हे भगवान उन्हें माफ कर देना...
अरे छोड़ों न यार मैं किसी भगवान-वगवान को नहीं मानता, ये सब फालतू की बातें हैं। न जाने लोग एक पत्थर की मूर्ति में क्या देखते हैं जो उसको पूजने लगते हैं। ऐसा कहने वाले नास्तिकों की इस दुनिया में कमी नहीं हैं। लेकिन इस दुनिया में ऐसे नास्तिक कम और आस्तिक ज्यादा हैं। इस दुनिया को चलाने वाली कोई न कोई शक्ति तो है जिसके कारण इस दुनिया का वजूद है। अब इस शक्ति को आप भगवान कहें अल्ला कहें, गॉड कहें या फिर चाहे आप जो नाम दे दें। लेकिन ऐसी कोई शक्ति है इस बात से इंकार तो नहीं किया जा सकता है। चंद लोगों के न मानने से क्या होगा। हम तो नास्तिकों के लिए यह दुआ करते हैं कि भगवान उनको अक्ल दें और वे आस्तिक बन जाएं। अगर ऐसे लोग आस्तिक नहीं बनते हैं तो हम तो बस यही कह सकते हैं कि हे भगवान उन्हें माफ कर देना। वैसे ईसु मसीह ने भी एक ऐसा ही वाक्य कहा था कि हे ईश्वर उन्हें माफ कर देना क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। यही बात नास्तिकों पर भी लागू होती है। अब जबकि इस दुनिया में देवीय शक्ति है तो ऐसे में कहा जाता है कि शैतानी शक्ति भी है। यहां पर भी दो बातें हैं जिस तरह से लोग भगवान को नहीं मानते उसी तरह से शैतानी शक्ति को भी नहीं मानते हैं।
आज नास्तिक और आस्तिक की चर्चा यूं ही नहीं निकली है। अपने एक ब्लागर मित्र जाकिर अली रजनीश ने तस्लीम में एक लड़की लता के साथ हो रहे हादसों के उल्लेख के बाद उसमें हमने अपने एक टिप्पणी दी थी, कि इस दुनिया में जिस तरह से देवीय शक्ति है, उसी तरह से शैतानी शक्तियों से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसी के साथ एक और साथी ब्लागर अनिल पुसदकर ने भी एक टिप्पणी में बताया था कि कैसे उनकी बहन की ठीक होली के दिन ही तबीयत खराब होती थी। इसका कारण उन्होंने एक इमली के पेड़ की टहनियों को काटकर होली जलाना बताया था। यह सिलसिला कई साल तक ठीक होली के दिन ही होता रहा। उन्होंने बताया था कि काफी इलाज के बाद जब वह ठीक नहीं हो सकीं तो एक झाड़ फूंक करने वाले संत का सहारा लिया गया था। हमारी और अनिल जी की इन टिप्पणियों के बाद एक ब्लागर मित्र प्रकाश गोविंद की लंबी चौड़ी टिप्पणी आई कि जिसका सीधा सा मतलब यह है कि हम जैसे लोग अंधविश्वास फैलाने का काम कर रहे हैं। हमारा मकसद किसी भी तरह का अंधविश्वास फैलाना नहीं है। अंधविश्वास को रोकना हम पत्रकारों का काम हमेशा से रहा है। लेकिन किसी के साथ होने वाली अजीब घटनाओं से कैसे इंकार किया जा सकता है। इस दुनिया में न जाने ऐसे कितने उदाहरण होंगे जिससे यह साबित हुआ है कि कहीं न कहीं कुछ है जिसके कारण इंसान को परेशानी होती है। ऐसी कोई शक्ति तो है जो इंसान के साथ गलत करती है। ऐसे में इंसान ठीक उसी तरह से जिस तरह से भगवान को मानता है किसी शैतानी शक्ति को भी मानने के लिए मजबूर हो जाता है। ऐसे में उस इंसान को इस दुनिया को बनाने वाले भगवान की शरण में जाना पड़ता है।
