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शनिवार, जून 13, 2009

ये आधुनिकता है या अश्लीलता

आज की युवा पीढ़ी आधुनिकता के नाम पर न जाने क्या-क्या करने लगी है। जो युवाओं की नजर में आधुनिकता है, उसको सही नजरिये से देखा जाए तो वह अश्लीलता है। अपना शहर आज राजधानी बन गया है। अपने शहर के युवा भी आज अपने को मुंबई और दिल्ली के युवाओं से कम नहीं समझते हैं। अगर यह मुकाबला अच्छी चीजों के लिए होता तो फायदेमंद होता, लेकिन यह मुकाबला तो एक ऐेसी दौड़ का है जिसको अश्लीलता की दौड़ से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है। आज शहर की कोई भी ऐसी सड़क नजर नहीं आती है जहां पर किसी बाइक में फर्राटे भरते किसी लड़के के साथ पीछे में कोई लड़की न बैठी हो। बुराई लड़के के साथ बैठने में नहीं है, बल्कि बैठने के ढंग में है। लड़के के कमर में हाथ डाले हुए लड़कियां इस तरह से चली जाती है मानो वो भारत में नहीं बल्कि किसी पश्चिमी देश में रह रही हैं। यहीं नहीं कई बार इनके हरकतें भी काफी शर्मनाक होती हैं। अब इसके बारे में कुछ कह दिया जाए तो आसानी से जवाब मिलता है कि भई हम तो मॉर्डन है। तो क्या मॉर्डन होना इसी को कहते हैं।

भारत का युवा आज से नहीं काफी पहले से पश्चिमी सभ्यता की तरफ खींचा चला जा रहा है। अगर किसी भी देश की सभ्यता अच्छी हो तो उसको अपनाने में बुराई नहीं होती है, लेकिन कोई सभ्यता अगर अपने देश की सभ्यता से बिलकुल विपरीत हो तो उसका अपनाने में जरूर बुराई है। हर अच्छी चीज को अपनाना हमेशा सुखद होता है और लोग उसकी तारीफ करते हैं, लेकिन जहां भी आप गलत चीज को अपनाते हैं तो उसकी बुराई होना लाजिमी है। पश्चिमी देशों की कई बातें अच्छी हो सकती
हैं
, लेकिन जिस तरह से आज भारत का युवा हरकतें करने लगा है वह भारतीय समाज के लिए जरूर घातक है। आज हम अपने शहर और प्रदेश की बात करें तो हमें रायपुर के साथ प्रदेश के ज्यादातर बड़े शहरों में यह स्थिति नजर आती है कि लड़के-लड़कियां बाइक पर सवार होकर खुले आम अश्लीलता फैलाने का काम कर रहे हैं।


अगर किसी भीड़ भरी सड़क पर एक आदमी खड़ा है और बगल में उसकी लड़की अपने पुरुष मित्र के साथ खड़ी है और उसके चेहरे पर नकाब है तो वह आदमी अपने लड़की को पहचान ही नहीं पाएगा। ऐसे वाक्ये होते भी रहते हैं। कई लड़के काफी गर्व से अपने मित्रों को बताते हैं कि यार क्या बताऊं आज मैं रीना.. सोनिया.. टीना ... कविता.. सविता.. मीना.. या फिर कोई भी नाम जो उसकी गर्ल फ्रेंड का होगा, उसके साथ था और बगल में उसके पापा थे, पर क्या मजाल की उन्होंने हमें पहचाना हो।


