हमको तो नशा है ब्लागिंग का जनाब...
हमने जब से ब्लागिंग जगत में कदम रखा है, इसने हमारी दिनचर्या को भी बदल दिया है। ब्लाग लिखने के कारण ही हमको जल्दी उठने की आदत डालनी पड़ी है। वरना कहां हम रात को एक बजे सोने के कारण 9 बजे से पहले उठते नहीं थे, लेकिन अब सुबह को 6 बजे उठ जाते हैं। कितना भी व्यस्त कार्यक्रम हो कम से कम लिखने के लिए समय निकाल ही लेते हैं। अगर हम ऐसा कर पा रहे हैं तो इसका सीधा सा मतलब है कि हमको ब्लागिंग का नशा हो गया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि लिखने वालों को तो लिखने का नशा होता ही है। अब आप सोचेंगे कि यह लेखन में अचानक नशे की बात कहां से आ गई तो हम आपको बता दें कि कल हमने एक ब्लागर मित्र
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक की एक पोस्ट पढ़ी और उनकी इस पोस्ट के अंत में एक सवाल था कि क्या ब्लागिंग एक नशा है? इस सवाल ने ही हमें यह पोस्ट लिखने की प्रेरणा दी और हम लिखने बैठ गए।
नशा शराब में होता तो नाचती बोतल मैंकदे झूमते पैमानों में होती हलचल.. फिल्म शराबी के इस गाने में बहुत ज्यादा गहराई है। वास्तव में नशा शराब में नहीं होता है नशा होता है इंसान के दिमाग में और यह नशा शराब का ही नहीं किसी भी चीज का हो सकता है। अगर इंसान का दिमाग शराब को पानी समझ कर पिए तो उसको नशा ही नहीं होगा, लेकिन इंसान ऐसा नहीं कर पाता क्योंकि उसका दिमाग यह कभी नहीं मान सकता है कि शराब, शराब नहीं पानी है। गाने के बोल पर नजर डालें तो वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि अगर शराब में नशा होता है तो फिर बोतल क्यों नहीं नाचती है, मैंकदे क्यों नहीं झूमते हैं। इस गाने में ही आगे बहुत सारी बातें है कि खिली-खिली हुई सुबह पर है शबनम का नशा... हवा पे खुशबू का, बादल पे है रिमझिम का नशा... नशा है सबमें मगर रंग नशे का है जुदा। इस गाने को लिखने वाले कवि ने बिलकुल सही लिखा है कि हर नशे का रंग जुदा होता है। उसी जुदा रंग का एक रूप है ब्लागिंग का नशा।
अगर सभी इसी तरह से काम का नशा करने लगे तो फिर शराब और दूसरे नशों की जरूरत की क्यों कर पड़े। हमें भी लगता है कि ब्लाग का नशा लग गया है, वरना रात को रोज प्रेस का काम समाप्त करके एक-दो बजे सोने के बाद ब्लाग लिखने के लिए ही हम सुबह जल्दी उठ जाते हैं। जब ब्लाग जगत से नहीं जुड़े थे तो देर तक सोते थे और 9 बजे से पहले कभी नहीं उठते थे, पर अब 6 बजे उठ जाते हैं। उठ ही नहीं जाते हैं बल्कि यह भी सोचकर रखना पड़ता है कि आज अपने ब्लाग बिरादरी के मित्रों को किस विषय का डोज देना है। खेलगढ़ के लिए तो हमें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं पड़ती हैं, लेकिन राजतंत्र के लिए सोचना पड़ता है।
हमारा ऐसा मानना है कि जिस काम को पूरी लगन और विश्वास के साथ लगातार किया जाए वह तो अपने आप ही नशा बन जाता है। वैसे तो लिखना ही अपने आप में सबसे बड़ा नशा है। जब आप लिखते हैं तो उसमें एक जुनून होता है। और आप चाहते हैं कि आपका यह जुनून सबके सामने भी आए। ऐसे में ब्लाग ने लिखने वालों को एक माध्यम दे दिया है। आज ब्लाग बिरादरी में लगातार लिखने वाले इसके नशे के आदी हो गए हैं। चलो कम से कम यह एक ऐसा नशा है जो लाभदायक है। अगर सभी इसी तरह से काम का नशा करने लगे तो फिर शराब और दूसरे नशों की जरूरत की क्यों कर पड़े। हमें भी लगता है कि ब्लाग का नशा लग गया है, वरना रात को रोज प्रेस का