अपने देश के नेताओं को सुरक्षा के लिए अगर जनता से भिक्षा भी मंगवानी पड़ी तो वे बाज नहीं आएंगे। वैसे भी नेताओं के सामने जनता की औकात भिखारियों से ज्यादा कुछ नहीं है। जिनको हम लोग जनप्रतिनिधि बनाकर मंत्री की कुर्सी पर बिठाते हैं उनके पास ही हमारी समस्याओं के लिए समय नहीं रहता है। तो ऐसे में जनता भिखारी हुई कि नहीं जो मंत्रियों के दरबार में जाकर अपने छोटे से काम के लिए फरियाद करती है और मंत्री जी खुश हुए तो भीख में दे देते हैं, काम करवाने का आश्वासन। ये महज आश्वासन की भीख ही होती है, काम की गारंटी की नहीं।
देश की सबसे बड़ी संसद में नेताओं की सुरक्षा के मामले में सरकार के हारने की खबर के बाद एक बार फिर से नेताओं की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा हो गया कि आखिर नेताओं को इतनी ज्यादा सुरक्षा की जरूरत क्यों पड़ती है? क्यों नहीं सारे नेताओं की सुरक्षा को हटा दिया जाता है। क्या किसी को आज तक सुरक्षा मौत से बचा सकी है। क्या देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों श्रीमती इंदिरा गांधी
और राजीव गांधी को सुरक्षा नहीं दी गई थी। लेकिन उनकी मौत हो गई। किस तरह से इंदिरा गांधी को उनके ही सुरक्षा सैनिकों से मार गिराया था, यह बात सब जानते हैं। इसी तरह से राजीव गांधी का क्या हाल हुआ था, बताने की जरूरत नहीं है। तो जब सुरक्षा मौत से बचने की गारंटी है ही नहीं तो फिर क्यों देश की जनता के खून -पसीने की कमाई को मुफ्त में ऐसे नेताओं की सुरक्षा में बर्बाद किया जाता है, जिन नेताओं को अपने स्वार्थ के आगे कुछ नहीं दिखता है। क्या नेताओं ने कभी भी जनता की उन परेशानियों की तरफ ध्यान दिया है जो परेशानिया उनकी सुरक्षा को लेकर होती हैं। जब भी कोई वीआईपी किसी भी शहर में जाता है तो वहां की जनता उनकी सुरक्षा को लेकर किए जाने वाले इंतजाम से किस तरह से परेशान रहती है, बताने की जरूरत नहीं है।
एक तरफ नेताओं की सुरक्षा को लेकर आमजन परेशान रहते हैं तो दूसरी तरफ आमजनों की किसी भी परेशानी से नेताओं को कोई मतलब नहीं रहता है। अगर आपके शहर, कालोनी में कोई भी परेशानी है तो नेताजी को इसके लिए समय ही नहीं है। हाल ही में राजधानी की एक कालोनी में आवास मंत्री राजेश मूणत एक भवन का उद्घाटन करने गए थे, तो वहां पर कालोनी की महिलाएं उनके सामने अपनी समस्याएं लेकर पहुंचीं, तो मंत्री जी के पास उनकी समस्याएं सुनने के लिए समय ही नहीं था। लगातार अनुरोध के बाद भी जब मंत्री जी कालोनी का मुआयना करने के लिए तैयार नहीं हुए तो वहां पर उपस्थित एक लड़की को बहुत ज्यादा गुस्सा आ गया और वह भिड़ गर्इं मंत्री के साथ। मंत्री को उस लड़की ने इतनी ज्यादा खरी-खोटी सुनाई कि मंत्री भी पानी-पानी हो गए। मंत्री को उस लड़की ने यहां तक कह दिया कि आपके पास फीता काटने के लिए समय है, पर कालोनी की समस्याओं को देखने के लिए समय नहीं है।
