जेब से पैसे निकालने की सजा ने बना दिया अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी
कामनवेल्थ में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले छत्तीसगढ़ के भारोत्तोलन रूस्तम सारंग आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल जगत के चमकते सितारे बन गए हैं, पर उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि उनको जिंदगी में की गई एक बड़ी गलती की सजा का इतना हसीन तोहफा मिल सकता है। बकौल रूस्तम सारंग मैं १३ साल का था तब एक बहुत बड़ी गलती कर बैठा और पापा की जेब से पैसे निकाल लिए। पापा को मालूम हुआ तो उन्होंने कहा कि तुम बिगड़ रहे हो, अब कल से तुम मेरे साथ जिम चलोगे। मैं तब पापा से काफी दिनों तक अच्छा खासा नाराज था कि कहां वे मुझे जिम में लेकर आ गए हैं। लेकिन तब मैं नहीं जानता था कि मेरा जिम जाना मुझे एक दिन ऐसे मुकाम पर पहुंचा देगा जहां मेरी खुद की एक अलग पहचान हो जाएगी और मुझे विश्व स्तर पर पहचान मिलेगी। मैं आज इस बात से बहुत खुश हूं कि पापा ने मुझे एक गलत काम की एक ऐसी अच्छी सजा दी जिसने मेरा जीवन बदल दिया। मैं ऐसा सोचता हूं कि हर गलत काम करने वाले को ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए ताकि उसका भी जीवन बदल जाए।
रूस्तम ने बताया कि जब पापा ने मुझे भारोत्तोलन के क्षेत्र में उतारा तब हमारी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी इसके बाद भी पापा ने मुझे कोई कमी नहीं होने दी और मुझे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाकर ही दम लिया। मैं २००४ में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने नहीं जा सका था, लेकिन २००५ में मुझे मौका मिल गया। इसके बाद मुझे चार साल इंतजार करना पड़ा और अब २००९ में कामनवेल्थ में गया और स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहा। अब मेेरा पहला लक्ष्य भारत में अगले साल होने वाले कामनवेल्थ में पदक जीतना है। इसी के साथ मेरा दूसरा लक्ष्य २०१२ के ओलंपिक में खेलने की पात्रता पाना है। इसके लिए विश्व स्तर पर ज्यादा से ज्यादा स्पर्धाओं में खेलना होगा। उन्होंने पूछने पर कहा कि अभी ओलंपिक में तीन साल का समय है और जिस तरह से अभी से भारत में इसकी तैयारी हो रही है, उससे तय है कि भारत के कई भारोत्तोलकों को खेलने की पात्रता मिल जाएगी। उन्होंने बताया कि भारतीय टीम को हंगरी के कोच संवारने का काम कर रहे हैं।
बढ़ाई का काम करके बना अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी
रूस्तम के छोटे भाई अजय दीप सारंग ने अपने खेल जीवन का खुलासा करते हुए बताया कि जब मैं २००३ में इस खेल में आया तो उस समय हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब थी। एक तो बड़े भाई के लिए पापा जुङाते रहते थे, ऊपर से मेरे चाचा का निधन होने के कारण उनके घर की भी जिम्मेदारी पापा पर आ गई थी। ऐसे में मेरे लिए वे कुछ ज्यादा कर पाएंगे इसकी संभावना कम थी। ऐसे में मैंने अपने पापा के खेल जीवन के प्रेरणा लेते हुए बढ़ाई का काम करके खेल को जारी रखने का फैसला किया। सुबह को बढ़ाई का काम करता था और शाम को जिम जाता था। उन्होंने बताया कि लगातार ३-४ साल मेहनत करने के बाद पिछले साल राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक मिला। इसके बाद इस साल २००९ में पहले विश्व कप में खेलने का मौका मिला, पर वहां मैं कुछ नहीं कर पाया और जब मैं रायपुर आया तो चुप चाप रिक्शे में बैठकर घर चला गया। तब दोस्तों ने कहा था कि हमें बताते तो स्टेशन लेने आते। तब मैंने कहा था कि मैंने कोई पदक जीतने का तीर तो मारा नहीं था कि स्टेशन तुम लोग लेने आतेे। बकौल अजय मेरी आंखों में तो मेरे भाई का वह स्वागत था जो उनका पदक जीतकर आने पर हुआ था। मैं भी ऐसे स्वागत की कल्पना करता था जो अंतत: कल सच हो गया जब भाई के साथ मैं भी कामनवेल्थ से पदक जीतकर आया। अजय पूछने पर कहते हैं मैं भी भाई की तरह की पहले कामनवेल्थ फिर ओलंपिक को लक्ष्य मानकर चल रहा हूं। उन्होंने कहा कि अभी मैं सीनियर वर्ग में टॉप चार में हूं। यहां भी मेरा लक्ष्य पदक तक पहुंचना है।