काम समाप्त करके एक-दो बजे सोने के बाद ब्लाग लिखने के लिए ही हम सुबह जल्दी उठ जाते हैं। जब ब्लाग जगत से नहीं जुड़े थे तो देर तक सोते थे और 9 बजे से पहले कभी नहीं उठते थे, पर अब 6 बजे उठ जाते हैं। उठ ही नहीं जाते हैं बल्कि यह भी सोचकर रखना पड़ता है कि आज अपने ब्लाग बिरादरी के मित्रों को किस विषय का डोज देना है। खेलगढ़ के लिए तो हमें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं पड़ती हैं, लेकिन राजतंत्र के लिए सोचना पड़ता है। रोज-रोज कुछ नया लिखने की और नया करने की तमन्ना हमारी पहले से रही है। इसलिए हम हमेशा ऐसा कुछ लिखने के चक्कर में रहते हैं जिससे किसी का भला हो और पढऩे वालों को कुछ अच्छा लगे और कुछ ज्ञान मिले। अगर हमारे लेखन से किसी का फायदा ही न हो तो ऐसा लेखन किस काम का। इंसान वो होता है जो इस दुनिया में किसी के काम आता है। वरना इंसानी जीवन ही व्यर्थ है। हमेशा हर किसी की मदद करनी चाहिए। आपके पास अगर कोई मदद मांगने आता है तो आपको खुश होना चाहिए कि भगवान ने आपको इस लायक बनाया है कि कोई आपसे मदद मांग रहा है, अगर आप नालायक होंगे तो कौन आएगा मदद मांगने?बहरहाल हमारी दिनचर्या को ब्लागिंग ने जिस तरह से बदल दिया है वह इस बात का सबूत है कि ब्लागिंग एक लाजवाब और खुबसूरत नशा है जिसे हर कोई करना चाहेगा, इसे हर उस इंसान को करना चाहिए जिनको लेखन में थोड़ी सी भी रूचि है। अगर आपने अब तक ब्लागिंग का नशा नहीं किया है तो आईये आपका भी इस हसीन-सुंदर-खुबसूरत और लाजवाब नशे के सागर में स्वागत है। आईये और इसमें गोते लगाकर आप भी हो जाईये एक ऐसे नशे के आदी जो नहीं करता है किसी की बर्बादी। मिलते हैं एक दिन के ब्रेक के बाद।
14 टिप्पणियाँ:
ठीक कहते हैं आप लेखन का नशा सबसे बड़ा नशा होता है। अगर यही नशा किया जाए तो फिर क्या बात है।
मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल है, शायद इस रोमांच को एक नया ब्लॉगर हि समझ सकता है.
अगर सभी काम का नशा करने लगे तो फिर शराब और दूसरे नशों की जरूरत की क्यों कर पड़े।
यह बात सही कही है आपने।
ब्लागिंग नशा दिवस का दिन भी तय कर देते हंै ब्लाग जगत के बंधुओं के साथ मिलकर। कैसा रहेगा?
ब्लागिंग नशा दिवस मनाया जाए तो क्या बुराई है, यह तो अच्छा काम है।
wakayi blogging bahut bura nasha hai
sir jee, ham logan to ee nashaa kar kar paglaa gaye hain...mudaa abheeyo chilam bharne ke jugat mein lage rehte hain.....badhiya raha...
ब्लागिंग का नशा बारहों मासी होता है इसीलिए ब्लागिंग वर्ष मनाया जाना चाहिए . क्या ख्याल है आपका ?
ब्लागिंग नशा है तो बुरा नहीं। कहीं अनुशासित करता है कहीं जिम्मेदार बनाता है।
सच है.
यह नशा सर चढ़ कर बोल रहा है/..
~जयंत
बहुत बढिया व सटीक लिखा है।
कितनी अच्छी बात कही आपने....भगवान करे सभी को ऐसे नशे की लत पड़ जाए.....फ़िर तो पीछा छूटे बाकी के बेकार नशों से....ब्लॉग की सामग्री एवं रंग-रूप पसंद बहुत आया.....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
ठीक कहा आपने लेकिन ये कोई आम नशा नही है इस्से आप घर बैठे दुनिया के लोगो के विचार और उन्की सोच से रुबरू हो सकते है
राजकुमार ग्वालानी जी।
आपने बिल्कुल सही लिखा है।
ब्लॉगिंग एक वो नशा है जो धीरे-धीरे
आदत का रूप ले लेता है।
समीर लाल जी के अनुसार तो
यह एक लत बन गई है।
जिसका छूटना मुश्किल है।
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