अश्लीलता पर सरकारी फंदा
सायबर कैफे ज्यादातर इसलिए बदनाम हैं कि वहां पर जाकर आज के युवा इंटरनेट पर ज्ञान की बातें जानने का काम कम और अश्लील साइट देखने का काम ज्यादा करते हैं। यही नहीं कई साइबर कैफे तो प्रेमी युगल को मिलने का स्थान देने का काम करते हैं। सायबर कैफे में प्रेमी युगलों की कई आपत्तिजनक तस्वीरें खींच कर उनको ब्लैकमेल करने का काम भी कई सायबर कैफे करते रहे हैं। कुल मिलाकर सायबर कैफे को अश्लीलता फैलाने के नाम से ज्यादा जाना जाता है। पर अब यह सब काम सायबर कैफे में नहीं हो सकेगा क्योंकि अश्लीलता फैलाने वाले ऐसे सायबर कैफे पर शिकंजा कसने का काम छत्तीसगढ़ सरकार ने किया है और ऐसे कड़े नियम बना दिए हैं कि अब कोई भी कम से कम सायबर कैफे में ऐसे किसी साइट को नहीं खोल पाएगा जिस साइट में अश्लीलता होती है। इसी के साथ सायबर कैफे में होने वाले दूसरे अपराधों पर भी रोक लगेगी। छत्तीसगढ़ सरकार से पूरे प्रदेश में सायबर कानून लागू कर दिया है। इस कानून के कारण अब यह लगता है कि गलत तरीके से सायबर कैफे से कमाई कराने वालों की सामत आनी तय है। अभी से कई सायबर कैफे बंद होने की तैयारी में हैं।
सायबर कैफे का उपयोग करने वाले ज्यादातर स्कूल-कॉलेज के ऐसे किशोर और युवा हैं जो अपने-स्कूल कॉलेज से गोल मारकर यहां जाते हैं और सायबर कैफे में बैठकर उन गंदी साइट्स को देखने का काम करते हैं जो साइट्स अश्लीलता परोसने का काम करते हैं। इसी के साथ सायबर कैफे में ज्यादातर कैफे केबिन भी उपलब्ध कराते हैं। ये केबिन महज 20 से 25 रुपए घंटे के किराए में उपलब्ध हो जाते हैं। ऐसे में इन केबिन का उपयोग ऐसे प्रेमी युगल ज्यादा करते हैं जिनके पास मिलने के लिए कोई ठिकाना नहीं रहता है। इतना सस्ता ठिकाने उनको और कहां मिल सकता है। ठिकाने के साथ इंटरनेट पर मनचाही साइट देखने का भी मजा। जब कोई प्रेमी युगल सायबर कैफे में बैठकर साइट्स के साथ दुगना मजा लेने में मस्त रहते हैं तो उनकी वीडियो फिल्म बनाने का काम करने में सायबर कैफे वाले मस्त रहते हैं। इसके बाद प्रारंभ होता है उनको ब्लैकमेल करने का सिलसिला। चूंकि प्रेमी युगल गलत रहते हैं इसलिए उनको ब्लैकमेलरों की हर जायज और नाजायज बात माननी पड़ती है। यहां पर सबसे ज्यादा परेशानी लड़कियों को होती हैं। उनके साथ न जाने क्या-क्या घटता है। सायबर कैफे में बैठकर अश्लील साइड देखने वाले नाबालिगों की भी कमी नहीं है। स्कूल के कई नाबालिग लड़के और लड़कियां इन सायबर कैफे के केबिनों में देखे जा सकते हैं। जिन भी कैफे में ऐसे किशोर या युवा जाते हैं उन कैफे के सर्वे से यह बातें एक बार नहीं कई बार सामने आई हैं कि उन कैफे में ये किशोर और युवा किसी शिक्षा की जानकारी लेने नहीं बल्कि अश्लील साइट देखने ही जाते हैं। वैसे भी सायबर कैफे वालों को अपने पैसों से मतलब रहता है उनको इस बात से कोई सरोकार नहीं रहता है कि उनका ग्राहक क्या कर रहा है। संभवत: यही वजह भी रही है कि सायबर कैफे से ही कई तरह के अपराध होते हैं।
22 टिप्पणियाँ:
खाली कानून बनाने के कुछ नहीं होगा। सायबर कैफे वाले क्या बाज आ जाएंगे। इससे तो पुलिस की कमाई बढ़ जाएगी। कैफे वालों से पुलिस वाले हफ्ता वसलूने लग जाएंगे।
वर्ग विभाजित समाज व्यवस्था में कानून को इसलिए रखता है ताकि व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह को टाला जा सके। इस व्यवस्था में जनता को तो पिसना ही है। इस में साईबर कैफ़े का दोष क्या है। आप ने व्यंग्य के लिए गलत विषय चुन लिया। व्यंग्य करना था तो प्रणाली पर करते। आप के व्यंग्य ने व्यवस्था के नंगे सच को ढ़क दिया है। और साईबर कैफ़े को निशाना बनाया है।
