मां की ममता
अभी-अभी शाम ढ़लकर रात में बदली थी
इसी के साथ बाजार की रौनक
जलती हुई रौशनियों से बढ़ गई थी
लेकिन, यह सड़क कुछ वीरान थी
एक औरत
छाती में कुछ छुपाए हुए भाग रही थी
ऐसा लग रहा था मानो उसके पीछे
खूंखार भेडिए लगे हों
पता नहीं वह कितनी दूर से भागी आ रही थी
उसके बाल पूरी तरह से खुल चुके थे
लंबे, घने, स्याह बाल
पैरों में जूतियां
रफ्तार बनाए रखने को
न जाने वह कितने पीछे फेंक आई थीं
या फिर शायद
उसके पैरों में जूतियां ही नहीं थीं
उसके उठते पैरों की गोरी रंगत
मटमैले अंधेरे में भी उजागर हो रही थी
लगातार दौडऩे से
उसकी सांस उखड़ चुकी थी
शरीर कभी-कभी लडख़ड़ा जाता
लेकिन, कदम जैसे
रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे
वह देखते-देखते
बाजार में दाखिल हो गई थी
बाजार में एक दुकान के
अंधेरे कोने में वह जा दुबकी थी
सीने से भींचे हुए फटे आंचल में
उसने जो सय छुपा रखी थी
लगता था जैसे
वह कोई नन्हीं सी जान थी
और उस औरत को अपनी जान से ज्यादा प्यारी थी
उसकी भयभीत निगाहें
सड़क की तरफ ही लगी हुईं थीं
आंखों में बेइंतहा खौफ था
दहशत से तमतमाया चेहरा
और उखड़ी हुई सांसों के बावजूद
उसे किसी ने संग्दिध नजरों से नहीं देखा था
कारण
वह एक मामूली औरत थी
उसके बदन पर
एक फटी-पुरानी मामूली साड़ी थी
और साड़ी के आंचल में
कोई नन्हीं सी जान नहीं थी
बल्कि
उसने उसमें कुछ रोटियां छुपी रखी थीं
जो उसने अपने भूख से बिलखते बच्चों के लिए
कहीं से बहुत हिम्मत करके चुराई थी
और वापस छिन जाने के डर से
वह औरत
वहां से भाग खड़ी हुई थी
(नोट:- यह कविता करीब 23 साल पहले हमने कॉलेज में पढ़ाई के समय लिखी थी, यह कविता हमारी पुरानी डायरी से ली गई है जो डायरी लंबे समय बाद हाथ आई है)।
8 टिप्पणियाँ:
साड़ी के आंचल में
कोई नन्हीं सी जान नहीं थी
बल्कि
उसने उसमें कुछ रोटियां छुपी रखी थीं
जो उसने अपने भूख से बिलखते बच्चों के लिए
कहीं से बहुत हिम्मत करके चुराई थी
और वापस छिन जाने के डर से
वह औरत
वहां से भाग खड़ी हुई थी
बहुत ही सटीक रचना है, बधाई
क्या लाजवाब रचना है मित्र, बधाई
आपकी पुरानी कविता में भी बहुत दम है गुरु
उसके बाल पूरी तरह से खुल चुके थे
लंबे, घने, स्याह बाल
पैरों में जूतियां
रफ्तार बनाए रखने को
न जाने वह कितने पीछे फेंक आई थीं
या फिर शायद
उसके पैरों में जूतियां ही नहीं थीं
उसके उठते पैरों की गोरी रंगत
मटमैले अंधेरे में भी उजागर हो रही थी
बहुत ही सशक्त प्रस्तुति है
बहुत समय बाद ऐसी रचना से सामना हुआ
मां तो अपने बच्चों का पेट भरने के लिए कुछ भी कर सकती है। बहुत अच्छी कविता है
मां की ममता तो ऐसी ही होती हैं।
रोटिया --
उफ़ ये रोटिया ---
ममता की मज़बूरी
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