भगवान ऐसे पड़ोसी सबको दे...
आज के इस स्वार्थी जमाने में किसी को इतने अच्छे पड़ोसी भी मिल सकते हैं, यह जानकर हमें बहुत आश्चर्य हुआ। हमारे एक मित्र पहले एयरफोर्स में थे, पर अब रायपुर के माना विमानतल में इंजीनियर हैं। इनके एक पड़ोसी हैं जो डाक विभाग में कार्यरत हैं। उनके बारे में जानकार वास्तव में आश्चर्य हुआ। लेकिन इसका एक पहलू यह भी है कि हमारे वे मित्र खुद भी एक अच्छे इंसान ही नहीं काफी अच्छे पड़ोसी और सबकी मदद करने वाले हैं। हमेशा कहा जाता है कि अच्छे पड़ोसी नसीब वालों को ही मिलते हैं। नसीब वालों को कई बार अच्छे पड़ोसी तो मिलते हैं लेकिन इतने ज्यादा अच्छे पड़ोसी किसी को मिल जाएँगे इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है।
हमारे मित्र निरंजन देव जब एयरफोर्स की नौकरी छोडऩे के बाद रायपुर में माना विमानतल में इंजीनियर की नौकरी करने आए थे, तब उनको मालूम नहीं था कि यहां उनको एक ऐसे मित्र और पड़ोसी मिल जाएंगे जिसके बारे में कल्पना करना मुश्किल है। दरअसल देव साहब जहां रहते हैं वह एक नई कालोनी है। इस कालोनी में वे जब पहले पहल रहने आए थे तो वे सबकी मदद करते थे। तब उनको मालूम नहीं था कि वक्त पडऩे पर उनकी तरह ही उनको भी कोई मदद करने वाला मिल जाएगा। लेकिन कहते हैं न कि आप अगर किसी की भी नि:स्वार्थ मदद करते हैं तो ऊपर वाला जरूर आपको भी उस समय किसी न किसी रूप में किसी को भी मदद करने के लिए भेज देता है। देव साहब जितने अच्छे हैं उतनी ही अच्छी उनकी पत्नी श्रीमती उमा देवी हैं। उनकी कालोनी में जब भी कोई उनकी थोड़ी सी भी जान-पहचान वाला रहने आया तो पहले दिन का खाना उनके घर पर ही खाना पड़ा। यही नहीं उन्होंने नई कालोनी में लोगों की परेशानी को देखते हुए की एक किराने की दुकान भी खोल रखी है जहां पर सबको सामान मिल जाता है, वरना सामान लेने काफी दूर जाना पड़ता था।
जब देव साहब ने अपनी पत्नी को मायके भेज दिया तो उनकी परेशानी को समझते हुए उनके पड़ोसी समीर देवांगन के साथ उनकी पत्नी नेहा देवांगन ने उनको तब तक अपने यहां खाना खाने के लिए कहा जब तक उनकी पत्नी वापस नहीं आ जातीं। बात एक-दो दिन की होती तो समझ में आता है, लेकिन उमाजी को कम से कम 15 से 20 दिन लगने थे वापस आने में। इसी के साथ एक बात और कि समीर जी भी ज्यादातर घर के बाहर रहते हैं। इसके बाद भी उन्होंने देव साहब को अपने घर पर ही खाने के लिए कहा। समीरजी की पत्नी नेहा जी ने न सिर्फ देव साहब और उनके बच्चों को रोज खाना खिलाया बल्कि उनके लिए रोज सुबह को 9 बजे टिफिन भी बनाकर दिया।
इधर उमाजी की माता की तबीयत खराब होने की सूचना मिलने पर देव साहब ने जब अपनी पत्नी को उनके मायके बिहार भेजने का फैसला किया तो उनको इस बात की चिंता थी कि उनके जाने के बाद उनके साथ उनके दो बच्चों को खाना कौन बनाकर देगा। अपने देव साहब को सुबह 9 बजे अपने काम पर जाना पड़ता है। ऐसे में जब देव साहब ने अपनी पत्नी को मायके भेज दिया तो उनकी परेशानी को समझते हुए उनके पड़ोसी समीर देवांगन के साथ उनकी पत्नी नेहा देवांगन ने उनको तब तक अपने यहां खाना खाने के लिए कहा जब तक उनकी पत्नी वापस नहीं आ जातीं। बात एक-दो दिन की होती तो समझ में आता है, लेकिन उमाजी को कम से कम 15 से 20 दिन लगने थे वापस आने में। इसी के साथ एक बात और कि समीर जी भी ज्यादातर घर के बाहर रहते हैं। इसके बाद भी उन्होंने देव साहब को अपने घर पर ही खाने के लिए कहा। समीरजी की पत्नी