वास्तव में यह शर्मनाक है कि जिन मंत्री को जनता वोट देकर इस लायक बनाती है कि वह मंत्री की कुर्सी पर बैठ सकें, वही मंत्री कुर्सी पाने के बाद उसी जनता की समस्याओं से ही नहीं बल्कि उनसे भी किनारा कर लेते हैं। दाद देनी होगी उस लड़की की हिम्मत की जिसने बिना यह सोचे राजेश मूणत जैसे मंत्री से भिडऩे का काम किया कि उनके चंगु-मंगु उस लड़की का कुछ भी कर सकते हैं। जब उस लड़की ने मंत्री को झाड़ा तो वहां पर उपस्थित मंत्री की चमची एक महिला ने लड़की को चुप करवाने की बहुत कोशिश की, पर वाह रे लड़की उसने किसी की बात नहीं सुनी। जिस लड़की ने मंत्री तक को फटकार दिया, उस लड़की का कालोनी वालों ने साथ नहीं दिया और यह कहने लगे कि तुम्हारी वजह से देखना अब कालोनी का काम नहीं होगा। लेकिन हुआ इसके उल्टा दूसरे दिन ही कालोनी का नालियां की सफाई होने लगी। आज वास्तव में ऐसी ही साहसी लड़कियों की जरूरत है जो राजेश मूणत जैसे हर मंत्री को सबक सिखाने का काम कर सकें।
जब तक नेता और मंत्रियों को जनता सबक सिखाने का काम नहीं करेगी, ये लोग अपने को जनता का अन्नदाता समझने की भूल करते रहेंगे। क्यों नहीं इनकी सुरक्षा वापस लेने के लिए आंदोलन किए जाते हैं? क्यों नहीं इनकी सुरक्षा को लेकर होने वाली परेशानियों को लेकर मोर्चा निकाला जाता है? अगर हम लोग आज भी नहीं सुधरे तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब नेताओं की सुरक्षा के लिए जनता को भीख मांगनी पड़ जाए। बहुत हो गई नेता और मंत्रियों की गुलामी अब इससे आजाद होने के लिए एक अलख जगाने की जरूरत है। संसद में नेता सुरक्षा को लेकर सरकार को घेरते हैं और अपनी सरकार भी ऐसे है कि उनके सामने झूक जाती है। अब सरकार को तो झूकना ही है क्योंकि सरकार में भी तो ऐसे ही स्वार्थी मंत्री भरे पड़े हैं। न जाने अपने इस देश का क्या होगा।
10 टिप्पणियाँ:
मंत्रियों और नेताओं को सुरक्षा देना ही गलत है। देश का धन देश की जान-माल की हिफाजत के लिए होता है, न कि ऐसे मंत्रियों की जो अपने स्वार्थ के लिए देश को भी बेचने से पीछे नहीं हटते हैं।
आम जनों की समस्याएं न सुनने वाले मंत्रियों पर तो जूते चलाने चाहिए
आपने ठीक कहा है जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को सुरक्षा मौत से नहीं बचा सकी तो बाकी कैसे बच सकते हैं। मौत का एक सत्य है जिससे कोई कैसे बच सकता है।
मंत्री फटकारने के लायक ही होते हैं। मंत्री से भिडऩे वाली उस लड़की को सलाम करते हैं।
अगर हर कालोनी में ऐसी लड़कियां हो जाए तो सारी समस्याएं समाप्त हो जाएगी।
सुरक्षा तो मौत से बचने की गारंटी हो नहीं सकती गुरु
मंत्रियों की सुरक्षा वापस लेनी चाहिए। मंत्रियों को सुरक्षा की जरूरत है तो निजी गार्ड रख लें। देश के पैसों की बर्बादी करने का क्या मतलब है। देश के धन को मंत्री लोग ही चाट रहे है।
मंत्री को उस लड़की ने यहां तक कह दिया कि आपके पास फीता काटने के लिए समय है, पर कालोनी की समस्याओं को देखने के लिए समय नहीं है।
बात में दम है
गम्भीर चिंतन।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
उस लड़की ने हिम्मत वाला किन्तु बिलकुल सही कदम उठाया. मंत्री जनसेवक होता है लेकिन ये नेता खुद को हमारा मालिक समझ बैठे हैं. इन्हें फटकारना और सबक सिखाना जरूरी है, परन्तु सबसे दुखद रवैया समाज के लोगों का होता है जो आवाज उठाने वालों का साथ देने के बजाये उसे ही कोसने लगते हैं और बहुत से लोग तो आवाज उठाने वाले को गालियाँ देकर जुल्म करने वाले की नजर में सुर्खरू होने की जुगत में रहते हैं. जब तक समाज में ऐसे लोग हैं आवाज उठाने वालों को खामोश करने की साजिश परवान चढ़ती रहेगी. ऐसे परिदृश्य में उस लड़की की हिम्मत आशा की किरण जगाती है.....
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