देश के साईबर कैफ़े की कुल संख्या में से आधे से अधिक की आय तो साधारण क्लर्क से अधिक नहीं है। वे हास्य का विषय हो सकते हैं व्यंग्य का नहीं।
आप का आलेख साईबर कैफ़े बिरादरी के लिए बहुत ही अपमान जनक है। यह तो अभी हिन्दी ब्लाग जगत में साईबर कैफ़े पाठक इने गिने ही हैं और वे भी मित्र ही हैं। मैं ने भी आप के इस आलेख का किसी साईबर कैफ़े मित्र से उल्लेख नहीं किया है। इस आलेख के आधार पर कोई भी सिरफिरा साईबर कैफ़े मीडिया में सुर्खियाँ प्राप्त करने के चक्कर में आप के विरुद्ध देश की किसी भी अदालत में फौजदारी मुकदमा कर सकता है। मौजूदा कानूनों के अंतर्गत इस मुकदमे में सजा भी हो सकती है। ऐसा हो जाने पर यह हो सकता है, कि हम पूरी कोशिश कर के उस में कोई बचाव का मार्ग निकाल लें, लेकिन वह तो मुकदमे के दौरान ही निकलेगा। जैसी हमारी न्याय व्यवस्था है उस में मुकदमा कितने बरस में समाप्त होगा कहा नहीं जा सकता। मुकदमा लड़ने की प्रक्रिया इतनी कष्ट दायक है कि कभी-कभी सजा भुगत लेना बेहतर लगने लगता है।
एक दोस्त और बड़े भाई और दोस्त की हैसियत से इतना निवेदन कर रहा हूँ कि कम से कम इस पोस्ट को हटा लें। जिस से आगे कोई इसे सबूत बना कर व्यर्थ परेशानी खड़ा न करे।
आप का यह आलेख व्यंग्य भी नहीं है, आलोचना है, जो तथ्य परक नहीं। यह साईबर कैफ़े समुदाय के प्रति अपमानकारक भी है। मैं अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत लोगों को परेशान होते देख चुका हूँ। प्रभाष जोशी पिछले साल तक कोटा पेशियों पर आते रहे, करीब दस साल तक। पर वे व्यवसायिक पत्रकार हैं। उन्हें आय की या खर्चे की कोई परेशानी नहीं हुई। मामला आपसी राजीनामे से निपटा। मुझे लगा कि आप यह लक्जरी नहीं भुगत सकते।
अधिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ।
हमने तो अपने सायबर कैफ़े में पहले दिन से ही केबिन सुविधा नहीं रखी है, साथ ही हर 5 मिनट में ग्राहक की स्क्रीन भी देखते रहते हैं… भले ही कमाई कम हो, लेकिन नैतिकता भी कोई चीज़ है साथ ही खुद का बचाव भी हो जाता है। लेकिन कानून कड़ाई से लागू होना ही चाहिये।
सतीश जी ने सही कहा। यह कानून पुलिस की काली आमदनी बढ़ाएगा। लेकिन फिर भी कानून का होना जरूरी है। विशेष तौर पर आतंकियों और अपराधियों द्वारा इस के उपयोग को देखते हुए।
एक बात खटकी कि साइबर कैफे प्रेमी जोड़ों के लिए मिलन स्थल हैं। जिस देश में हीर-रांझा, राधा-कृष्ण प्रेरणा के स्रोत हों और विवाह की सामान्य उम्र में बढ़ोतरी हो रही हो। वहाँ प्रेमी-प्रेमिका तो होंगे ही। यदि समाज उन के लिए कोई मिलन स्थल ही न छोड़े तो वे कहीं तो मिलेंगे। जरूरत है समाज में प्रेमियों के ऐसे मिलन स्थलों की जिन्हें सामाजिक मान्यता प्राप्त हो। जब वे होंगे तो समाज को सब पता होगा। कोई छिपाव ही शेष नहीं रहेगा। तभी अश्लीलता पर भी काबू पाया जा सकता है। इस के लिए तगड़े सामाजिक आंदोलन की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ सरकार बधाई की पात्र है जिसने ऐसा कानून बनाने का काम किया है।
दिनेश जी,