ऐसी कोई सड़क नहीं होगी जहां पर कई ऐसे जोड़े मिल जाएंगे जो बाइक में बैठे हुए एक-दूसरे की कमर में हाथ डाले रहते हैं। यह नजारा महज खाली सड़कों पर नजर नहीं आता है बल्कि भीड़ भरी बाजार की सड़कों पर भी ऐसे नजारे आम है। लड़के-लड़कियां ऐसी हिम्मत करते हैं तो इसके पीछे एक सबसे बड़ा कारण यह है कि उनको पहचाने जाने का डर नहीं रहता है। यह डर इसलिए नहीं होता है कि ऐसी हरकतें करने वालों के चेहरों पर नकाब रहता है। अपने शहर में काफी समय से धूल और धूप से बचने के लिए लोग चेहरों पर स्कार्फ बांधने का काम कर रहे हैं। जिस स्कार्फ को सुविधा के लिए बनाया गया है उसका उपयोग कम और दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है। हालात ये है कि अगर किसी भीड़ भरी सड़क पर एक आदमी खड़ा है और बगल में उसकी लड़की अपने पुरुष मित्र के साथ खड़ी है और उसके चेहरे पर नकाब है तो वह आदमी अपने लड़की को पहचान ही नहीं पाएगा। ऐसे वाक्ये होते भी रहते हैं। कई लड़के काफी गर्व से अपने मित्रों को बताते हैं कि यार क्या बताऊं आज मैं रीना.. सोनिया.. टीना ... कविता.. सविता.. मीना.. या फिर कोई भी नाम जो उसकी गर्ल फ्रेंड का होगा, उसके साथ था और बगल में उसके पापा थे, पर क्या मजाल की उन्होंने हमें पहचाना हो।

ये सब ऐसी बातें हैं जो आज के युवाओं को और ज्यादा पथभ्रष्ट करने का काम कर रही हैं। एक दोस्त के बताने पर दूसरा भी सोचता है कि हम भी ऐसा रोमांच ले। अब युवाओं को ऐसी बातें तो रोमांच ही लगती है। यह एक गंभीर मुद्दा है और सोचने वाली बात है कि वास्तव में आज का युवा किस दिशा में जा रहा है। क्या किसी लड़की को अपनी बाइक में बिठाकर उसको कमर में हाथ डलवाए रखना भारतीय सभ्यता है? भारतीय सभ्यता में यह कभी गंवारा नहीं किया जा सकता है। हो सकता है कि हमारी ये बातें उन लोगों को बुरी लग रही हों जो लोग इस तरह की हरकतों को ही आधुनिकता समझते हैं।

अगर किसी को हमारी बात बुरी लगती है तो लगे, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि समाज में कोई अश्लीलता फैलाए और उसे आधुनिकता का नाम दे दे तो उसको रोकना तो दूर उस पर कुछ लिखा भी न जाए। हमसे तो कम से कम ऐसा होने वाला नहीं है। हमने कोई समाज को सुधारने का ठेका नहीं लिया है, लेकिन अगर सामने कुछ गलत हो रहा हो तो उसके बारे में न लिखना जरूर हमारी नजर में गलत है। बहरहाल हमें ऐसा लगता है कि आज के युवाओं को एक सही दिशा दिखाने की बहुत ज्यादा जरूरत है और इसके लिए पालकों को ही पहल करनी पड़ेगी। हमें तो लगता है कि आज की युवा पीढ़ी अगर गलत रास्ते पर जा रही है तो इसके पीछे कहीं न कहीं पालकों का दोष ज्यादा है। आप अगर अपने सपूत या सुपुत्री को अच्छे संस्कार नहीं दे पा रहे हैं और उनको सही-गलत से अवगत नहीं करा पा रहे हैं तो आप खुद सोचिए क्या आप दोषी नहीं हैं? अगर आपको लगता है कि आप वास्तव में दोषी हैं तो अब भी वक्त है संभल जाए और अपने साथ आज की युवा पीढ़ी को असभ्यता की खाई में गिरने से बचा लें।

15 टिप्पणियाँ:

manisha,  शनि जून 13, 09:30:00 am 2009  

आधुनिकता के नाम पर किसी को भी ऐसी अश्लीलता फैलाने की छूट नहीं दी जा सकती है। ऐसा करने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

guru शनि जून 13, 09:47:00 am 2009  

ये आधुनिकता नहीं अश्लीलता ही है गुरु

anu शनि जून 13, 10:12:00 am 2009  

भारतीय संस्कृति किसी भी लड़के या लड़की को इस तरह की हरकतें वो भी खुलेआम करने ही इजाजत नहीं देती है। यह एक दूषित संस्कृति है जो बहुत तेजी से अपने देश में पैर पसार रही है। इसको समय रहते नहीं रोका गया है तो अपना युवी पीढ़ी का भगवान ही मालिक है समझो

atul kumar,  शनि जून 13, 11:18:00 am 2009  

आज की युवा पीढ़ी अगर गलत रास्ते पर जा रही है तो इसके पीछे कहीं न कहीं पालकों का दोष ज्यादा है।
बिलकुल ठीक बात है

