हत्या को दो प्यार का नाम-बच जाएगा होने से काम तमाम
अपने देश की सबसे बड़ी न्यायिक अदालत सुप्रीम कोर्ट ऐसे-ऐसे फैसले सुना देती है जिन पर यकीन नहीं होता है कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट का हो सकता है। एक मामले में आए फैसले पर गौर करने से समझ में नहीं आता है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट इस फैसले से क्या साबित करना चाहता है। इस फैसले से तो लगता है अपराध कम होने की बजाए बढऩे लगेंगे। एक फैसले में सुप्रीम ने फैसला किया है कि प्यार के जुनून में की गई हत्या के लिए फांसी की सजा नहीं दी जा सकती है। इस फैसले के बाद अगर लोग हत्या को प्यार का नाम देने लगे या फिर अपनी प्रेमी या प्रेमिका की बेदर्दी से हत्या करने के मामले बढ़ जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा। वैसे भी अपने देश में प्यार के जुनून में हत्याएं कुछ ज्यादा ही होती हैं । ऐसे में ऐसे हत्यारों को जिनको वास्तव में फांसी की सजा मिलनी चाहिए उनको इस सजा से बचाने का काम सुप्रीम कोर्ट ने किया है।
भारतीय संविधान में हत्या को सबसे बड़ा अपराध माना जाता है। इसके लिए फांसी की सजा का भी प्रावधान है। पर कई बार अपने देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के फैसले चौंकाने वाले होते हैं। अब पंजाब सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस फैसले पर नजर डालें तो मालूम होता है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्यायसंगत नहीं है। दो आरोपियों ने अपनी सामूहिक रखैल के साथ मिलकर उसके पति और बेटे के साथ चार लोगों की बड़ी बेदर्दी से हत्या कर दी। ऐसे में इन आरोपियों को पंजाब सरकार फांसी की सजा दिलवाना चाहती है। पंजाब सरकार की एक याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोपियों ने अपनी रखैल के बहकावे में आकर ऐसा अपराध किया है इसलिए उनको फांसी की सजा देना उपयुक्त नहीं है। अब सोचने वाली बात यह है कि क्या किसी के बहकावे में आकर अपराध करने से अपराध कम हो जाता है। हत्या तो हत्या है ऐसे में कैसे यह माना जाए कि वे आरोपी फांसी की सजा के हकदार नहीं है। माना कि अपने देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले से कोई इंकार नहीं कर सकता है, लेकिन यह एक बहस का मुद्दा तो जरूर है कि कैसे किसी को इस बात की छूट दी सकती है कि वह अपराध करें और महज इसलिए उसके अपराध को कम करके आंका जाए कि उसने यह अपराध किसी के बहकावे में आकर किया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद तो लगता है कि अपराध करने वालों के लिए एक नया ही रास्ता खुल जाएगा। हत्या जैसा अपराध करने वाले यह साबित करने की कोशिश करने लगेंगे कि उन्होंने यह अपराध किसी के बहकावे में आकर किया है। इस फैसले के बाद तो उन प्यार में अंधे जुनूनी लोगों की लाटरी ही लग जाएगी जो एकतरफा प्यार करते हैं और इस प्यार के जुनून में अक्सर हत्या जैसा अपराध कर बैठते हैं। इसी के साथ शक की आग में जलने वाले भी अब हत्या करने से पीछे नहीं हटेंगे। वैसे भी शक के कारण होने वाली हत्याओं का ग्राफ भी कम नहीं है। अब कोई शक में हत्या कर बैठे और कहा जाए कि उसने तो प्यार के जुनून में हत्या की है तो यह बात तो गलत ही होगी। प्यार करने वाले हत्या नहीं करते हैं। हत्या करने वाले कभी किसी को प्यार कर ही नहीं सकते हैं। हत्या तो हमेशा नफरत की परिणीति का परिणाम होता है। पहले कम से कम इस बात का डर तो रहता था कि हत्या करने के बाद संभवत: उनकी भी जान जा सकती है और उनको फांसी हो सकती है, पर फांसी की सजा से बचाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तो लगता है प्यार में दीवाने लोगों को हत्या करने से डर नहीं लगेगा। ऐसा हुआ तो अपराध का ग्राफ कम होने की बजाए बढ़ जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो जरूर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एक प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।
6 टिप्पणियाँ:
रखैल के बहकावे में आकर हत्या करने वाले भला कैसे दया के पात्र हो सकते हैं, यह बात समझ से परे है।
हत्या तो हत्या होती है, और कोई भी अपराध हमेशा जुनून में ही किया जाता है। किसी की भी हत्या करने वालों को फांसी की ही सजा देनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की जय हो गुरु
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कुछ भी बोलना ठीक नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि हत्या जैसे अपराध करने वालों को सजा में छूट नहीं देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट से आगे जब कुछ है नहीं तो फिर क्या कहा और किया जा सकता है। खाली बयानबाजी से तो कुछ होना नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वैसे तो कुछ नहीं बोलना चाहिए, लेकिन आपने यह बात ठीक लिखी है कि हत्या जैसे अपराध के आरोपी किस भी रहम के हकदार नहीं होते हैं।
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