लगता है आपने हमारे लेख को ठीक से पढ़ा नहीं है। पहली बात तो यह कि हम पूरे देश के सायबर कैफे की नहीं बल्कि अपने राज्य छत्तीसगढ़ के सायकर कैफे की बात कर रहे हैं। हमने अपने लेख के अंत में यह बात लिखी भी है कि - चलो छत्तीसगढ़ सरकार ने एक काम तो अच्छा किया है। अब दूसरे राज्यों में सायबर कानून की क्या स्थिति है इसकी जानकारी तो हमें नहीं है। हमारे ब्लागर मित्रों से आग्रह है कि वे अपने राज्यों के बारे में हो सके तो जानकारी देने की कृपा करें।
एक दूसरी बात यह कि हमने यह कहीं नहीं लिखा है कि हर सायबर कैफे में ऐसा होता है। हमने लिखा है ज्यादातर सायबर कैफे में ऐसा होता है।
तीसरी बात आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि हम विगत दो दशक से ज्यादा समय से पत्रकारिता कर रहे हैं। हमने हमेशा किसी भी खबर और लेख को बनाने से पहले इस पहलू पर जरूर गौर किया है कि कोई भी ऐसी बात न लिखी जाए जिससे किसी का अपमान हो या फिर उसको किसी भी तरह का आघात हो। और रही बात अदालत जाने की तो अपने देश में लोकतंत्र है अगर छत्तीसगढ़ के किसी सायबर कैफे वाले को लगता है कि उसके लिए यह लेख अपमान जनक है तो वह फिर हमारे क्या छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ भी अदालत में जा सकता है जिसने सायबर कानून बनाकर समाज में फैली एक बुराई का अंत करने का काम किया है। क्या सायबर कैफे वालों को मनमर्जी की छूट देने का काम किया जा सकता है। हमने पहले भी लिखा है फिर लिख रहे हैं कि हमें दूसरे राज्यों के बारे में नहीं मालूम लेकिन छत्तीसगढ़ में जरूर सायबर कैफे में ऐेसी कई घटनाएँ होती रही हैं जिसके कारण सरकार को कड़ा कानून बनाने मजबूर होना पड़ा है। यहां पर कई सायबर कैफे ऐसे भी हैं जहां पर न तो केबिन है और न कोई पर्दा लगाकर रखता है, वहां पर केवल शिक्षा से जुड़े काम होते हैं, लेकिन यहां पर जाकर आप देखेंगे तो जरूर वही स्थिति नजर आएगी जैसी आपने बताई है कि इनकी कमाई एक कलर्क जितनी भी नहीं होती है। अंत में आपकी सलाह के लिए धन्यवाद।
इंटनेट लोगों को सूचना-सक्षम बनाने में बहुत तकड़ी भूमिका निभा रहा है। अनेक कारणों से, जिनमें गरीबी, देश भर में टेलिफोन और बिजली के नेटवर्क न फैला हुआ होना, बिजली की अनियमितता, आदि शामिल हैं, हर किसी को इंटरनेट तक पहुंच नहीं है। ऐसे में साइबर केफे एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उनको चलानेवालों को उनकी इस महत्वपूर्ण भूमिका को समझते हुए अपने साइबर कफे को जिम्मेदारी के साथ चलाना चाहिए, जिसका उम्दा उदाहरण सुरेश जी ने अपने साइबर कफे के संबंध में दिया है।
कानून भी आवश्यक ही होंगे, क्योंकि कुछ भूत बातों से नहीं मनाए जा सकते, वे लातों के भूत होते हैं।
मैं द्विवेदी जी से भी सहमत हूं, अश्लीलता को कानून बनाकर नहीं दूर किया जा सकता। जब स्त्री-पुरुष समजा में स्वस्थ तरीके से मिलने-जुलने की आजादी पा जाएंगे, तो उन्हें साइबर कफे, पार्क आदि में छिपकर मिलने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।
कोई आवश्यकता नहीं है इस लेख को हटाने की जैसे कि दिनेश जी ने कहा है. हर बात को लेकर मुकदमे होने लगे तो हो गया कल्याण.
इस कानून से अपराध बढ़ेंगे या रूकेंगे। क्या सायबर कैफे वाले बाज आएंगे जिनको पैसों की कमाई का चश्का लग गया हो, वो भी कोई न कोई तिकडम तो करेंगे।
अब प्रेमी युगल कहां जाएँगे गुरु?
अश्लील साइट्स देखना भी एक नशा है, इसके लिए अब ऐसी साइट्स देखने वाले ज्यादा पैसा खर्च कर करके ऐसी जगह तलाश करेंगे जहां उनको ऐसी साइट्स देखने का मौका मिले।
क्या ऐसे कानून से सायबर क्राइम पर ब्रेक लग पाएगा?