कहते हैं कि भगवान अपने चाहने वालों के संकट हरने के लिए इसी दुनिया में अपने बंदे को किसी न किसी रूप में भेजते हैं। तो ऐसे कई सच्चे साधु-संत हैं जो लोगों का कष्ट हरने का काम करते हैं। यहां पर भी दो बाते होती हैं जब अच्छे साधु-संत हैं तो बुरे भी हैं। ऐसे बुरे लोगों से जरूर सबको बचाने का काम करना चाहिए। जो इंसान परेशान होता है उसको किसी का भी सहारा मिल जाए तो वह अपने को धन्य समझता है। ऐसे में ही ठगी करने वाले लोग किसी भी इंसान की मजबूरी का फायदा उठाने का काम करते हैं। ऐसे ठगों से ही लोगों को बचाने का काम किया जाए तो वह सच्चा पुन्य है। ऐसे किसी काम में हम क्या कोई भी साथ देने को तैयार रहता है। हमें इस बात से इंकार नहीं है कि झाड़-फूंक और भूत-प्रेत भगाने के नाम पर ज्यादातर मामलों में लोग ठगे जाते हैं। इसका कारण यह है कि इस दुनिया में जहां सच्चे साधु-संतों की कमी है, वहीं इस बात को कोई नहीं जानता है कि जिनकी शरण में वे गए हैं वो सच्चे हैं या फिर ठग। जब इंसान परेशानियों से घिरा होता है तो उसको हर उस इंसान में भगवान नजर आता है जो उसकी किसी न किसी तरह से मदद करता है। अब ऐसे में किसी के साथ विश्वास का फायदा उठाकर कोई ठगता है को क्या किया जा सकता है।
हमारे मित्र गोविंद जी तो भगवान के अस्तित्व को भी नहीं मानते हैं। यह उनकी गलती नहीं है। ऐसे लोगों की इस दुनिया में कमी नहीं है जो भगवान को नहीं मानते हैं। लेकिन किसी के मानने न मानने से क्या होता है। जब कोई देवीय शक्ति को ही नहीं मानता है जिसके कारण आज सारे संसार का अस्तित्व है तो फिर यह अपने आप में स्पष्ट बात है कि वह शैतानी शक्ति को कैसे मान सकता है। दुनिया के वैज्ञानिकों ने काफी कोशिश की कि वे देख सकें कि आखिर इंसान के मरने के बाद उसकी आत्मा जाती कहां है, पर सफलता नहीं मिली। अगर सफलता मिल जाती तो उस न देखी हुई देवीय शक्ति को कौन मानता और वैज्ञानिक भगवान हो जाते। अगर किसी में दम है तो फिर इंसान की मौत को रोककर बताए, समय को रोक कर बताए, फिर कहे कि इस दुनिया में भगवान नाम की चीज नहीं होती है। क्या किसी ने आज तक हवा को देखा है, फिर क्यों मानते हैं कि हवा है। जिस तरह से वेद-पुराणों में देवताओं की बातें मिलती हैं, उसी तरह से राक्षसों की बातें भी हैं। हर चीज के दो पहलू होते ही हैं सिक्के का एक पहलू और ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है। फिर ये कैसे संभव है कि दुनिया में जहां देवीय शक्ति हैं, वहां उसके विपरीत शैतानी शक्ति न हो। कोई माने न माने सच को बदला नहीं जा सकता है।
