अरे ऐसे संपादक को घर भेजो न यार...
भारत के सबसे बड़े अंग्रेजी अखबार माने जाने वाले टाइम्स ऑफ इंडिया में अखबार का पूरा एक पन्ना और वो भी संपादकीय का पन्ना रिपीट हो जाता है। है न अखबार जगत के लिए शर्म की बात। वैसे ऐसे कारनामे कई अखबारों में होते रहते हैं। लेकिन अंग्रेजी अखबार जो कि अपने को महान समझते हैं और हिन्दी अखबारों में होने वाली गलतियों पर हंसते हैं अब उनके अखबार पर तो सारी दुनिया हंस रही है। एक ऐसी गलती जो कि क्षमा योग्य नहीं है। उस संपादकीय पन्ने को देखने वाले संपादक के लिए यह सबसे ज्यादा शर्म की बात है कि उनसे ऐसी गलती हुई है। एक तो अखबार को उस संपादक को ही घर का रास्ता दिखा देना चाहिए जो कि संभवत: अखबार ने किया होगा। वैसे उन संपादक महोदय को खुद ही नैतिकता के नाते अखबार छोड़ देना चाहिए। अगर उनमें नैतिकता है तो, वरना वे भी अपने देश के नेताओं की तरह अपनी कुर्सी से चिपके रह सकते हैं। लेकिन इसके लिए अखबार के मालिक की कृपा जरूरी होगी।
अखबारों में अक्सर समाचारों का रिपीट होना आम बात है। संभवत: ऐसा कोई अखबार नहीं होगा जिसमें जाने अंजाने ऐसी गलतियां न होती हों। अक्सर हिन्दी अखबारों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह तो गलतियों का पिटारा है। माना की हिन्दी अखबार गलतियों का पिटारा है तो फिर आज टाइम्स ऑफ इंडिया में जो कुछ हुआ है वह तो गलतियों के पिटारे से भी बड़ा गलतियों का एक ऐसा पहाड़ है जिसको कोई क्षमा नहीं कर सकता है। अखबार की इस गलती की तरफ ब्लाग बिरादरी के एक जागरूक ब्लागर जयहिन्दी के बालसुब्रमण्यम ने ध्यान दिलाने का काम किया है। अखबार ने 15 जून को संपादकीय का जो पेज छापा था, वहीं पेज 16 जून को भी छाप दिया। अब इस महाभूल में गलती किसकी है इस पर अखबार में जरूर आज सुबह से ही चिंतन हुआ होगा और संभवत: इस गलती को करने वाले संपादक को ही किनारे भी लगा दिया गया होगा। ऐसा नहीं किया गया होगा तो यह अखबार की सबसे बड़ी भूल होगी। हमारे विचार से तो ऐसी गलती करने वाले को खुद ही नौकरी से नमस्ते कर लेना चाहिए। अगर आपमें क्षमता नहीं है तो क्यों किस संस्थान पर बोझ बनने का काम कर रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की इस गलती ने अब हिन्दी अखबारों को भी बोलने का एक मौका दे दिया है। वरना कहां हिन्दी अखबारों को आज तक अंग्रेजी अखबार वाले कुछ समझते ही नहीं थे।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि हिन्दी अखबारों में रोज ऐसी गलतियों होती रहती हैं। लेकिन पूरा का पूरा पेज रिपीट होने की गलती बहुत कम अखबारों में हुई है। हमें याद है कि हम जब दो साल पहले दैनिक देशबन्धु में समाचार संपादक थे तो हमने अखबार में अपने रहते समाचार रिपीट होना तो दूर कभी हेडिंग में भी गलती जाने नहीं दी। हमारी नजरों से ही अखबार से सारे के सारे करीब 30 पेज होकर जाते थे, मजाल है कि किसी में गलती हो जाए। आज हमें याद है कि हमारे उस अखबार को छोडऩे के बाद पिछले साल ही इसी जून के महीने में एक पेज रिपीट हो गया था। एक ही दिन में अखबार में एक ही पेज दो अलग-अलग पन्नों पर छप गया था। अगर काम को गंभीरता से नहीं किया जाएगा तो ऐसा ही होगा। अगर हमसे ऐसी भूल होती तो हम न सिर्फ अखबार के मालिक से माफी मांगते हुए नौकरी छोड़ देते बल्कि फिर भूले से भी पत्रकारिता का नाम नहीं लेते। लेकिन ऐसी नौबत हमारे साथ इसलिए कभी नहीं आई क्योंकि हममें आत्मविश्वास है और दुनिया में आत्मविश्वास से बड़ी पूजी नहीं है।