अगर कानून का सही तरीके से पालन करवाया जाए तो परिणाम अच्छा आ सकता है।
बिलकुल सही और पते की बात लिखी है कि साइबर कैफे में खाली अश्लीलता पसोरने के अलावा कुछ नहीं किया जाता है। हमारे घर के सामने एक साइबर कैफे है जहां पर दिन-रात लड़के-लड़कियों का मजमा लगे रहता है। इस कैफे में कई केबिन बने हैं। केबिन में पर्दे भी लगे हैं। इन पर्दों के पीछे क्या होता है कौन देखने जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार ने काफी अच्छा काम किया है। आज के युवाओं को गलत दिशा में जाने से रोकने में यह कानून जरूर मददगार होगा। एक अच्छा मुद्दा सामने रखने के लिए आपको धन्यवाद।
लगता नही कि कोई कानून इस तरह रोक लगा सकेगा।ज्यादातर देखा गया है कि किसी चीज का चलन एक बार शुरू हो जाए तो उसे रोकना बहुत कठिन ही नही असंभव हो जाता है। ऐसे मे सरकारी तंत्र से कोई उम्मीद करना बेकार है,हाँ समाजिक चेतना ही इसे रोकने मॆ कुछ मदद कर सकती है ऐसा मेरा सोचना है।
राजकुमार जी पंगेबाज जी को दिनेश राय जी ने यही कहा था और इसी प्रकार की टिप्पणी अविनाश वाचस्पती की जिस पोस्ट को नटराज जी ने छापा है उस पर भी की थी.हम उनकी राय को ही बाकी सब लोगो तक पहुचा रहा है.जैसे वकील का प्रोफ़ेशन है वैसे भी बाकी लोगो का भी.संविधान मे सभी भारतीयो के हम एक जैसे है एक वकील का भी इक साईबर कैफ़े चलाने वाले का भी .अगर वकील के लिये कुछ नही लिख सकते तो फ़िर बाकी एक लिये क्यॊ ? यही मेरा सवाल है जो हर ब्लोग पर हर ब्लोगर के सामने उठता रहेगा.दिनेश जी या फ़िर आपको जवाब तो देना होगा आज नही तो कल.क्यो उन्हे धमकी देने मे बाद भी दिनेश राय जी मासूम और महान बने हुये है ? यही सवाल है हमारा आपसे और अन्य ्ब्लोगर से जिस्का जवाब आज नही तो कल देना ही होगा ,हमारा लक्ष्य आपको परेशान करना कतई नही है
तुम तो सिर्फ़ अपना करते जाओ राजकुमार्।
समस्या सचमुच गंभीर है..और ऐसा नहीं है की इससे सिर्फ छत्तीसगढ़ या भारत का कोई अन्य प्रांत झूझ रहा है बल्कि आंकडों के अनुसार अंतरजाल (वैश्विक ) पर सबसे ज्यादा समय लोग इन्ही अश्लील साईटों पर दे रहे हैं..जाहिर है की भारत में चूँकि मानसिक क्षमता शत प्रतिशत परिपक्व नहीं है इसलिए ये समस्या ज्यादा गंभीर हो गयी है...दरअसल कानून भर बना देने से समस्या उतनी हल होने वाली नहीं है..मैंने खुद पिछले दो सालों में काफी समय कैफे में ही बिठाये हैं..सब कुछ कैफे मालिकों पर निर्भर करता है....यदि वे संवेदनशील और सतर्क हैं साथ ही सख्त भी तो समस्या का निदाद संभव है..मगर अफ़सोस की वे तो किसी और ही काम में लगे हुए हैं...कैफे खोलने के लिए लाईसेंसिंग प्रणाली होनी चाहिए वो भी सख्त .....छतीसगढ़ सरकार की पहल ठीक है.....
एक नज़र में छत्तीसगढ़ सरकार की पहल ठीक है। बेहतर हो कि अब छत्तीसगढ़ सरकार के पास अपना इंटरनेट एक्सचेंज हो, जो कि बड़ी टेढ़ी खीर है।।
झारखण्ड में पहले ही केबिन व्यवस्था हटा दी गई है ..बाकि मुद्दों में द्विवेदी जी से सहमत.
छत्तीसगढ़ हो या हो
37गढ़, पर न बने
अश्लीलतागढ़
इस ओर किए जा रहे
सभी प्रयास सरकारी हों
या असरकारी पर
हों अवश्य ही असरकारी
यही कामना है हमारी।
छत्तीसगढ़ हो या हो
37गढ़, पर न बने
अश्लीलतागढ़
इस ओर किए जा रहे
सभी प्रयास सरकारी हों
या असरकारी पर
हों अवश्य ही असरकारी
यही कामना है हमारी।
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