जिस तरह से लोग देवीय शक्ति को नहीं मानते हैं उसी तरह से शैतानी शक्ति को भी नहीं मानते हैं। मत मानो न यार किसने कहा है कि आप मानो, लेकिन किसी और को क्यों कहते हैं कि यह गलत है। यहां पर सवाल एक अनिल पुसदकर का या किसी लता का नहीं है। दुनिया में काफी कुछ ऐसा घटता है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है। कई बार ऐसा हुआ है कि जो लोग ऐसी बातें नहीं मानते हैं, उनके साथ हादसे हो जाते हैं। फिर उनको भी मानना पड़ता है कि कुछ तो है। अगर किसी के साथ होने वाले अजीब हादसे बीमारी हैं तो फिर ऐसी बीमारी का इलाज डॉक्टर क्यों नहीं कर पाते हैं? इसका जवाब किसके पास है। डॉक्टर एक लाइन में जवाब दे देते हैं कि समझ में नहीं आ रहा है कि क्या बीमारी है। जहां पर विज्ञान की सरदह का अंत होता है वहीं से प्रारंभ होता देवीय शक्ति का दरवाजा। इंसान सब तरफ से थक हार कर अंत में भगवान की शरण में ही जाता है। फिर कैसे आप भगवान के होने से इंकार कर सकते हैं। आप भले भगवान को न मानें लेकिन आपके ऐसा करने से इस दुनिया को बनाने वाले को कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। भगवान ने वैसे भी किसी को बाध्य नहीं किया है कि कोई उन्हे माने। यह तो अपनी-अपनी श्रद्धा का सवाल है। वैसे भी कहा जाता है कि मानो तो देवता न मानो तो पत्थर। हम कौन होते हैं किसी नास्तिक को आस्तिक बनाने वाले। लेकिन हम तो कम से कम भगवान को जरूर मानते हैं और मानते रहेंगे।
32 टिप्पणियाँ:
अरे कहां नास्तिकों के पीछे अपना समय खराब कर रहे हैं गुरु
हर चीज के दो पहलू होते ही हैं। अच्छाई के साथ बुराई है, तो जहां भगवान होंगे, वहां राक्षसों का वजूद तो रहेगा ही। कोई यह बता दे कि किसी भी चीज का एक पहलू भी होता है तो मानें।
न जाने इस दुनिया में कितनी ऐसी घटनाएँ होती हैं जिनके बारे में अखबारों में छपने के साथ टीवी पर भी आता है। किसी भी घटना को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है।
"भगवान ने वैसे भी किसी को बाध्य नहीं किया है कि कोई उन्हे माने। यह तो अपनी-अपनी श्रद्धा का सवाल है। वैसे भी कहा जाता है कि मानो तो देवता न मानो तो पत्थर। हम कौन होते हैं किसी नास्तिक को आस्तिक बनाने वाले। लेकिन हम तो कम से कम भगवान को जरूर मानते हैं और मानते रहेंगे।"
अच्छी विवेचना है।
यह बात तो आपने सच लिखी है कि अगर वैज्ञानिकों में दम है तो इंसान को मौत से बचाकर दिखाया जाए। यह फिर यह पता लगा के बता दे कि आखिर मरने के बाद इंसान की आत्मा जाती कहां है। हो सकता है लोग यह भी कहने लगे कि इंसान के शरीर में आत्मा नाम की कोई चीज ही नहीं होती है।
अंध विश्वास फैलाने वालों घटनाओं से मीडिया को बचना चाहिए।
सच है...
हर चीज़ के दो पहलू (कम से कम) होते ही हैं...
वैसे भी विज्ञान क्या है?
हम जहां तक दिए का प्रकाश फिअला सकते हैं वही तक देख सकते हैं..
आगे अँधेरे में क्या छुपा है, किसे पता??
और जो दीखता नहीं, हमारे दिए, टॉर्च, सर्च-लाइट आदि के प्रकाश के बाहर, वो है ही नहीं ऐसा भी कहना गलत होगा ना!!