Unknown शनि जून 13, 12:58:00 pm 2009  

ठीक कहते हैं आप आज की युवा पीढ़ी को अपने अलावा और किसी से मतलब नहीं होता है। आज के लड़के-लड़कियां तो बस आसमान में उडऩा चाहते हैं।

sanjay varma,  शनि जून 13, 01:45:00 pm 2009  

सड़कों पर गलत हरकतें करने वाले लड़के-लड़कियों पर पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए।

Unknown शनि जून 13, 04:07:00 pm 2009  

बच्चे अगर गलत रास्ते पर जा रहे हैं तो इसके लिए पालक ही दोषी है। अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना हर पालक का पहला कत्र्तव्य होना चाहिए।

xman शनि जून 13, 06:08:00 pm 2009  

yaar tum rahoge dakiyanoos hi, isi soch ki wajah se kai young logo ko sucide karna padta hai, ghut ghut ke jeena padta hai... soch ko free karo aur apne dimaag ko bhi. tumhare pass koi ladki nahi hai isliye ye soch hai. hoti to tum bhi maje leke batate ki "yaar aaj to us ladki se ghoomne me maja hi aa gaya". sorry agar sachhi baat buri lagi ho to.

alok,  शनि जून 13, 07:03:00 pm 2009  

मिस्टर एक्समैन
कहीं आपकी बहन या फिर बेटी किसी लड़के से साथ घुमने जाए और वह लड़के के कमर में मस्त हाथ रखकर चिपकर बैठी हो इसके बाद आप जरूर अपने विचार बताएं कि आपको कितना मजा आया। आप जैसे खराब विचार रखने वालों की वजह से ही लोग अच्छा लिखना पसंद नहीं करते हैं। वैसे मेरे पास भी कोई लड़की नहीं है अगर आपको एतराज न हो तो मैं आपकी बहन या फिर बेटी जो भी हो उसके साथ थोड़ा सा घुमने जाना चाहता हूं क्या विचार है मित्र कोई दिक्कत तो नहीं है। आप जैसे खुले विचारों के लोगों को दिक्कत होनी भी नहीं चाहिए।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" शनि जून 13, 08:08:00 pm 2009  

इसमें सारा दोष उस विदेशी चिन्तन का है, जिसने हमारे समाज की बुद्धि को कुंठित कर दिया है।

मुनीश ( munish ) शनि जून 13, 10:07:00 pm 2009  

Dear Alok,
In Delhi the scene does not stop at girls hugging boys on bikes. It is no big deal , no one turns head towards them. The new phenomenon is girls wearing ultra low cut jeans and deliberately showing their underwears . It is a very common sight these days and is like a blow in the face of society.

मुनीश ( munish ) शनि जून 13, 10:11:00 pm 2009  

I condemn this public display of underwears and channels are playing big role in degrading the norms of behaviour on roads.

Nitish Raj रवि जून 14, 02:37:00 am 2009  

घूमने में कोई बुराई नहीं है जो कि आपने भी लिखा है अपनी पोस्ट में पर हां किस तरह घूम रहे हैं और क्या-क्या पहन कर क्या-क्या दिखा रहे हैं वो बहुत महत्वपूर्ण हैं। आजकल बहुत से लड़के-लड़कियां इतनी नीची जींस या फिर टॉप पहनते हैं जो कि असभ्य लगता है। फिर कोई ऊंच नीच हो जाए तो कहते हैं कि मां-बहन,बाप-भाई घर में नहीं है क्या। पर सुधरना तो हमें ही होगा। बाइक में घूमने से और पकड़ कर बैठने पर मुझे एतराज नहीं है पर हां उस पकड़ने और बैठने में अभद्रता नहीं होनी चाहिए यानी घरवाले सामने आजाएं तो शर्मिंदा ना होना पड़े। यदि शर्मिंदा होना पड़ रहा है तो आप गलत हैं।

कौतुक गुरु जून 18, 10:10:00 am 2009  

वो चोली के पीछे, मेरी पैन्ट भी सेक्सी, राम तेरी गंगा मैली, बाबी वगैरह याद है? शायद आप युवा थे उन दिनों.

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