हमें आज भी याद है जब हम एक और अखबार में काम करते थे, तो हम वहां पर एक दिन अपने खेल का पेज लगाकर रात को 12 बजे आ गए थे। हमारे इसी पेज में प्रथम पेज की शेष खबरें जाती थीं। पहले संस्करण में सब कुछ ठीक-ठाक था, लेकिन दूसरे संस्करण में जब पहले पेज की शेष खबरें लगवाई गईं तो पहले पेज के संपादक ने ध्यान नहीं दिया और आपरेटर ने उसी तारीख के एक माह पुराने पेज में पहले पेज के शेष की खबरें लगा दीं और वह पेज छप गया। दूसरे दिन अखबार देखकर सबसे पहले संपादक को फोन हमने किया। पहले पेज के संपादक ने सारा दोष हम पर डालने का पूरा प्रयास किया, हमने संपादक के सामने पहला संस्करण रख दिया और कहा कि अगर पहले संस्करण में यह गलती होती तो दोषी हम होते। जब दूसरे और अंतिम संस्करण में हमारे पेज पर काम करवाने वाले पहले पेज के संपादक महोदय हैं तो फिर हम कहां दोषी हैं? अगर हमसे ऐसी भूल हुई होती तो हम खुद नौकरी छोड़ कर चले गए होते। उन पहले पेज के संपादक महोदय को काफी माफी के बाद रखा गया और पेज को लगाने वाले आपरेटर को निकालने की बात की गई तो हमने कहा कि जब सबसे बड़ी गलती करने वाले संपादक को नहीं निकाला जा रहा है तो बेचारे कम पढ़े-लिखे आपरेटर का क्या दोष? पेज चेक करने का काम संपादक का होता है न कि आपरेटर का।
तो जनाब ऐसी गलतियां हो जाती हैं लेकिन ऐसी गलती करने वाले को खुद अपनी जिम्मेदारी लेते हुए अपनी नौकरी को नमस्ते कर देना चाहिए। अगर टाइमस ऑफ इंडिया में उस गलती को करने वाले इंसान में पत्रकारिता की थोड़ी भी समझ होगी तो वे ऐसा ही करेंगे। बाकी अखबार गलती के लिए खेद प्रगट करने के अलावा और क्या कर सकता है। जब तीर कमान से निकल जाए तो फिर उससे कौन मरता है या घायल होता है क्या फर्क पड़ता है। अखबार तो छप गया है अब इसका क्या किया जा सकता है। अखबार की जितनी किरकिरी होनी थी हो गई है। अब उसको अपने वजूद को बचाने का काम करना है।
9 टिप्पणियाँ:
हिन्दी अखबारों की किरकिरी करने वालों की किरकिरी होने पर मजा आ गया
अगर उस पत्रकार में थोड़ी भी गैरत होगी तो उन्हें खुद नौकरी छोड़ देनी चाहिए।
समाज को दिशा दिखाने वाले ही ऐसी गलतियां करेंगे तो क्या होगा
ऐसे संपादक को तो नौ दो ग्यारह कर दी देना चाहिए
चलो अंग्रेजी अखबार भी अब हिन्दी अखबारों की राह पर चलने लगे हैं।
गलती तो किसी से भी हो सकती है...पर ये अंग्रेजी वाले किसी को बख्सते नहीं है ..सो हम भी क्यूँ मौका चुकें....
भईया अंग्रेजी अखबार में काम करने वाले क्या आसमान से आते हैं।
आपका लेख प्रेरणाप्रद है, आभार
गुरु इन्होंने गलती थी तो भुगतना तो पड़ेगा ही। लेकिन वो संपादक ही क्यो पूरी यूनिट ही बदल दो ना यार,,,और तो और बेशर्मी देखो इन अंगरेजों की दो लाइन में माफी मांग ली। लोगों को पूरा का पूरा पेज दोबारा पढ़वाकर।
dharmendrabchouhan.blogspot.com
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