मैं तो मानता हूँ शक्तियों को.. वरना कोई ये बता दे कि गुरुत्वाकर्षण आया ही कहाँ से? चुम्बक, चुम्बक क्यों बना? और हाँ, आज भी जीवन को शुरू करने (क्लोनिंग में) के लिए जीवन की कोशिकाओं की आवश्यकता क्यों होती है? हर उस धातु में वोही गुण क्यों हैं जो उसमें हैं? और फिर लाखों करोडों जंतुओं कि जातियाँ कैसे बनी एक ही कोशिका से (डार्विन के अनुसार)??
बहुत सारे रहस्य हैं...
~जयंत
भूत-प्रेतों पर बनी फिल्मों से भी पता चलता है कि ऐसा कुछ होता तो जरूर होगा इस दुनिया में। भूत-प्रेत के किस्से महज किताबी हो सकते हैं यह सोचना और कहना गलत होगा।
ak achha aalekh .sabko aajadi hai mane ya na mane.
ak achha aalekh .sabko aajadi hai mane ya na mane.
जब इंसान को कोई बीमारी लग जाती है तब वह डॉक्टर को ही भगवान कहता है। डॉक्टर भी मरीज का इलाज करने से पहले भगवान को ही याद करते हैं। डॉक्टर भी यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि वे मात्र एक साधन है। भगवान से बढ़कर कोई नहीं है। अगर भगवान न चाहे तो कुछ नहीं हो सकता है।
jai bajarang bali........
ऐसा है राजकुमार जब तक़ और जंहा तक़ इंसान का बस चलता है कुछ लोगों के लिये न तो भगवान होता है न शैतान्।लेकिन जब परिस्थितियां उसके बस मे नही रहती तो ऐसे लोग भगवान तो बहुत दूर की बात है सड़क पर बिकते ताबीज़ तक़ का सहारा लेते देखे जा सकते हैं।बात वही है मरता क्या न करता।घोर वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले डाक्टरों से जब मरीज के ईलाज मे कोई भी उपाय नही बचता तो वे काहे कहते है अब हमारे हाथ मे कुछ नही आप लोग प्रार्थना किजिये।ये प्रार्थना क्या है?ये बात सही है मीडिया को अंध विश्वास नही फ़ैलाना चाहिये मगर किसी को मंदिर,मस्ज़िद,मज़ार चर्च जाने से तो रोका नही जा सकता।काहे लाखो लोग दुर्गम अमरनाथ और मानसरोवर की यात्रा करते।काहे लाखो करोड़ो लोग विदेश जाकर हज़ करते।ये सब आपके अपने मन का विश्वास है।बड़ा बनने के लिये बड़बोला होना ज़रूरी नही है। हमने तो किसी से नही कहा कि आप मानिये भगवान होता है और हमारे कहने से कोई भला मानेगा भी क्यों?सब समझदार है और ये समझ-समझ का फ़ेर है,इसमे उलझ कर तुम अपना किमती वक़्त बरबाद मत करो।समझे कुछ,ज्यादा गुस्सा अच्छा नही होता।सब छोड़ दो अदृश्य शक्ति पर्।
जब हालात के थपेड़े पड़ते हैं तो अच्छे-अच्छे नास्तिक आस्तिक बन जाते हैं।
नस्तिकों को आस्तिक बनाने की कोशिश करना व्यर्थ है। जो भगवान की बात नहीं मानते वो आपकी बात क्यों मानने लगे।
भगवान को न मानने वालों का भी भगवान ही मालिक है।
ठीक कहा आपने भगवान ऐसे नास्तिकों को माफ करे।
अगर किसी के साथ होने वाले अजीब हादसे बीमारी हैं तो फिर ऐसी बीमारी का इलाज डॉक्टर क्यों नहीं कर पाते हैं? इसका जवाब किसके पास है। डॉक्टर एक लाइन में जवाब दे देते हैं कि समझ में नहीं आ रहा है कि क्या बीमारी है। जहां पर विज्ञान की सरदह का अंत होता है वहीं से प्रारंभ होता देवीय शक्ति का दरवाजा। इंसान सब तरफ से थक हार कर अंत में भगवान की शरण में ही जाता है।
१०० आने सच बात कही है
जय जय श्रीराम.....