नेहा जी ने न सिर्फ देव साहब और उनके बच्चों को रोज खाना खिलाया बल्कि उनके लिए रोज सुबह को 9 बजे टिफिन भी बनाकर दिया। यही नहीं जब देव साहब ने इतने दिनों तक खाना खाने का राशन देने की बात की तो समीरजी नाराज हो गए और उन्होंने देव साहब से कहा कि क्या वे अपने छोटे भाई के घर खाना खाते तो उनको भी राशन देते। उनकी बातें सुनकर अपने देव साहब की आंखे भर आई और उन्होंने समीर को गले से लगा लिया। उनका प्यार के बारे में सुनकर यकीन ही नहीं हुआ कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हो सकते हैं।
वास्तव में सोचने वाली बात है कि क्या आज के जमाने में समीर और नेहाजी जैसे पड़ोसी मिलने संभव है। समीर और नेहा की नेकी के साथ एक बात जो आज के दौर के लिए जरूरी और गौर करने वाली है वह यह है आज के जमाने में जब कोई इंसान भरोसे के लायक नजर नहीं आता है ऐसे में समीरजी की हिम्मत के साथ उनका पत्नी के प्रति भरोसा काबिले-दाद है। समीरजी ज्यादातर घर पर नहीं रहते हैं और उनके न रहने पर भी देव साहब उनके घर पर रात को खाना खाते रहे। वास्तव में हर इंसान को अपनी पत्नी पर इसी तरह से भरोसा करना चाहिए और हर पत्नी को नेहा जी जैसा होना चाहिए मदद करने वाला।
आज तो कई महिलाएं अपने घर-परिवार के लोगों के लिए ही खाना बनाने से कतरारी हैं। अगर ज्यादा दिनों के लिए पति के घर वाले रहने आ जाए तो कई घरों में पति-पत्नी में झगड़े हो जाते हैं कि आपके घर वाले यहां आकर जम गए हैं आपको क्या है घर का काम तो मुझे करना पड़ा है। ऐसी ही स्थिति तब भी होती है जब पत्नी के घर वाले आकर ज्यादा दिनों के लिए रहते हैं। तब पति महोदय भी चालू हो जाते हैं कि तुमको क्या है तुम्हारे घर वाले यहां आकर जम गए हैं कमाना तो मुझे पड़ता है। कहने का मतलब है कि आज हर दूसरे घर में जब ऐसी परिस्थिति होती हैं, तब ऐसे में समीर और नेहाजी जैसे पति-पत्नी का होना आश्चर्यजनक लगता है। यह दंपति सबक और प्रेरणा है उन सभी पति-पत्नी के लिए जो इसलिए झगड़ा करते हैं कि तुम्हारे परिवार वाले क्यों इतने दिनों तक यहां रूके हैं। हमारा तो ऐसा सोचना है कि भगवान सबको समीर-नेहा और निरंजन-उमा जैसी दंपति बनाए और सबको ऐसे ही पड़ोसी दें जो किसी भी परेशानी को समझकर उनको मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
13 टिप्पणियाँ:
अच्छे पड़ोसी आज-कल कहां मिलते हैं जनाब, आपके मित्र वाकई किस्मत वाले हैं जिनको अच्छे अच्छे पड़ोसी मिले हैं।
हमारा भी ऐसा सोचना है कि भगवान सबको समीर-नेहा और निरंजन-उमा जैसी दंपति बनाए और सबको ऐसे ही पड़ोसी दें।
प्रेरणाप्रद लेख है, बधाई
किसी की मदद करने से ही मदद मिलती है क्योंकि ताली तो दोनों हाथों से बजती है
काश हमें भी ऐसे अच्छे पड़ोसी मिलते
आपकी बात सही है। आजकल ऐसे मित्र कम ही हैं किन्तु हैं अवश्य। तभी तो कहा जाता है- घर का दूर, पडौसी नेड़े।
आमीन।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आज के जमाने में जब कोई इंसान भरोसे के लायक नजर नहीं आता है ऐसे में समीरजी की हिम्मत के साथ उनका पत्नी के प्रति भरोसा काबिले-दाद है। इस बात से मैं भी सहमत हूं।
झकास बात लिखी है गुरु....
kismat wale hain jo itne achchhe insan mile...warna aajkal to beta baap ko nahi poonchhta
मदद करने वाली ऐसी दंपति को हम सलाम करते हैं।
sach padosiyon ko salam.dono pariwar mein ye sneh bana rahe yahi dua hai.
प्रेरक लेख है।
एक टिप्पणी भेजें