चला गया रंग मंच का एक सितारा- जो सबको लगता था प्यारा
रंगमंच के एक माहिर सितारे हबीब तनवीर चले गए और छोड़ गए अपने पीछे अपने परिवार के साथ कला जगत से जुड़े अपने चाहने वालों को रोते-बिलखते हुए। काफी समय से कला प्रेमियों को इस बात का अहसास था कि हबीब दादा कभी भी उनका साथ छोड़ सकते हैं। और आज सुबह अंतत: उन्होंने कला जगत के साथ इस दुनिया को भी अलविदा कह दिया। हबीब जी भले चले गए हैं पर उनकी यादें हर उस इंसान के दिलो-दिमाग में है जिन्होंने उनसे जीवन में कभी भी मुलाकात की होगी। हमारी उनसे ज्यादा नाता तो नहीं रहा है, लेकिन एक पत्रकार होने के नाते उनसे रायपुर में कुछ एक बार मुलाकात जरूर हुई थी। लेकिन यह मुलाकात इतनी लंबी भी नहीं थी, पर जब भी उनसे मिलने का मौका मिला उनके व्यक्तित्व ने आकर्षित किया।
हबीब जी के निधन का समाचार वास्तव में जहां भारत के कला जगत के लिए दुखद खबर है, वहीं पूरे विश्व के रंगमंच के लिए भी यह खबर दुखदायी है। हबीब जी का चूंकि रायपुर से गहरा नाता रहा है ऐसे में रायपुर सहित पूरे छत्तीसगढ़ में उनके निधन की खबर से शोक की लहर है। रायपुर में एक सितंबर 1923 को हफीज अहमद खान के घर उनका जन्म हुआ था। खान साहब पेशावर से रायपुर आकर बसे थे। हबीब जी ने अपने जीवन का आगाज एक पत्रकार के रूप में किया था, पर बाद में उन्होंने अपना रंगमंच को ही अपना जीवन बना लिया। रंगमंच से जुडऩे के बाद उनकी ख्याति ने उस आसमान को छुआ जिसकी कल्पना हर कलाकार करता है। हबीब जी की कलम ने जिन लौहार नई वेख्या, ते जन्म्या नई और आगरा बाजार जैसे कई नाटक दिए। उनकी कलम से निकले नाटक चरण दास चोर को 1982 में अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।
हबीब जी को से लोग हबीब साहब कहते थे। उन्होंने फिल्मों के क्षेत्र में भी अपने हाथ आजमाए। कुछ फिल्मों की पटकथा लिखने के अलावा उन्होंने चंद फिल्मों में अभिनय भी किया था। हबीब वर्षों से इप्टा से भी जुडे रहे। उन्होंने देशभर में कई नाटकों का मंचन किया और उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा भी गया। तनवीर देशभर में एक बड़े रंगकर्मी के रूप में पहचाने जाते थे। 'पोंगा पंडित' नामक नाटक को साम्प्रदायिकता का रंग दे दिया गया था और इसे लेकर कौमी दंगा तक भड़क गया था। बहुत कम लोग जानते हैं कि तनवीर के नाटक 'जिन लाहौर नईं वेख्या, ते जन्म्या नईं' में जिसने लड़की का किरदार निभाया था, असल में वह लड़का था। विभाजन की त्रासदी पर आधारित इस नाटक में लड़की को मर्दाना आवाज में अपना दु:ख व्यक्त करना था और यही कारण था कि इस भूमिका के लिए एक पुरुष का चयन करना पड़ा।
नाटक : आगरा बाजार, शतरंज के मोहरे, लाला सोहरत राय, मिट्टी की गड्डी, चरणदास चोर, उत्तर राम चरित्र, बहादुर कलारीन, पोंगा पंडित, 'जिन लाहौर नईं वेख्या, ते जन्म्या नईं', कामदेव का अपना बसंत ऋतु का सपना, जहरीली हवा, राज रक्त।
फिल्मोग्राफी : हबीब तनवीर ने अपने नाटक 'चरणदास चोर' पर बनी फिल्म के अलावा और सुभाष घई की फिल्म 'ब्लैक एंड व्हाइट' में अपने अभिनय की छाप छोड़ी।
पुरस्कार : हबीब को 1969 में संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, 1983 में पद्मश्री, 1996 में संगीत नाटक अकादमी की फैलोशिप मिली और 2002 में उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा गया। अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार : हबीब को उनके नाटक 'चरणदास चोर' के लिए 1982 में एडिंगबर्ग इन्टरनेशनल ड्रामा फेस्टिवल में फ्रिंज फस्ट अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया था।
5 टिप्पणियाँ:
चरणदास चोर के कारण हबीब जी छत्तीसगढ़ के भी घर-घर में जाने जाते हैं। आज भी इस नाटक का मंचन छत्तीसगढ़ का हर रंगकर्मी करना चाहता है।
रायपुर के रंगकर्मी और कला प्रेमी कभी भी हबीब जी को नहीं भूल सकते हैं।
आसिफ अली रायपुर
कला जगत के लिए हबीब जी का न रहना अपूर्णीय क्षति है।
हार्दिक श्रद्धांजलि।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कौन कहता है कि हबीब साहब सिर्फ रायपुर या भोपाल की अमानत थे ..उन्हें खांचे में बांधना मुश्किल है,मैंने उनके नाटक पर शोध किया है और इसी सिलसिले में उनसे मुलाकतें भी हुई.उनकी मुख्य चिंता अपने बाद के नया थिएटर को चलाने की रही थी(यह बात उन्होंने ने मेरे से हुई एक अनौपचारिक बातचीत में खालसा कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय में कही थी)आज सुबह से ही लग रहा है घर का कोई बड़ा-बुजुर्ग चला गया ...
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