अनिल जी बातों से हम सहमत है कि जब डॉक्टर बेबस हो जाते हैं तो वे भी भगवान से प्रार्थना करने के लिए ही कहते हैं। जब डॉक्टरों को भगवान पर भरोसा है जिनको इंसान भगवान समझते हैं तो फिर किसी के नास्तिक होने से क्या फर्क पड़ता है।
कई सच्चे साधु-संत हैं जो लोगों का कष्ट हरने का काम करते हैं। यहां पर भी दो बाते होती हैं जब अच्छे साधु-संत हैं तो बुरे भी हैं। ऐसे बुरे लोगों से जरूर सबको बचाने का काम करना चाहिए। जो इंसान परेशान होता है उसको किसी का भी सहारा मिल जाए तो वह अपने को धन्य समझता है। ऐसे में ही ठगी करने वाले लोग किसी भी इंसान की मजबूरी का फायदा उठाने का काम करते हैं। ऐसे ठगों से ही लोगों को बचाने का काम किया जाए तो वह सच्चा पुन्य है।
यह बात तो बिलकुल ठीक लिखी है आपने मित्र इससे बड़ा कोई पुन्य हो नहीं सकता है।
दुनिया और समाज का आज जो वजूद है वह आस्तिकों के दम पर है, नस्तिकों की चलती तो इस दुनिया में न तो मंदिर होते, न मजिस्द और नहीं और कोई धार्मिक स्थल। ये नास्तिक इसको बर्बाद कर देते।
दुनिया में ऐसा कौन सा धर्म होगा जिसमें भगवान को किसी न किसी रूप में पूजा न जाता होगा। फिर ऐसी बातें लोग क्यों करते हैं कि वे भगवान को नहीं मानते। क्या ऐसे लोग भूल जाते हैं कि उनके परिजनों से मन्नतों के बाद उनको भगवान से मांगा है।
आस्तिकों की दुनिया में नास्तिकों का क्या काम है। ऐसे नास्तिकों को अपनी अलग ही दुनिया बसा लेनी चाहिए।
भगवान को न मानने वाले नास्तिकों के लिए क्यों माफी की दुआ मांग रहे हैं। वो इस लायक ही नहीं होते हैं कि उन्हें माफ किया जा सके।
जब इंसान परेशानियों से घिरा होता है तो उसको हर उस इंसान में भगवान नजर आता है जो उसकी किसी न किसी तरह से मदद करता है। अब ऐसे में किसी के साथ विश्वास का फायदा उठाकर कोई ठगता है को क्या किया जा सकता है। इस बात में बहुत दम है।
चुन चुन कर मार डाला जाना चाहिए साले नास्तिकों को. संसार में फैली बेईमानी, अनैतिकता, अधर्म और अनैतिकता के लिए नास्तिक ही जिम्मेदार हैं. ये नास्तिक धरती से मिटें तो दुनिया में धर्म और सद्भाव का माहौल फिर से बने.
नास्तिकों को जब भगवान नहीं समङाा सकता है बंधु फिर हम तो इंसान है। अगर भगवान के बस में होता तो दुनिया में नास्तिक ही क्यों पैदा होते।
दीवार के अमिताभ की तरह एक दिन सभी नास्तिकों को भगवान के दरबार में जाना पड़ेगा।
खामखाह में आप नास्तिकों को आस्तिक बनाने के चक्कर में पड़े हैं। ऐसे लोगों के कारण ही आज धर्म का नाश हो रहा है। ऐसे पापियों को छोडऩा नहीं चाहिए। भक्त प्रहलाद ठीक कह रहे हैं, पर उनका भाषा ठीक नहीं है। आस्तिकों को अपनी भाषा पर संयम रखना चाहिए।
जय हो
क्या विषय छेड़ा है :)
वीनस केसरी
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